50th जयंती वर्ष में कौन Yashraj Films को डुबाने पर है आमादा?

मशहूर फिल्मकार यश चोपड़ा ने 1970 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘‘यशराज फिल्मस’’ की स्थापना की थी, जिसके तहत उन्होने पहली फिल्म ‘‘दागःए पोयम आफ लव’’ का निर्माण व निर्देशन किया था, जो कि 27 अप्रैल 1973 को प्रदर्शित हुई थी. तब से अब तक ‘यशराज फिल्मस’’ के बैनर तले ‘कभी कभी ’, ‘नूरी’, ‘काला पत्थर’,  ‘सिलसिला’,  ‘मशाल’, ‘ चांदनी’, ‘ लम्हे’,  ‘दोस्ती’,  ‘वीरजारा’, ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’,  ‘मोहब्बतें’, ‘रब ने बना दी जोड़ी’, ‘एक था टाइगर’,  ‘मर्दानी’,  ‘सुल्तान’ सहित लगभग अस्सी फिल्मों का निर्माण किया जा चुका है.

‘‘यशराज फिल्मस’’ अपनी स्थापना के समय से ही लगातार उत्कृष्ट फिल्में बनाता आ रहा है. जिसके चलते लगभग सभी फिल्में बाक्स आफिस पर सफलता दर्ज कराती रही हैं. लेकिन अब जबकि ‘‘यशराज फिल्मस’’ अपनी पचासवीं जयंती मना रहा है, तो लगातार इस बैनर की छवि धूमिल होती जा रही है. ‘मर्दानी 2’, ‘बंटी और बबली 2’, ‘जयेशभाई जोरदार’, ‘सम्राट पृथ्वीराज’ और 22 जुलाई को प्रदर्शित फिल्म ‘‘शमशेरा’’ ने बाक्स ऑफिस पर बुरी तरह से दम तोड़ा है. ‘यशराज फिल्मस’’ जैसे बौलीवुड के बड़े बैनर की लगातार छह फिल्मों की बाक्स आफिस पर हुई दुर्गति से ‘यशराज फिल्मस’ के साथ ही बौलीवुड को पांच सौ करोड़़ का नुकसान हो चुका है. हर निर्माता पहली फिल्म की असफलता के बाद ही फिल्म की असफलता का पोस्टमार्तम कर गलतियों को सुधारना शुरू कर देता है. लेकिन यहां ‘यशराज फिल्मस’’ की एक दो नहीं बल्कि लगातार छह फिल्में असफल हो चुकी हैं, मगर कोई हलचल नही है. मजेदार बात यह है कि यह सब तब हो रहा है, जब इसकी बागडोर ‘यशराज फिल्मस’ के संस्थापक स्व.  यश चोपड़ा के बेटे आदित्य चोपड़ा ने संभाल रखी है. आदित्य चोपड़ा कोई नौसीखिए नही हैं. आदित्य चोपड़ा को सिनेमा की बेहतरीन समझ है.  आदित्य चोपड़ा स्वयं अब तक ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’(1995),  ‘मोहब्बतें’(2000 ),  ‘रब ने बना दी जोड़ी’(2008) जैसी बेहतरीन व सफलतम फिल्मों का लेखन व निर्देशन कर चुके हैं. लेकिन अब एक तरफ ‘यशराज फिल्मस’ की फिल्में असफल होकर ‘यशराज फिल्मस’ को डुबाने में लगी हुई हैं, तो वहीं आदित्य चोपड़ा चुप हैं. उनकी तरफ से कोई हरकत नजर नही आ रही है. बौलीवुड के एक तबके का मानना है कि भारतीय सिनेमा पर से आदित्य चोपड़ा की पकड़ खत्म हो चुकी हैं. कुछ लोगों की राय में आदित्य चोपड़ा का 2012 के बाद दूसरी व्यस्तताओं के चलते आम लोगों से शायद संवाद कम हो गया है, जिसके चलते समाज व दर्शकों  की पसंद व नापसंद को वह ठीक से अहसास नही कर पा रहे हैं. जबकि तब से दर्शकों की रूचि में तेजी से बदलाव आया है. अब दर्शक सिर्फ भारतीय सिनेमा ही नहीं,  बल्कि हौलीवुड के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं में बन रहे सिनेमा को भी देख रहा है. बौलीवुड से ही जुड़े कुछ लोगों की राय में आदित्य चोपड़ा के इर्द गिर्द चंद चमचे इकट्ठे हो गए हैं, जिन्हे ‘यशराज फिल्मस’ के आगे बढ़ने से कोई मतलब नही है, उन्हें महज अपने स्वार्थ की चिंता है. कम से कम ऐसे लोगों से आदित्य चोपड़ा जितनी जल्दी दूरी बनाकर समाज व दर्शकों के साथ संवाद स्थापित करेंगे, उतना ही ‘यशराज फिल्मस’ के लिए बेहतर होगा.

बहरहाल, ‘यशराज फिल्मस’ के पतन की शुरूआत तो 2017 में ही हो गयी थी. इस बैनर तले 2017 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मेरी प्यारी बिंदू’’ और ‘कैदी बैंड’’ ने भी बाक्स आफिस पर पानी नही मंागा था. पर 22 दिसंबर 2017 को प्रदर्शित फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा है’’ने जरुर सफलता दर्ज कराकर ‘यशराज फिल्मस’ की लाज बचा ली थी. उसके बाद 2018 में ‘हिचकी’, ‘सुई धागा’, ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’ ने बाक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खा गयी थीं. 2019 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘वार’’ ने थोड़ी सी राहत दी थी. पर उसके बाद प्रदर्शित सभी फिल्में बाक्स आफिस मंुह के बल गिरती चली आ रही हैं.

क्यों डूबी ‘‘शमशेरा’’

बड़े बजट की मेगा पीरियड फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को डुबाने में फिल्म के चार लेखक,  निर्देशक करणमल्होत्रा और कलाकारों के साथ ही फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. यह कितनी शर्मनाक बात है कि भव्यस्तर पर बनी फिल्म ‘शमशेरा’ रविवार के दिन महज ग्यारह करोड़(निर्माता के दावे के अनुसार,  अन्यथा सूत्र दावा कर रहे है कि ‘शमशेरा’ ने रवीवार को भी आठ करोड़ से ज्यादा नही कमाए. )़ ही कमा सकी. मजेदार बात यह है कि हिंदी, तमिल, तेलगू व मलयालम भाषा में फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को 22 जुलाई के दिन एक साथ भारत के 4300 सिनेमाघरों स्क्रीन्स और विदेशो में 1500 स्क्रीन्स पर रिलीज किया गया था. पर पहले ही दिन कुछ शो कैंसिल हुए. दूसरे दिन भी शो कैंसिल हुए. यानी कि हर दिन स्क्रीन्स की संखा घटती गयी. कई थिएटरों से इस फिल्म को उतार दिया गया. सिर्फ भारत ही नही विदेशों भी इसकी दुर्गति हो गयी. प्राप्त आंकड़ो के अनुसार आस्ट्ेलिया में ‘शमशेरा’ कुल तिहत्तर स्क्रीन में रिलीज हुई थी, जिससे महज 41 हजार डालर ही कमा सकी.  जबकि इस फिल्म में रणबीर कपूर,  संजय दत, रोनित रॉय,  वाणी कपूर,  सौरभ शुक्ला सहित कई दिग्गज कलाकारों ने अभिनय किया है. यह फिल्म रणबीर कपूर की पूरे चार वर्ष बाद अभिनय में वापसी है. मगर वह भी इस फिल्म को डूबने में योगदान देने में पीछे नहीं रहे. यॅूं भी जब फिल्म के कंटेंट मंे ही दम नही है, तो फिर दर्शक फिल्म देखने के लिए अपनी गाढ़ी कमायी क्यांे फुंकने लगा?लेखकों ने तो इतिहास के साथ भी छेड़खानी की. आदिवासियों के शौर्य का अपना इतिहास है, मगर लेखकांे ने तो उसे भी नकार कर सिर्फ गोरी चमड़ी यानी कि ब्रिटिश शासकों की मानवता व उनकी उदारता का गुणगान करते रहे. तो वहीं यह फिल्म धर्म को लेकर भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नही करती. बल्ली यानी कि रणबीर कपूर के किरदार को देखकर लेखकों व निर्देशक के दिमागी दिवालिएपन का अहसास किया जा सकता है.

फिल्म का गलत प्रचार भी ले ‘‘शमशेरा’’ को ले डूबाः

फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को आजादी मिलने से पहले अंग्रेजों से देश की आजादी के संघर्ष की कहानी के रूप में प्रचार किया था. जबकि यह फिल्म देश की आजादी नही बल्कि एक कबीले या यॅंू कहें कि एक आदिवासी जाति की आजादी की कहानी मात्र है. जी हॉ!यह देश की स्वतंत्रता की लड़ाई नही है. कहानी पूरी तरह से देसी जातिगत संघर्ष पर टिकी है, जिसका विलेन एक भारतीय शुद्ध सिंह ही है.

‘यशराज फिल्मसः कौन डुबाने पर उतारू

सबसे अहम सवाल यह है कि ‘‘यशराज फिल्मस’’ को कौन डुबाने पर उतारू है? ‘‘यशराज फिल्मस’’ की 2017 से ही लगातार बुरी तरह से डूबते जाने की एक नहीं कई वजहें हैं. यदि गंभीरता से विश्लेषण किया जाए, तो ‘यशराज फिल्मस’ को डुबाने में आदित्य राय के इर्दगिर्द जमा हो चुके कुछ चमचे, मार्केटिंग टीम, पीआर टीम,  रचनात्मक टीम, टैलेंट मनेजमेंट’के साथ ही आदित्य चोपड़ा का समाज व दर्शकों से पूरी तरह कट जाना ही जिम्मेदार है. बौलीवुड का एक तबका मानता है कि अब वक्त आ गया है, जब आदित्य चोपड़ा को अपने प्रोडक्शन हाउस की रचनात्मक टीम के साथ ही मार्केटिंग व पीआर टीम में अमूलचूल बदलाव कर सिनेमा को किसी अजेंडे की बजाय दर्शकों की रूचि के अनुसार सिनेमा बनाएं.

टैलेंट मनेजमेंटः

2012 में ‘‘यशराज फिल्मस’’  का चेअरमैन का पद संभालने के साथ ही आदित्य चोपड़ा ने नए कलाकारों को आगे बढ़ाने के नेक इरादे से ‘टैलेंट मनेजमेंट’ की शुरूआत की थी.  और 2013 के बाद ‘यशराज फिल्मस’ ने स्थापित व नए कलाकारों को मिलाकर फिल्में बनानी शुरू की. बौलीवुड से जुड़े अधिसंख्य सूत्र मानते हैं कि 2012 के बाद ‘यशराज फिल्मस ’ का रचनात्मकता से मोहभ्ंाग होने लगा था. सब कुछ एक फैक्टरी की तरह होेने लगा था. ‘टैलेंट मैनेजमेंट’ के तहत वाणी कपूर, परिणीत चोपड़ा सहित ऐसे कलाकारांे को जोड़ा गया जिनमें संुदरता के अलावा कोई गुण नही है. इन कलाकारों का अभिनय से कोई नाता ही नही है. बाक्स आफिस पर बुरी तरह से धराशाही हो चुकी फिल्म ‘शमशेरा’ के दो मुख्य कलाकार रणबीर कपूर व वाणी कपूर यशराज के ही टैलेट मैनेजमेंट का हिस्सा हैं. असफलतम फिल्म ‘‘बंटी और बबली’’ की अभिनेत्री शारवरी वाघ, ‘जयेशभाई जोरदार ’ की शालिनी पांडे व रणवीर सिंह और ‘सम्राट पृथ्वीराज’ की मानुषी छिल्लर भी टैलेंट मैनेजमंेट का हिस्सा हैं. तो क्या यह माना जाए कि टैलेंट मैनेजमेंट की जिम्मेदारी संभाल रहे लोग अपने काम को सही ढंग से अंजाम देने में असमर्थ रहे हैं?इस पर आदित्य चोपड़ा को  गंभीरता से सोचना व विश्लेषण करना चाहिए.

मार्केटिंग टीमः

‘यशराज फिल्मस’ की मार्केटिंग टीम जिस तरह से कामकर रही है, उस पर वर्तमान हालात को देखते हुए विचार व विश्लेषण करना जरुरी है. वर्तमान समय में मार्केटिंग टीम फिल्म के लिए दर्शक बटोरने के लिए जिस तरह से सिटी टूर करती है और सोशल मीडिया पर पैसे खर्च करती है, वह वास्तव में ‘क्रिमिनल वेस्टेज आफ मनी’ के अलावा कुछ नही है. सिटी टूर के लिए कलाकार व उनकी टीम के अलावा कई लोग हवाई जहाज से यात्रा करते हैं, फाइव स्टार होटलो मंे ठहरते हैं और किसी माल या सिनेमाघर में हजारों लोगांे की भीड़ के बीच उटपटंाग हरकते करके वापस आ जाते हैं. इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि किसी भी सिटी मंे फिल्म के कलाकारों को देखने या सुनने आने वाले लोगों में से दस प्रतिशत लोग भी फिल्म देखने क्यों नहीं आते? आॅन ग्राउंड इवेंट में दस बीस हजार लोग जुड़ते हैं, जिसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किए जाते हैं. इसके बावजूद इनमें से हजार लोग भी फिल्म देखने थिएटर के अंदर नहीं आते? जबकि मार्केटिंग टीम के अनुसार इस तरह उस शहर के सभी लोग फिल्म देखने आएंगे. इसी तरह यह बात साबित हो चुकी है कि कलाकार के सोशल मीडिया के फालोवअर्स की संख्या बल पर फिल्म की सफलता का दावा नही किया जा सकता. महानायक अमिताभ बच्चन के सोशल मीडिया पर करोड़ों फालोवअर्स हैं, पर उनकी फिल्म को उनमें से कुछ लाख भी टिकट लेकर फिल्म देखने सिनेमाघर के अंदर नही जाते. तो मार्केटिंग टीम सोशल मीडिया पर फिल्म के टीजर, ट्ेलर व गानों को मिल रहे व्यूज के आधार पर फिल्म की सफलता को लेकर गलत आकलन पेश करती है. इससे फिल्म को सिर्फ नुकसान ही होता है.

पी आर टीम का  अधकचरा ज्ञान व कार्यशैलीः

कुछ दिन पहले हमने एक बड़े बैनर की फिल्म के पीआरओ को ‘‘गृहशोभा’’ और ‘‘सरिता’’ में छपे इंटरव्यू की फोटोकापी भेजी, तुरंत उसका फोन आया कि यह मैगजीन है या वेब साइट है और कब से निकलना शुरू हुई है. यह मैगजीन कहंा बिकती है? इससे हमारे दिमाग में सवाल उठा कि इस इंसान को फिल्म का प्रचारक कैसे नियुक्त कर दिया गया? फिल्म के प्रचारक का काम होता है कि वह फिल्म का प्रचार कर उसे एक ‘ब्रांड’ के रूप में स्थापित कर दे. मगर इस कसौटी पर सभी फिल्म प्रचारक बहुत पीछे हैं. इन प्रचारको @पीआरओ को खुद नहीं पता होता कि उनकी फिल्म का विषय क्या है? वह तो गलत ढंग से फिल्म का प्रचार कर फिल्म का बंटाधार करने में अहम भूमिका निभाते हैं. पीआरओ को इस बात की समझ होनी चाहिए कि वह कब किस पत्रकार को कलाकार या निर्देशक से इंटरव्यू करवाए? पर यहां तो फिल्म के प्रदर्र्शन से एक सप्ताह पहले सभी फिल्म पत्रकारों को बुलाकर एक साथ बैठा दिया जाता है. इस ग्रुप इंटरव्यू में 20 से 57 पत्रकार भी होते देखे हैं. इतना ही नहीं इसमें मैगजीन, दैनिक अखबार, वेब सहित सभी पत्रकार होते हैं. पीआरओ हमेशा एक ही रोना रोता रहता है कि क्या करंे कलाकार के पास समय नही है.  अथवा क्या करें हमें मार्केटिंग टीम की तरफ से कलाकार का सिर्फ एक दिन या दो घंटे का ही वक्त मिला है. सच तो प्रोडक्शन हाउस व कलाकार को ही पता होता है. यदि कलाकार सिटी टूर करने में वक्त बर्बाद करने की बजाय पत्रकारों के साथ अपनी फिल्म पर चर्चा करना शुरू करें, तो शायद फिल्म को लेकर सही बता दर्शक तक पहुॅचेगी,  जिससे स्थिति बदल सकती है.

वास्तव में जरुरत है कि बौलीवुड का हर फिल्म निर्माता दस बारह वर्ष पहले की तरह अपनी मार्केटिंग टीम व पीआर टीम की जवाब देही तय करे.  आज समय की सबसे बड़ी मांग यही है कि हर इंसान की जवाबदेही तय हो. कम से कम इस दिशा में ‘‘यशराज फिल्मस’’ के आदित्य चोपड़ा को गंभीरता से पहल करते हुए अपनी पूरी क्रिएटिब टीम, मार्केटिंग टीम व पीआर टीम की जांच परख कर आवश्यक कदम उठाने चाहिए, तभी वह ‘‘यशराज फिल्मस’’ की डूबती प्रतिष्ठा को वापस ला सकते हैं. अब वक्त आ गया है जब आदित्य चोपड़ा को स्वयं मंथन करने के बाद खुलकर सामने आना होगा. मंथन कर,  दूसरों पर यकीन करने की बजाय अपने अंदर नई उर्जा को जगाकर आदित्य चोपड़ा को स्वयं ऐसी फिल्म निर्देशित करनी चाहिए, जिसे दर्शक स्वीकार करें.

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