व्यावहारिकता की खुशबू बिखेरते रिश्ते

नीता अपने मातापिता की इकलौती संतान है. नीता के पापा इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए अब उस की मां उसी के पास रहती हैं. नीता एक कामकाजी महिला है. उस का पति विकास भी नीता की मां की जिम्मेदारियां बखूबी निभाता है. वह यह जानता है कि अगर नीता की मां खुश रहेंगी तो बदले में उस के मातापिता को नीता से उचित सम्मान मिलेगा.

बदलते परिवेश में बदलते रिश्तों का यह स्वरूप वाकई तारीफ के काबिल है. अब जब संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है और एकल परिवार तेजी से अपने पांव जमा रहे हैं, तब ऐसे में लोगों की परिपक्व होती सोच हमारे समाज के लिए एक अच्छा संकेत है.

आज हम सभी इस बात को गहराई से महसूस कर रहे हैं कि जब तक हमारा जीवन है तब तक रिश्तों की अहमियत भी है. माना कि अब हमारे रिश्तों का दायरा सिकुड़ता जा रहा है पर बचे हुए रिश्तों को बचाने की पुरजोर कोशिश करना एक सुखद पहल है.

आयशा, जो एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्चपद पर कार्यरत है, किसी से खास मतलब नहीं रखती थी. पर जब वह बीमार पड़ी तब उसे महंगी चिकित्सा के साथसाथ प्यार के दो मीठे बोल सुनने की आवश्यकता भी महसूस हुई. बस, फिर तो ठीक होते ही उस ने अपने बिगड़े रिश्तों को जिस तरह संभाला, वह सभी के लिए अनुकरणीय बन गया.

रिश्तों को संजोना : 

रिश्तों में अहं की भावना की जगह अब जिम्मेदारी ने ले ली है. हर कोई अपनी परिपक्व सोच का परिचय देता हुआ रिश्तों की सारसंभाल में लगा है. अब जब सभी ही कामकाजी हैं और सभी के पास समय की कमी है, तब ऐसे में एकदूसरे के प्रति पनपती केयरिंग की भावना ने रिश्तों को एक नए कलेवर में ढाला है. इसलिए ही तो आज की सास अपनी कामकाजी बहू की परेशानियां भलीभांति समझने लगी है और शायद इसी के चलते वह अपनी सुबह की पूजा के आडंबरों को छोड़, किचन की अन्य जिम्मेदारियां भी बखूबी निभाने लगी है. और इसलिए ही सुबह की सैर से लौटते ससुरजी भी सब्जी व फलों की खरीदारी से गुरेज नहीं करते. इस तरह घर के कामों में हाथ बंटा कर दोनों ही मुख्यधारा से जुड़ने को प्रयासरत हैं.

अगर सासससुर बेहिचक घर की सारी जिम्मेदारियों में भागीदार बनते हैं तो बदले में उन के बेटेबहू भी उन्हें किसी चीज की कमी का एहसास नहीं होने देते. इसलिए ही तो इस बार जब नीरा को शिमला में कंपनी का गैस्टहाउस रहने को मिला तो वह अपने सासससुर को भी साथ ले गई. दिल्ली की उमसभरी गरमी से नजात पा कर उस के सासससुर को बहुत अच्छा लगा और साथ ही, नीरा की बदलती सोच के कारण उन लोगों की आपसी नजदीकियों में भी इजाफा हुआ. आपस में पनप रही छोटीमोटी गलतफहमियां भी दूर हो गईं.

बदलता नजरिया : 

रीमा ने इस बार राखी का गैटटुगैदर अपने यहां करने का मन बनाया था क्योंकि उस की भाभी भी वर्किंग हैं और कोई प्रोजैक्ट वर्क चलने के कारण वे इस बार राखी पर व्यस्त थीं. रीमा की इस पहल से उस के भाईभाभी खुश थे. पर, रीमा की सास उस के यहां रहने आई हुई थीं, इसलिए वह थोड़ी हिचक रही थी. पर जब रीमा की सास को यह सब पता चला तो न सिर्फ उन्होंने रीमा को प्यारभरी झिड़की दी बल्कि खुद आगे बढ़ कर सारे कामों में उस की मदद भी की. गैटटुगैदर के बाद जब सभी ने रीमा की सास की पाककला सराही तब रीमा का भी मन भर आया.

आज जब सभी पुरानी विचारधारा को छोड़ कर खुद को परिस्थितियों के अनुसार ढालने की भावना से आगे बढ़ रहे हैं, तब ऐसे में सीमित होते रिश्तों को सहेजना ज्यादा आसान होता जा रहा है. शायद अब सभी इस बात को महसूस करने लगे हैं कि अच्छे लोगों का हमारी जिंदगी में आना अच्छा होता है. पर उन्हें संभाल कर रखना हमारा हुनर होता है.

पीछे छूटती परंपरागत सोच :

  आज इस तरह की पुरानी सोच कि, बेटी के घर का पानी पीना भी हराम है या भाईबहन के घर खाना अच्छा नहीं लगता, पर विराम लगा है. अब लोग अपनी सुविधा के अनुसार अपनी बेटी या बहन के घर जाने लगे हैं. आज अगर 1-2 बच्चों के साथ भी तथाकथित पुरानी सोच चलती रही तो हम डिप्रैशन का शिकार अवश्य ही हो जाएंगे क्योंकि सपनों का साथ व अपनों का प्यार हमें पगपग पर चाहिए और अब जब संयुक्त परिवार समाज के हाशिए पर सिमट कर रह गए हैं, तब ऐसे में ऐसी दकियानूसी सोच हमारे दिमाग का दिवालियापन ही घोषित करेगी.

काव्या की लवमैरिज है. अब चूंकि उस का मायका उस की ससुराल के पास ही है तब ऐसे में उस की मां अकसर ही उस की ससुराल आती रहती हैं क्योंकि काव्या अपने मातापिता की इकलौती संतान जो है. काव्या की शादी के बाद उस की मां अकेलेपन के कारण डिप्रैशन की शिकार हो गई थीं, इसलिए काव्या की सास खुद ही उन से मिलने चली जाती हैं या उन्हें अपने यहां बुला लेती हैं. कभीकभी तो दोनों साथसाथ लंच पर भी बाहर चली जाती हैं. 2 समधिनों को यों सहेलियों की तरह घूमते देख न सिर्फ सभी को अच्छा लगता है, बल्कि सभी की परंपरागत सोच में भी बदलाव लाता है.

आत्मकेंद्रित सोच पर लगता विराम: 

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट यह बात मानते हैं कि अब रिश्तों में निरंतर बढ़ रही आत्मकेंद्रित सोच पर विराम लगा है और शायद इसी वजह से रिश्तों का यह बदला हुआ स्वरूप उभरा है. अब हर कोईर् अपने ईगो को एकतरफ रख कर सामने वाले के बारे में सोच कर उस की सहायता करने लगा है, जो कि आज के बदलते परिवेश के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है. मालिनी और नेहा सगी बहनें हैं. उन का कोई भाई नहीं है. पिता की मृत्यु के बाद उन दोनों ने अपने घरों के पास अपनी मां को एक छोटा सा फ्लैट दिलवा दिया ताकि जरूरत पड़ने पर उन की मदद करने में उन्हें आसानी हो.

वैसे तो बड़ी होने के कारण मालिनी ही अपनी मां की ज्यादा सहायता करती थी पर इस बार जब उस की मां अचानक बीमार पड़ीं तब उस की छोटी बहन नेहा ने अपनी बीमार मां को संभाला. इस बार मालिनी मार्च माह की क्लोजिंग की वजह से अपने बैंक के कामों में बेहद बिजी थी. नेहा का खुद आगे बढ़ कर मां की सारी सारसंभाल देख मालिनी का दिल भर आया और जानेअनजाने ही उन दोनों की नजदीकियां भी बढ़ गईं.

रमेश इस बार सैलरी समय पर न मिलने पर अपने नए फ्लैट की ईएमआई नहीं भर पाया तो उस की छोटी बहन पारुल ने चुपचाप औनलाइन ईएमआई भर दी. जब रमेश को यह सब पता चला तो वह पारुल के प्रति कृतज्ञ हो उठा. बाद में जब रमेश ने पारुल को पैसे लौटाने चाहे तब पारुल गुस्सा हो गई और अपने से 8 साल बड़े भाई

रमेश से लगभग झिड़कती हुई बोली, ‘‘क्या भाई, क्या आप का घर मेरा घर नहीं है? और फिर, क्या घर की सारी जिम्मेदारियां निभाने का ठेका आप ने ही ले रखा है?’’

पारुल की इस प्यारभरी झिड़की से न सिर्फ रमेश को अच्छा लगा बल्कि उन के रिश्तों में भी एक नई ऊर्जा का संचार हुआ. आज के बदलते परिवेश में रिश्तों का यह बदला स्वरूप वाकई ही हमारे प्रगतिशील समाज की सही व सटीक तसवीर प्रस्तुत करता है. अब सभी का एकदूसरे की परेशानियों को समझते हुए आपस में सहायक बनना क्या रिश्तों में गर्मजोशी नहीं बढ़ाएगा?

समय चाहे कैसा हो, पर रिश्तों की मिठास ताउम्र बनी रहनी चाहिए क्योंकि रिश्तों के बिना हम अपने अस्तित्व की कल्पना नहीं कर सकते. इसलिए रिश्तों को बचाने के लिए कुछ समझौते भी करने पड़ें तो पीछे न हटें. हमेशा समझौता करना सीखिए क्योंकि थोड़ा सा झुक जाना किसी रिश्ते को हमेशा के लिए छोड़ देने से बहुत बेहतर है. किसी ने क्या खूब कहा है :

जिंदगी में किसी का साथ काफी है,

कंधे पर किसी का हाथ काफी है,

दूर हो या पास फर्क नहीं पड़ता,

रिश्तों का बस एहसास काफी है.

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