जब पति ही बलात्कारी बन जाए

इसराईल की एक महिला शीरा इसकोवा पर सितंबर, 2020 में उस के पति ने 20 बार धारदार चाकू से जानलेवा हमला किया. उस के बाद उसे अस्पताल ले जाया गया. डाक्टरों का कहना था कि महिला का बचना मुश्किल है, लेकिन अपनी हिम्मत के बल पर शीरा मौत को मात दे कर जी उठी.

घटना के 14 महीने बाद कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामले में कोई मजबूत कानून नहीं होने की वजह से उस के आरोपी पति को निर्दोष बता दिया. कोर्ट की इस जजमैंट को ले कर पीडि़त महिला ने कहा था, ‘‘मुझे शरीर में 20 चाकू धंसने पर भी उतना दर्द नहीं हुआ, जितना कोर्ट के इस फैसले को सुनने पर हुआ.’’

इसराईल जैसे संपन्न देश में भी ऐसे कानून हैं जहां एक महिला पर पति द्वारा 20 चाकू घोंपे जाने के बावजूद उसे निर्दोष साबित कर दिया गया. लेकिन सिर्फ इसराईल ही एक अकेला ऐसा देश नहीं है. भारत समेत कई बड़े देशों में महिला विरोधी कानून आज भी लागू हैं.

भारत के पतियों को रेप की आजादी

मैरिटल रेप का सवाल लगातार किसी न किसी रूप में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. विवाहित महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की घटनाएं आज भी हो रहे हैं. भारत में वैवाहिक बलात्कार कानून की नजर में अपराध नहीं है यानी अगर पति अपनी पत्नी के की मरजी के बगैर उस से जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जाता.

एक पीडि़त महिला ने कोर्ट में जब यह कहते हुए गुहार लगाई कि उस का पति उस के साथ अप्राकृतिक कृत्य करता है, तो कोर्ट ने यह कहते हुए पति को बलात्कार के मामले में अपराधमुक्त कर दिया कि अगर पत्नी कानूनी तौर पर विवाहित है और उस की उम्र 18 साल से अधिक है, तो पत्नी के साथ बलपूर्वक या उस की इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध या यौन क्रिया अपराध या बलात्कार नहीं है.

हमारे भारतीय समाज में तो शादी को एक पवित्र बंधन माना गया है. यहां एक पति का अपनी पत्नी के साथ मार कर जबरन रेप को अपराध क्यों नहीं माना जाता? क्या पत्नी की देह पर उस का अपना कोई अधिकार नहीं है? क्या 21वीं सदी में भी शादी के बाद महिला की स्थिति सिर्फ पति की दासी जैसी है और उस का अपना कोई अस्तित्व नहीं है? क्या शादी के बाद भारतीय पतियों को कानूनी तौर पर पत्नी का बलात्कार करने का लाइसैंस मिल जाता है?

अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ मार कर जबरन सैक्स करता है, तो भारत का बलात्कार का कानून पति पर लागू नहीं होता और उस का नतीजा यह है कि महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार बन रही हैं.

मैरिटल रेप से जूझ रही महिलाओं की कहानी

लता, बदला हुआ नाम, कहती है कि उस का पति रोज शराब के नशे में चूर उस के साथ जानवरों जैसा सलूक करता है और वह जिंदा लाश की तरह बस पड़ी रहती है. तब उस का पति और हिंसक हो जाता है. हर रात वह उस के लिए एक खिलौने की तरह है, जिसे वह अलगअलग तरह से इस्तेमाल करता है.

पत्नी से लड़ाई के दौरान वह अपनी खुन्नस पत्नी का बलात्कार कर के निकालता है. तबीयत खराब होने पर कभी वह न कह दे तो पति सहन नहीं कर पाता है. अब वह इन संबंधों से ऊबने लगी है. उस का मन करता है कहीं भाग जाए, पर 2-2 बच्चों को पालना है, इसलिए सहने को मजबूर है.

एक महिला का कहना है कि एक रोज उस के पति ने उसे मारापीटा और घसीट कर कमरे में ले गया. उस ने अपनी पूरी ताकत से खुद को पति से अलग करना चाहा, लेकिन वह नहीं रुका. और तो और उस ने उस के प्राइवेट पार्ट में टौर्च घुसा दी जिस से वह बेहोश हो गई. लेकिन पति दरवाजा बंद कर बाहर निकल गया. उस के बाद ससुराल वालों ने उसे अस्पताल पहुंचाया. वह कहती हैं कि उस के बाद वह कभी अपनी ससुराल नहीं गई.

सैक्स के लिए परेशान करता था

कुछ साल पहले एक पत्नी द्वारा सैक्स के लिए मना करने पर पति ने उस का गला दबा कर मारने की कोशिश की थी. 34 वर्ष की महिला संगम विहार में अपने पति और 2 बच्चों के साथ रहती थी. दोनों की शादी को 17 साल हो गए थे. दोनों के बीच सैक्स को ले कर अकसर झगड़ा होता था.

पत्नी का आरोप था कि करीब 1 महीने पहले उस ने फैमिली प्लानिंग का औपरेशन करवाया था, इसलिए डाक्टर ने 3 महीने तक उसे शारीरिक संबंध बनाने से मना किया था. लेकिन पति अकसर उसे सैक्स के लिए परेशान करता था. एक रोज वह यह कहते हुए पत्नी का गला दबाने लगा कि अगर तू मेरे साथ सैक्स नहीं करेगी तो मैं तुझे जान से मार दूंगा. फिर तंग आ कर पत्नी को पुलिस को फोन करना पड़ा.

यहां सब से बड़ा सवाल यह है कि हमारे समाज में शादी चलाने और पति को खुश रखने की जिम्मेदारी औरतों के जिम्मे ही क्यों है? क्या औरत के शरीर और मरजी कोई माने नहीं है?

कोर्ट का तर्क

कोर्ट के अनुसार यह कैसे साबित होगा कि घर की चारदीवारी में क्या हुआ? कैसे पता चलेगा कि पत्नी की रजामंदी नहीं थी? रेप के कई झठे मामले अदालतों में पहुंचे और इस से कई जिंदगियां बरबाद हुईं. बैडरूम को अदालतों तक ले जाने की यह कोशिश बहुत खतरनाक साबित हो सकती है. इसलिए मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में रखा जाना उचित नहीं क्योंकि इस से विवाह संस्था चरमरा सकती है.

मगर यदि एक ऐसी संस्था की नींव बलात्कार जैसे अपराध पर टिकी हो तो उस संस्था का चरमरा जाना ही बेहतर रास्ता है. मैरिटल रेप कोई घर की बात नहीं है, बल्कि एक अपराध है. यह अपराध चाहे कोई भी करे इस से उस का चरित्र या उस की परिभाषा बदल नहीं जाती.

मैरिटल बलात्कार का मामला कई बार सांसद में भी उठा, लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला. यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट भी पत्नी की सहमति के बगैर उस से यौन संबंध स्थापित करने के कृत्य को अपराध घोषित करने से इनकार कर चुका है.

‘यूनिवर्सिटी औफ वौरविक’ और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफैसर रहे उपेंद्र बख्शी कहते हैं कि मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर देना चाहिए. पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार को रोकने के किए कोई कदम नहीं उठाया गया है.

1980 में प्रोफैसर बख्शी जानेमाने वकीलों में शामिल थे और उन्होंने अपनी बात सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जड़े कानूनों में संसोधन को ले कर कई सुझव भी भेजे थे. समिति ने उन के सारे सुझवों को स्वीकार कर लिया सिवा मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के सुझव को. सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का अपराधिकरण विवाह संस्था को अस्थिर कर सकता है और महिलाएं इसका इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं.

2013 में संयुक्त राष्ट्र की एक समिति ने भारत के इस रवैए पर चिंता जताते हुए सिफारिश की थी कि भारत सरकार वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करे. निर्भया मामले में प्रदर्शन के बाद गठित जेएस वर्मा समिति ने भी इस की सिफारिश की थी. कई समितियां बनी. लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है.

1947 में भारत का आधा हिस्सा ही आजाद हुआ था, बाकी आधा अभी भी गुलाम है. महिलाएं पितृसत्तात्मक सोच के नीचे घुट रही हैं. भारत आधुनिकता का सिर्फ मुखौटा ओढ़े हुए है.  अगर सतह को खंरोच कर देखें, तो असली चेहरा साफसाफ नजर आएगा.

पत्नी की शरीर संपत्ति नहीं

भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में आज भी पत्नी के शरीर पर पति का हक माना जाता है. इस कथित हक के हिसाब से लोग अकसर मान लेते हैं कि उन्हें पत्नी के साथ उस की मरजी के खिलाफ भी सैक्स करने का अधिकार है क्योंकि शादी के बाद पत्नी उस की संपत्ति की तरह है जिसे वह जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकता है.

ऐसे में वैवाहिक बलात्कार जैसे मुद्दे पुरुषों के लिए बेतुके लगते हैं. लेकिन क्या शादी का मतलब पत्नी से जबरदस्ती करने की आजादी है? क्या कानून का सहारा ले कर औरतों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को सही ठहराया जा सकता है?

भारत में आज भी घरेलू हिंसा के खिलाफ सख्त कानूनों की कमी है. पत्नी के बलात्कार के खिलाफ भारत में कोई कानून है ही नहीं. फिर भी अदालतें यही कहती हैं कि अकसर औरतें कानूनों का दुरुपयोग करती हैं. लेकिन वही कानून एक बलात्कारी को पीडि़ता से शादी करने का औफर देता है ताकि उस की सजा माफ हो सके.

जस्टिस बोबडे ने एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति से पूछा था कि क्या वह उस से शादी करने के लिए तैयार है? सीजेआई ने वैवाहिक बलात्कार के एक अलग मामले में दूसरा भयानक सवाल यह किया था कि जब 2 लोग पति और पत्नी के तौर पर साथ रह रहे हैं, पति चाहे कितना भी क्रूर हो, क्या उन के बीच यौन संबंध को बलात्कार कहा जा सकता है?

क्या इस तरह के सवाल घरेलू हिंसा को और बढ़ावा नहीं देते हैं? क्या एक इंसान होने के नाते औरत को ‘न’ कहने का कोई हक नहीं है? फिर चाहे वह व्यक्ति उस का पति ही क्यों न हो. शादीशुदा होने से रेप का अपराध क्या कम गंभीर हो जाता है यानी पत्नी अगर 8 साल से ऊपर की है तो पति को वैवाहिक बलात्कार के लिए ‘हाल पास’ मिल जाता है. पति बिना किसी डर के अपनी पत्नी के साथ जो चाहे, जैसे चाहे कर सकती है, उस पर कोई कानूनी शिकंजा नहीं कसेगा.

पति का हक

आज  भी कुछ लोग ऐसे हैं जो पत्नी के बलात्कार के खिलाफ कानून बनाने के हक में नहीं हैं. ‘आंसर्स डौट कौम’ ने इस मुद्दे पर हो रही चर्चा पर लिखा था कि पति का अपनी पत्नी के जिस्म पर पूरा हक है. किसी सैक्स वर्कर के पास जाने से अच्छा है पत्नी के साथ ही जबरदस्ती करो. एक और व्यक्ति ने लिखा था कि पत्नी का बलात्कार इतना संजीदा मुद्दा नहीं है जितना किसी लड़की से बलात्कार करना. पत्नी को अपने पति की जरूरतों का खयाल रखना चाहिए.

नाक कटने का डर

अधिकतर मामलों में महिलाएं अपने घर में ही पति के हाथों बलात्कार की शिकार होती हैं. लेकिन वे अपनी शिकायत ले कर सामने नहीं आ पातीं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि ऐसा करने से समाज में उन की नाक कट जाएगी और अगर कोई अपने हक के लिए बोलना भी चाहती है तो उस की आवाज दबा दी जाती है.

अफसोस की बात है कि हमारी न्याय प्रणाली भी दोषी का साथ देती है. छोटे से ले कर बड़ा अधिकारी पैसे दे कर खरीद लिया जाता है. लेकिन वहीं पश्चिमी देशों में महिलाओं के हितों में नए कानून ही नहीं बनते, बल्कि उन का पालन भी होता है. लेकिन हमारे यहां अगर कोई कानून बन भी जाए तो उस का पालन नहीं होता, केवल दुरुपयोग होता है.

100 से भी अधिक देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. लेकिन भारत लगभग 32 देशों की चमकदार लीग पर खड़ा है, जहां वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है. ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का यह कानून भारत में 1860 से लागू है, जिस में जिक्र था कि अगर पति अपनी पत्नी के साथ जबरन सैक्स करे और पत्नी की उम्र 18 साल से कम की न हो तो उसे रेप नहीं माना जाएगा.

इस प्रावधान के पीछे यह मान्यता है कि शादी में सैक्स की सहमति छिपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है. लेकिन खुद ब्रिटेन ने भी 1991 में वैवाहिक बलात्कार को यह कहते हुए अपराध की श्रेणी में रख दिया कि छिपी हुई सहमति को अब गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है. लेकिन महान भारतीय पितृसत्तात्मक मानसिकता ने लंबे समय तक एक विडंबना को पाले रखा, जो आज तक चली आ रही है.

मैरिटल रेप का अपवाद हमारे कानून और समाज में पितृसत्तात्मक सोच को प्रदर्शित करता है. औपनिवेशिक कानून लागू होने के बाद जब पहली बार अपवाद को जोड़ा गया तो नीति निर्माताओं ने चर्चा की थी कि क्या कानून को रेप करने वाले पति को बचाना चाहिए या शादी में रेप को बरदाश्त करने की पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति को यह अपवाद वैधता देता है?

वैवाहिक बलात्कार का ही परिणाम है कि आज कई महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं. आंकड़े बताते हैं कि देश में शादी करने वाली 15 से 49 साल के बीच की हर 3 में से 1 महिला पति के हाथों हिंसा का शिकार होने की बात कहती है. एक सर्वे के अनुसार 31 फीसदी विवाहित महिलाओं से उन के पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं.

महिलाओं पर वैवाहिक बलात्कार के प्रभाव

पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार और अन्य गलत दुर्व्यवहार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न करता है. वैवाहिक बलात्कार हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित करता है.

एक ओर पारिवारिक हिंसक माहौल, तो दूसरी ओर ये घटनाएं स्वयं और बच्चों की उपयुक्त देखरेख कर सकने की महिलाओं की क्षमता को कमजोर कर सकती हैं. अपरिचित या परिचित व्यक्ति द्वारा बलात्कार की शिकार पीडि़ताओं की तुलना में वैवाहिक  बलात्कार की शिकार पीडि़ताओं के बारबार बलात्कार की घटनाओं का शिकार होने की अधिक संभावना रखती है.

यह चौंकाता है. लेकिन यह सच है कि हम एक ऐसे देश में हैं जो ज्यादातर यही मानता है कि एक भारतीय महिला शादी के बाद कई चीजों के साथ अपने पति के लिए कभी खत्म नहीं होने देने वाली, बदली न जा सकने वाली और हमेशा के लिए सहमति सौंपने वाली होती है, जिसे केवल मौत ही खत्म कर सकती है.

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 यह सुनिश्चित करता है कि राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा, लेकिन भारतीय आपराधिक कानून महिलाओं खासकर के उन महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, जिन का पतियों द्वारा बलात्कार किया जाता है. हालांकि संविधान सभी को समानता की गारंटी देता है.

आधुनिक समाज में जब हर स्तर पर स्त्रियों की भागीदारी व बराबरी की कोशिश हो रही है और इन कोशिशों का श्रेय पुरुष बढ़चढ़ कर लेते रहे हैं. लेकिन अब समय आ गया है कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जाए. इस के दायरे में उन सभी महिलाओं के साथ होने वाली बलात्कार की घटना को शामिल किया जा सकता है जो कभी भी विवाहित रही हों अर्थात विवाहित, तलाकशुदा, पति से अलग हो कर रह रही महिला और लिविंग पार्टनर के साथ उन की इच्छा के विरुद्ध पति या जीवनसाथी द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने या फिर यौन हिंसा का प्रावधान होना चाहिए.

सरकार को महिलाओं के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए पत्नी से बलपूर्वक यौनाचार को बलात्कार की श्रेणी में शामिल करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने ही पड़ेंगे वरना थकहार कर महिलाओं को उसी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में घुट कर जीने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में न रखा जाना पितृसत्तात्मक को और मजबूत करता है.

दिल का नया रिश्ता: वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड

आप को उस के दोस्तों के नाम पता हैं. आप उस की पसंदीदा फिल्मों के नाम जानती हैं. आप उस की जिंदगी में घटी तमाम खास घटनाएं जानती हैं. आप उस पर आंख मूंद कर भरोसा करती हैं. कभीकभी वह आप को डांटता है, फिर भी आप उस की शिकायत किसी और से नहीं करतीं, न ही आप को यह सब बुरा लगता है. आप को उस के बोलने के अंदाज का पता है. उस के मन में क्या चलता रहता है, आप को इस का भी अंदाजा रहता है.

सवाल- आखिर आप का वह कौन है?

आप उस से उम्मीद करते हैं कि वह आप के पसंदीदा कपड़े पहने. आप चाहते हैं जब आप दोनों लंच करने बैठें तो खाना वह परोसे. आप चाहते हैं जब आप कुछ बोल रहे हों, भले गुस्से में तो भी वह चुपचाप सुन ले, पलट कर उस समय जवाब न दे, बाद में भले उलटे आप को डांट दे. आप उसे अपने फ्यूचर के प्लान बताते हैं, यात्राओं के दौरान घटी दिलचस्प घटनाएं बताते हैं. आप उस के साथ बैठ कर काम करने की बेहतर रणनीति पर विचार करते हैं.

सवाल- आखिर वह आप की कौन है?

जी हां पहले सवाल का जवाब है पति और दूसरे सवाल का जवाब है पत्नी. लेकिन रुकिए ये सामान्य जीवन के पतिपत्नी नहीं हैं. ये वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ हैं. वर्क हसबैंड यानी कार्यस्थल या दफ्तर का पति. इसी तरह वर्क वाइफ का भी मतलब है कार्यस्थल या दफ्तर की पत्नी. सुनने में यह भले थोड़ा अटपटा लगे या झेंप जाएं, मगर हकीकत यही है. कामकाज की नई संस्कृति के फलनेफूलने के साथ ही दुनिया भर में ऐसे पतिपत्नियों की संख्या दफ्तरों में काम करने वाले कुल लोगों के करीब 40 फीसदी है.

1950 के दशक में अमेरीका में ऐसे रिश्तों के लिए बड़ी शिद्दत से एक शब्द का इस्तेमाल किया जाता था- वर्कस्पाउस. ये वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड वास्तव में उसी शब्द के विस्तार हैं. कहने का मतलब यह है कि कामकाजी दुनिया में यह कोई नया रिश्ता नहीं है. बस, नया है तो इतना कि अब इस रिश्ते को दुनिया के ज्यादातर देशों में साफसाफ शब्दों में स्वीकार किया जाने लगा है.

इसलिए हमें इस रिश्ते को ले कर आश्चर्य प्रकट करने की कोई जरूरत नहीं है. सालों से दुनिया में इस तरह के संबंधों की मौजूदगी है और हो भी क्यों न? यह बिलकुल स्वाभाविक है कि जब हम दिन का ज्यादातर समय साथसाथ गुजारते हैं तो आखिर भावनात्मक रिश्ते क्यों नहीं विकसित होंगे?

औस्कर वाइल्ड ने कहा था, ‘‘औरत और आदमी बहुत कुछ हो सकते हैं, मगर सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते. दोस्त होते हुए भी उन में औरत और आदमी का रिश्ता विकसित हो जाता है.’’

मनोविद भी कहते हैं कि जब 2 विपरीत सैक्स के लोग एकदूसरे के साथ लगाव महसूस करते हैं, तो उन का यह लगाव उन की स्वाभाविक भूमिकाओं वाला आकार ले लेता है यानी पुरुष, पुरुष हो जाता है और औरत, औरत हो जाती है.

पहले भी रहे ऐसे रिश्ते

ऐसे रिश्ते हमेशा रहे हैं और जब भी औरत और आदमी साथसाथ होंगे हमेशा रहेंगे. ऐसे रिश्ते पहले भी थे, पर उन की संख्या बहुत कम थी. इस की वजह थी औरतों का घर से बाहर निकलना मुश्किल था, दफ्तरों में आमतौर पर पुरुष ही पुरुष होते थे. मगर अब जमाना बदल चुका है. आज के दौर में स्त्री और पुरुष दोनों ही घर से बाहर निकल कर साथसाथ काम कर रहे हैं. दोनों का ही आज घर में रहने की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजर रहा है. काम की संस्कृति भी कुछ ऐसी विकसित हुई है कि तमाम काम साथसाथ मिल कर करने पड़ रहे हैं. लिहाजा, एक ही दफ्तर में काम करते हुए 2 विपरीत सैक्स के बीच प्रोफैशनल के साथसाथ भावनात्मक नजदीकियां बढ़नी भी बहुत स्वाभाविक है.

एक जमाना था, जब दफ्तर का मतलब होता था सिर्फ 8 घंटे. लेकिन आज दफ्तरों का मिजाज 8 घंटे वाला नहीं रह गया है. आज की तारीख में व्हाइट कौलर जौब वाले प्रोफैशनलों के लिए दफ्तर का मतलब है एक तयशुदा टारगेट पूरा करना, जिस में हर दिन के 12 घंटे भी लग सकते हैं और कभीकभी लगातार 24 से 36 घंटों तक भी साथ रहते हुए काम करना पड़ सकता है.

ऐसा इसलिए है, क्योंकि अर्थव्यवस्था बदल गई है, दुनिया सिमट गई है और वास्तविकता से ज्यादा चीजें आभासी हो गई हैं. जाहिर है लंबे समय तक दफ्तर में साथसाथ रहने वाले 2 लोग अपने सुखदुख भी साझा करेंगे, क्योंकि जब 2 लोग साथसाथ रहते हुए काम करते हैं, तो वे आपस में हंसते भी हैं, साथ खाना भी खाते हैं, एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में भी सुनते व जानते हैं, बौस की बुराई भी मिल कर करते हैं और एकदूसरे को तरोताजा रखने के लिए एकदूसरे को चुटकुले भी सुनाते हैं. यह सब कुछ एक छोटे से कैबिन में संपन्न होता है, जहां 2 सहकर्मी बिलकुल पासपास होते हैं.

ऐसी स्थिति में वे एकदूसरे को चाहेअनचाहे हर चीज साझा करते हैं. सहकर्मी को कैसा म्यूजिक पसंद है यह आप को भी पता होता है और उसे भी. उसे चौकलेट पसंद है या आइसक्रीम यह बात दोनों सहकर्मी भलीभांति जानते हैं. जाहिर है लगाव की डोर इन सब धागों से ही बनती है.

जब साथ काम करतेकरते काफी वक्त गुजर जाता है, तो हम एकदूसरे के सिर्फ काम की क्षमताएं ही नहीं, बल्कि मानसिक बुनावटों और भावनात्मक झुकावों को भी अच्छी तरह जानने लगते हैं. जाहिर है ऐसे में 2 विपरीत सैक्स के सहकर्मी एकदूसरे के लिए अपनेआप को कुछ इस तरह समायोजित करते हैं कि वे एकदूसरे के पूरक बन जाते हैं. उन में आपस में झगड़ा नहीं होता. दोनों मिल कर काम करते हैं तो काम भी ज्यादा होता है और थकान भी नहीं होती. दोनों साथ रहते हुए खुश भी रहते हैं यानी ऐसे सहकर्मी मियांबीवी की तरह काम करने लगते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समाजशास्त्र में परिभाषित करने के लिए वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ की श्रेणी में रखा जाता है.

हो रही बढ़ोतरी

पहले इसे सैद्धांतिक तौर पर ही माना और समझा जाता था. लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर कैरिअर वैबसाइट वाल्ट डौटकौम ने एक सर्वे किया और पाया कि 2010 में ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ करीब 30 फीसदी थे, जो 2014 में बढ़ कर 44 फीसदी हो गए हैं.

इस स्टडी के लेखकों ने एक बहुत ही जानासमझा उदाहरण दे कर दुनिया को समझाने की कोशिश की है कि वर्क वाइफ और वर्क हसबैंड कैसे होते हैं? उदाहरण यह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जौर्ज बुश व उन की विदेश मंत्री व राष्ट्रीय सलाहकार रहीं कोंडालिजा राइस के बीच जो कामकाजी कैमिस्ट्री थी, वह वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ के दायरे में आने वाली कैमिस्ट्री थी.

कितना जायज है यह रिश्ता

सवाल है क्या यह रिश्ता जायज है? क्या यह रिश्ता विश्वसनीय है? वाल्ट डौटकौम का सर्वेक्षण निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करता है कि लोग इसे एक जरूरी और मजबूत रिश्ता मानते हैं. इस सर्वेक्षण के दौरान ज्यादातर लोगों ने कहा कि दफ्तर में पसंदीदा सहकर्मी के साथ जो रिश्ते बनते हैं, वे ज्यादा विश्वसनीय और ज्यादा मजबूत होते हैं. लोग इन रिश्तों को बखूबी निभाते हैं. करीब वैसे ही जैसे कोई शादीशुदा जोड़ा अपनी जिंदगी को सुचारु रूप से निभाने की कोशिश करता है. इस रिश्ते को पश्चिम में समाजशास्त्रियों ने व्यावहारिकता की कई कसौटियों में रख कर देखा है और उन्होंने पाया है कि यह रिश्ता न सिर्फ बेहद खास, बल्कि बहुत ही समझदारी भरा भी होता है.

इस रिश्ते में रोमांस नहीं होता, बस जोड़े एकदूसरे के साथ जज्बाती लगाव रखते हैं और एकदूसरे की परेशानियों और हकीकतों को बेहतर समझते हुए उस रिश्ते के लिए जमीन तलाशते हैं. हालांकि ज्यादातर ऐसे जोड़े जो ऐसे रिश्तों के दायरे में आते हैं, गहरे जिस्मानी रिश्ते नहीं रखते. लेकिन थोड़े बहुत रिश्ते तो सभी के होते हैं, मगर समाजशास्त्रियों ने अपने व्यापक विश्लेषणों में पाया है कि जिन जोड़ों के बीच जिस्मानी रिश्ते भी होते हैं, वे भी एकदूसरे की वास्तविक स्थितियों का सम्मान करते हैं और मौका पड़ने पर बहुत आसानी से एकदूसरे से दूरी बना लेते हैं, बिना किसी झगड़े, मनमुटाव के.

प्रोफैसर मैकब्राइट जिन्होंने इस सर्वे का वृहद विश्लेषण किया, उन के मुताबिक बहुत कम लोगों के बीच इन कामकाजी रिश्तों के साथ रोमानी रिश्ता होता है.

सवाल है आखिर इस रिश्ते का फायदा क्या है? इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों की मानें और सर्वेक्षण के दौरान लोगों से किए गए साक्षात्कारों से निकले निष्कर्षों पर भरोसा करें तो जब 2 सहकर्मियों के बीच वर्क वाइफ या वर्क हसबैंड का रिश्ता बन जाता है, तो वे दोनों कर्मचारी अपने काम के प्रति ज्यादा ईमानदार हो जाते हैं. उन्हें काम से ज्यादा लगाव हो जाता है और ज्यादा काम भी होता है. यही वजह है कि दुनिया की तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाहती हैं कि उन के कर्मचारियों के बीच वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड का रिश्ता बने तो बेहतर है.

आज दुनिया की तमाम कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए जिस किस्म का आरामदायक कार्य माहौल प्रदान कर रही हैं और दफ्तरों में जिस तरह महिलाओं और पुरुषों को करीब समान अनुपात में रख रही हैं, उस के पीछे एक सोच यह भी रहती है कि तमाम कर्मचारी अपनेअपने जोड़े तय कर के काम करें.

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक जब पुरुष और महिला एकसाथ बैठ कर काम करते हैं, तो उन में बिना किसी वजह के भी 10 फीसदी खुशी की भावनाएं होती हैं यानी जब अकेलेअकेले पुरुष या अकेलेअकेले महिलाएं काम करती हैं, तो वे काम से जल्द ऊब जाते हैं. उन का कार्य उत्पादन भी कम होता है और काम करने के प्रति कोई लगाव या रोमांच भी नहीं रहता.

मगर जब महिला और पुरुष मिल कर साथसाथ काम करते हैं, तो उन्हें एक आंतरिक खुशी का एहसास होता है, भले ही इस खुशी का कोई मतलब न हो. वास्तव में 2 विपरीत सैक्स के लोग एकसाथ समय गुजारते हुए एकदूसरे से चार्ज होते रहते हैं.

बढ़ती है काम की गुणवत्ता

तमाम सर्वेक्षणों और शोधों में यह भी पाया गया है कि जब महिला और पुरुष मिल कर काम करते हैं, तो वे न केवल ज्यादा काम करते हैं, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाला काम भी करते हैं. साथ ही नएनए आइडियाज भी विकसित करते हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसी रणनीति के तहत अपने कर्मचारियों को आपस में घुलनेमिलने हेतु माहौल प्रदान करने के लिए अकसर पार्टियां आयोजित करती हैं. कर्मचारियों को एक खुशगवार माहौल में रखती हैं ताकि सब एकदूसरे की कमजोरियों और खूबियों को पहचान सकें ताकि कर्मचारियों को अपनेअपने अनुकूल साथी चुनने में दिक्कत न आए.

वर्क हसबैंड और वर्कवाइफ का चलन तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि हिंदुस्तान जैसे समाज में ही नहीं अमेरिका और यूरोप जैसे समाजों में कर्मचारी इस शब्द के इस्तेमाल से झिझकते हैं. शादीशुदा या गैरशादीशुदा दोनों ही किस्म के कर्मचारी अपने परिवार और दोस्तों के बीच इस शब्द का इस्तेमाल भूल कर भी नहीं करते. यहां तक कि आपस में भी वे कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करते या एकदूसरे को नहीं जताते कि हां, ऐसा है. मगर वे एकदूसरे से इस भावना से जुड़े हैं, यह बात दोनों जानते हैं.

ये रिश्ते टूटते हैं

जिस तरह शादीशुदा जोड़ों के बीच तलाक होता है या कईर् बार रिश्ते ठंडे पड़ जाते हैं अथवा कई बार उन में अलगाव हो जाता है, उसी तरह ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ के बीच भी अलगाव होता है. कई बार आप की वर्क वाइफ किसी दूसरी कंपनी में चली जाती है और आप को नए सिरे से नए साथी की तलाश करनी पड़ती है. ठीक ऐसे ही उसे भी नए सिरे से वर्क हसबैंड की तलाश करनी पड़ती है. लेकिन ऐसे मौकों पर इस तरह के अलगाव को दिल से नहीं लेना चाहिए और न ही इस का अपने कामकाज पर प्रभाव पड़ने देना चाहिए.

कई बार कुछ वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ एकदूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं और वे एकदूसरे का साथ पाने के लिए अपनी उन्नतितरक्की को भी दांव पर लगा देते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक यह व्यावहारिक कदम नहीं है. इस तरह के रिश्तों के भावनात्मक जाल में फंस कर अपनी बेहतरी के मौके को गंवा देना ठीक नहीं. अगर कामयाबी की सीढि़यां चढ़ने का मौका मिला है तो हर हाल में चढ़ें, क्योंकि क्या मालूम ऊपर की सीढि़यों में कोई और बेहतर साथी आप का इंतजार कर रहा हो, जो आप की प्रोफैशनल और भावनात्मक दोनों ही किस्म की जरूरतों को पहले साथी से बेहतर ढंग से पूरा कर सकता हो.

आखिर कहां खींचें लक्ष्मणरेखा

विशेषज्ञ कहते हैं कि कार्यस्थल पर किसी के साथ प्रोफैशनल झुकाव होना यानी वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना अनैतिकता नहीं है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह रिश्ता हमेशा हमारी वास्तविक यानी घरेलू जिंदगी के लिए चिंता का विषय बना रहता है. सवाल है ऐसा क्या करें जिस से इस तरह के डर या इस तरह की चिंताओं से दूर रहा जा सके?

– कार्यस्थल पर वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना तो ठीक है लेकिन यह अक्लमंदी नहीं है कि आप घर जा कर पूरे दिन की दफ्तर की गतिविधियों की कौमैंट्री करें और सुबह दफ्तर पहुंच कर अपने विपरीतलिंगी सहकर्मी के साथ पूरी रात की गतिविधियों पर डिस्कस करें. घर और दफ्तर के बीच एक स्पष्ट सीमारेखा तय होनी चाहिए.

– यह बात हमेशा याद रखें कि न आप के वास्तविक पति का विकल्प वर्क हसबैंड हो सकता है और न ही आप के वर्कहसबैंड का विकल्प आप का वास्ततिक पति का हो सकता है. दोनों के बीच अपनीअपनी जगह, जरूरतें हैं और दोनों का अपनाअपना महत्त्व है. यही बात वर्क वाइफ और वास्तविक वाइफ के संदर्भ में भी लागू होती है. आप दोनों के बीच जिस दिन तुलना करने लगते हैं और दोनों को दोनों में तलाशने लगते हैं, उसी दिन से तनाव शुरू हो जाता है, क्योंकि कोईर् एक कमतर हो जाता है और दूसरा बेहतर.

– अपने वर्क हसबैंड के साथ कुछ मामलों में बिलकुल स्पष्ट रहें उस के साथ जितना हो सके. उस के साथ गुजारे गए समय को ही शेयर करें. न तो उसे जानबूझ कर नीचा दिखाने की कोशिश करें और न ही उस की अपने वास्तविक पति से तुलना करें. तुलना करें भी तो कभी भी यह बात उसे न बताएं. दरअसल, पुरुषों की यह कमजोर नस है कि वे खुद को सब से ऊपर ही मानना और देखना चाहते हैं. ऐसे में विशेष कर वर्क वाइफ के लिए यह दिक्कत पैदा हो सकती है. अगर वह दोनों के बारे में दोनों से बताती है. भले ही वह अलगअलग समय पर अलगअलग पुरुषों को दूसरे से बेहतर ही क्यों ने बताती हो?

बौयफ्रेंड मेरे साथ फिजिकल रिलेशनशिप बनाने के लिए कहता है, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं बीए के तीसरे साल की छात्रा हूं और 8 महीने से एक लड़के से प्यार करती हूं. जब वह सेक्स के लिए कहता है, तो मैं मना कर देती हूं. इस से वह नाराज हो जाता है और सोचता है कि मैं उसे प्यार नहीं करती. अब वह मुझ से हमेशा के लिए दूर अपने गांव जाना चाहता है, पर मैं उस के बगैर नहीं रह सकती. मैं क्या करूं?

जवाब

शायद वह सेक्स के लिए ही गांव जाने का नाटक कर रहा होगा. अगर वह वाकई आप से प्यार करता है, तो उसे आप से शादी कर लेनी चाहिए. इस के बाद आप दोनों जी भर कर सेक्स कर सकते हैं.

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सैक्स : मजा न बन जाए सजा

पहले प्यार होता है और फिर सैक्स का रूप ले लेता है. फिर धीरेधीरे प्यार सैक्स आधारित हो जाता है, जिस का मजा प्रेमीप्रेमिका दोनों उठाते हैं, लेकिन इस मजे में हुई जरा सी चूक जीवनभर की सजा में तबदील हो सकती है जिस का खमियाजा ज्यादातर प्रेमी के बजाय प्रेमिका को भुगतना पड़ता है भले ही वह सामाजिक स्तर पर हो या शारीरिक परेशानियों के रूप में. यह प्यार का मजा सजा न बन जाए इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखें.

सैक्स से पहले हिदायतें

बिना कंडोम न उठाएं सैक्स का मजा

एकदूसरे के प्यार में दीवाने हो कर उसे संपूर्ण रूप से पाने की इच्छा सिर्फ युवकों में ही नहीं बल्कि युवतियों में भी होती है. अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए वे सैक्स तक करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन जोश में होश न खोएं. अगर आप अपने पार्टनर के साथ प्लान कर के सैक्स कर रहे हैं तो कंडोम का इस्तेमाल करना न भूलें. इस से आप सैक्स का बिना डर मजा उठा पाएंगे. यहां तक कि आप इस के इस्तेमाल से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिसीजिज से भी बच पाएंगे.

अब नहीं चलेगा बहाना

अधिकांश युवकों की यह शिकायत होती है कि संबंध बनाने के दौरान कंडोम फट जाता है या फिर कई बार फिसलता भी है, जिस से वे चाह कर भी इस सेफ्टी टौय का इस्तेमाल नहीं कर पाते. वैसे तो यह निर्भर करता है कंडोम की क्वालिटी पर लेकिन इस के बावजूद कंडोम की ऐक्स्ट्रा सिक्योरिटी के लिए सैक्स टौय बनाने वाली स्वीडन की कंपनी लेलो ने हेक्स ब्रैंड नाम से एक कंडोम बनाया है जिस की खासीयत यह है कि सैक्स के दौरान पड़ने वाले दबाव का इस पर असर नहीं होता और अगर छेद हो भी तो उस की एक परत ही नष्ट होती है बाकी पर कोई असर नहीं पड़ता. जल्द ही कंपनी इसे मार्केट में उतारेगी.

ऐक्स्ट्रा केयर डबल मजा

आप के मन में विचार आ रहा होगा कि इस में डबल मजा कैसे उठाया जा सकता है तो आप को बता दें कि यहां डबल मजा का मतलब डबल प्रोटैक्शन से है, जिस में एक कदम आप का पार्टनर बढ़ाए वहीं दूसरा कदम आप यानी जहां आप का पार्टनर संभोग के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करे वहीं आप गर्भनिरोधक गोलियों का. इस से अगर कंडोम फट भी जाएगा तब भी गर्भनिरोधक गोलियां आप को प्रैग्नैंट होने के खतरे से बचाएंगी, जिस से आप सैक्स का सुखद आनंद उठा पाएंगी.

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कई बार ऐसी सिचुऐशन भी आती है कि दोनों एकदूसरे पर कंट्रोल नहीं कर पाते और बिना कोई सावधानी बरते एकदूसरे को भोगना शुरू कर देते हैं लेकिन जब होश आता है तब उन के होश उड़ जाते हैं. अगर आप के साथ भी कभी ऐसा हो जाए तो आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा लें लेकिन साथ ही डाक्टरी परामर्श भी लें, ताकि इस का आप की सेहत पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े.

पुलआउट मैथड

पुलआउट मैथड को विदड्रौल मैथड के नाम से भी जाना जाता है. इस प्रक्रिया में योनि के बाहर लिंग निकाल कर वीर्यपात किया जाता है, जिस से प्रैग्नैंसी का खतरा नहीं रहता. लेकिन इसे ट्राई करने के लिए आप के अंदर सैल्फ कंट्रोल और खुद पर विश्वास होना जरूरी है.

सैक्स के बजाय करें फोरप्ले

फोरप्ले में एकदूसरे के कामुक अंगों से छेड़छाड़ कर के उन्हें उत्तेजित किया जाता है. इस में एकदूसरे के अंगों को सहलाना, उन्हें प्यार करना, किसिंग आदि आते हैं. लेकिन इस में लिंग का योनि में प्रवेश नहीं कराया जाता. सिर्फ होता है तन से तन का स्पर्श, मदहोश करने वाली बातें जिन में आप को मजा भी मिल जाता है, ऐंजौय भी काफी देर तक करते हैं.

अवौइड करें ओरल सैक्स

ओरल सैक्स नाम से जितना आसान सा लगता है वहीं इस के परिणाम काफी भयंकर होते हैं, क्योंकि इस में यौन क्रिया के दौरान गुप्तांगों से निकलने वाले फ्लूयड के संपर्क में व्यक्ति ज्यादा आता है, जिस से दांतों को नुकसान पहुंचने के साथसाथ एचआईवी का भी खतरा रहता है.

यदि इन खतरों को जानने के बावजूद आप इसे ट्राई करते हैं तो युवक कंडोम और युवतियां डेम का इस्तेमाल करें जो छोटा व पतला स्क्वेयर शेप में रबड़ या प्लास्टिक का बना होता है जो वैजाइना और मुंह के बीच दीवार की भूमिका अदा करता है जिस से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिजीजिज का खतरा नहीं रहता.

पौर्न साइट्स को न करें कौपी

युवाओं में सैक्स को जानने की इच्छा प्रबल होती है, जिस के लिए वे पौर्न साइट्स को देख कर अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं. ऐसे में पौर्न साइट्स देख कर उन के मन में उठ रहे सवाल तो शांत हो जाते हैं लेकिन मन में यह बात बैठ जाती है कि जब भी मौका मिला तब पार्टनर के साथ इन स्टैप्स को जरूर ट्राई करेंगे, जिस के चक्कर में कई बार भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. लेकिन ध्यान रहे कि पौर्न साइट्स पर बहुत से ऐसे स्टैप्स भी दिखाए जाते हैं जिन्हें असल जिंदगी में ट्राई करना संभव नहीं लेकिन इन्हें देख कर ट्राई करने की कोशिश में हर्ट हो जाते हैं. इसलिए जिस बारे में जानकारी हो उसे ही ट्राई करें वरना ऐंजौय करने के बजाय परेशानियों से दोचार होना पड़ेगा.

सस्ते के चक्कर में न करें जगह से समझौता

सैक्स करने की बेताबी में ऐसी जगह का चयन न करें कि बाद में आप को लेने के देने पड़ जाएं. ऐसे किसी होटल में शरण न लें जहां इस संबंध में पहले भी कई बार पुलिस के छापे पड़ चुके हों. भले ही ऐसे होटल्स आप को सस्ते में मिल जाएंगे लेकिन वहां आप की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती.

हो सकता है कि रूम में पहले से ही कैमरे फिट हों और आप को ब्लैकमैल करने के उद्देश्य से आप के उन अंतरंग पलों को कैमरे में कैद कर लिया जाए. फिर उसी की आड़ में आप को ब्लैकमेल किया जा सकता है. इसलिए सावधानी बरतें.

अलकोहल, न बाबा न

कई बार पार्टनर के जबरदस्ती कहने पर कि यार बहुत मजा आएगा अगर दोनों वाइन पी कर रिलेशन बनाएंगे और आप पार्टनर के इतने प्यार से कहने पर झट से मान भी जाती हैं. लेकिन इस में मजा कम खतरा ज्यादा है, क्योंकि एक तो आप होश में नहीं होतीं और दूसरा पार्टनर इस की आड़ में आप के साथ चीटिंग भी कर सकता है. हो सकता है ऐसे में वह वीडियो क्लिपिंग बना ले और बाद में आप को दिखा कर ब्लैकमेल या आप का शोषण करे.

न दिखाएं अपना फोटोमेनिया

भले ही पार्टनर आप पर कितना ही जोर क्यों न डाले कि इन पलों को कैमरे में कैद कर लेते हैं ताकि बाद में इन पलों को देख कर और रोमांस जता सकें, लेकिन आप इस के लिए राजी न हों, क्योंकि आप की एक ‘हां’ आप की जिंदगी बरबाद कर सकती है.

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सैक्स के बाद के खतरे

ब्लैकमेलिंग का डर

अधिकांश युवकों का इंट्रस्ट युवतियों से ज्यादा उन से संबंध बनाने में होता है और संबंध बनाने के बाद उन्हें पहचानने से भी इनकार कर देते हैं. कई बार तो ब्लैकमेलिंग तक करते हैं. ऐसे में आप उस की ऐसी नाजायज मांगें न मानें.

बीमारियों से घिरने का डर

ऐंजौयमैंट के लिए आप ने रिलेशन तो बना लिया, लेकिन आप उस के बाद के खतरों से अनजान रहते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि 1981 से पहले यूनाइटेड स्टेट्स में जहां 6 लाख से ज्यादा लोग ऐड्स से प्रभावित थे वहीं 9 लाख अमेरिकन्स एचआईवी से. यह रिपोर्ट शादी से पहले सैक्स के खतरों को दर्शाती है.

मैरिज टूटने का रिस्क भी

हो सकता है कि आप ने जिस के साथ सैक्स रिलेशन बनाया हो, किसी मजबूरी के कारण अब आप उस से शादी न कर पा रही हों और जहां आप की अब मैरिज फिक्स हुई है, आप के मन में यही डर होगा कि कहीं उसे पता लग गया तो मेरी शादी टूट जाएगी. मन में पछतावा भी रहेगा और आप इसी बोझ के साथ अपनी जिंदगी गुजारने को विवश हो जाएंगी.

डिप्रैशन का शिकार

सैक्स के बाद पार्टनर से जो इमोशनल अटैचमैंट हो जाता है उसे आप चाह कर भी खत्म नहीं कर पातीं. ऐसी स्थिति में अगर आप का पार्टनर से बे्रकअप हो गया फिर तो आप खुद को अकेला महसूस करने के कारण डिप्रैशन का शिकार हो जाएंगी, जिस से बाहर निकलना इतना आसान नहीं होगा.

कहीं प्रैग्नैंट न हो जाएं

आप अगर प्रैग्नैंट हो गईं फिर तो आप कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी. इसलिए जरूरी है कोई भी ऐसावैसा कदम उठाने से पहले एक बार सोचने की, क्योंकि एक गलत कदम आप का भविष्य खराब कर सकता है. ऐसे में आप बदनामी के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठाने में भी देर नहीं करेंगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मदिरापान और मैरिड लाइफ से जुड़ी बातों के बारे में बताएं?

सवाल

मैं 32 वर्षीय पुरुष हूं. मैं ने सुना है कि मदिरापान से सैक्स क्षमता बढ़ जाती है. क्या यह बात सच है? क्या किसी हलकेफुलके नशे का कामोन्माद पर कोई असर पड़ता है?

जवाब

मदिरापान और यौन क्षमता के बीच के संबंध को न केवल समाज में, बल्कि पुराने चलचित्रों और नाटकों में भी तरह तरह से उकेरा गया है. शायद इसी के चलते समाज में यह धारणा भी बहुप्रचलित है कि मदिरा सेवन से यौन क्षमता बढ़ जाती है.

मदिरा थोड़ी लें या अधिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है. मदिरा से प्रेम के सुर झंकृत होते हों, ऐसा ठीक नहीं मालूम होता. मदिरा लेने के बाद संवेदनशीलता भी किसी सीमा तक कम हो जाती है.

60 मिलीलीटर से अधिक मात्रा में ली गई मदिरा यौन क्षमता को पक्के तौर पर घटाती है. सचाई से नाता टूटने के कारण तरह तरह के भ्रम भी जन्म ले सकते हैं. लंबे समय तक निरंतर मदिरा सेवन करते रहने से पुंसत्वहीनता भी उत्पन्न हो जाती है.

हलकेफुलके नशे से आप का तात्पर्य क्या है, यह समझ पाना मुश्किल है. पर गांजा, चरस और कोकीन का लंबे समय तक बराबर सेवन यौन सामर्थ्य समाप्त कर सकता है. दूसरे नशों और कुछ दवाओं के सेवन पर भी यही समस्या आम देखी जाती है.

इसी प्रकार प्रशांतक दवाएं जैसे डायजेपाम, लोराजेपाम, सिडेटिव दवाएं, अल्सररोधी दवा रैनिटिडाइन और ब्लडप्रैशर घटाने के लिए दी जाने वाली कुछ उच्च रक्तचापरोधक दवाएं भी पुरुष यौन सामर्थ्य के आड़े आ सकती हैं.

सैक्स का सुख पाने के लिए किसी भी प्रकार के नशे पर निर्भर रहने के बजाय आपसी प्रेम होना अधिक माने रखता है.

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अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.

करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.

डैकोरेशन हो खास: वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.

फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.

सैल्फ ग्रूमिंग: पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

मैं जेठानी और सास के सास बहू के सीरियल से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 29 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. हम संयुक्त परिवार में रहते हैं. सासससुर के अलावा घर में जेठजेठानी, उन के 2 बच्चे व मेरे पति सहित कुल 8 सदस्य रहते हैं. ससुर सेवानिवृत्त हो चुके हैं. मुख्य समस्या घर में सासूमां और जेठानी के धारावाहिक प्रेम को ले कर है. वे सासबहू टाइप धारावाहिकों, जिन में अतार्किक, अंधविश्वास भरी बातें होती हैं, को घंटों देखती रहती हैं और वास्तविक दुनिया में भी हम से यही उम्मीद रखती हैं. इस से घर में कभीकभी अनावश्यक तनाव का माहौल पैदा हो जाता है.

इन की बातचीत और बहस में भी वही सासबहू टाइप धारावाहिकों के पात्रों का जिक्र होता है, जिसे सुनसुन कर मैं बोर होती रहती हूं. कई बार मन करता है कि पति से कह कर अलग फ्लैट ले लूं पर पति की इच्छा और अपने मातापिता के प्रति उन का आदर और प्रेम देख कर चुप रह जाती हूं. सम  झ नहीं आता, क्या करूं?

जवाब-

सासबहू पर आधारित धारावाहिक टीवी चैनलों पर खूब दिखाए जाते हैं. बेसिरपैर की काल्पनिक कहानियों और सासबहू के रिश्तों को इन धारावाहिकों में अव्यावहारिक तरीके से दिखाया जाता है.

पिछले कई शोधों व सर्वेक्षणों में यह प्रमाणित हो चुका है कि परिवारों में तनाव का कारण सासबहू के बीच का रिश्ता भी होता है और इस में आग में घी डालने का काम इस टाइप के धारावाहिक कर रहे हैं. ये धारावाहिक न सिर्फ परिवार में तनाव को बढ़ा रहे हैं, बल्कि भूतप्रेत, ओ  झातांत्रिक, डायन जैसे अंधविश्वास को भी बढ़ावा दे रहे हैं.

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काल्पनिक दुनिया व अंधविश्वास में यकीन रखने वाले लोगों में एक तरह का मनोविकार भी देखा गया है, जो इन चीजों को देखसुन कर ही इन्हें सही मानने लगते हैं. ऐसे लोगों की मानसिकता बदलना टेढ़ी खीर होता है. अलबत्ता, इस के लिए आप को धीरेधीरे प्रयास जरूर करना चाहिए.

दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं समाज में व्याप्त ढकोसलों, पाखंडों व अंधविश्वासों के खिलाफ शुरू से मुहिम चलाती आई हैं और अब महिलाएं समाज में व्याप्त ढकोसलों, पाखंडों का विरोध करने लगी हैं.

फिलहाल आप खाली समय में उपयुक्त वक्त देख कर सास और जेठानी को इस के गलत प्रभावों के बारे में बता सकती हैं. आप को उन के मन में यह बात बैठानी होगी कि इस से घर में तनाव का माहौल रहता है और इस का सब से ज्यादा गलत प्रभाव बच्चों और उन के भविष्य पर पड़ता है और वे वैज्ञानिक सोच से भटक कर तथ्यहीन और बेकार की चीजों को सही मान कर भटक सकते हैं. आप अपने ससुर से भी इस में दखल करने को कह सकती हैं.

बेहतर होगा कि खाली समय को ऊर्जावान कार्यों की तरफ लगाएं और उन्हें भी इस के लिए प्रेरित करें. उन्हें पत्रपत्रिकाएं व अच्छा साहित्य पढ़ने को दें. कुप्रथाओं, परंपराओं, अंधविश्वास के गलत प्रभावों को तार्किक ढंग से बताएं ताकि उन की आंखों की पट्टी खुल जाए और वे इस टाइप के धारावाहिकों को देखना बंद कर दें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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