इंसान सोचता कुछ है, मगर उसकी तकदीर उसे कहीं और ले जाती है. ऐसा ही कुछ गैर फिल्मी परिवार में पली बढ़ी रिनी दास के साथ हुआ. बचपन से डाक्टर बनने का सपना देखती रही रिनी दास पढ़ने में तेज हाने के बावजूद जब मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास न कर पायी, तब परविार वालों के दबाव के चलते स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर ली. उसके बाद उनके पिता चाहते थे कि वह एमबीए कर ले, मगर उन्होने अपने पिता से एक वर्ष का समय लेकर अभिनय के क्षेत्र में अपनी तकदीर आजमाने मुंबई पहुंच गयी. तब से पांच वर्ष हो गए. पिछले पांच वर्ष से वह मुंबई में टीवी सीरियल व लघु फिल्मों में लगातार अभिनय करती आ रही हैं. इन दिनों वह लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’को लेकर चर्चा में है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्यारह अवार्ड मिल चुके हैं.
प्रस्तुत है रिनी दास से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. . .
आप कलकत्ता से मुंबई कब आयीं और क्या आपने अभिनय की कोई ट्रेनिंग हासिल की है?
-मैं कलकत्ता से मुंबई 2015 में आयी थी. अभिनय की कोई ट्रेनिंग नहीं ली. काम करते हुए सीखती जा रही हूं. मगर मुंबई पहुंचने के बाद मैंने अपना हिंदी का उच्चारण दोष खत्म करने के लिए दो माह तक एक शिक्षक से हिंदी भाषा जरुर सीखी. मुझे लगता है कि मेरे अंदर अभिनय ईश्वर प्रदत्त है.
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मुंबई में किस तरह का संघर्ष रहा और पहला सीरियल कैसे मिला था?
-मुंबई पहुंचने के बाद छह माह तक काफी संघर्ष रहा. इसकी मूल वजह यह रही कि मैं मुबई और बॉलीवुड या टीवी इंडस्ट्री में किसी को जानती नहीं थी. मुझे यहां की कार्यशैली की जानकारी नहीं थी. मुझे पता नहीं था कि कहां और कैसे आॅडीशन दिए जाते हैं. मगर मुझे पर ईश्वर की कृपा रही कि चार माह बाद ही मुझे ‘गोल्ड जिम’का विज्ञापन करने का मौका मिला. मैंने इसके लिए कैलेंडर भी शूट किए थे. इसके बाद मुझे एकता कपूर के प्रोडक्शन हाउस ‘बालाजी टेलीफिल्मस’के एपीसोडिक सीरियल ‘गुमराह’ के कुछ एपीसोड करने का अवसर मिला. इसमें मेरे अभिनय से प्रभावित होकर एकता कपूर ने मुझे अपने नए सीरियल‘‘परदेस मे है मेरा दिल’’में अभिनय करने के लिए चुन लिया. फिर लगातार काम मिलता रहा.
पिछले पांच वर्ष के आपके कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?
-सच कहूं तो मुझे इन पॉंच वर्ष में काफी कुछ सीखने को मिला. सीरियल ‘परदेस में है मेरा दिल’से मुझे कलाकार के तौर पर पहचान मिली. मैने एक सीरियल किया था, जिसे काफी शोहरत मिली, पर इससे मुझे फायदा नहीं हुआ. तो उतार चढ़ाव भरा कैरियर रहा. मैने हमेशा फल या फायदे की उम्मीद न करते हुए अपने काम को पूरी इमानदारी, लगन व मेहनत से करती आ रही हूं. मैंने कभी भी किसी भी सीरियल या किरदार को छोटा नहीं समझा. जब मुझे यूट्यूब चैनल ‘कंटेंट का कीड़ा’ की लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’मिली, तो मैने नहीं सोचा था कि इसका असर इतना अधिक होगा. मगर अब तक इसे कई लाख लोग देख चुके हैं और करीबन ग्यारह अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे पुरस्कृत भी किया जा चुका है. इसके बावजूद मैने इसमें दिल लगाकर अभिनय किया था. मेरे पास जब किसी भी सीरियल या फिल्म या लघु फिल्म का आफर आता है, तो मैं यह नहीं देखती कि मुझे इससे क्या फायदा होगा. मैं यह देखती हूं कि इसमें काम करते हुए मैं इंज्वॉय कर पाउंगी और क्या यह विषय व किरदार मुझे पसंद है. मैं अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करती हूं, बाकी तो दर्शकों पर निर्भर करता है कि उन्हे क्या पसंद आता है और क्या नहीं.
माना कि जब मैं मुंबई आयी, उस वक्त मेरे सपने कुछ ज्यादा बडे़ थे. मैने जिंदगी में कुछ बन जाने का सपना देखा था. पॉच वर्ष हो गए, पर वहां तक नहीं पहुंच पायी है. पर ही जिंदगी का संघर्ष है. हमें हमेशा अपना काम इमानदारी से करते रहना चाहिए. पर मुझे उम्मीद है कि मेरे सपने एक न एक दिन अवश्य पूरे होंगे. सच कहूं तो मेरा सपना बौलीवुड में एक अच्छी फिल्म में हीरोईन बनना है और पूरी उम्मीद है कि एक दिन मेरा यह सपना जरुर पूरा होगा.
लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’आपको कैसे मिली?जब आपके पास आफर आया, तो आपके दिमाग में सबसे पहला विचार क्या आया था?
-मैं ‘कंटेंट का कीड़ा’के शिवांकर अरोरा और शिप्रा अरोरा के संग पहले भी एक कार्यक्रम‘डेटिंग सियापा’किया था. इसमें मैंने एक एपीसोड किया था. इस तरह हमारा पुराना संबंध रहा है. उसके बाद शिप्रा ने लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’के अंकिता के किरदार को मुझे ही ध्यान में रखकर लिखा था. उन्होने इसे लिखते समय ही सोच लिया था कि वह मुझे ही इस किरदार में अभिनय करने के लिए याद करेंगें. जब उन्होने मुझे पहली बार कहानी सुनायी, तो इमानदारी की बात यही है कि मुझे यह कहानी बहुत पसंद आयी थी. मेरे दिमाग में आया कि सुप्रीम कोर्ट व सरकार से समलैंगिक प्यार की इजाजत मिल चुकी है, अब यह अपराध नही रहा. फिर भी लोग अभी भी समलैंगी लोगों को हिकारत की नजर से देखते हैं. बाहर की दुनिया में हो तो ठीक है, मगर यदि अपने ही घर में ऐसा कोई हो, तब क्या हो?हम उससे यही कहते हैं कि अपना दिमाग सही करो. यह कोई बीमारी है, ऐसा नहीं होता. वगैरह वगैरह. . इस पर यह फिल्म बात करती है. जब मैने यह कहानी सुनी, तो मुझे बहुत अच्छी लगी. इसमें मां की कहानी है, जो अपनी बेटी से कहती है कि, ‘कुछ भी हो जाए दुनिया में, मैं तुम्हारे साथ हूं ’ इस तरह परिवार का सहयोग मिलना बहुत जरुरी है. मैने सोचा कि अगर यह कहानी अच्छी ढंग से बन गयी, तो लोगों के पास पहुंचेगी, जिससे कुछ बदलाव आ सकता है. खुशी की बात यह है कि यह अच्छी बन गयी. लोग इसे देख रहे हैं और अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही हैं. मैं तो चाहती हूं कि हमारी इस फिल्म से धीरे धीरे लोगों की सोच व उनका नजरिया बदल जाए.
कहने का अर्थ यह कि यह लघु फिल्म‘एलजीबीटी क्यू’ समुदाय और उनके रिश्तों की बात करती है. यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर बात की जानी चाहिए. हमारी फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’’में इस बात का चित्रण है कि जब आपके परिवार का कोई सदस्य ‘गे’हो तो ऐसे में क्या करना चाहिए. वह इसे कैसे स्वीकार करें और ‘लोग क्या कहेंगे’की परवाह न करें. क्योंकि अंततः प्यार सिर्फ प्यार है. मैने इसमें अंकिता का किरदार निभाया है.
आप अंकिता के किरदार को कैसे परिभाषित करना चाहेंगी?
-अंकिता बहुत ही ताकतवर व स्वतंत्र लड़की है. उसे पता है कि उसे क्या चाहिए. वह समाज की सुनकर चुप नहीं रह सकती. उसे जो चाहिए, वह उसे चाहिए. अंकिता और उसकी सहेली पल्लवी में रात व दिन का फर्क है. अंकिता को पता है कि उसे अपनी जिंदगी में क्या चाहिए. अंकिता को किसी बात के लिए कोई शर्म नहीं है. अगर वह समलैंगिक है, उसे एक लड़की पल्लवी से प्यार है, तो उसे इस बात के लिए कोई शर्मिंदगी नहीं है. वह समाज में सभी के सामने खुलकर कहने को तैयार है कि उसकी सच्चाई यह है और वह एक लड़की से प्यार करती है. अंकिता यह सच अपने परिवार और समाज से कह चुका है. लोग उसे स्वीकार करें या न करें, इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह अपनी जिंदगी में खुश रहना चाहती हैं.
क्या आपने अपने अंकिता के किरदार को निभाने से पहले एलजीबीटी कम्यूनिटी को लेकर शोधकार्य भी किया था?
-मैने काफी शोध किया. मुंबई में मेरे दोस्तों में से कई एलजीबीटी समुदाय से ही हैं. वैसे लंबे समय से इस विषय में मेरी रूचि रही है, तो मैंने पहले भी काफी कुछ पढ़ा था. मैने बहुत नजदीक से देखा है कि इस समुदाय के लोगों का किस तरह का संघर्ष रहता है. यह किस तरह के लोग होते हैं. मैंने तो यही पाया कि यह हमारी ही तरह के लोग हैं, अलग नहीं है. मैने देखा है कि वह कैसे सब कुछ स्वीकार करते हैं, उनकी चाल ढाल कैसी है. लोगो का उनके प्रति नजरिया कैसा रहता है.
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आप खुद क्या संदेश लोगों तक पहुंचाना चाहती हैं?
-मैं इतना ही कहना चाहूंगी कि प्यार तो प्यार ही होता है. उसमें जाति, धर्म, जेंडर लिंग आदि नहीं देखा जाता. आज के वक्त में सच्चा प्यार मिलना बहुत मुश्किल है. जब प्यार मिलता है, तो उस पर आप शर्तें न लगाएं कि उसे इस लिंग का होना चाहिए या इस धर्म या इस जाति का होना चाहिए. किसी को किसी से प्यार हो रहा है, तो उसे प्यार करने दीजिए, उसे उसकी जिंदगी में खुश रहने दीजिए. प्यार अपने आप में एक सुंदर व अच्छा अनुभव है. लोगों को प्यार को उसके पवित्र रूप में ही अनुभव करने दीजिए.
इसके अलावा कुछ कर रही हैं?
-फिलहाल तो ‘अमेजन’की वेब सीरीज के लिए बात चल रही है. कोरोना के चलते बहुत कुछ रूक गया था. अब धीरे धीरे शुरू होने वाला है.
लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल गए. मगर लोगों की प्रतिक्रियाएं क्या रही ?
-मेरी आपेक्षा से कहीं ज्यादा अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं. जबकि इस फिल्म की विषयवस्तु ऐसी है कि मुझे डर था कि नगेटिब प्रतिकियाएं ही ज्यादा मिलेंगी, मगर ऐसा नहीं हुआ. 96 प्रतिशत सकारात्मक प्रतिकियाएं मिल रही हैं. इसके मायने यह हुए कि लोगों की सोच बदल रही है. मेरे अभिनय की काफी तारीफ की जा रही है. अभिनेत्री मानिनी मिश्रा के साथ मैंने पहला सीरियल किया था, उन्होने मेरी इस लघु फिल्म को देखकर बहुत अच्छी बात कही है. उन्होने संदेश भेजा कि एक कलाकार के तौर पर जिस तरह से मेरे अंदर बदलाव आया है, उसका उन्हे गर्व है. यह सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए. क्योंकि मैने तो उनके सामने ही अभिनय सीखा है.
आपको नहीं लगता कि यही लघु फिल्म ‘यूट्यूब’की बजाय किसी बडे़ ओटीटी प्लेटफार्म पर आती, तो आपको ज्यादा फायदा मिलता?
-बिलकुल. . हर प्लेटफार्म की अपनी अच्छाइयां और बुराइयां है. अगर यही लघु फिल्म ‘नेटफ्लिक्स’या ‘अमेजन’ पर आती, तो इसका सौ प्रतिशत ज्यादा फायदा मिलता. क्योंकि दर्शक बढ़ जाते. फिर भी यह फिल्म यूट्यूब कम्यूनिटी में सबसे अच्छा कर रही है.
बौलीवुड में किन लोगों के साथ काम करना चाहती हैं?
-राज कुमार राव सर का काम मुझे बहुत अच्छा लगता है. मैं चाहती हूं कि उनके साथ एक फिल्म करुं. शाहरुख खान पर तो मेरा बचपन से क्रश रहा है. जब भी मैने सिनेमा देखा, तो मुझे उनका काम बहुत पसंद आया. मेरा सपना है कि कम से कम एक बार मुझे शाहरुख खान सर के साथ किसी फिल्म का हिस्सा बनने का अवसर मिले. निर्देशकों में राज कुमार हिरानी, अनुराग कश्यप, अनुराग बसु सहित कई निर्देशकों के साथ काम करने की इच्छा है.
लॉक डाउन के दौरान आपने किस तरह से समय बिताया?
-लॉक डाउन से पहले मैने काफी काम किया था, तो पहले तीन माह घर पर रहकर आराम करने का मौका पाकर सकून मिला. इस बीच मैने अपने घर के इंटीरियर पर कुछ काम किया. घर मे रहकर एक्सरसाइज किया. मगर तीन माह के बाद मुझे लॉक डाउन का लॉक डाउन समझ में आने लगा. तब लगा कि मैने इतने समय से काम नहीं किया है. पता नही कब काम शुरू होगा, फिर काम मिलेगा या मुझे नए सिरे से संघर्ष करना पड़ेगा. तो एक कठिन स्थिति रही. ऐसा लगा कि उम्मीदें चली गयी. मोटीवेशन चला गया. तो कुछ चिंताएं परेशान करने लगी थी. पर मैने अपने आपको समझाते हुए अपने आत्मविश्वास को डिगने नहीं दिया. मैने यूट्यूब पर कई मोटीवेशनल वीडियो देखे. मैने काफी कुछ सीखा. मैने खुद को मानसिक रूप से तैयार किया. पहले रिजेक्शन होने पर तकलीफ होती थी, पर पांच वर्ष के अनुभव से मैने सीखा कि आडीशन में रिजेक्शन का मतलब मेरी अभिनय की खराबी नहीं, बल्कि उस किरदार के योग्य न होना रहा. मैंने कुछ फिल्में देखी. मैने सीखा कि अपने पैशन में लगे रहिए.
अब आप किस तरह के किरदार करना चाहती हैं?
-मुझे स्ट्रांग किस्म की लड़कियों के किरदार निभाना है. मैं ऐसे किरदार निभाना चाहती हूं, जिसमें मैं कुछ मिसाल दे सकूं. लड़कियों को अहसास हो कि उन्हे भी इस तरह की लड़की बनना है, जो जानती है कि उन्हें जीवन में क्या करना है. दबकर रहने वाली लड़की का किरदार नहीं निभाना है. मैं अक्सर सुनती हूं कि वह फेमिनिस्ट है, मगर हकीकत में कितनी लड़कियां या औरतें फेमिनिस्ट हैं. इसलिए मुझे स्ट्रांग ओमन के किरदार निभाने हैं. मुझे ऐसे किरदार निभाने हैं, जिसे देखकर दूसरों को प्रेरणा मिले. मैं परदे पर बेचारी नही बनना चाहती.
फिटनेस मंत्रा क्या है?
-मैं एक्सरसाइज करती हूं. योगा करती हूं. मैने योगा सीखा भी है.
शौक क्या हैं?
-खाना बनाने का शौक है. दो बिल्लियां हैं, उनके साथ समय बिताती हूं.
सोशल मीडिया पर कितना व्यस्त रहती हैं?
-मैं सिर्फ इंस्टाग्राम पर तस्वीरें पोस्ट करती रहती हूं. मैने देखा है कि लोग सोशल मीडिया पर झूठ ज्यादा परोसते हैं. अपनी जिंदगी को इतनी बेहतरीन दिखाते हैं कि देखने वाले को अपनी जिंदगी बेकार लगने लगती है. मुझे यह पसंद नही. लोग दिखाते हैं कि देखो उनकी जिंदगी कितनी परफैक्ट है, जबकि होती नहीं है. लोग हकीकत कम बयां करते है. वैसे वर्तमान समय में हमारे क्षेत्र में सोशल मीडिया बहुत महत्वपूर्ण हो गया है.
बौलीवुड और वेब सीरीज में एक्सपोजर काफी है. आप किस हद तक एक्सपोजर के लिए तैयार हैं?
-मेरी कुछ तो समस्याएं हैं. कुछ दायरे हैं, जिन्हे मैं पार नहीं करना चाहूंगी. वैसे अब तक मैने एक्सपोजर बिलकुल नहीं किया है. में ऐसा काम करना चाहूंगी, जिसे मेरे परिवार के सदस्य भी देख सकें. इन दिनों फिल्मों की बनिस्बत वेब सीरीज में एक्सपोजर बढ़ गया है. मेरी राय में कहानी या दृश्य की मांग है, तो ठीक, मगर महज दर्शक को आकर्षित करने के लिए सेक्स, नग्नता परोसा जाना गलत है. ओटीटी प्लेटफार्म पर कई वेब सीरीज में जबरन इस तरह के दृश्य परोसे जा रहे हैं, यह मुझे पसंद नहीं. यदि दृश्य व कहानी की मांग होगी, तो मै उस पर विचार करुंगी.
अब ओटीटी प्लेटफार्म को सेंसरशिप के दायरे में लाने की चर्चाएं गर्म हैं. आपकी राय?
-मेरी राय में कुछ हद तक ओटीटी प्लेटफार्म की वेब सीरीज व फिल्मों पर सेंसरशिप होनी चाहिए. यह ऐसा प्लेटफार्म था, जहंा लोग बिना सेंसरशिप के अपनी कहानियां परोस सकते थे, मगर कई लोगों ने इस स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाया. कई वेबसीरीज ऐसी हैं, जिनके ट्रेलर भी परिवार के सामने देखते हुए आपको शर्म आएगी. यदि सेंसरशिप आएगी, तो लोग बेवजह ऐसे दृश्य जबरन ठूंसने से बाज आएंगे और बेहतरीन कथानक वाली वेब सीरीज बन सकेंगी. मैं तो सेंसरशिप के पक्ष में हूं.
आप अभिनय के क्षेत्र से जुड़ने की इच्छा रखने वाली लड़कियों से क्या कहना चाहेंगी?
-यह सपनों का शहर है. यहां लोगों के सपने पूरे होते है. यह शहर देखने में जितना सुंदर है, उतना ही सख्त भी है. छोटे शहरों से आने वाले लोग यहां के ग्लैमर में खो जाते हैं. छोटे शहर के लोग दूसरों पर बहुत जल्दी विश्वास करते हैं, उन्हे ऐसा करने से बचना चाहिए. अपने आप से पूछिए, दस लोगों से विचार विमर्श कीजिए, उसके बाद निर्णय लीजिए. बौलीवुड में फ्राड बहुत होते हैं. यहॉं आंख मूंदकर लोगो पर यकीन मत कीजिए. आप गूगल कर जानकार हासिल कीजिए. सोशल मीडिया पर जानकारी हासिल कीजिए.