लेखिका- शोभा बंसल
दीपमाया मानो नींद से जागी और होंठों को दबा धीरे से बोली, “नहीं, ऐसा कुछ नहीं था. असल में जीवन ने बहुत बड़ी करवट ले ली थी.
“मैं ने रोजर को हमेशा तनाव व चिंता में देखा. तो सोचा, शायद काम का तनाव होगा क्योंकि खर्चे भी बढ़ गए थे.
“फिर एक दिन मैं ने रोजर के मोबाइल पर उस के अपने एक खास दोस्त के साथ लिपलौकिंग किसिंग का बहुत ही वाहियात फोटो देखा तो मेरा माथा ठनका.
“मैं तो जैसे आकाश से गिरी. यह तो रोजर का नया रूप था. इसी कारण बच्चे होने के बाद हम दोनों के एकदो बार जो भी संबंध बने थे उन में वह प्यार व रोमांच की जगह एक एथलीट वाली फीलिंग थी.
“फिर भी, मुझे फोटो वाली बात एक झूठ ही लग रही थी. इस झूठ को ही सच में न पाने के लिए मैं ने एक डिटैक्टिव एजेंसी की मदद ली.
“पता चला कि रोजर बाय-सैक्सुअल है, गे नहीं. मेरे पैरोंतले से जमीन निकल गई.
“इस प्यार के चक्कर में न मैं घर की रही न घाट की. गोवा तो मेरे लिए परदेस था. किस के पास जाती, फरियाद करती कि मेरी खुशी को सही दिशा दिखा दो,” यह कह माया ने अपना सिर थाम लिया.
फिर पानी का घूंट ले कर लंबी सांस भरी और बताने लगी, “जब एक दिन यह तनाव मेरे लिए असहनीय हो गया तो मैं ने रोजर से सीधेसीधे कौन्फ्रौंट कर लिया. और सब तहसनहस हो गया, मानो बवंडर ही आ गया.
“रोजर की आंखों में खून उभर आया. उस ने बिना किसी लागलपेट के इस सचाई को स्वीकार कर लिया और कहा कि ‘यह तो सोसाइटी में आम बात है. अकसर शादी के कुछ वर्षों बाद जब जिंदगी में बोरियत भर जाती है और प्यार बेरंगा हो जाता है तो ज्यादातर पुरुष यही रवैया अपनाते हैं. उस के अमीर मौसा ने कभी उस के साथ बचपन में यही किया था, तब भी उस के मातापिता ने उस की शिकायत को नौर्मल लिया और चुप रहने को कहा था.’
“फिर रोजर ने दीपमाया को धमकी देते सख्त हिदायत दी कि ‘इस छोटी सी घटना को बहुत बड़ा इश्यू न बनाओ. आपसी संबंधों की बात और घर की बात घर में ही रहने दे. बाहर लोगों को पता चलेगा तो सोसाइटी में बदनामी होगी.’ इस सब से मैं बेहद टूट गई.”
“कहां तो मैं सोच रही थी कि अपनी गलती के परदाफाश होने पर रोजर मुझ से माफी मांगेगा या एक प्रैंक बोल कर मुझ को सीने से लगा लेगा, पर यहां तो सब ही उलटपुलट हो गया. कितनी ही रातें मैं ने जागते काटीं.
“जब पीड़ा असहनीय हो गई तो मैं ने एक सैक्सोलौजिस्ट दोस्त की सहायता ली. उस ने मुझे यही सलाह दी कि रोजर ने मुझे कोई धोखा नहीं दिया वह तो अपना वैवाहिक जीवन नौर्मल ही व्यतीत कर रहा है. उस की कुछ शरीरिक इच्छाएं हैं जिन को वह अपने तरीके से पूरा कर रहा है. मुझे उस की उस जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. मुझे इस सब को स्वीकार कर सब्र से काम लेना चाहिए और अपने प्यार से रोजर को वापस अपनी तरफ खींचना चाहिए.
“रोजर ने भी प्रौमिस किया कि वह यह सब छोड़ अब अपनी शादी और घर गृहस्थी पर फोकस करेगा.
“पर कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है. घर परेशानियों व तनाव के सैलाब में डूबने लगा.
मैं ने अपने रिश्ते को बेइंतहा प्यार, इसरार, इकरार से रिवाइव करने की कोशिश की. मैं हरदम इसी चिंता में रहती कि कहीं मेरे रोजर को एचआईवी या एड्स की बीमारी न पकड़ ले या वह ड्रग्स लेना न शुरू कर दे. हमारे बच्चों पर क्या असर होगा? कहीं कोई रोजर का दोस्त हमारे बच्चे को अपना शिकार न बना ले?
“इन सब बैटन का मेरी मानसिक व शारीरिक सेहत पर भी असर दिखने लगा.
“आखिर परेशान हो मैं ने एक दिन जिंदगी की लगाम थामने के लिए एक थेरैपिस्ट की सहायता लेनी शुरू कर दी. उस ने मुझे बताया कि मैं इनसिक्योरिटी की गिरफ्त में पड़ रही थी कि कहीं मेरा रोजर एक दिन मुझे अकेला छोड़ अपनी नई दुनिया में शिफ्ट कर जाएगा, फिर समाज क्या कहेगा, वह कहां जाएगी? इस के लिए अब उसे अपना आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना बहुत जरूरी था.
“फिर आगे की मीटिंग में उसी थेरैपिस्ट ने बताया कि ऐसे मैरिटल क्राइसिस या वैवाहिक उथलपुथल में पत्नी को ही सामाजिक, आर्थिक व भावनात्मक प्रताड़ना सहनी पड़ती है. ज्यादातर ऐसे रिश्ते का अंत अलगाव या डिवोर्स होता है.
“अपना अंधा भविष्य देख मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया. जिस के प्यार के लिए मैं अपनों के मुंह पर कालिख पोत कर घर छोड़ भागी थी, ऐसे में घरवाले क्या मुझे गले लगाते.
“कितनी ही बार हताशा में मैं ने गहरे समंदर के बीचोंबीच समाधि लेने का मन बनाया. मेरा कोई न था. पर बच्चों का प्यार मुझे रोक लेता. इसी तरह कई वर्ष निकल गए. बच्चे बड़े होने लगे थे. वे भी हम दोनों के बीच आई दरार को समझ रहे थे.
“रोजर के दोगले व्यवहार से मैं भारत से भाग कर ऐसी जगह मुंह छिपाना चाहती थी जहां मुझे कोई न पहचानता हो. तभी मुझे नेपाल के एक कालेज में गणित के लैक्चरर की नौकरी मिल गई. उन दिनों तो नेपाल आनाजाना आसान था और यहां की नागरिकता बिना किसी परेशानी के मिल गई.
“रोजर ने दोनों बच्चे अपने पास ही रख लिए कि वह परदेस में अकेली क्याक्या झेलेगी और फिर जब उस का मन अच्छा हो जाए तो उस के पास वापस आ जाए. पर यहां के लोगों और यहां की सभ्यता में मुझे बेहद सुकून मिला. फिर, बस, वार्डन की नौकरी पाते ही मेरा अकेलापन भी दूर भागने लगा. अब मैं यहीं पर खुश हूं.” यह सब बता कर वह मुसकरा दी.
मिली को भी अच्छा लगा कि उस की प्यारी सखी दीपमाया कम से कम अपने दुख से उबर तो पाई.
अगले दिन मौका पाते ही फिर मिली ने दीपमाया को पकड़ लिया, “अच्छा चलो, जो हुआ सो हुआ. अब यह बताओ कि तुम्हारे बच्चे क्या कर रहे हैं. उन का क्या कहना है तुम्हारे और रोजर के रिश्ते को ले कर?”
दीपमाया ने पहले तो बहुत टालमटोल किया. फिर मिली के जोर देने पर बताया कि उस का बेटा तो अब विदेश में ही सैटल हो गया है. वह अपने पापा के दोहरे जीवन के बारे में सब जानता है लेकिन इस विषय पर कुछ बात नहीं करना चाहता और चुप्पी साध कर बैठा है.
बेटी अपने पापा के साथ गोवा में होटल का व्यवसाय देखती है और वह हमेशा अपनी मम्मी यानी मुझ को ही गलत समझती आई है कि मैं ने उस के पापा को उन के मनमुताबिक जीवन जीने का अवसर नहीं दिया और बिना वजह उन को बदनाम कर रही हूं.
मिली ने फिर सवाल किया, “अच्छा, तो अब फिर रोजर से तुम्हारी मुलाकात होती है या नहीं?” यह सुन दीपमाया मुसकरा पड़ी, “मिली, अब यह सब जान कर क्या करेगी?”
फिर दीपमाया ने आगे कहा, “रोजर को मैं छोड़ कर आई थी. रोजर ने तो मुझ को कभी नहीं छोड़ा. यहां भी हर पल उस का अदृश्य साया मेरे साथ परछाई बन रहता है. उस की पलपल की खबर रखता है.”
और फिर उदास मन से मैं कहने लगी, “अब तो शायद मेरी जिंदगी का आखिरी वक्त चल रहा है क्योंकि मैं सर्विक्स कैंसर से पीड़ित हूं. जब से रोजर को इस का पता चला है तब से वह ज्यादा ही केयरिंग हो गया है. वह मुझे अपने पास गोवा बुला रहा है. मैं वहां जाना नहीं चाहती.”
यह सुन मिली ने दीपमाया को दिलासा दी कि, “कुछ बातें जो अपने वश में न हों उन्हें ऊपर वाले पर छोड़ देना चाहिए. हो सकता है तुम्हारा ऐसा ही विवाहित जीवन व्यतीत होना हो. हर दोस्ती में सैक्स तो जरूरी नहीं. जरूरी है सच्चा प्यार. तुम्हारा रोजर तुम्हें अभी भी सच्चा प्यार करता है. अब यहां अकेले घुटने से अच्छा है तुम उस से फिर दोस्ती कर गोवा आनाजाना शुरू करो, ताकि पुराने रिश्ता फिर से मजबूत हो सके. वर्तमान समय में पतिपत्नी का रिश्ता ही अटूट और सच्चा है, इस बात को अपने पल्ले गांठ बांध कर रख लो.
“फिर कभी अपने को अकेला मत महसूस करना. यह तुम्हारी सखी है न, तुम्हारे साथ जिंदगी के आखिरी पल तक तुम्हारा साथ निभाएगी.” यह कह मिली ने दीपमाया की ठंडी गीली हथेलियों को अपने गरम हाथों में थाम लिया.