क्या महामारी ने बच्चों को सामाजिक रूप से असामान्य बना दिया है?

महामारी हमारी जिंदगी के सबसे मुश्किल वक्त में से एक रहा है. इसने सबकी जिंदगी को बहुत ही कठिन बना दिया और इस महामारी के दौरान जिन लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी हुई, वो हैं हमारे बच्चे. इसकी वजह है उनके बेहद ही महत्वपूर्ण विकास में रुकावट आई. ना केवल वयस्कों को, बल्कि बच्चों को भी इसी मुश्किल दौर से होकर गुजरना पड़ रहा है. बच्चों के लिये बाहरी दुनिया से सामाजिक संपर्क बढ़ाने का यह शुरूआती दौर होता है, जिससे आगे चलकर उनमें बातचीत करने की कुशलता और समझदारी बढ़ती है. बच्चे अपने साथियों को देखकर व्यवहार करना सीखते हैं और उनसे बातचीत से हाव-भाव और तौर-तरीका सीखते हैं.

Dr Amit Gupta, Senior Consultant Paediatrician & Neonatologist, Motherhood Hospital, Noida  के अनुसार, एक बच्चे के विकास के शुरूआती चरणों में बहुत सारे सामाजिक संपर्क शामिल होने चाहिये, क्योंकि वे बच्चे के सकारात्मक विकास में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं. महामारी के दौरान, मुख्य रूप से बच्चों के बीच सामाजिक संपर्क नदारद था और उन्हें कई तौर-तरीकों और भावनाओं को सीखने और समझने में भी परेशानी हुई. अपने साथियों और बाहरी दुनिया से लगातार प्रतिक्रिया ना मिलना, जो उन्हें व्यवहार सिखाने में मदद करती हैं, ने बच्चों के लिये सही-गलत की पहचान करना मुश्किल कर दिया. उनका व्यवहार दूसरों पर क्या प्रभाव डालता है, इसने आगे उनकी समझ को जटिल बना दिया.

सामाजिक संपर्क की कमी-

बाहरी दुनिया से अचानक ही संपर्क कट जाने से बच्चे किसी भी तरह की गतिविधि में हिस्सा लेने से ज्यादा कतराने लगे. सामाजिक संपर्क की कमी और ज्यादातर वक्त डिजिटल स्क्रीन के सामने बिताने से बच्चे सामाजिक संपर्कों से दूर हो गये. इसका असर यह हुआ कि अपनों या औरों के साथ बातचीत की शुरूआत करने में काफी असहज महसूस करने लगे. सामाजिक भागीदारी से बचने से और भी रुकावटें पैदा होंगी और सामाजिक असहजता से बचने के लिए बातचीत का मार्ग बंद हो जाता है.

जो बच्चे पिछले दो सालों से घरों में बंद थे, उन्हें लंबे समय तक सामाजिक संपर्क की कमी की वजह से आमने-सामने बातचीत करने में असहजता महसूस हो रही है. कुछ समय एकांत में रहने की वजह से उनके लिये इस माहौल में ढलने में परेशानी महसूस हो रही है. यदि इस पर ध्यान ना दिया जाए तो कई बार यह सामाजिक असहजता, सोशल एंग्‍जाइटी में बदल सकती है हो सकता है कि बच्चे अपने उन अनुभवों से चूक गए हों जो सामाजिक रूप से उनके विकास में सहयोगी थे, लेकिन यह असहजता उन पर स्थायी प्रभाव नहीं डालेगी. एक बच्चे का मस्तिष्क अपने शुरूआती चरणों में अभ्यास और दोहराव के साथ विकसित होता है और अभी भी ठीक होने की हैरतअंगेज क्षमता पैदा कर सकता है.

लगातार बातचीत से बच्चे सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, जो उन्हें बिना किसी झिझक के फिर से जुड़ने के लिये प्रेरित करता है.

बच्चों पर असामान्य प्रभाव-

पेरेंट्स को इस असहजता को कम करने के लिये अपने बच्चे के साथ जरूर बात करनी चाहिये, क्योंकि इस बात के लिये वे अपने पेरेंट्स की ओर देखते हैं कि अलग-अलग परिस्थितियों में किस तरह की प्रतिक्रिया होनी चाहिये. भले ही महामारी के इस चरण ने बच्चों पर असामान्य प्रभाव डाला हो, लेकिन बच्चे बदलते परिवेश को अपना लेते हैं और वे सही और बेहतर हो जाएंगे. आखिरकार, मानवजाति चुनौतीपूर्ण स्थितियों से लड़ने में हमेशा ही मजबूत रही है.

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