डेढ़ साल चरमपंथियों की कैद सिल्विया रोमानो की जबानी

दुनियावासी आतंकियों, चाहे वे धार्मिक कट्टरता की सोच या कोई दूसरी मंशा रखने वाले हों, से डरेसहमे रहते हैं. चरमपंथी कभी भी किसी को मार डालते हैं, किसी का अपहरण कर लेते हैं. मकसद पूरा हो जाने पर वे अपह्रत को छोड़ भी देते हैं. ऐसे ही चरमपंथियों की शिकार एक युवती की कहानी बड़ी रोचक है.

इटली की 24-वर्षीय सिल्विया रोमानो अफ्रीका की राहत संस्था ‘अफ्रीका मीली’ में काम करती थीं. 20 नवंबर, 2018 को पूर्वी केन्या के मालेंदी नगर से 80 किलोमीटर दूर बसे एक गांव से उनका अपहरण हो जाता है. अपहरण के बाद उन्हें आतंकवादी संगठन अलशबाब के हवाले कर दिया जाता है. यह संगठन सिल्विया रोमानो को सोमालिया ले जाता है.

सोमालिया में 8 मई, 2020 को चरमपंथियों के चंगुल से रिहा होने के बाद जब वे इटली पहुंचती हैं तो वहां उनका किसी राष्ट्रीय नायक की तरह स्वागत किया जाता है.

सिल्विया रोमानो की आपबीती इटैलियन मीडिया में छाई रही. एक वार्त्ता में उन्होंने बताया, ’18 महीनों तक बंधक बने रहने के दौरान मुझे किसी भी तरह से प्रताड़ित नहीं किया गया. यहां तक कि मेरा यौन उत्पीड़न भी नहीं हुआ. हां, वहां चल रहे गृहयुद्ध की वजह से वह वक्त काफी परेशानी में गुजरा.’

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इस पूरी अपह्रतयात्रा के बारे में सिल्विया रोमानो आगे बताती हैं, ‘ केन्या में अपहरण के बाद सोमालिया तक पहुंचने में मुझे तकरीबन एक महीने का समय लगा. शूरू में 2 साइकिलें थीं. रास्ते में एक खराब हो गई. हमने काफी रास्ता पैदल चल कर तय किया. एक नदी को भी पार किया. मेरे साथ 5-6 पुरुष रहते थे. हम 8-9 घंटे रोज चलते थे.

‘सोमालिया पहुंचने के बाद अपहरणकर्ताओं ने मुझे एक छोटे कमरे में बंद कर दिया. वहां मुझे बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा. मैं पूरी तरह निराश हो चुकी थी, हमेशा रोती रहती थी. पहला महीना बहुत ही भयानक था. हालांकि, उन चरमपंथियों ने मुझे यह यकीन दिलाया कि वे मुझे परेशान नहीं करेंगे और मेरे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे. मैंने उनसे डायरी मांगी. उन्होंने एक डायरी मुझे दी. फिर मुझे यह एहसास हो गया कि उन लोगों का कुछ मकसद है, वे मुझे सताएंगे नहीं.’

सिल्विया रोमानो आपबीती जारी रखती हैं, ‘मैं कमरे में अकेली रहती थी. लेकिन मुझे किसी ने हाथ तक नहीं लगाया और न ही मेरे साथ मारपीट की गई.’

सिल्विया रोमानो के अपहरण के बाद इटली में यह खबर आई थी कि उनका किसी के साथ जबरदस्ती विवाह कर दिया गया है और वे गर्भवती हैं. इस बारे में पूछे जाने पर रोमानो ने बताया, ‘यह अफवाह है. इस तरह की कोई घटना नहीं हुई. किसी ने मुझे किसी भी काम को मजबूर नहीं किया. अपहरणकर्ता मुझे खाना देते थे. जब भी कमरे में आते, उनका चेहरा पूरी तरह से ढका होता था. वे किसी अनजानी भाषा में बात करते थे. उनमें से एक था जिसे थोड़ीबहुत इंग्लिश आती थी. मैंने समय गुजारने के लिए उससे किताबें मांगीं और फिर एक दिन कुरआन मांग लिया.’

सिल्विया रोमानो अपहरण के दौरान बीते समय के बारे में बताते हुए कहती हैं, ‘मुझे हमेशा कमरों में बंद रखा जाता, तो मैंने खूब पढ़ा और खूब लिखा. मैं किसी गांव में थी. दिन में कई बार अजान की आवाज सुनाई देती थी. मैं तब तक धर्म को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं थी. मैंने बहुत सोचविचार किया और आखिर में इस नतीजे पर पहुंची कि इसलाम को अपना लेते हैं.’

अफ्रीकी देश सोमालिया में चरमपंथियों के चंगुल से रिहा होकर इटली पहुंचने पर सिल्विया रोमानो का बहुत ही गर्मजोशी से स्वागत किया गया लेकिन उनके इसलाम स्वीकार करने की खबर पर वहां निराशा फैल गई. दरअसल, धार्मिक कट्टरता लड़नेमारने को तत्पर रहती है. कट्टरता होती ही है जंग की जड़. कहींकहीं बुद्धिजीवी भी बरदाश्त नहीं कर पाते.

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एक इटैलियन समाचारपत्र  ने लिखा है कि भले ही रोमानो कह रही हैं कि उन्होंने अपनी इच्छा से इसलाम स्वीकार किया है लेकिन आने वाला समय बताएगा कि वे चरमपंथियों के दबाव में मुसलमान बनी हैं या अपनी इच्छा से. चूंकि रिहा होकर अभीअभी आई हैं, इसलिए वे डरी हुई हैं.

सोमालिया में गृहयुद्ध की वजह से अपहरणकर्ता बारबार अपनी जगह बदलते थे और इस दौरान वे इटली को बारबार रोमानो का वीडियो भी भेजते थे ताकि यह यकीन दिलाया जा सके कि रोमानो जीवित हैं. 3 वीडियोक्लिप्स तुर्की की मध्यस्थता से इटली सरकार के साथ जारी बातचीत के दौरान भेजी गई थीं.

इन बातचीतों के नतीजे में 8 मई को सिल्विया रोमानो को 20 से 40 लाख यूरो की फिरौती अदा करने के बाद रिहा किया गया. इटली सरकार ने फिरौती के बारे में चुप्पी साध रखी है जबकि सिल्विया रोमानो का कहना है कि उन्हें फिरौती के बारे में कुछ नहीं मालूम लेकिन अपहरणकर्ताओं की बातों से उनकी समझ में यह आ गया था कि उन्हें पैसे चाहिएं. सच भी यही है कि पैसे बड़ेबड़े मसले सुलझा देते हैं.

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