जब आंखों पर धर्म का चश्मा चढ़ा हो

अगर आप की आंखों पर महंगा चश्मा चढ़ा हो तो सबकुछ हरा ही हरा दिखता है. ग्लोबल हंगर इंडैक्स ने भूख के मामले में 107 देशों में से भारत को 94वें स्थान पर रखा है और इस पर कृषि उपमंत्री पुरषोत्तम रूपाला का कहना है कि जिस देश में गली के कुत्तों को भी खाना खिलाया जाता है वहां भूख कैसे हो सकती है.

सही भी है. संसद में 19 मार्च को उन्होंने यह बयान दिया था और 18 मार्च को वे दिल्ली के ताजपैलेस होटल में एक सम्मेलन में भाषण दे रहे थे. 13 मार्च को गुजरात के पाटन में उन्होंने पोमो पिज्जा की पाटन ब्रांच का शुभारंभ किया था. 13 मार्च को ही वे गांधीनगर में मुख्यमंत्री के घर में थे. गांधीनगर में उन्होंने नए चमचमाते कपड़े पहने भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ वैक्सीनेशन ड्राइव का उद्घाटन किया था.

12 मार्च को अमरेली में भजन संध्या में थे. उस दिन उन्होंने अस्पताल का उद्घाटन भी किया. एक यज्ञ में भी गए जहां खाने योग्य चीजों घी आदि से हवन किया गया.

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8 मार्च को कृषि भवन के सुसज्जित सभा कक्ष में जहां अंगरेजी में बोर्ड लगे थे महिलाओं की कृषि में भागीदारी पर एक सभा आयोजित की. 7 मार्च को रेशमी धागे के उत्पादन संबंधी एक प्रोग्राम में कीमती साड़ी पहने स्मृति ईरानी और एक सूटेडबूटेड औफिसर के साथ फूस की छत के नीचे रहने वाली औरतों की समस्याओं की बात की. 7 मार्च को सोफे पर बैठ कर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में सीनियर डाक्टर्स से बात की.

अब 1 माह में उन्हें कोई भूखा नहीं दिखा, कहीं भूख की समस्या की चर्चा नहीं की तो ये ह्यूमन हंगर इंडैक्स वाले कौन हैं, जो भारतीयों को भूखा कहते हैं? निश्चित ही वे भारत को बदनाम कर रहे हैं, क्योंकि भारत में न तो बेरोजगारी है, न किसानों को परेशानी है, न फटे कपड़ों में लोग रहते हैं और न ही भूखे हैं.

पुरषोत्तम रूपाला जैसी सोच रखने वाली देश की लाखों उच्च व मध्यवर्ग की औरतें हैं, जिन्हें लगता है कि रोटी न हो तो पिज्जा मंगाया जा सकता है, थेपला खाया जा सकता है. उन्हें दुनिया को अपने चश्मे से देखने की आदत है और यह सब से खतरनाक कि भारत में भूखे ही नहीं हैं, बेघरबार भी हैं.

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बहुओं की सताई सासें और सासों की सताई सासें हैं, धर्म की सताई विधवाएं भी हैं, मंदिरों के आगे बैठे गरीब भूखे बच्चे, औरतें, बूढ़े हैं. हर तीर्थस्थल पर खुली सड़क पर घर बसाए लोग हैं और जिन्होंने चश्मा पहन रखा है उन्हें दिखते ही नहीं. हरा चश्मा ही नहीं, हमारा तो धर्र्म का चश्मा भी यही कहता है कि जो परेशान है वह अपने पापों की वजह से है और यदि उस ने पुण्य कार्य किए होते, दान दिया होता, सुपात्रों को भोजन दिया होता दक्षिणा के साथ, तो यह दशा नहीं होती.

पुरषोत्तम रूपाला जैसी सोच हर भारतीय में है और शिक्षा, तथ्य और तर्क के बावजूद उन्होंने इस बारे में और कुछ नहीं जाना सिवा इस के कि जो अप्रिय लगे उस की ओर ध्यान न दो चाहे प्रधानमंत्री हो, मंत्री या प्रशासन. भारत ऐसे ही थोड़े हंगर इंडैक्स में 94वें स्थान पर है.

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