एक जिंदगी, एक सपना है, जिसे आप पूरा करना चाहती है -विद्या बालन    

फिल्म ‘परिणीता’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘कहानी’ आदि कई फिल्मों से अपने अभिनय की लोहा मनवा चुकी अभिनेत्री विद्या बालन स्वभाव से हँसमुख, विनम्र और स्पष्ट भाषी हैं. ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ उसके करियर की टर्निंग पॉइंट थी, जिसके बाद से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उन्होंने बेहतरीन परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते. साल 2014 में उसे पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वह आज भी निर्माता,निर्देशक की पहली पसंद है. अपनी कामयाबी से वह खुश हैं और मानती है कि एक अच्छी स्टोरी ही एक सफल फिल्म दे सकती है. विद्या तमिल, मलयालम, हिंदी और अंग्रेजी में पारंगत हैं. विद्या की फिल्म शकुंतला देवी अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो चुकी है, जिसमें उसने शकुंतला देवी की मुख्य भूमिका निभाई है. जर्नी के बारें में विद्या ने रोचक बातें की, पेश है कुछ अंश. 

सवाल- इस फिल्म में खास क्या लगा? कितनी तैयारियां करनी पड़ी?

जब मुझे इस भूमिका का ऑफर मिला तो सबसे पहले मैंने अपने आपसे पूछी कि आखिर मैं ये फिल्म क्यों करना चाहती हूं. मैं जानती हूं कि वह गणित की जीनियस है, उसका दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता है,पर जब मैंने उसपर रिसर्च करना शुरू किया तो इतना मनमोहिनी उसकी कहानी थी कि मैं दंग रह गयी.ना कहने की कोई गुंजाईश ही नहीं थी. 

इसके लिए मैंने कई सारी तैयारियां कि थी. शकुंतला के सारे शोज बहुत आकर्षक और मनोरंजक थे, जिसे मैंने देखे. इसके अलावा पलभर में कठिन सवाल को हल कर लेना भी अद्भुत था.  असल में शकुंतला देवी लोगों को बताना चाहती थी कि मैथ्स हर क्षेत्र में है और मुझे उनकी उस क्वालिटी, एसेंस और स्प्रिट को पकड़ना था. उन्होंने गणित को हर क्षेत्र में देखा था, उन्हें नंबर से प्यार था. मुझे भी नंबर्स से बहुत प्यार है. इसलिए मुझे मेरी भूमिका को समझना आसान था. इसके अलावा उसके बात करने का तरीका सीखना पड़ा, जिसके लिए मैंने एक कोच की सहायता ली , जिसने मुझे संवाद को बोलना सिखाया. उनकी जिंदगी के सारे लेयर्स की गहराई में मुझे जाने पड़े, ताकि बायोपिक अच्छी बने. इसके साथ-साथ शकुंतला देवी की बेटी अनुपमा बैनर्जी और उनके दामाद अजय ने हमारे साथ बहुत कुछ शेयर किया जिससे सिनेमेटिक लिबर्टी लेने की जरुरत नहीं पड़ी, क्योंकि इसमें बहुत सारे ड्रामा है, जिसमें उनके जीवन के उतार-चढ़ाव और संघर्ष शामिल है. जैसा हर इन्सान के जीवन में होता है. 

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सवाल- अधिकतर महिलाएं अपने परिवार के लिए अपनी इच्छाओं को दांव पर लगाती है, इस बारें में आप क्या सोचती है?

ये सही है कि महिलाएं हमेशा परिवार को अधिक महत्व देती है. जब वे माँ बनती है तो उनका जीवन बच्चे के इर्द-गिर्द घूमता है. शकुंतला देवी का कहना था कि वह बच्चे को प्यार करती है, पर वह अपने कैरियर को भी उतना ही प्यार करती है और दोनों को साथ में करने में कोई हर्ज़ नहीं. दरअसल समाज में महत्वकांक्षी महिलाओं को आज भी सहयोग कम मिलता है. माँ बनना ही उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. हर महिला को अपनी आइडेंटिटी की लड़ाई अकेले ही लड़नी पड़ती है. उन्हें आज़ादी उतनी ही मिलती है, जितनी वह अपने परिवार के साथ रहकर कर पाए. उससे आगे निकलकर नहीं. इसके अलावा महिला कितनी भी कामयाब क्यों न हो जाय परिवार उन्हें उस रूप में स्वीकार नहीं कर पाता. शकुंतला देवी को विश्व जीनियस मानता था, पर घर पर उसकी बेटी उसे नार्मल माँ बनने की इच्छा जाहिर करती थी. हर बच्चा उसके जिंदगी के इर्द-गिर्द  माता-पिता को ही देखना चाहता है. आज भी कामकाजी महिलाएं वैसा न कर पाने की स्थिति में खुद में अपराधबोध की शिकार होती है.

सवाल- आपने हमेशा एक स्ट्रोंग महिला की भूमिका हमेशा निभाई है, इसका प्रभाव आपके रियल लाइफ पर कितना पड़ा?

हर चरित्र कुछ न कुछ सिखाती है. मैंने भी बहुत कुछ सीखा है. ये आपको अंदर से पूरा भी करती है. शकुंतला देवी से मैंने सीखा है कि अगर आपमें आत्मविशवास है तो आप कुछ भी कर सकते है. वह स्कूल भी नहीं गयी थी, लेकिन पूरा विश्व उन्हें ह्युमन कम्प्यूटर माना, इसलिए अगर आपको खुद पर विश्वास है तो आप अपने मंजिल तक पहुँच सकते है. 

सवाल- माँ ने आपकी जिंदगी को कैसे प्रभावित किया?

मैं दूसरों के बारें में हमेशा सोचती थी. माँ ने मुझे खुद के बारें में सोचना सिखाया. ये मुझे हमेशा अभी भी याद दिलाती रहती है. साल 2007-08 में जब मुझे मेरे ड्रेस और वजन को लेकर काफी आलोचना की जा रही थी. मैने अभिनय छोड़ने का मन बना लिया था, पर माँ ने मुझे पास बिठाकर समझाया था कि मेहनत करने पर वजन घट जायेगा. किसी के कहने पर मैं हार नहीं मान सकती और मैंने उनकी बात मानी और आज यहाँ पर पहुंची हूं. 

सवाल- फिल्म थिएटर पर रिलीज न होकर डिजिटल पर रिलीज हुई है, इस बारें में क्या कोई रिग्रेट है?

कोरोना संक्रमण के इस माहौल में जो भी हो रहा है वह अच्छा हो रहा है. इस समय सब लोग घरों में है. इस फिल्म को परिवार के साथ देख सकते है. 200 देशों के लोग इसे देख सकेंगे, जो मेरे लिए ख़ुशी की बात है, कोई रिग्रेट नहीं. 

सवाल- बायोपिक कई बार सफल नहीं होती, आपकी राय इस बारें में क्या है?

पूरा विश्व महिलाओं को आगे लाने की कोशिश कर रहा है, कई देशों में घरेलू हिंसा पर भी आन्दोलन भी किये जा रहे है. ऐसे में इस तरह की फिल्में सबमें आत्मविश्वास को भरने में कामयाब होती है. हालाँकि महिलाओं से जुड़े कई अच्छी कहानियां है जिनकी बायोपिक बनायीं जानी चाहिए. ये कहानियां सबको प्रेरित करती है.

सवाल- परिवार की प्रेशर की वजह से कई महिलाएं शादी के बाद या बच्चे हो जाने के बाद काम नहीं कर पाती और रिग्रेट करती रहती है, उनके लिए आप क्या कहना चाहती है?

कभी भी कोई काम के लिए देर नहीं होती, जब भी आपको जिंदगी में कुछ करने की इच्छा होती है आप कर सकते है. जो महिलाएं काम और परिवार को लेकर असमंजस में रहती है, उनके लिए मेरा कहना है कि आप अपने काम को कैरियर के साथ जारी रखिये. थोड़ी समस्या शुरू में आ सकती है, पर धीरे-धीरे वे समझ जायेंगे कि आपकी भी एक जिंदगी है, एक सपना है, जिसे आप पूरा करना चाहती है और अगर न समझे तो वे लोग सही मायने से आपसे प्यार नहीं करते, क्योंकि जिसे आप प्यार करते है, उनके लिए आपका पूरा सहयोग रहता है, उनकी ख़ुशी आपकी ख़ुशी होती है. बच्चे की जिम्मेदारी केवल माँ की नहीं पिता और पूरे परिवार की है. माँ सबकुछ त्याग कर घर सम्हाले ये ठीक नहीं. माँ के भार को कम करने की जरुरत है, ताकि माँ भी खुद की जिंदगी अच्छी तरह जी सकें. 

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सवाल- एक अच्छे दोस्त की जरुरत जिंदगी में क्यों होती है? भले ही वह व्यक्ति पति क्यों न हो?

पति पत्नी में आपसी विश्वास ही एक अच्छी दोस्ती को जन्म देती है. एक अच्छा दोस्त आपके हर मुश्किल घड़ी में साथ रहता है और ये जरुरी भी है. 

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