कोरोना महामारी- धार्मिक स्टंटबाजी बनी दुकानदारी

– हे परमपिता परमेश्वर हम सब आपके बच्चे हैं . हो सकता है हमसे कोई गलती हो गई हो जाने अनजाने में हमने किसी का दिल दुखाया हो . हम सब भूलनहार हैं आप बख्शन्हार हैं . बख्शो हम सभी के गुनाहों को आप मुझे मेरे परिवार को समस्त संसार के प्राणियों को इस महामारी से बचाओ . केवल आप ही हमारी रक्षा कर सकते हो .

कृपया इस प्रार्थना को हर ग्रुप में फारवर्ड करें आप जोक्स भी तो फारवर्ड करते हैं तो इस प्रार्थना को भी अवश्य फारवर्ड करें .

– जय जिनेन्द्र

श्री 1008 भगवान महावीर जयंती की शुभकामना .

यदि कोरोना का एक वायरस करोड़ों लोगों को हानि पहुंचा सकता है तो क्या हम करोड़ों लोग एक साथ मिलकर इसका मुकाबला नहीं कर सकते . ध्यान से पढ़ें आगामी 25 अप्रेल को श्री 1008 भगवान् महावीर जयंती के शुभ अवसर पर हम सब मिलकर पूरे भारत में एक साथ ठीक 7.15 बजे 9 / 11 / 51 / 108 दीपक जलाकर जोर जोर से णमोकार महामंत्र का पाठ करेंगे तो करोड़ों मुख से निकली प्रार्थना हमे इस रोग संकट से मुक्ति कराएँगे . —– जय जिनेन्द्र .

– कृपया इस प्रार्थना को रोकियेगा नहीं .

हे मेरे नाथ . मेरे प्रभु श्री राम , हे दया के सागर
पूरी दुनिया में जितने लोग कोरोना रोग से परेशान हैं तू उन पर दया कर और उनकी बीमारी और परेशानियों को ख़त्म कर दे ……
हैं तो अनगिनत लेकिन ऐसी ही एक और पोस्ट को देख लें –

– पुरी मंदिर से संबंधित इस शालिग्राम को आखिरी बार 1920 में स्पेनिश फ्लू के दौरान महामारी के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए निकाला गया था . कोविड के मद्दे नजर अब इसे फिर से निकाल लिया गया है . कृपया दर्शन करें और इसे परिवार और दोस्तों को दें ….

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी धर्म की यह प्रचिलित दुकानदारी खूब फली फूली जिससे वायरस का कहर तो रत्ती भर भी कम नहीं हुआ उलटे एक बार फिर यह जरुर साबित हो गया कि आपदा को अवसर में बदलने में ये दुकानदार जरुर कामयाब रहे जिन्होंने भगवान् के नाम पर पहले कोरोना के डर को लोगों का पाप और गलती बताते हवा दी और फिर उसके नगदीकरण यानी दान दक्षिणा का भी इंतजाम कर लिया .

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नहीं चूके ये धूर्त –

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान के तजुर्बे लोग शायद ही कभी भूल पाएंगे . यह वह दौर था जब जब सारा सिस्टम और व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुके थे . कोरोना पीड़ित और उनके परिजन अस्पतालों में लाइन लगाए बिस्तर और इलाज के लिए तरस रहे थे . दवाइयों के लिए मारामारी मची थी और आक्सीजन के अभाव में कईयों ने दम तोडा . शमसान तक में राशन की दुकानों की तरह लम्बी लम्बी लाइनें लगी .

माहौल को देखते हर कोई दुआ और प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान् हमे और हमारे परिजनों को इस कोरोना से बचाए रखना . लोगों की इसी कमजोरी की देन थीं वायरल होती सैकड़ों की तादाद में उक्त पोस्टें जिनका मकसद इस डर को और बढ़ाना और फिर इससे से पैसे बनाना था . समझ तो हर किसी को आ रहा था कि भगवान् भी इस भयावहता के आगे लाचार है क्योंकि वह कहीं है ही नहीं लेकिन दुकानदार मौका चूके नहीं और तरह तरह से लोगों को मूर्ख बनाते रहे .

भोपाल के एक नामी ज्योतिषी पंडित विष्णु राजोरिया ने हनुमान जयंती को भुनाते हुए एक ऐसी बात कही जिसके लिए देश जाना जाता है और जिसके चलते ही विदेशों में इसकी छवि सांप सपेरों बाली है . बकौल उक्त ज्योतिषी निरोगी रहने के लिए लोगों को नासे रोग हरे सब पीरा , जो सुमरे हनुमत बल बीरा … का पाठ करते हुए हनुमान को घर में बने पकवान खासतौर से चूरमे और बेसन के लड्डू का भोग लगाना चाहिए इससे हनुमान प्रसन्न होते हैं . बात में दम लाने ज्योतिषी जी ने उसमें नक्षत्रों का भी तड़का लगा दिया कि त्रेता युग में इसी महीने की पूर्णिमा पर चित्रा नक्षत्र में हनुमान का जन्म हुआ था इसलिए यह शुभ है गोया कि हर बार अशुभ हुआ करता था , फर्क क्या .

कितना आसान इलाज ये और ऐसे त्रिकालदर्शी बताते रहते हैं कि इम्युनिटी आक्सीजन और रेमडेसिविर के पीछे मत भागो , हनुमान को चूरमे या बेसन का लड्डू चढ़ा दो वह तुम्हारा रोग हर लेगा . देवी देवताओं की हमारे पास कमी नहीं . शिवरात्रि पर शिव का अभिषेक पूजन कर कोरोना को भगाया गया था . नवरात्रि में देश भर में सामूहिक यज्ञ हवन कर भक्तों ने हवन कुंड में कोरोना की आहुति दी थी मगर कमबख्त भस्म नहीं हुआ अब जन्माष्टमी पर कृष्ण से उसे मरवायेंगे .

विज्ञान के इस युग में धर्म के नाम पर कैसी कैसी उलूल जुलूल हरकतें देश भर में होती हैं इसकी एक मिसाल मध्यप्रदेश के रतलाम जिले से भी देखने में आई जहाँ शमशान में रहने बाला एक बाबा , नाम अघोरी चरण नाथ लाल मिर्च और शराब से हवन कर कोरोना भगाने का दावा कर हवन करता रहा . इस बाबा के पास भी हजारों की भीड़ जुटी लेकिन फायदा सिर्फ बाबा को हुआ जो जिसे जमकर चढ़ावे में मुफ्त की शराब कोरोना कर्फ्यू के दौरान मिली .

दोषी अकेले ये पंडे पुजारी धार्मिक संस्थाएं और तांत्रिक मान्त्रिक ही नहीं हैं बल्कि उत्तराखंड के अन्धविश्वासी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह जैसे नेताओं ने भी इन ठगों और धूर्तों को खूब शह दी . मध्यप्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर जो कभी मास्क नहीं लगातीं ने तो एक कदम आगे चलते बीती 9 अप्रेल को इन्दोर एयरपोर्ट पर सार्वजानिक रूप से ताली बजाते कोरोना भगाने पूजा कर डाली . उनके साथ एयरपोर्ट का स्टाफ भी ताली बजाते देखा गया . इसके पहले उन्होंने गाय के गोबर के उपले से हवन कर कोरोना भगाने का खूब प्रचार किया था . इस बेहूदगी ने केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले की याद दिला दी जो पिछले साल कोरोना के कहर की शुरुआत के साथ ही कुछ बौद्ध भिक्षुओं के साथ गो कोरोना गो का नारा देते नजर आये थे मानों कोरोना चिल्लाने से भाग जाएगा.

आम लोगों ने भी साबित कर दिया कि वे मूर्ख हैं और धूर्तों के चंगुल में फसने से उन्हें कोई परहेज नहीं क्योंकि झूठा ही सही वे भरोसा तो दिला रहे थे सरकार तो वह भी नहीं कर पा रही थी उलटे इन्हीं लोगों की शरण में जाने का मशवरा लोगों को दे रही थी . प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब उतरा सा मुंह लेकर राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे तब उनकी जुबान पर भी प्रमुखता से राम और रमजान थे . एक तरह से उन्होंने मान लिया था कि सरकार फेल हो चुकी है इसलिए उसी ऊपर बाले के भरोसे लोग रहें जिससे सोशल मीडिया पर गुहार लगाई जा रही थी कि अब यही कुछ कर सकते हैं .

यह उपर बाला कुछ कर सकता होता तो पिछले साल ही कर चुका होता लेकिन उसके नीचे बाले बंदों और दलालों ने जो कर दिखाया वह हमारे देश में ही मुमकिन था जो पूरी जिन्दगी धार्मिक स्टंटों में उलझे रहते हैं क्योंकि यही उनका पेशा और रोजगार है .

मूर्खता की हद –

कोरोना की पहली लहर और कहर में भी लोग घरों में कैद थे लेकिन तब उन पर तनाव कम था सिर्फ इसलिए नहीं कि यह कहर हल्का और कम जानलेवा था बल्कि इसलिए कि जल्द ही लोगों को यह समझ आ गया था कि उपर बाला एक कल्पना भर है और कल्पनाओं से आपदा से नहीं लड़ा जा सकता . बंद पड़े धार्मिक स्थल इस बात की गवाही भी दे रहे थे और लोगों ने पहली बार महसूसा था कि बचना खुद उनके हाथ में है . यह माहौल जून जुलाई 2021 तक रहा था . ऐसी धार्मिक पोस्टें तब भी थीं लेकिन अधिकांश भक्त टाइप के लोग भी इनकी हकीकत समझते कहने और मानने लगे थे कि जब बिना भगवान् और कर्मकांडों के भी जिन्दगी चल सकती है तो क्यों पैसा और वक्त इनमें जाया किया जाए .
लेकिन जैसे ही कोरोना का कहर कम हुआ और जिन्दगी पटरी पर लौटने लगी तो धर्म के दुकानदारों ने अपनी चालबाजियां और कलाबाजियां दिखानी शुरू कर दीं कि बच गए तो यह प्रभु कृपा है इसलिए किसी भी सुख दुःख में उसे मत भूलो . देखते ही देखते यज्ञ हवन पूजा पाठ तंत्र मंत्र और स्वर्ग नरक मोक्ष आदि का कारोबार फिर चमकने लगा .

कोरोना की दूसरी लहर में भगवान जीवियों ने हाहाकार के बीच नई ट्रिक अपनाई . उन्होंने कोरोना से सुरक्षित रहे लोगों पर पांसा फेंका . चाल यह थी कि चूँकि सभी लोगों पर इसका कहर नहीं टूट रहा है इसलिए उनको लपेटे में लिया जाए जो इससे बच रहे हैं . ऐसे यानी बचे ग्राहकों की तादाद भी खासी थी इसलिए उनका फार्मूला चल निकला . लोगों ने मान लिया कि उन्हें बचाने बाला वही पालनहार है जिसकी महिमा इन मेसेज में गाई जा रही है इसलिए कुछ देकर भारी किल्लत से निजात मिल रही है तो सौदा घाटे का नहीं .

किसी ने यह नहीं सोचा और न ही पूछा कि जब बचने बाले उपर बाले यानी राम दुर्गा या महावीर की कृपा से बचे हैं तो मरने बालों की जिम्मेदारी जो हत्या ही कही जानी चाहिए उस पर क्यों नहीं थोपी जा रही . ज्यादा लोगों के मन में यह आशंकित और दुकान ख़राब करने बाला विचार न आये इसलिए उन्होंने एक फ़िल्मी गाना भी वायरल कर दिया कि , मारने बाला भगवान् और बचाने बाला भी भगवान् . बस तमाम तर्क इसी मुकाम पर आकर लोगों को दिमागी तौर पर अपाहिज बना देते हैं कि सब प्रभु की माया है जो यह तय कर रहा है कि किसे बुलाना है किसे बख्श देना है इसके लिए उसका अपना पैमाना है जिसमें आदमी के कर्मों और पापों का करंट एकाउंट सा रहता है . बचने की शर्त यही है कि घर में दुबके उसका स्मरण करते रहो और नजदीकी मंदिर में जाकर जेब ढीली कर दो जो कि लोगों ने की .

अवैज्ञानिक सोच का देश –

अप्रेल के आखिर तक हालत यह थी कि भारत में कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा पूरी दुनिया को मात कर रहा था जिसकी इकलौती वजह यह तो थी ही कि सरकार ने कोरोना संकट को गंभीरता से नहीं लिया बल्कि यह भी थी कि लोग हमेशा की तरह भगवान् भरोसे हो गए थे सरकार तो धार्मिक टाइप के लोगों की है ही जिस पर लापरवाही और बदइन्तजामी की उँगलियाँ उठीं पर वे इसी धार्मिक शोर शराबे में दबकर रह गईं कि हमारा धर्म और संस्कृति तो सबसे पुराने और सनातन हैं और इतना उन्नत विज्ञानं हैं कि कोई उन्हें समझ ही नहीं सकता .

अव्वल तो बात किसी सबूत की मोहताज नहीं लेकिन एक साल में फिर साबित हो गया कि हमारा देश मौजूदा सरकार की तरह वैज्ञानिक सोच बाला न होकर भाग्यवादी , मंदिरजीवी और चमत्कार जीवी है . लोगों ने तो मास्क लगाया न सेनेटाईज्रर का इस्तेमाल किया और न ही सोशल डिस्टेगिंग का पालन किया . उलटे हरिद्वार कुम्भ में 20 लाख लोग इकट्ठा हो गए अब संक्रमण तो फैलना ही था लेकिन किसी ने पिछले साल की तर्ज पर तबलीगी जमात के मुसलमानों की तरह कुम्भ के हिन्दुओं को नहीं कोसा कि ये लोग देश भर में कोरोना फैला रहे हैं .

तरस खाने बाली बात यह भी रही कि उत्तराखंड के अन्धविश्वासी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह यह कहते रहे कि गंगा मैया कोरोना से बचाएगी . अब कई साधु संतों और आम लोगों के संक्रमित होने और मरने का जिम्मेदार वे गंगा मैया को क्यों नहीं ठहरा पा रहे , सिर्फ इसलिए कि वे भी इन्ही चालाक दुकानदारों के सहयोगियों में से एक हैं . वे परम भक्त होने की वजह से थोड़े बड़े और थोड़े से ही रसूखदार दुकानदार हो गएँ हैं या जानबूझकर बना दिए गए हैं यह अलग बात है लेकिन समझदार और परिपक्व नहीं हो पाए हैं इसमें कोई शक नहीं .

इसी धर्मनगरी में कुम्भ के दौरान साधु संतों ने खूब धार्मिक स्टंट कोरोना को भगाने किये थे जिसकी शुरुआत गायत्री परिवार से हुई थी कि घर घर यज्ञ करो कोरोना भाग जाएगा . पिछले साल मई में यह सिलसिला गायत्री परिवार के मुखिया डाक्टर प्रणव पंड्या ने शुरू किया था . देश भर के साधकों ने हवन किये और रुक रुक कर अभी भी कर रहे हैं . बिजनौर के गायत्री शक्तिपीठ में तो बीती 15 अप्रेल को गायत्री परिवार ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए सामूहिक रूप से गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया था .

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भोपाल के एमपी नगर स्थित गायत्री मंदिर में हर कभी कोरोना को भस्म करने आहुतियाँ डाली जाती हैं जिनसे खत्म होने के बजाय वह और विकराल होता गया . इस संस्थान के जो कर्ता धर्ता यज्ञ से इम्युनिटी बढ़ने का दावा करते रहे थे वे भी संक्रमित होकर अस्पतालों में चक्कर काटते नजर आये .

बात हरिद्वार की ही करें तो कोरोनिल नाम की अवैज्ञानिक दवा बेचकर अरवों खरबों रु कमाने बाले बाबा रामदेव के पतंजलि संस्थान में ही 23 अप्रेल तक 86 कर्मचारी कोरोना संक्रमित निकले थे . ऐसे में सोचना स्वभाविक है कि फिर किस काम के ये धार्मिक स्टंट और आयुर्वेदिक दवाइयां जिन्होंने लोगों का कोरोना से ज्यादा नुक्सान किया हाँ पैसा बनाने के अपने मकसद में ये सभी कामयाब रहे और मूर्ख बने तो हमेशा की तरह आम लोग जिनकी नियति यही है .

किसी ने इस हकीकत पर गौर नहीं किया कि यूरोप और अमेरिका कैसे इस त्रासदी से लगभग निकल आये हैं और चीन तो दूर की बात है हमारा पडोसी बंगला देश भी क्यों हम से आगे निकल रहा है . धर्म वहां भी है और हर जगह है लेकिन लोग हमारे जितने बेवकूफ लोग कहीं नहीं हैं कि किसी देवी देवता के इंतजार में हाथ पर हाथ रखे यह सोचते बैठे रहें कि अभी एक चमचमाता त्रिशूल आसमान से आएगा और कोरोना नाम के राक्षस का वध कर देगा या कि शंकर का तीसरा नेत्र खुलेगा और उसमें से निकलती तेज रौशनी कोरोना को भस्म कर देगी जैसा कि वायरल होती पोस्टों में दावा कर दक्षिणा का इंतजाम किया जाता है .
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव खासतौर से पश्चिम बंगाल की चुनावी रैलियों और सभाओं को दोष देकर जरुर लोगों ने भड़ास निकाल ली कि ऐसे वक्त में यह गैर जरुरी था . मामले की नजाकत देखते हुए पहले कांग्रेस दिग्गज राहुल गाँधी ने रैलियां न करने की घोषणा की तो उनके पीछे भाजपा और टीएमसी भी चल पड़े लेकिन तब तक कोहराम मुकम्मलतौर पर मच चुका था और हालत देख लोग सदमे और सकते में थे . मौका ताड़ते इसी वक्त में धर्म के दुकानदारों ने अपने शटर सोशल मीडिया पर खोल लिए .
इसकी वजह बहुत साफ़ है कि देश के 95 फ़ीसदी लोग इतने अवैज्ञानिक हैं कि उन्हें हर मर्ज की दवा मंदिरों और धर्म ग्रंथों में दिखती है . वे यह मानते हैं कि जो हो रहा है वह तो भगवान् ने पहले से ही तय कर रखा है यानी नया कुछ नहीं है यह सब हमारे ही पापों की सजा है जिसे श्रीमाद्भाग्बद्गीता के अध्याय 4 श्लोक 8 में कृष्ण ने कुछ यूँ कहा है .

परित्राणाय साधूना ………………………………………………………. संभवामि युगे युगे

अर्थात – साधुओं ( भक्तों ) की रक्षा करने के लिए , पापकर्म करने बालों का विनाश करने के लिए और धर्म की भलीभांति स्थापना करने के लिए मैं युग युग में प्रगट होता हूँ .

. इस मूर्खता की सजा पूरे देश ने भयावह रूप से भुगती कि हम नया और तार्किक कुछ नहीं अपनाएंगे और अपने पापों की सजा भुगतेंगे जिससे भ्रष्ट और लुप्त होते धर्म की पुनर्स्थापना हो सके और इसके लिए कोरोना को चुनौती देते बिना मास्क के घूमेंगे और सब को संक्रमित करेंगे. भगवान् की मर्जी नहीं होगी तो कोरोना तो क्या उसका बाप भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा और हमारे पापों या गलतियों के चलते कुछ उल्टा सुलटा हुआ भी तो हजार पांच सौ की दक्षिणा यानी घूस चढ़ाकर बच जायेंगे .

कुम्भ की तर्ज पर हर जगह भीड़ इकट्ठा हुई क्योंकि भीड़ को भरोसा भगवान् का था पर जब कोरोना का कहर बरपा तो लोगों को छठी का दूध याद आ गया लेकिन उन्हीं को जो इसकी गिरफ्त में आये और जो बच गए उनसे पैसे ऐंठने उपर बताई गई पोस्टों के जरिये धर्म की दुकान खूब चली और अभी भी चल रही है और अगर यह मूर्खता जिसकी उम्मीद पंडे पुजारियों के रहते ज्यादा है जारी रही तो चलती रहेगी .
चलती इसलिए रहेगी कि आदमी कभी मरता ही नहीं है इस बात को श्रीमाद्भाग्बद्गीता के अध्याय 2 के श्लोक 20 में इस तरह कहा गया है जिसे पढ़कर किसी को भी अपने प्रियजनों की मौत को मौत मानते हुए दुखी नहीं होना चाहिए बल्कि इस बात पर खुश होना चाहिए कि मृतक फिर पैदा होने बुला लिया गया है . कोरोना तो एक बहाना है .

न जायते ……………………………………………………………………… हन्यमाने शरीरे

अर्थात – यह आत्मा किसी काल में न कभी जन्मता है और न मरता है और यह न एक बार होकर फिर अभावस्वरूप होने बाला है . यह आत्मा अजन्मा नित्य , शाश्वत और पुरातन है . शारीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता .

– विदेशी मीडिया ने की हकीकत बयां

अपने हर भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश की काल्पनिक ही सही बढ़ती ताकत और 130 करोड़ लोगों का जिक्र और फख्र जरुर करते कहते हैं कि आज पूरी दुनिया भारत की तरफ देख रही है . पीपीई किट से लेकर वेक्सीन निर्माण और सप्लाई यानी विक्रय को लेकर भी उन्होंने कहा था कि पूरी दुनिया भारत की तरफ देख रही है .

तब का तो पता नहीं लेकिन मार्च अप्रेल के महीनों से लेकर अब तक वाकई पूरी दुनिया यह देख हैरान है कि भारत में एकाएक ही हालात कैसे बिगड़े और इसका जिम्मेदार कौन है . इस हडकम्प पर विदेशी मीडिया ने काफी दिलचस्पी ली क्योंकि अधिकतर देसी मीडिया तो मोदी भक्ति में लींन रहता है और मच रही अफरातफरी पर से लोगों का ध्यान भटकाने कहता रहता है कि आशावादी बनो , सकारात्मक सोचो , इस बात पर हल्ला मत मचाओ कि कितने मरे कितने परेशांन हुए , कितने आक्सीजन के लिए छटपटाये देखो यह कि कितने लोग ठीक होकर घरों की तरफ लौट रहे हैं सौ में से 4 को आक्सीजन नहीं मिल रही यह चिंता की बात नहीं 96 को मिल रही है यह ख़ुशी की बात है . बगैरह बगैरह …

नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार विदेशी मीडिया के निशाने पर रहे तो इसकी कुछ वजहें भी हैं जिन्हें उनके नजरिये से देखें तो समझ आता है कि हालात उससे कहीं ज्यादा विस्फोटक और मिसमेनेज रहे जितना कि लोग समझते रहे .

`भारत में कोविड की लहर होती भयावह , 315000 नए दैनिक मरीजों का रिकार्ड` शीर्षक से ब्रिटेन के अख़बार द गार्डियन ने कोरोना के आंकड़े देते 22 अप्रेल को लिखा कि भारत में सोशल मीडिया पर मदद मांग रहे लोगों की बाढ़ आई हुई है कोई अपने प्रियजनों के लिए आक्सीजन सिलेंडर ढूंढ रहा है तो कोई अस्पताल में बेड का बंदोबस्त कर रहा है . इस अख़बार ने साउथ केरोलाइना की मेडिकल यूनिवर्सिटी की एक असिस्टेंट प्रोफेसर कृतिका कुप्प्ली के ट्वीट का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि भारत में कोविड – 19 सार्वजानिक स्वास्थ संकट बन चुका है जिसके कारण स्वास्थ सेवा प्रणाली ढहने के कगार पर है .
एक उल्लेखनीय बात गार्डियन ने विशेषज्ञों के हवाले से यह भी कही कि , वायरस गायब हो गया है यह गलत तरीके से समझते हुए सुरक्षा उपायों में बहुत जल्द ढील दे दी गई शादियों और बड़े त्योहारों को आयोजित करने की अनुमति थी और मोदी स्थानीय चुनावों में रैलियां कर रहे थे .

यही बात उर्दू के अल जरीरा न्यूज़ चेनल ने भी कही और उसमें कुम्भ के आयोजन पर ताना कसते यह भी जोड़ा कि स्थानीय चुनावों में भीड़ भरी रैलियों को संबोधित करने और हिन्दू त्यौहार जिसमे लाखों लोग इकट्ठा होते हैं उसकी अनुमति देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी खुद आलोचना का सामना कर रहे हैं .
विदेशी पत्रकारों ने तो मोदी सरकार को लेकर कोई लिहाज नहीं किया . ब्लूमर्ग न्यूज़ एजेंसी के स्तम्भकार मिहिर शर्मा ने लिखा , जैसा कि भारत में हमेशा से ही देखा गया है यहाँ के अयोग्य अफसरों की हेकड़ी , जनता में अति राष्ट्रवाद और यहाँ के राजनेताओं के लोकलुभावंनवाद ने मिलकर एक ऐसा गंभीर संकट पैदा कर दिया है जिसकी सम्भावना हमेशा से ही थी लेकिन इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर कभी कोई तैयारी नहीं की गई .

न्यूयार्क टाइम्स ने नासिक हादसे को अंडर लाइन करते लिखा , कोरोना से जंग में मोदी के मिले जुले सन्देश भी ख़राब हालत की एक वजह हैं . 20 अप्रेल के संबोधन में मोदी ने ज्यादा सावधानी सरकार के प्रयास और दूसरी हिदायतें दीं लेकिन लाक डाउन को अंतिम विकल्प बताया जबकि खुद मोदी का राज्यों के विधानसभा चुनाव में रैलियां करना और सरकार की तरफ से बड़े पैमाने पर हिन्दू त्योहारों खासतौर से हरिद्वार कुम्भ मेले को जारी रखना संक्रमण फैलाव का बहुत बड़ा कारण है .
वाशिंगटन पोस्ट और पाकिस्तान के डॉन ने भी कमोबेश यही बातें कहीं जो कम से कम उन आम लोगों के लिए तो नई नहीं थीं जिन्हें विदेशी मीडिया से कोई लेना देना नहीं होता और जिन्हें होता है वह भी देसी मीडिया पर भरोसा नहीं करते क्योंकि उसका काम आलोचना या सच बयानी कम मोदी की भगवान टाइप की इमेज चमकाते रहना ज्यादा होता है .

 मोदी की ध्वस्त होती चमत्कारी इमेज

साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद ही नरेन्द्र मोदी की इमेज एक ऐसे चतुर और बुद्धिमान नेता की भगवा गेंग ने गढ़ दी थी जिसके पास हर समस्या का हल होता है और जो हमेशा दूर की सोचता है .2 साल तो यूँ ही गुजर गए लेकिन नोट बंदी के फैसले ने यह साबित कर दिया था कि उन जैसा अदूरदर्शी नेता कोई नहीं , न पहले कभी हुआ और न आगे कभी हो पायेगा . फिर जीएसटी से लेकर खासतौर से पश्चिम बंगाल चुनाव तक उन्होंने ऐसे कई अदूरदर्शी फैसले बिना किसी लिहाज या परवाह के लिए जिनका देश के भले से कोई लेना देना नहीं था . यह तो उनके शपथ लेने के बाद ही लोगों को दिख गया था कि वे आरएसएस का मोहरा भर हैं जिसका मकसद हिंदुत्व थोपकर देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना है इससे ज्यादा और इससे कम सोचने की उम्मीद बुद्धिजीवियों ने उनसे फिर कभी नहीं रखी .

लेकिनं उनके 3 – 4 करोड़ अंधभक्तों को उनसे बडी उम्मीदें हैं कि कब देश पूरे तौर पर हिन्दू राष्ट्र बने और हम सवर्ण मुद्दत बाद फिर दलित आदिवासियों और मुसलमानों सहित पिछड़ों की छाती पर मूंग दलें . कोरोना संकट के वक्त में भी जिसे सबसे बडी अदालत ने नेशनल इमरजेंसी कहा ये लोग मीडिया और सोशल मीडिया पर मोदी के बचाव में अव्यवहारिक तर्क पेश कर रहे हैं जिनका सार यही है कि कोरोना का यह कहर तो इश्वर की मर्जी है इसमें मोदी का क्या दोष वे तो दिन रात एक कर हर तरह से कोरोना पीड़ितों की मदद कर अपना राज धर्म निभा रहे हैं . एक साल की सरकारी लापरवाही के बाबत सब चुप हैं.

अपने हर भाषण की शुरुआत में नरेन्द्र मोदी एक ख़ास अदा से कहते हैं , मितरो , हमारे शास्त्रों में कहा है कि …. धर्म की यह भाषा शैली सिद्ध कर देती है कि देश संविधान या लोकतंत्र से नहीं बल्कि धर्म ग्रंथों से चल रहा है इसीलिए लोगों को गुमराह करती और बरगलाती धार्मिक पोस्टें खूब वायरल हुईं जिनमें से कुछ को उपर शुरू में बताया गया है . 20 अप्रेल को राष्ट्र के नाम संवोधन में भी धर्म , शास्त्र , मर्यादा और धैर्य जैसे शब्द थे जिनका मकसद लोगों को यह जताना भर था कि सरकार से अब कुछ होने जाना बाला नहीं . हालत बेकाबू हो चुके हैं इसलिए तुम जानो तुम्हारा काम जाने , हमें तो राम मंदिर बनाना था सो बना लिया और आगे भी कृष्ण और हनुमान बगैरह के मंदिर बनाने का सिलसिला जारी रहेगा .

लेकिन हडकम्प के दौरान सभी ने उनसे इत्तफाक नहीं रखा और सोशल मीडिया पर ही उनका तरह तरह से विरोध हुआ . भाजपा के भीतर और बाहर मोदी को अवतार और भगवान् करार देने बाले नेताओं और भक्तों ने आम लोगों को इलाज और आक्सीजन के आभाव में सड़कों पर दम तोड़ते देखा . हर किसी के मुंह से निकला कि ऐसे दृश्य देखना तो दूर की बात है हमने कभी सपने में भी इनकी कल्पना नहीं की थी . बात सही भी है लोग तो 3 साल बाद विश्व गुरु बनने की उम्मीदें पाले बैठे थे जो अब बुरे सपने की तरह टूट रहीं हैं तो लोगों के मुंह से बोल नहीं फूट रहे कि नहीं चाहिए हमें हिन्दू राष्ट्र , राम मंदिर , महंगे चुनाव, और पटेल जैसे नेताओं की महंगी मंहगी मूर्तियाँ हमें तो कोरोना के कहर से बचने दवाइयां , अस्पताल और सुकून से अंतिम यात्रा तय करने शमसान घाट ही काफी हैं .

कोरोना के मोर्चे पर सरकार की नाकामी किसी सबूत की मोहताज नहीं रह गई है जिसकी वजह सरकार का धार्मिक दिमाग है जो भगवान् भरोसे रहता है और आपदा प्रबंधन की ए बी सी डी भी नहीं जानता . वह तो घंटे घडियालों और गाय और गोबर की भाषा जानता समझता है सो यह तो होना ही था जिससे लोगों ने कितना सबक लिया इसे समझने अभी बहुत वक्त है .

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