50th जयंती वर्ष में कौन Yashraj Films को डुबाने पर है आमादा?

मशहूर फिल्मकार यश चोपड़ा ने 1970 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘‘यशराज फिल्मस’’ की स्थापना की थी, जिसके तहत उन्होने पहली फिल्म ‘‘दागःए पोयम आफ लव’’ का निर्माण व निर्देशन किया था, जो कि 27 अप्रैल 1973 को प्रदर्शित हुई थी. तब से अब तक ‘यशराज फिल्मस’’ के बैनर तले ‘कभी कभी ’, ‘नूरी’, ‘काला पत्थर’,  ‘सिलसिला’,  ‘मशाल’, ‘ चांदनी’, ‘ लम्हे’,  ‘दोस्ती’,  ‘वीरजारा’, ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’,  ‘मोहब्बतें’, ‘रब ने बना दी जोड़ी’, ‘एक था टाइगर’,  ‘मर्दानी’,  ‘सुल्तान’ सहित लगभग अस्सी फिल्मों का निर्माण किया जा चुका है.

‘‘यशराज फिल्मस’’ अपनी स्थापना के समय से ही लगातार उत्कृष्ट फिल्में बनाता आ रहा है. जिसके चलते लगभग सभी फिल्में बाक्स आफिस पर सफलता दर्ज कराती रही हैं. लेकिन अब जबकि ‘‘यशराज फिल्मस’’ अपनी पचासवीं जयंती मना रहा है, तो लगातार इस बैनर की छवि धूमिल होती जा रही है. ‘मर्दानी 2’, ‘बंटी और बबली 2’, ‘जयेशभाई जोरदार’, ‘सम्राट पृथ्वीराज’ और 22 जुलाई को प्रदर्शित फिल्म ‘‘शमशेरा’’ ने बाक्स ऑफिस पर बुरी तरह से दम तोड़ा है. ‘यशराज फिल्मस’’ जैसे बौलीवुड के बड़े बैनर की लगातार छह फिल्मों की बाक्स आफिस पर हुई दुर्गति से ‘यशराज फिल्मस’ के साथ ही बौलीवुड को पांच सौ करोड़़ का नुकसान हो चुका है. हर निर्माता पहली फिल्म की असफलता के बाद ही फिल्म की असफलता का पोस्टमार्तम कर गलतियों को सुधारना शुरू कर देता है. लेकिन यहां ‘यशराज फिल्मस’’ की एक दो नहीं बल्कि लगातार छह फिल्में असफल हो चुकी हैं, मगर कोई हलचल नही है. मजेदार बात यह है कि यह सब तब हो रहा है, जब इसकी बागडोर ‘यशराज फिल्मस’ के संस्थापक स्व.  यश चोपड़ा के बेटे आदित्य चोपड़ा ने संभाल रखी है. आदित्य चोपड़ा कोई नौसीखिए नही हैं. आदित्य चोपड़ा को सिनेमा की बेहतरीन समझ है.  आदित्य चोपड़ा स्वयं अब तक ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’(1995),  ‘मोहब्बतें’(2000 ),  ‘रब ने बना दी जोड़ी’(2008) जैसी बेहतरीन व सफलतम फिल्मों का लेखन व निर्देशन कर चुके हैं. लेकिन अब एक तरफ ‘यशराज फिल्मस’ की फिल्में असफल होकर ‘यशराज फिल्मस’ को डुबाने में लगी हुई हैं, तो वहीं आदित्य चोपड़ा चुप हैं. उनकी तरफ से कोई हरकत नजर नही आ रही है. बौलीवुड के एक तबके का मानना है कि भारतीय सिनेमा पर से आदित्य चोपड़ा की पकड़ खत्म हो चुकी हैं. कुछ लोगों की राय में आदित्य चोपड़ा का 2012 के बाद दूसरी व्यस्तताओं के चलते आम लोगों से शायद संवाद कम हो गया है, जिसके चलते समाज व दर्शकों  की पसंद व नापसंद को वह ठीक से अहसास नही कर पा रहे हैं. जबकि तब से दर्शकों की रूचि में तेजी से बदलाव आया है. अब दर्शक सिर्फ भारतीय सिनेमा ही नहीं,  बल्कि हौलीवुड के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं में बन रहे सिनेमा को भी देख रहा है. बौलीवुड से ही जुड़े कुछ लोगों की राय में आदित्य चोपड़ा के इर्द गिर्द चंद चमचे इकट्ठे हो गए हैं, जिन्हे ‘यशराज फिल्मस’ के आगे बढ़ने से कोई मतलब नही है, उन्हें महज अपने स्वार्थ की चिंता है. कम से कम ऐसे लोगों से आदित्य चोपड़ा जितनी जल्दी दूरी बनाकर समाज व दर्शकों के साथ संवाद स्थापित करेंगे, उतना ही ‘यशराज फिल्मस’ के लिए बेहतर होगा.

बहरहाल, ‘यशराज फिल्मस’ के पतन की शुरूआत तो 2017 में ही हो गयी थी. इस बैनर तले 2017 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मेरी प्यारी बिंदू’’ और ‘कैदी बैंड’’ ने भी बाक्स आफिस पर पानी नही मंागा था. पर 22 दिसंबर 2017 को प्रदर्शित फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा है’’ने जरुर सफलता दर्ज कराकर ‘यशराज फिल्मस’ की लाज बचा ली थी. उसके बाद 2018 में ‘हिचकी’, ‘सुई धागा’, ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’ ने बाक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खा गयी थीं. 2019 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘वार’’ ने थोड़ी सी राहत दी थी. पर उसके बाद प्रदर्शित सभी फिल्में बाक्स आफिस मंुह के बल गिरती चली आ रही हैं.

क्यों डूबी ‘‘शमशेरा’’

बड़े बजट की मेगा पीरियड फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को डुबाने में फिल्म के चार लेखक,  निर्देशक करणमल्होत्रा और कलाकारों के साथ ही फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. यह कितनी शर्मनाक बात है कि भव्यस्तर पर बनी फिल्म ‘शमशेरा’ रविवार के दिन महज ग्यारह करोड़(निर्माता के दावे के अनुसार,  अन्यथा सूत्र दावा कर रहे है कि ‘शमशेरा’ ने रवीवार को भी आठ करोड़ से ज्यादा नही कमाए. )़ ही कमा सकी. मजेदार बात यह है कि हिंदी, तमिल, तेलगू व मलयालम भाषा में फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को 22 जुलाई के दिन एक साथ भारत के 4300 सिनेमाघरों स्क्रीन्स और विदेशो में 1500 स्क्रीन्स पर रिलीज किया गया था. पर पहले ही दिन कुछ शो कैंसिल हुए. दूसरे दिन भी शो कैंसिल हुए. यानी कि हर दिन स्क्रीन्स की संखा घटती गयी. कई थिएटरों से इस फिल्म को उतार दिया गया. सिर्फ भारत ही नही विदेशों भी इसकी दुर्गति हो गयी. प्राप्त आंकड़ो के अनुसार आस्ट्ेलिया में ‘शमशेरा’ कुल तिहत्तर स्क्रीन में रिलीज हुई थी, जिससे महज 41 हजार डालर ही कमा सकी.  जबकि इस फिल्म में रणबीर कपूर,  संजय दत, रोनित रॉय,  वाणी कपूर,  सौरभ शुक्ला सहित कई दिग्गज कलाकारों ने अभिनय किया है. यह फिल्म रणबीर कपूर की पूरे चार वर्ष बाद अभिनय में वापसी है. मगर वह भी इस फिल्म को डूबने में योगदान देने में पीछे नहीं रहे. यॅूं भी जब फिल्म के कंटेंट मंे ही दम नही है, तो फिर दर्शक फिल्म देखने के लिए अपनी गाढ़ी कमायी क्यांे फुंकने लगा?लेखकों ने तो इतिहास के साथ भी छेड़खानी की. आदिवासियों के शौर्य का अपना इतिहास है, मगर लेखकांे ने तो उसे भी नकार कर सिर्फ गोरी चमड़ी यानी कि ब्रिटिश शासकों की मानवता व उनकी उदारता का गुणगान करते रहे. तो वहीं यह फिल्म धर्म को लेकर भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नही करती. बल्ली यानी कि रणबीर कपूर के किरदार को देखकर लेखकों व निर्देशक के दिमागी दिवालिएपन का अहसास किया जा सकता है.

फिल्म का गलत प्रचार भी ले ‘‘शमशेरा’’ को ले डूबाः

फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को आजादी मिलने से पहले अंग्रेजों से देश की आजादी के संघर्ष की कहानी के रूप में प्रचार किया था. जबकि यह फिल्म देश की आजादी नही बल्कि एक कबीले या यॅंू कहें कि एक आदिवासी जाति की आजादी की कहानी मात्र है. जी हॉ!यह देश की स्वतंत्रता की लड़ाई नही है. कहानी पूरी तरह से देसी जातिगत संघर्ष पर टिकी है, जिसका विलेन एक भारतीय शुद्ध सिंह ही है.

‘यशराज फिल्मसः कौन डुबाने पर उतारू

सबसे अहम सवाल यह है कि ‘‘यशराज फिल्मस’’ को कौन डुबाने पर उतारू है? ‘‘यशराज फिल्मस’’ की 2017 से ही लगातार बुरी तरह से डूबते जाने की एक नहीं कई वजहें हैं. यदि गंभीरता से विश्लेषण किया जाए, तो ‘यशराज फिल्मस’ को डुबाने में आदित्य राय के इर्दगिर्द जमा हो चुके कुछ चमचे, मार्केटिंग टीम, पीआर टीम,  रचनात्मक टीम, टैलेंट मनेजमेंट’के साथ ही आदित्य चोपड़ा का समाज व दर्शकों से पूरी तरह कट जाना ही जिम्मेदार है. बौलीवुड का एक तबका मानता है कि अब वक्त आ गया है, जब आदित्य चोपड़ा को अपने प्रोडक्शन हाउस की रचनात्मक टीम के साथ ही मार्केटिंग व पीआर टीम में अमूलचूल बदलाव कर सिनेमा को किसी अजेंडे की बजाय दर्शकों की रूचि के अनुसार सिनेमा बनाएं.

टैलेंट मनेजमेंटः

2012 में ‘‘यशराज फिल्मस’’  का चेअरमैन का पद संभालने के साथ ही आदित्य चोपड़ा ने नए कलाकारों को आगे बढ़ाने के नेक इरादे से ‘टैलेंट मनेजमेंट’ की शुरूआत की थी.  और 2013 के बाद ‘यशराज फिल्मस’ ने स्थापित व नए कलाकारों को मिलाकर फिल्में बनानी शुरू की. बौलीवुड से जुड़े अधिसंख्य सूत्र मानते हैं कि 2012 के बाद ‘यशराज फिल्मस ’ का रचनात्मकता से मोहभ्ंाग होने लगा था. सब कुछ एक फैक्टरी की तरह होेने लगा था. ‘टैलेंट मैनेजमेंट’ के तहत वाणी कपूर, परिणीत चोपड़ा सहित ऐसे कलाकारांे को जोड़ा गया जिनमें संुदरता के अलावा कोई गुण नही है. इन कलाकारों का अभिनय से कोई नाता ही नही है. बाक्स आफिस पर बुरी तरह से धराशाही हो चुकी फिल्म ‘शमशेरा’ के दो मुख्य कलाकार रणबीर कपूर व वाणी कपूर यशराज के ही टैलेट मैनेजमेंट का हिस्सा हैं. असफलतम फिल्म ‘‘बंटी और बबली’’ की अभिनेत्री शारवरी वाघ, ‘जयेशभाई जोरदार ’ की शालिनी पांडे व रणवीर सिंह और ‘सम्राट पृथ्वीराज’ की मानुषी छिल्लर भी टैलेंट मैनेजमंेट का हिस्सा हैं. तो क्या यह माना जाए कि टैलेंट मैनेजमेंट की जिम्मेदारी संभाल रहे लोग अपने काम को सही ढंग से अंजाम देने में असमर्थ रहे हैं?इस पर आदित्य चोपड़ा को  गंभीरता से सोचना व विश्लेषण करना चाहिए.

मार्केटिंग टीमः

‘यशराज फिल्मस’ की मार्केटिंग टीम जिस तरह से कामकर रही है, उस पर वर्तमान हालात को देखते हुए विचार व विश्लेषण करना जरुरी है. वर्तमान समय में मार्केटिंग टीम फिल्म के लिए दर्शक बटोरने के लिए जिस तरह से सिटी टूर करती है और सोशल मीडिया पर पैसे खर्च करती है, वह वास्तव में ‘क्रिमिनल वेस्टेज आफ मनी’ के अलावा कुछ नही है. सिटी टूर के लिए कलाकार व उनकी टीम के अलावा कई लोग हवाई जहाज से यात्रा करते हैं, फाइव स्टार होटलो मंे ठहरते हैं और किसी माल या सिनेमाघर में हजारों लोगांे की भीड़ के बीच उटपटंाग हरकते करके वापस आ जाते हैं. इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि किसी भी सिटी मंे फिल्म के कलाकारों को देखने या सुनने आने वाले लोगों में से दस प्रतिशत लोग भी फिल्म देखने क्यों नहीं आते? आॅन ग्राउंड इवेंट में दस बीस हजार लोग जुड़ते हैं, जिसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किए जाते हैं. इसके बावजूद इनमें से हजार लोग भी फिल्म देखने थिएटर के अंदर नहीं आते? जबकि मार्केटिंग टीम के अनुसार इस तरह उस शहर के सभी लोग फिल्म देखने आएंगे. इसी तरह यह बात साबित हो चुकी है कि कलाकार के सोशल मीडिया के फालोवअर्स की संख्या बल पर फिल्म की सफलता का दावा नही किया जा सकता. महानायक अमिताभ बच्चन के सोशल मीडिया पर करोड़ों फालोवअर्स हैं, पर उनकी फिल्म को उनमें से कुछ लाख भी टिकट लेकर फिल्म देखने सिनेमाघर के अंदर नही जाते. तो मार्केटिंग टीम सोशल मीडिया पर फिल्म के टीजर, ट्ेलर व गानों को मिल रहे व्यूज के आधार पर फिल्म की सफलता को लेकर गलत आकलन पेश करती है. इससे फिल्म को सिर्फ नुकसान ही होता है.

पी आर टीम का  अधकचरा ज्ञान व कार्यशैलीः

कुछ दिन पहले हमने एक बड़े बैनर की फिल्म के पीआरओ को ‘‘गृहशोभा’’ और ‘‘सरिता’’ में छपे इंटरव्यू की फोटोकापी भेजी, तुरंत उसका फोन आया कि यह मैगजीन है या वेब साइट है और कब से निकलना शुरू हुई है. यह मैगजीन कहंा बिकती है? इससे हमारे दिमाग में सवाल उठा कि इस इंसान को फिल्म का प्रचारक कैसे नियुक्त कर दिया गया? फिल्म के प्रचारक का काम होता है कि वह फिल्म का प्रचार कर उसे एक ‘ब्रांड’ के रूप में स्थापित कर दे. मगर इस कसौटी पर सभी फिल्म प्रचारक बहुत पीछे हैं. इन प्रचारको @पीआरओ को खुद नहीं पता होता कि उनकी फिल्म का विषय क्या है? वह तो गलत ढंग से फिल्म का प्रचार कर फिल्म का बंटाधार करने में अहम भूमिका निभाते हैं. पीआरओ को इस बात की समझ होनी चाहिए कि वह कब किस पत्रकार को कलाकार या निर्देशक से इंटरव्यू करवाए? पर यहां तो फिल्म के प्रदर्र्शन से एक सप्ताह पहले सभी फिल्म पत्रकारों को बुलाकर एक साथ बैठा दिया जाता है. इस ग्रुप इंटरव्यू में 20 से 57 पत्रकार भी होते देखे हैं. इतना ही नहीं इसमें मैगजीन, दैनिक अखबार, वेब सहित सभी पत्रकार होते हैं. पीआरओ हमेशा एक ही रोना रोता रहता है कि क्या करंे कलाकार के पास समय नही है.  अथवा क्या करें हमें मार्केटिंग टीम की तरफ से कलाकार का सिर्फ एक दिन या दो घंटे का ही वक्त मिला है. सच तो प्रोडक्शन हाउस व कलाकार को ही पता होता है. यदि कलाकार सिटी टूर करने में वक्त बर्बाद करने की बजाय पत्रकारों के साथ अपनी फिल्म पर चर्चा करना शुरू करें, तो शायद फिल्म को लेकर सही बता दर्शक तक पहुॅचेगी,  जिससे स्थिति बदल सकती है.

वास्तव में जरुरत है कि बौलीवुड का हर फिल्म निर्माता दस बारह वर्ष पहले की तरह अपनी मार्केटिंग टीम व पीआर टीम की जवाब देही तय करे.  आज समय की सबसे बड़ी मांग यही है कि हर इंसान की जवाबदेही तय हो. कम से कम इस दिशा में ‘‘यशराज फिल्मस’’ के आदित्य चोपड़ा को गंभीरता से पहल करते हुए अपनी पूरी क्रिएटिब टीम, मार्केटिंग टीम व पीआर टीम की जांच परख कर आवश्यक कदम उठाने चाहिए, तभी वह ‘‘यशराज फिल्मस’’ की डूबती प्रतिष्ठा को वापस ला सकते हैं. अब वक्त आ गया है जब आदित्य चोपड़ा को स्वयं मंथन करने के बाद खुलकर सामने आना होगा. मंथन कर,  दूसरों पर यकीन करने की बजाय अपने अंदर नई उर्जा को जगाकर आदित्य चोपड़ा को स्वयं ऐसी फिल्म निर्देशित करनी चाहिए, जिसे दर्शक स्वीकार करें.

REVIEW: जानें कैसी है Ranbir Kapoor की फिल्म Shamshera

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा

निर्देशकः करण मल्होत्रा

लेखकः एकता पाठक मलहोत्रा,नीलेश मिश्रा,खिला बिस्ट,पियूष मिश्रा

कलाकारः रणबीर कपूर,संजय दत्त, वाणी कपूर, रोनित रौय,सौरभ शुक्ला,क्रेग मेक्गिनले व अन्य

 अवधिः दो घंटे 40 मिनट

सिनेमा एक कला का फार्म है. सिनेमा समाज का प्रतिबिंब होता है. सिनेमा आम दर्शक के लिए  मनोरंजन का साधन है. मगर इन सारी बातों को वर्तमान समय का फिल्म सर्जक भूल चुका है. वर्तमान समय का फिल्मकार तो महज किसी न किसी अजेंडे के तहत ही फिल्म बना रहा है. कुछ फिल्मकार तो वर्तमान सरकार को ख्ुाश करने या सरकार की ‘गुड बुक’ में खुद को लाने के ेलिए अजेंडे के ही चलते फिल्म बनाते हुए पूरी फिल्म का कबाड़ा करने के साथ ही दर्शकों को भी संदेश दे रहे हंै कि दर्शक उनकी फिल्म से दूरी बनाकर रहे. कुछ समय पहले फिल्म ‘‘सम्राट पृथ्वीराज ’’ में इतिहास का बंटाधार करने के बाद अब फिल्म निर्माता आदित्य चोपड़ा ने जाति गत व धर्म के अजेंडे के तहत पीरियड फिल्म ‘‘शमशेरा’’ लेकर आए हैं,जिसमें न कहानी है, न अच्छा निर्देशन न कला है. जी हॉ! फिल्म ‘शमशेरा’ 1871 से 1896 तक नीची जाति व उंची जाति के संघर्ष की अजीबोगरीब कहानी है,जो पूरी तरह से बिखरी और भटकी हुई हैं. इतना ही नही फिल्म ‘शमशेरा’’ में नीची जाति यानीकि खमेरन जाति के लोगों को नेस्तानाबूद करने का बीड़ा उठाने वाल खलनायक का नाम है-शुद्धि सिंह. इससे भी फिल्मकार की मंशा का अंदाजा लगाया जा सकता है. अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गयी है कि इस तरह अजेंडे के ेतहत फिल्म बनाने वाले कभी भी बेहतरीन कहानी युक्त मनोरंजक फिल्म नही बना सकते. वैसे इसी तरह आजादी से पहले चोर कही जाने वाली अति पिछड़ी जनजाति ‘क्षारा’  गुजरात के कुछ हिस्से मंे पायी जाती थी. इस जनजाति के लोगो ने अपने मान सम्मान के लिए काफी लड़ाई लड़ी. इनका संघर्ष आज भी जारी है.

आदित्य चोपड़ा की पिछले कुछ वर्षों से लगातार फिल्में बाक्स आफिस पर डब रही हैं. सिर्फ तीन माह के अंदर ही ‘जयेशभाई भाई जोरदार’ व ‘सम्राट पृथ्वीराज’ के बाद बाक्स आफिस पर दम तोड़ने वाली ‘शमशेरा’ तीसरी फिल्म साबित हो रही है. मजेदार बात यह है कि आदित्य चोपड़ा निर्मित यह तीनों फिल्में धर्म का भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नही करती. इसकी मूल वजह यह भी समझ में आ रही है कि अब फिल्म निर्माण नहीं बल्कि फैक्टरी का काम हो रहा है. मुझे उस वक्त बड़ा आश्चर्य हुआ जब एक बड़ी फिल्म प्रचारक ने कहा-‘‘अब क्वालिटी नही क्वांटीटी का काम हो रहा है,जिसकी सराहना की जानी चाहिए. ’ ’ वैसे फिल्म प्रचारक ने एकदम सच ही कहा. पर क्वांटीटी के नाम पर उलजलूल फिल्मों का सराहना तो नही की जा सकती. ऐसी पीआर टीम किसी फिल्म या निर्माता निर्देशक या कलाकारों को किस मुकाम पर ले जाएगी, इसका अहसास हर किसी को कर लेना चाहिए.

कहानी:

कहानी 1871 में शुरू होती है. उत्तर भारत के किसी कोने में एक खमेरन नामक बंजारी कौम थी,जिसने मुगलों के खिलाफ राजपूतों का साथ दिया.  लेकिन मुगल जीत गए और राजपूतों ने खमेरनों को नीची जाति बता कर हाशिये पर डाल दिया. इससे शमशेरा(रणबीर कपूर) के नेतृत्व में खमेरन बागी हो गए और वह हथियार उठाकर डाकू बन गए.  शमशेरा और उसके साथियों ने अमीरों की नाक में दम कर दिया. तब अमीरों ने अंग्रेज अफसरों से मदद की गुहार लगायी.  अंग्रेज पुलिस बल में नौकरी कर रहा दरोगा शुद्ध सिंह (संजय दत्त) अपने हुक्मनारों से कहता है कि वह शमशेरा को ठीक कर देगा. शुद्ध सिंह,शमशेरा को समझाता है कि सभी खमेरन के साथ वह सरकार के सामने आत्म समर्पण कर दें,जिसके बदले में अंग्रेज उन्हे अमीरो से दूर एक नए इलाके में बसाएंगे.  पैसा भी देंगे.  इससे वह और उसकी पूरी कौम सम्मान और इज्जत का जीवन फिर शुरू कर सकते हैं. शमशेरा समझौते को मंजूर कर लेता है. लेकिन आत्मसमर्पण करते ही शमशेरा को अहसास होता है कि उसके और खमेरन कौम को धोखा मिला है.  शुद्ध सिंह ने इन सभी को काजा नाम की जगह पर बनी विशाल किलेनुमा जेल में कैद कर देता है और फिर इनके साथ गुलामों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है. इस किले के तीन तरफ से अति गहरी आजाद नदी बहती है. शमशेरा को शुद्ध सिंह समझाता है कि अंग्रेज लालची हैं. अमीरों ने पांच हजार करोड़ सोने के सिक्के दिए हैं,वह दस हजार करोड़ सोने के सिक्के दे,तो उसे व उसकी पूरी खमेरन कौम को आजादी मिल जाएगी. स्टैंप पेपर पर लिखा पढ़ी हो जाती है. सोना जमा करने के लिए किले से बाहर निकलना जरुरी है. इसी चक्कर में शुद्ध सिंह की चाल में फंसकर शमशेरा न सिर्फ मारा जाता है,बल्कि खमेरन कौम उसे भगोड़ा भी कहती है.

शमशेरा की मौत के वक्त उसकी पत्नी गर्भवती होती है,जो कि बेटे बल्ली (रणबीर कपूर) को जन्म देती है. बल्ली 25 वर्ष का हो गया है. मस्ती करना और जेल के अंदर डांस करने आने वाली सोना(वाणी कपूर ) के प्यार में पागल है. अब तक उसे किसी ने नहीं बताया कि उसे भगोड़े का बेटा क्यों कहा जाता है. बल्ली भी अंग्रेजों की पुलिस में अफसर बनना चाहता है. शुद्धसिंह उसे अफसर बनाने के लिए परीक्षा लेने के नाम पर बल्ली की जमकर पिटायी कर देता है. तब उसकी मां उसे सारा सच बाती है कि उसका पिता भगोड़ा नही था,बल्कि सभी खमेरन को आजाद करने की कोशिश में उन्हे मौत मिली थी. तब बल्ली भी अपने पिता की ही राह पकड़कर उस जेल से भागने का प्रयास करता है,जिसमें उसे कामयाबी मिलती है. वह काजा से निकलकर नगीना नामक जगह पहुॅचता है,जहां उसके पिता के खमेरन जाति के कई साथी रूप बदलकर शमशेरा के आने का इंतजार कर रहे हैं. उसके बाद बल्ली उन सभी के साथ मिलकर सभी खमेरन को आजाद कराने के लिए संघर्ष शुरू करता है. सोना भी उसके साथ है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः शुद्धसिंह मारा जाता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसके चार लेखक व निर्देशक करण मल्होत्रा खुद हैं. फिल्म में एक नहीं चार लेखक है और चारों ने मिलकर फिल्म का सत्यानाश करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है. इनचारों ने 2013 की असफल हौलीवुड फिल्म ‘‘द लोन रेंजर’’ की नकल करने के साथ ही डाकू सुल्ताना,फिल्म ‘नगीना’ व असफल फिल्म ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’ का कचूमर बनाकर ‘शमशेरा’ पेश कर दिया. लेखकों व निर्देशक के दिमागी दिवालियापन की हद यह है कि इस जेल के अंदर सभी खमेरन मोटी मोटी लोहे की चैन से बंधे हुए हैं. इन्हे नहाने के लिए पानी नहीं मिलता. दरोगा शुद्ध सिंह इनसे क्या काम करवाता है,यह भी पता नही. सभी के पास ठीक से पहनने के लिए कपड़े नही है. इन सब के बावजूद बल्ली अच्छे कपड़े पहनता है. बल्ली ने अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई कहां व कैसे की. वह अंग्रेजों और शमशेरा के बीच हुआ अंग्रेजी में लिखा समझौता पढ़-समझ लेता है. वह नक्शा पढ़ लेता है. आसमान में देखकर दिशा समझ जाता है. सोना जैसी डंासर से इश्क भी कर लेता है.

हौलीवुड फिल्म ‘‘ द लोन रेंजर’’ में ट्ेन,सफेद घोड़ा व लाखों कौए,बाज पक्षी के साथ ही पिता की मृत्यू के बदले की कहानी भी है. यह सब आपको फिल्म ‘‘शमशेरा’’ में नजर आ जाएगा.  शमशेरा और बल्ली पर जब भी मुसीबत आती है,उनकी मदद करने लाखों कौवे अचानक पहुॅच जाते हैं,ऐसा क्यांे होता है,इस पर फिल्म कुछ नही कहती. लेकिन जब बल्ली किले से भाग कर एक नदी किनारे बेहोश पड़ा होता है, तो उसे होश में लाने के लिए कौवे की जगह अचानक एक बाज कैसे आ जाता है? मतलब पूरी फिल्म बेसिर पैर के घटनाक्रमों का जखीरा है. एक भी दृश्य ऐसा नही है जिससे दर्शकों का मनोरंजन हो. इंटरवल से पहले तो फिल्म कुछ ठीक चलती है,मगर इंटरवल के बाद केवल दृश्यों का दोहराव व पूरी फिल्म का विखराव ही है.

2012 में फिल्म ‘अग्निपथ’ का निर्देशन कर करण मल्होत्रा ने उम्मीद जतायी थी कि वह एक बेहतरीन निर्देशक बन सकते हैं. मगर 2015 में फिल्म ‘‘ब्रदर्स’’ का निर्देशन कर करण मल्होत्रा ने जता दिया था कि उन्हे निर्देशन करना नही आता. अब पूरे सात वर्ष बाद ‘शमशेरा’ से जता दिया कि वह पिछले सात वर्ष निर्देशन की बारीकियां सीखने की बजाय निर्देशन के बारे में उन्हे जो कुछ आता था ,उसे भी भूलने का ही प्रयास करते रहे. तभी तो बतौर निर्देशक ‘शमशेरा’ में वह बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म के कई दृश्य अति बचकाने हैं. निर्देशक को यह भी नही पता कि 25 वर्ष में हर इंसान की उम्र बढ़ती है,उसकी शारीरिक बनावट पर असर होता है. मगर यहां शुद्ध सिंह तो ‘शमशेरा’ और ‘बल्ली’ दोनो के वक्त एक जैसा ही नजर आता है.

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी पीयूष मिश्रा लिखित संवाद हैं. कहानी 1871 से 1896 के बीच की है. उस वक्त तक देश में खड़ी बोली का प्रचार प्रसार होना शुरू ही हुआ था.  अवधी और ब्रज बोलने वाला फिल्म में एक भी किरदार नहीं है जो उत्तर भारत की उन दिनों की अहम बोलियां थी.

फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने इस फिल्म को आजादी मिलने से पहले अंग्रेजों से देश की आजादी की कहानी के रूप में प्रचार किया. जबकि यह पूरी फिल्म देश की आजादी नही बल्कि एक कबीले या यॅंू कहें कि एक आदिवासी जाति की आजादी की कहानी मात्र है.  जी हॉ!यह स्वतंत्रता की लड़ाई नही है. इस फिल्म में अंग्रेज शासक विलेन नही है. फिल्म में अंग्रेजांे यानी श्वेत व्यक्ति की बुराई नही दिखायी गयी है. बल्कि कहानी पूरी तरह से देसी जातिगत संघर्ष पर टिकी है,जिसका विलेन भारतीय शुद्ध सिंह ही है.

फिल्म का वीएफएक्स भी काफी घटिया है. फिल्म का गीत व संगीत भी असरदार नही है. फिल्म के संगीतकार मिथुन ने पूरी तरह से निराश किया है. फिल्म का बैकग्राउंड संगीत कान के पर्दे फोड़ने पर आमादा है. यह संगीतकार की सबसे बड़ी असफलता ही है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो यह फिल्म और यह किरदार उनके लिए नही था. उन्हें फिलहाल रोमांस और डांस ही करना चाहिए. जितना काम यहां उन्होंने किया, उतना कोई भी कर सकता था. वैसे भी यह रणबीर कपूर वही है जो आज भी अपने कैरियर की पहली फिल्म का नाम नही बताते. उनकी इच्छा के अनुसार सभी को पता है कि रणबीर कपूर की पहली फिल्म ‘‘सांवरिया’’ थी,जिसके लिए उन्होने अपनी पहली फिल्म को कभी प्रदर्शित नही होने दिया. पर ‘सांवरिया’ असफल रही थी. वैसे रणबीर कपूर ने अपनी 2018 में प्रदर्शित अपनी पिछली फिल्म ‘‘संजू’’ में बेहतरीन अभिनय किया था. मगर चार वर्ष बाद ‘शमशेरा’ से अभिनय में वापसी करते हुए वह निराश करते हैं.

वाणी कपूर ने 2013 में प्रदर्शित अपनी पहली ही फिल्म ‘‘शुद्ध देसी रोमांस’’ से जता दिया था कि उन्हे अभिनय नही आता. उनके पास दिखाने के लिए सिर्फ खूबसूरत जिस्म है. उसके बाद ‘बेफिक्रे’,‘वार’,‘बेलबॉटम’ और ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ में भी उनका अभिनय घटिया रहा. फिल्म ‘शमशेरा’ में भी वही हाल है.  उनके कपड़े डिजाइन और मेक-अप करने वाले भूल गए कि कहानी साल 1900 से भी पुरानी है. इस फिल्म में भी कई जगह उन्होने बेवजह अपने जिस्म की नुमाइश की है. देखना है इस तरह वह कब तक फिल्म इंडस्ट्ी मंे टिकी रहती हैं. इरावती हर्षे का अभिनय ठीक ठाक है.

कुछ मेकअप की कमियों को नजरंदाज कर दें तो संजय दत्त ने कमाल का अभिनय किया है. वैसे उनका किरदार काफी लाउड है.  संजय दत्त का किरदार फिल्म का खलनायक है,पर वह क्रूर कम और कॉमिक ज्यादा नजर आते हैं.  फिर भी उनका अभिनय शानदार है. पूरी फिल्म में सिर्फ संजय दत्त ही अपनी छाप छोड़ जाते हैं. सौरभ शुक्ला जैसे शिक्षित कलाकार ने यह फिल्म क्यों की,यह बात समझ से परे है. शायद रोनित राय ने भी महज पेसे के लिए फिल्म की है.

क्या होना चाहिएः

यश राज चोपड़ा की कंपनी ‘यशराज फिल्मस’’ की अपनी एक गरिमा रही है. यह प्रोडक्शन हाउस उत्कृष्ट सिनेमा की पहचान रहा है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ‘यशराज फिल्मस’ की छवि काफी धूमिल हुई है. इस छवि को पुनः चमकाने और  अपने पिता यशराज चोपड़ा के यश को बरकरा रखने के लिए आवश्यक हो गया है कि अब आदित्य चोपड़ा गंभीरता से विचार करें. बौलीवुड का एक तबका मानता है कि अब वक्त आ गया है,जब आदित्य चोपड़ा को अपने प्रोडक्शन हाउस की रचनात्मक टीम के साथ ही मार्केटिंग व पीआर टीम में अमूलचूल बदलाव कर सिनेमा को किसी अजेंडे की बजाय सिनेमा की तरह बनाएं.  माना कि ‘यशराज फिल्मस’ के पास बहुत बड़ा सेटअप है. पर आदित्य चोपड़ा को चाहिए कि वह अपनी वर्तमान टीम में से कईयों को बाहर का रास्ता दिखाकर सिनेमा की समझ रखने वाले नए लोगों को जगह दे, वह भी ऐसे नए लोग, जो उनके स्टूडियो में कार से स्ट्रगल करने न आएं.  जिनका दिमाग विदेशी सिनेमा के बोझ तले न दबा हो.  कम से कम इतनी असफल फिल्मों के बाद आदित्य को समझ लेना चाहिए कि एक अच्छी फिल्म सिर्फ पैसे से नहीं बनती.

कैंसर होने के बावजूद ‘शमशेरा’ की शूटिंग कर रहे हैं संजय दत्त, पढ़ें खबर

अगस्त माह के दूसरे सप्ताह में जब सांस लेने की तकलीफ की वजह से अभिनेता संजय दत्त मुंबई के लीलावती अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे थे, तो वहां पर जांच के दौरान पता चला था कि वह फेफड़े के कैंसर यानी कि लंग कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं. उस वक्त खुद संजय दत्त ने ट्विटर पर जाकर ऐलान किया था कि वह अपनी बीमारी की वजह से कुछ दिनों के लिए अभिनय से दूरी बना रहे हैं. तब कयास लगाए जा रहे थे कि संजय दत्त तुरंत अपना इलाज कराने के लिए अमेरिका जाएंगे.

संजय दत्त के फेफड़े के कैंसर से पीड़ित होने की खबर आने के साथ ही बॉलीवुड में अजीब सा डर और चिंता की लहर पैदा हो गयो थी. यहां तक की कुछ निर्माता बहुत परेशान हो गए थे. क्योंकि उनकी फिल्में 90 प्रतिशत पूरी थी . ऐसे में संजय दत्त ने भी एक जिम्मेदार इंसान और अभिनेता के रूप में निर्णय लिया कि वह अपना अधूरा काम पूरा करने के बाद ही अमेरिका जाएंगे. फिर संजय दत्त ने अपनी पत्नी मान्यता से सलाह लेने के बाद मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल मैं अपना इलाज कराना शुरू कर दिया. थोड़ी सी राहत मिलने के बाद कल, सोमवार से संजय दत्त मुंबई में अंधेरी स्थित यशराज स्टूडियो में करण मल्होत्रा की फिल्म”शमशेरा “की शूटिंग कर रहे हैं, जिसके निर्माता यश राज स्टूडियो के ही मालिक आदित्य चोपड़ा है. हमें पता है कि “शमशेरा” की सारी शूटिंग रणबीर कपूर पूरी कर चुके हैं. संजय दत्त का 3 दिन की शूटिंग बाकी थी. जो कि कल तक पूरी हो जाएगी.

 

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#SanjayDutt snapped post his shoot today at Yashraj Studios. Glad he is feeling good👍

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संजय दत्त से जुड़े सूत्रों का दावा है कि संजय दत्त ने तय कर लिया है कि वह अजय देवगन की फिल्म “भुज द प्राइड ऑफ इंडिया”की अपनी बकाया डबिंग का काम भी पूरा करेंगे. उसके बाद वह फिल्म” केजीएफ 2″की जमीन का काम पूरा करेंगे. इस बीच वह अपना इलाज मुंबई में ही अंधेरी स्थित कोकिलाबेन अस्पताल में कराते रहेंगे.संजय दत्त और मान्यता दत्त ने निर्णय लिया है कि दिसंबर से पहले वह अपना बचा हुआ सारा काम पूरा करेंगे, जिससे किसी भी फिल्म निर्माता को नुकसान ना होने पाए.

सूत्रों का दावा है कि संजय दत्त दिसंबर माह में अमेरिका जाकर “मेमोरियल स्लोआन केटरिंग कैंसर सेंटर” में जाकर इलाज कराएंगे .तब तक संजय दत्त के बच्चों शहरान और इकरा की सर्दी की छुट्टियां भी शुरू हो चुकी होंगी. ऐसे में उनके बच्चे भी उनके साथ अमेरिका में रहेंगे. संजय दत्त चाहते हैं कि जब वह अमेरिका अपना इलाज कराने जाएं, तब उनके बच्चे और उनकी पत्नी मान्यता भी उनके साथ रहें.

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