Film Review: फुकरे 3- पंकज त्रिपाठी, रिचा चड्ढा, वरूण शर्मा व पुलकित सम्राट की शानदार अदाकारी

रेटिंग: पांच में से साढ़े तीन स्टार

निर्माताः फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी

लेखकः विपुल विग

निर्देशकः मृगदीप सिंह लांबा

कलाकारःरिचा चड्ढा,पंकज त्रिपाठी,वरूण शर्मा,पुलकित सम्राट,मनजोत सिंह, मनु रिषि, अली फजल,

अवधिः दो घंटे तीस मिनट

जल संकट से पूरा विश्व जूझ रहा है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जल संकट के मामले में पूरे विश्व में भारत तेरहवें स्थान में है. इस जल संकट की मूल वजह में विकास के नाम पर खड़ी हो रही सीमेंट की उंची उंची इमारते भी हैं. इन इमारतों के निवासियो को जल पूर्ति नही हो पा रही है.पानी का स्तर जमीन में काफी नीचे जा रहा है तो दूसरी तरफ ‘टैंकर पानी’ की लाबी भी हावी है. इस जल संकट की समस्या को हास्य के माध्यम से फिल्मकार मृगदीप सिहं लांबा अपनी फिल्म ‘‘फुकरे 3’’ में बेहतरीन तरीके से उकेरा है.

फिल्मकार ने हास्य के माध्यम से जल संकट के लिए ‘राजनीति’ और ‘पानी टैंकर’ की लॉबी की मिली भगत की ओर भी इशारा किया है. ‘फुकरे 3’, सफल फ्रेंचाइजी ‘फुकरे’ का ही तीसरा हिस्सा है. ‘फुकरे’ का निर्देशन मृगदीप सिंह लांबा ने ही किया था. इस हास्य फिल्म को देखकर मनोरंजन पा सकते हैं. लेकिन ‘फुकरे 3’ उन्हे पसंद नही आएगी, जो कि अपने दिमाग का उपयोग करते हुए दृष्यों को तर्क की कसौटी पर कसने बैठेंगे.

कहानीः

फिल्म ‘फुकरे 3‘ की कहानी वहीं से शुरू होती है जहां पर ‘फुकरे रिटर्न्स‘  की कहानी खत्म हुई थी. कहानी शुरू होने से पहले ‘फुकरे’ और ‘फकरे रिटर्नस’ की कहानी का सार बताया जाता है. खैर,दिल्ली के  मुख्यमंत्री ने फुकरे की टीम को ‘जनता डिपार्टमेंटल स्टोर’ खुलवा दिया था,लेकिन वह स्टोर ठीक से नहीं चलता है.लेकिन इस फिल्म में इस स्टोर से डिपार्ट और मेंटल अलग हो चुके है. फुकरे फिर से फुकरागीरी कर रहे हैं.

वहीं भोली पंजाबन अब राजनीति में आकर अपने साम्राज्य को अलग ही अंदाज में बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है. चूचा (वरूण शर्मा ) के देजाचू का जादू अब भी चल रहा है. भोली पंजाबन(  रिचा चड्ढा) गैंगस्टर से राजनेता बन चुनाव लड़ रही है. उसका वादा है कि ‘जल संसाधन मंत्री’ बनते ही वह ‘पानी टैंकर’ लौबी को खत्म कर हर इंसान को पानी मुहैयया करवाएंगी. जैसा कि अक्सर देखा गया है कि हर राजनेता के चुनाव लड़ने का खर्च कोई दूसरा इंसान ही उठाता है. तो उसी तरह से इस फिल्म में भोली पंजाबन के चुनाव का वित्तीय प्रबंधन एक माफिया करने को राजी होता है. यह माफिया चुनाव में अपने इस इनवेस्टमेंट पर मोटा रिटर्न पाने का सपना देख रहा है.

भोली पंजाबन को पंडित जी से उम्मीद है कि वह अपनी फुकरे टीम के साथ उनके चुनाव प्रचार को गति देंगें. मगर चुचा की हरकतों के चलते आम जनता के बीच चूचा लोकप्रिय हो जाता है. जिसके चलते अब हनी(पुलकित सम्राट ) के दिमाग में आता है कि भोली पंजाबन को हराने के लिए चूचा को चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया जाए.

हनी के साथ ही पंडित जी(पंकज त्रिपाठी) और लाली(मनजोत सिंह ) को लगता है कि अगर भोली पंजाबन चुनाव जीत गयी तो वह  अपनी ताकत व सत्ता का दुरुपयोग ही करेगी. लेकिन राजनीति बहुत कुत्ती चीज है. भोली पंजाबन को राजनीति के गुर पता है. वह चूचा से ही सच कबूल करवाकर  एक ऐसा जाल फेंकती है जिसमें पंडितजी, चूचा,हनी व लाली फंसकर दक्षिण अफ्रीका पहुंच जाते हैं. जहां एक दक्षिण अफीकी लड़की मुम्बासा के चूचा से प्यार करने लगती है. और चूचा के हाथ एक हीरा लग जाता है,जिसे वह मुंह में डालकर डकार जाता है.

इसी के साथ इन्हे अहसास हो जाता है कि भोली पंजाबन ने चुनाव के मैदान से उन्हे बाहर का रास्ता दिखाने के लिए उन्हे इस जाल में फंसाया है.

अफ्रीका में कहानी में कई मोड़ आते हैं और एक मोड़ पर इन फुकरों को पता चलता है कि अब चूचा के पास नई ताकत आ गयी है,जिसके चलते चूचा के पेषाब व पानी के मिश्रण से पेट्रोल जैसा ज्वलनशील पदार्थ बनता है.इस वजह से भी कहानी में नया मोड़ आता है.पर भेली पंजाबन की चाल का अहसास होते ही फुकरे टीम वापस दिल्ली पहुॅचती हैं.उसके बाद कहानी कई मोड़ांे से होकर गुजरती है.एक तरफ पानी टैंकर लॉबी का मुखिया अपने तरीके से भोली पंजाबन पर दबाव बनाए हुए हैं.तो वही मुख्यमंत्री,भोली पंजाबन के साथ होने का ढोंग रच रहे हैं.जबकि भोली पंजाबन को चूचा से निपटना है.

लेखन व निर्देशन

‘फकरे रिर्टनस’ में से बेहतर है ‘फकरे 3’.लेखक विपुल विग ने बेहतरीन पटकथा व हास्य का पुट पैदा करने वालेे संवादों के माध्यम से  लोगों को हंसाने में कामयाब रहे हैं. तो वहीं वह जल संकट के साथ ही ‘पानी टैंकर’ लौबी और राजनीतिक गंठजोड़ पर का कटाक्ष करने से नही चूके हैं. बेहतरीन पटकथा को कलाकारों की मदद से परदे पर अच्छे ढंग से उकेरने में निर्देषक मृगदीप सिंह लांबा सफल रहे हैं.

लेखक व निर्देषक दोनों को पता है कि हास्य के पंच का उपयोग किस तरह करके हास्य को पैदा किया जाए. लेकिन लेखक भोली पंजाबन के चरित्र को ठीक से नही लिख पाए. इतना ही नही ‘फुकरे’ की पिछली दो फिल्मों में फुकरे टीम में डर व  घबराहट नजर आती थी,जो कि फिल्म को ज्यादा रोचक बनाती थी,वह इस बार गायब है.इसके अलावा क्लायमेक्स भी गड़बड़ा गया है.

फिर भी हवाई जहाज के दृष्यों के साथ ही  भोली पंजाबन व चूचा की षादी वाले दृष्य काफी अच्छे बन पड़े हैं.दक्षिण अफीकी लड़की मुम्बासा के चूचा से प्यार करने के दृष्य जबरन ठॅूंसे हुए लगते हैं. वास्तव में लेखक विपुल विग प्रेम कहानी को सही अंदाज में लिख नहीं पाए. इंटरवल से पहले फिल्म ज्यादा हंसाती है,इंटरवल के बाद सामाजिक संदेष पिरोने के चक्कर में लेखक व निर्देशक थोड़ा मार खा गए हैं.

इस फिल्म की कमजोर कड़ी इसके एडीटर व संगीतकार हैं. फिल्म का संगीत प्रभावित नहीं करता. एडीटर मनन अष्विन मेहता ने थोड़ी सी सूझबूझ दिखायी होती,तो फिल्म में चार चांद लग जाते.अफ्रीका का हिस्सा कुछ ज्यादा ही खींचा हुआ है. कैमरामैन अमलेंदु चौधरी बधाई के पात्र हैं.

अभिनयः

भोली पंजाबन कके किरदार में एक बार फिर रिचा चड्ढा अपना प्रभाव छोड़ जाती है.जबकि इस बार उन्हे पटकथा व संवादों का सही सहयोग नही मिल पाया.उनके किरदार को ठीक से लिखा नही गया. इसमें वह खूबसूरत भी लगी हैं. पंडित की भूमिका में पंकज त्रिपाठी ने अपने सहज अभिनय से जान डाल दी है. वह अंग्रेजी की पंच लाइन इतनी सहजता से बोलते हैं कि सुनकर हंसी आ ही जाती है. चूचा की भूमिका मे वरुण शर्मा ने भी शानदार प्रदर्षन किया है. पर कई दृष्यों में वह ओवर एक्टिंग करते हुए नजर आते हैं.हनी के किरदार में पुलकित सम्राट ने हास्य में बेहतरीन वापसी की है.लाली की भूमिका में मनजोत सिंह का काम सराहनीय हैं.

Richa Chadha ने लगाई पति के नाम की मेहंदी, नाचते दिखे Ali Fazal

बॉलीवुड एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा (Richa Chadha) जल्द ही अपने लौंग टाइम बौयफ्रेंड और एक्टर अली फजल (Ali Fazal) संग शादी के बंधन में बंधने वाली है. वहीं दोनों की शादी की रस्मों की शुरुआत भी हो गई है, जिसकी फोटोज और वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. इसी बीच एक्ट्रेस ने अपनी मेहंदी की फोटो और वीडियो फैंस के साथ शेयर की हैं. आइए आपको दिखाते हैं रिचा चड्ढा और अली फजल की मेहंदी से जुड़ी अपडेट्स (Ali Fazal-Richa Chadha Mehandi Photos…

एक्ट्रेस ने लगाई मेहंदी

लगभग 10 साल से एक दूसरे को डेट कर रहे एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा और एक्टर अली फजल 4 अक्टूबर (Ali Fazal-Richa Chadha Wedding) को दिल्ली में सात फेरे लेने वाले हैं, जिसके चलते 29 सितंबर को शादी की रस्मों की शुरुआत के साथ मेहंदी सेलिब्रेशन देखने को मिला. दरअसल, एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा और अली फजल ने अपने-अपने हाथों में एक दूसरे के नाम का पहला अक्षर लिखवाया है, जिसकी फोटो और वीडियो एक्ट्रेस ने सोशलमीडिया पर फैंस के साथ शेयर की है.

नाचते दिखे अली फजल

 

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जहां एक तरफ एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा अपनी मेहंदी का डिजाइन फैंस के साथ शेयर करते हुए फ्लौंट करती दिखीं तो वहीं एक्टर अली फजल ढोल की धुन पर नाचते हुए नजर आए. एक्टर की ये वीडियो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है, जिसे देखकर फैंस दोनों को बधाई देते दिख रहे हैं. वहीं शादी की बात करें तो दिल्ली में सात फेरे लेने के बाद ये सेलेब्रिटी कपल मुंबई में ग्रैंड रिसेप्शन देने वाला है, जिसमें कई बौलीवुड सेलेब्स के शिरकत करने की उम्मीद है.

बता दें, एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा और अली फजल की पहली मुलाकात फिल्म फुकरे के दौरान हुई थी, जिसके बाद दोनों ने करीब 10 सालों तक एक दूसरे को डेट किया. हालांकि 2 साल पहले कपल ने शादी के प्लान्स बनाए थे. लेकिन कोरोना के कारण यह टल गया. लेकिन अब वह दिल्ली में ग्रैंड वैडिंग  (Ali Fazal-Richa Chadha Wedding) कर रहे हैं, जिसकी फोटोज और वीडियो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं.

वजन कम करते ही बदला ‘भोली पंजाबन’ Richa Chadha का अंदाज

बौलीवुड एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा (Richa Chadha) अपने रिलेशनशिप को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. वहीं बीते दिनों उनकी शादी की खबर भी सोशलमीडिया पर छाई हुई थी. इसी बीच एक्ट्रेस ने नया फोटोशूट फैंस के साथ शेयर किया है, जिसमें वह बोल्ड लुक में नजर आ रही हैं. वहीं फैंस का कहना है कि ऋचा चड्ढा ने काफी वजन कम कर लिया है. आइए आपको दिखाते हैं फोटोशूट की झलक…

वजन कम करके दिखाया बोल्ड अंदाज

 

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एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा के नए फोटोशूट की बात करें तो डीप ने क वाली थाई-हाई स्लिट ड्रेस में वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं. फैंस को ऋचा चड्ढा का बोल्ड अवतार काफी पसंद आ रहा है. वहीं खबरों की मानें तो एक्ट्रेस ने लगभग 15 किलो वजन कम कर लिया है, जिसके चलते वह फोटोशूट में फिटनेस दिखाती नजर आ रही हैं. हालांकि फोटोज को देखकर फैंस भी उनके वेट ट्रांसफौर्मेशन का अंदाजा लगा रहे हैं.

 

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फैशन है खास

 

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इंडियन हो या वेस्टर्न ऋचा चड्ढा हर लुक कैरी करती हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लगती हैं. हालांकि अब वेट ट्रांसफौर्मेशन के बाद ऋचा चड्ढा का लुक बेहद खास होने वाला है, जिसका अंदाजा एक्ट्रेस के इस बोल्ड फोटोशूट से लगाया जा सकता है.

फुकरे 3 में आएंगी नजर

 

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फिल्म ‘फुकरे’ में ‘भोली पंजाबन’ का किरदार निभाने वाली ऋचा चड्ढा अपने इस रोल के लिए काफी पौपुलर हैं. वहीं खबरे हैं कि जल्द ही ‘फुकरे’ 3 भी दर्शकों का दिल जीतने के लिए आने वाली है. हालांकि अभी फिल्म की शूटिंग चल रही हैं

 रिलेशनशिप के चलते बटोरती हैं सुर्खियां

 

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एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा, अली फजल संग रिलेशनशिप में हैं, जिसके चलते वह सुर्खियों में रहती हैं. हालांकि सोशलमीडिया पर अक्सर उनकी शादी की खबरें आती रहती हैं. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि दोनों साल 2022 में शादी करने वाले हैं. लेकिन देखना होगा कि एक्ट्रेस कब शादी के बंधन में बंधती हैं.

REVIEW: जानें कैसी हैं रिचा चड्ढा और रोनित रौय की वेब सीरीज ‘Candy’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः विपुल डी शाह, अश्विन वर्दे व राजेश बहल

निर्देशकः अशीश आर शुक्ला

कलाकारः रिचा चड्ढा, रोनित रॉय, मनु रिषि चड्ढा, गोपाल दत्त तिवारी, नकुल रोशन सहदेव, रिद्धि कुमार, अंजू अलवा नायक, विजयंत कोहली, अब्बास अली गजनवी,  आदित्य राजेंद्र नंदा, बोधिसत्व शर्मा, मिहिर आहुजा, प्रसन्ना बिस्ट,  आएशा प्रदीप कदुसकर,  राजकुमार शर्मा,  मिखाइल कंटू,  आदित्य सियाल व अन्य

अवधिः तीन घंटे दस मिनट,  35 से 44 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः वूट सेलेक्ट

कई डाक्यूमेंट्री व एड फिल्में का निर्देशन करने के बाद फिल्म ‘‘बहुत हुआ सम्मान’’ और चर्चित वेब सीरीज ‘‘अनदेखी’’के निर्देशक अशीश आर शुक्ला इस बार ड्रग्स,  हत्या,  रहस्य,  आशा,  भय,  राजनीति से भरपूर रहस्यप्रधान रोमांचक वेब सीरीज ‘‘कैंडी’’ का पहला सीजन लेकर आए हैं, जो कि आठ सितंबर से ‘‘वूट सेलेक्ट’’पर स्ट्रीम होगी.

कहानीः

वेब सीरीज ‘‘कैंडी’’की कहानी है हिमालय की ठंड सर्दियों जैसे एक काल्पनिक शहर रूद्रकुंड की. कहानी के केंद्र में रूद्रकुंड शहर स्थित रूद्र वैली हाई स्कूल के एक छात्र मेहुल अवस्थी(मिहिर आहुजा  )की भयानक हत्या से जुड़ा रहस्य है. रूद्र कंुड की डीएसपी रत्ना संखवार (रिचा चड्ढा), हवलदार आत्मानाथ (राजकुमार शर्मा )व दूसरे पुलिस कर्मियों के साथ मेहुल की हत्या की खबर मिलने पर जंगल  में पहुॅचती है, जहां घने जंगल के बीच एक पेड़ से लटकी हुई मेहुल अवस्थी की लाश मिलती है. पुलिस अपनी जांच की कार्यवाही शुरू करती है, तभी उसी जगह दूसरे पुलिसकर्मी के साथ स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक जयंत पारिख (रोनित रॉय बसु )पहुॅच जाते हैं. जयंत पारिख की बेटी बिन्नी ड्ग्स की लत के चलते आग लगाकर मर चुकी है,  जिसके सदमें से उनकी पत्नी सोनालिखा पारिख(अंजु अल्वा नाइक)आज तक उबर नही पायी है. जयंत पारिख भी अपनी बेटी को बहुत चाहते थे. इसलिए मोहित की हत्या को लेकर जयंत पारिख कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी लेने लगते हैं. इधर डीएसपी अपनी जांच करते हुए स्कूल पहुंचकर चर्च के फादर मारकस (विजयंत कोहली), स्कूल के प्रिंसिपल थॉमस (गोपाल दत्त तिवारी)के अलावा लड़कांे व लड़कियों से बात करती है. मेहुल अवस्थी को परेशान करने वाले तीन लड़कों इमरान अहमद(बोधिसत्व शर्मा ) , संजय सोनोवाल (आदित्य राजेंद्र नंदा)व जॉन(अब्बास अली)से पूछ ताछ करती है. मेहुल के स्कूल के लॉकर से कैंडी का पैकेट लेकर जाती है और यह पैकेट वह वायु राणावत(नकुल रोशन सहदेव )को दे देती है. अंततः चर्चा शुरू हो जाती है कि मसान ने हत्या की है. पुलिस अफसर रत्ना संखावर और वायु के बीच गहरे संबंध हैं. पता चलता है कि ड्ग्स युक्त कैंडी बनाने व बेचने का काम वायु राणावत कर रहा है, जो कि स्थानीय विधायक मणि राणावत (मनु रिषि चड्ढा )का बेटा है. विधायक होने के साथ साथ मणि शहर के सबसे शक्तिशाली व्यवसायी हंै. वह चाहते हैं कि रूद्रकंुड उनकी उंगलियों के इशारे पर चले. अपनी सत्ता को काबिज रखने के लिए उन्होने बहुत पाप भी किए हैं.

तो वहीं मेहुल अवस्थी की खास दोस्त कलकी रावत(रिद्धि कुमार )भी गायब है. कलकी रात के अंधेरे में रोते हुए बदहवाश सी जयंत पारिख के पास पहॅुंचती है. कलकी को जयंत अपने घर मे छिपाकर रखता है. पता चलता है कि वायु द्वारा जंगल में आयोजित एक पार्टी में छिपकर मेहुल व कलकी, वायु के खिलाफ ड्ग्स से जुड़े होने के सबूत जमा कर रहे थे, जब वहां से बाहर निकलने लगते हैं, तो एक लड़की जबरन कलकी को कैंडी चटा देती है. मेहुल व कलकी जंगल में लेट कर बातें करते हैं और उनके बीच शारीरिक संबंध बनते हैं. उसके बाद किसी ने मेहुल की हत्या कर दी. सच जानने के लिए प्रयासरत जयंत की वायु व उसके गुंडे पिटायी कर देते हैं. जयंत को वायु के खिलाफ सबूत मिल जाता है. पर रत्ना को जयंत के सबूतों में रूचि नही है. इधर मेहुल की हत्या के लिए कलकी के पिता नरेश रावत (पवन कुमार सिंह) के खिलाफ सबूत मिलते हैं, वायु ही नरेश को पकड़कर रत्ना के हवाले करता है. जयंत की जंाच के अनुसार नरेश निर्दोष है. इसलिए जयंत सारे सबूत गुस्से मंे पुलिस स्टेशन आकर रत्ना शंखवार को दे देता है. रत्नी शंखवार वह सबूत आत्मानाथ को रखने के लिए देती है. मणि राणावत पुलिस स्टेशन में बंद नरेश रावत से मिलने आते हैं. रात में रूद्र कंुड के लोग ‘खून का बदला खून’के नारे के साथ पुलिस स्टेशन पर हमलाकर सबूत के साथ ही नरेश को ले जाकर पुल के उपर बांधकर जिंदा जला देते हैं. यह सब जयंत व कलकी देखकर भी कुछ नही कर पाते. इसके बाद मणि राणावत अपनी राजनीतिक चाल चलता है.  रत्ना को सस्पंेड कर उनके खिलाफ जांच बैठायी जाती है. तब रत्ना को अहसास होता है कि वह गलत लोगांेे के हाथ बिकी हुई थी और अब उसका जमीर जागता है. अब जयंत व रत्ना मिलकर सच की तलाश शुरू करते हैं. तो वहीं नए नए रहस्य सामने आते हैं. हत्याओं का सिलसिला बढ़ जाता है.  जयंत की चर्च के फादर मार्केस से भी बहस होती है. प्रिंसिपल से भी होती है. इधर जिन जिन लोगों पर दर्शक को शक होता है, वह मारे जाने लगते हैं. कहानी में कई मोड़ आते हैं. कई चेहरो ंपर से मुखौटा उतरता है. रहस्य,  डर,  उम्मीद, राजनीति,  इंसानी महत्वाकांक्षा, ड्ग्स का कारोबार,  किशोर वय लड़कियो संग सेक्स करने के अपराध सहित बहुत कुछ सामने आता जाता है.

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लेखन व निर्देशनः

पटकथा लेखकद्वय अग्रिम जोशी और देबोजीत दास पुरकायस्थ साधुवाद के पात्र है. लेखकों ने लोककथा और आधुनिक अपराध कथ का बेहतरीन संमिश्रण किया है. इस वेब सीरीज में काल्पनिक शहर रूद्रकंुड के माध्यम से लेखक ने राजनीतिक गंध,  हत्या, राजनीति का अपराधीकरण, उम्मीद, डर, अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए इंसान किस हद तक जा सकता है, रिश्तों की हत्या से लेकर धर्म की आड़ मेंं होने वाले गंभीर आपराध जैसे सारे मुद्दों को बाखूबी पेश करते हुए रहस्य व रोमांच को बरकरार रखा है. इसमें इस बात का भी बाखूबी चित्रण है कि ड्ग्स माफिया किस तरह स्कूली बच्चों को ड्ग्स की लत का शिकार बनाकर बर्बाद कर रहा है. वेब सीरीज ‘कैंडी’ की कहानी के केंद्र में आवासीय विद्यालय,  किशोरवय बच्चे व ड्रग्स है. लेकिन निर्देशक आशीश आर शुक्ला ने कहीं भी ड्ग्स के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए उपदेशात्मक भाषणबाजी का सहारा नही लिया है.

कहानी की शुरूआत धीमी गति से होती है, मगर दर्शक बोरनही होता. उसका दिमाग सच जानने की  उत्सुकतावश वेब सीरीज ‘कैंडी’ के साथ जुड़ा रहता है. आठवें एपीसोड तक दर्शक असली हत्यारे तक नही पहुंच पाता और जब आठवें एपीसोड के अंत में सच सामने आता है, तो दर्शक हैरान रह जाता है. यह कुशल लेखन व अशीश आर शुक्ला के उत्कृष्ट निर्देशन के ही चलते संभव हो पाया है. लेखक व निर्देशक ने हर चरित्र को कई परतों में लपेट कर रहस्य को गहराने का काम किया है. निर्देशक ने कथानक के उपयुक्त तथा रहस्य को गहराने के लिए लोकेशन का भी बेहतरीन उपयोग किया है. घने और अंधेरे जंगल,  घुमावदार सड़कें,  सुरम्य पहाड़ियाँ और नैनीताल की भव्य जमी हुई झील का निर्देशक ने अपनी कथा को बयंा करने के लिए बेहतर तरीके से उपयोग किया है.  इमोशंस भी कमाल का पिरोया गया है. काल्पनिक कहानी होते हुए भी वास्तविकता का आभास कराती है. जयंत पारिख व उनकी पत्नी सोनालिखा के बीच के पारिवारिक रिश्तों को ठीक से नही गढ़ा गया है. जबकि लेखक व निर्देशक ने इसमें स्वाभाविक तरीके से अपरंपरागत संबंधों को उकेरा है. इस वेब सीरीज को देखकर दर्शक यह कहे बिना नही रह सकता कि रूद्रकुंड  शहर में जो दिखता है, वह होता नहीं. .

नैनीताल में फिल्मायी गयी इस वेब सीरीज के कैमरामैन बधाई के पात्र हैं, उन्होने यहां की प्राकृतिक सुंदरता को इस तरह से कैमरे के माध्यम से पकड़ा है कि दर्शक इस जगह जाने के लिए लालायित हो उठता है.

 

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अभिनयः

कुटिल व सशक्त पुलिस अफसर तथा सिंगल मदर रत्ना शंखावर के किरदार को अपने शानदार अभिनय से रिचा चड्ढा ने जीवंतता प्रदान की है. कई दृश्यों में रिचा अपने चेहरे के भावों से बहुत कुछ कह जाती हैं. रिचा ने पुलिस अफसर के कर्तव्य को निभाने वक्त अपने रोमांस की कमजोरी के चलते अपराधी को नजरंदाज करने के दृश्यों को काफी वास्तविकता प्रदान की है. सच को सामने लाने और स्कूली बच्चों को ड्ग्स के चंगुल से छुड़ाने के लिए तड़पते शिक्षक जयंत के किरदार में रोनित रॉय ने एक बार फिर अपनी अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता का परिचय दिया है. कलकी के किरदार में रिद्धि कुमार अपने अभिनय से आश्चर्य चकित करती हैं. कई दृश्यों में वह बिना कुछ कहें बहुत कुछ कह जाती हैं. ड्ग्स व सिगरेट में डूबे रहने वाले वायु राणावत के किरदार के साथ नकुल रोशन सहदेव ने पूरा न्याय किया है. नकुल ने अपने दांतों, बॉडी लैंगवेज ,  बार-बार आँख झपकना और किसी की परवाह न करना आदि के माध्यम से अपने किरदार वायु को एक  अपराधी के रूप में पेश करने में सफल रहे हैं. कई दृश्यों में वह अपने अभिनय से रहस्य को गहराई प्रदान करते हैं. मनु ऋषि चड्ढा अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. अन्य सह कलाकार भी अपनी अपनी जगह सही हैं.

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REVIEW: रिचा चड्ढा और अरूणोदय सिंह की बेहतरीन एक्टिंग वाली फिल्म ‘लाहौर कॉन्फिडेंशियल’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः अजय जी राय व जार पिक्चर्स

निर्देशकः कुणाल कोहली

कलाकारः रिचा चड्ढा, अरूणोदय सिंह, करिश्मा तन्ना, खालिद सिद्दिकी

अवधिः एक घंटा नौ मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

हनी ट्रैप के अलावा भारत व पाकिस्तान के बीच दुश्मनी, आतंकवाद और आईएसआई और रॉ को कहानी का केंद्र बनाकर कई फिल्में बनायी जा चुकी हैं. मगर इन्ही विषयों पर कुणाल कोहली एक अलग नजरिए वाली स्पाई फिल्म‘‘लाहौर कॉन्फिडेंशियल’’लेकर आए हैं, जिसे ‘जी 5’पर देखा जा सकता है.

कहानीः

कहानी शुरू होती है पाकिस्तान स्थित  भारतीय दूतावास से, जहां सभी पाकिस्तानी आतंकवादी  के नए चेहरे वाहिद खान की तलाश है. रॉ एजेंट युक्ति की चालें असफल हो रही हैं. तब रॉ लंबे समय से दिल्ली में मीडिया अटैची के रूप में काम कर रही अनन्या श्रीवास्तव  (ऋचा चड्ढा) को लाहौर भेजता है.  अनन्या शायर मिजाज होने के अलावा संवेदनशील और छोटी-छोटी बात पर इमोशनल हो जाने वाली लड़की है, जिसकी शादी को लेकर मॉं परेशान रहती है. रॉ एजेंट युक्ति (करिश्मा तन्ना) व शमशेर चाहते हैं कि अनन्या लाहौर में रौफ आजमी से दोस्ती बढ़ाकर जानकारी हासिल कर सकती है. क्योंकि रौफ शायर मिजाज है और शायरी की किताबें लिखी हैं. इसके अलावा लाहौर में वह मुशायरे आयोजित करते रहते हैं, जहां पाकिस्तानी सरकार व पाकिस्तानी एजंसी आईएसआई के लोग भी शामिल होते हैं. इधर अनन्या को बताया जाता है कि वह लाहौर जाकर रुचि के अनुसार अपने समय के पाकिस्तानी शायरों पर किताब लिख सकेगी.  अनन्या जाती है मगर उसे पता नहीं कि किस जासूसी योजना के तहत रॉ ने उसे भेजा है. लाहौर में अनन्या की रौफ (अरूणेदय सिंह ) से मुलाकातें होती हैं. रौफ अपनी कुछ नकली हकीकत बयां कर अनन्या का दिल जीत लेता है. युक्ति कहती है कि इस काम में सब कुछ करना पड़ता है. अनन्या व रौफ के बीच प्रेम संबंध बन जाते हैं. अनन्या को पता ही नही चलता कि रौफ उसका उपयोग कर रहा है. पर रॉ के दूसरे अफसर अनन्या की इस गलती का फायदा उठाकर रौफ का असली चेहरा जान जाते हैं. उसके बाद जब अनन्या को पता चलता है कि रौफ ने उसके साथ खेल खेला, तब क्या होता है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

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लेखन व निर्देशनः

विषय काफी रोचक चुना गया है. मगर अफसोस फिल्म की कहानी और पटकथा काफी कमजोर है. कहानी पाकिसतानी एजेंट व आतंकवादी वाहिद खान की तलाया है, मगर कुछ देर बाद ही कहानी पूरी तरह से रौफ व अनन्या के बीच रोमांस के इर्द गिर्द सीमित रह जाती है. यहां तक कि रौफ के माध्यम से रॉ के बारे में जो कुछ पता चलता है, उससे कई तरह के भ्रम पैदा होते हैं, जो कि लेखक की कमजेारी ही है.

बतौर निर्देशक कुणाल कोहली भी बहुत अद्वितीय काम नही कर पाए. उनका काम काफी साधारण है. इसमें रोमांच व एक्शन पूरी तरह से गायब है. जबकि इस तरह की स्पाई फिल्म में रोमांच व एक्शन बहुत मायने रखता है. क्लायमेक्स अति साधारण है.

इसके कुछ सवांद जरुर अच्छे बन पड़े हैं. मसलन-अपने लिए तो सभी जीते हैं. औरों के लिए जीने का मजा ही कुछ और है. ’’,  ‘‘मुझे किसी कौम से नफरत नहीं, नफरत है इस खूनी खेल से. ’’, ‘‘असलियत छुपाकर मोहब्बत बुझदिल करते हैं. ’’ यह अलग बात है कि यह संवाद गलत किरदार के मुंह से निकलते हैं जो कि विरोधाभासी हैं.

अभिनयः

एक बार फिर रिचा चड्ढा ने अपने सशक्त अभिनय का जादू जगाया है. अति कमजोर पटकथा के बावजूद उनके अभिनय के चलते फिल्म बेहतर बन गयी है. फिल्म मे एक शायराना अंदाज,  तहजीब,  विनम्रता व दया के भावों को उन्होने बड़ी खूबी से अपने अभिनय से उभरा है. रिचा ने अपने हाव भाव व बौडी लैंगवेज से किरदार को नया आयाम दिया है. रौफ के किरदार में अरूणोदय सिंह का अभिनय भी कमाल का है. उनके अभिनय को देखकर अहसास होता है कि अभी तक बौलीवुड के फिल्मकार उनकी प्रतिभा का उपयोग करने से वंचित रहे हैं. रिचा चड्ढा व अरूणोदय सिंह के बीच की केमिस्ट्ी काफी जानदार है. युक्ति के किरदार में करिश्मा तन्ना अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं.

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बौलीवुड में अपनी अभिनय क्षमता के बल पर निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर रिचा चड्ढा अब तक ‘गैंग आफ वासेपुर‘,  ‘फुकरे’, ‘गोलियों की रास लीला रामलीला’, ‘लव सोनिया’, ‘मसान’, ‘इश्कारिया’,  ‘सेक्शन 375’ व ‘पंगा’जैसी फिल्में कर चुकी हैं. इन दिनों वह फिल्म ‘शकीला’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि दक्षिण भारत की एडल्ट स्टार के रूप में प्रसिद्ध रही हैं. हिंदी के अलावा तमिल,  तेलगू,  कन्नड़ व मलयालम भाषा में बनी फिल्म ‘शकीला’ 25 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है.

प्रस्तुत है रिचा चड्ढा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

लॉक डाउन के चलते आपने अपने अंदर कितना बदला पाया?

-बदला हुआ इस तरह पाया कि हर काम खुद ही करना पड़ रहा था. ऐसा नहीं है कि हमें अपना खुद का काम करने में कोई शर्म है. मगर अभिनय में व्यस्तता के चलते घर के कुछ काम करने के लिए बाई रखी हुई थी, पर लॉक डाउन में उसका आना बंद हो गया, तो वह सारा काम खुद करना ही था. आपके पास कई दूसरे काम भी होेते हैं, उसके बाद जब घर के काम करने पड़ते हैं, जब आप खुद राशन लेने जाते हैं, तो आपको अहसास होता है कि जिंदगी जीने के लिए कितनी चीजों की आवश्यकता पड़ती है. एक अंदाजा लग जाता है, मैंने सबसे बड़ी सीख पायी कि हमें कम में भी खुश रहना चाहिए. सभी कहते थे कि फोन पर दूसरों से बात करते रहें. मगर लॅाक डाउन में मै अपने फोन से काफी समय तब तक दूर भी रही. मैने यह ध्यान नहीं दिया कि दुनिया में क्या चल रहा है. मैंने खुद के साथ समय बिताया. अपनी किताब और लघु फिल्म की पटकथा पर भी काम किया. अपनी बिल्लियों के साथ समय बिताया. कुछ नए पौधे उगाए. गाजर, हरी मिर्च, नींबू, अमरूद,  अनार, तुलसी,  एलोवीरा, पुदीना व धनिया उगा लिया है. यह रोजमर्रा के उपयोग की चीजें हैं. इसके अलावा जब हम पर्यावरण की बात करते हैंं, पर्यावरण में आ रहे बदलाव की बात करते हैं, तो ऐसे वक्त में हमें खुद कुछ कदम उठाने होंगे, जो कि पर्यावरण के बदलाव से निपटने में सहायक हो. पेड़ पौधे उगाना बहुत जरुरी है. मैंने घर में खाना पकाते हुए वीडियो भी सोशल मीडिया पर साझा किया था. देखिए, हम तो घर का काम खुद करते आए हैं,  इसलिए लॉक डाउन के दिनों में घर काम करना कोई नई बात नही है. कुछ लोग जरुर ऐसे है, जिनके लिए यह नई बात है. लॉक डाउन में छूट मिलते ही मैने वेब फिल्म‘लाहोर कंफीडेशियल’की शूटिंग पूरी की. अब 18 दिसंबर को अमेजान पर ‘अनपाज्ड’की एक लघु फिल्म ‘अपार्टमेंट’ में मैं नजर आयी थी. इसकी शूटिंग भी सिंतबर माह में की. अब 25 दिसंबर को फिल्म ‘शकीला’ओटीटी प्लेटफार्म की बजाय ‘सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. तो उसके प्रचार में जुट गयी हूं.

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आपने दक्षिण फिल्मों की स्टार रही शकीला की बायोपिक फिल्म ही क्यों चुनी?

-कई वजहें हैं. शकीला की कहानी में सबसे बड़ी बात यह है कि वह एक मोटी औरत है. कट्टर मुसलमान है. पूरी जिंदगी बुरखा पहनकर घूमतीरही. फिल्मों में अभिनय करने के लिए उसने बॉडी डबल रखा हुआ था. हर फिल्म में उसने बॉडी डबल से सारे दृश्य करवाए और खुद आराम से सड़क पर घूमती थी. सब्जी खरीदती थी. उसकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उसने पुरूष प्रधान फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग जगह बनायी. उसने दक्षिण के कई सुपर स्टार का कद घटाया.

कुछ समय पहे दक्षिण की ही अभिनेत्री सिल्क स्मिता की जिंदगी पर फिल्म‘‘डर्टी पिक्चर्स’’ आयी थी, जिसमें विद्या बालन ने अभिनय किया था. उस फिल्म से शकीलाकितनी अलग है?

-दोनो फिल्मों में जमीन आसमान का अंतर है. सिल्क स्मिता की मौत के बाद शकीला का कैरियर शुरू हुआ था. सिल्क स्मिता और शकीला ने एक फिल्म साथ में की थी. शायद सिल्क स्मिता की वह अंतिम फिल्म थी. आपने ‘डर्टी पिक्चर्स’देखी होगी, तो उसमें एक दृश्य है. फिल्म में दृश्य यह है कि सिल्क स्मिता एक नई अभिनेत्री से खुद को असुरक्षित हमसूस करते हुए उसे एक थप्पड़ जड़ देती है. तो जिसे थप्पड़ मारा गया था, वह शकीला थी. इस घटना के बाद शकीला बहुत परेशान हो गयी थीं. उन्होने सोचा कि अपना कैरियर, अपनी जिंदगी सब कुछ खत्म कर दॅूं, मुझे कुछ नही चाहिए. सिल्क स्मिता व शकीला में सबसे बड़ा फर्क यह था कि सिल्क स्मिता स्टारडम चाहती थी. वह स्टार का दर्ज चाहती थीं. जबकि शकीला ऐसा कुछ नहीं चाहती थी. उनकी सोच यह थी कि मैं इतना कमा लूं कि घर वालों को ठीक से खाना मिल जाए. कपड़े वगैरह मिल जाएं.

शकीला की जिंदगी के दो पहलू हैं. एक वह जो फिल्म इंडस्ट्री ने उनके साथ किया और दूसरा वह जो उनके परिवार के लोगों ने उनके साथ किया?क्या इनकी वजह फिल्म में दिखायी गयी है?

-देखिए, फिल्म इंडस्ट्री ने उनके साथ जो कुछ किया, उसे हमने बड़ी इमानदारी के साथ इस फिल्म में दिखाया है. अभी वह एक तरह से फिल्म इंडस्ट्री में बैन ही हैं. इसकी मूल वजह यह है कि शकीला ने एक सुपर स्टार से साफ साफ कह दिया था कि वह समझौता करने के लिए तैयार नहीं है. उनके परिवार ने उनके साथ जो कुछ किया, वह सब गरीबी व मजबूरी के चलते किया. उनकी मॉं है और उनकी छोटी बहन हैं. आप जानते होंगे कि शकीला की मां एक ज्यूनियर आर्टिस्ट थीं. जब शकीला स्कूल में पढ़ रही थी, तो 14-15 साल की उम्र में उनकी मां ने उनकी स्कूल की पढ़ाई छुड़ाकर फिल्म इंडस्ट्ी में काम करने के लिए मजबूर कर दिया था. शकीला को पता नही था मां उससे क्या करवाना चाहती हैं. उससे काम करवाने के लिए उसकी मां ने उसे दारू पिलवा दी थी. फिर दारू की लत डलवा दी. जबकि उस वक्त नग्नता वाला कोई दृश्य नहीं था. दक्षिण भारत में पोर्नोग्राफी तो यही है कि पेटीकोट व ब्लाउज पहनकर खड़ी रहे, पर कम छोटी उम्र की बच्ची के दिमाग पर इसका क्या असर पड़ा होगा, आप सोच सकते हैं. उसकी हालत बहुत खराब हो गयी थी. उसे सिगरेट की आदत पड़ गयी थी. वह डिप्रेशन में चली गयी थी. जब अपनी मां ऐसा काम करा सकती है,  तो फिर किस पर विश्वास किया जाए. यही सब हमने फिल्म में दिखाया है. शकीला की मां की निजी भूख का जिक्र है.

अपने करियर की शुरूआत में शकीला ने चाहे जितने बोल्ड सीन किए हों,  लेकिन बाद में उन्होंने हर बोल्ड सीन के लिए अपनी बॉडी डबल का इस्तेमाल किया. इस पर आपकी शकीला से कुछ बात हुई है?

-जीहां!मेरी बात हुई है. मैंने उनसे पूछा था कि आपको क्या सूझा कि बाद में आपने बॉडी डबल का इस्तेमाल नहीं किया. तो उन्होंने कहा कि,  ‘शुरुआत में मेरी मजबूरी थी. तो एक-दो फिल्मों में जो कहा गया, वह मैंने किया. वह भी मेरी मम्मी ने मुझसे करवाया था. उसके बाद जैसे ही मुझे मौका मिला, मैं अपनी सहूलियत के लिए किसी को ले आयी, जिसे काम की जरूरत थी. ’जो औरत शकीला की बॉडी डबल का काम करती थी,  वह असल में प्रोस्टीट्यूट काल गर्ल जैसे धंधे में थी. तो उन्हें यह भी लगा कि मैं बच जाऊंगी. मुझे उनकी यह बात बहुत अच्छी व ज्यादा रोचक लगी. दुनिया बहुत ज्यादा मतलबी है. जीवन में कई तरह के तनाव हैं. मैंने  उनसे कहा कि आपने बॉडी डबल क्यों लिया?आप अभिनय करना बंद कर देती. इस पर उन्होने कहा,  ‘‘शुरुआत में मुझे अपने परिवार को खाना खिलाना था, इसलिए मैंने जो कहा गया, वह किया. उसके बाद जब मुझे लगा कि मेरे पास मौका है, तो मैं यह सब क्यों करूं?मैने वह सब अपने बॅाडी डबल’से करवाया. ’’

इस पर मैंने शकीला से पूछा कि बॉडी डबल भी औरत ही थी?इस पर उन्होंने कहा, ‘वह धंधा करने वाली औरत है. वह पहले भी यही काम करती थी. ’जब मैंने उनसे कहा कि आपको डर नहीं लगा कि यह लोग आपका कैरियर बर्बाद कर देंगे, जिन बड़े लोगों के साथ पंगा ले लिया था?तब शकीला ने मुझसे कहा, ‘कामइंसान नहीं देता है. काम तो भगवान देता है. ’मैंने उनसे कहा कि आपको तकलीफ नहीं होती है कि आपके परिवार वालों ने आपके साथ ऐसा किया?तो शकीला ने कहा-‘‘हर इंसान की अपनी मजबूरियां रहती हैं.  ऐसे में सब को माफ कर देना चाहिए. ’’

आप यकीन नही करेंगे. वह एक वक्त में सुपर स्टार थी. बड़े बडे पुरूष सुपर स्टार को घास नही डालती थी. पर वह आज एक बेडरूम के फ्लैट में रहती हैं. जब मैंने उनसे इस पर बात की, तो उन्होंने कहा , ‘‘ किसने कहा कि मैं एक बेडरूम के फ्लैट में रहती हॅूं. मैं अपने दिमाग मे रहती हॅूं. मुझे बहुत ज्यादा सुकून है. मैं लोगों की मदद करती हूं. उन्होने एक गरीब निग्रो को गोद ले रखा है. मैने पूछा कि यह कौन है, तो उन्होने कहा कि, ‘यह एक दिन बहुत बुरी हालत मे मेरे पास आकर खाना खाने के लिए कुछ पैसे मांगे. मैने कुछ दिन का इंतजाम कर दिया था. फिर मैने उसे गोद लेकर अपने घर पर ही रख लिया. तो उनकी यह बात मुझे बहुत ज्यादा रोचक लगी. क्योंकि हमें क्या सलाह दी जाती है कि पहले तुम सलमान खान बन जाओ,  फिर ‘बिइंग ह्यूमन’ शुरू करना. लेकिन मैने पाया कि शकीला एक ऐसी इंसान हैं, जिनके पास सच में कभी कुछ नहीं था खाने के लिए या किसी भी चीज के लिए. मुझसे मिलने के लिए रिक्शे से आने के भी पैसे उनके पास नही थे. आप सोचिए कि उनकी हालत खराब है, फिर भी वह दूसरे को पाल रही हैं.

जब आपने शकीला से बातें की, तो उनकी किस बात ने आपको प्रेरित किया?

-उनका जो जिंदगी के प्रति नजरिया है, उसने मुझे सच में बहुत ज्यादा प्रेरित किया. वह बहुत तकलीफ में हैं,  इसके बावजूद उन्होंने कभी भी किसी के लिए अपने दिल में कोई मलाल नहीं रखा. उनकी यह बात मुझे काफी अच्छी लगी.

क्या हर फिल्म इंडस्ट्री में महिला कलाकारों के साथ वैसा ही हो रहा है, जैसा कि शकीला के साथ हुआ?

-अभी तो ऐसा नही हो रहा है. मगर ‘शकीला’की कहानी 1990 के दशक की मलयालम और तमिल इंडस्ट्री की कहानी है. जहां तक मेरा अनुभव है, तब से अब तक काफी चीजें बदल गई हैं. खैर, मेरे साथ वैसा कुछ करने की कोई हिम्मत नहीं करेगा. फिर वह दौर बदल गया है. अभी इंडस्ट्री में औरतें इतनी ज्यादा आगे आ गई हैं कि हर निर्माता-निर्देशक हर चीज बदल गई है. ‘मी टू’के बाद तो ऐसा लगता है कि कोई भी इंसान कुछ भी करने से पहले 10 बार सोचेगा.

यह फिल्म पांच भाषाओं में है. आपने कितनी भाषाओं में इसकी डबिंग खुद की है?

-मैने तो सिर्फ हिंदी में ही डबिंग की है. अन्य भाषाओं में डबिंग दूसरों ने की है. इसकी दो वजह रही. पहली बात तो सभी पांच भाषाओं मे डब करते हुए आवाज को मैच करना थोड़ा मुश्किल था, दूसरी वजह यह रही कि निर्माता और निर्देशक चाहते थे कि दक्षिण के दर्शक शकीला की जिस तरह की आवाज के साथ खुद को जोड़ते हैं, उस तरह की आवाज में डबिंग करना चाहते थे. यह निर्णय सही रहा. शकीला आज भी जीवत हैं और जूनियर आर्टिस्ट के रूप में अभिनय कर रही हैं. ऐसे में हम सिनेमायी स्वतंत्रता ज्यादा ले नही सकते. उन्होने अपने जीवन की कहानी लिखी, हमने उसे उनके विजन के अनुसार ही परदे पर उतारा. उन्होने हमारे साथ जो बातें की, उन्हे हमने सुना और उन्हें भी फिल्म में दिखाया है. एक जीवित इंसान की बायोपिक बनाते समय हमारी जिम्मेदारी और काम बढ़ जाता है.

आपको लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री में औरतों के साथ अच्छा व्यवहार  हो रहा है. क्या ओमन इम्पॉरवमेंट की बातें लागू हो रही हैं?

-यह चर्चाएं तो काफी समय से चल रही हैं. यह भी सच है कि फिल्म इंडस्ट्री में स्थिति पहले से काफी बेहतर हुई हैं. अभी भी हमें लंबी यात्रा तय करनी है. अभी हमें इस दिशा में बहुत काम करने की जरुरत है. अभी बदलाव जमीनी स्तर पर आना जरुरी है. वास्तव में फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ कलाकार ही नहीं, बल्कि प्रोडक्शन,  निर्देशन, लेखन सहित हर विभाग में औरतों की संख्या बढ़ी है, इसका भी असर है कि फिल्म इंडस्ट्री में बदलाव नजर आ रहा है.

कुछ लोग कहते हैं कि नारी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाली महिलाएं ही सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं?

-मुझे पता नहीं कि आप किनकी बात कर रहे हैं. मेरी राय में नारीवाद का मतलब है कि नारी भी पुरूषों की तरह अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है. पर यदि पुरूष बेवकूफ है, तो नारी भी बेवकूफ होने का हक रखती है. अब वह बेवकूफ में सिगरेट या शराब पीती है, तो यह उनका हक है. पुरूष भी सिगरेट या शराब पीते हैं. तो यह उनका हक है. यदि औरतें भी बेवकूफी में बराबरी चाहती है, तो गलत क्या है. यहां लोग नारीयों से जुड़े मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए कहते हकि नारीयां शराब पीती हैं.

अमजॉन पर अनपॉज्ड में एक लघु कहानी अपार्टमेटमें अभिनय किया है. क्या कहना चाहेंगी?

-हमारी यह फिल्म यह संदेश देती है कि खुद के मुश्किल बढ़ने वाली हो, तो भी इंसान को सच का साथ देना चाहिए. फिल्म छोटी जरुर है,  मगर इस फिल्म के निर्माता निर्देशक निखिल अडवाणी के संग मैं काम करना चाहती थी. इसलिए मैने इसे लघु फिल्म के नजरिए से नही देखा. मुझे लगा कि यह बड़े निर्देशक की तरफ से एक प्रयोग हो.

आप एक वेब फिल्मलाहौर कंफीडेशियलकर रही है?

-ज हॉ!यह एक स्पाई फिल्म है,  जिसकी शूटिंग हमने पूरी कर ली है. यह रॉ एजेंट अनन्या की क्रास बॉर्डर प्रेम कहानी है. कुणाल कोहली  के साथ काम करना चाहती थी. ‘फना’के बाद वह एक बेहतरीन फिल्म लेकर आ रहे हैं. लॉक डाउन में छूट मिलने के बाद मैने इस पहली फिल्म की शूटिंग की है. एक एक्साइटेंट था कि सेट पर जल्दी जाएं. क्योकि सभी के लिए रोजी रोटी भी चाहिए. जब मैं इसकी शूटिंग के लिए सेट पर पहुंची, तो क्रू मेंबर, कैमरा असिस्टेंट सहित सभी ने मेरा धन्यवाद अदा किया था कि मैंने शूटिंग करने के लिए हामी भर दी,  इसलिए शूटिंग शुरू हो गयी.

पार्टी तो अभी शुरू हुई है?

-अनुभव सिन्हा कब रिलीज करेंगे, पता  नहीं.

थिएटर में फिल्म के रिलीज होते ही रिस्पॉंस मिलता है. क्या ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज या फिल्म के आने पर उसी तरह का रिस्पांस मिलता है?

-जी हॉ!मिलता है. जब सभी ओटीटी के खिलाफ थे, तब भी मैने पहली भारतीय वेब सीरीज‘इनसाइड एज’की थी. वेब सीरीज लाइव होती है. इन दिनों सिनेमा घर की तरफ लोग डर की वजह से जा नहीं पा रहे हैं.

तो क्या ओटीटी प्लेटफार्म,  सिनेमाघरों का पर्याय बन जाएगा?

-ऐसा नहीं होगा. सिनेमाघर रहेंगे, पर ओटीटी प्लेटफार्म की वजह से दर्शक को एक नया माध्यम मिल गया है,  जिसका लुत्फ वह घर पर बैठे बैठे उठा सकते हैं. ऐसे हालात में अब सिनेमाघरों को भी नई रणनीति बनानी होगी. टिकट के दाम घटाने होंगे.

मगर लोग आरोप लगा रहे हैं कि ओटीटी प्लेटफार्म पर गंदगी ज्यादा बढ़ गयी है?

-यह आरोप सही है. हिंसा, नग्नता,  सेक्स ज्यादा परोसा जा रहा है. इसीलिए सरकार इसे सेंसर के दायरे में लाने की दिशा में काम कर रही है. देखिए, जब भी कोई नया माध्यम मिलता है, तो पहले लोग पूरी तरह से उसे एक्स्प्लाइट करते हैं. कुछ दिन बाद लोग कहने लगते हैं कि कुछ ज्यादा ही नग्नता परोसी जा रही है. सर जी, आप यह भी मान लीजिए कि कुछ लोग तो सिर्फ यही कर रहे हैं.

बीच में बात चल रही थी कि ‘आल्ट बालाजी’ हमारी फिल्म ‘शकीला’को‘डर्टी पिक्चर्स दो ’की तरह रिलीज करना चाहता है. तब मैने कहा कि इसमें ‘डर्टी पिक्चर्स’जैसे दृश्य नही है. उसके बाद उन्होने हमारे पास अपनी एक वेब सीरीज ‘गंदी बात’का टीजर भेजा. इतना जलील,  हिंसक व नंगा शो लगा कि हमारा मूड़ खराब हो गया. इस तरह के कार्यक्रम छोटे बच्चे ही देख रहे होंगें. अब आप बताइए, आप छोटे बच्चों को कौन सी संस्कृति परोस रहे हैं. जब गांवों में इस तरह के कार्यक्रम छोटी उम्र के बच्चे अपने मोबाइल पर देखते हैं, तो बलात्कार जैसी घृणित कृत्य की तादात बढ़नी तय है. तो जरुरत है कि जल्द से जल्द ऐसे कायक्रमों पर रोक लगायी जाए. इसके लिए सेंसरशिप बहुत जरुरी हो गयी है.

कोरोना के चलते आपकी शादी टल गयी. अब क्या योजना है?

-हम तो जल्द से जल्द शादी करना चाहते हैं. मगर जब तक वैक्सीन नहीं आती, तब तक तो सोच नही सकते. हमारे लिए जिम्मेदारी ज्यादा होती है कि हमारे यहां आने वाला कोई भी इंसान कोरोना संक्रमित न होने पाए. हमोर परिवार वाले मेहमानों की सूची कम नही कर सकते. जिसे नहीं बुलाएंगे, उसके लिए मुझे नही बल्कि मेरे माता पिता को गाली पड़ेगी.

कंगना रनौत के साथ आप फिल्म पंगा कर चुकी हैं. तो उन्हे नजदीक से समझा होगा?

-मैने उनके साथ काम किया, हम दोनों ही बहुत प्रोफेशनल हैं. हमने राजनीति पर कोई चर्चा नहीं की थी. वह बेहतरीन अदाकारा हैं.

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आपको सोशल मीडिया पर काफी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है?

-यह ट्रोलिंग थोड़े ही है. कुछ लोग ट्रोलिंग करने के लिए ही नौकरी कर रहे हैं. इसलिए मैं ट्रोलिंग को गंभीरता से नहीं लेती. मुझे लगता है कि बेरोजगारी के वक्त में किसी का घर चल रहा है, तो अच्छी बात है. कुछ समय बाद जब उन्हें कहीं दूसरी जगह अच्छी नौकरी मिल जाती है, तो वह ट्रोलिंग वाली नौकरी छोड़़ देते हैं.

तो रिचा चड्ढा बनेंगी फिल्म निर्माता

प्रियंका चोपड़ा व अनुष्का शर्मा के पद चिन्हों पर चलते हुए अब अभिनेत्री रिचा चड्ढा भी बतौर निर्माता एक लघु फिल्म का निर्माण व निर्देशन करने जा रही हैं. उन्हें यह मौका उनकी खास दोस्त व अमरीका के न्यूयार्क शहर में रहने वाली फिल्मकार शुचि तालाती की वजह से मिला है.

वास्तव में शुचि तालाती ने एक टीनएज प्रेम कहानी वाली फिल्म का लेखन किया है और वह चाहती हैं कि उनकी लिखी इस कहानी पर फिल्म का निर्माण व निर्देशन रिचा चड्ढा करें. रिचा ने कहानी पढ़ने के बाद निर्माण व निर्देशन के क्षेत्र में उतरने का फैसला कर लिया. फिलहाल फिल्म का नाम तय नही है. पर अब रिचा चड्ढा अपनी कंपनी के तहत लघु फिल्मों के अलावा नए तरह के कंटेंट पर फिल्में आदि बनाती रहेंगी.

शुचि व रिचा ने दिल्ली में एक ही कौलेज में एक साथ पढ़ाई की थी. अब दोनों प्रोफेशन में भी एक साथ काम करने वाली हैं.

खुद रिचा चड्ढा कहती हैं -‘‘मेरे ख्याल से फिल्म निर्माण और कंटेंट हर कलाकार के आगे बढ़ने का एक सहज तरीका है. मुझे लगता है कि आज के जमाने में कोई भी इंसान सिर्फ एक काम को करते हुए जिंदगी जीना पसंद नही करता. कम से कम मैं तो बिलकुल भी नही कर सकती. मैं हमेशा से फिल्मों से एक से अधिक तरीकों से जुड़ना चाहती थी. हमारे आस पास इस तरह के सशक्त लोग मौजूद हैं, जो अभिनय के साथ साथ नए जमाने के कंटेट को शेप देने में भी माहिर हैं. मुझे खुशी है कि शुचि ने मुझसे इस फिल्म को बनाने के लिए कहा. इसकी वजह से मुझे अपनी छोटी कंपनी शुरू करने का मौका मिल गया. हम दोनों मिलकर प्यारी व मनोरंजक फिल्म बनाएंगे.’’

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