सजा किसे मिली: पाबंदियों से घिरी नन्ही अल्पना की कहानी

Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-3)

प्रमाण की बात सुनते ही अल्पना गुस्से से थरथराती हुई राहुल को मारने के लिए झपटी. वह तेजी से हटा तो सामने रखी टेबल से अल्पना टकराई और जमीन पर गिर गई. असहनीय दर्द से पेट पकड़ कर वह वहीं बैठ गई.

राहुल ने उसे उठाना चाहा तो उस ने चिल्ला कर कहा, ‘मुझे छूना मत…तुम ने मुझे धोखा दिया…तुम मेरी जिंदगी में न कभी थे, न हो और न ही रहोगे…चले जाओ मेरे घर से.’

राहुल अपना सामान समेट कर चला गया…पूरी रात वह रोती रही. पेट दर्द सहा नहीं गया तो उठ कर उस ने पेन किलर खा लिया. अल्पना को बारबार यही लगता रहा कि क्यों उसे किसी का प्यार और विश्वास नहीं मिलता. पहले मातापिता और अब राहुल…खैर सुबह तक पेटदर्द तो ठीक हो गया था पर मन अभी भी ठीक नहीं हुआ था.

क्या करे इस बच्चे का…माना कि यह बच्चा उस की जिंदगी में जबरदस्ती आ गया है पर है तो उस का अपना अंश ही न, वह अकेली कैसे इस बच्चे की परवरिश कर पाएगी…क्या अपने बच्चे को वह प्यारदुलार और अपनत्व दे पाएगी जिस के लिए वह अपने मातापिता को दोष देती रही थी.

मन में अजीब सी कशमकश चल रही थी. अपने कैरियर के लिए जहां वह बच्चे का बलिदान देना चाहती थी वहीं उस के प्रति स्नेह भी जागने लगा था. वह जानती थी कि बिना विवाह के मां बनना समाज सह नहीं पाएगा…उस के मातापिता सुनेंगे तो जीतेजी ही मर जाएंगे. आज न जाने क्यों मां के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे, जो उन्होंने उसे राहुल के साथ रहते देख कहे थे, ‘बेटा, माना कि मैं तुझे उतना प्यार, दुलार नहीं दे पाई जिस की तू आकांक्षी थी. मैं अपराधिनी हूं तेरी…पर मेरे किए की सजा तू खुद को तो न दे. आज भी हमारा समाज विवाहपूर्व संबंधों को मान्यता नहीं देता है, ऐसे संबंध अवैध ही कहलाएंगे.’

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उस समय तो वह सिर्फ वही करना चाहती थी जिस से उस के मातापिता को चोट पहुंचे…राहुल, जिस पर उस ने विश्वास किया उस से ऐसी उम्मीद नहीं थी. बारबार राहुल के शब्द उस के दिलोदिमाग में गूंज कर उस के अस्तित्व को नकारने लगते कि मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो.

कभी मन करता कि आत्महत्या कर ले पर तभी मन उसे धिक्कारने लगता…उसे अपनी वार्डन के शब्द याद आते कि जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, लेकिन कुछ सार्थक करना बेहद ही कठिन, पर तुम ने तो आसान राह ढूंढ़ ली है.

वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी. आफिस में छुट्टी की अर्जी भिजवा दी थी. कशमकश इतनी ज्यादा थी कि उस का न बाहर निकलने का मन कर रहा था और न ही किसी से मिलने का. पेट में दर्द उठता पर वह डाक्टर को दिखाने के बजाय दर्दनाशक दवा खा कर दबाने की कोशिश करती रही.

एक दिन जब वह ऐसे ही दर्द से तड़प रही थी तभी बीना मिलने आ पहुंची, उस की ऐसी दशा देख कर वह अचंभित रह गई तथा उसे जबरन अपनी गाड़ी में बिठा कर डाक्टर के पास ले गई…

डाक्टर ने उसे चेकअप करवाने के लिए कहा.

सोनोग्राफी की रिपोर्ट देख कर डाक्टर उस पर बहुत गुस्सा हुई तथा बोली, ‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम गर्भवती हो.’

उस को कोई उत्तर न देते देख वह फिर बोली, ‘तुम लड़कियों की यही तो समस्या है…जरा भी सावधानी नहीं बरततीं…क्या पेट में तुम्हें कोई चोट लगी थी…अपने पति को बुलवा लो, क्योंकि तुम्हारा शीघ्र आपरेशन करना पड़ेगा. लगता है किसी चोट के कारण तुम्हारा बच्चा मर गया है और उसी के इन्फेक्शन से पेट में दर्द हो रहा है.’

डाक्टर की बात सुन कर वह दोनों चौंक गईं. बीना ने बात बनाते हुए कहा, ‘डाक्टर, आपरेशन कब करना पडे़गा. दरअसल इन के पति कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन का इतनी जल्दी आना संभव नहीं है.’

‘आपरेशन कल ही करना पड़ेगा. कोई तो रिश्तेदार होंगे…उन्हें जल्द बुलवा लो…हम इन्हें आज ही एडमिट कर लेते हैं.’

बीना ने अल्पना को देखा फिर डाक्टर की ओर मुखातिब होती हुई बोली, ‘डाक्टर, मैं ही इन की जिम्मेदारी लेती हूं क्योंकि इन का कोई भी रिश्तेदार इतनी जल्दी नहीं आ सकता.’

अल्पना के मना करने पर भी बीना ने उस के मातापिता को फोन कर दिया था. उन्होंने तुरंत आने की बात कही. उन के आने से पहले ही वह आपरेशन थिएटर में जा चुकी थी. बेहोशी की हालत में भी डाक्टर के शब्द उस के कानों में पड़ ही गए, ‘इस के यूट्रस में इन्फेक्शन इतना फैल गया है कि अगर निकाला नहीं तो जान जाने का खतरा है. बाहर जा कर इन के रिश्तेदारों से इजाजत ले लो.’

उस के बाद क्या हुआ पता नहीं. सुबह जब आंख खुली तो मम्मीपापा को अपने पास बैठा पाया. उन को देखते ही उस की नफरत फिर से भड़क उठी थी, अगर उसे उन का प्यार और अपनत्व मिलता तो उस के साथ ऐसे हादसे ही क्यों होते? अगर उस समय नर्स नहीं आती तो वह पता नहीं क्याक्या कह बैठती.

‘‘बेटा, कुछ खा ले वरना ताकत कैसे आएगी?’’ आवाज सुनते ही अल्पना अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई. नर्स पता नहीं कब चली गई थी. मां हाथ में फलों की प्लेट लिए खाने का इसरार कर रही थीं तथा उन के पास ही बैठे पापा आशा भरी नजरों से उसे देख रहे थे. उस ने बिना कुछ कहे ही मुंह फेर लिया क्योंकि वह जानती थी कि मां की आंखों से आंसू बह रहे होंगे पर वह अपने दिल के हाथों विवश थी.

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बारबार एक ही विचार उस के मन में आ रहा था कि माना मातापिता उस की उचित परवरिश न कर पाने के लिए दोषी थे पर हर सुविधा मिलने के बावजूद उस ने भी कौन सा अच्छा काम किया. दूसरों को दोष देना तो बहुत आसान है पर जिंदगी बनानाबिगाड़ना तो इनसान के अपने हाथ में है.

अल्पना समझ नहीं पा रही थी कि कुदरत ने औरत को इतना कमजोर क्यों बनाया है कि एक छोटा सा आंधी का झोंका उस के सारे वजूद को हिला कर रख देता है. सब से ज्यादा दुख तो उसे इस बात का था कि हादसे में उस के गर्भाशय को निकाल देना पड़ा…अपूर्ण औरत बन कर वह कैसे जीएगी?

मां ने तो अपने कैरियर के लिए उस की तरफ ध्यान नहीं दिया पर उस ने तो उन्हें दुख देने के लिए ही यह सब किया…उस का तो यही हश्र होना था. पर वह अभी भी नहीं समझ पा रही थी कि सजा किसे मिली?

Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-2)

पूर्व कथा

अस्पताल में पड़ी अल्पना की आंखों में अतीत चलचित्र की भांति घूमने लगा.

अल्पना संपन्न परिवार के कामकाजी मातापिता की इकलौती बेटी थी. मातापिता की व्यस्तता के कारण अल्पना ने बोलनाचलना दादी और आया की गोद में सीखा था.

10 वर्ष की होने पर उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वह छुट्टियों में घर आती थी. लेकिन व्यस्तता के कारण उस के मातापिता के पास उस के लिए समय नहीं था. धीरेधीरे अल्पना के मन में अपने मातापिता के प्रति नफरत पनपने लगी.

एक बार वह छुट्टियों में अपनी सहेली स्नेहा के घर जाती है. वहां जा कर उसे घर और मां के स्नेह का एहसास होता है.

अपने घर आने पर वही सूनापन उस पर हावी होने लगता है और वह वापस होस्टल लौट जाती है.

दोबारा छुट्टियां पड़ने पर वह वार्डन को घर जाने से मना कर देती है. सभी लोग उसे समझाते हैं पर अल्पना साफ इनकार कर देती है. होस्टल में सभी लोग उस के मातापिता के बारे में पूछते हैं लेकिन अल्पना कारण पूछने पर चुप्पी साध लेती है. नतीजा यह होता है कि फर्स्ट टर्म में वह फेल हो जाती है. अब आगे…

गतांक से आगे…

अल्पना की यह दशा देख कर एक दिन मिस सुजाता ने उसे बुला कर कहा था, ‘बेटा, तुम्हें देख कर मुझे अपना बचपन याद आता है…यही अकेलापन, यही सूनापन…मैं ने भी सबकुछ भोगा है…अपने मातापिता के मरने के बाद चाचाचाची के ताने, चचेरे भाईबहनों की नफरत…सब झेली है मैं ने. पर मैं कभी जीवन से निराश नहीं हुई बल्कि जितनी भी मन में चोटें पड़ती गईं, उतनी ही विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का साहस मन में पैदा होता गया.

‘जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, लेकिन कुछ सार्थक करना बेहद कठिन…पर तुम ने तो आसान राह ढूंढ़ ली है…न जाने तुम ने यह कैसी ग्रंथि पाल ली है कि तुम्हारे मातापिता तुम्हें प्यार नहीं करते हैं…हो सकता है उन की कुछ मजबूरी रही हो जिसे तुम अभी समझ नहीं पा रही हो.

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‘तुम्हारे मातापिता तो हैं पर जरा उन बच्चों के बारे में सोचो जो अनाथ हैं, बेसहारा हैं या दूसरों की दया पर पल रहे हैं…फिर ऐसा कर के तुम किसे कष्ट दे रही हो, अपने मातापिता को या खुद को…जीवन तो तुम्हारा ही बरबाद होगा…जीवन बहुत बहुमूल्य है बेटा, इसे व्यर्थ न होने दो.’

दूसरों की तरह वार्डन का समझाना भी उसे बेहद नागवार गुजरा था…पर उन की एक बात उस के दिमाग में रहरह कर गूंज रही थी…जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, पर कुछ सार्थक करना बेहद कठिन…उस ने सोच लिया था कि अब से वह दूसरों के बारे में न कुछ कहेगी और न ही कुछ सोचेगी…जीएगी तो सिर्फ अपने लिए…आखिर जिंदगी उस की है.

सब तरफ से ध्यान हटा कर उस ने पढ़ने में मन लगा लिया…पहले जहां वह ऐसे ही पास होती रही थी अब मेरिट में आने लगी. सभी उस में परिवर्तन देख कर चकित थे. हायर सेकंडरी में उस ने अपने स्कूल में द्वितीय स्थान प्राप्त किया. इस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली आई. कंप्यूटर साइंस में बी.एससी. करने के बाद वहीं से एम.एससी. करने लगी पर तब भी वह अपने घर नहीं गई. इस दौरान उस के मातापिता ही मिलने आते रहे पर वह निर्विकार ही रही.

एक बार उस की मां ने कहा, ‘बेटा, 1-2 अच्छे लड़के मेरी निगाह में हैं, अगर तू देख कर पसंद कर ले तो हमारी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी.’

‘किस जिम्मेदारी की बात कर रही हैं आप? अब तक आप ने कौन सी जिम्मेदारी निभाई है? जब बच्चे को मां का आंचल चाहिए तब आप ने मुझे क्रेच में डाल दिया, जब एक बेटी को मां के प्यार और अपनेपन की जरूरत थी तब होस्टल में डाल दिया…यह भी नहीं सोचा कि आप की मासूम बेटी अपने नन्हेनन्हे हाथों से खाना कैसे खाती होगी, कैसे स्कूल के लिए तैयार होती होगी…

‘आप को मुझ से नहीं, अपने कैरियर से ही प्यार था…बारबार आप क्यों आ कर मेरे दंश को और गहरा कर देती हैं…मैं ने तो मान लिया कि मेरा कोई नहीं है…आप भी यही मान लीजिए…जहां तक विवाह का प्रश्न है, मुझे विवाह के नाम से नफरत है…ऐसे बंधन से क्या लाभ जिस में 2 इनसान जकड़े तो रहें पर प्यार का नामोनिशान ही न हो…दैहिक सुख से उत्पन्न संतान के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तक न हो.’

मां चली गई थीं. उन की आंखों से निकलते आंसू उसे सुकून दे रहे थे, मानो उस में दिल नाम की चीज ही नहीं रह गई थी…तभी तो उन्हें देखते ही न जाने उसे क्या हो जाता था कि वह जहर उगलने लगती थी…पर यह भी सच है कि उन के जाने के बाद वह घंटों अपने ही अंतर्कवच में कैद बैठी रह जाती थी.

एक ऐसे ही क्षण जब वह अपने कमरे में अकेली बैठी थी तब राहुल ने अंदर आते हुए उस से कहा, ‘अंधेरे में क्यों बैठी हो, अल्पना…याद नहीं है प्रोजेक्ट के लिए डाटा कलेक्ट करने जाना है.’

‘बस, एक मिनट रुको…ड्रेस चेंज कर लूं,’ अंतर्कवच से बाहर निकल कर उस ने कहा था.

राहुल उस का क्लासमेट था…पढ़ाई में जबतब उस की मदद किया करता था, प्रोजेक्ट भी उन्हें एक ही मिला था अत: साथसाथ आनेजाने के कारण उन में मित्रता हो गई थी.

एक दिन वे प्रोजेक्ट कर के लौट रहे थे. राहुल को परेशान देख कर उस ने परेशानी का कारण पूछा तो राहुल ने कहा, ‘मेरा मकान मालिक घर खाली करने को कह रहा है, समझ में नहीं आता कि क्या करूं, कहां जाऊं. 1-2 जगह पता किया तो किराया बहुत मांगते हैं और उतना दे पाने की मेरी हैसियत नहीं है.’

‘तुम मेरा रूम शेयर कर लो. हम दोनों साथ पढ़ते हैं, साथसाथ जाते हैं…एक जगह रहने से सुविधा हो जाएगी.’

‘पर….’

‘पर क्या? मैं किसी की परवा नहीं करती…जो मुझे अच्छा लगता है वही करती हूं.’

दूसरे दिन ही राहुल शिफ्ट हो गया था. उस की मित्र बीना ने उस के इस फैसले पर विरोध करते हुए उसे चेतावनी भी दी थी पर उस का यही कहना था कि उसे किसी की परवा नहीं है, उस की जिंदगी है, जैसे चाहे जीए. किसी को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है.

बीना ने यह सब कुछ अल्पना की मां को बता दिया तो वह उसे समझाने आईं, फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो मां ने पैसा न भेजने का निर्णय सुना दिया. इस पर उस ने भी क्रोध में कह दिया था, ‘आज तक आप ने दिया ही क्या है…सिर्फ पैसा ही न, अगर वह भी नहीं देना चाहतीं तो मत दीजिए, मुझे उस की भी कोई परवा नहीं है.’

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मां रोते हुए और पापा क्रोधित हो कर चले गए थे. उस दिन उसे बेहद सुकून मिला था. पता नहीं क्यों जबजब वह मां को रोते हुए देखती, उसे लगता जैसे उस के दुखते घावों में किसी ने मरहम लगा दिया हो.

उसी दिन न जाने उसे क्या हुआ कि उस ने राहुल के सामने समर्पण कर दिया. राहुल ने आनाकानी भी की तो वह बोली, ‘जब मुझे कोई परेशानी नहीं है तो तुम्हें क्यों है? फिर मैं विवाह के लिए तो कह नहीं रही हूं. हम जब चाहेंगे अलग हो जाएंगे.’

पढ़ाई पूरी होते ही उन की नौकरी लग गई. किंतु एक ही शहर में होने के कारण उन का संबंध कायम रहा.

पूरी सावधानी बरतने के बाबजूद एक दिन अल्पना को लगा जैसे उस के शरीर में कुछ ऐसा हो रहा है जो वह पहली बार महसूस कर रही है. वह राहुल को इस बारे में बताना चाहती ही थी कि उस ने कहा, ‘अल्पना, मांपिताजी विवाह के लिए जोर डाल रहे हैं, अब मुझे दूसरा घर ढूंढ़ना होगा.’

राहुल की बात सुन कर अल्पना चौंक गई और बोली, ‘तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. और मुझे ऐसी हालत में छोड़ कर तुम कैसे जा सकते हो?’

‘कैसी हालत?’ राहुल बोला.

‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘यह तुम्हारी प्रोब्लम है, इस में मैं क्या कर सकता हूं?’

‘सहयोगी तो तुम भी रहे हो.’

‘वह तो तुम्हारी वजह से…तुम्हीं ने कहा था कि जब मुझे एतराज नहीं है तो तुम्हें क्यों है…अब तुम भुगतो?’

‘ऐसा तुम कैसे कह सकते हो…तुम तो मेरे मित्र, हमदर्द रहे हो.’

‘देखो अल्पना, पिताजी मेरा विवाह तय कर चुके हैं और उन्हें मना करना मेरे लिए संभव नहीं है. फिर मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो और विवाह से पहले ही अपना शरीर किसी को दे देने में उसे कुछ आपत्तिजनक नहीं लगता हो.’

‘परंपराओं की दुहाई मत दो, राहुल. तुम भी विवाह से पहले संबंध बना चुके हो. क्या तुम उस लड़की के साथ अन्याय नहीं करोगे जिस के साथ तुम विवाह कर रहे हो?’

‘मेरी बात और है, मैं पुरुष हूं… फिर तुम्हारे पास प्रमाण क्या है?’

आगे पढ़ें- प्रमाण की बात सुनते ही अल्पना गुस्से से…

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Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-1)

नन्ही अल्पना के मातापिता के पास अपनी मासूम बेटी के लिए समय नहीं था. ऊपर से उन के द्वारा लगाई गई पाबंदियां थीं, सो अलग. अकेलेपन की शिकार अल्पना के बालमन में धीरेधीरे अपने मातापिता के प्रति नफरत के बीज अंकुरित होने लगे.

अल्पना की आंखें खुलीं तो खुद को अस्पताल के बेड पर पाया. मां फौरन उस के पास आ कर बोलीं, ‘‘कैसी है, बेटी. इतनी बड़ी बात तू ने मुझ से छिपाई… मैं मानती हूं कि अच्छी परवरिश न कर पाने के कारण तू अपने मातापिता को दोषी मानती है पर हैं तो हम तेरे मांबाप ही न…तुझे दुखी देख कर भला हम खुश कैसे रह सकते हैं…’’

‘‘प्लीज, आप इन से ज्यादा बातें मत कीजिए…इन्हें आराम की सख्त जरूरत है,’’ उसी समय राउंड पर आई डाक्टर ने मरीज से बातें करते देख कर कहा तथा नर्स को कुछ जरूरी हिदायत देती हुई चली गई.

अल्पना कुछ कह पाती उस से पहले ही नर्स आ गई तथा उस ने उस के मम्मीपापा से कहा, ‘‘इन की क्लीनिंग करनी है, कृपया थोड़ी देर के लिए आप लोग बाहर चले जाएं.’’

नर्स साफसफाई कर रही थी पर अल्पना के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह समझ नहीं पा रही कि उस से कब और कहां गलती हुई…उसे लगा कि मातापिता को दुख पहुंचाने के लिए ऐसा करतेकरते उस ने खुद के जीवन को दांव पर लगा दिया…अतीत की घटनाओं के खौफनाक मंजर उस की आंखों के सामने से किताब के एकएक पन्ने की तरह आ- जा रहे थे.

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वह एक संपन्न परिवार से थी. मातापिता दोनों के नौकरी करने के कारण उसे उन का सुख नहीं मिल पाया था. जब उसे मां के हाथों का पालना चाहिए था तब दादी की गोद में उस ने आंखें खोलीं, बोलना और चलना सीखा. वह डेढ़ साल की थी कि दादी का साया उस के ऊपर से उठ गया. अब उसे ले कर मम्मीपापा में खींचतान चलने लगी, तब एक आया का प्रबंध किया गया.

एक दिन ममा ने आया को दूध में पानी मिला कर उसे पिलाते तथा बचा दूध स्वयं पीते देख लिया. उस की गलती पर उसे डांटा तो उस ने दूसरे दिन से आना ही बंद कर दिया…अब उस की समस्या उन के सामने फिर मुंहबाए खड़ी थी. दूसरी आया मिली तो वह पहली से भी ज्यादा तेज और चालाक निकली. उसे अकेला छोड़ कर वह अपने प्रेमी के साथ गप लड़ाती रहती…पता लगने पर ममा ने उसे भी निकाल दिया…

वह 2 साल की थी, फिर भी उस के जेहन में आज भी क्रेच की आया का बरताव अंकित है. उस के स्वयं खाना न खा पाने पर डांटना, झल्लाना, यहां तक कि मारना…पता नहीं और भी क्याक्या… दहशत इतनी थी कि जब भी मां उसे क्रेच में छोड़ने के लिए जातीं तो वह पहले से ही रोने लगती थी पर ममा को समय से आफिस पहुंचना होता था अत: उस के रोने की परवा न कर वह उसे आया को सौंप कर चली जाती थीं.

जब वह पढ़ने लायक हुई तब स्कूल में उस का नाम लिखवा दिया गया. स्कूल की छुट्टी होती तो कभी ममा तो कभी पापा उसे स्कूल से ला कर घर छोड़ देते तथा उस से कहते कि उन के अलावा कोई भी आए तो दरवाजा मत खोलना और न ही बाहर निकलना. देखने के लिए दरवाजे में आई पीस लगवा दिया था.

एक दिन वह पड़ोस में रहने वाले सोनू की आवाज सुन कर बाहर चली गई तथा खेलने लगी तभी ममा आ गईं. खुला घर तथा उसे बाहर खेलते देख वह क्रोधित हो गईं…दूसरे दिन से वह उसे बाहर से बंद कर के जाने लगीं…एक दिन उसे न जाने क्या सूझा कि घर की पूरी चीजें जो उस के दायरे में थीं, उस ने नीचे फेंक दीं…उस दिन उस की खूब पिटाई हुई और मम्मीपापा में भी जम कर झगड़ा हुआ.

ममा की परेशानी देख कर सोनू की मम्मी ने स्कूल के बाद उसे अपने घर छोड़ कर जाने के लिए कहा तो वह बहुत खुश हुई…साथ ही मम्मीपापा की समस्या भी हल हो गई. 4 साल ऐसे ही निकल गए. पर तभी सोनू के पापा का तबादला हो गया. फिर वही समस्या.

बड़ी होने के कारण अब उस के स्कूल का समय बढ़ गया था तथा अब वह पहले से भी ज्यादा समझदार हो गई थी. उस ने अपनी स्थिति से समझौता कर लिया था, ममा के आदेशानुसार वह उन के या पापा के आफिस से आने पर उन की आवाज सुन कर ही दरवाजा खोलती, किसी अन्य की आवाज पर नहीं. एकांत की विभीषिका उसे तब भी परेशान करती पर जैसेजैसे बड़ी होती गई उसे पढ़ाने और होमवर्क कराने को ले कर मम्मीपापा में तकरार होने लगी.

अभी वह 10 वर्ष की ही थी कि उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वहां मम्मीपापा हर महीने उस से मिलने जाते, उस के लिए अच्छीअच्छी गिफ्ट लाते, पूरा दिन उस के साथ गुजारते पर शाम को उसे जब होस्टल छोड़ कर जाने लगते तो वह रो पड़ती थी. तब ममा आंखों में आंसू भर कर कहतीं, ‘बेटा, मजबूरी है. जो मैं कर रही हूं वह तेरे भविष्य के लिए ही तो कर रही हूं.’

वह उस समय समझ नहीं पाती थी कि यह कैसी मजबूरी है. सब के बच्चे अपने मम्मीपापा के पास रहते हैं फिर वह क्यों नहीं…पर धीरेधीरे वह अपनी हमउम्र साथियों के साथ घुलनेमिलने लगी क्योंकि सब की

एक सी ही

कहानी थी…वहां अधिकांशत: बच्चों को इसलिए होस्टल में डाला गया था क्योंकि किसी की मां नहीं थी तो किसी के घर का माहौल अच्छा नहीं था, किसी के मातापिता उस के मातापिता की तरह ही कामकाजी थे तो कोई अपने बच्चों के उन्नत भविष्य के लिए उन्हें वहां दाखिल करवा गए थे.

छुट्टी में घर जाती तो मम्मीपापा की व्यस्तता देख उसे लगता था कि इस से तो वह होस्टल में ही अच्छी थी. कम से कम वहां बात करने वाला कोई तो रहता है. धीरेधीरे उस के मन में विद्रोह पैदा होता गया. उसे मम्मीपापा स्वार्थी लगने लगे. जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए उसे पैदा तो कर दिया पर उस की जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते.

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आखिर एक बच्चे को अच्छे कपड़ों, अच्छे खिलौनों के साथसाथ और भी तो कुछ चाहिए, यह साधारण सी बात वह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं या जानतेबूझते हुए भी समझना नहीं चाहते हैं. एक बार उस ने पूछ ही लिया, ‘मैं आप की ही बेटी हूं या आप कहीं से मुझे उठा तो नहीं लाए हैं.’

उस की मनोस्थिति समझे बिना ही ममा भड़क कर बोलीं, ‘कैसी बातें कर रही है…कौन तेरे मन में जहर घोल रहा है?’

मम्मा आशंकित मन से पापा की ओर देखने लगीं. पापा भी चुप कहां रहने वाले थे. बोल उठे, ‘शक क्यों नहीं करेगी. कभी प्यार के दो बोल बोले हैं. कभी उस के पास बैठ कर उस की समस्याएं जानने की कोशिश की है…तुम्हें तो बस, हर समय काम ही काम सूझता रहता है.’

‘तो तुम क्यों नहीं उस से समस्याएं पूछते…तुम भी तो उस के पिता हो. क्या बच्चे को पालने की सारी जिम्मेदारी मां को ही निभानी पड़ती है.’

दोनों में तकरार इतनी बढ़ी कि उस दिन घर में खाना ही नहीं बना. ममा गुस्से में चली गईं. लगभग 10 बजे पापा हाथ में दूध तथा ब्रैड ले कर आए और आग्रह से खाने के लिए कहने लगे पर उसे भूख कहां थी. मन की बात जबान पर आ ही गई, ‘पापा, अगर किसी को मेरी आवश्यकता नहीं थी तो मुझे इस दुनिया में ले कर ही क्यों आए? मेरी वजह से आप और ममा में झगड़ा होता है…मुझे कल ही होस्टल छोड़ दीजिए. मेरा यहां मन नहीं लगता.’

पापा ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘ऐसा नहीं कहते बेटा, यह तेरा घर है.’

‘घर, कैसा घर, पापा…मैं पूरे दिन अकेली रहती हूं. आप और ममा आते भी हैं तो सिर्फ अपनीअपनी समस्याएं ले कर. मेरे लिए आप दोनों के पास समय ही नहीं है.’

पापा उदास मन से आफिस चले गए थे पर उस दिन उसे अपने मन में बारबार उमड़ती बात कहने पर बहुत संतोष मिला था…

इस अकेलेपन के बावजूद उस के पास कुछ खुशनुमा पल थे…गरमियों की छुट्टियों में जब वे 15 दिन किसी हिल स्टेशन पर घूमने जाते…उस के जन्मदिन पर उस की मनपसंद ड्रेस के साथ उस को उपहार भी खरीदवाया जाता…यहां तक कि होस्टल में वार्डन से इजाजत ले कर उस के जन्मदिन पर एक छोटी सी पार्टी आयोजित की जाती तथा उस के सभी दोस्तों को गिफ्ट भी दी जाती.

फिर जैसेजैसे वह बड़ी होती गई अपनों के प्यार से तरसते मन में विद्रोह का अंकुर पनपने लगा…यही कारण था कि पहले जहां वह चुप रहा करती थी, अब अपने मन की भड़ास निकालने लगी थी तथा उन की इच्छा के खिलाफ काम करने लगी थी.

ऐसा कर के वह न केवल सहज हो जाया करती थी वरन मम्मीपापा के लटके चेहरे देख कर उसे असीम आनंद मिलने लगा था. जाने क्यों उसे लगने लगा था, जब इन्हें ही मेरी परवा नहीं है तो मैं ही इन की परवा क्यों करूं.

इसी मनोस्थिति के चलते एक बार वह छुट्टियों में अपने घर न आ कर अपनी मित्र स्नेहा के घर चली गई. वहां उस की मम्मी के प्यार और अपनत्व ने उस के सूने मन में उत्साह का संचार कर दिया…वहीं उस ने जाना कि घर ऊंचीऊंची दीवारों से नहीं, उस में रहने वाले लोगों के प्यार और विश्वास से बनता है. उस का घर तो इन के घर से भी बड़ा था, सुखसुविधाएं भी ज्यादा थीं पर नहीं थे तो प्यार के दो मीठे बोल, एकदूसरे के लिए समय…प्यार और विश्वास का सुरक्षित कवच…वास्तव में प्यार से बनाए मां के हाथ के खाने का स्वाद कैसा होता है, उस ने वहीं जाना.

उन को स्नेहा की एकएक फरमाइश पूरी करते देख, एक बार उस ने पूछा था, ‘आंटी, आप ने स्नेहा को खुद से दूर क्यों किया?’

उन्होंने तब सहज उत्तर दिया था, ‘बेटा, यहां कोई अच्छा स्कूल नहीं है…स्नेहा के भविष्य के लिए हमें यह निर्णय करना पड़ा. स्नेहा इस बात को जानती है अत: इस ने इसे सहजता से लिया.’

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घर न आने के लिए मां का फोन आने पर उस ने रूखे स्वर में उत्तर दिया, ‘मैं यहीं अच्छी हूं. आप और पापा ही घूम आओ…मैं नहीं जाऊंगी क्योंकि लौट कर आने के बाद तो आप और पापा फिर नौकरी पर जाने लगोगे और मुझे अकेले ही घर में रहना पडे़गा. मैं यहां स्नेहा के पास ही अच्छी हूं. कम से कम यहां मुझे घर होने का एहसास तो हो रहा है.’

अल्पना का ऐसा व्यवहार देख कर स्नेहा की मां ने अवसर पा कर उसे समझाते हुए कहा, ‘बेटा, तुम मेरी बेटी जैसी हो, मेरी बात का गलत अर्थ मत लगाना…एक बात मैं तुम से कहना चाहती हूं, अपने मातापिता को तुम कभी गलत मत समझना…शायद उन की भी कोई मजबूरी रही होगी जिसे तुम समझ नहीं पा रही हो.’

‘आंटी, अपने बच्चे की परवरिश से ज्यादा एक मातापिता के लिए और भी कुछ जरूरी है?’

‘बेटा, सब की प्राथमिकताएं अलगअलग होती हैं…कोई घरपरिवार के लिए सबकुछ त्याग देता है तो कोई अपने कैरियर को भी जीवन का ध्येय मानते हुए घरपरिवार को सहेजना चाहता है. तुम्हारी मां कैरियर वुमन हैं, उन्हें अपने कैरियर से प्यार है पर इस का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह तुम से प्यार नहीं करतीं. मैं जानती हूं कि वह तुम्हें ज्यादा समय नहीं दे पातीं पर क्या उन्होंने तुम्हें किसी बात की कमी होने दी?’

आंटी की बात मान कर अल्पना घर आई तो मां उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ीं. पापा का भी यही हाल था. हफ्ते भर मां छुट्टी ले कर उस के पास ही रहीं…उस से पूछपूछ कर खाना बनाती और खिलाती रहीं.

तब अचानक उस का सारा क्रोध आंखों के रास्ते बह निकला था. तब उसे एहसास हुआ था कि मां की बराबरी कोई नहीं कर सकता…पर जैसे ही उन्होंने आफिस जाना शुरू किया, घर का सूनापन उस के दिलोदिमाग पर फिर से हावी होता गया. अभी छुट्टी के 15 दिन बाकी थे पर लग रहा था जैसे उसे आए हुए वर्षों हो गए हैं.

शाम को मम्मीपापा के आने पर उन के पास बैठ कर वह ढेरों बातें करना चाहती थी पर कभी फोन की घंटी बज उठती तो कभी कोई आ जाता…कभी मम्मीपापा ही उस की उपस्थिति से बेखबर किसी बात पर झल्ला उठते जिस से घर का माहौल तनावपूर्ण हो उठता. यह सब देख कर मन में विद्रोह फिर पनपने लगा.

वह होस्टल जाने लगी तो ममा ने उस के लिए नई डे्रस खरीदी, जरूरत का अन्य सामान खरीदवाया, यहां तक कि उस की पसंद की खाने की कई तरह की चीजें खरीद कर रखीं, फिर भी न जाने क्यों इन चीजों में उसे मां का प्यार नजर नहीं आया. उस ने सोच लिया जब उन्हें उस से प्यार ही नहीं है, तो वही उन की परवा क्यों करे.

अब फोन आने पर वह ममा से ढंग से बातें नहीं करना चाहती थी…वह कुछ पूछतीं तो बस, हां या हूं में उत्तर देती. उस का रुख देख कर एक बार उस की ममा उस से मिलने भी आईं तो भी पता नहीं क्यों उन से बात करने का मन ही नहीं किया…मानो वह अपने मन के बंद दरवाजे से बाहर निकलना ही नहीं चाह रही हो.

छुट्टियां पड़ीं तो उस ने अपनी वार्डन से वहीं रहने का आग्रह किया. पहले तो वह मानी नहीं पर जब उस ने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने उस के मम्मीपापा को सूचना दे कर रहने की इजाजत दे दी.

उस का यह रुख देख कर मम्मीपापा ने आ कर उसे समझाना चाहा तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘घर से तो मुझे यहीं अच्छा लगता है…कम से कम यहां मुझे अपनापन तो मिलता है…मैं यहीं रह कर कोचिंग करना चाहती हूं.’

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बुझे मन से वह दोनों वार्डन को उस का खयाल रखने के लिए कह कर चले गए.

कुछ दिन तो वह होस्टल में रही किंतु सूना होस्टल उस के मन के सूनेपन को और बढ़ाने लगा…अब उसे न जाने क्यों किसी से मिलना भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह जिस से भी मिलती वही उस के घर के बारे में पूछता और वह अपने घर के बारे में किसी को क्या बताती? अब न उस का पढ़ने में मन लगता और न ही किसी अन्य काम में…यहां तक कि वह क्लास भी मिस करने लगी…नतीजा यह हुआ कि वह फर्स्ट टर्म में फेल हो गई.

 

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