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आईएएस की कोचिंग के लिए पारुल दिल्ली के एक गर्ल्स होस्टल में रहती थी. एक दिन जब वह कोचिंग के लिए निकली तो तेज बारिश में फंस गई और एक घर के सामने बारिश से बचने के लिए खड़ी हो गई. तभी एक बच्ची गेट पर आई और उस की गोद में जा बैठी. वह बच्ची को छोड़ने घर के अंदर गई तो एक आंटी ने उसे बताया कि यह उस की नातिन है. अब पारुल रोज ही वहां जाने लगी. वहां उस की मुलाकात डाक्टर प्रियांशु से हुई, जिस ने पारुल को अपने साथ शादी करने का प्रस्ताव दे डाला. घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं था. अत: दोनों की शादी हो गई. वह चाहती थी कि उस मासूम बच्ची की मां प्रियंवदा तो नहीं रही पर बच्ची के पिता शेखर को उस के प्यार से महरूम न किया जाए. एक दिन शेखर का पता मिला तो उस ने उसे पत्र लिख दिया…
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करीब 1 माह बाद दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने जा कर देखा तो कोई आदमी खड़ा था. बोला, ‘‘डाक्टर प्रियांशु, श्रीमती पारुल और कमला देवी को बुलाइए, कोर्ट का समन है. मम्मीजी भी तब तक आ गई थीं. हम ने अपने नाम उसे बताए. तब मुझे और मम्मीजी को उस ने कुछ कागज दिए. एक कौपी प्रियांशुजी के लिए थी. हमारे दस्तखत ले कर चला गया. मैं ने जब उन कागजों को देखा तो लगा चक्कर आ जाएगा. शेखर ने हम पर केस किया था कि हम उस के नाम का उपयोग प्रियंवदा की नाजायज बच्ची के लिए करना चाहते हैं और उस को बदनाम कर उस की दौलत ऐंठना चाहते हैं.
और तो और इस में प्रिया को भी जोड़ा था और उस के नाम के आगे जो लिखा था उसे देख कर तो मेरा हृदय चीत्कार कर उठा. लिखा था- प्रतिवादी क्रमांक 4 प्रिया उम्र 7 माह, आत्मजा नामालूम. उफ मैं तो रो पड़ी. मम्मीजी भी चुपचाप आंसू बहाए जा रही थीं. उन कागजों के साथ मेरी चिट्ठी की फोटोकौपी भी लगी थी, जिस को आधार बना कर उस दुष्ट इनसान ने कोर्ट से सहायता मांगी थी कि हम लोगों को प्रिया के
पिता के रूप में उस का नाम लिखने से निषेधित किया जाए और इस बात की घोषणा की जाए कि प्रिया उस की बेटी नहीं है और हम से मानहानि करने के रूप में कुछ हरजाना भी मांगा था. उफ, कोई इतना नीचे गिर सकता है, मेरी सोच के परे था.
तभी मम्मीजी ने फोन कर के प्रियांशुजी को बुला लिया. उस दिन पहली और शायद आखिरी बार मैं ने इन को गुस्सा होते देखा.
मेरे कंधे जोर से पकड़ कर बोले, ‘‘क्या जरूरत थी उस कमीने को कुछ लिखने की? वह इनसान है ही नहीं. पहले प्रियंवदा को फंसाया, फिर जब देखा कि पापा ने उसे नहीं अपनाया तो कुछ मिलने की आशा न देख उसे प्रिया के जन्म के कुछ दिन पहले बेसहारा छोड़ गया. बिना कुछ खाएपीए मेरी बहन बेहोश थी. जब पड़ोसियों ने सरकारी हौस्पिटल में भरती करवाया तो शुक्र था कि मेरा एक साथी उस हौस्पिटल में नौकरी कर रहा था, जिस ने प्रियंवदा को मेरे घर पर कभी देखा था. उस ने मुझे फोन किया. मैं जा कर अपनी बहन को लाया. सोचो जिस का पिता इतना बड़ा डाक्टर, भाई विदेश से डिग्री ले कर आया, पिता का इतना बड़ा हौस्पिटल और वह अनाथों की तरह गंदे कपड़ों में कई दिनों की भूखीप्यासी सरकारी हौस्पिटल में थी. हम लोग जब तक उसे ले कर आए बहुत देर हो चुकी थी. बच्ची को जन्म देते ही उस की मृत्यु हो गई. पापा को भी इस बात का बहुत सदमा लगा कि समय रहते उन्होंने अपनी बेटी की खबर नहीं ली.’’
कुछ देर ठहर कर इन्होंने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘और जब हम प्रियंवदा की मौत की खबर देने के लिए उस के घर मेरठ गए और अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए चलने की प्रार्थना की तब उस कमीने ने साफ मना कर दिया. उस के पिता ने कहा कि देखिए, जो होना था हो गया अब आप लोग इस बात का प्रचार मत करिए. मेरे बेटे के लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे हैं. आप की लड़की के चक्कर में वैसे ही वह हम से इतने दिन दूर रहा. उस की शादी हम ने तय कर दी है. दिल्ली के ही पुराने खानदानी लोग हैं. आप लोग जाइए… तमाशा मत करिए… मैं और पापा वापस आ गए और उस सदमे से ही पापा 5 दिन बाद चल बसे,’’ सांस ले कर इन्होंने फिर मुझे गुस्से से देख कर कहा, ‘‘उस कमीने का मैं नाम भी दोबारा सुनना नहीं चाहता था और तुम ने यह क्या कर दिया?’’
मैं नि:शब्द रोती रही. यह मुझ से क्या अनर्थ हो गया. बहुत देर तक सब यों ही बैठे रहे. फिर मैं ने ही आंसू पोंछ कर प्रियांशु से कहा, ‘‘वकील अंकल से सलाह कर लेते हैं.’’
मम्मीजी ने भी कहा, ‘‘हां बेटा, वकील साहब से मिल लो जा कर. फिर देखेंगे क्या
करना है.’’
ये चुपचाप मेरे साथ चल दिए. हम दोनों वकील अंकल के घर पहुंचे, जिन के घर और औफिस मैं शादी के पहले जाया करती थी. उन के साथ कभीकभी कोर्ट भी जाती थी. अंकल अपने घर के सामने बने औफिस में ही थे. हम दोनों ने उन के सामने सारे पेपर्स रख दिए.
अंकल ने सारे पेपर्स ध्यान से पढ़े और बोले, ‘‘घबराने की बात नहीं. शादी को साबित करना पड़ेगा. शादी का कोई फोटो या प्रमाणपत्र ले आओ. बच्ची का जन्म प्रमाणपत्र तो है ही.’’
यह सुन कर पहली बार प्रियांशुजी ने बोला, ‘‘फोटो तो जो बहन ने भेजा था पापा ने गुस्से में फाड़ दिया था और प्रमाणपत्र भी शायद नहीं है.’’
यह सुन कर अंकल सोच में पड़ गए. बोले, ‘‘यह आदमी बहुत शातिर लगता है. पूरी तैयारी के बाद ही कोर्ट गया होगा. कोई बात नहीं इन
की शादी का कोई गवाह देख लो… कोई दोस्त, पंडित या पड़ोसी. उन की गवाही हम पेश कर सकते हैं.’’
सारी जानकारी ले कर और जरूरी गवाहों की लिस्ट बना कर हम लोग निकल पड़े. लगातार 4-5 दिन प्रियंवदा के दोस्त और पड़ोसियों को ढूंढ़ते रहे. परंतु इतना आसान नहीं था दिल्ली जैसे शहर में ऐसा कोई मंदिर और पंडित ढूंढ़ना. सब जगह तलाश किया, कहीं भी कोई प्रमाण नहीं मिला. प्रियंवदा के जो कुछ दोस्त मिले उन को तो उस की शादी और प्यार के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. सब ने यही कहा कि वह तो बहुत चुपचाप रहती थी और शेखर जैसे लड़के से तो प्यार कर ही नहीं सकती थी. शेखर के कुछ दोस्तों को उन के साथ घूमने की जानकारी थी पर शादी की किसी को खबर नहीं थी. जहां वे लोग रहते थे और जिन पड़ोसियों ने प्रियंवदा को बीमार हालत में हौस्पिटल में भरती करवाया था वे भी घर बदल कर कहीं चले गए थे. 7 दिन तक दिनरात भटकने के बाद हम फिर अंकल के सामने थे. एक भी प्रमाण नहीं था हमारे पास. प्रिया का जन्म प्रमाणपत्र था पर उस के बारे में ही शेखर ने आरोप लगाया था कि प्रियंवदा के पिता और भाई ने जानबूझ कर उस के नाम का उपयोग किया और अपना हौस्पिटल होने का फायदा उठाया. अब क्या करें किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था.
अंकल ने कहा, ‘‘कोर्ट में सुबूत पेश करने होते हैं. शेखर ने तो लिखा ही है कि वह कालेज छोड़ने के बाद मेरठ चला गया था और अपने पापा के साथ व्यापार कर रहा है. दिल्ली आया ही नहीं और जरूर उस ने कुछ झूठे कागज भी बनवा लिए होंगे. उन्हें झूठा साबित करने के लिए हमारे पास कुछ नहीं.’’
प्रियंवदा के सामान में एक फोटो तक नहीं मिला था, जिस में दोनों साथ हों. मुझे तो गुस्सा भी आ रहा था दिल्ली जैसे शहर में पढ़ने वाली लड़की इतनी मूर्ख और नासमझ कैसे हो सकती है कि चुपचाप शादी कर ली. बच्चा भी होने वाला था, फिर भी कुछ नहीं सोचा. खैर, अंकल ने आगे कहा कि हम प्रोटैस्ट तो कर ही सकते हैं. प्रियांशु ने पूछा कि यदि वह जीत गया तब क्या परिणाम हो सकता है? अंकल ने और मैं ने समझाया कि प्रिया को अपने पिता की संपत्ति नहीं मिलेगी और उस के नाम के आगे से शेखर नाम हट जाएगा.
बहुत देर सोचने के बाद प्रियांशुजी ने कहा, ‘‘प्रिया को संपत्ति तो अपनी मां की इतनी मिलेगी कि उस कमीने की संपत्ति की जरूरत नहीं है और अच्छा है उस का नाम प्रिया के नाम से हट जाए.’’
तब अंकल ने कहा कि फिर तो आप कोर्ट में उपस्थित ही मत होइए. तब कोर्ट एकपक्षीय डिक्री उसे दे देगा. मेरा मन इस बात के लिए तैयार नहीं था, पर और कोई चारा भी नहीं था. हम लोग वापस आ गए. मैं जब भी प्रिया को देखती तो कोर्ट के कागज में लिखा आत्मजा नामालूम मेरे दिमाग में हथौड़े की तरह पड़ने लगता और मेरे आंसू निकल जाते. न मैं वह चिट्ठी शेखर को लिखती न यह सब होता. यह मैं ने क्या कर दिया, यही सोचते हुए मेरे दिनरात निकल रहे थे. एक दिन फिर डाक से 2-3 पत्र आए. एक शेखर का था, जिस के साथ कोर्ट के निर्णय की कौपी थी, जिस में घोषणा की गई थी कि प्रिया, उम्र 7 माह, आत्मजा नामालूम शेखर की पुत्री नहीं है और मुझे प्रियांशु, मम्मीजी और प्रिया को शेखर के नाम का उपयोग प्रिया के पिता के रूप में करने से स्थाई रूप से निषेधित किया गया था. कानून की जानकार होने के बाद भी मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं था कि कोई कोर्ट कैसे रिश्तों की घोषणा कर सकता है और दूसरा पत्र जन्ममृत्यु पंजीकरण औफिस का था कि कोर्ट का और्डर मिलने पर उन्होंने प्रिया के नाम के आगे से उस के पिता के रूप में लिखे शेखर का नाम हटा कर आत्मजा नामालूम लिख दिया.
मैं बहुत देर तक यों ही बैठी रही. समझ ही नहीं आया मम्मीजी को कैसे इन पत्रों के बारे में बताऊं. फिर जब रहा नहीं गया तो प्रिया को गोद में उठाए फिर से अंकल के औफिस पहुंच गई. इस बार अंकल भी मेरी बात से सहमत थे. वापसी में मेरे हाथों में कुछ कागज थे जिन को जा कर प्रियांशुजी और मम्मीजी के सामने रख दिया और उन से उन पर हस्ताक्षर करने को कहा. दोनों ने ही प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी तरफ देखा. मैं ने उन से कहा, ‘‘यह मेरा अनुरोध है कि मैं प्रिया को गोद ले कर अपनी बेटी बनाना चाहती हूं.’’
मम्मीजी ने रोते हुए मुझे गले लगा लिया. प्रियांशुजी भी भीगी आंखों से मुझे देखते रहे. दोनों ने हस्ताक्षर करने में देर नहीं की. फिर तो जैसे मेरे पंख लग गए. अब काम बड़ा आसान था. मम्मीजी को प्रिया का संरक्षक बना कर हम ने गोद लेने के लिए कोर्ट में आवेदन दिया और किसी को सूचना देने की जरूरत नहीं थी. कोर्ट ने भी 1 माह के अंदर प्रिया को हमारी दत्तक पुत्री घोषित कर दिया.
मेरे मन को कुछ ठंडक तो मिली, परंतु अब एक दूसरा भय मेरे मन में सवार हो गया था कि नौकर और पड़ोसी कहीं प्रिया के बड़े होने पर उसे असलियत न बता दें. तभी प्रियंक के आने की आहट भी मिल गई. मैं खुश रहने के बदले दिन भर सोच में डूबी रहती. मम्मीजी और प्रियांशुजी ने बहुत कोशिश की मुझे समझाने की पर न जाने मुझे क्या हो गया था. हार कर प्रियांशुजी ने पापा को रायपुर से बुलवाया. दोनों मिल कर मुझे मनोचिकित्सक के पास ले गए. उन की सलाह पर प्रियांशु ने दिल्ली से कहीं दूर बसने का निर्णय लिया. फिर पापा के अनुरोध पर वे दिल्ली की सारी संपत्ति बेच कर रायपुर आ गए. पापा के हौस्पिटल को नए ढंग से बनवा लिया था. पापा का घर तो वैसे ही बहुत बड़ा था. उस में कुछ सुधार कर मम्मीजी के दिल्ली के घर की तरह ही साजसज्जा करवा दी. मम्मीजी भी मेरी और प्रिया की खुशी के लिए भारी मन से दिल्ली छोड़ने को राजी हो गई थीं. बस, कुछ ही दिनों में हम लोग छोटे से प्रियंक और उस से थोड़ी बड़ी प्रिया को ले कर रायपुर आ गए.
मेरे मायके में तो कोई बचा नहीं था. चाचाचाची पहले ही अपने बेटे के पास कनाडा शिफ्ट हो गए थे, इसलिए मुझे अब कोई डर नहीं था. मैं ने सब को अपने 2 बच्चे बताए, प्रिया तो पहले ही इन को पापा कहना सीख चुकी थी और मुझ को मम्मी. अब मम्मीजी को दादी कहती और मेरे पापा को नानू. हम लोग जल्दी इस नए माहौल में रम गए. इन का नाम यहां बहुत जल्दी अच्छे डाक्टरों में शुमार हो गया.
जिंदगी आराम से गुजर रही थी. मैं भी भूल गई थी कि प्रिया मेरी अपनी कोख से जन्मी बेटी नहीं है. दोनों बहनभाई बहुत प्यार से रहते. पढ़ने में दोनों बड़े होशियार थे. अचानक एक दिन जब प्रिया शायद 9वीं कक्षा में थी तब उस ने मुझ से पूछा, ‘‘क्यों मम्मा, नानू बता रहे थे आप कलैक्टर बनना चाहती थीं. फिर क्यों नहीं बनीं?’’ मैं ने इन की तरफ देखा ये फौरन बोले, ‘‘बेटे तेरी मम्मी को तुम्हारी मां बनने की जल्दी थी न इसलिए,’’ मैं ने जल्दी से जवाब दिया, ‘‘बेटा, मेरा सपना तो था कलैक्टर बनने का पर तेरे पापा मुझ पर ऐसे फिदा हुए कि शादी के लिए पीछे पड़ गए. फिर तुम मिल गईं और मैं अपने सपने को भूल गई,’’ बोलतेबोलते जैसे मैं पुरानी यादों में खो गई.
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प्रिया ने पता नहीं क्या समझा और फिर मेरे गले लग कर बोली, ‘‘डोंट वरी मां आप के सपने को आप की बेटी पूरा करेगी,’’ फिर अपने भाई का कान पकड़ कर बोली, ‘‘सुन नालायक मैं अब डाक्टर नहीं बनूंगी तू बनेगा और पापा का हौस्पिटल संभालेगा. मैं तो अपनी मम्मा का सपना पूरा करूंगी.’’
उस दिन के बाद से वह जैसे नए जोश में भर गई. तुरंत विज्ञान विषय को बदल कर हिस्ट्री, इंग्लिश और इकौनोमिक्स ले लिया. मेरा मार्गदर्शन तो था ही. जल्दी ही वह दिन आ गया जब एमए करने के बाद उस ने यूपीएससी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में कुछ कम नंबर आने पर दोबारा परीक्षा में बैठी. इस बार शुरू के 50 लोगों में नंबर था. मसूरी से ट्रेनिंग करने के बाद उस की रायपुर में ही अतिरिक्त कलैक्टर के पद पर प्रशिक्षु के रूप में नियुक्ति हो गई. उस के बैच के 6 और लड़के थे. उन को हम ने खाने पर बुलाया. सभी बहुत खुशमिजाज थे. खाना खाने के बाद भी बड़ी देर बातचीत चलती रही. मैं ने महसूस किया कि उन में से एक की नजर प्रिया पर ही थी. प्रिया भी उस को अलग नजर से देख रही थी. पूछताछ करने पर पता चला कि वह गुजरात का रहने वाला था. उस के पापा आर्मी में थे. उस का नाम शरद था. मैं लड़की की मां की तरह सोच रही थी कि लड़का अच्छा है. बराबर के पद पर है और सब से बड़ी बात कि प्रिया को पसंद भी कर रहा है. प्रिया भी शायद उसे पसंद करती है. मैं ने इन से बात करनी चाही पर इन्होंने मुझे मीठी झिड़की दी कि अरे कुछ तो सोच बदलो. आजकल का जमाना नया है. लड़केलड़की बराबरी से हंसीमजाक करते हैं. जरूरी नहीं कि वे आपस में प्यार करते हों. मुझे गुस्सा आ गया और मैं करवट बदल कर सो गई. पर मेरा अंदाजा कितना सही था, यह मुझे दूसरे दिन पता लग गया. शाम को जब प्रिया औफिस से आई तब कार में उस के साथ शरद भी था. मैं ने तुरंत चायनाश्ता लगवाया. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद मैं ने देखा दोनों एकदूसरे को कुछ इशारे कर रहे हैं. मुझे भी हंसी आने लगी. मैं जानबूझ कर औफिस और राजनीति की बातें करती रही.
आखिर प्रिया ने कहा, ‘‘मां, शरद को आप से कुछ कहना है.’’
मेरे कान खड़े हो गए. जब कोई बात मनवानी होती थी तब दोनों बच्चे मुझे मां कहते थे. अत: मैं ने कहा, ‘‘हां, बोलो बेटा क्या बात है?’’
शरद ने धीरेधीरे पर बड़े विश्वास से मुझे अपने और परिवार के बारे में बताया. उस के पापा आर्मी में ब्रिगेडियर थे. वह अकेला लड़का था. प्रिया उस को पसंद थी. मसूरी में ही उन की अच्छी दोस्ती हो गई थी. उस के मातापिता को शादी पर कोई ऐतराज नहीं. प्रिया को मेरी मंजूरी चाहिए थी.
मुझे इस शादी पर तो कोई ऐतराज था ही नहीं और मैं तो कल रात से ही सपने देख रही थी पर मुझे एहसास हुआ कि शरद को सच बता देना चाहिए. कुछ सोचने के बाद मैं ने कहा कि मैं उस से अकेले में बात करना चाहती हूं. यह सुन कर प्रिया ने हंसते हुए कहा, ‘‘मम्मी जरूर तुम्हें अपनी लड़की का पीछा छोड़ने के लिए पैसे देने वाली हैं. तुम फिल्मी हीरो की तरह पैसे ठुकरा मत देना. अच्छीखासी रकम मांग लेना. फिर हम दोनों खूब शौपिंग करेंगे.’’
मैं ने उस के इस मजाक का कोई जवाब नहीं दिया. बस उसे वहीं रुकने की बोल शरद को अपने कमरे में ले गई. कमरा बंद कर मैं ने अपनी अलमारी से वे बरसों पुराने कोर्ट के कागज निकाल कर उसे दिखाए और बताया कि प्रिया हमारी अपनी बच्ची नहीं, गोद ली हुई है, पर वह है इसी घर की बच्ची. संक्षेप में उसे प्रिया की कहानी बताई.
अंत में मैं ने कहा, ‘‘हम इस बात को भूल चुके हैं, पर तुम उसे जीवनसाथी बना रहे हो तो इस के लिए यह जरूरी है कि तुम सच जान लो. अब तुम्हारा जो फैसला हो बता दो,’’ कह कर मैं आंखें बंद कर बैठ गई. दिल धकधक कर रहा था कि पता नहीं मैं ने अपने ही हाथों अपनी बेटी का बुरा तो नहीं कर दिया.
थोड़ी देर बाद महसूस हुआ कि शरद मेरे आंसू पोंछ रहा है. शरद ने सारे कागज वापस अलमारी में रखे और मेरे हाथों को अपने माथे से लगाते हुए बोला, ‘‘अब तो किसी भी कीमत पर मैं इस घर से रिश्ता जोड़ कर रहूंगा.’’
बस इस के बाद शरद के मम्मीपापा आए. बड़े ही अच्छे माहौल में सारी बातें तय हुईं और सगाई तय कर दी. प्रियंक भी अमेरिका से अपनी एमएस की पढ़ाई पूरी कर वापस आ गया. शहर के बड़े होटल में हम ने प्रिया की सगाई रखी. पापा के बहुत पुराने दोस्त आर्मी से रिटायर हो कर गवर्नर बन गए थे. पापा ने उन्हें भी बुलाया. वे सहर्ष आए. शहर के कुछ प्रमुख लोग, कुछ परिचित और प्रिया और शरद के औफिस के अधिकारी सब मिला कर करीब सौ मेहमान हो गए थे. गवर्नर साहब के आने से फोटोग्राफर्स ने तो बस मौका ही नहीं छोड़ा. हजारों फोटो ले डाले और उन्हीं में से एक फोटो समाचारपत्रों में छपा था, जिसे मैं उस दिन देख रही थी. तभी वह फोन आया था.
मैं वापस वर्तमान में लौट आई. पता नहीं क्याक्या हुआ होगा. प्रिया को सब पता लग गया क्या? क्या वह मुझ से नाराज हो गई? यदि नहीं तो वह यहां क्यों नहीं दिख रही? मुझे कुछ हो और प्रिया पास न हो ऐसा कभी हो सकता है?
तभी रूम की घड़ी ने सुबह के 6 बजाए. बेटा झटके से उठा और मेरी तरफ बढ़ा. मुझे आंखें खोले देख खुशी से चिल्ला पड़ा, ‘‘ओह मां, आप जाग गईं. पता है तुम्हारी बेटी ने तो मेरा 4 दिन से जीना मुश्किल कर दिया था. कल रात जब मैं ने बोला कि अब मां ठीक हैं सुबह तक ठीक हो जाएंगी तब पापा को घर ले जाने के बहाने उसे घर भेज पाया हूं. दोनों बोल गए थे चाहे कितनी रात को तुम्हें होश आए उन्हें जरूर बुला लूं,’’ फिर दरवाजे की तरफ देख कर बोला, ‘‘लो, आप के देवदास और आप की चमची दोनों हाजिर हैं. बिना बुलाए सुबह 6 बजे आ धमके.’’
मैं ने भी दरवाजे की तरफ देखा. प्रियांशु और प्रिया भागे चले आ रहे थे. दोनों आ कर बैड की एक तरफ खड़े हो गए. प्रिया तो मेरे गले लग कर रोने ही लगी, ‘‘क्या मां, आप ने तो डरा ही दिया. मेरी शादी का इतना दुख है, तो मैं नहीं करती शादी.’’
मेरा बेटा फौरन बोला, ‘‘अरे, जाओ, मम्मी तो खुशी बरदाश्त नहीं कर पाईं… और अटैक तो मुझे आना था खुशी का कि अब कम से कम घर पर मेरा राज होगा.’’
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प्रिया ने तुरंत उस का कान पकड़ा, ‘‘बड़ा आया… विदेश से क्या पढ़ कर आया है. 4 दिन लगा दिए मम्मी को ठीक करने में… पहले डाक्टरी तो ठीक से कर, फिर घर पर राज करना.’’
दोनों की नोकझोंक सुन कर मैं निहाल हुई जा रही थी. प्रिया पहले की तरह ही थी. लगता है वह नहीं आया होगा. मैं ने चैन की सांस ली.
1 सप्ताह बाद मैं अपने घर की राह पर थी. कार में प्रियांशु और शरद आगे बैठे थे. प्रिया मुझे संभाले पीछे थी. अचानक प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे पता है आप को किस बात का सदमा लगा. वह आदमी आया था जिस के कारण आप हौस्पिटल पहुंची.’’
मैं ने चौंक कर उसे देखा. तभी प्रियांशु ने बात संभाली और बोला, ‘‘हां पारुल वह आया था. मुझे तो समझ ही नहीं आया कि क्या करूं पर अच्छा हुआ तुम ने शरद को सब बता दिया था. उस ने ही प्रिया को तुम्हारे कमरे में ले जा कर कोर्ट के सारे कागज दिखाए और फिर बाकी कहानी मैं ने प्रिया को बताई. इन दोनों ने उस का वह हाल किया कि मजा आ गया. मेरी बहन और पापा के मन को भी शांति मिल गई होगी.’’
सारी बात जानने को उत्सुक हो गई तब इन लोगों ने बताया कि प्रिया ने उसे बहुत खरीखोटी सुनाई. उस के बेटे निकम्मे निकले. सारी संपत्ति पहले ही खो चुका था, इसलिए सोचा होगा कि तुम्हें डरा कर कुछ पैसे ऐंठ लेगा, पर तुम तो उस का फोन सुनते ही बेहोश हो गईं. वह जब घर आया तब तुम हौस्पिटल में थीं. उस ने यह नहीं सोचा था कि उस का सामना प्रिया से ही हो जाएगा. वह अपनी बेटी के आधार पर भरणपोषण का दावा करने की सोच रहा था पर प्रिया ने सारे कागज उस के सामने लहरा दिए और धमकी भी दे डाली कि यह सोच कर आए थे कि मेरे मम्मीपापा से पैसे वसूल करोगे? तुम हो कौन? मेरी मां से तो तुम्हारा कोई संबंध ही नहीं, यह तो तुम कई बरस पहले कोर्ट में बता चुके हो. मैं तुम्हारी बेटी नहीं. फिर कैसे मुझ से भरणपोषण मांगने का केस करोगे और केस तो अब मैं करूंगी… मेरे परिवार को तुम ने नुकसान पहुंचाया है. मेरी मां तुम्हारे कारण हौस्पिटल में हैं. अब जाते हो या पुलिस को बुलाऊं?’’ और फिर तुरंत एसपी साहब को फोन भी कर दिया कि एक आदमी धमकी देने आया है. अब वह इस शहर में दिखना नहीं चाहिए. तुरंत पुलिस आ गई और उसे यह कह कर चले जाने को कहा कि दोबारा इस शहर में पैर रखा तो सीधे जेल में दिखोगे.
प्रिया ने मेरे गले लगते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी इतनी कमजोर नहीं मां और न हमारा रिश्ता इतना कमजोर है जो किसी के कुछ कहने से खत्म हो जाए, फिर आप क्यों दिल से लगा कर बैठ गईं उस की धमकी को? उस की तो शक्ल देखने लायक थी… अब पता चलेगा बच्चू को. सुना है भूखे मरने की नौबत आ गई है उस की.’’
मैं ने राहत की सांस ले कर प्रिया को गले लगा लिया. घर आ गया था, पर फिर मेरा भावुक मन यह सोच कर परेशान हो गया कि आखिर है तो प्रिया का पिता ही… भूखों मर रहा है यह तो ठीक नहीं…
प्रिया ने जैसे मेरे मन की बात जान ली. बोली, ‘‘आप चिंता न करो मां. मैं ने और शरद ने मेरठ के कलैक्टर से बात कर के उसे वृद्धाश्रम भेजने का प्रबंध कर लिया है. जब तक जीवित है निराश्रित पैंशन भी उसे मिलती रहेगी. वह भूखा नहीं मरेगा.’’
मैं ने जब नजर भर कर उसे देखा तो मेरे गले लग कर बोली, ‘‘मुझे धरती पर लाने का एहसान तो किया था उस ने वरना इतनी प्यारी मां कैसे मिलतीं, इसलिए वह कर्ज चुका दिया. अब और इस से ज्यादा की आशा मत रखना कि मैं कभी उस से मिलने जाऊंगी या और कुछ करूंगी.’’
मैं ने हंस कर अपनी बेटी को गले लगा लिया. हमारा रिश्ता कागज से बना था पर खून के रिश्ते से ज्यादा गहरा और प्यारा था. मैं ने अपनी प्यारी बिटिया को गले लगाए घर में प्रवेश किया.