क्राइम है सैक्सुअल हैरसमैंट

दिल्ली की रहने वाली स्मिता (बदला हुआ नाम) सौफ्टवेयर इंजीनियर है. उस ने 15 साल तक जौब की. आखिरी बार वह जिस कंपनी में जौब कर रही थी, वहां उस का बौस अकसर उसे गलत तरीके से छूने की कोशिश करता था. वह कभी उस के बालों की तारीफ करता तो कभी उस की फिगर और स्माइल की. तंग आ चुकी थी वह इन सब बातों से. अपने बौस के बैड टच से वह आहत होती पर कुछ बोल नहीं पाती थी.

एक दिन औफिस की छुट्टी के समय मीटिंग के बहाने स्मिता के बौस ने उसे मीटिंगरूम में बुलाया. स्मिता को लगा वहां और लोग भी होंगे लेकिन कोई नहीं था सिवा उन दोनों के. जब स्मिता मीटिंगरूम से बाहर निकलने लगी तो उस के बौस ने उसे रोका और उस के साथ गलत हरकतें कीं जिस से वह काफी डर गई. आखिरकार उस ने वह जौब छोड़ दी और हमेशा के लिए अपने कैरियर को अलविदा कह दिया.

टीवी ऐक्ट्रैस और बिग बौस ‘ओटीटी’ फेम उर्फी जावेद ने एक कास्टिंग डाइरैक्टर पर कथित तौर पर सैक्सुअल फेवर मांगने का आरोप लगाया. उर्फी का कहना है कि म्यूजिक वीडियो में काम करने के बदले उस से गलत काम करने के लिए कहा गया. उर्फी ने कुछ स्क्रीनशौर्ट भी अपने सोशल मीडिया पर शेयर किए थे.

ऐक्ट्रैस की मानें तो ओबेद अफरीदी नाम के कास्टिंग डाइरैक्टर ने उसे और अन्य लड़कियों को बड़े सपने दिखा कर शारीरिक तौर पर उन के साथ संबंध बनाने की मांग की थी. उर्फी का कहना है कि लड़कियों को सैक्सुअली टौर्चर करना क्राइम है.

गंदी नजरों का सामना

सुमन एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती है. उस ने अपनी मेहनत से यह जौब हासिल की है. लेकिन अब उसे लगता है कि यह जौब उस के लिए ठीक नहीं है. कारण, औफिस में उस का बौस उसे अजीब नजरों से घूरता रहता है. उसे गलत तरीके से छूने की कोशिश करता है. बारबार बहाने बना कर उसे अपने कैबिन में बुला कर घंटों बैठाए रखता है. उस की फिगर पर सैक्सी कमैंट्स करता है और उस से सैक्सुअल फेवर की मांग करता है यह कह कर कि अगर उस ने उस की बात मान ली, तो उस के वारेन्यारे हो जाएंगे यानी जल्दी उस की प्रमोशन हो जाएगी.

मगर सुमन वैसी लड़की नहीं है जैसा उस का बौस उसे समझा रहा था. यहां तक पहुंचने के लिए उस ने बहुत मेहनत की है. उस के सपनों के साथ उस के मातापिता के भी सपने जुड़े हुए हैं. लेकिन यह बात कोई नहीं समझता. अपने मन में सोच सुमन सिसक पड़ती है कि न तो वह यह जौब छोड़ सकती है न कर सकती है, तो फिर क्या करे वह? बौस की गंदी नजरों के कारण ही सुमन ने ढीलेढाले कपड़े पहनने शुरू कर दिए.

वह दुपट्टा भी ओढ़ने लगी ताकि उस के बौस की नजर उस के स्तनों पर न जा सके. लेकिन जब इंसान की नजरें ही गंदी हों तो ढीलेढाले कपड़े पहनने से क्या फायदा? वह अपने बौस के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज नहीं करा सकती वरना बदनामी उस की ही होगी. सुमन इन दिनों मैंटल टैंशन से गुजर रही है.

मैंटल हैल्थ पर बुरा असर

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में मनोचिकिस्तक डा. राजीव मेहता का कहना है कि यौन शोषण लड़की के साथ हो या लड़के के, उस का असर इंसान के दिमाग पर पड़ता ही है. सैक्सुअल हैरसमैंट का शिकार व्यक्ति अकेलापन, ऐंग्जाइटी व डिप्रैशन का शिकार होने लगता है. उसे औफिस जाने से डर लगता है. काम में मन नहीं लगता, कैरियर में आगे बढ़ने की इच्छा खत्म हो जाती है. उसे कुछ भी अच्छा लगना बंद हो जाता है.

खासकर कामकाजी महिलाओं को घर से औफिस तक पहुंचने के रास्ते में कदमकदम पर समस्याओं से जूझना पड़ता है. लेकिन जब औफिस में भी उन्हें अपने कलीग और बौस के साथ इन्हीं समस्याओं से जूझना पड़ता है तब वे टूट जाती हैं.

सुमन और स्मिता जैसी लड़कियों को कम से कम यह तो पता है कि उन के साथ सैक्सुअल हैरसमैंट हो रहा है लेकिन कई लड़कियों और महिलाओं को यह तक पता नहीं होता कि सैक्सुअल हैरसमैंट यानी यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं? क्या यह केवल छूने से होता है या बोले गए भद्दे शब्द या इशारे भी सैक्सुअल हैरसमैंट के दायरे में आते हैं?

औफिस में सैक्सुअल हैरसमैंट  काम के दौरान सैक्सुअल बातें करना.  महिला की कमर पर कमैंट करना. महिला की फिगर पर कमैंट करना. सहकर्मी के बालों या कपड़ों को टच करना. डौल, बेबी, हनी, सोना जैसे शब्दों से संबोधित करना.

दफ्तर में होती हैं 50% महिलाएं यौन शोषण की शिकार. यौन शोषण का मामला हमेशा से ही उठता रहा है. महिलाओं को अपने परिवार में, पड़ोस में, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में या फिर औफिस में लोगों की घूरती नजरों, भद्दे कमैंट्स, अश्लील बातें, गलत तरीके से छूने का शिकार बनना पड़ता है.

भारी कीमत चुकानी पड़ती है आज शिक्षा ने महिलाओं के विकास और बराबरी का मार्ग प्रशस्त तो किया है लेकिन कई बार इस के लिए उन्हें कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ती हैं और यह बात किसी से छिपी नहीं है. कितनी ही ऐसी महिलाएं हैं जो चाह कर भी अपना यौन शोषण रोक नहीं पाती हैं.

एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की नामी कंपनियों में कामकाजी महिलाओं के यौन शोषण के मामले 31 फीसदी तक बढ़ गए हैं. हैरत की बात यह है कि 50 फीसदी महिलाएं तो आज भी लोकलाज के डर से अपने साथ हुए यौन शोषण की शिकायत करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाती हैं.

एक तथ्य के अनुसार, दुनिया के 141 देशों में यौन शोषण के खिलाफ कानून होने के बावजूद वैश्विक स्तर पर इस तरह के उत्पीड़न से गुजरने वाली महिलाओं की संख्या 38 फीसदी है. इस से ज्यादा शर्मनाक स्थिति और क्या हो सकती है?

यहां तक की स्कूल, कालेजों में भी लड़कियां, बच्चियां महफूज नहीं रहीं. वहां भी उन के साथ रोज शोषण जैसी खबरें सुननेपढ़ने को मिलती रहती है. आज शरीर विकास की सीढ़ी बनता जा रहा है. कार्यस्थलों में महिलाओं के शोषण बात तो आम हो गई है. लड़कियों और महिलाओं का वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है. अगर उन्होंने सामने वाले की बात नहीं मानी तो उन का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा.

अपमानजनक बरताव

आज जब लोगों को न्याय दिलाने वाली महिला जज ही सुप्रीम कोर्ट से अपने लिए इच्छा मृत्यु की गुहार लगा रही है तो फिर कौन महिलाओं को इंसाफ दिला सकता है. बता दें कि एक महिला जज ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम पत्र लिख कर इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई है. इस महिला जज का कहना है कि उन के साथ काफी अपमानजनक बरताव किया गया है जिस से वे काफी आहत हैं और अब वे मरना चाहती हैं जिस की उन्हें इजाजत दी जाए.

महिला जज ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि मैं भारत में रहने वाली महिलाओं से कहना चाहती हूं कि यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीखें. यही हमारे जीवन की सचाई है. यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (पौश ऐक्ट) हम से बोला गया एक बड़ा ?ाठ है. कोई हमारी नहीं सुनता. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर आप शिकायत करेंगे तो आप को और प्रताड़ना किया जाएगा.

अगर कोई महिला सोचती है कि वह सिस्टम के खिलाफ लड़ेगी तो मैं आप को बता दूं कि आप ऐसा नहीं कर सकतीं. उन्होंने आगे लिखा- मैं जज हूं, अपने लिए निष्पक्ष जांच नहीं करा सकी. अगर मु?ो न्याय के लिए केवल 8 सैकंड मिले तो अगर कोई महिला सिस्टम से लड़ने की सोचती है तो वह नहीं लड़ सकती. यह मु?ो एक जज के तौर पर महसूस हुआ.

महिला जज ने फोन पर बातचीत के दौरान बताया कि मामला सितंबर, 2022 का है. प्रताड़ना के बाद उन्होंने हाई कोर्ट से ले कर विभाग तक को पत्र लिखे, हजार से ज्यादा मेल किए, फिर एक जांच कमेटी बनाई गई. जांच 3 महीने में पूरी हो जानी चाहिए थी लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई और न ही उन की बात सुनी गई.

यह दुर्भाग्यपूर्ण है

पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका में बड़े जज यौन शोषण के आरोपों में घिरते रहे हैं.  समाज में इन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है. लेकिन जब इन के ऊपर ही ऐसे आरोप लग रहे हैं तो अब न्याय की आशा किस से की जाएगी?

मध्य प्रदेश के एक जज पर उंगली उठी. राज्य सभा के सभापति ने जांच समिति गठित की. जज निर्दोष पाए गए. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पर भी उंगली उठी. समिति बनी, वे निर्दोष पाए गए. एक अमेरिकी महिला संसद ने सदन में 2 सांसदों पर बलात्कार का आरोप लगाया. पुलिस प्रशासन पर निष्क्रियता बरतने का आरोप भी लगाया. यूरोप की एक सांसद के साथ भी ऐसा ही हुआ.

सभ्य समाज में महिलाओं के साथ ऐसा यौनाचार दुर्भाग्यपूर्ण है. उस पर सरकारों का मौन. क्या महिलाओं का कोई अस्तित्व नहीं है? क्या वे इस देश की नागरिक नहीं हैं? उन्हें बराबरी से, इज्जत से जीने का हक नहीं है? आज देश की आधी आबादी अनाथ हो गई है क्योंकि सरकार चुप है. जब मांबाप ही बच्चों के लिए चुप हो जाएं तो बच्चे तो अनाथ होंगे ही न? जब देश की महिला जज का ही एक जज शोषण करे, मांगने पर उन्हें इंसाफ न मिले और वे इच्छा मृत्यु की मांग कर बैठे तो धिक्कार है ऐसे शासन, प्रशासन और ऐसे न्यायाधीशों को.

रैसलिंग फैडरेशन औफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह पर 6 महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाया और लंबे वक्त तक सड़कों पर प्रदर्शन भी किए पर इस का नतीजा क्या निकला? इस से पहले भी सैक्सुअल हैरसमैंट के खिलाफ मीटू कैंपेन भी जोरशोर से चला, वहां भी बात ठंडी पड़ गई.

समस्या जस की तस

यौन शोषण सदा से ही कमजोर का होता है. बड़े अधिकारी नेता इस में भागीदार होते हैं. मामला सामने आने पर उन को बचाने की कोशिश जांच समितियां तक करती हैं ताकि किसी भी तरह बड़े पद पर बैठे लोगों की इज्जत बचा सकें. ऐसी जांच समितियां न्याय नहीं, अन्याय करने का काम करती हैं. अगर हाई कोर्ट भी न्याय करता तो महिला जज को इच्छा मृत्यु की गुहार नहीं लगानी पड़ती. समस्या जस की तस बनी हुई है. भले ही हम ने लोकतंत्र अपना लिया है लेकिन क्या फिर भी महिलाएं सुरक्षित हो पाईं? लोकतंत्र के तीनों पाए यौन शोषण के भेंट चढ़ गए. थानों में तो बलात्कार के मामले अब गिनती से बाहर जाने लगे हैं.

पुरुषवर्ग कितने भी पढ़लिख जाएं, कितनी ही बड़ी पोस्ट पर हों, पर उन के सुख की परिभाषा महिलाओं की देह ही है. कैसे भी कर के, जबरदस्ती पुरुष उसे नोचखसोट लेना चाहता है, भले ही औरत की मरजी न हो तब भी उसे बस पाने की जिद है. खापी कर उसे जला कर, काट कर मार डालो, पर उसे महिला की देह तो हर हाल में चाहिए ही चाहिए. आज महिलाएं अपने घर में भी सुरक्षित नहीं रहीं. भौतिकवाद में नारी को भोग की वस्तुओं में शामिल कर दिया गया है. आज सिनेमा और टीवी ने भी ‘लज्जा’ की सारी मर्यादाएं लांघ दी हैं.

न कोई कानून न कोई प्रयास

यौन अपराधों से निबटने के लिए कई कानून और संस्थाएं बन गईं. बाल अपराध और महिलाओं से जुड़े अपराधों पर कई स्पैशल कोर्ट बने हैं. पोर्नोंग्राफी कानूनन निषेध है. सिनेमा में तो यह दिखा ही नहीं सकते, किंतु यूट्यूब और अन्य प्लेटफौर्म पर ब्लू फिल्में धड़ल्ले से, बेरोकटोक, चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं. स्कूलकालेजों और कार्यस्थलों पर तो व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफौर्म ही मनोरंजन का साधन रह गए हैं. क्या गरीब क्या अमीर, आज हर हाथ मोबाइल है जहां किसी का, कभी भी वीडियो बना कर वायरल किया जा रहा है. इसे रोकने के लिए न कोई कानून है न कोई प्रयास.

 

सोचिए, जब जज की सुनवाई नहीं हो पाई तो दूसरी कामकाजी महिलाओं की कौन सुनेगा? आखिर कितनी महिलाएं इच्छा मृत्यु के लिए प्रधान न्यायधीश को पत्र लिखेंगी?

नौकरी छूटने का डर

एचआर कंसल्टैंट नेहा अरोड़ा के अनुसार, हर औफिस में इंटरनल कंप्लेंट कमेटी बनाना जरूरी है. कंपनी को हर नए एम्प्लाई को पीओएसएच पौलिसी बतानी होती है. इस के अलावा ह्यूमन रिसोर्सेज डिपार्टमेंट कंपनी के हर कर्मचारी को इस के बारे में ईमेल करते हैं और क्याक्या सैक्सुअल हैरसमैंट के दायरे में आता है, इस की शिकायत कैसे करनी है, इस का औनलाइन कोर्स करवाते हैं ताकि महिलाओं के साथसाथ पुरुष भी इस बारे में जान सकें.

हर साल इस के लिए वर्किंगशौप, सेमिनार और कोर्स करवाए जाते हैं जिस में हर कर्मचारी का भाग लेना जरूरी है. इस के अलावा कंपनी के नोटिस बोर्ड पर इस की जानकारी दी जानी चाहिए. नेहा कहती हैं कि वे पिछले 10 सालों से इस इंडस्ट्री में हैं, लेकिन उन के सामने कभी किसी महिला ने इस बारे में शिकायत नहीं की. इस की सब से बड़ी वजह है कि महिला कर्मचारी कंप्लेंट करे तो भी बलि उस की ही चढ़ती है.

अगर किसी महिला के साथ औफिस में गलत हरकत हो तो शिकायत करने पर घर वाले ही उसे नौकरी नहीं करने देंगे. औफिस में यह बात खुलेगी तो सब उस के किरदार पर ही शक करेंगे यानी की हर हाल में महिलाओं को ही नौकरी छोड़नी पड़ेगी क्योंकि देखा गया है कि पुरुष कभी ऐसे मामलों में नौकरी से रिजाइन नहीं करते. ऐसे में औरतों को लगता कि बेकार में शिकायत करने का कोई फायदा नहीं है.

बैंकिंग सैक्टर में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं

फाइनैंशियल ईयर 2022 में पिछले साल के मुकाबले सैक्सुअल हैरसमैंट के मामले बढ़ रहे हैं. कंप्लीकरोडौटकौम के सर्वे के मुताबिक, एचडीएफसी बैंक में 2022 में सब से ज्यादा सैक्सुअल हैरसमैंट की 51 शिकयतें आईं, जबकि 2021 में यह 47 थीं. आईसीआईसीआई बैंक में 2022 में 33 शिकायतें आईर्ं, जबकि इस से पहले 46 मामले सामने आए थे. विप्रो में 43 तो स्टेट बैंक औफ इंडिया में 45 मामले सामने आए.

औल इंडिया डैमोक्रेटिक वूमन ऐसोसिएशन ने दक्षिण भारत के 100 से ज्यादा औफिसों में इंटरनल कंपलेंट कमेटी के बारे में जानकारी जुटाई. इस सर्वे में पाया गया कि 51% दफ्तरों में कमेटी का गठन हुआ ही नहीं. 30 औफिस के प्रबंधकों ने बताया कि उन्हें पता ही नहीं था कि इस तरह की कमेटी बनाना अनिवार्य है. इस सर्वे में प्राइवेट हौस्पिटल, ज्वैलरी शौप, स्कूल, कालेज, शोरूम, बैंक, पोस्ट औफिस, पब्लिक लाइब्रेरी और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में विशाखा गइडलाइन के तहत कोई कमेटी नहीं मिली. सर्वे में यह भी पता चला कि केवल 27% दफ्तरों में इस बारे में कर्मचारियों को जागरूक किया.

भारतीय समाज में लड़कियों को लड़कों से हमेशा कमजोर सम?ा जाता है. वे बेचारी है, अबला हैं और पुरुष के लिए केवल एक भोग की वस्तु. औफिस में भी महिलाओं को ले कर यही सोच हावी है इसलिए वे सैक्सुअल हैरसमैंट की शिकार होती हैं.

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