Father’s day Special: अपनी कामयाबी का श्रेय अपने पिता को देती हैं शक्ति मोहन

मिडिल क्लास फैमिली में यदि एक से ज्यादा लड़कियां हों तो कुछ परिवारों में मातापिता उन की परवरिश और शादी को ले कर आज भी चिंतित हो उठते हैं मगर दिल्ली के रहने वाले बृजमोहन शर्मा की सोच अलग थी. उन्होंने अपनी बेटियों को अपना मुकाम हासिल करने की पूरी आजादी दी.

शक्ति मोहन अपनी कामयाबी का सारा श्रेय अपने पिता बृजमोहन शर्मा को देती हैं. डांस रिऐलिटी शो ‘डांस इंडिया डांस सीजन 2’ की विजेता बनने के बाद 10 सालों से वे मुंबई में रह रही हैं. डांस शो जीतने के बाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई शोज की जज भी बन चुकी हैं. कई फिल्मों में भी काम किया है. शक्ति को आईएएस बनने की इच्छा थी, लेकिन डांस करना बहुत पसंद था. 8 साल भरतनाट्यम और 4 साल कंटैंपरेरी डांस सीखा. शक्ति की 3 बहनें हैं- नीति मोहन, कृति मोहन और मुक्ति मोहन. सभी बहनें किसी न किसी रूप में कला से जुड़ी हैं.

जब शक्ति ने डांस के क्षेत्र में आगे बढ़ने की बात की, तो उन की बड़ी बहन ने बताया कि यह क्षेत्र तो अच्छा है,लेकिन इस में स्टैबिलिटी कम है. लेकिन शक्ति के पिता को उन पर पूरा भरोसा था और इसीलिए यहां तक पहुंचने के हर कदम पर वे शक्ति को आगे बढ़ाने में सहायता करते रहे. शक्ति से बात करना दिलचस्प रहा. पेश हैं, कुछ अंश:

सवाल- यहां तक पहुंचने में पिता का कितना सहयोग रहा?

पिता ने हम सभी बहनों को सब से अधिक आजादी दी है. उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि सिर्फ पढ़ाई करो. मुझे जो पसंद है उसे करने में वे मुझ से भी एक कदम आगे रहते हैं. किसी भी अचीवमैंट पर वे सब से पहले तालियां बजाने वाले हैं. आज मैं जो भी हूं, उन की बदौलत हूं. मैं अपनी कामयाबी का श्रेय अपने पिता को देती हूं.

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सवाल- उन की किस बात को आप जीवन में उतारना पसंद करती हैं?

डेटूडे लाइफ के उतारचढ़ाव को वे समझाते हैं, जिस से कोई निर्णय लेना मेरे लिए आसान हो जाता है. उन्होंने कभी मेरे ऊपर कोई प्रैशर नहीं बनाया कि तुम यह क्या कर रही हो, इस से क्या मिलेगा आदि. वे हमेशा कहते हैं कि यह तुम्हारी लाइफ है, तुम्हें जो अच्छा लगे, जिसे करने में अच्छा अनुभव हो उसे करो. वे कहते हैं कि किसी भी काम को अगर आप मेहनत और लगन से करते हैं, तो सफलता अवश्य मिलती है. इस  के लिए धैर्य बनाए रखना बहुत जरूरी है.

सवाल- पिता का दिया कोई ऐसा गिफ्ट, जिसे आप हमेशा अपने पास रखना पसंद करती हैं?

जब मैं ने मुंबई यूनिवर्सिटी में स्नातक में टौप किया था, तो मेरे पिता ने मुझे एक पैन दिया था, जिसे वे बहुत सहेज कर रखते थे. मुझे इतनी खुशी हुई कि मैं बयां नहीं कर सकती. मेरे लिए वह सब से कीमती भेंट है.

सवाल- क्या लड़की होने के नाते पिता ने कभी कोई सलाह दी है?

हम 4 बहनें हैं, हम ने बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई की है. वहां भी हमें पूरी फ्रीडम थी. पिता ने कभी यह नहीं समझने दिया कि हम लड़कियां हैं. हालांकि कई बार रिश्तेदार और पड़ोसी कहते थे कि ये क्या कर रहे हैं? लड़की को नचा रहे हैं अथवा उन के बेटा नहीं है, उन की लाइफ के अंत में क्या होगा आदि. लेकिन पिता ने हमें कभी इस बात का एहसास नहीं करवाया. दिल्ली में रहते हुए हम रात को भी रिहर्सल के लिए जाते थे. बस में जाना, रात को लौटना आदि सब करते थे. किसी प्रकार की रोकटोक नहीं थी. इस से हमारे अंदर दायित्व की भावना और अधिक आ गई थी. दरअसल, जब कोई आप से उम्मीद रखता है, तो आप की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि आप उम्मीद को तोड़ें नहीं.

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