रोशनी की आड़ में: क्या हुआ था रागिनी की चाची के साथ

पुरानी डायरी के पन्ने पलटते हुए अनुशा को जब रागिनी के गांव  का पता  मिला तो उसे लगा जैसे कोई खजाना हाथ  लग गया है. अनुशा को अतीत में रागिनी के कहे शब्द याद आ गए, ‘मेरे पति को अपने गांव से बड़ा लगाव है. गांव से नाता बना रहे, इस के लिए वह साल में 1-2 बार गांव जरूर जाते हैं.’

यही सोच कर अनुशा खुश थी कि अब वह रागिनी को पत्र लिख सकती है और जब भी उस के पति गांव जाएंगे तो वहां भेजा उस का पत्र उन्हें जरूर मिल जाएगा. रागिनी को कितना आश्चर्य होगा जब वह इस चौंका देने वाली खबर के बारे में जानेगी.

अनुशा के दिमाग में रागिनी की चाची के साथ घटित हुआ वह हादसा तसवीर की भांति घूमने लगा जिसे रागिनी ने कालिज के दिनों में उसे बताया था.

मैं और रागिनी बी.ए. कर रही थीं. दशहरे की छुट्टियां होने वाली थीं. इसलिए ज्यादातर अध्यापिकाएं घर चली गई थीं. उस दिन खाली पीरियड में हम दोनों कालिज कैंपस के लान में बैठी थीं. मैं ने रागिनी से पूछा, ‘आज तो तुम भी व्रत होगी?’

रागिनी ने बड़े रूखेपन से कहा था, ‘नहीं, घर में बस, मुझे छोड़ कर सभी का व्रत है. मेरी तो धर्मकर्म से आस्था ही मर गई है.’

‘क्यों, ऐसा क्या हो गया है?’ मैं ने हंसते हुए पूछा तो रागिनी और भी गंभीर हो उठी और बोली, ‘अनुशा, मेरे यहां एक बड़ी दर्दनाक घटना घट चुकी है जिस की चर्चा भी अब घर में नहीं होती.’

मैं उत्सुकता से रागिनी को एकटक देखे जा रही थी. उस ने कहा, ‘मेरी चाची को तो तुम ने देखा है. वह अपनी मां और छोटी बहन के साथ विंध्याचल गई थीं. चाची की बहन सुशीला अविवाहित थी लेकिन पूजापाठ, धर्मकर्म में उस की बड़ी रुचि थी. वे तीनों कई दिनों तक विंध्याचल में एक पंडे के घर रुकी रहीं. रोज गंगास्नान, पूजन, दर्शन और पंडे के यहां रात्रिनिवास. उन का यही क्रम चल रहा था.

‘एक दिन सुशीला खाना बना रही थी. उसे छोड़ कर चाची और उन की मां पूजा करने मंदिर चली गईं. कुछ देर बाद जब वे लौट कर आईं तो सुशीला को घर में न पा कर उन्होंने पंडे से पूछा तो उस ने बताया कि सुशीला भी खाना बनाने के बाद गंगास्नान को कह कर यहां से चली गई थी.

‘बहुत ढूंढ़ने के बाद भी जब सुशीला का कहीं पता न चला तो उन्होंने घर पर खबर भेजी. घर के पुरुष भी विंध्याचल आ गए. कई दिनों तक वे लोग सुशीला को इधरउधर ढूंढ़ते रहे. पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई लेकिन सुशीला का कहीं पता नहीं चला.

‘चाची की मां का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. वह पागलों की तरह हर किसी से सुशीला के बारे में ही पूछती रहतीं. यह पीड़ा वह अधिक दिनों तक नहीं झेल सकीं और कुछ ही महीने बाद उन की मौत हो गई.

‘बेटी के गायब होने से चाची के पिता तो पहले ही टूट चुके थे, पत्नी के मरने के बाद तो एकदम बेसहारा ही हो गए. बीमारी की हालत में मेरे चाचाजी उन्हें गांव से यहां ले आए. कुछ दिन इलाज चला लेकिन अंत में वह भी चल बसे. उसके बाद तो सुशीला मामले का अंत सा हो गया.

‘अब उस घटना की एकमात्र गवाह मेरी चाची ही बची हैं जो सीने में सबकुछ दफन किए बैठी हैं. उन की हंसी जैसे किसी ने छीन ली हो. इसीलिए मुझ पर हमेशा पाबंदियां लगाए रहती हैं. इतने समय जाना है, इतने समय तक आना है, तरहतरह की चेतावनी मुझे देती रहती हैं.

‘मुझे चाची पर बड़ा गुस्सा आता था, उन की टोकाटाकी से परेशान हो कर मैं ने एक दिन चाची को बुरी तरह झिड़क दिया था. तभी चाची ने मुझे यह घटना रोरो कर बताई थी. अनुशा, उसी दिन से मेरा मन धर्मकर्म, पूजापाठ, व्रतउपवास से बुरी तरह उचट गया.

‘उक्त घटना ने मेरे मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं. मेरी निसंतान चाची, जिस संतान की कामना से गई थीं उन की वह इच्छा आज तक पूरी नहीं हो सकी है. चाची की मां कुंआरी बेटी सुशीला को अच्छा घरवर पाने की जिस कामना के लिए विंध्याचल गई थीं वह पूरी होनी तो दूर, सुशीला बेचारी तो दुनिया से ही ओझल हो गई. अब तुम्हीं बताओ अनुशा, मैं क्या उत्तर दूं अपने मन को?’

रागिनी की बातें सुन कर वास्तव में मैं निरुत्तर और ठगी सी रह गई. रागिनी ने मुझे कसम दी थी कि इस घटना की चर्चा मैं कभी किसी दूसरे से न करूं क्योंकि उस के परिवार की इज्जत, मर्यादा का सवाल था.

बी.ए. के बाद रागिनी की शादी हो गई. उस की ससुराल झांसी के एक गांव में है. शादी के बाद भी हमारा संपर्क बना रहा. उस ने अपने गांव का पता मेरी डायरी में यह कह कर लिख दिया था कि मेरे पति को गांव से बहुत लगाव है. वहां उन का आनाजाना लगा ही रहता है.

कुछ दिनों बाद मेरी भी शादी हो गई. मैं जब भी मायके जाती तो रागिनी का समाचार मिल जाता था. लेकिन बाद में रागिनी के पिता स्कूल से रिटायर होने के बाद अपने पुश्तैनी घर इटावा चले गए और उस के बाद हमारा संपर्क टूट गया.

मैं अपने छोटे बेटे का मुंडन कराने विंध्याचल गई थी. मुझे क्या पता था कि सुशीला की जीवनकथा में अभी एक और नया अध्याय जुड़ने वाला है जिस का सूत्रपात मेरे ही हाथों होगा. तभी से मेरे मन में अजीब सी खलबली मची हुई है. जी करता है किसी तरह रागिनी मिल जाए तो मन का बोझ हलका कर लूं. जाने उस की चाची अब इस दुनिया में हैं भी या नहीं.

अचानक पति की इस आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई, ‘‘मैं 5 मिनट से खड़ा तुम्हें देख रहा हूं और तुम इन पुरानी किताबों और डायरी में न जाने क्या तलाश रही हो. मेरा आफिस से आना तक तुम्हें पता नहीं चल सका. अनुशा, यही हाल रहा तो तुम एक दिन मुझे भी भूल जाओगी. अब उस घटना के पीछे क्यों पड़ी हो जिस का पटाक्षेप हो चुका है.’’

‘‘नहीं, सुधीर, रागिनी को सबकुछ बताए बगैर मुझे चैन नहीं मिलेगा, आज उस का पता मुझे मिल गया है. परिस्थितियों ने तुम्हें उस घटना का राजदार तो बना ही दिया है सुधीर, अच्छाखासा किरदार तुम ने भी तो निभाया है. रागिनी को सबकुछ जान कर कितना आश्चर्य होगा. कैसा लगेगा उसे जब दुखों की पीड़ा और खुशियों की हिलोरें उस के मन में एकसाथ तरंगित हो उठेंगी. हो सकता है, उस की चाची भी अभी जीवित हों और सबकुछ जानने के बाद और कुछ नहीं तो उन के मन को एक शांति तो मिलेगी ही.’’

सुधीर बोले, ‘‘मैडम, अब जरा आप इन झंझावातों से बाहर निकलें और चल कर चायनाश्ते की व्यवस्था करें.’’

‘‘ठीक है, मैं नाश्ता बनाती हूं. आप दोनों बच्चों को बाहर से बुला लें.’’

‘‘मम्मी, मेरा होमवर्क अभी पूरा नहीं हुआ है. प्लीज, करा दो न,’’ बड़े भोलेपन से पिंकू ने अनुशा से कहा.

‘‘बेटे, आप लोग आज सारे काम खुदबखुद करो. तुम्हारी मम्मी अपनी पुरानी सहेली को पत्र लिखने जा रही हैं जो शायद सुबह तक ही पूरा हो पाएगा. क्यों अनुशा, सही कह रहा

हूं न?’’

‘‘बेशक, आप सच कह रहे हैं. रागिनी को पत्र लिखे बिना मेरा मन न तो किसी काम में लगेगा, न ही चित्त स्थिर हो सकेगा. संजीदगी भरे पत्र के लिए रात का शांतिपूर्ण माहौल ही अच्छा होता है.’’

अनुशा विचारों में खोई हुई पेन और पैड ले कर रागिनी को पत्र लिखने बैठ गई.

स्नेहमयी रागिनी,

मधुर स्मृति,

इतने लंबे अरसे बाद मेरा पत्र पा कर तुम अचंभित तो होगी ही. साथ ही रोमांचित भी. बात ही कुछ ऐसी है जो अकल्पनीय होते हुए भी सत्य है. अच्छा तो बगैर किसी भूमिका के मैं सीधे मुख्य बात पर आती हूं.

पिछले माह हम अपने छोटे बेटे पिंकू का मुंडन कराने अपने पूरे परिवार के साथ विंध्याचल गए थे. शायद मेरे ये वाक्य तुम्हारे दिमाग में एक पुरानी तसवीर खींच रहे होंगे. सच, मैं उसी से संबंधित घटना तुम्हें लिख रही हूं.

उस दिन सोमवार था. हम वहां रुकना नहीं चाहते थे लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि हमें शीतला पंडे के यहां ठहरना पड़ा.

दूसरे दिन पिंकू का मुंडन हो गया. हम ने सोचा, थोड़ा घूमफिर कर आज ही निकल जाएंगे.

हम एक टैक्सी तय कर उस में बैठ ही रहे थे कि शीतला पंडे का लड़का, जिस का नाम भानु था, मेरे पास आ कर बोला कि मांजी, हमें भी साथ ले चलिए, आप का बड़ा उपकार होगा. और बीचबीच में वह सहमी निगाहों से अपने घर की तरफ भी देख लेता था.

मुझे उस पर बड़ी दया आई. मैं ने सुधीर से उसे भी साथ ले चलने के लिए कहा तो वह बोले कि देख रही हो, इस के घर के सभी लोग मना कर रहे हैं. तुम जानती तो हो नहीं. घर वाले सोच रहे होंगे कि बेटा धंधा छोड़ कर कहीं घूमने न चला जाए. खैर, मेरे कहने पर सुधीर शीतला पंडे से भानु को साथ ले जाने की बात कह आए और वह मान भी गया.

मेरे दोनों बच्चे बहुत खुश थे. वे विंध्याचल के पहाड़ और पत्थर देख कर उछल रहे थे. हम लोग मंदिर पहुंच गए और वहीं बैठ कर नाश्ता करने लगे. बातों के सिलसिले में मैं ने सुधीर से कहा कि ऐसे स्थानों पर पिकनिक मनाना कितना अच्छा लगता है. भौतिक और आध्यात्मिक दोनों का आनंद एकसाथ मिल जाता है.

‘‘भानु, तुम भी खाओ,’’ कह कर मैं ने पहला कौर मुंह में उतारा ही था कि वह जोरजोर से रो पड़ा. अचानक उस का रोना देख हम परेशान हो गए. लेकिन रागिनी, भानु की कहानी तो हर पल रुलाने वाली थी.

भानु रोते हुए कहे जा रहा था कि मांजी, बाबूजी, मुझे इस नरक से निकाल लीजिए. शीतला मेरा बाप नहीं, मेरा काल है जो मुझे खा जाएगा. मैं मरना नहीं चाहता. मुझे अपने साथ ले चलिए, मांजी.

भानु की आंखों में समंदर उमड़ रहा था. उस ने धीमे स्वर में अपनी जो कहानी सुनाई वह तुम्हारे द्वारा बताई कहानी ही थी. भानु तुम्हारी चाची की छोटी बहन सुशीला का बेटा है.

मैं ने भानु को चुप कराया और आगे की बात जल्दी पूरी करने को कहा क्योंकि उस को टैक्सी ड्राइवर का खौफ भयभीत किए जा रहा था. मैं ने सुधीर के कान में यह समस्या बताई तो सुधीर जा कर ड्राइवर से बातें करते हुए उसे कुछ आगे ले गए.

भानु अब थोड़ा आश्वस्त हो कर आंसू पोंछता हुआ कहने लगा कि मेरी मां ने मरने से पहले मुझे अपनी कहानी सुनाई थी जो इस प्रकार है : ‘उस दिन जब मेरी अम्मां और दीदी मंदिर चली गईं तो शीतला मेरे पास आकर बैठ गया और कहने लगा कि सुशीला,क्या बनाया है आज, जरा मुझे भी खिलाओ.

‘मैं थाली में खाना लगाने लगी तो शीतला बोला कि तू तो बड़ी भोली है.  सुशीला, मैं तो ऐसे ही कह रहा था. अच्छा, खाना तो बना ही चुकी है. चल तुझे आज घुमा लाऊं.

अभी अम्मां और दीदी आ जाएं तो साथ ही चलेंगे सब लोग. मैं अपनी बात कह ही रही थी तभी शीतला ने मुझे पकड़ कर कुछ सुंघा दिया था. बस, मुझे सुस्ती छाने लगी.

जब मुझे होश आया तो मैं ने खुद को एक बड़े से पुराने मकान में कैद पाया. वहां शीतला के साथ कुछ लोग और थे जिन की आवाजें ही मुझे सुनाई पड़ती थीं. मेरा कमरा अलग था जिस में शीतला के सिवा और कोई नहीं आता था.’

भानु अपनी मां की कही कहानी को विस्तार से सुना रहा था :

‘एक दिन मैं वहां से भागने का रास्ता तलाश रही थी कि शीतला भांप गया. फिर तो उस का रौद्ररूप देख कर मैं कांप गई. मुझे कई तरह से प्रताडि़त करने के बाद वह बोला कि आगे से ऐसी हरकत की तो ऐसी दुर्गति बनाऊंगा कि तुझे खुद से भी नफरत हो जाएगी.

‘अब मेरे सामने कोई रास्ता नहीं था. मैं ने इसे ही अपनी तकदीर मान लिया और होंठ सी कर चुप रह गई. एक दिन मेरे कहने पर शीतला ने मेरी मांग में सिंदूर भर कर मुझे पत्नी का चोला जरूर पहना दिया. साल भर के अंदर ही तेरा जन्म हुआ. शीतला ने बड़ा जश्न मनाया. खुश तो मैं भी थी कि मेरा भी कोई अपना आ गया. साथ ही मैं कल्पना करने लगी कि मेरा बेटा ही मुझे यहां से मुक्ति दिलाएगा. लेकिन क्या पता था कि यह राक्षस तुझ पर भी जुल्म ढाएगा. गलती मेरी ही है, कभीकभी गुस्से में मेरे मुंह से निकल जाता था कि मेरा बेटा, बड़ा हो कर तुझे बताएगा. बस, तभी से शीतला के मन में भय सा व्याप्त हो गया था.’

भानु ने आगे बताया कि मेरी मां जिस दिन अपनी दुख भरी कहानी बता कर रो रही थी शीतला छिप कर सबकुछ सुन रहा था. वह गुस्से में तमतमाया, गड़ासा ले कर आया और मेरे सामने ही मेरी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया. मुझे तरहतरह से समझाया और डराया- धमकाया. मैं भी बेबस, लाचार था. मां के चले जाने से मैं एकदम अकेला पड़ गया था लेकिन मेरे मन में बदले की जो आग लगी थी वह आज तक जल रही है, मांजी.

भानु की कहानी दिल दहला देने वाली थी लेकिन हम कर ही क्या सकते थे. खैर, उस समय उसे दिलासा दे कर हम वापस लौट आए थे.

यद्यपि भानु पर बड़ा तरस आ रहा था. वह आंखों में आंसू लिए मायूसी से हमें देख रहा था. भानु यानी तुम्हारी चाची की बहन सुशीला का बेटा, रागिनी. तुम्हारी बताई वह घटना मेरी आंखों के सामने नग्न सत्य बन कर खड़ी थी, जो मेरी आस्था पर चोट कर रही थी. साथ ही यह पूरे समाज के सामने एक ऐसा सवाल खड़ा कर रही है जिस का जवाब हम सभी को मिल कर ढूंढ़ना है. खासकर हम औरतें अपनी मर्यादा पर यह प्रहार कब तक सहती रहेंगी, इस का भी जवाब हमें खुद तलाशना है. धर्म की आड़ में धर्म के ठेकेदार कब तक यह नंगा नाच करते रहेंगे?

ऐसे अनेक सवाल हैं रागिनी, जिन के जवाब हमें ही तलाशने हैं. खैर, अभी तो मैं अपनी मुख्य बात पर आती हूं. हां, तो दूसरे दिन हम अपने घर आ गए. सुधीर से मैं बारबार भानु को छुड़ा लाने की सिफारिश करती रही.

मेरे इस आग्रह पर उन्होंने यहां पुलिस स्टेशन में सूचना भी दर्ज कराई. यहां से विंध्याचल थाने पर संपर्क कर के जांचपड़ताल शुरू हो गई. यहां से पुलिस टीम विंध्याचल गई. दुर्भाग्य से वहां के दरोगा की सांठगांठ भी शीतला से थी जिस से शीतला को पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी. लेकिन पुलिस उसे गिरफ्तार करने में सफल हो गई. भानु ने पुलिस के सामने कई रहस्य उजागर किए.

खैर, तुम्हें यह जान कर खुशी होगी कि शीतला को आजीवन कारावास हो गया है और उस की संपत्ति जब्त कर ली गई है. भानु 8वीं तक पढ़ा था सो आजकल वह एक सरकारी दफ्तर में चपरासी है. उस ने अपना घरपरिवार बसा लिया है और अपना अतीत भूल कर वह एक नई जिंदगी जीने का प्रयास कर रहा है. उस का यह कहना कितना सच है कि धर्मस्थलों में एक शीतला नहीं अनेक धूर्त शीतला अभी भी मौजूद हैं जो देवी- देवताओं की आड़ में भोली जनता और महिलाओं का शोषण कर रहे हैं.

मैं सोच सकती हूं कि मेरा पत्र पढ़ कर तुम्हें कैसा लग रहा होगा. पर सबकुछ सत्य है. मिलने पर तुम्हें विस्तार से सारी बातें बताऊंगी. भानु अपनी मां द्वारा दिए नाम से ही अब जाना जाता है.

पत्र का उत्तर फौरन देना. मुझे बेसब्री से इंतजार रहेगा. प्रतीक्षा के साथ…

तुम्हारी अनुशा.’’

कहानी- किरन पांडेय

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