Serial Story: शायद (भाग-2)

पहला भाग पढ़ने के लिए- शायद भाग-1

प्रद्युमन के घर निर्वाण को सारी सुविधाएं थीं. पढ़ाई के साथसाथ वह आसानी से गिटार के रियाज का समय भी निकाल लेता था. गिटार उस का पैशन था. जब वह एक के बाद एक गानों की धुन पर उंगलियां थिरकाता तो नीचे कोचिंग में बैठी प्रेक्षा अपनी सुधबुध खो देती. महीन सपने सतरंगी रथ पर बैठ इंद्रधनुष के पार चले जाते. अनुभूतियां सिहर कर सिर से पांव तक दौड़ जातीं और जब वह चौंक कर देखती तो गणित के सवाल पर उस की कलम मुंह के बल चारों खाने चित्त पड़ी मिलती.प्रद्युमन की सभी बच्चों पर बराबर नजर थी, लेकिन प्रेक्षा पर उन का ध्यान आजकल ज्यादा ही रहता. परीक्षाएं शुरू होने वाली थीं पर इस लड़की का हाल कुछ सही नहीं था. सारा सिखाया हुआ भूलती जा रही थी, स्कूल की कौपी में बारबार खराब प्रदर्शन था. डांटने और चिंता व्यक्त करते रहने से जब प्रेक्षा पर कोई असर नहीं हुआ तो प्रद्युमन ने एक दिन अकेले में उसे रोक लिया. वे कुरसी पर बैठे थे. प्रेक्षा सिर झुकाए सामने खड़ी थी. उन में बातचीत कुछ यों हुई-

‘‘और कितना समझाऊं तुम्हें? क्यों न अब तुम्हारे पापा को खबर करूं? पर वे इतना रुपया खर्च कर रहये हैं… कुछ तो उम्मीद होगी तुम से… मैं यह नहीं कहता कि सौ प्र्रतिशत लाओ, लेकिन कुछ तो रिटर्न दोगी उन्हें.’’

‘‘पापा से न कहना प्लीज.’’

‘‘क्यों? उन्हें पता चलना चाहिए?’’

‘‘पापा को इस कोचिंग के बारे में पता नहीं है.’’

‘‘क्यों क्व10 हजार तुम्हारी मां ने तो दिए नहीं होंगे… नौकरी तो वे करती नहीं.’’

‘‘मां ने ही दिए, अपने कुछ गहने बेच कर.’’

‘‘क्या समस्या है? मुझे बताओ?’’

‘‘हम 3 बहनें हैं, मां चाहती हैं हम तीनों ही खूब पढ़ेलिखें और घर में लड़कों की कमी को पूरा करें, पर पापा को इन बातों से चिढ़ है. खासकर मुझ से… मेरी जगह उन्हें एक लड़के की चाह थी.

‘‘मेरी दीदी मुंबई में नौकरी करती हैं. वे वहां बहुत खुश हैं. वे अपने बौयफ्रैंड से शादी करने वाली हैं, हमें हमेशा ढेरों तसवीरें दिखाती रहती हैं… उन्हें पापा से अब कोई मतलब नहीं और न ही पापा उस की जिंदगी में दखल देते हैं. हम दोनों बहनों की वे जल्द शादी कर देंगे, लेकिन मैं अपनी पसंद की जिंदगी जीना चाहती हूं.’’

प्रद्युमन ने प्रेक्षा के घर वालों से सलाह करने की बात छोड़ दी, लेकिन उन की चिंता दिनोंदिन बढ़ती गई.

चोरीछिपे वैसे तो निर्वाण से प्रेक्षा की नजरें टकरातीं, लेकिन जहां इस की प्रेरणा ही हो वहां रोके से कौन रुका है? तो दोस्ती की शुरुआत कुछ इस तरह हुई-

निर्वाण ऊपर अपने कमरे में गिटार बजा रहा था. उस की धुनों ने प्रेक्षा की

कोमल कल्पनाओं में पंख लगा दिए. एक दिन उस ने जल्द पढ़ाई खत्म कर घर जाने की छुट्टी मांगी और अपना बैग समेट कर बाहर निकल आई. पीछे की  सीढि़यों का रास्ता पकड़ा उस ने और सीधे निर्वाण के कमरे के दरवाजे की ओट पकड़ कर लगभग उस के सामने खड़ी हो गई. आंखों में प्रशंसा, होंठों पर सलज्ज मुसकान, कच्ची सी कली का आगे बढ़ कर इस तरह मान प्रदर्शन नए शहर में नई उम्र के लड़के को भला क्यों न अच्छा लगता? इश्क की बग्घी चल पड़ी उन की. अब दोनों को अपनी इस भरी व्यस्तता के बीच प्यार के लिए भी समय निकालना था. दोनों तालमेल बैठाते रहे.

परीक्षाएं शुरू हो चुकी थीं. प्रेक्षा की तबीयत कुछ दुविधा में डालने वाली थी. घबराहट, भय, निर्वाण को खोने की शंका ने उसे परेशान कर दिया था. जैसेतैसे परीक्षा में ध्यान लगाने के बावजूद वह 11वीं कक्षा की परीक्षा में सफल नहीं हो पाई.

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प्रद्युमन मर्माहत थे. उन की स्थिति कुछ विकट हो गई. उन्होंने प्रेक्षा की मां से प्रेक्षा की ट्यूशन फीस ली हुई थी. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद प्रेक्षा का प्रदर्शन बचा नहीं पाए. उन्होंने प्रेक्षा से बातचीत बंद कर दी. प्रेक्षा भी अब यहां नहीं आ पा रही थी.

समय कुछ और बीत गया. निर्वाण का जेईई में चयन हो गया और फिर रातोंरात वह प्रद्युमन से हिसाब चुकता कर के ज्यादा कुछ बोले बिना निकल गया.

इस के 10 दिन के बाद प्रेक्षा प्रद्युमन के घर आई और सब से पहले बेचैन सी निर्वाण को मिलने ऊपर गई. अपने अंदेशे को निर्वाण से साझा करना था उसे, लेकिन खाली कमरे की दीवारों ने उस के गाल पर करारा थप्पड़ जड़ दिया. वह हैरान सी हर दीवार को ताकती रही. वह दौड़ती हुई नीचे आई. ट्यूशन वाले बच्चों की आज छुट्टी थी.

वह प्रद्युमन के आगे जा कर खड़ी हो गई. बड़ा रोष था मन में. कहीं प्रद्युमन सर ने ही तो जाने का रास्ता नहीं दिखा दिया उसे? उन्हें पता तो चल ही रहा था उन दोनों के बारे में… सोचते हुए प्रेक्षा की सांसें फूल आईं. वह अपनी परीक्षा और रिजल्ट के बारे में भूल चुकी थी. निर्वाण के साथ उस के भविष्य के सपनों की चिंदीचिंदी बिखर जाना अभी उस का सब से बड़ा सच था और जिस के लिए प्रद्युमन नामक वास्तव के इस कठोर धरातल को वह पहला जिम्मेदार मान चुकी थी.

लुटीपिटी हांफती वह प्रद्युमन से पूछ रही थी, ‘‘निर्वाण क्यों चला गया? रोष से भरी प्रेक्षा लगभग फट पड़ी थी प्रद्युमन पर.’’

प्रद्युमन अचरज से भर गए, लेकिन तुरंत उन्हें प्रेक्षा की स्थिति का भान हुआ और फिर कुछ सहज हो गए. प्रेक्षा का हाथ पकड़ कर सब से पहले तो वे उसे अपने नजदीक लाए और फिर कहा, ‘‘प्रेक्षा, मैं ने निर्वाण से जाने को नहीं कहा. तुम वहम में इतना डूब गई हो कि तुम्हारे सिर के ऊपर से कितने ही युग निकल कर चले गए, तुम्हें पता ही नहीं चला. तुम 11वीं कक्षा में फेल हो चुकी हो. निर्वाण की कोचिंग समाप्त हो चुकी है. उस ने अपने सपने को पकड़ लिया है. उस का इंजीनियरिंग में चयन हो गया है और वह वापस चला गया, तुम्हें कुछ भी बताए बिना. अब तुम भी होश में आओ, उसे लगभग झंझोड़ते हुए प्रद्युमन आवेश में आ गए थे.

आगे पढ़ें- प्रेक्षा रोते हुए वहीं जमीन पर बैठ गई…

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