Bloody Daddy Movie Review: शाहिद कपूर की औसत दर्जे की फिल्म

  • रेटिंगः पांच में से दो स्टार
  • निर्माताः जियो स्टूडियो,  आज फिल्मस,  आफसाइड इंटरटेनमेंट
  • लेखकः अली अब्बास जफर,  आदित्य बसु और सिद्धार्थ गरिमा
  • निर्देशकः अली अब्बास जफर
  • कलाकार: शाहिद कपूर, राजीव खंडेलवाल, रोनित रौय, संजय कपूर,  डायना पेंटी, सरताज कक्कड़,  अंकुर भाटिया, विवान बथेना, जीषान कादरी, मुकेश भट्ट, अमी ऐला, विक्रम मेहरा व अन्य.  
  • अवधिः दो घंटे एक मिनट
  • ओटीटी प्लेटफार्म: जियो सिनेमा

यूं तो ड्ग्स माफिया के इर्द गिर्द घूमने वाली कहानियों पर कई फिल्में बन चुकी हैं. अब इसी तरह की कहानी पर ‘टाइगर जिंदा है’ जैसी कई एक्षन फिल्मों के निर्देशक अली अब्बास जफर फिल्म ‘‘ब्लडी डैडी’’ लेकर आए हैं, जो कि 2011 में प्रदर्षित फ्रेंच क्राइम फिल्म ‘‘नुइट ब्लैंच’’ का हिंदी रीमेक है. फिल्म की षुरूआत में बताया गया है कि कोविड के दूसरे चरण के बाद पूरे देश में अपराध बढ़े हैं. मगर अफसोस फिल्म की कहानी से इसका कोई संबंध नही है. लेकिन फिल्म की कहानी एक अलग स्तर पर है. इस कहानी में नारकोटिक्स विभाग से जुड़े पुलिस कर्मियों के बीच आपसी रंजिश, ड्ग माफिया के नारकोेटिक्स विभाग में छिपे गुप्तचर और ड्ग माफिया है.

कहानीः

नारकोटिक्स अधिकारी सुमैर (शाहिद कपूर) एक दिन सुबह सुबह अपने सहयोगी के साथ ड्रग लेकर जा रही कार का पीछा कर उस कार से पचास करोड़ की ड्ग का बैग अपने कब्जे मे ले लेता है. पर ड्ग ले जा रहा इंसान भागने में सफल हो जाता है. परिणामतः ड्रग लॉर्ड माफिया और सेवन स्टार होटल के मालिक सिकंदर (रोनित रॉय) अपने लोगों की मदद से सुमेर के बेटे अथर्व (सरताज कक्कड़) का अपहरण करवा लेता है. अब सिकंदर चाहता है कि सुमैर ड्ग का बैग वापस कर अपने बेटे को ले जाए. सुमैर के पास ऐसा करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नही है.  क्योंकि उसकी पत्नी आएषा ( अमी ऐला ) उसे छोड़कर अन्य नारकोटिक्स अफसर आकाश के संग रह रही हैं. पर बेटा उसके साथ रह रहा है. सिकंदर (रोनित रॉय) को ड्ग का बैग हर हाल में चाहिए, क्यांेकि उसने ड्ग का सौदा काफी उंची कीमत पर एक अन्य ड्ग माफिया हमीद (संजय कपूर) के साथ किया है. कोई अन्य विकल्प नहीं बचा होने के कारण सुमैर एनसीबी मुख्यालय से बैग को पुनः प्राप्त कर अपने बेटे अथर्व को छुड़ाने के लिए सिकंदर के होटल में प्रवेश करता है.  जहां सुमैर के बौस समीर राठौड़ (राजीव खंडेलवाल) के कहने पर ज्यूनियर नारकोटिक्स अफसर अदिति (डायना पेंटी),  सुमेर के बैग को चुरा लेती है, जिसे समीर अपनी गाड़ी में डाल देता है. समीर एक तीर से दो निषाने करने जा रहा है.  हकीकत में समीर,  सिकंदर के लिए काम करता है. अब वह सुमैर को अपराधी के रूप में गिरफ्तार करना चाहता है. कहानी में कई मोड़ आते हैं.

लेखन व निर्देशनः

अली अब्बास जफर की एक्षन फिल्मों पर से पकड़ खोती जा रही है. इस फिल्म की पटकथा काफी लचर है. फिल्म की षुरूआत में कुछ उम्मीदें बंधती हैं, मगर आधे घंटे के बाद फिल्म शिथिल होने लगती है. इंटरवल के बाद फिल्म पर से लेखक व निर्देशक दोनों की पकड़ कमजोर हो जाती है. पिता पुत्र के बीच के समीकरण ठीक से चित्रित ही नही किए गए. फिल्म लेखन व निर्देशन की खामियों से भरी हुई है. एक बार टेंडर अपनी पहली आकस्मिक मुलाकात में अचानक किसी व्यक्ति से उसकी शादी के बारे में कैसे पूछ सकता है? एक बार मूर्ख बन चुका इंसान पुनः उसी इंसान की मदद केसे कर सकता है? क्या वह भूल जाएगा कि इसी इंसान ने उसे पिछली बार मूर्ख बनाया था.

एक नारकोटिक्स अधिकारी नकली मौत का नाटक कर सकता है?गले में गोली लगने पर भी 5-10 मिनट के बाद होश में आ सकता है? महिला शौचालय में पुरुश बेरोकटोक आ जा सकते हैं? फिर भी सेवन स्टार होटल की गरिमा बरकरार है? मतलब कि पूरी फिल्म गलतियों और बेवजह की गालियों व खून खराबा का जखीरा मात्र है. सिकंदर और हामिद ड्ग माफिया हैं, मगर इनके बीच बहुत ही गलत अंदाज में हास्य के दृष्य पिरोए गए हैं. पूरी फिल्म देखकर यह कहना मुश्किल है कि इन्ही अली अब्बास जफर ने अतीत में ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘सुलतान’ जैसी फिल्में निर्देशित की हैं.

वैसे भी अली अब्बास जफर निर्देशित नौ फिल्मों में से सिर्फ यही दोे एक्षन प्रधान फिल्में लोगों को पसंद आयी थीं. मगर फिर वह एक्षन पर से भी अपनी पकड़ खो बैठे. किचन के अंदर राजीव खंडेलवाल और षाहिद कपूर के बीच के एक्षन दृष्य अच्छे बन पड़े हैं. षायद निर्माता व निर्देशक को अहसास हो गया था कि उनकी फिल्म ‘‘ब्लडी डैडी’’ सिनेमाघरों में पानी नहीं मांगने वाली है, इसीलिए इसे ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो सिनेमा’ पर मुफ्त में देखने के लिए डाल दिया.

अभिनयः

सुमैर के किरदार में जिस तरह के अभिनय की षाहिद कपूर से आपेक्षा थी, उसमंे वह खरे नहीं उरते.  निजी जीवन में भी वह पिता बन चुके हैं, इसके बावजूद पिता पुत्र के बीच जिस तरह के इमोषंस होने वाहिए, उन्हें वह परदे पर लाने में विफल रहे हैं. कुछ दृश्यों में वह ओवरएक्टिंग करते हुए नजर आते हैं.  डायना पेंटी से ज्यादा उम्मीद नही थी. वह अपनी पिछली फिल्मों की ही तरह दोश पूर्ण संवाद अदायगी करते हुए नजर आती हैं. सिकंदर के किरदार में रोनित रौय अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं. उन्होने ड्ग माफिया,  गैंगस्टर होने के साथ ही सेवन स्टार होटल के मालिक सिकंदर के किरदार में काफी सधा हुआ अभिनय किया है. बेवजह चिल्लाते नही है, मगर अपने अभिनय से वह खौफ जरुर पैदा करते हैं. ड्ग माफिया हामिद के छोटे किरदार में संजय कपूर का अभिनय ठीक ठाक है.  समीर के ेकिरदार में राजीव खंडेलवाल सबसे अधिक कमजोर नजर आते हैं.

आखिर क्यों कबीर सिंह के रिव्यूज को हिप्पोक्रिटिकल मानते हैं शाहिद

16 साल के कैरियर में शाहिद कपूर ने काफी उतारचढ़ाव  झेले हैं. पर उन्होंने हार नहीं मानी. मगर अब फिल्म ‘कबीर सिंह’ को मिली अपार सफलता ने सारे समीकरण बदल कर रख दिए हैं. ‘कबीर सिंह’ अब तक लगभग 300 करोड़ रुपए कमा चुकी है. शाहिद के लिए यह एक नया अनुभव है, लेकिन वह कबीर सिंह के रिव्यूज को हिप्पोक्रिटिकल मानते हैं, जानें क्या है वजह…

फैंस को पसंद आई फिल्म

दर्शक फिल्म को पसंद कर रहे हैं, जबकि फिल्म आलोचकों ने काफी आलोचना की थी. इतना ही नहीं, कई समाजसेवियों ने भी फिल्म के खिलाफ आवाज उठाई थी.

 

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These weekend numbers got us all like ? #kabirsingh

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शाहिद का ये है मानना

फिल्म को मिले रिव्यूज पर शाहिद कहते हैं, ‘‘फिल्म के रिव्यू बहुत क्रिटिकल आए. जब हौलीवुड फिल्मों में रौ सीन दिखाते हैं, तो लोग कहते हैं कि यह बहुत महान सिनेमा है. यह पाखंड ही है कि 2013 में प्रदर्शित फिल्म ‘द वोल्फ औफ वाल स्ट्रीट’ में लियोनार्डो डि कैप्रियो ने जो किरदार निभाया था उस में तो कबीर सिंह से ज्यादा समस्याएं थीं. लेकिन सभी आलोचकों ने उस की जम कर तारीफ की थी. पर वही लोग कबीर सिंह की आलोचना कर रहे हैं. जबकि दर्शकों ने ‘द वोल्फ औफ वाल स्ट्रीट’ की ही तरह ‘कबीर सिंह’ को पसंद किया है. सच कह रहा हूं कि एक तरफ मु झे बहुत ही हिप्पोक्रिटिकल फीलिंग आई. रिव्यूज बहुत हिप्पोक्रिटिकल थे.’’

 

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Thank you for the overwhelming love. #kabirsingh

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बता दें, शाहिद कपूर जल्द ही नई फिल्म जर्सी में नजर आने वाले हैं. वहीं इल फिल्म में उनकी हिरोइन सुपर 30 और बाटला हाउस जैसी फिल्मों में काम कर चुकी एक्ट्रेस मृणाल ठाकुर नजर आएंगी. अब देखना ये है कि क्या शाहिद अपनी नई फिल्म से भी कबीर सिंह जैसा जादू चला पाते हैं या नहीं.

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