कोरोना काल: बच्चों में बढ़ता तनाव, डगमगाती परिवार की नाव

एक दिन 10 साल का नीरज अचानक अपनी मां से बोला, “मम्मी, मामा के घर चलते हैं.”

यह सुन कर उस की मम्मी ने समझाया, “बेटा, अभी कोरोना फैला हुआ है, इसलिए हम कहीं नहीं जा सकते.”

इतना सुनते ही नीरज एकदम बिफर गया और पैर पटकता हुआ चिल्लाने लगा, “क्या है… इतने दिन हो गए और हम कहीं नहीं गए हैं. बस घर पर रहो. न पार्क जाना है और न दोस्तों से मिलना है. थोड़ीथोड़ी देर में सैनेटाइजर से हाथ धोते रहो और जब घर से थोड़ा सा भी बाहर निकलो तो मुंह पर मास्क लगा कर रखो. खेलने जाना है तो बस छत पर…

“मैं अब पक गया हूं. जब आप से मोबाइल मांगता हूं तो पापा डांट देते हैं और खुद सारा दिन कानों में ईयरफोन लगा कर वैब सीरीज देखते रहते हैं.”

मार्च, 2020 के आखिरी दिनों से पूरा देश कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण के खतरे से जूझ रहा है. न जाने कितनी आबादी घरों में बंद है खासकर बच्चे तो जैसे घरों में कैद हो कर रह गए हैं. वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, पार्क सूने हो गए हैं.

शुरूशुरू में तो बच्चों को ऐसा लगा था कि स्कूल बंद हो गए हैं तो अब मस्ती टाइम. पर धीरेधीरे उन्हें अहसास हो गया कि ये छुट्टियों के दिन नहीं हैं, बल्कि कर्फ्यू लगा है उन की मासूम अठखेलियों पर.

इसी का नतीजा यह रहा कि नीरज जैसे छोटे बच्चों के मन में कई नैगेटिव विचार आने लगे. यह एक गंभीर समस्या है और इस का असर उन की मानसिक सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है.

फिलहाल यह समस्या अपने पहले चरण में है, इसलिए बच्चों की झल्लाहट पर बड़ों को गुस्सा नहीं करना चाहिए, बल्कि वे उन्हें किसी न किसी तरह से रचनात्मक कामों के लिए प्रोत्साहित करें.

गैजेट बनते सहारा

कैमिकल लोचे की बात करें तो बड़े हों या बच्चे तनाव के चलते उन के हार्मोन में बदलाव होता है. लौकडाउन के चलते सब के रूटीन में बदलाव आ चुका है. बड़े तो किसी न किसी बहाने घर से बाहर भी हो आते हैं, पर बच्चे तो जैसे टैलीविजन के रिएलिटी शो ‘बिग बौस’ के प्रतिभागियों की तरह घर पर ही बंद हो कर रह गए हैं.

कोढ़ पर खाज यह है कि स्कूलों पर फिलहाल बच्चों के लिए ताला जड़ा है तो उन की पढ़ाई भी औनलाइन हो रही है, इसलिए पढ़ाई के अलावा वे मनोरंजन के लिए भी मोबाइल फोन, कंप्यूटर, लैपटौप या टैलीविजन का ही मुंह ताकते हैं. इस से उन की आंखों पर तो बुरा असर पड़ता ही है, मानसिक रूप से भी वे थक जाते हैं.

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अभी हमें यह बात समझ नहीं आ रही है, पर यह एक कड़वा सच है कि टैलीविजन पर कोरोना से जुड़ी नैगेटिव खबरों को सुनसुन कर बड़ों के साथसाथ बच्चों में भी तनाव बढ़ रहा है.

तो इस तनाव से उबरने का तरीका क्या है? ऐसे में सब से ज्यादा जरूरी है कि बच्चों को किसी भी तरह से नैगेटिव माहौल से बाहर निकाला जाए. उन्हें मोबाइल फोन से दूर रखने की कोशिश की जाए. उन्हें घर या छत पर ऐसे खेल खेलने के लिए प्रेरित करें, जिन में उन की कसरत हो जाए, खूब पसीना निकले. इस के अलावा उन्हें पेंटिंग करने, किताबें पढ़ने या कोई दूसरी कला से जोड़ें.

इन्होंने जो किया

भारतीय फुटबाल टीम की कप्तान रह चुकी सोना चौधरी के 2 बेटे हैं. इस कोरोना काल में वे दोनों बच्चे अपनी मम्मी का घर के काम में हाथ बंटाते हैं. किचन में कुछ न कुछ नया पकाते हैं, कविताएं लिखते हैं.

सोना चौधरी के 2 बेटे हैं. बड़ा बेटा सुजल 15 साल का है और 11वीं क्लास में पढ़ता है. 12 साल के छोटे बेटे का नाम व्योम है और वह 8वीं क्लास में पढ़ रहा है. दोनों को बुक राइटिंग का शौक है और वे 2-2 बुक्स लिख चुके हैं.

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सोना चौधरी ने बताया, “मैं दोनों बच्चों से घर के डस्टिंग जैसे काम कराती हूं और साथ में खुद भी करती हूं. उन्हें किचन में साथ लगाए रखती हूं. खाली समय में उन के साथ खेलती हूं.”

सोना चौधरी का मानना है, “आज लौकडाउन में बच्चों के व्यवहार में बदलाव आया है, इसलिए उन के मातापिता और टीचरों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है. पहले समय में बच्चे स्कूल के साथसाथ अपने आसपास से सीखते थे, घर के काम से सीखते थे.

“आज कोरोना काल में बच्चों को घर पर प्रैक्टिकल कर के सीखने का मौका मिला है. औनलाइन क्लास ठीक हैं पर बच्चों को लाइफ लर्निंग के लिए बड़ों को अपने साथ रखना चाहिए. बड़े जो भी करें, उसे अपने बच्चों को भी दिखाएं और सिखाएं. यही हमारी स्किल प्रैक्टिस है. चीन जैसे देश में तो बच्चों को कम उम्र में ही स्किल प्रैक्टिस सिखा दी जाती है.

“बच्चों के हाथ में 24 घंटे गैजेट पकड़ाना भी समस्या का कोई हल नहीं है. उस से तो पहले बच्चे और बाद में आप खुद तनाव में आ जाएंगे.”

महिला कांग्रेस से जुड़ी और अपने वार्ड आया नगर की उपाध्यक्ष मधु गुप्ता के 2 बच्चे हैं. 10 साल की अग्रीमा और 7 साल का समन्वय. मधु गुप्ता ने बताया, “जहां एक ओर बच्चों की औनलाइन क्लास से उन का स्क्रीन टाइम बढ़ता है, आलस आता है और फिजिकल ऐक्टिविटी कम होने से नुकसान होता है, तो दूसरी ओर मैं कोरोना काल में बच्चों के घर रहने से इस समय को सकारात्मक तरीके से मैनेज कर रही हूं. मैं उन के साथ ज्यादा समय बिता रही हूं और घर के दूसरे काम सीखने में मदद कर रही हूं, जैसे डाइनिंग टेबल लगाना, खाने के बरतन किचन में रखना, अपनी अलमारी में कपड़े लगाना, रूम की क्लीनिंग करना आदि.

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“राजनीति में होने के साथसाथ में एक सोशल वर्कर भी हूं, तो रोज मुझे घर से बाहर निकलना होता है. ऐसे में मैं ने इस मुश्किल समय का प्रयोग करते हुए अपने बच्चों को कुछ अच्छी आदतें सिखा कर उन की और अपनी दिनचर्या को आसान बना लिया है.”

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पर हर घर में ऐसा नहीं हो पा रहा है. कोरोना के चलते बहुतों का रोजगार चला गया है. इस का उन की पारिवारिक जिंदगी पर बुरा असर पड़ रहा है. बच्चे भी इस से अछूते नहीं हैं. लेकिन थोड़ी सी सावधानी बरत कर बच्चों के तनाव को कम किया जा सकता है. इस के बावजूद अगर आप का बच्चा कुछ असामान्य हरकत कर रहा है तो डाक्टर से जरूर सलाह लें.

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