जानें क्या हैं रैंट ऐग्रीमैंट से जुड़ी बारीकियां

किराया आज के समय में आय का एक अच्छा और बेहतर साधन है. आज जहां कोई भी मकान जैसी प्रौपर्टी का मालिक अपनी खाली पड़ी प्रौपर्टी को किराए पर दे कर अपनी आय बढ़ा सकता है, वहीं दूसरी तरफ किराए के मकान उन लोगों के लिए वरदान समान हैं, जो पैसे न होने के कारण अपना आशियाना नहीं बना पाते. लेकिन किराए पर ऐसी प्रौपर्टी को लेते या देते समय जो सब से महत्त्वपूर्ण चीज होती है, वह है रैंट एग्रीमैंट.

रैंट एग्रीमैंट वह होता है, जो किसी भी प्रौपर्टी को किराए पर देने से पहले किराएदार और मकानमालिक के समझौते से तैयार किया जाता है. इस रैंट एग्रीमैंट में मकानमालिक की सारी शर्तें लिखित रूप में होती हैं, जिस पर मकानमालिक व किराएदार की सहमति के बाद ही दस्तखत होते हैं. रैंट एग्रीमैंट भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध होता है. अगर किसी भी प्रकार के बदलाव का प्रस्ताव मकानमालिक या किराएदार द्वारा रखा जाना हो, तो उस के लिए 30 दिन पहले नोटिस दिया जाता है.

रैंट ऐग्रीमैंट में बहुत सी ऐसी बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है, जो मकानमालिक और किराएदार दोनों के लिए आवश्यक होती हैं. वे बातें इस प्रकार हैं :

– रैंट एग्रीमैंट हमेशा स्टैंप पेपर पर ही बनाया जाता है. इस पर मकानमालिक और किराएदार दोनों के दस्तखत होने जरूरी होते हैं.

– रैंट एग्रीमैंट में किराएदार व मकानमालिक का नाम साफसाफ लिखा होना चाहिए. साथ ही किराए पर दी जाने वाली जगह का पूरा पता भी दिया होना चाहिए.

– रैंट एग्रीमैंट में किराए की ठीक जानकारी आवश्यक होती है, साथ ही किराया देने की समय अवधि की तारीख भी होनी चाहिए और किस दिन से विलंब शुल्क लगाया जाएगा, यह भी साफसाफ लिखा होना चाहिए.

– रैंट एग्रीमैंट में किराएदार द्वारा जमा की जाने वाली सिक्योरिटी मनी का उल्लेख होना ही चाहिए.

– तारीख व दिन से कितने समय के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, यह लिखा होना भी बहुत जरूरी होता है.

– मकानमालिक द्वारा क्याक्या सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, उस की जानकारी भी रैंट एग्रीमैंट में होनी चाहिए तथा प्रौपर्टी के साथ अन्य कौन सी सामग्री भी साथ प्रदान की जा रही है, जैसे पंखा, गीजर, लाइट फिटिंग आदि भी लिखे होने चाहिए.

– किराएदार को घर छोड़ने या मकानमालिक द्वारा घर छुड़वाने से एक महीने पहले नोटिस देना जरूरी होता है.

– मकानमालिक रैंट एग्रीमैंट बनवाने के लिए किसी वकील से भी बातचीत कर सकता है या स्टैंडर्ड रैंट एग्रीमैंट फार्म का प्रयोग कर सकता है.

– रैंट के घर में रहने वाले व प्रयोग करने वाले 18 वर्ष की आयु से ऊपर के विवाहित और अविवाहित सभी सदस्यों के नाम रैंट एग्रीमैंट में लिखे जाते हैं, जिस से बाद में प्रौपर्टी की देखरेख की जिम्मेदारी सभी की हो और किराए से जुड़ी रकम भी किसी एक से ली जा सके.

– मकान मालिक किराएदार के बारे में पूछताछ कर सकता है, जिस से वह उस से जुड़ी आसामाजिक गतिविधियों व आपराधिक पृष्ठभूमि को जान सके.

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कुछ महत्त्वपूर्ण बातें

रैंट एग्रीमैंट से जुड़ी ऐसी ही कुछ बारीकियां जानने के लिए दिल्ली के एक लीगल एडवाइजर यश गुप्ता से बातें हुईं. उन्होंने कुछ महत्त्वपूर्ण बातें समझाईं-

किसी भी रैंट एग्रीमैंट को साइन करते समय या बनवाते समय मकानमालिक और किराएदार दोनों को ही कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे, मकानमालिक को जहां किराएदार से जुड़ी पूरी जानकारी होनी चाहिए, वहीं कहीं मकानमालिक कोई धोखा तो नहीं कर रहा. इस की जानकारी किराएदार को होनी चाहिए. दूसरा, कितने समय से कितने समय तक के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, साथ ही बिजली, पानी व हाउस टैक्स का बिल कौन देगा. क्या वह किराए में ही सम्मिलित है या किराए से अलग है. यह स्पष्ट होना चाहिए.

किराया कितने समय बाद बढ़ाया जाएगा और कितना, यह सब भी रैंट एग्रीमैंट में साफसाफ शब्दों में लिखा जाना चाहिए. मकानमालिक की सबलैटिंग से जुड़ी नीति के बारे में भी रैंट एग्रीमैंट में लिखा होना चाहिए. किराए के मकान के कायदेकानून की जानकारी होना आवश्यक ओ.पी. सक्सेना (ऐडीशनल पब्लिक प्र्रौसीक्यूटर, दिल्ली सरकार)

रैंट कंट्रोल ऐक्ट : यह कानून किसी भी रिहायशी या व्यावसायिक प्रौपर्टी, जो किराए पर ली या दी जाती है, उस पर लागू होता है और किराएदार एवं मकानमालिक के सिविल राइटस की रक्षा करता है. इस कानून का सही फायदा उस दशा में होता है, जब प्रौपर्टी का किराया रु. 3500 प्रति माह तक या इस से कम हो. यदि किराया रु. 3500 से ज्यादा है और किराएदार व मकानमालिक में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.

रैंट एग्रीमैंट : रैंट एग्रीमैंट नोटरी के वकील की मदद से बनवाया जा सकता है. इस में कुछ खास बातों का ध्यान में रखना आवश्यक है.

1. किराएदार व मकानमालिक का पूरा नाम व सही पता दर्ज हो.

2. किराए के लिए निर्धारित की गई रकम के साथ डिपाजिट की गई सिक्योरिटी व एडवांस का जिक्र अवश्य हो.

3. यदि बिजल पानी का भुगतान किराए में नहीं है, तो इस का जिक्र भी आवश्यक है.

4. किराएदार से जबरन मकान खाली नहीं कराया जा सकता : रैंट एग्रीमैंट में एक महीने के नोटिस का प्रावधान होने के बावजूद कोई भी मकानमालिक किराएदार से जबरदस्ती मकान खाली नहीं करा सकता. यदि कोई मकानमालिक ऐसा करने की कोशिश करे, तो अदालत में उस के खिलाफ अर्जी दी जा सकती है और स्टे आर्डर लिया जा सकता है.

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रि-टीनेंसी का केस न हो : मकान लेने से पहले किराएदार को यह जान लेना आवश्यक है कि जिस से वह मकान ले रहा है, वही मकान का असली मालिक है. यदि ऐसा नहीं है, तो मकान किराए पर देने वाले के पास टीनेंसी का अधिकार होना चाहिए. यदि यह सावधानी न बरती जाए, तो मकान का असली मालिक बिना किसी नोटिस के मकान खाली करा सकता है.

किराएदार की पूरी जानकारी : मकानमालिक के लिए आवश्यक है कि वह किराएदार की सही पहचान, मूल निवास, कार्यालय व आचरण के साथ इस बात की भी पूरी जानकारी जुटा ले कि वह किराया देने की हैसियत रखता है या नहीं. बाद में यदि किराएदार 1-2 महीने तक किराया नहीं भी दे पाता, तो मकानमालिक बिना अदालत का सहारा लिए मकान खाली नहीं करा सकता.

मकान की मैंटेनंस : मकान में होने वाली रिपेयरिंग व साल में एक बार रंगाईपुताई का दायित्व मकानमालिक का बनता है. किराएदार को कानूनन ये अधिकार प्राप्त हैं तथा इस के बारे में वह मकानमालिक को कह सकता है और रैंट एग्रीमैंट में भी इस का जिक्र कर सकता है.

किराए की बढ़ोतरी : रैंट एग्रीमैंट 11 महीने तक वैध होता है और नए एग्रीमैंट में पहले कानूनन किराए में 10% की वृद्धि का प्रावधान है. यदि मकानमालिक इस से ज्यादा किराया बढ़ाने का दबाव बनाता है, तो किराएदार को आपत्ति जताने का अधिकार है. किराया तय करने से पहले उस क्षेत्र के आसपास के मकानों से किराए का अंदाजा अवश्य लें.

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रेंट एग्रीमेंट बनवाने से पहले जान लें ये 10 बातें

किराया पर रहना आज के समय में इनकम का एक अच्छा और बेहतर साधन है. आज जहां कोई भी मकान जैसी प्रौपर्टी का मालिक अपनी खाली पड़ी प्रौपर्टी को किराए पर देकर अपनी इनकम बढ़ा सकता है, वहीं दूसरी तरफ किराए के मकान उन लोगों के लिए वरदान समान हैं, जो पैसे न होने के कारण अपना आशियाना नहीं बना पाते. लेकिन किराए पर ऐसी प्रौपर्टी को लेते या देते समय जो सब से महत्त्वपूर्ण चीज होती है, वह है रैंट एग्रीमेंट.

रैंट एग्रीमेंट वह होता है, जो किसी भी प्रौपर्टी को किराए पर देने से पहले किराएदार और मकानमालिक के समझौते से तैयार किया जाता है. इस रैंट एग्रीमेंट में मकानमालिक की सारी शर्तें लिखित रूप में होती हैं, जिस पर मकानमालिक व किराएदार की सहमति के बाद ही दस्तखत होते हैं. रैंट एग्रीमैंट भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध होता है. अगर किसी भी प्रकार के बदलाव का प्रस्ताव मकानमालिक या किराएदार द्वारा रखा जाना हो, तो उस के लिए 30 दिन पहले नोटिस दिया जाता है.

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रैंट एग्रीमेंट में बहुत सी ऐसी बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है, जो मकानमालिक और किराएदार दोनों के लिए आवश्यक होती हैं. वे बातें इस प्रकार हैं :

1. रैंट एग्रीमेंट हमेशा स्टैंप पेपर पर ही बनायाजाता है. इस पर मकानमालिक और किराएदार दोनों के दस्तखत होने जरूरी होते हैं.

2. रैंट एग्रीमेंट में किराएदार व मकानमालिक का नाम साफसाफ लिखा होना चाहिए. साथ ही किराए पर दी जाने वाली जगह का पूरा पता भी दिया होना चाहिए.

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3. रैंट एग्रीमेंट में किराए की ठीक जानकारी आवश्यक होती है, साथ ही किराया देने की समय अवधि की तारीख भी होनी चाहिए और किस दिन से विलंब शुल्क लगाया जाएगा, यह भी साफसाफ लिखा होना चाहिए.

4. रैंट एग्रीमेंट में किराएदार द्वारा जमा की जाने वाली सिक्योरिटी मनी का उल्लेख होना ही चाहिए.

5. तारीख व दिन से कितने समय के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, यह लिखा होना भी बहुत जरूरी होता है.

6. मकानमालिक द्वारा क्याक्या सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, उस की जानकारी भी रैंट एग्रीमैंट में होनी चाहिए तथा प्रौपर्टी के साथ अन्य कौन सी सामग्री भी साथ प्रदान की जा रही है, जैसे पंखा, गीजर, लाइट फिटिंग आदि भी लिखे होने चाहिए.

7. किराएदार को घर छोड़ने या मकानमालिक द्वारा घर छुड़वाने से एक महीने पहले नोटिस देना जरूरी होता है.

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8. मकानमालिक रैंट एग्रीमैंट बनवाने के लिए किसी वकील से भी बातचीत कर सकता है या स्टैंडर्ड रैंट एग्रीमैंट फार्म का प्रयोग कर सकता है.

9. रैंट के घर में रहने वाले व प्रयोग करने वाले 18 वर्ष की आयु से ऊपर के विवाहित और अविवाहित सभी सदस्यों के नाम रैंट एग्रीमैंट में लिखे जाते हैं, जिस से बाद में प्रौपर्टी की देखरेख की जिम्मेदारी सभी की हो और किराए से जुड़ी रकम भी किसी एक से ली जा सके.

10. मकान मालिक किराएदार के बारे में पूछताछ कर सकता है, जिस से वह उस से जुड़ी आसामाजिक गतिविधियों व आपराधिक पृष्ठभूमि को जान सके.

अगली कड़ी में पढ़ें- रेंट अग्रीमेंट से जुड़े कानून जानना भी है जरूरी

किराए का घर: न टैंशन न सिरदर्द

दिल्ली हर साल करीब 5 लाख नए लोगों को आश्रय देती है. लगातार महंगे हो रहे दिल्ली जैसे महानगरों में लोग सस्ते में कैसे रहें, यह सभी दिल्लीवासियों का प्रश्न है. वाकई बड़े शहरों में रिहाइश बड़ी समस्या है. घर खरीदना हर किसी का सपना होता है, लेकिन प्रौपर्टी के बढ़ते दामों की वजह से ज्यादातर लोगों के लिए पैसा दे कर घर खरीदना कठिन ही नहीं नामुमकिन भी है. ऐसे में किराए पर घर ले कर रहना एक बेहतर विकल्प है.

किराए के घर में भी आप सुकून से जिंदगी बिता सकते हैं और अपना मकान होने की जो चिकचिक है, उस से मुक्ति भी पा सकते हैं. रीयल ऐस्टेट ऐडवायजरी फर्म सैंचुरी 21 के एक सर्वे में यह सामने आया है कि कुछ खास प्रोफैशंस के युवा अपना घर बहुत जल्दी नहीं खरीदते. मीडिया, फाइनैंस, ऐडवर्टाइजिंग और आईटी जैसे फील्ड में काम करने वाला युवावर्ग अपनी जौब जल्दी जल्दी बदलता रहता है. ऐसे में यह तय ही नहीं होता कि ये युवा एक शहर में कितने समय तक रहेंगे, इसलिए वे घर खरीदने में जल्दबाजी नहीं दिखाते. कुल मिला कर वे एनसीआर में अपना घर लेने के बजाय पौश कालोनी में रैंट पर रहना पसंद करते हैं.

अपना घर न खरीद कर किराए के घर में रहना पसंद करने वाले इन युवाओं के अपनेअपने तर्क हैं. कई कहते हैं कि वे ऐसी लोकैलिटी में ही रहना चाहते हैं जहां उन के मकान के पास तमाम सुखसुविधाएं उपलब्ध हों, तो कई युवा लोन के झमेले में नहीं फंसना चाहते. उन का कहना है कि वे अपनी पूरी सैलरी का मजा लेना चाहते हैं. वे हर महीने उस का बड़ा हिस्सा लोन में नहीं दे सकते.

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औफिस के पास घर

टीवी आर्टिस्ट अनुपम 10 साल पहले कोलकाता से दिल्ली आए थे. तब वे बैचलर थे. पहली जरूरत मकान की थी. उन्होंने लाजपत नगर में एक कमरा तलाश लिया और 2-3 साल वहां पर रहे. फिर शादी हुई, तो उन्हें मकान बदलना पड़ा. तब वे पत्नी के साथ 2 कमरों के एक मकान में शिफ्ट हो गए. समय गुजरता रहा. 2 बच्चे हुए. वे आज भी अपने परिवार के साथ दिल्ली में ही हैं, लेकिन अपना घर आज तक नहीं खरीदा. कारण पैसे की कमी नहीं, बल्कि उन का अपना मिजाज है.

अनुपम कहते हैं कि घर खरीदने के बारे में कभी सोचा ही नहीं. मैं किराएदार रह कर भी खुश हूं. हम एक मकान में 4-5 साल आराम से गुजार लेते हैं. मेरी रिहाइश का यह पूरा इलाका मुझे सूट करता है, क्योंकि मेरा औफिस यहां से बहुत पास है. मैं एनसीआर में घर खरीद सकता हूं, लेकिन उस से मेरी परेशानियां बढ़ जाएंगी. खासतौर पर आनेजाने की परेशानियां. हम साउथ दिल्ली को नहीं छोड़ना चाहते.

अमित अग्रवाल को ही लीजिए, आईटी प्रोफैशनल अमित ने नोएडा में एक घर खरीदा, लेकिन वहां सिर्फ 1 साल ही रहे. उस के बाद वे परिवार सहित विवेक विहार शिफ्ट हो गए, जहां वे पिछले 12 सालों से किराए पर रह रहे थे. अमित का कहना है कि कई साल यहां रहने के कारण हमें इस जगह से लगाव हो गया है. हम यहां से चले तो गए, लेकिन नोएडा में ऐडजस्ट नहीं कर पाए, क्योंकि पौश कालोनी होने के कारण वहां किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है. लेकिन यहां सभी पड़ोसी एकदूसरे के सुखदुख में शामिल होते हैं.

इस के अलावा बच्चों को भी बहुत दूर स्कूल आनेजाने में परेशानी हो रही थी. मन मार कर रहने के बजाय हम ने विवेक विहार में रैंट पर रहना पसंद किया. सर्वे में यह भी पता चला है कि कई युवा अपने वर्किंग प्लेस पर रैंट पर ही रहते हैं और अपने नेटिव प्लेस के पास ही अपना घर खरीदना पसंद करते हैं. ऐसे लोग मेरठ, देहरादून, जबलपुर, चंडीगढ़, मुरादाबाद, नैनीताल, वृंदावन जैसी जगहों पर प्रौपर्टी में इन्वैस्ट करते हैं. आइए जानें किराए के घर में रहना कैसे आप को टैंशन और सिरदर्द से बचाता है-

लोकेशन अच्छी नहीं तो घर बदलें

अपर्णा का कहना है कि कुछ साल पहले ही हम ने ब्रिज विहार में घर खरीदा. बारिश का मौसम आने पर पता चला कि घर के पास वाले नाले में पानी भर जाने के कारण घर के नीचे वाले फ्लोर पर पानी भर जाता है. किराए का घर होता तो बदल कर दूसरा घर ले लेते, लेकिन अपना घर बेचना इतना आसान नहीं होता और फिर उस मकान की कीमत भी ज्यादा नहीं थी. इसी तरह प्रियंका का कहना है कि हम ने गरमियों में घर खरीदा था और यह नहीं देखा कि इस घर में धूप आती है या नहीं.

सर्दियां आईं तो पता चला कि इस घर में धूप का नामोनिशान नहीं है. इस वजह से घर भी बहुत ठंडा रहता है. मेरा बच्चा अभी छोटा है और उसे धूप दिखाना जरूरी होता है, इसलिए मुझे घर से काफी दूर पार्क में आना पड़ता है. हमेशा मन में मलाल रहता है कि अगर यह घर किराए का होता तो कब का बदल दिया होता.

यही नहीं, बल्कि कई बार अपना मकान खरीद लेने पर पता चलता है कि यहां पार्किंग की दिक्कत है, बिजलीपानी की समस्या है, साफसफाई नहीं होती, घर के पास शराब का ठेका खुला है आदि. ऐसी परेशानियों को अपने घर में झेलना आप की मजबूरी हो जाती है, लेकिन किराए का घर बदलने का औप्शन होता है.

तबादले की जौब में मुश्किल नहीं

प्राइवेट नौकरी हो या सरकारी, हर किसी में ट्रांसफर तो होता ही है और ट्रांसफर हो जाने के बाद सब से बड़ी दिक्कत आती है अपना घर छोड़ कर किसी दूसरे शहर में जा कर किराए का घर ले कर बसने की. पहले तो अपना खुद का घर छोड़ कर जाने का मन ही नहीं करता, क्योंकि आप ने उसे अपने ढंग से सैट जो किया होता है. उस घर के हिसाब से ही फर्नीचर आदि खरीदा होता है. किसी दूसरे शहर में उतना बड़ा घर मिलता है या नहीं यह भी एक प्रश्न खड़ा हो जाता है.

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किराए के घर में अगर ड्राइंगरूम छोटा है और आप का सोफा बड़ा तो उसे ऐडजस्ट करना मुश्किल हो जाता है, लेकिन आप पहले से ही किराए के घर में रहते हैं, तो आप को पता होता है कि आप को जल्दीजल्दी घर बदलना पड़ेगा, इसलिए आप उसी के हिसाब से फर्नीचर खरीदते हैं. जैसे, छोटा सोफा, फ्लोरिंग, फर्नीचर वगैरह. ट्रैवलिंग में टूटने वाली चीजें ऐसे लोग कम रखते हैं.

औफिस का ट्रैवलिंग टाइम बचता है

टीसीएस कंपनी में कंसल्टैंट मैनेजर अनुभव का कहना है कि मैं रोज गे्रटर नोएडा से कनाट प्लेस अपने औफिस आता हूं. मेरा ट्रैवलिंग टाइम करीब डेढ़ से 2 घंटे का होता है. अपने घर से औफिस पहुंचने के लिए ट्रैफिक जाम और लंबा रास्ता कवर करने में ही मेरी 50 पर्सैंट ऐनर्जी कंज्यूम हो जाती है. इस के बाद औफिस में किसी भी प्रोडक्टिव काम के लिए ऐनर्जी नहीं बचती. अब लगता है कि अगर मेरा गे्रटर नोएडा में अपना घर नहीं होता तो मैं अपने औफिस के पास ही अपनी पसंद का कोई किराए का घर ले लेता और ट्रैवलिंग टाइम के साथसाथ हर महीने लगभग 10 से 12 हजार रुपए महीना पैट्रोल पर होने वाले खर्च को भी बचा पाता. इस के साथ ही ज्यादा टै्रवलिंग के चलते बौडी पेन, बैक पेन, ब्लडप्रैशर व स्टै्रस के कारण डायबिटीज आदि बीमारियां भी हो सकती हैं.

किस्तें चुकाने का झंझट नहीं

घर खरीदने के बजाय किराए पर घर लेने से आप को ईएमआई की तुलना में कम खर्च करना होगा. इस तरह बची हुई रकम को आप 20 साल के लिए किसी दूसरे निवेश में लगा सकते हैं, जिस से बाद में घर खरीद सकते हैं. ईएमआई भरने के चक्कर में लोगों के घर का बजट गड़बड़ा जाता है. इस से घर में कलह और स्ट्रैस आते हैं, जबकि किराए का घर लें, तो अपनी पाकेट के अनुसार 5 या 6 हजार रुपए का घर ले सकते हैं.

मैंटेनंस की टैंशन नहीं

अगर घर अपना हो तो हजार झंझट रहते हैं, जैसे अगर आप कालोनी में फर्स्ट फ्लोर पर रहते हैं, तो आए दिन नीचे के घर वाला शिकायत करता है कि आप के बाथरूम से मेरे घर में सीलन आ गई है उसे ठीक कराएं, तो कभी आप का पाइप भर गया है, जिस से मेरी नाली में पानी आ रहा है आदि, जिस के कारण बेवजह परेशानी के साथ पैसा भी खर्च होता है. लेकिन आप किराए पर रहते हैं, तो आराम से कह सकते हैं कि हम तो किराए पर हैं, आप मकानमालिक से बात करें.

इस के बाद उस टूटफूट का खर्चा मकान मालिक और नीचे के घर वाला आधा-आधा उठाते हैं. उसे सही कराने का टैंशन आप की नहीं है. आप को बस मकान मालिक का फोन नंबर देना है. अपना घर होता है तो आए दिन मकान में वाइटवाश कराने का भी मन करता है, लेकिन आप किराए पर हैं, तो आप को पता है कि मकान मालिक 2 साल से पहले नहीं कराएगा और आप अपनी जेब से पैसा नहीं खर्चेंगे.

अपने घर में आप पैसा किसी न किसी वजह से लगाते ही रहते हैं. जैसे, अगर किसी घर में आप ने देख लिया कि उस के घर की किचन में अच्छा वुडनवर्क है या फिर पीओपी का काम बहुत अच्छा है, तो आप भी धीरेधीरे कर के वे सब काम करवाने लगते हैं, जिस में बहुत पैसा खर्च हो जाता है. अगर किराए का घर है, तो अगली बार वैसा ही घर ढूंढ सकते हैं. किराए के घर में टैंशन न हो, इस के लिए इन बातों पर ध्यान दें-

– जहां तक हो सके किराए के घर में नए फर्नीचर पर पैसा बरबाद न करें. अगर आप अपने पुराने फर्नीचर से बोर हो गए हैं, तो कम खर्च में उसे नया लुक दे सकते हैं. इस के लिए फर्नीचर पर पड़ी खरोंचों को भरवाएं, उस पर वार्निश करवाएं, उस के ऊपर सिल्क, सैटिन या गुजराती ऐंब्रैयडरी के कवर चढ़ाएं. कुछ ऐसा ही आप कुशन कवर के साथ करें.

– किराए पर रहने वाले लोगों को कभी भी शिफ्ट करना पड़ सकता है और शिफ्टिंग में सब से ज्यादा नुकसान फर्नीचर का होता है. ऐसे में आप पुराना या सस्ता फर्नीचर इस्तेमाल कर के इस नुकसान से बच सकते हैं.

– अगर आप को लगता है कि आप कुछ समय और इसी तरह किराए पर रहने वाले हैं, तो ऐसे में आप के लिए बेहतर होगा कि आप भारी फर्नीचर लेने के बजाय हलका फर्नीचर लें. जैसे, सोफे की जगह केन, आयरन वुड कौंबिनेशन या मैकैनाइज्ड फर्नीचर.

– सोफे के साथ गद्दी अलग से रखें ताकि शिफ्टिंग में परेशानी न हो.

– अगर आप का मकान मालिक आप को नए सिरे से पेंट करवाने की इजाजत नहीं दे रहा तो ऐसे में आप बोरिंग रंग से ऐसे नजात पा सकते हैं. इस के लिए आप को दीवारों पर थोड़ी सी क्रिएटिविटी दिखानी होगी. दीवारों को छोटे शीशों या गुजराती या राजस्थानी प्रिंट के पैच से सजा कर उन्हें बिलकुल नया लुक दे सकते हैं.

– भारी दिखने वाले फर्नीचर से बचें, क्योंकि यह कमरे को भरा-भरा लुक देता है.

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– कमरे में स्पेस ज्यादा है तो 2 या 3 मीटिंग अरेंजमैंट कर सकते हैं. सैटी, जमीन पर गद्दे, मोढ़े, रंगीन दरियां कमरे को आकर्षक लुक दे सकते हैं.

– शिफ्टिंग के समय सामान को भरने वाले बौक्स को भी आप सजावट में इस्तेमाल कर सकते हैं. बौक्स के ऊपर गद्दा डाल कर सैटी या मेज का काम ले सकते हैं. आप चाहें तो उसे प्रैस की टेबल के रूप में उपयोग कर सकते हैं.

– डाइनिंग टेबल भी फोल्डिंग ले सकते हैं, यह जगह भी कम घेरेगी.

– बैड व सैटी में स्टोरेज बौक्स बनवाएं ताकि उन में सामान रखा जा सके.

– छोटे कमरे में लंबा फर्नीचर न रखें.

– मैगजीन, अखबार आदि के लिए स्टैंड बनवाएं.

– बच्चों के सोने के लिए बंक बैड बनवाएं. ये कम जगह घेरते हैं.

– बच्चों की स्टडी टेबल फोल्डिंग बनवाएं, जो इस्तेमाल करने के बाद दीवार पर लगाई जा सके.

– टेबल के भीतरी हिस्से में शैल्फ बनवा कर उस में कापी किताबें रखी जा सकती हैं.

– परदे खूबसूरत रंगों के हों ताकि घर बदलने पर भी इस्तेमाल में लाए जा सकें.

– किराए के घर में दीवारों, अलमारियों, दुछत्ती आदि को ढकने के लिए खूबसूरत परदे लगवाएं.

– घर में लाइटिंग की ऐसी कोई व्यवस्था न करें जो स्थाई हो, बल्कि रोशनी के लिए टेबल लैंप या स्टैंडिंग लैंप लगवाएं.

– घर के अंदर आर्टिफिशयल फूलों के गमलों का प्रयोग करें. घर छोड़ने की स्थिति में आप इन्हें ले कर भी जा सकती हैं.

– घर में कांच का ज्यादा सामान इकट्ठा न करें, क्योंकि उस के टूटने का डर ज्यादा रहता है.

– टीवी को रखने के लिए टीवी ट्राली लेने के बजाय टीवी का दीवार पर लगाने वाला स्टैंड खरीद लें ताकि यह जगह न घेरे और हर जगह आसानी से इस्तेमाल में लाया जा सके.

– घर सजाते समय सामान की लिस्ट बना लें कि आप के पास क्या क्या है और कौन सी चीज आप ने किस टांड या दुछत्ती पर रखी है. इस से दोबारा घर बदलने में आसानी होगी.

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