मेरी सास की रोकटोक के कारण मैं परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मु झे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां सम झती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी सम झ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान सम झेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

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अकसर देखा जाता है कि घर में सासबहू के झगड़े के बीच पुरुष बेचारे फंस जाते हैं और परिवार की खुशियां दांव पर लग जाती हैं. पर यदि रिश्तों को थोड़े प्यार और समझदारी से जिया जाए तो यही रिश्ते हमारी जिंदगी को खुशनुमा बना देते हैं.

जानिए, कुछ ऐसे टिप्स जो सासबहू के बीच बनाएं संतुलन रखेंगे.

कैसे बनें अच्छी बहू

1. मैरिज काउंसलर कमल खुराना के मुताबिक, बेटा, जो शुरू से ही मां के इतना करीब था कि उस का हर काम मां खुद करती थीं, वही शादी के बाद किसी और का होने लगता है. ऐसे में न चाहते हुए भी मां के दिल में असुरक्षा की भावना आ जाती है. आप अपनी सास की इस स्थिति को समझते हुए शुरू से ही उन से सदभाव का व्यवहार करेंगी तो यकीनन रिश्ते की बुनियाद मजबूत बनेगी.

2. बहू दूसरे घर से आती है. अचानक सास उसे बेटी की तरह प्यार करने लगे, यह सोचना गलत है. प्यार तो धीरेधीरे बढ़ता है. यदि आप धैर्य रखते हुए अपनी तरफ से सास को मां का प्यार और सम्मान देती रहेंगी, तो समय के साथ सास के मन में भी आप के लिए प्यार गहरा होता जाएगा.

3. सास के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें. नाराज होने पर भी बातचीत बंद न करें.

4. यदि आप से कोई गलती हुई है, आप ने सास के प्रति गलत व्यवहार किया है या कोई काम गलत हो गया है तो सहजता से उसे स्वीकार करते हुए सौरी कह दें.

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सास अगर बन जाए मां

मेरी सहेली शिखा की सास बहुत प्रोटैगनिस्ट है. उस ने अपनी बहू को नौकरानी बना रखा है और शिखा का पति अपनी माताजी का आज्ञाकारी बेटा है, जो अपनी मां के अमानवीय व्यवहार पर भी एक शब्द तक नहीं बोलता और न ही अपनी पत्नी के पक्ष में खड़ा दिखता. यदि शिखा शिकायत भी करती है तो वह उसी को 4 बातें सुना देता. हमेशा जवाब होता कि रहना है तो रहो वरना फौरेन चली जाओ. परेशान हो कर शिखा अपने मायके आ गई. लेकिन समाज के लिए फिर भी शिखा ही गलत है. क्यों? क्योंकि गलती हमेशा बहू की ही होती है.

समाज का यह दोहरा चेहरा क्यों

अकसर खबरें मिलती हैं कि बहू अच्छी नहीं थी बेटे ने उस के कहने पर आ कर मां को घर से निकाल दिया. सोचने वाली बात है हर समय बहू ही गलत क्यों?

जब बीवी की बातों में आ कर मां को तंग करना गलत है, तो मां के सम्मान की खातिर उस की गलत बातों पर चुप रहना सही कैसे हो सकता है?

2 शब्द सासों से

मैं भी मां हूं और मैं जानती हूं मां दुनिया का सब से प्यारा लफ्ज है और सब से ही अनोखा बंधन. वह अद्भुत प्यारा सा एहसास जिस में. मां को सब से करीब देखा जाता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मां गलत हो ही नहीं सकती. गलत को गलत कहने में कौन सा गुनाह है? वह भी तब जब अकसर बेटे की मां, सास बनने के बाद जानबूझ कर यह गुनाह करती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि सास बनने के बाद मांएं बहुत ही निस्स्वार्थ भाव से की गई ममता का मोल चाहती हैं. इनसिक्योर फील करती हैं. कड़वी सचाई तो यह है कि सास बनने के बाद मांएं स्वार्थी हो जाती हैं. अपने बेटे के अलावा उन्हें कुछ नहीं दिखता, बहू तो बिलकुल भी नहीं, बल्कि बहू को तो वे अपनी प्रतिस्पर्धी समझती हैं, दुश्मन मानती हैं जो उन का बेटा छीन रही हैं.

शायद इसलिए कि उन्होंने उसे जन्म दिया है, पालापोसा है. तो भई बहू को क्या उस की मां सड़क से उठा कर लाई थी? उसे भी उन्होंने जन्म दिया है और पालपोस कर इस लायक बनाया है कि वह आप के घर की शान बन सके. उसे एक मौका तो दीजिए.

तो क्या इस वजह से बेटा जिंदगी जीना छोड़ दे और हमेशा मां की जीहुजूरी में लगा रहे. मां जब गलत कहे, गलत करे तो भी वह चुप रहे?

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दोहरे मानदंड

यह घोर नाइंसाफी है. अगर अक्ल पर परदा पड़ गया हो तो ऐसी सासें जरा उस वक्त को सोचें जब वे भी बहू थीं. तब वे चाहती थीं कि उन का पति अपनी मां का नहीं, सिर्फ और सिर्फ उन का खयाल रखे. आप की भी तो कोई बेटी होगी. यदि उस की सास भी वैसे ही करे जैसा आप करती हैं तब आप को कैसा लगेगा? आप भी तो यही चाहेंगी न आप का दामाद बस आप की बेटी का खयाल रखे, अपनी मां का नहीं. क्यों हैं दोहरे मानदंड बेटी के लिए कुछ और बेटे के लिए कुछ और?

कैसी सियासत

अजीब सी सियासत है यह रिश्तों की. हमारे भारतीय समाज में एक ओर से मां अपने शास्त्र और शस्त्रों के साथ बेटे को अपनी ओर खींचती है तो दूसरी ओर से पत्नी विचारों और भावनाओं के साथ निशाना साधती रहती है. पुत्र एक रणभूमि में परिवर्तित हो जाता है.

व्यर्थ जाती ऊर्जा

सासबहू के बीच प्रत्यक्ष रूप से भावनात्मक रक्तपात होता रहता है. बेटा 2 पाटों में पिस जाता है और बिना अपना दिमाग लगाए मां का साथ देता है, क्योंकि उसे उस के दूध का कर्ज जो चुकाना होता है. न जाने कितने ऐसे बेटे हैं, जिन के जीवन का अच्छाखासा समय इन दोनों के संतुलन कायम करने में व्यर्थ जाता रहता है.

सड़ेगले मूल्य

सासूजी छोड़ो अपने इन सड़ेगले मूल्यों को. जब आप नहीं बदलेंगी तो अपने खिलाफ बगावत तो पाएंगी ही. न करो अपनी बहू को बगावत के लिए बाध्य. अपनी खुद की मुक्ति ढूंढ़ो. एक नई वैश्विक व्यवस्था का रास्ता आप को स्वयं ही एक औरत और मां की सोच को समझ लेना होगा. लेकिन इस के लिए आप को बहू की मां बनना होगा. आप को अपने अंदर की उस सृजनात्मकता को जगाना होगा जो सिर्फ बच्चे, पति और परिवार तक सीमित न रहे, बल्कि उस बेचारी पराई बेटी की मां भी बन सके.

यह है कारण

असल में हमारे देश में मां के प्रेम का अनावश्यक और अतिरंजित महिमामंडन कुछ ज्यादा ही होता है. मां बनना एक शुद्ध जैविक भूमिका है. चाहे वह जानवरों में हो या इंसानों में, चाहे किसी भी देश में, किसी भी धर्म या जाति में. वह बच्चे को अपने गर्भ में रखती है और जन्म के बाद उसे पोषण देती है. जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता और खुद से अपना भोजन नहीं जुटा पाता, मां उस की देखभाल करती है. पशुओं में मातृत्व ज्यादा संयमित, ज्यादा संतुलित और ज्यादा व्यावहारिक होता है. उस में एक स्वाभाविक मैत्री और करुणा है और एक स्वाभाविक उपेक्षा भी है, जो हम इंसानों के लिए क्रूरता का पर्याय है.

जानवर बेहतर हैं

प्यार का महिमामंडन करतेकरते हम कहीं न कहीं पाखंडी, स्वार्थी और प्रेम विहीन हो जाते हैं. अब पशुओं को ही देखो जब तक बच्चा अपने पैरों से चलने नहीं लगता तभी तक मां उस का खयाल रखती है. कुछ भी बदले में नहीं चाहिए. कितना पवित्र ममत्व है.

मानव शिशु अपनी मां पर निर्भर जैविक कारणों से नहीं, बल्कि सामाजिक कारणों से रहता है और यह सफर पढ़नालिखना, बड़ा होना, शादी करना और न जाने क्याक्या जीवनपर्यंत चलता रहता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उस में मानसिक और मनोवैज्ञानिक संस्कार ऐसे गहरे बैठ जाते हैं कि वह आजीवन मांबाप पर और मांबाप उस पर लदे रहते हैं. यह हमारे सामाजिक जीवन की सचाई है. मां और पिता का जरूरत से ज्यादा प्रेम और संरक्षण बच्चे की सांस ही रोक देता है. अवसर आने पर वह अपनी पत्नी के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाता.

मेरे पड़ोस में रहने वाले माथुरजी की पत्नी सिर्फ इसलिए छोड़ गई, क्योंकि जब भी वह फैक्टरी से घर आते थे उन की माताजी उन से कहती थीं कि वह उन के साथ ही बैठे. माथुर साहब माता के प्रेम में डूब कर उन की बात मानते रहे और नतीजा यह हुआ कि उन की पत्नी यह कह कर उन्हें छोड़ गई कि आप ममाज बौय हैं. अपनी मां के साथ ही रहें.

आत्मप्रेम

ऐसे बहुत से केस रोज आप के सुनने में आते होंगे कि प्रेम चाहे जिस का हो, स्वार्थी होता है. मां का प्रेम कोई अलग किस्म का होता है, यह सोचना बहुत बड़ी बेवकूफी हो सकती है. हर प्रकार का प्रेम अंतत: आत्मप्रेम ही होता है. मेरा बेटा…’ इस अभिव्यक्ति में पूरा जोर ‘मेरा’ पर होता है, ‘बेटा’ दुबका रहता है.

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सुखी घरपरिवार का आधार है मधुर रिश्ते. शादी के बाद हर मां को यही लगता है कि उस का बेटा बदल गया है और वह अब सिर्फ अपनी पत्नी की बात ही सुनता है. ऐसे में मां इस बात पर बेटे या बहू को ताने देने लगती है तो रिश्ते में खटास आना स्वाभाविक है. घर में बहू जितनी भी अच्छी क्यों न हो सास की आदत होती है कि वह दूसरों की बहुओं की तुलना अपनी बहू से करती है. इस वजह से भी घर में कलह रहती है.

रिलेशनशिप काउंसलर का कहना है, ‘‘मैं केवल सास को दोषी नहीं ठहराऊंगी. मैं तो समस्या की जड़ पर बात करूंगी. आप दिल पर हाथ रख कर एक बात बताएं कि क्या हो जाता है शादी के बाद? क्यों शादी के बाद औरत कभी सास के रूप में, कभी बहू के रूप में, कभी ननद के रूप में, कभी पत्नी के रूप में ऐसी परिस्थिति पैदा कर देती है कि एकसाथ रहना दूभर हो जाता है और ठीकरा फूटता है पुरुष के सर? आप सब कहते हैं बेटियां अच्छी होती हैं, मैं भी यही कहती हूं कि बेटियां तो सभी अच्छी ही होती हैं, लेकिन क्या वही बेटियां अच्छी सास, अच्छी बहू, अच्छी पत्नी भी होती हैं? देखा जाए तो परिवार टूटने के मूल में है महिलाओं का आपसी सामंजस्य का अभाव, घर की महिला का खराब स्वभाव और रिश्तों में अत्यधिक अपेक्षाएं.’’

सोच कर देखें

महिलाओं में जितने क्लेश होते हैं पुरुषों में उतने नहीं होते. 2 अलगअलग घरों के लोग एक ही छत के नीचे मिलते हैं तो उन की सोच में फर्क होना लाजिम है. अगर सास अपने स्तर पर मन में पहले से ही यह मान ले कि इस नए रिश्ते की शुरुआत प्यार और दोस्ती के साथ करनी है, तो रिश्ता यकीनन मजबूत ही बनेगा. सास इस बात को समझे कि नई बहू आज के जमाने की लड़की है. घर की बेटियों के लिए मानदंड अलग और बहुओं के लिए अलग नहीं होने चाहिए.

बंद करें ड्रामा

अपने स्त्री होने का गलत फायदा उठाना बंद करें और अपने आंसुओं को हथियार न बनाएं. ईमानदारी से विरोध करना सही है, लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर केवल बहू मात्र का नहीं. एक औरत जो मानसिक हिंसा करती है, वह कतई माफ करने लायक नहीं. लिहाजा जरूरत मानसिकता बदलने की है.

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