शादी का जख्म: क्या सच्चा था नौशाद का प्यार

लेखक- शकीला एस हुसैन

मारिया की ड्यूटी आईसीयू में थी. जब वह बैड नंबर 5 के पास पहुंची तो सुन्न रह गई. उस के पांव जैसे जमीन ने जकड़ लिए. बैड पर नौशाद था, वही चौड़ी पेशानी, गोरा रंग, घुंघराले बाल. उस का रंग पीला हो रहा था. गुलाबी होंठों पर शानदार मूंछें, बड़ीबड़ी आंखें बंद थीं. वह नींद के इंजैक्शन के असर में था.

मारिया ने खुद को संभाला. एक नजर उस पर डाली. सब ठीक था. वैसे वह उस के ड्यूटीचार्ट में न था. बोझिल कदमों से वह अपनी सीट पर आ गई. मरीजों के चार्ट भरने लगी. उस के दिलोदिमाग में एक तूफान बरपा था. जहां वह काम करती थी वहां जज्बात नहीं, फर्ज का महत्त्व था. वह मुस्तैदी से मरीज अटैंड करती रही.

काम खत्म कर अपने क्वार्टर पर पहुंची तो उस के सब्र का बांध जैसे टूट गया. आंसुओं का सैलाब बह निकला. रोने के बाद दिल को थोड़ा सुकून मिल गया. उस ने एक कप कौफी बनाई. मग ले कर छोटे से गार्डन में बैठ गई. फूलों की खुशबू और ठंडी हवा ने अच्छा असर किया. उस की तबीयत बहाल हो गई. खुशबू का सफर कब यादों की वादियों में ले गया, पता ही नहीं चला.

मारिया ने नर्सिंग का कोर्स पूरा कर लिया तो उसे एक अच्छे नर्सिंगहोम में जौब मिली. अपनी मेहनत व लगन से वह जल्द ही अच्छी व टैलेंटेड नर्सों में गिनी जाने लगी. वह पेशेंट्स से बड़े प्यार से पेश आती. उन का बहुत खयाल रखती. व्यवहार में जितनी विनम्र, सूरत में उतनी ही खूबसूरत, गंदमी रंगत, बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी होंठ. जो उसे देखता, देखता ही रह जाता. होंठों पर हमेशा मुसकान.

उन्हीं दिनों नर्सिंगहोम में एक पेशेंट भरती हुआ. उस का टायफायड बिगड़ गया था. वह लापरवाह था. परहेज भी नहीं करता था. उस की मां ने परेशान हो कर नर्सिंगहोम में भरती कर दिया. उस के रूम में मारिया की ड्यूटी थी. अपने अच्छे व्यवहार और मीठी जबान से जल्द ही उस ने मरीज और मर्ज दोनों पर काबू पा लिया.

मारिया के समझाने से वह वक्त पर दवाई लेता और परहेज भी करता. एक हफ्ते में उस की तबीयत करीबकरीब ठीक हो गईर्. नौशाद की अम्मा बहुत खुश हुई. बेटे के जल्दी ठीक होने में वह मारिया का हाथ मानती. वह बारबार उस के एहसान का शुक्रिया अदा करती. मारिया को पता ही नहीं चला कब उस ने नौशाद के दिल पर सेंध लगा दी.

अब नौशाद उस से अकसर मिलने आ जाता. शुक्रिया कहने के बहाने एक बार कीमती गिफ्ट भी ले आया. मारिया ने सख्ती से इनकार कर दिया और गिफ्ट नहीं लिया. धीरेधीरे अपने प्यारभरे व्यवहार और शालीन तरीके से नौशाद ने मारिया के दिल को मोम कर दिया. अगर रस्सी पत्थर पर बारबार घिसी जाए तो पत्थर पर भी निशान बन जाता है, वह तो फिर एक लड़की का नाजुक दिल था. वैसे भी, मारिया प्यार की प्यासी और रिश्तों को तरसी हुई थी.

मारिया ने जब मैट्रिक किया, उसी वक्त उस के मम्मीपापा एक ऐक्सिडैंट में चल बसे थे. करीबी कोई रिश्तेदार न था. रिश्ते के एक चाचा मारिया को अपने साथ ले आए. अच्छा पैसा मिलने की उम्मीद थी. चाचा के 5 बच्चे थे, मुश्किल से गुजरबसर होती थी.

मारिया के पापा के पैसों के लिए दौड़धूप की, उसे समझा कर पैसा अपने अकाउंट में डाल लिया. अच्छीखासी रकम थी. चाचा ने इतना किया कि मारिया की आगे की पढ़ाई अच्छे से करवाई. वह पढ़ने में तेज भी थी. अच्छे इंस्टिट्यूट से उसे नर्सिंग की डिगरी दिलवाई. उस की सारी सहूलियतों का खयाल रखा. जैसे ही उस का नर्सिंग का कोर्स पूरा हुआ, उसे एक अच्छे नर्सिंगहोम में जौब मिल गई.

जौब मिलते ही चाचा ने हाथ खड़े कर दिए और कहा, ‘हम ने अपना फर्ज पूरा कर दिया. अब तुम अपने पैरों पर खड़ी हो गई हो. तुम्हें दूसरे शहर में जौब मिल गई. तुम्हारे पापा का पैसा भी खत्म हो गया. इस से ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते हैं. हमारे सामने हमारे 5 बच्चे भी हैं.’

चाची तो वैसे ही उस से खार खाती थी, जल्दी से बोल पड़ी, ‘हम से जो बना, कर दिया. आगे हम से कोईर् उम्मीद न रखना. अपनी सैलरी जमा कर के शादीब्याह की तैयारी करना. हमें हमारी

3 लड़कियों को ठिकाने लगाना है. वहां इज्जत से नौकरी करना, हमारा नाम खराब मत करना. अगर कोई गलत काम करोगी तो हमारी लड़कियों की शादी होनी मुश्किल हो जाएगी.’

सारी नसीहतें सुन कर मारिया नई नौकरी पर रवाना हुई. वह जानती थी कि उस के पापा के काफी पैसे बचे हैं. पर बहस करने से या मांगने से कोई फायदा न था. चाचा सारे जहां के खर्चे गिना देते. उस का पैकेज अच्छा था. अस्पताल में नर्सों के लिए बढि़या होस्टल था. मारिया जल्द ही सब से ऐडजस्ट हो गई. अपने मिलनसार व्यवहार से जल्द ही वह पौपुलर हो गई.

एना से उस की अच्छी दोस्ती हो गई. वह उस के साथ काम करती थी. एना अपने पेरैंटस के साथ रहती थी. उस के डैडी माजिद अली शहर के मशहूर एडवोकेट थे. जिंदगी चैन से गुजर रही थी कि नौशाद से मुलाकात हो गई. नौशाद की मोहब्बत के जादू से वह लाख चाह कर भी बच न सकी. एना उस की राजदार भी थी. मारिया ने नौशाद के प्रपोजल के बारे में एना को बताया.

एना ने कहा, ‘हमें यह बात डैडी को

बतानी चाहिए. उन दोनों ने नौशाद

के प्रस्ताव की बात माजिद अली को बताई. माजिद अली ने कहा, ‘मारिया बेटा, मैं 8-10 दिनों में नौशाद के बारे में पूरी मालूमात कर के तुम्हें बताऊंगा. उस के बाद ही तुम कोई फैसला करना.’

कुछ दिनों बाद माजिद साहब ने बताया, ‘नौशाद एक अच्छा कारोबारी आदमी है. इनकम काफी अच्छी है. लेदर की फैक्टरी है. सोसायटी में नाम व इज्जत है. परिवार भी छोटा है. पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. एक बहन आस्ट्रेलिया में है. शादी के बाद वह वहीं सैटल हो गई है. घर में बस मां है. नौशाद घुड़सवारी व घोड़ों का शौकीन है. स्थानीय क्लब का मैंबर है. पर एक बुरी लत है कि शराब पीता है. वैसे, आजकल हाई सोसायटी में शराब पीना आम बात है. ये सब बातें देखते हुए तुम खुद सोचसमझ कर फैसला करो. मुझे तो रिश्ता अच्छा लग रहा है. बाकी तुम देख लो बेटा.’ मारिया ने खूब सोचसमझ कर रिश्ते के लिए हां कर दी.

शादी का सारा इंतजाम माजिद साहब ने किया. शादी में चाचाचाची के अलावा उस की सहेलियां व माजिद साहब के कुछ दोस्त शामिल हुए. बरात में कम ही लोग थे. नौशाद के बहनबहनोई और कुछ रिश्तेदार व दोस्त. शादी में चाचा ने एक चेन व लौकेट दिए.

मारिया शादी के बाद नौशाद के शानदार बंगले में आ गई. अम्मा ने उस का शानदार स्वागत किया. धीरेधीरे सब मेहमान चले गए. अब घर पर अम्मा और मारिया व एक पुरानी बूआ थीं. सर्वेंट क्वार्टर में चौकीदार व उस की फैमिली रहती थी. अम्मा बेहद प्यार से पेश आतीं. वे दोनों हनीमून पर हिमाचल प्रदेश गए. 2-3 महीने नौशाद की जनूनी मोहब्बत में कैसे गुजर गए, पता नहीं चला.

जिंदगी ऐश से गुजर रही थी. धीरेधीरे सामान्य जीवन शुरू हो गया. मारिया ने नर्सिंगहोम जाना शुरू कर दिया. घर का सारा काम बूआ करतीं. कभीकभार मारिया शौक से कुछ पका लेती. सास बिलकुल मां की तरह चाहती थीं.

मारिया अपनी ड्यूटी के साथसाथ नौशाद व अम्मा का भी खूब खयाल रखती. सुखभरे दिन बड़ी तेजी से गुजर रहे थे. सुखों की भी अपनी एक मियाद होती है. अब नौशाद के सिर से मारिया की मोहब्बत का नशा उतर रहा था.

अकसर ही नौशाद पी कर घर आता. मारिया ने प्यार व गुस्से से उसे समझाने की बहुत कोशिश की. पर उस पर कुछ असर न हुआ. ऐसे जनूनी लोग जब कुछ पाने की तमन्ना करते हैं तो उस के पीछे पागल हो जाते हैं और जब पा लेते हैं तो वह चाहत, वह जनून कम हो जाता है.

एक दिन करीब आधी रात को नौशाद नशे में धुत आया. मारिया ने बुराभला कहना शुरू किया. नौशाद भड़क उठा. जम कर तकरार हुई. नशे में नौशाद ने मारिया को धक्का दिया. वह गिर पड़ी. गुस्से में उस ने उसे 2-3 लातें जमा दीं. चीख सुन कर अम्मा आ गईं. जबरदस्ती नौशाद को हटाया. उसे बहुत बुराभला कहा. पर उसे होश कहां था. वह वहीं बिस्तर पर ढेर हो गया. अम्मा मारिया को अपने साथ ले गईं. बाम लगा कर सिंकाई की. उसे बहुत समझाया, बहुत प्यार किया.

दूसरे दिन मारिया कमरे से बाहर न निकली, न अस्पताल गई. नौशाद 1-2 बार कमरे में आया पर मारिया ने मुंह फेर लिया. 2 दिनों तक ऐसे ही चलता रहा. तीसरे दिन शाम को नौशाद जल्दी आ गया, साथ में फूलों का गजरा लाया. मारिया से खूब माफी मांगी. बहुत मिन्नत की और वादा किया कि अब ऐसा नहीं होगा. मारिया के पास माफ करने के अलावा और कोई रास्ता न था. नौशाद पीता तो अभी भी था पर घर जल्दी आ जाता था. मारिया हालात से समझौता करने पर मजबूर थी. वैसे भी, नर्सों के बारे में गलत बातें मशहूर हैं. सब उस पर ही इलजाम लगाते.

उस दिन मारिया के अस्पताल में कार्यक्रम था. एक बच्ची खुशी का बर्थडे था. उस की मां बच्ची को जन्म देते ही चल बसी. पति उसे छोड़ चुका था. एक विडो नर्स ने सारी कार्यवाही पूरी कर के उसे बेटी बना लिया.

अस्पताल का सारा स्टाफ उसे बेटी की तरह प्यार करता था. उस का बर्थडे अस्पताल में शानदार तरीके से मनाया जाता था. मारिया उस बर्थडे में शामिल होने के लिए घर से अच्छी साड़ी ले कर गई थी. अम्मा को बता दिया था कि आने में उसे देर होगी. प्रोग्राम खत्म होतेहोते रात हो गई. उस के सहयोगी डाक्टर राय उसे छोड़ने आए थे. नौशाद घर आ चुका था.

सजीसंवरी मारिया घर में दाखिल हुई. वह अम्मा को प्रोग्राम के बारे में बता रही थी कि कमरे से नौशाद निकला. वह गुस्से से तप रहा था, चिल्ला कर बोला, ‘इतना सजधज कर किस के साथ घूम रही हो? कौन तुम्हें ले कर आया है? शुरू कर दीं अपनी आवारागर्दियां? तुम लोग कभी सुधर नहीं सकते.’

वह गुस्से से उफन रहा था. उस के मुंह से फेन निकल रहा था. उस ने जोर से मारिया को एक थप्पड़ मारा. मारिया जमीन पर गिर गई. उस ने झल्ला कर एक लात जमाई.

अम्मा ने धक्का मार कर उसे दूर किया. अम्मा के गले लग कर मारिया देर रात तक रोती रही. बर्थडे की सारी खुशी मटियामेट हो गई. 2-3 दिनों तक वह घर में रही. पूरे घर का माहौल खराब हो गया. मारिया ने उस से बात करनी छोड़ दी.

ऐसे कब तक चलता. फिर से नौशाद ने खूब मनाया, बहुत शर्मिंदा हुआ, बहुत माफी मांगी, ढेरों वादे किए. न चाहते हुए भी मारिया को झुकना पड़ा. पर इस बार उसे बड़ी चोट पहुंची थी. उस ने एक बड़ा फैसला किया, नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उसे घर बचाना था. उसे घर या नौकरी में से किसी एक को चुनना था. उस ने घरगृहस्थी चुनी. अब घर में सुकून हो गया. जिंदगी अपनी डगर पर चल पड़ी. फिर भी नौशाद कभी ज्यादा पी कर आता, तो हाथ उठा देता. मारिया हालात से समझौता करने को मजबूर थी.

शादी को 2 साल हो गए. उस के दिल में औलाद की आरजू पल रही थी. अम्मा ने खुले शब्दों में औलाद की फरमाइश कर दी थी. उस की आरजू पूरी हुई. मारिया ने अम्मा को खुशखबरी सुनाई. अम्मा बहुत खुश हुईं. उन्होंने मारिया को पूरी तरह आराम करने की हिदायत दे दी. नौशाद ने कोई खास खुशी का इजहार नहीं किया. अम्मा उस का खूब खयाल रखतीं. दिन अच्छे गुजर रहे थे.

उस दिन नौशाद जल्दी आ गया था. मारिया जब कमरे में गई तो वह पैग बना रहा था. मारिया खामोश ही रही. कुछ कहने का मतलब एक हंगामा खड़ा करना. नौशाद कहने लगा, ‘मारिया, तुम अपने अस्पताल में तो अल्ट्रासाउंड करवा सकती हो, ताकि पता चल जाए लड़का है या लड़की. मुझे तो बेटा चाहिए.’

मारिया ने अल्ट्रासाउंड कराने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘मुझे नहीं जानना है कि लड़की है या लड़का. जो भी होगा, उसे मैं सिरआंखों पर रखूंगी. मैं तुम्हारी कोई शर्त नहीं सुनूंगी. मैं मां हूं, मुझे हक है बच्चे को जन्म देने का चाहे वह लड़का हो या लड़की.’

बात बढ़ती गई. नौशाद को उस का इनकार सुन कर गुस्सा आ गया. फिर नशा भी चढ़ रहा था. मारिया पलंग पर लेटी थी. उस ने मारना शुरू कर दिया. एक लात उस के पेट पर मारी. मारिया बुरी तरह तड़प रही थी. पेट पकड़ कर रो रही थी. चीख रही थी. अम्मा व बूआ ने फौरन सहारा दे कर मारिया को उठाया. उसे अस्पताल ले गईं. वहां फौरन ही उस का इलाज शुरू हो गया. कुछ देर बाद डाक्टर ने आ कर बताया कि मारिया का अबौर्शन करना पड़ा. उस की हालत सीरियस है.

अम्मा और बूआ पूरी रात रोती रहीं. दूसरे दिन मारिया की हालत थोड़ी संभली. नौशाद आया तो अम्मा ने उसे खूब डांटा, मना करती थी मत मार बीवी को लातें. उस की कोख में तेरा बच्चा पल रहा है, तेरे खानदान का नाम लेवा. पर तुझे अपने गुस्से पर काबू कब रहता है? नशे में पागल हो जाता है. अब सिर पकड़ कर रो, बच्चा पेट में ही मर गया.

एना और माजिद साहब भी आ गए. वे लोग रोज आते रहे. मारिया की देखरेख करते रहे. नौशाद की मारिया के सामने जाने की हिम्मत नहीं हुई. हिम्मत कर के गया तो मारिया ने न तो आंखें खोलीं, न उस से बात की. उस का सदमा बहुत बड़ा था. मारिया जब अस्पताल से डिस्चार्ज हुई तो उस ने अम्मा से साफ कह दिया कि वह नौशाद के साथ नहीं रह सकती.

मारिया एना व माजिद साहब के साथ उन के घर चली गई. नौशाद ने मिलने की, मनाने की बहुत कोशिश की, पर मारिया नहीं मिली. अब माजिद साहब एक मजबूत दीवार बन कर खड़े हो गए थे.

नौशाद फिर आया तो मारिया ने तलाक की मांग रख दी. नौशाद ने खूब माफी मांगी, मिन्नतें कीं पर इस बार मारिया के मातृत्व पर लात पड़ी थी, वह बरदाश्त न कर सकी, तलाक पर अड़ गई. नौशाद ने साफ इनकार कर दिया. मारिया ने माजिद साहब से कहा, ‘‘अगर नौशाद तलाक देने पर नहीं राजी है तो आप उसे खुला (खुला जब पत्नी पति से अलग होना चाहती है, इस में उसे खर्चा व मेहर नहीं मिलता) का नोटिस दे दें.’’

माजिद साहब की कोशिश से उसे जल्दी खुला मिल गया. एना और उस की अम्मी ने खूब खयाल रखा. अम्मा 2-3 बार आईं. मारिया को समझाने व मनाने की बहुत कोशिश की. पर मारिया अलग होने का फैसला कर चुकी थी. धीरेधीरे उस के जिस्म के साथसाथ दिल के जख्म भी भरने लगे. 3 महीने बाद उसे इस अस्पताल में जौब मिल गई. यहां स्टाफक्वार्टर भी थे. वह उस में शिफ्ट हो गई.

माजिद साहब और एना ने बहुत चाहा कि वह उन के घर में ही रहे, पर वह न मानी. उस ने स्टाफक्वार्टर में रहना ही मुनासिब समझा. माजिद साहब और उन की पत्नी बराबर आते और उस की खोजखबर लेते रहे.

एना की शादी पर वह पूरा एक  हफ्ता उस के यहां रही. शादी का काफी काम उस ने संभाल लिया. शादी में इरशाद, माजिद साहब का भतीजा, दुबई से आया था. काफी स्मार्ट और अच्छी नौकरी पर था. पर मनपसंद लड़की की तलाश में अभी तक शादी न की थी. उसे मारिया बहुत पसंद आई. माजिद साहब से उस ने कहा कि उस की शादी की बात चलाएं. माजिद साहब ने उसे मारिया की जिंदगी की दर्दभरी दास्तान सुना दी. सबकुछ जान कर भी इरशाद मारिया से ही शादी करना चाहता था.

माजिद साहब ने जब मारिया से इस बारे में बात की तो उस ने साफ इनकार करते हुए कहा, ‘‘अंकल, मैं ने एक शादी में इतना कुछ भुगत लिया है. अब तो शादी के नाम से मुझे कंपकंपी होती है. आप उन्हें मना कर दें. अभी तो मैं सोच भी नहीं सकती.’’

माजिद साहब ने इरशाद को मारिया के इनकार के बारे में बता दिया. पर उस ने उम्मीद न छोड़ी.

डेढ़ साल बाद आज नौशाद को आईसीयू में यों पड़ा देख कर मारिया के पुराने जख्म ताजा हो गए. दर्द फिर आंखों से बह निकला. दूसरे दिन वह अस्पताल गई तो अम्मा बाहर ही मिल गईं. उसे गले लगा कर सिसक पड़ीं.

जबरदस्ती उसे नौशाद के पास ले गईं और कहा, ‘‘देखो, तुम पर जुल्म करने वाले को कैसी सजा मिली है.’’ यह कह कर उन्होंने चादर हटा दी. नौशाद का एक पांव घुटने के पास से कटा हुआ था. मारिया देख कर सहम गई. अम्मा रोते हुए बोलने लगीं, ‘‘वह इन्हीं पैरों से तुम्हें मारता था न, इसी लात ने तुम्हारी कोख उजाड़ी थी. देखो, उस का क्या अंजाम हुआ. नशे में बड़ा ऐक्सिडैंट कर बैठा.’’

नौशाद ने टूटेफूटे शब्दों में माफी मांगी. मारिया की मिन्नतें करने लगा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. मारिया का दिल भर आया. वह आईसीयू से बाहर आ गई. अम्मा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘बेटा, मेरा बच्चा अपने किए को भुगत रहा है. बहुत पछता रहा है. तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी अहमियत का अंदाजा हुआ उसे. बहुत परेशान था. पर अब रोने से क्या हासिल था? मारिया, मेरी तुम से गुजारिश है, एक बार फिर उसे सहारा दे दो. तुम्हारे सिवा उसे कोई नहीं संभाल सकता. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. तुम लौट आओ. तुम्हारे बिना हम सब बरबाद हैं.’’

मारिया ने अम्मा के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘अम्मा, अब यह नामुमकिन है. मैं किसी कीमत पर उस राह पर वापस नहीं पलट सकती. जो कुछ मुझ पर गुजरी है उस ने मेरे जिस्म ही नहीं, जिंदगी को भी तारतार कर दिया है. मैं अब उस के साथ एक पल गुजारने की सोच भी नहीं सकती. आप से अपील है आप अपने दिल में भी इस बात का खयाल न लाएं. आप उस की दूसरी जगह शादी कर दें.’’

मारिया घर लौट कर उस बारे में ही सोचती रही. उसे लगा, अम्मा के आंसू और मिन्नतें वह कब तक टालेगी? इस का कोई स्थायी हल निकालना जरूरी है. कुछ देर में उस के दिमाग ने फैसला सुना दिया. मारिया ने माजिद साहब को फोन लगाया और कहा, ‘‘अंकल, मैं इरशाद से शादी करने के लिए तैयार हूं. आप उन्हें हां कर दें.’’ अब किसी नए इम्तिहान में पड़ने का उस का कोई इरादा न था, नौशाद से बचने का सही हल इरशाद से शादी करना था.

आज उस ने दिल से नहीं, दिमाग से फैसला लिया था. दिल से फैसले का अंजाम वह देख चुकी थी.

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