मां के बिना नहीं पलते बच्चें

विवाह की इंस्टीट्यूशन की जरूरत समाज की थी क्योंकि इस के बिना मर्द औरतों को बेसहारा छोड़ देते थे और बच्चे केवल मां के सहारे ही पल पाते थे. विवाह ने छत दी और एक साथ काम करने की पार्टनरशिप दी. लेकिन धर्मों ने इस में टाग अड़ा कर इसे भगवान की देना बना दी और आज अगर शादी में सब से बड़ी रूकावट कहीं से आती हैं तो वह धर्म से है. भारत में यूनिफौर्म सिविल कोर्ट की जो बात हो रही है उस में न औरत के सुख की सोची जा रही है न मर्द के कहों की, उस में केवल यह सोचा जा रहा है कि कैसे एक धर्म वाले अपनी घौंस दूसरे धर्म वालों पर जमा सकते हैं. उस के दूसरी ओर अमेरिका ने एक नया कानून बनाया है, रिस्पैक्ट औफ मैरिज

एक्ट जिस में समलैङ्क्षगक जोड़े भी वही सामाजिक कानूनी अधिकार एकदूसरे के प्रति जता सकते हैं जो धर्मों या कानूनों ने दिए थे. 1870 में अमेरिका के राज्य मिनेसोटा में, जैक बेकर व माईकेल मैक्कोनल, ने 2 पुरुषों ने शादी के लिए अनुमति मांगी थी. जो नहीं दी गई क्योंकि बाइबल तो केवल मर्द और औरत की शादी को औरत मानती है. अब समलैंगिक या तो मैरिज सुप्रीम कोर्ट कीअदलतीबदलती मर्जी पर नहीं निर्भर रहेगी. अब अमेरिका में एक कानून चलेगा शादियों के बारे में. गे मैरिज का सवाल यूनिफौर्म सिविल कोर्ट में भी आना चाहिए पर जैसा अंदेशा है कि यह कानून अगर बना तो सिर्फ मुसलमानों के 4 तक शादियों करने के हक के लिए बनेगा जबकि आंकड़े कहते हैं कि कुल मिला कर ज्यादा ङ्क्षहदू एक से ज्यादा औरतों की पत्नी रखते हैं या कहते हैं कि फलां मेरी पत्नी है बजाए

मुसलमानों के. यूनिफौर्म सिविल कोर्ट तभी यूनिफौर्म होगा जब शादी से ङ्क्षहदू पंडित, मुसलिम मुल्लाबाजी, सिख से ग्रंथी. ईसाई से पादरी निकल जाए और सारी शादियां केवल और केवल अदालतों या अदालतों के जजों की तरह के नियुक्तमैरिज औफिसरों के द्वारा दी जिन में हर धर्म के लोग किसी भी दूसरे धर्म, जाति संप्रदाय के जने से शादी कर सकें. शादियों पर होने वाले खर्च को बचाने और शादी के नाम पर मची पंडों, पादरियों और मुल्लाओं की लूट से मुक्ति दिलाती है तो यूनिफौर्म सिविल कोर्ट होगा वरना यह धाॢमक घोंसबाजी होगी, लौलीपोप होगा. असली क्रांति तो यूनिफौर्म सिविल कोर्ट की तक होगी जब वह गे मैरिज को भी मान्यता दे. स्त्रीपुरुष की शादी को तो केवल भगवान के नाम पर माना गया है वरना गे संबंध तो सदियों से बन रहे हैं.

बिना शादी किए भी संबंध हमेशा बनते रहे हैं और 7 फेरों, भक्ति व दूसरे भगवानों के सामने बने वैवाहिक संबंधों के बावजूद पत्नी को बेसहारा छोडऩे वाले आज मौजूद हैं और धर्म का ङ्क्षढढोरा पीटते रहते हैं. यूनिफौर्म सिविल कोर्ट में हक कौंट्रेक्ट की तरह हो, अपराधों की तरह नहीं. मुकदमे सिविल अदालतों में चलें, क्रिमिनल अदालती में नहीं. पर यह होगा नहीं. आज एडल्ट्री कानून, वीमन है रेसमैंट कानून अपराधिक कानून बन गए हैं. क्या यूनिफोर्म सिविल कोर्ट विवाह संबंधों में से पुलिस, जेलों को निकाल सकेगा. नहीं तो यह सिविल नहीं होगा. यह कोर्ट अगर जनता के भले के लिए है तो कोर्ट है, वरना धौंस पट्टी होगा, इसे कोर्ट कहना ही गलत होगा. जो यूनिफौर्म सिविल कोर्ट बनेगा उस में दूसरे धर्म की ङ्क्षचता ज्यादा होगी. अपने धर्म की बुराइयों की बिलकुल नहीं यह पक्का है.

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