उम्मीदों के बोझ तले रिश्ते

रिश्ता कोई भी हो उसमें उम्मीदें अपने आप पनपने लगती हैं. उम्मीदों पर खरा उतर गए तो रिश्ता गहराने लगता है वरना दरारों में देर नहीं लगती. कुछ रिश्ते जन्म से जुड़े होते हैं जहां कई दफा लाठी मारने से पानी अलग नहीं होता. लेकिन उनका क्या जो बीच सफर में जुड़े वो भी जीवन भर के लिए. जब बात हो पति पत्नि के रिश्ते की तो उम्मीदें कई बार सामान्य से ज्यादा हो जाती हैं. उम्मीदें स्वाभाविक हैं लेकिन यही दुख का बड़ा कारण भी. यानि जितनी ज्यादा उम्मीद उतना बड़ा दुख. रिश्तों की कामयाबी के लिए कई बातों का ध्यान रखना होता है. इनमें ये भी शामिल है कि आप अपने साथी के लिए क्या करते हैं और बदले में क्या उम्मीद रखते हैं. लेकिन ये किस हद तक ठीक है जिससे रिश्ता खूबसूरती से आगे बढ़ता चले ये बात भी मायने रखती है. इसका एक आसान फॉर्मुला है 80/20.

क्या है 80/20?

रिश्ते की डोर दोनों साथी थामें हैं. यानि उम्मीदें दोनो ओर से हैं. ऐसे में तकरार से बचने के लिए 80/20 का फॉर्मुला आपके काम आ सकता है. यहां आपको खुद की उम्मीदों से अपने साथी को 20 प्रतिशत की रिहायत देने की जरूरत है. बचा 80 प्रतिशत उनको आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने का मौका देगा और आपको रिश्ते में संतुष्टी का अहसास होगा. एक बात आपको समझने की जरूरत है सौ प्रतिशत कुछ भी संभव नहीं, फिर इंसानी गलतियां कुछ हद्द तक नजरअंदाज किए बिना कैसे निभाया जा सकता है? इसलिए ये बीस प्रतिशत की रियायत आपके साथी को भी खुलेपन का अनुभव होने देगी और आपको शिकायत का कम मौका मिलेगा.

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जानकारों की मानें तो

80/20 का फॉर्मुला जानकारों का सुझाया हुआ है. शोध बताते हैं कि ज्यादा उम्मीद रखने वाले साथियों में तकरार की स्थिति अधिक बनी रहती है. इसलिए जानकारों का मानना है कि रिश्ते की मिठास को बनाए रखने के लिए उम्मीदों के बोझ को कम करना बेहद जरूरी है. जानकार ही नहीं बड़े बुजुर्गों से भी अक्सर यही नसीहत मिलती है कि जितनी उम्मीदें कम उतनी खुशियां ज्यादा. इसलिए इस फॉर्मुला को लागू करने के लिए जरूरी है कि आप खुद को और अपने साथी को स्पेस दें.

डॉ अमूल्य सेठ, साइकैटरिस्ट, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल गाजियाबाद से बातचीत पर आधारित

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