षष्टिपूर्ति: शादी के बाद क्या हुआ था उसके साथ

‘‘क्या आप मेरी बात सुनने की कृपा करेंगी?’’ रघु चीखा था. पर उस की पत्नी ईशा एक शब्द भी नहीं सुन पाई थी. वह कंप्यूटर पर काम करते हुए इयरफोन से संगीत का आनंद भी उठा रही थी. लेकिन ईशा ने रघु की भावभंगिमा से उस के क्रोधित होने का अनुमान लगाया और कानों में लगे तारों को निकाल दिया.

‘‘क्या है? क्यों घर सिर पर उठा रखा है?’’ ईशा भी रघु की तरह क्रोध में चीखी.

‘‘तो सुनो मेरी कजिन रम्या विवाह के बाद यहीं वाशिंगटन में रहने आ रही है. उस के पति रोहित यहां किसी सौफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत हैं. विवाह के बाद वह भारत से पहली बार यहां आ रही है. उस का फोन आया तो मुझे मजबूरन कुछ दिन अपने साथ रहने को कहना पड़ा,’’ रघु ने स्पष्ट स्वर में कहा.

‘‘रम्या कुछ जानापहचाना नाम लगता है. कहीं वही तुम्हारी बूआजी की बेटी तो नहीं जिन के पड़ोस में तुम कई वर्ष रहे हो?’’

‘‘हां वही, सगी बहन से भी अधिक अपनापन मिला है उस से. इसीलिए न चाह कर भी अपने साथ रहने का आमंत्रण देने को मजबूर हो गया,’’ क्रोध उतरने के साथ ही रघु का स्वर भी सहज हो गया था.

‘‘ठीक है, वह तुम्हारी फुफेरी बहन है और यह तुम्हारा घर. मैं कौन होती हूं उसे यहां आने से रोकने वाली? पर मैं साफ कह देती हूं कि मुझ से कोई आशा मत रखना. अगले 2-3 महीने मैं बहुत व्यस्त रहूंगी. मुझ से उन के स्वागतसत्कार की आशा न रखना,’’ ईशा ने अपना निर्णय सुना दिया. थोड़ी कहासुनी के बाद ईशा दोबारा अपने काम में व्यस्त हो गई. न जाने क्यों आजकल उन दोनों का हर वार्त्तालाप बहस से शुरू हो कर झगड़े में बदल जाता है. दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त करने भारत से आए थे. पहली बार उस ने रघु को विदेशी विद्यार्थी सहायता केंद्र में देखा था और देखती ही रह गई थी. नैननक्श, रूपरंग, कदकाठी किसी भी नजरिए से वह भारतीय नहीं लगता था. पर उसे हिंदी बोलते देख उसे सुखद आश्चर्य हुआ था.

‘‘अरे, आप तो हिंदी बोल लेते हैं?’’ ईशा ने आश्चर्य से प्रश्न किया था.

‘‘शायद आप जानना चाहती हैं कि मैं भारतीय हूं या नहीं. तो सुनिए मैं हूं रघुनंदन, विशुद्ध भारतीय. हिंदी में काम चला लेता हूं, पर मेरी मातृभाषा तेलुगू है. उस्मानिया मैडिकल कालेज से एमबीबीएस कर के यहां रैजिडैंसी कर रहा हूं. और आप?’’

‘‘मैं…मैं ईशा मुंबई से बी.फार्मा कर के यहां एमएस कर रही हूं. पहली बार अमेरिका आई हूं, अत: जहां भी कोई भारतीय नजर आता है तो मन बात करने को मचल उठता है,’’ ईशा ने अपना परिचय दिया.

‘‘यकीन मानिए आप को निराश नहीं होना पड़ेगा. यहां आप को इतने भारतीय मिलेंगे कि विदेश में होने की भावना अधिक समय तक मन में नहीं टिकेगी,’’ कह रघु हंस दिया. धीरेधीरे दोनों के बीच मित्रता गहरी होने लगी. दोनों इतनी जल्दी विवाह के बंधन में बंध जाएंगे यह दूसरों ने तो क्या स्वयं रघु और ईशा ने भी नहीं सोचा था. वर्षों पहले ईशा के मातापिता कार दुर्घटना में चल बसे थे. संपन्न परिवार की इकलौती वारिस ईशा को उस के नानानानी और मामा ने बड़े प्यार से पाला था. रघु ने ईशा के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा तो ईशा ने तुरंत स्वीकार लिया. ईशा के नानानानी ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी. साथ ही राहत की सांस ली कि ईशा ने स्वयं ही योग्य वर चुन लिया. पर रघु के मातापिता को जब यह पता चला कि ईशा दूसरी जाति की है तो उन्होंने मुंह बना लिया. उन के यहां एक पंडित हर चौथे रोज आता था और उस ने उन्हें पढ़ा दिया था कि विजाति में विवाह करने से नर्क मिलता है.

‘जब तुम ने निर्णय ले ही लिया है, तो हमारे आशीर्वाद की क्या जरूरत है. समझ लेना हम दोनों मर गए तुम्हारे लिए. पिता का ई मेल पढ़ कर सकते में आ गया रघु. ईशा और रघु एक सादे समारोह में विवाह के  बंधन में बंध गए. ईशा के नानानानी उस के विवाह का जश्न मनाना चाहते थे, पर रघु ने साफ मना कर दिया. भारत जाने पर यदि वह अपने घर नहीं जा सकता तो कहीं नहीं जाएगा. रघु के कई संबंधी आसपास ही रहते थे पर उस के मातापिता के डर से अधिकतर उस से कतराने लगे थे. विवाह के बाद दोनों ने सुखद भविष्य की कल्पना की थी. पर विवाहपूर्व का प्रेम कपूर की भांति उड़ गया. दोनों हर बात पर भड़कते हुए एकदूसरे को खरीखोटी सुनाते और एकदूसरे को आहत करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते थे. ऐसे में रम्या के आने का समाचार सुन कर पुलक उठा था रघु. रम्या और उस के परिवार से उस की अनेक मधुर यादें जुड़ी थीं. उसे लगा मानो रेगिस्तान में गरम हवा के थपेड़ों के बीच अचानक ठंडी बयार बहने लगी हो. उस ने सोचा था कि रम्या के आने का समाचार सुन कर ईशा खुश होगी. विवाह के बाद पहली बार उस के परिवार का कोई आ रहा था पर ईशा के व्यवहार ने उसे बहुत आहत किया था अगले 2 सप्ताह रघु ने जितने उत्साह से रम्या के स्वागत की तैयारी की उतनी तो अपने विवाह की भी नहीं की थी. ईशा कुतूहल से सब देखती पर देख कर भी अनदेखा कर देती. न वह टोकती न रघु उत्तर देता. दोनों के बीच दिनरात की चिकचिक का स्थान अब तटस्थता ने ले लिया था.

रम्या और रोहित जब आए तो ईशा अपने कक्ष में थी. रम्या का चहकना सुन कर वह अपने कक्ष से बाहर आई. ‘‘ईशा भाभी,’’ रम्या उत्साह से बोली और लपक कर ईशा से लिपट गई.

‘‘रोहित मैं कहती थी न कि रघु भैया ने हीरा चुना है ईशा के रूप में. कैसा गरिमापूर्ण व्यक्तित्व है और कैसा अद्भुत सौंदर्य,’’ रम्या ने रोहित से कहा.

‘‘इस में कतई संदेह नहीं. मैं ने तो फोटो देखते ही कह दिया था,’’ रोहित ने हां में हां मिलाई.

‘‘फोटो से कहां पता चलता है. वह न बोलता है न भावनाओं को व्यक्त करता है,’’ रम्या अब भी मुग्धभाव से ईशा को निहार रही थी.

‘‘रम्या, छोड़ो यह नखशिख वर्णन. दोनों जल्दी से नहाधो कर तैयार हो जाओ. आज का भोजन हम बाहर करेंगे,’’ रघु ने रम्या के वार्त्तालाप को बीच में ही रोक दिया था.

‘‘क्या रघु भैया. हवाईजहाज का बेस्वाद खाना खा कर परेशान हो गए हम तो. हम तो घर का खाना खाएंगे. भाभी तुम चिंता मत करो मैं अभी 5 मिनट में नहाधो कर आई. आज सब के लिए खाना मैं बनाऊंगी और रम्या तुरंत बाथरूम में चली गई.’’ रम्या शीघ्र ही नहाधो कर आ गई. गुलाबी रंग के सूट में एकदम तरोताजा लग रही थी. ईशा कनखियों से उसे देखती रही. कोई खास गहने नहीं पहने थे उस ने. गले में मंगलसूत्र और दोनों हाथों में सोने की 4-4 चूडि़यां. कानों में शायद हीरे के कर्णफूल थे. हाथपैरों में लगी मेहंदी देख कर वह स्वयं को रोक नहीं सकी.

‘‘बड़ी अच्छी मेहंदी लगाई है. रंग अभी तक गहरा है,’’ ईशा ने रम्या की हथेलियां थामते हुए मेहंदी के डिजाइन पर नजर दौड़ाई.

‘‘इतनी आसानी से थोड़े छूटेगी… पूरे 8 घंटे बैठ कर लगवाई थी,’’ और रम्या खिलखिला कर हंस दी.

‘‘कोई बात नहीं. विवाह क्या बारबार होता है? हमारे विवाह में न मेहंदी, न डोली, न बाजा और न ही बराती. बस 2-4 मित्र और 2 हस्ताक्षर.’’

‘‘क्या कह रही हो भाभी?’’

‘‘मेरे लिए कौन करता यह सब? मातापिता तो रहे नहीं. नानानानी, मामामामी यहां आ नहीं सके. हम वहां गए नहीं और रघु के मातापिता के बारे में तो तुम जानती ही हो,’’ खाना बनाते हुए दोनों घनिष्ठ सहेलियों की तरह बातें कर रही थीं.

‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई, कितनी मूर्ख हूं मैं भी,’’ अचानक रम्या ने माथे पर हाथ मारा. फिर, ‘‘मेरे साथ आओ,’’ कह वह ईशा को अपने साथ खींच ले गई. ‘‘यह देखो, आप दोनों के लिए शांता मामी ने भेजा है. शांता मामी आप दोनों को बहुत याद करती हैं. रघु का नाम लेते ही उन की आंखें छलछला जाती हैं. मनोहर मामा कुछ नहीं बोलते या फिर उन का दर्प बोलने नहीं देता. पर मन की बात चेहरे पर आ ही जाती है. उन की दयनीय स्थिति देख कर कलेजा मुंह को आता है.’’ ईशा ने सिल्क की भारी जरी की साड़ी पर हाथ फेरा था. कढ़ाईदार साड़ी और 1 हीरे का सैट. उपहार देख कर ईशा बुत सी बनी बैठी रह गई.

‘‘रघु के लिए शेरवानीनुमा कुरतापाजामा है. मामी का बहुत मन था कि रघु अपने विवाह के समय इसे पहने.’’

‘‘पता नहीं रम्या, मैं यह सब उपहार ले भी पाऊंगी या नहीं. रघु को तुम नहीं जानती. वे एकदम से आगबबूला हो जाते हैं.’’

‘‘मैं खूब जानती हूं रघु को. भाभी यह तो मातापिता का आशीर्वाद है. इसे अस्वीकार कर के तुम उन का अपमान नहीं कर सकतीं,’’ और फिर रम्या ने उपहार ईशा के कक्ष में रख दिए.

‘‘खाना बहुत स्वादिष्ठ बना है. किस ने बनाया है?’’ रघु ने भोजन करते हुए पूछा.

‘‘हम दोनों ने मिल कर बनाया है,’’ कहते हुए ईशा को न जाने क्याक्या याद आया.

नानी ने बड़े जतन से उसे खाना बनाना सिखाया था. उस के बनाए खाने की सब कितनी प्रशंसा करते थे. क्या हो गया है उसे? विवाह के बाद तो उस की जीवन में रुचि ही समाप्त हो गई है. रम्या और रोहित 1 सप्ताह ईशा और रघु के साथ रहे. इस बीच रोहित ने अलग अपार्टमैंट ले लिया. विवाहपूर्व वह अपने मित्र के साथ रहता था, किंतु नई जगह रम्या को अकेलापन न लगे, इसलिए रघु के घर के पास ही नए घर में व्यवस्थित होने का निर्णय लिया था. जब भी समय मिलता दोनों मिलने चले आते. रम्या ने शीघ्र ही कुछ नए मित्र बना लिए और कुछ पुराने खोज निकाले. जब से रम्या आई थी ईशा की जीवनशैली भी बदलने लगी थी. रम्या ने उस के जीवन में भी नई ऊर्जा का संचार कर दिया था. इसी बीच 7 महीने का समय बीत गया. एक दिन रम्या और रोहित अचानक आ धमके.

‘‘आज हम बहुत जरूरी बात करने आए हैं, चायपानी सब बाद में,’’ रम्या आते ही बोली.

‘‘तो पहले कह ही डालो, फिर चैन से बैठो,’’ रघु ने कहा.

‘‘हम भारत जा रहे हैं,’’ रम्या ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘क्या? सदा के लिए?’’

‘‘नहीं, मेरे भोले भैया, केवल 1 माह के लिए. दिव्या का विवाह है और…’’

‘‘दिव्या कौन?’’ ईशा ने पूछा.

‘‘रम्या की छोटी बहन है,’’ रघु का उत्तर था.

‘‘और क्या?’’

‘‘मनोहर मामा की षष्टिपूर्ति (60 साल का होना) का उत्सव है 20 जून को.’’

‘‘अच्छा,’’ रघु के मुख से निकला.

‘‘आप दोनों भी चलने की तैयारी कर लो,’’ रम्या ने मानो आदेश दिया हो.

‘‘हम क्यों?’’ रघु ने पूछा.

‘‘यह भी ठीक है, आप तो मेरे विवाह में भी नहीं आए थे तो दिव्या के विवाह में क्यों जाने लगे. पर मनोहर मामा की षष्टिपूर्ति के उत्सव में तो आप अवश्य जाना चाहेंगे.’’

‘‘कभी नहीं, उन्होंने तुम्हें आमंत्रित किया है, सभी मित्रों, संबंधियों को भी किया होगा, पर मुझे सूचित करने की जरूरत नहीं समझी.’’

‘‘यह भी ठीक है, फिर भी सोच लो. अपने घर जाने के लिए भी क्या किसी निमंत्रण की जरूरत होती है?’’

‘‘रम्या, क्या तुम पापा के क्रोध को नहीं जानतीं? हमारे विवाह के समय उन्होंने हमें आशीर्वाद तक नहीं दिया.’’

‘‘तुम ने आशीर्वाद मांगा ही कब भैया? क्या तुम ईशा को ले कर एक बार भी उन से मिलने गए?’’

‘‘उन्होंने कभी बुलाया भी तो नहीं.’’

‘‘विवाह तुम ने अपनी मरजी से किया… तुम्हें स्वयं जाना चाहिए था. यह देखो षष्टिपूर्ति उत्सव का निमंत्रणपत्र. उत्तराकांक्षी के स्थान पर तुम्हारा नाम लिखा है. तुम्हें तो स्वयं जा कर सारा प्रबंध करना चाहिए. मनोहर मामा का जन्मदिन तो याद है न तुम्हें?’’ और रम्या ने निमंत्रणपत्र रघु की ओर बढ़ा दिया. रघु देर तक निमंत्रणपत्र को देखता रहा. फिर रम्या को लौटा दिया.

‘‘तुम्हारे तर्क अपने स्थान पर ठीक हैं रम्या, पर मैं इस तरह जाने के लिए स्वयं को आश्वस्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ रघु ने दोटूक शब्दों में कहा. कुछ देर तक मौन पसरा रहा मानो चाह कर भी कोई कुछ बोल नहीं पा रहा हो.

‘‘रम्या, रघु अपनी मरजी के मालिक हैं पर मैं तुम्हारे साथ चलूंगी. मुझे नानानानी से भी क्षमा मांगनी है… उन का आशीर्वाद लेना है. रघु के मातापिता से मेरा भी कोई संबंध है. अपने मातापिता को तो मैं खो चुकी हूं, पर अब उन्हें नहीं खोना चाहती,’’ ईशा ने अपना निर्णय सुनाया.

‘‘यह हुई न बात. मुझे अपनी ईशा भाभी पर गर्व है. हम गरमगरम जलेबियां और समोसे ले कर आए थे. 50% लक्ष्य प्राप्त करने में तो हमें सफलता मिल ही गई. चलो, अब गरमगरम चाय पीएंगे,’’ और फिर रम्या और ईशा चाय बनाने चली गईं. रोहित जलेबियां और समोसे प्लेट में लगाने लगा. रघु मुंह फुलाए सोफे पर बैठा अपने ही विचारों में खोया था.

‘‘भ्राताश्री, कब तक यों बैठे रहेंगे? आइए, चाय लीजिए,’’ रम्या नाटकीय अंदाज में बोल कर खिलखिला दी.

‘‘रम्या बहुत नटखट हो गई हो तुम. जब देखो तब मेरा मजाक उड़ाती रहती हो,’’ रघु चाय का कप उठाते हुए बोला.

‘‘कैसी बातें करते हो भैया, मजाक और आप का? मैं ऐसा साहस भला कैसे कर सकती हूं? मैं तो केवल आप को अपने साथ भारत ले जाने की कोशिश कर रही हूं,’’ रम्या मुसकराई.

‘‘लगता है तुम अपनी कोशिश में कुछकुछ सफलता प्राप्त कर रही हो.’’

‘‘कुछकुछ सफलता? अर्थात आप भी हमारे साथ चल रहे हैं?’’

‘‘हां, जब ईशा ने जाने का निर्णय ले ही लिया है, तो मैं उसे अकेले तो नहीं छोड़ सकता,’’ रघु ने संकुचित स्वर में कहा तो हंसते हुए भी ईशा की आंखों में आंसू भर आए, जिन्हें छिपाने के लिए उस ने मुंह फेर लिया.

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