फिल्म ‘इश्क-विश्क’ से बौलीवुड कैरियर की शुरुआत करने वाले एक्टर शाहिद कपूर ने कई सफल फिल्में देकर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनायीं है. हालांकि उनकी फ़िल्मी सफ़र कई उतार-चढ़ाव के बीच रहा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जो भी फिल्में मिली, करते गए. उन्होंने हर तरह की फिल्मों में काम किया है. ‘विवाह’, ‘जब वी मेट’, ‘पद्मावत’, ‘उड़ता पंजाब’ आदि उनकी कई ऐसी फिल्में है, जिससे बौक्स औफिस पर काफी सफलता मिली. उन्होंने जिंदगी को जैसे आया वैसे जीने की कोशिश की. काम के दौरान ही उन्होंने मीरा राजपूत से शादी की और दो बच्चों के पिता बने. सुलझे व्यक्तित्व के एक्टर शाहिद कपूर की फिल्म ‘कबीर सिंह’ की सफलता पर वे बहुत खुश है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश…
सवाल. इस फिल्म में कबीर सिंह बनना कितना कठिन था?
तेलुगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ सबको अच्छी लगी थी और इसमें कबीर राजधीर सिंह बनना मेरे लिए चुनौती थी. ये हिंदी मेनस्ट्रीम के दर्शकों के लिए बनाया गया है, जिसे लोग पसंद कर रहे है. इसमें बैकड्राप अलग है, क्योंकि ये दिल्ली और मुंबई को बेस बनाकर बनायीं गयी है. बाकी इसमें अधिक बदलाव नहीं किया गया.
सवाल. इतनी इंटेंस भूमिका करने के बाद फिर से नार्मल होना कितना कठिन था?
मुश्किल नहीं था, हर दिन मुझे अपनी भूमिका से निकलना पड़ा और अपनी पत्नी और बच्चों के पास जाना था, ऐसे में कबीर सिंह बनकर घर नहीं जा सकता था. मैं एक प्रैक्टिकल एक्टर हूं. काम और निजी जिंदगी को नहीं मिलाता.
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सवाल. आपने अलग-अलग भूमिका की है, क्या कभी आपको ऐसे एक्सपेरिमेंट से डर लगा?
ये सही है कि आज के दर्शकों के मनोभाव को समझना मुश्किल होता है. मैंने हमेशा सोच-समझकर काम करने की कोशिश की और कबीर सिंह पहले से ही एक सफल फिल्म है. इसलिए इसके लिए मुझे कभी भी डर नहीं लगा. चरित्र और कंटेंट दोनों ही फिल्म की सफलता को निर्धारित करते है. इस फिल्म में मैंने एक दिल टूटे आशिक की भूमिका निभाई है, जिससे कई लोग रिलेट कर सकते है. दर्शक अगर फिल्म की कहानी से रिलेट कर पाए, तो फिल्म सफल होती है. फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ का सब्जेक्ट बहुत ही डार्क था, इसलिए उससे सबका जुड़ना संभव नहीं था, पर वह सफल रही, क्योंकि कहानी में सच्चाई थी. अलग भूमिका निभाने में मुझे कभी डर नहीं लगा. आज लोग रियलिटी को देखना पसंद करते है और वैसी फिल्में बन भी रही है.
सवाल. क्या आप कभी इस तरह के इंटेंस प्यार के शिकार हुए?
इस फिल्म के साथ मेरी कई पुरानी यादें ताज़ा हो गयी थी. ये एक कैंपस लव स्टोरी है. कौलेज के जमाने में जब प्यार हुआ था, मैंने जब किसी लड़की को पहली नजर में पसंद किया था तो कैसे बातें की थी. जब दिल टूटा तो कैसे अनुभव हुए थे. मसलन अकेले बैठे रहना, किसी से बातें न करना, इमोशनल गाने सुनना आदि बहुत सारे अनुभव हुए थे, जबकि ऐसा रियल में होता नहीं. जिंदगी हमेशा आगे बढती जाती है. अभी मैं 38 साल का हो चुका हूं और मेरे अंदर भी कई सारे परिवर्तन हुए है, जो पहले नहीं था.
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सवाल. आजकल आप फिल्मों के माध्यम से मैसेज देने की कोशिश कर रहे है, क्या फिल्में परिवेश को बदलने में सफल होती है?
आज के दर्शक काफी जागरूक है. वे फिल्मों को फिल्मों के नजरिये से ही देखते है और हर फिल्म में मैसेज नहीं होता. जबरदस्ती इससे डालने की भी जरुरत नहीं होती, क्योंकि फिल्में मनोरंजन का माध्यम है. इस फिल्म में मुझे एक बात अच्छी लगी है कि इसमे डिप्रेशन में जाने वाले को दिखाया गया है और अधिकतर लोग जब डिप्रेशन में होते है, तो उन्हें लगता है कि उन्हें कोई समझ नहीं रहा. वे अकेले इससे दौर से गुजर रहे है, जबकि ऐसा नहीं होता. बहुतों को ऐसा होता है और उससे खुद ही व्यक्ति निकल सकता है. मैंने अलग-अलग इमोशन की फिल्में करने की कोशिश की है. आम जीवन में हर दिन एक जैसे नहीं होता और फिल्में भी उसी की प्रतिबिम्ब होती है.
सवाल. प्यार के बारे में आपकी सोच क्या है?
मैं प्यार को स्ट्रोंगली मानता हूं और इससे जुड़ी शादी को भी अहमियत देता हूं. प्यार को सही नाम देना भी आपके उपर निर्भर करता है. प्यार की जरुरत हमेशा सभी को होती है.
सवाल. आप किस तरह के पिता है और बच्चों को किस तरह की आजादी देते है?
मैंने जरुरत के अनुसार काम किया है. जैसे बच्चों को खाना खिलाना, उनके डायपर बदलना, खेलना, स्कूल जाना, उनकी किताबें पढ़ना, सुलाना आदि सब किया है. मीरा कई बार परेशान हो जाती है ,पर मैं उन्हें सम्हाल लेता हूं. बच्चों को हर काम की आजादी, उनके उम्र के हिसाब से देता हूं. मैं बच्चों के साथ रोज समय बिताने की कोशिश करता हूं और अगर न बिता पाया तो असहज महसूस करता हूं.
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सवाल. क्या अभिनय के अलावा और कुछ करने की इच्छा है?
मैं फिल्मों से जुड़े हुए ही कुछ काम करने की इच्छा रखता हूं, लेकिन वह समय मिलने पर ही करना चाहता हूं.
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