राइटर- किरण सत्यप्रकाश
Hindi Short Story : रचना कंप्यूटर पर काम कर रही थी. कीपंचिंग करते हुए यदि रचना को कोई देखता तो कह नहीं सकता था कि उस के मन में विचारों का तूफान चल रहा है. हां, आंखों से ?ालकती गहरी उदासी जरूर देखने वाले को कुछ आभास दे सकती थी. उस के साथ काम करने वाली लक्ष्मी, जिसे वह प्यार से लाखी कहती थी, कुछकुछ समझने लगी थी.
2 घंटे तक बिना हिलेडुले कंप्यूटर पर काम करने के बाद रचना कुरसी पर अनमनी सी बैठी थी. सिर को पीछे कुरसी पर टिका कर आंखें मूंदे वह अपने मन को स्थिर करने की चेष्टा कर रही थी. तभी लंच टाइम पर लाखी ने आ कर उस के विचारक्रम को तोड़ डाला, ‘‘ओए रचना, मेथी का साग लाई हूं, दाल और दूसरी सब्जी भी है,’’ नैपकिन से हाथों को पोंछती लाखी रचना के पलपल मुरझाते मुख को देख कर घबरा उठी जो उसे लंच के लिए बुलाने आई थी.
रचना ने सूखे होंठों पर धीरे से जीभ फेरी और कुछ क्षण लाखी की ओर देखती रही. फिर जैसे जोर लगा कर बोली, ‘‘मेरी जान लाखी, जो भी तुम्हारा मन हो वही खा लो. मैं अभी मूड में नहीं हूं.’’
लाखी ने प्यार भरे अपनत्व से पूछा, ‘‘क्या बात है, कुछ खुलासा करो, शायद मैं कुछ हैल्प कर सकूं.’’
रचना ने जबरन मुसकराते हुए कहा, ‘‘अरे लाखी, तुम हमेशा कुछ और ही सोचती हो.
कुछ भी तो नहीं है. बस, ऐसे ही कुछ चक्कर सा आ गया.’’
लाखी कुछ और समझ कर मन ही मन खुशी से भर उठी. मीठे उलाहने के से स्वर में बोली, ‘‘अरे तो इस में शर्म की क्या बात है, जाओ छुट्टी ले कर जाओ और आराम करो, मैं अभी अपौइंटमैंट फिक्स करती हूं किसी गाइनी से.’’
लाखी जाने को मुड़ी, तभी रचना भीगे से स्वर में बोली, ‘‘लाखी, जो तुम समझ बैठी हो वह बात नहीं है,’’ कह कर वह अपनी दबी रुलाई को और न रोक सकी.
लाखी ने आगे बढ़ कर उस के सिर को सहलाया और रुंधे कंठ से बोली, ‘‘रिच, जी
न दुखाओ, जा कर थोड़ी देर बैठी रहो, मैं गरम चाय लाती हूं. क्यों इन डौक्यूमैंट्स के पीछे पड़ी हो. अपने रमेश से कह देतीं, नाहक जी हलकान किया.’’
रचना धीरे से उठी और बाथरूम की ओर बढ़ी ही थी कि उस के फोन की घंटी बज उठी. वह फिर ठिठक गई और बरामदे के एक कोने में रखी मेज की ओर बढ़ी. लाखी ने तब तक स्वयं फोन उठा लिया.
‘‘हैलो, मैं लाखी हूं. अनिल भैया, हांहां, ठीक है, आज थोड़ा जल्दी घर आने की कोशिश करना, हमारी रिच की तबीयत अचानक खराब हो गई है… नहीं, घबराने की कोई बात नहीं. कमजोरी से चक्कर आ गया. हां, हम वही कर रहे हैं… अच्छा अनिल भैया.’’
लाखी ने फोन रख कर खंभे से टिकी रचना से कहा, ‘‘आज अनिल देर से घर आएंगे. कोई मीटिंग है.’’
कोई खास बात नहीं थी. इधर 1-2 साल से लगभग रोज यही क्रम हो गया था. हफ्ते में 2 बार तो अवश्य ही अनिल रात का डिनर साथ नहीं करता था. दफ्तर में तरक्की के साथसाथ जिम्मेदारी भी तो बढ़ती ही है. रचना का काम थोड़ा हलका था. वह 5.30 बजे निकल कर 7 बजे तक घर पहुंच जाती थी.
लाखी ने इसे विशेष न समझ हो, लेकिन रचना पर इस की विपरीत प्रतिक्रिया हुई. वह तेजी से दौड़ कर वाशरूम में घुस गई. अंदर से उठती रुलाई के वेग को संभालने में उस के मस्तिष्क की शिराएं फटने को हो गईं पर वह आंसुओं को पी गई. बाहर दूसरी लड़कियां न सुन लें, यह डर तो था.
मन में विद्रोह ने कब जगह बना ली… जान से भी प्यारा अनिल कब उसे खलनायक सा लगने लगा, अनिल के अलग जाति के होने के कारण उस ने सब घर वालों को नाराज कर शादी की थी. अनिल का 1-1 प्रेम प्रसंग अब उसे ढोंग सा लगने लगा.
क्या मैं ने तुम्हें नहीं समझा. संपूर्ण संसार से अलग मैं सिर्फ तुम्हारे और अपने संसार में खो गई. क्यों… क्यों… एक लंबी सांस खींच कर रचना संभल गई. बाथरूम का दरवाजा खटखटाती लाखी के हाथों की हलकी आवाज उस ने सुन ली थी.
लाखी ने चाय का कप मेज पर रखा और पूछा, ‘‘रिच, कोई दवाई दूं? मेरे पर्स में हर समय कुछ न कुछ होता है.’’
रचना ने कहा, ‘‘नहीं, लाखी तुम अपना काम करो, मैं खाली चाय ही लूंगी.’’
लाखी चली गई. आज ही तो लाखी को मौका मिला था. रोज तो रचना ही उसे वह
बनाने को कहती जो उस को पसंद हो, रचना की विशेष पसंद की मीठी चीजें वह बना कर लाती थी. वह हमेशा रचना की ही पसंद की चीजें खाती थी. कभीकभी लाखी उस के इस व्यवहार से चिढ़ भी उठती थी. रचना कितनी ही बार लाखी से वे चीजें मंगवाती थी जो अनिल को पसंद हैं पर रचना को नहीं. लाखी की मां टिफिन सर्विस चलाती थी और उस के यहां रोज ढेरों चीजें बनती थीं.
लाखी इसी बात पर गुस्सा हो जाती, ‘‘ऐसा भी क्या प्रेम. विवाह हो गया तो क्या अब अपनी पसंद का खा भी नहीं सकती. जब देखो तब चौकलेट क्रौस, जब देखो तब पैन केक. मुझे क्या. शादी से पहले क्या मजे में कचौडि़यां और… लाखी व रचना साथ खाते थे. अब वह उस से अनिल की पसंद की चीजें मंगवाती थी जिन्हें रात को डिनर पर अनिल खा लेते.
मगर कभीकभी जब रचना अनिल से रूठी होती तो यही कहती, ‘‘जो मन हो सो ले आओ. लाखी के लिए इतना ही बहुत होता.
वह तली हुई दही की अरबी, आलू, मूली का लच्छा और कचालू का वड़ा लाती, दाल में खूब सारी हरी धनिया डलवाती. घी में तली देशी चीजों से रचना के प्रेम को वह जितना ही अच्छा समझती, अनिल का घी से चिढ़ना उसे उतना ही बुरा लगता. लाखी और रचना बचपन की दोस्त हैं और दोनों एकदूसरे पर जान छिड़कती थीं. रचना के पिता व लाखी के पिता की असमय मृत्यु पर लाखी की मां ने खूब सहारा दिया था.
हां, एक बात अवश्य थी. लाखी जिस दिन रचना की पसंद की चीजें भेजती, अनिल सम?ा जाता कि आज रचना उस से नाराज है. उस दिन यह जानबूझ कर फोन कर के चटखारे लेता कहता, ‘‘लाखी, बड़े दिन बाद तुम ने रचना की पसंद का खाना भेजा है. सच पूछो तो कभीकभी मुझे भी स्वाद बदलना अच्छा लगता है. यह क्या रोज मोमो या थाई कढ़ी.’’
वह कनखियों से रचना को देखता और मन ही मन मुसकराता. इधर लाखी रचना की प्रशंसा की भूखी होती. वह स्पीकर फोन पर उसे बारबार उकसाती, ‘‘रिच, अरबी खस्ता है कि नहीं. दम आलू में नमक ठीक पड़ा या नहीं.’’
रचना संकेत समझ कर कहती, ‘‘अरे लासी, तुम्हारे हाथ से कभी मसाला गलत पड़ा है. जानती नहीं, मेरी मौम भी तुम्हारी मौम से पूछ कर अचार में मसाला डालती थी,’’ रचना ने उस दिन न तो आफिस में 4 बार चाय मंगवाई और न लंच टाइम में बाहर निकली.
रमेश महरी ने पूरे डैस्क का काम कर डाला. पर रचना ने अब तक एक बार भी उसे थैंक्यू नहीं बोला और दिन होता तो रचना काम करती, उस से बातें करती रहती. उस से पूछती, उस की बीवी ने कोई और नया कांड तो खड़ा नहीं किया या रात को उसे दूसरे कमरे में तो नहीं भेज दिया, उसे मारा तो नहीं.
रमेश ने सोचा, शायद रचना की तबीयत खराब है.
रचना ने आसपास छाए सूनेपन से अनुमान लगाया कि रमेश अपनी सीट पर चला गया है. बाथरूम में मुंह धोने चल दी. मुंह धो कर दिमाग में कुछ शांति महसूस की, पर हाथपैर बिलकुल निष्प्राण से थे. जैसेतैसे बालों से ब्रश कर के वह एक काउंटर पर टेक लगा कर खड़ी हो गई. पर रोज का औफिस उस दिन बेरंग सा लग रहा था. कंप्यूटरों की खटखट की आवाजें उसे सुनाई ही नहीं दे रही थीं, यहां तक कि उस ने आती हुई लाखी को भी नहीं देखा. जब लाखी ने उसे हिलाया खटपट से उसे पता लगा कि लाखी आ गई है और मेज पर टिफिन खोल रही है. वह बैठ गई और बोली, ‘‘लाखी, आज मुझे भूख नहीं, तुम खा कर टिफिन पैक कर दो. लगता है आज पेट कुछ गड़बड़ है.’’
लाखी के चलते हाथ रुक गए, ‘‘क्या कहती हो, रिचा, भूख नहीं. अरे, सवेरे से तो हम ने कुक को काम पर लगाया और अब तुम कहती हो भूख नहीं. चलो, थोड़ा खा लो, नहीं तो मैं भी कुछ नहीं खाएंगे.’’
अकसर लाखी के न खाने की धमकी काम कर जाती थी. कारण. रचना लाखी को नाराज कर ही नहीं सकती थी. पर उस दिन उस पर इस का भी असर नहीं हुआ. वह वापस मेज पर सिर रख कर आंख मूंद कर सोने की ऐक्टिंग कर रही थी. लाखी के बहुत कहने पर भी जब उस ने खाना नहीं खाया तो लाखी
सोचने लगी, न जाने रिचा को क्या हो गया है. मियांबीवी में लड़ाई तो हुई नहीं लगती पर क्या पता हुई ही हो.
सोचतेसोचते लाखी अपने काम में मशगूल हो गई. उस का बहुत सा काम पैंडिंग पड़ा था. मगर रचना से तो नींद का जैसे वैर हो गया था. लगातार कंप्यूटर पर काम करती जा रही थी, बिना इधरउधर देखे, मानो उस में डूब जाना चाहती हो.
रचना अनिल के पिछले कई दिनों के व्यवहार का विश्लेषण कर चुकी थी उस की व्यस्तता का जो कारण उस को पता चला था उस ने उसे हिला कर रख दिया. वह किसी से कुछ नहीं कह पा रही थी. थकान के कारण वह बिस्तर पर लेट गई और सोने का प्रयत्न करने लगी कि तभी अनिल का हौर्न सुनाई पड़ा.
वह हड़बड़ा कर उठ बैठी और घर का मुख्यद्वार खोला. अनिल ने आते ही पूछा, ‘‘काकी, कैसी है तुम्हारी तबीयत.’’
रचना कुछ बोली नहीं, अनिल घबराया हुआ अंदर पहुंचा तो रचना पलंग पर लेट चुकी थी.
अनिल ने आ कर उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘रचना, कैसी हो? क्या हो गया था?’’
रचना के मौन से अनिल कुछ समझ नहीं. उस ने बाहर किचन की ओर देखा, मगर लाखी ने शायद आज कुछ ज्यादा भेजा था. उस ने डब्बे रखे थे. उस ने रचना का चेहरा ऊपर उठाया, ‘‘रचना, कुछ तो बोलो.’’
उस की आवाज में छलकते प्रेम ने रचना की भावनाओं का बांध तोड़ दिया. उस ने जोर से आती रुलाई दबाते हुए एक प्रिंट आउट उस की ओर बढ़ा दिया और रोेने लगी. आश्चर्यचकित अनिल ने उसे खोला और पढ़ने लगा. उस प्रिंट में लिखा था. यह स्क्रीन शौर्ट का प्रिंट था, अनिल के फोन के व्हाट्सऐप मैसेज का. प्रिय, तुम पिछले शनिवार को नेहरू गार्डन में नहीं आए. क्या बहुत व्यस्त हो या फिर मेरी बात का बुरा मान गए. यदि तुम आ सको तो कल दोपहर लंच के बाद छुट्टी ले कर नेहरू गार्डन आ जाना, वहीं से कहीं चलेंगे… जरूर.
पढ़ने तक उस की हंसी न रुक सकी. हंसते हुए ही उस ने रचना को पलंग से उठा लिया और झलाते हुए कहा, ‘‘एक तो मेरा फोन चैक किया और मैसेज दिया फिर प्रिंट लिया. अरे वाह, तुम भी खूब जासूस हो पर, देवीजी, यह मैसेज मेरे लिए नहीं, मेरे अपने अमन चौधरी के लिए है, जो कल अनुपस्थित था. वह दफ्तर के काम से परसों ही दिल्ली जा चुका था. उस की गर्लफ्रैंड के मैसेज मेरे पास आते हैं क्योंकि अमन की एक दूसरी गर्लफ्रैंड भी है जो बहुत पजैसिव है और रोज उस का फोन चैक करती है. मैं पढ़ कर डिलीट कर देता हूं, यह रह गया.
रचना की हालत अजीब हो गई. न रोते बना, न हंसते. वह अविश्वास से उस की ओर देखने लगी.
अनिल ने उसे झाड़ते हुए कहा, ‘‘अरे, तुम्हें विश्वास नहीं आया हो तो उठाओ फोन और पूछो दफ्तर में कि अमन से पूछ लो.’’
रचना ने आगे बढ़ कर फोन उठाया और अमन का नंबर मिला कर पूछा, ‘‘अमन साफसाफ बताओ अनिल के फोन पर मैसेज तुम्हारे लिए आते हैं. क्या वह अभी दफ्तर में ही है?’’ यह पूछते हुए उस के होंठ कांप रहे थे.
उधर से आवाज आई, ‘‘रचना तुम तो जानती हो आजकल मैं 2 लड़कियों से डेटिंग कर रहा हूं. पर जैनी बहुत पजैसिव है वह रोज किसी न किसी बहाने फोन चैक करती है इसलिए रमा के मैसेज और कौल मैं अनिल के फोन पर करता हूं. आप को बूआ पर विश्वास है न. अमन पर विश्वास न करना संभव ही नहीं था, उस ने ही रचना के भाइयों और पिता से अनिल व रचना की शादी में लड़ाई में अपनी जान तक जोखिम में डाल दी थी. वह अनिल का बचपन का दोस्त था.’’
रचना को लगा कि धरती फट जाए और वह उस में समा जाए. वह दौड़ कर अनिल के सीने में समा गई. अनिल ने उसे बांहों में भर कर एक हाथ से उस की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘रचना, आज एक फायदा तो जरूर हुआ. मुझे पता चल गया कि तुम मुझे कितना प्यार करती हो. जरा, आईना तो देखो. क्या शक्ल बना रखी है तुम ने.’’
वह शरमा गई. अनिल ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘चलो अब खाना खा लो. बेचारी लाखी ने सब तुम्हारी पसंद का ही भेजा है.’’
अनिल के वक्ष में अपना मुंह छिपाते हुए रचना ने कहा, ‘‘तुम बहुत खराब हो. यदि पहले यह मैसेज दिखा देते कि अमन का मैसेज है तो न मुझे भूखों मरना पड़ता, बेचारी लाखी को न. मेरी देखभाल करनी पड़ती.’’
तभी लाखी चाय और गाजर का हलवा सजाए वहां चली आई,’’ मुझे मालूम था कि रचना और अनिल कुछ झगड़ रहे हैं. मैं इसीलिए पहले से ही घर में मौजूद थी.
‘‘वाह री लाखी, तुम बड़ी चतुर हो. गाजर का हलवा लाई है न, जानती हो न कि यह तो हम दोनों को ही पसंद है.’’
लाखी जैसे खुशी से नाच उठी. उस ने तुरंत दोनों को बांहों में भर लिया.