शर्म की बात

औफिस में घुसते ही मोहन को लगा कि सबकुछ ठीक नहीं है. उसे देखते ही स्टाफ के 2-3 लोग खड़े हो गए व नमस्कार किया, पर उन के होंठों पर दबी हुई मुसकान छिपी न रह सकी. अपने केबिन की तरफ न बढ़ कर मोहन वहीं ठिठक गया. उस का असिस्टैंड अरविंद आगे बढ़ा. ‘‘क्या बात है?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘राम साहब की पत्नी आई हैं. आप से मिलना चाहती हैं. मैं ने उन्हें आप के केबिन में बिठा दिया है.’’

‘‘अच्छा… पर वे यहां क्यों आई हैं?’’ मोहन ने फिर पूछा.

‘‘पता नहीं, सर.’’

‘‘राम साहब कहां हैं?’’

‘‘वे तो… वे तो भाग गए.’’

‘‘क्या…’’ मोहन ने पूछा, ‘‘कहां भाग गए?’’

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बाकी स्टाफ की मुसकराहट अब खुल गई थी. 1-2 ने तो हंसी छिपाने के लिए मुंह घुमा लिया.

‘‘पता नहीं. राम सर नहा रहे थे जब उन की पत्नी आईं. राम सर जैसे ही बाथरूम से बाहर आए, उन्होंने अपनी पत्नी को देखा तो वे फौरन बाहर भाग गए. कपड़े भी नहीं पहने. अंडरवियर पहने हुए थे.’’

‘‘लेकिन, राम साहब यहां क्यों नहा रहे थे? वे अपने घर से नहा कर क्यों नहीं आए?’’

‘‘अब मैं क्या बताऊं… वे तो अकसर यहीं नहाते हैं. अपनी पत्नी से उन की कुछ बनती नहीं है.’’

माजरा कुछ समझ में न आता देख मोहन ने अपने केबिन की तरफ कदम बढ़ा दिए.

राम औफिस में सीनियर क्लर्क थे. सब उन्हें राम साहब कहते थे. आबनूस की तरह काला रंग व पतली छड़ी की तरह उन का शरीर था. उन का वजन मुश्किल से 40 किलो होगा. बोलते थे तो लगता था कि घिघिया रहे हैं. उन की

6 बेटियां थीं.

इस बारे में भी बड़ा मजेदार किस्सा था. उन के 3 बेटियां हो चुकी थीं, पर उन्हें बेटे की बड़ी लालसा थी. उन के एक दोस्त थे. उन की भी 3 बेटियां थीं. सभी ने कहा कि इस महंगाई के समय में 3 बेटियां काफी हैं इसलिए आपरेशन करा लो. लेकिन दोनों दोस्तों ने तय किया कि वे एकएक चांस और लेंगे. अगर फिर भी बेटा न हुआ तो आपरेशन

करा लेंगे.

दोनों की पत्नियां फिर पेट से हुईं. दोस्त के यहां बेटी पैदा हुई. उस ने वादे के मुताबिक आपरेशन करा लिया. कुछ समय बाद राम के यहां जुड़वां बेटियां हुईं. पर

उन्होंने वादे के मुताबिक आपरेशन नहीं कराया क्योंकि अब उन

का कहना था कि जहां नाश वहां सत्यानाश सही. जहां 5 हुईं वहां और भी हो जाएंगी तो क्या हो जाएगा. फिर छठी बेटी भी हो गई. सुनते हैं कि उस दोस्त से राम की बोलचाल बंद है. वह इन्हें गद्दार कहता है.

मोहन ने अपने केबिन का दरवाजा खोल कर अंदर कदम रखा. सामने की कुरसी पर जो औरत बैठी थीं उन का वजन कम से कम डेढ़ क्विंटल तो जरूर होगा. वे राम साहब की पत्नी थीं. उन का रंग राम साहब से ज्यादा ही आबनूसी था. उन के पीछे अलगअलग साइजों की 5 लड़कियां खड़ी थीं. छठवीं उन की गोद में थी.

मोहन को देखते ही वे एकदम से उठीं और लपक कर मोहन के पैर पकड़ लिए. यह देख वह हक्काबक्का रह गया.

‘‘अरे, क्या करती हैं आप. मेरे पैर छोडि़ए,’’ मोहन ने पीछे हटते हुए कहा.

वे बुक्का फाड़ कर रो पड़ीं. उन को रोते देख पांचों लड़कियां भी रोने लगीं.

मोहन ने डांट कर सभी को चुप कराया. वह अपनी कुरसी पर पहुंचा

व घंटी बजा कर चपरासी को बुलाया.

6 गिलास पानी मंगवाया. साथ ही, चाय लाने को भी कहा. पानी आते ही वे सभी पानी पर टूट पड़ीं.

थोड़ी देर बाद मोहन ने पूछा. ‘‘कहिए, क्या बात है?’’

‘‘साहब, हमारे परिवार को बचा लीजिए…’’ इतना कह कर राम साहब की पत्नी फिर रो पड़ीं, ‘‘अब हमें आप का ही सहारा है.’’

‘‘क्या हो गया? क्या कोई परेशानी

है तुम्हें?’’

‘‘जी, परेशानी ही परेशानी है. मैं लाचार हो गई हूं. अब आप ही कुछ भला कर सकते हैं.’’

‘‘देखिए, साफसाफ बताइए. यह घर नहीं, औफिस है…’’ मोहन ने समझाया, ‘‘कोई औफिस की बात हो तो बताइए.’’

‘‘सब औफिस का ही मामला है साहब. अब इन 6-6 लड़कियों को ले कर मैं कहां जाऊं. इन का गला घोंट दूं या हाथपैर बांध कर किसी कुएं में फेंक दूं.’’

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‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं. इन का खयाल रखने को राम साहब तो हैं ही.’’

‘‘वे ही अगर खयाल रखते तो रोना ही क्या था साहब.’’

अब मोहन को उलझन होने लगी, ‘‘देखिए, मेरे पास कई जरूरी काम हैं. आप को जोकुछ भी कहना है, जरा साफसाफ कहिए. आप हमारे स्टाफ की पत्नी हैं. हम से जो भी हो सकेगा, हम जरूर करेंगे.’’

‘‘अब कैसे कहें साहब, हमें तो शर्म आती है.’’

‘‘क्या शर्म की कोई बात है?’’

‘‘जी हां, बिलकुल है.’’

‘‘राम साहब के बारे में?’’

‘‘और नहीं तो क्या, वे ही तो सारी बातों की जड़ हैं.’’

मोहन को हैरानी हुई. इस औरत के सामने तो राम साहब चींटी जैसे हैं. वे इस पर क्या जुल्म करते होंगे. यह अगर उन का हाथ कस कर पकड़ ले तो वे तो छुड़ा भी न पाएंगे.

‘‘मैं फिर कहूंगा कि आप अपनी बात साफसाफ बताएं.’’

‘‘उन का किसी से चक्कर चल रहा है साहब…’’ वे फट पड़ीं, ‘‘न उम्र का लिहाज है और न इन 6 लड़कियों का. मैं तो समझा कर, डांट कर और यहां तक कि मारकुटाई कर के भी हार गई, पर वे सुधरने का नाम ही नहीं लेते हैं.’’

मोहन को हंसी रोकने के लिए मुंह नीचे करना पड़ा और फिर पूछा, ‘‘क्या आप को लगता है कि राम साहब कोई चक्कर चला सकते हैं? कहीं आप को कोई गलतफहमी तो नहीं हो रही है?’’

‘‘आप उन की शक्लसूरत या शरीर पर न जाइए साहब. वे पूरे घुटे हुए हैं. ये 6-6 लड़कियां ऐसे ही नहीं हो गई हैं.’’

मोहन को हंसी रोकने के लिए दोबारा मुंह नीचे करना पड़ा. तभी चपरासी चाय ले आया. सभी लड़कियों ने, राम साहब की पत्नी ने भी हाथ बढ़ा कर चाय ले ली व तुरंत पीना शुरू कर दिया.

‘‘राम साहब ने कपड़े मांगे हैं,’’ चपरासी ने उन से कहा.

मोहन ने देखा कि बड़ी बेटी के हाथ में एक पैंट व कमीज थी.

‘‘कपड़े तो हम उन्हें न देंगे. उन से कह दो कि ऐसे ही नंगे फिरें…’’ राम साहब की पत्नी गुस्से से बोलीं, ‘‘उन की अब यही सजा है. वे ऐसे ही सुधरेंगे.’’

‘‘राम साहब नंगे नहीं हैं. कच्छा पहने हुए हैं,’’ चपरासी ने कहा.

‘‘अगर तुम मेरे भाई हो तो जाओ वह भी उतार लाओ,’’ वे बोलीं.

‘‘राम साहब कहां हैं?’’ मोहन ने चपरासी से पूछा.

‘‘सामने चाय की दुकान पर चाय पी रहे हैं. बड़ी भीड़ लगी है वहां साहब.’’

‘‘जाओ, उन्हें यहां बुला लाओ.’’

‘‘वे नहीं आएंगे साहब. कहते हैं कि उन्हें शर्म आती है.’’

‘‘चाय की दुकान पर उन्हें शर्म नहीं आ रही है? जाओ और उन से कहो कि मैं बुला रहा हूं.’’

‘‘अभी बुला लाता हूं साहब,’’ चपरासी ने जोश में भर कर कहा.’’

‘‘अब तो आप ने देख लिया साहब…’’ वे आंखों में आंसू भर कर बोलीं, ‘‘हम लोग यहां तड़प रहे हैं और वे आराम से वहां कच्छा पहने चाय पी रहे हैं.’’

‘‘पर, आप ने भी तो हद कर दी…’’ मोहन को कहना पड़ा, ‘‘उन के कपड़े क्यों छीन लिए?’’

‘‘आदमी औफिस में काम करने आता है कि नहाने. घर में न नहा कर दफ्तर में नहाने की अब यही सजा है. सुबहसुबह तो उस कलमुंही रेखा से मिलने के लिए जल्दी से निकल गए थे. अब दफ्तर में तो नहाएंगे ही. ठीक है, आज दिनभर कच्छा पहने ही काम करें.’’

तभी लोगों ने ठेल कर राम साहब को केबिन के अंदर कर दिया. मोहन उन्हें सिर्फ कच्छा पहने पहली बार देख रहा था. उन का शरीर दुबलापतला था. पसली की एकएक हड्डी गिनी जा सकती थी. सूखेसूखे हाथपैर टहनियों जैसे थे. उन के काले शरीर पर एकदम नई पीले रंग की कट वाली अंडरवियर चमक रही थी.

‘‘इन्हें इन के कपड़े दे दो,’’ मोहन ने बड़ी लड़की से कहा.

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‘‘हम न देंगे…’’ वह लड़की पहली बार बोली, ‘‘अम्मां मारेंगी.’’

‘‘प्लीज, इन के कपड़े इन्हें दिला दीजिए…’’ मोहन ने उन से कहा, ‘‘यह ठीक नहीं लग रहा है.’’

‘‘देदे री. देती क्यों नहीं. साहब कह रहे हैं, तब भी नहीं देती. दे जल्दी.’’

लड़की ने हाथ बढ़ा कर कपड़े राम साहब को दे दिए. उन्होंने जल्दीजल्दी कपड़े पहन लिए.

मोहन ने कहा, ‘‘बैठिए, आप की पत्नी जो बता रही हैं, अगर वह सही है तो वाकई बड़ी गलत बात है.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है साहब. यह बिना वजह शक करती है.’’

‘‘शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए,’’ उन की पत्नी तड़पीं, ‘‘कह दो रेखा का कोई चक्कर नहीं है.’’

‘‘नहीं है. वह तो तभी खत्म हो गया था, जब तुम ने अपनी कसम दिलाई थी.’’

‘‘और राधा का?’’

‘‘राधा यहां कहां है. वह तो अपनी ससुराल में है.’’

‘‘और वह रामकली, सुषमा?’’

‘‘क्यों बेकार की बातें करती हो… सब पुरानी बातें हैं. कब की खत्म हो चुकी हैं.’’

मोहन हक्काबक्का सुनता रहा. राम साहब के हुनर से उसे जलन होने लगी थी.

‘‘देखो, तुम साहब के सामने बोल रहे हो.’’

‘‘मैं साहब के सामने झूठ नहीं बोल सकता…’’ राम साहब ने जोश में कहा, ‘‘साहब जो भी कहें, मैं कर सकता हूं.’’

‘‘साहब जो कहेंगे मानोगे?’’

‘‘हां, बिलकुल.’’

‘‘साहब कहेंगे तो तुम रेखा से राखी बंधवाओगे?’’

‘‘साहब कहेंगे तो मैं तुम से भी राखी बंधवाऊंगा.’’

‘‘क्या…?’’ पत्नी का मुंह खुला का खुला रह गया. राम साहब हड़बड़ा कर नीचे देखने लगे.

‘‘आप औफिस में क्यों नहानाधोना करते हैं?’’ पूछते हुए मोहन का मन खुल कर हंसने को हो रहा था.

‘‘अब क्या बताएं साहब…’’ राम साहब रोंआसा हो गए, ‘‘पारिवारिक बात है. कहते हुए शर्म आती है. इस औरत ने घर का माहौल नरक बना दिया है. मेरे बारबार मना करने के बाद भी आपरेशन के लिए तैयार ही नहीं होती. इतना बड़ा परिवार हो गया है. सुबह से कोई न कोई घुसा ही रहता है. किसी को स्कूल जाना है तो किसी का पेटदर्द कर रहा होता है, इसीलिए कभीकभी मुझे जल्दी आ कर औफिस में नहाना पड़ता है.

‘‘पर, असली बात जिस के लिए ये यहां आई हैं, यह नहीं है,’’ वे अपनी पत्नी की तरफ घूमे, ‘‘अब पूछती क्यों नहीं है.’’

‘‘पूछूंगी क्यों नहीं, मैं तुम से डरती हूं क्या.’’

‘‘तो अभी तक क्यों नहीं पूछा?’’

‘‘अब पूछ लूंगी.’’

‘‘क्या पूछना है?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘मैं बताता हूं साहब…’’ अब राम साहब मोहन की तरफ घूमे, ‘‘इसे लगता है कि मैं अपनी पूरी तनख्वाह इसे नहीं देता व कुछ बचा कर इधरउधर खर्च करता हूं. कल से मेरे पीछे पड़ी है. औफिस के ही किसी आदमी ने इसे भड़का दिया है, जबकि मैं अपनी तनख्वाह का पूरा पैसा इस के हाथ में ले जा कर रख देता हूं. यह यही पूछने आई है कि मेरी तनख्वाह कितनी है.’’

‘‘क्या यही बात है?’’ मोहन ने राम साहब की पत्नी से पूछा.

‘‘हां साहब, मुझे सचसच बता दीजिए कि इन को कितनी तनख्वाह मिलती है.’’

‘‘राम साहब अगर इन्हें बता दिया जाए तो आप को कोई एतराज तो नहीं है?’’ मोहन ने राम साहब से पूछा.

‘‘मुझे क्या एतराज होना है. मैं तो पूरी तनख्वाह इस के हाथ में ही रख

देता हूं.’’

‘‘ठीक है. इन्हें बाहर ले जा कर बड़े बाबू के पास सैलरी शीट दिखा दीजिए.’’

वे उठे, पर उन से पहले ही पांचों लड़कियां बाहर निकल गई थीं.

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मोहन ने अरविंद को बुलाया.

‘‘क्या राम साहब वाकई सनकी हैं? वे अपने परिवार का तो क्या खयाल रखते होंगे?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है साहब. परिवार पर तो वे जान छिड़कते हैं…’’ अचानक अरविंद फिर मुसकरा पड़ा, ‘‘आप को एक बार का किस्सा सुनाऊं. आप को इन के सोचने के लैवल का भी पता चलेगा.

‘‘जिस मकान में राम साहब रहते हैं, उस में 5-6 और किराएदार भी हैं. मकान मालिक नामी वकील हैं.

‘‘एक बार महल्ले में एक गुंडे ने किसी के साथ मारपीट की. वकील साहब ने उस के खिलाफ मुकदमा लड़ा. गुंडे को 3 महीने की सजा हो गई. वह जब जेल से बाहर आया तो उस ने वकील साहब को जान से मारने की धमकी दी.

‘‘वकील साहब ने एफआईआर दर्ज कर दी व उन के यहां पुलिस प्रोटैक्शन लग गई. एक दारोगा व 4 सिपाहियों की 24 घंटे की ड्यूटी लग गई.

‘‘जब उस गुंडे का वकील साहब पर कोई जोर न चला तो उस ने किराएदारों को धमकाया. उस ने तुरंत मकान खाली कर देने को कहा. उस गुंडे के डर से बाकी सब किराएदारों ने मकान खाली कर दिया, पर राम साहब ने मकान न छोड़ा.

‘‘हम सभी को राम साहब व उन के परिवार की चिंता हुई. गुंडे ने राम साहब को यहां औफिस में भी धमकी भिजवाई थी, पर राम साहब मकान छोड़ने को तैयार न थे.

‘‘एक दिन मैं ने राम साहब से कहा कि चलिए ठीक है, आप मकान मत छोडि़ए, पर कुछ दिनों के लिए आप मेरे यहां आ जाइए. जब मामला ठंडा हो जाएगा तो फिर वहां चले जाइएगा. तो जानते हैं राम साहब ने क्या जवाब दिया?

‘‘उन्होंने कहा, ‘नहीं अरविंद बाबू, अब मेरी जान को कोई खतरा नहीं है. मेरी छिद्दू से बात हो गई है. अभी कल ही जब मैं औफिस से घर पहुंचा तो वह एक जीप के पीछे खड़ा था. मुझे देखा तो इशारे से पास बुलाया.

‘‘‘पहले तो मैं डरा, पर फिर हिम्मत कर के उस के पास चला गया. उस ने मुझे खूब गालियां दीं. मैं चुपचाप सुनता रहा. फिर उस ने कहा कि अबे, तुझे अपनी जान का भी डर नहीं लगता. अगर 2 दिन के अंदर मकान नहीं छोड़ा तो पूरे परिवार का खात्मा कर दूंगा.’

‘‘अब मैं ने मुंह खोला, ‘छिद्दू भाई, तुम तो अक्लमंद आदमी हो, फिर भी गलती कर रहे हो. वकील साहब के यहां 15-20 साल के पुराने किराएदार थे. कोई 20 रुपए महीना देता था तो कोई 50. वकील साहब तो खुद ही उन से मकान खाली कराना चाहते थे, पर किराएदार पुराने थे. वे लाचार थे. तुम ने तो उन की मदद ही की.

‘‘‘मकान खाली हो गया और वह भी बिना किसी परेशानी के. अब मेरी बात ही लो. मैं 100 रुपया महीना देता हूं. अगर छोड़ दूं तो 300 रुपए पर तुरंत

उठ जाएगा.’

‘‘मेरी बात उस की समझ में आ गई. थोड़ी देर तक तो वह सोचता रह गया, फिर हाथ मलते हुए बोला, ‘यह तो तुम ठीक कह रहे हो. मुझ से बड़ी गलती हो गई. ठीक है, तुम मकान बिलकुल मत छोड़ो. लेकिन मैं ने भी तो सभी किराएदारों को खुलेआम धमकी दी है. सब को पता है. अगर तुम ने मकान नहीं छोड़ा तो मेरी बड़ी बेइज्जती होगी. सब यही सोचेंगे कि मेरे कहने का कोई असर नहीं हुआ.

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‘‘‘तो ऐसा करते हैं कि तुम मकान न छोड़ो. किसी दिन मैं तुम को बड़े चौक पर गिरा कर जूतों से मार लूंगा. मेरी बात भी रह जाएगी और काम भी हो जाएगा. तो अरविंद बाबू, अब मेरी जान को कोई खतरा नहीं है.’’’

अरविंद की आखिरी बात सुनतेसुनते मोहन अपनी हंसी न रोक सका. उस ने किसी तरह हंसी रोक कर कहा, ‘‘पर, उस भले मानुस को जूतों से मार खाने की क्या जरूरत थी भाई. चलिए छोडि़ए. राम साहब व उन की पत्नी से कहिएगा कि वे मुझ से मिल कर जाएंगे.’’

‘‘जी, बहुत अच्छा साहब,’’ कह कर अरविंद उठ गया.

तभी राम साहब व उन की पत्नी दरवाजा खोल कर अंदर आए. लड़कियां बाहर ही थीं.

‘‘देखा साहब, मैं पहले ही कहता था न…’’ राम साहब ने खुश हो कर कहा, ‘‘पूछ लीजिए, अब तो कोई शिकायत नहीं है न इन को?’’

मोहन ने राम साहब की पत्नी की तरफ देखा.

‘‘ठीक है साहब. तनख्वाह तो ठीक ही दे देते हैं हम को. पर ओवरटाइम का कोई बता नहीं रहा है.’’

‘‘अब जाने भी दीजिए. इतना जुल्म मत कीजिए इन पर. आइए बैठिए, मुझे आप से एक बात कहनी है. आप दोनों से ही. बैठिए.’’

वे दोनों सामने रखी कुरसियों पर

बैठ गए.

मोहन ने राम साहब की पत्नी से कहा, ‘‘राम साहब ठीक ही कहते हैं. एक लड़के की चाह में परिवार को इतना बढ़ा लेना अक्लमंदी नहीं है कि परिवार का पेट पालना भी ठीक से न हो सके. फिर आज के समय में लड़का और लड़की में फर्क ही क्या है. उम्मीद है, मेरी बात पर आप दोनों ही ध्यान देंगे.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है,’’ उन्होंने शर्म से अपने पेट पर हाथ फेरा, ‘‘इस बार शर्तिया लड़का ही होगा.’’

‘‘क्या…?’’ राम साहब हैरत व खुशी से उछल पड़े, ‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?’’

‘‘धत…’’ वे बुरी तरह से शरमा

कर तिहरीचौहरी हो गईं, ‘‘मुझे शर्म आती है.’’

‘‘अरे पगली, मुझ से क्या शर्म,’’ राम साहब लगाव भरी नजरों से अपनी पत्नी को देखते हुए मुझ से बोले, ‘‘मैं अभी मिठाई ले कर आता हूं. तुम जल्दी से ओवरटाइम रिकौर्ड देख कर घर जाओ. ऐसे में ज्यादा चलनाफिरना ठीक नहीं होता. आज मैं भी जरा जल्दी जाऊंगा साहब. आप तो जानते ही हैं कि काफी इंतजाम करने पड़ेंगे.’’

इतना कह कर राम साहब अपनी पत्नी को मेरे सामने छोड़ कर तेजी से मिठाई लाने दौड़ गए.

मोहन को कुछ न सूझा तो अपना सिर दोनों हाथों से जोर से पकड़ लिया.

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