मलाल रिव्यू: शानदार अभिनय के साथ कमजोर फिल्म

रेटिंगः दो स्टार
निर्माताः संजय लीला भंसाली, महावीर जैन,भूषण कुमार व किशन कुमार
निर्देशकः मंगेश हड़वले
कलाकारः शरमिन सहगल, मीजान जाफरी, समीर धर्माधिकारी,अंकुर बिस्ट व अन्य
अवधिः दो घंटे, 17 मिनट

2004 की सफल तमिल फिल्म ‘‘ सेवन जी रेनबो कालोनी’’ की हिंदी रीमेक फिल्म ‘‘मलाल’’ नब्बे के दशक की प्रेम कहानी है, मगर फिल्मकार ने इस प्रेम कहानी में नब्बे के दशक में मुंबई में महाराष्ट्रियन बनाम उत्तर भारतीय का जो मुद्दा था, उसे जबरन ठूंसने का प्रयास कर फिल्म को तबाह कर डाला. लेखक व निर्देशक ने अपनी गलती से फिल्म को इतना तबाह किया कि इस फिल्म से करियर की शुरूआत कर रहे शरमिन सहगल और मीजान जाफरी भी अपने बेहतरीन अभिनय से फिल्म को नहीं बचा सके.

इतना ही नहीं फिल्म ‘‘मलाल’’ के निर्माता, सह पटकथा लेखक व संगीतकार संजय लीला भंसाली हैं. मगर ‘मलाल’से भंसाली की प्रेम कहानी प्रधान फिल्मों में मौजूद रहने वाला गहरा व जटिल प्यार तथा भव्यता गायब है. प्यार इंसान को तबाही या उंचाई पर ले जा सकता है, इस मुद्दे को भी फिल्मकार गंभीरता से पेश नहीं कर पाएं.

कहानीः
फिल्म की कहानी नब्बे के दशक में मुंबई के महाराष्ट्रियन बाहुल्य इलाके में क्रिकेट मैच से शुरू होती है. इस क्रिकेट मैच में राजनेता सावंत (समीर धर्माधिकारी) की टीम जब हार के कगार पर पहुंच जाती है, तो सावंत के इशारे पर उनके सहयोगी जाधव अम्पायर को इशारा करते हैं और सावंत की टीम एक रन से मैच जीत जाती है, मगर विरोधी टीम की तरफ के खिलाड़ी शिवा मोरे (मीजान जाफरी) को अम्पायर के गलत निर्णय पर गुस्सा आता है और वह अम्पायर की जमकर पिटाई करता है. जिसे देख सावंत अपनी टीम की हार स्वीकार कर ट्राफी शिवा मोरे को दिलाते हैं. सावंत, जाधव से कहते हैं कि शिवा को आफिस में मिलने के लिए बुलाया जाए, क्योंकि यह उनके काम का है. शिवा ट्राफी लेकर जब चाल के अपने घर में जाता है, तो सीढ़ियों पर उसकी मुठभेड़ आस्था त्रिपाठी (शरमिन सहगल) से होती है, जो कि उसी चाल में प्रोफेसर भोसले के मकान में किराए पर अपने माता-पिता व छोटे भाई के साथ रहने आयी है. आस्था के पिता अमीर थे और शेयर बाजार में बहुत बड़े दलाल थे. मगर शेयर बाजार में ऐसा नुकसान हुआ कि उन्हे चाल में किराए पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. स्टौक शिवा मोरे चाल में रहने वाला टपोरी किस्म का बदमाश महाराष्ट्रियन लड़का है, जिससे उसके माता पिता भी परेशान रहते हैं. मगर सावंत, शिवा से कहता है कि उसे तो अपने मराठी माणुस की मदद करनी चाहिए और उत्तर भारतीयों को भगाना चाहिए. इससे शिवा को जोश आ जाता है और वह फोन करके प्रोफेसर भोसले से कहता है कि वह एक उत्तर भारतीय को अपना चाल का घर किराए पर देकर अच्छा नही कर रहा हैं. इस पर प्रोफेसर भोसले उसे डांट देता है. शिवा की मां सहित चाल में रह रहे सभी निवासी आस्था व उसके परिवार के साथ अच्छे संबंध जोड़ लेते हैं, मगर शिवा उसे पसंद नहीं करता. सीए की पढ़ाई कर रही आस्था चाल में रह रहे सभी बच्चो को छत पर ट्यूशन पढ़ाने लगती है, ट्यूशन पढ़ने वालों मे शिवा की बहन भी है.

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एक दिन शिवा अपने बदमाश दोस्तों के साथ शराब की बोटलों के साथ छत पर पहुंचते हैं. आस्था के साथ उसका विवाद होता है. आस्था कहती है कि वह इंडियन है और मुंबई भी इंडिया है,  इसलिए यहां हर इंडियन को रहने का हक है. उसके बाद आस्था मराठी भाषा में शिवा को जवाब देती हैं, जिससे शिवा सारा टपोरीपना गायब हो जाता है और वह आस्था को दिल दे बैठता है. अब शिवा, सावंत से भी दूरी बना लेता है. इधर आस्था के माता पिता उसकी शादी विदेश से पढ़ाई करके लौटे अमीर लड़के आदित्य से तय कर देते हैं. जबकि शिवा, आस्था को टूटकर चाहने लगता है और शिवा की जिस बुराई को आस्था पसंद नही करती, वह सारी बुराइयां वह छोड़ने लगता है. धीरे-धीरे शिवा मारा-मारी करना, शराब पीना, सिगरेट पीना छोड़ देता है.

आस्था के प्यार में शिवा अपनी जिंदगी की दिशा व दशा दोनों बदल देता है. एक दिन आस्था अपने माता-पिता के सामने शिवा से स्वीकार करती है कि वह शिवा से बहुत प्यार करती है, मगर उससे ज्यादा प्यार वह अपने पिता से करती है. पिता के आदेश के चलते वह शादी सिर्फ आदित्य से करेगी. यानी कि प्यार पर कर्तव्य भारी पड़ जाता है. आस्था एक मशहूर शेयर ब्रोकर के यहां शिवा को नौकरी दिलवा देती है, बैंक में उसका खाता खुलवा देती है, उसके बाद वह शिवा के साथ अपनी सहेली के घर में कुछ समय बिताती है. वापसी में शिवा कहता है कि वह आस्था के पिता को मनाने का प्रयास करेगा. मगर कहानी कुछ अलग ही रूप ले लेती है.

लेखन व निर्देशनः
फिल्म ‘‘मलाल’ देखकर इस बात का अहसास ही नहीं होता कि इसका निर्देशन 11 वर्ष पहले राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त दिल को छू लेने वाली मराठी भाषा की फिल्म ‘‘टिंग्या’’ का निर्देशन करने वाले निर्देशक मंगेश हडवले ने किया है. फिल्मकार ने कहानी 1998 में शुरू करते हुए उस वक्त मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ शिवसेना का जो रूख था, उसे चित्रित किया, मगर पांच मिनट बाद ही फिल्मकार यह मुद्दा पूरी तरह से भूल गए. पांच मिनट पूरी फिल्म में कहीं भी नेता सावंत नजर नहीं आए. इंटरवल से पहले फिल्म बहुत बेकार है. इंटरवल से पहले फिल्मकार ने बेवजह ही डांस व एक्शन सीन्स भरे हैं. मगर इंटरवल के बाद सही मायनों में प्रेम कहानी शुरू होती है. पर जरुरत से ज्यादा मेलोड्रामा है.

फिल्मकार महाराष्ट्रियन परिवेश और चाल के जीवन का यथार्थ चित्रण करने में जरुर सफल रहे हैं. यूं तो यह एक तमिल फिल्म का रीमेक है, मगर दर्शक को फिल्म देखते हुए ‘‘तेरे नाम’’ सहित कुछ पुरानी फिल्मों की याद आ जाती है. फिल्म के कुछ संवाद हालिया रिलीज फिल्म ‘‘कबीर सिंह’’ की याद दिला देते हैं.

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अभिनयः

महाराष्ट्रियन टपोरी किस्म के बदमाश या यूं कहें कि गुंडे किस्म के शिवा के किरदार को परदे पर जीवंत करने में मीजान काफी हद तक सफल रहे हैं. उनके चेहरे पर गम, दर्द व प्यार के भाव भी बाखूबी उभरते हैं. एक्शन सीन हो या इमोशनल या फिर रोमांस का मसला हो हर जगह मीजान प्रभावित करते हैं. डांस में उन्हे अभी थोड़ी और मेहनत करने की जरुरत है. आस्था के किरदार के साथ शरमिन सहगल ने भी न्याय किया है. वह मासूम व सुंदर नजर आयी हैं. लेकिन कमजोर पटकथा व कमजोर चरित्र चित्रण के चलते इन दोनों की प्रतिभा भी ठीक से उभर नहीं पाती. समीर धर्माधिकारी ने यह फिल्म क्यों की, यह बात समझ से परे हैं.

फिल्म खत्म होने के बाद दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है, उसकी समझ में नहीं आता कि आखिर फिल्म बनाई ही क्यो गयी?

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