19 दिन 19 कहानियां: शेष चिह्न

कहानी- डा. छाया श्रीवास्तव

मायके और ससुराल वालों की सेवा में समर्पित निधि के सपने तो जैसे बिखर कर रह गए थे. जीवन के रेगिस्तान में भटकती निधि क्या ‘अपनों के प्यार’ की मरीचिका को पा सकी?

निधि की शादी तय हो गई थी पर उस को ऐसा लग रहा था मानो मरघट पर जाना है…लाश के साथ नहीं, खुद लाश बन कर. उस का और मेरा परिचय एक प्राइवेट स्कूल में हुआ था जिस में मैं अंगरेजी की अध्यापिका थी और वह साइंस की अध्यापिका हो कर आई थी.

उस का अप्रतिम रूप, कमल पंखड़ी सा गुलाबी रंग, पतला छरहरा बदन, सौम्य नाकनक्श थे पर घर की गरीबी के कारण विवाह न हो पा रहा था.

निधि का छोटा सा कच्चा पुश्तैनी मकान था. परिवार में 4 बहनों पर एकमात्र छोटा भाई अविनाश था. बस, सस्ते कपड़ों को ओढ़तेपहनते, गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह खिंच रही थी.

बड़ी बहन आरती के ग्रेजुएट होते ही एक क्लर्क से बात पक्की कर दी गई तो पिता ने कुछ जी.पी.एफ. से रुपए निकाल कर विवाह की रस्में पूरी कीं. किसी प्रकार आरती घर से विदा हो गई. सब ने चैन की सांस ली. कुछ महीने आराम से निकल गए.

आरती को दान- दहेज के नाम पर साधारण सामान ही दे पाए थे. न टेलीविजन न अन्य सामान, न सोना न चांदी. ससुराल में उस पर जुल्मों के पहाड़ टूटने लगे पर वह सब सहती रही.

फिर एक दिन उस ने अपनी कोख से बेटे के बजाय बेटी जनी तो उस पर जुल्म और बढ़ते ही गए. और एक रात अत्याचारों से घबरा कर वह पड़ोसियों की मदद से रोतीकलपती अपने साथ एक नन्ही सी जान को ले कर पिता की देहरी पर लौट आई. उस का यह हाल देख कर पूरे परिवार की चीत्कार पड़ोस तक जा पहुंची. फिर क्याकुछ नहीं भुगता पूरे घर ने. आरती ने तो कसम खा ली थी कि वह जीवन भर वहां नहीं जाएगी जहां ऐसे नराधम रहते हैं.

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इस तरह मय ब्याज के बेटी वापस आ गई. अत्याचारों की गाथा, चोटों के निशान देख कर फिर उसी घर में बहन को भेजने का सब से ज्यादा विरोध निधि ने ही किया. 3-4 वर्ष के भीतर  ही तलाक हो गया तो मातापिता की छाती पर फिर से 4 बेटियों का भार बढ़ गया.

मुसीबत जैसे चारों ओर से काले बादलों की तरह घिर आई थी. उस पर महंगाई की मार ने सब कुछ अस्तव्यस्त कर दिया. जो सब की कमाई के पैसे मिलते वह गरम तवे पर पानी की बूंद से छन्न हो जाते. तीजत्योहार सूखेसूखे बीतते. अच्छा खाना उन्हें तब ही नसीब होता जब पासपड़ोस में शादी- विवाह होते. अच्छे सूटसाड़ी पहनने को उन का मन ललक उठता, पर सब लड़कियां मन मार कर रह जातीं.

निधि तो बेहद क्षुब्ध हो उठती. जहां उस के विवाह की बात होती, उस का रूप देख कर लड़के मुग्ध हो जाते  पर दानदहेज के लोभी उस के गुणशील को अनदेखा कर मुंह मोड़ लेते.

निधि मुझ से कहती, ‘‘सच कहती हूं मीनू, लगता है कहीं से इतना पैसा पा जाऊं कि अपने घर की दशा सुधार दूं. इस के लिए यदि कोई रईस बूढ़ा भी मिलेगा तो मैं शादी के लिए तैयार हो जाऊंगी. बहुत दुख, अभाव झेले हैं मेरे पूरे परिवार ने.’’

‘‘तू पागल हो गई है क्या? अपना पद्मिनी सा रूप देखा है आईने में? मेरे सामने ऐसी बात मत करना वरना दोस्ती छोड़ दूंगी. परिवार के लिए बूढ़े से ब्याह करेगी? क्या तू ने ही पूरे घर का ठेका लिया है? और भी कोई सोचता है ऐसा क्या?’’

मेरी आंखें नम हो गईं तो देखा वह भी अपनी पलकें पोंछ रही थी.

‘‘सच मीनू, तू ने गरीबी की परछाईं नहीं देखी पर हम बचपन से ही इसे भोग रहे हैं. अरे, अपनों के लिए इनसान बड़े से बड़ा त्याग करता है. मैं मर जाऊं तो मेरी आत्मा धन्य हो जाएगी. बीमार अम्मां व बाबूजी कैसे जी पाएंगे अपनी प्यारी बेटियों को दुखी देख कर. पता है, मैं पूरे 28 वर्ष की हो गई हूं, नीतिप्रीति भी विवाह की आयु तक पहुंच गई हैं. मुझे कई लड़के देख चुके हैं. लड़की पसंद, शिक्षा पसंद, नहीं पसंद है तो कम दहेज. यही तो हम सब के साथ होगा. धन के आगे हमारे रूपगुण सब फीके पड़ गए हैं.’’

उस की बातों पर मैं हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘अरे, तू तो किसी घर की राजरानी बनेगी. देख लेना तेरा दूल्हा सिरआंखों पर बैठाएगा तुझे. धनदौलत पर लोटेगी तू्.’’

‘‘रहने दे, ऐसे ऊंचे सपने मत दिखा, जो आगे चल कर मेरी छाती में टीस दें. हां, तुझे अवश्य ऐसा ही वरघर मिलेगा. अकेली बेटी, 2 बड़े भाई, सब ऊंचे पदों पर.’’

‘‘कहां राजा भोज कहां गंगू तेली? बड़े परिवार की समस्या पर ही तो सोचती हूं ऐसा, अपनी कुरबानी देने की.’’

फिर आएदिन मैं यही सुनती थी कि निधि को देखने वाले आए और गए. धन के अभाव में सब मुंह चुरा गए. इतनी तगड़ी मांगें कि घर भर के सिर फिर जाते. यहां तो शादी का खर्च उठाना मुश्किल था. उस पर लाखों की मांग.

एक दिन गरमी की दोपहर में आ कर निधि ने विस्फोट किया, ‘‘मीनू, तुझे याद है एक बार मैं ने तुझ से कहा था कि अगर कोई मालदार धनी बूढ़ा वर ही मिल जाएगा तो मैं उस से शादी करने को तैयार हो जाऊंगी. लगता है वही हो रहा है.’’

मैं ने घबरा कर अपनी छाती थाम ली फिर गुस्से से भर कर बोली, ‘‘तो क्या किसी बूढ़े खूसट का संदेशा आया है और तू तैयार हो गई है?’’ इतना कह कर तब मैं ने उस के दोनों कंधे झकझोर दिए थे.

वह बच्चों सी हंसी हंस दी. फिर पसीना पोंछती हुई बोली, ‘‘तू तो ऐसी घबरा रही है जैसे मेरे बजाय तेरी शादी होने जा रही है. देख, मैं बूढ़े खूसट की फोटो लाई हूं. उस की उम्र 40 के आसपास है और वह दुहेजा है. 4 साल पहले पत्नी मर गई थी.’’

उस ने फोटो मेरे हाथ पर रख दिया. ‘‘अरे वाह, यह तो बूढ़ा नहीं जवान, सुंदर है. तू मजाक कर रही है मुझ से?’’

‘‘नहीं रे, मजाक नहीं कर रही… दुहेजा है.’’

‘‘कहीं दहेज के चक्कर में पहली को मार तो नहीं डाला. क्या चक्कर है?’’ मैं बोली.

‘‘यह मेरी मौसी की ननद का देवर है,’’ निधि ने बताया.

‘‘सेल्स टेक्स कमिश्नर है. तीसरी बार बेटे को जन्म देते समय पत्नी की मौत हो गई थी.’’

‘‘तो क्या 2 संतान और हैं?’’

‘‘हां, 1 बेटी 10 साल की, दूसरी 8 साल की.’’

‘‘तो तुझे सौतेली मां का दर्जा देने आया है?’’

‘‘यह तो है पर पत्नी की मृत्यु के 4 साल बाद बड़ी मुश्किल से दूसरी शादी को तैयार हुआ है. घर पर बूढ़ी मां हैं. एक बड़ी बहन है जो कहीं दूर ब्याही गई है, बढ़ती बच्चियों को कौन संभाले. वह ठहरे नौकरीपेशा वाले. समय खराब है. इस से उन्हें तैयार होना पड़ा.’’

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‘‘तो तू जाते ही मां बनने को तैयार हो गई, मदर इंडिया.’’

‘‘हां रे. अम्मांबाबूजी तो तैयार नहीं थे. मौसी प्रस्ताव ले कर आई थीं. मुझ से पूछा तो मैं क्या करती. जन्म भर अम्मांबाबूजी की छाती पर मूंग तो न दलती. दीदी व उन की बेटी बोझ बन कर ही तो रह रही हैं. फिर 2 बहनें और भी शूल सी गड़ती होंगी उन की आंखों में. कब तक बैठाए रहेंगे बेटियों को छाती पर?

‘‘मैं अगर इस रिश्ते को हां कर दूंगी तो सब संभल जाएगा. धन की उन के यहां कमी नहीं है, लखनऊ में अपनी कोठी है. ढेरों आम व कटहल के बगीचे हैं. नौकरचाकर सब हैं.

‘‘मैं सब को ऊपर उठा दूंगी, मीनू,’’ निधि ने जैसे अपने दर्द को पीते हुए कहा, ‘‘मेरे मातापिता की कुछ उम्र बच जाएगी नहीं तो उन के बाद हम सब कहां जाएंगे. बाबूजी 2 वर्ष बाद ही तो रिटायर हो रहे हैं, फिर पेंशन से क्या होगा इतने बड़े परिवार का? बता तो तू?’’

मैं ने निधि को खींच कर छाती से लगा लिया. लगा, एक इतनी खूबसूरत हस्ती जानबूझ कर अपने को परिवार के लिए कुरबान कर रही है. मेरे साथ वह भी फूटफूट कर रो पड़ी.

निधि शाम को आने का मुझ से वचन ले कर वापस लौट गई. फिर शाम को भारी मन लिए मैं उस के घर पहुंची. उस की मौसी आ चुकी थीं और वर के रूप में भूपेंद्र बैठक में आराम कर रहे थे. निधि को अभी देखा नहीं था. मैं मौसी के पास बैठ कर वर के घर की धनदौलत का गुणगान सुनती रही.

‘‘बेटी, तुम निधि की सहेली हो न,’’ मौसी ने पूछा, ‘‘वह खुश तो है इस शादी से, तुम से कुछ बात हुई?’’

‘‘मौसी? यह आप स्वयं निधि से पूछ लो. पास ही तो बैठी है वह.’’

‘‘वह तो कुछ बोलती ही नहीं है, चुप बैठी है.’’

‘‘इसी में उस की भलाई है,’’ मैं जैसे बगावत पर उतर आई थी.

‘‘मीनू, तुम नहीं जानती घर की परिस्थिति, पर मुझ से कुछ छिपा नहीं है. निधि की मां मुझ से छोटी है. उसी के आग्रह पर मैं अब तक कई लड़के वालों के पतेठिकाने भेजती रही पर बेटा, पैसों के लालची आज के लोग रूपगुण के पारखी नहीं हैं…फिर आरती में क्या कमी है, लेकिन क्या हुआ उस के साथ…मय ब्याज के वापस आ गई…ये निधि है 28 पार कर चुकी है. आगे 2 और हैं.’’

मैं उन के पास से उठ आई, ‘‘चल निधि, कमरे में बैठते हैं.’’

वह उठ कर अंदर आ गई.

मैं ने जबरन निधि को उठाया. उस का हाथमुंह धुलाया और हलका सा मेकअप कर के उसे मौसी की लाई साडि़यों में से एक साड़ी पहना दी, क्योंकि निधि को शाम का चायनाश्ता ले कर अपने को दिखाने जाना था. सहसा वर बैठक से निकल कर बाथरूम की ओर गया तो मैं अचकचा गई. कौन कह सकता है देख कर कि वह 40 का है. क्षण भर में जैसे अवसाद के क्षण उड़ गए. लगा, भले ही वर दुहेजा है पर निधि को मनचाहा वरदान मिल गया.

शाम के समय लड़की दिखाई के वक्त नाश्ते की प्लेटें लिए निधि के साथ मैं भी थी. तैयार हो कर तरोताजा बैठा प्रौढ़ जवान वर सम्मान में उठ कर खड़ा हो गया और उस के मुंह से ‘बैठिए’ शब्द सुन कर मन आश्वस्त हो उठा.

हम दोनों बैठ गए. निधि ने चाय- नाश्ता सर्व किया तो उस ने प्लेट हम लोगों की ओर बढ़ा दी. फिर हम दोनों से औपचारिक वार्त्ता हुई तो मैं ने वहां से उठना ही उचित समझा. खाली प्लेट ले कर मैं बाहर आ गई. दोनों आपस में एकदूसरे को ठीक से देखपरख लें यह अवसर तो देना ही था. फिर पूरे आधे घंटे बाद ही निधि बाहर आई.

‘‘क्या रहा, निधि?’’ मैं निकट चली आई.

‘‘बस, थोड़ी देर इंतजार कर,’’ यह कह कर निधि मुझे ले कर एक कमरे में आ गई. फिर 1 घंटे बाद जो दृश्य था वह ‘चट मंगनी पट ब्याह’ वाली बात थी.

रात 8 बजतेबजते आंगन में ढोलक बज उठी और सगाई की रस्म में जो सोने की चेन व हीरे की अंगूठी उंगलियों में पहनाई गई उन की कीमत 60 हजार से कम न थी.

15 दिन बाद ही छोटी सी बरात ले कर भूपेंद्र आए और निधि के साथ भांवरें पड़ गईं. इतना सोना चढ़ा कि देखने वालों की आंखें चौंधिया गईं. सब यह भूल गए कि वर अधिक आयु का है और विधुर भी है. बस, एक बात से सब जरूर चकरा गए थे कि दूल्हे की दोनों बेटियां भी बरात में आई थीं. पर वे कहीं से भी 12 और 8 की नहीं दिखती थीं. बड़ी मधु 16 वर्ष और छोटी विधु 12 की दिखती थीं. जवानी की डगर पर दोनों चल पड़ी थीं. सब को अंदाज लगाते देर नहीं लगी कि वर 50 की लाइन में आ चुका है.

निधि से कोई कुछ न कह सका. सब तकदीर के भरोसे उसे छोड़ कर चुप्पी लगा गए. 1 माह तक ससुराल में रह कर निधि जब 10 दिन के लिए मायके आई थी तो मैं ही उस से मिलने पहुंची थी. सोने से जैसे वह मढ़ गई थी. एक से बढ़ कर एक महंगे कपड़े, साथ ही सारे नए जेवर.

एक बात निधि को बहुत परेशान किए थी कि वे दोनों लड़कियां किसी प्रकार से विमाता को अपना नहीं पा रही थीं. बड़ी तो जैसे उस से सख्त नफरत करती, न साथ बैठती न कभी अपने से बोलती. पति से इस बात पर चर्चा की तो उन्होंने निधि को समझा दिया कि लोगों ने या इस की सहेलियों ने इस के मन में  उलटेसीधे विचार भर दिए हैं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. अपनी बूढ़ी दादीमां का कहना भी वे दोनों टाल जातीं.

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निधि हर समय इसी कोशिश में रहती कि वे दोनों उसे मां के बजाय अपना मित्र समझें. इस को निधि ने बताने की भी कोशिश की पर वे दोनों अवहेलना कर अपने कमरों में चली गईं. खाने के समय पिता के कई बार बुलाने पर वे डाइनिंग रूम में आतीं और थोड़ाबहुत खा कर चल देतीं. पिता भी जैसे पराए हो गए थे. पिता का कहना इस कान से सुनतीं उस कान निकाल देतीं.

निधि यदि कहती कि किसी सब्जेक्ट में कमजोर हो तो वह पढ़ा सकती है तो मधु फटाक से कह देती कि यहां टीचरों की कमी नहीं है. आप टीचर जरूर रही हैं पर छोटे से शहर के प्राइवेट स्कूल में. हम क्या बेवकूफ हैं जो आप से पढ़ेंगे और यह सुन कर निधि रो पड़ती.

एक से एक बढि़या डिश बनाने की ललक निधि में थी पर मायके में सुविधा नहीं थी इसलिए वह अपने शौक को पूरा न कर सकी. यहां पुस्तकों को पढ़ कर या टेलीविजन में देख कर तरहतरह की डिश बनाती, पूरे घर को खिलाती, पति और सास तो खुश होते पर उन दोनों बहनों की प्लेटें जैसी भरी जातीं वैसी ही कमरों से आ कर सिंक में पड़ी दिखतीं.

कई बार पिता ने प्यार से समझाया कि वह अब तुम्हारी मां हैं, उन का आदर करो, उन्हें अपना समझो तो बड़ी मधु फटाक से उत्तर दे देती, ‘पापा, आप की वह सबकुछ हो सकती हैं पर हमारी तो सौतेली मां हैं.’

इस पर पिता का कई बार हाथ उठ गया. निधि पक्ष ले कर आगे आई तो अपमानित ही हुई. इस से चुपचाप रो कर रह जाती. लड़कियां कहां जाती हैं, रात में देर से क्यों आती हैं. कुछ नहीं पूछ सकती थी वह.

लड़कियों के पिता सदैव गंभीर रहे. हमेशा कम बोलना, जैसे उन के चेहरे पर उच्च पद का मुखौटा चढ़ा रहता. बेटियों को भी कभी पिता से हंसतेबोलते नहीं देखा. कई बार निधि के मन में आया कि वह मधु से कुछ पूछे, बात करे पर वह तो हमेशा नाक चढ़ाए रहती.

बूढ़ी सास प्यार से बोलतीं, समझातीं, खानेपीने का खयाल रखने को कहतीं. जब बेटियों के बारे में वह पूछती तो कह देतीं, ‘‘सखीसहेलियों ने उलटासीधा भरा होगा. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. तू भूपेंद्र से बता दिया कर जो समस्या हो.’’

‘‘मांजी, एक तो रात में वह देर से आते हैं फिर वह इस स्थिति में नहीं होते कि उन से कुछ कहा जाए. दिन में बेटियों की बात बेटियों के सामने तो नहीं कह सकती, वह भी तब जब दोनों जैसे लड़ने को तैयार बैठी रहती हैं. मैं तो बोलते हुए भी डरती हूं कि पता नहीं कब क्या कह कर अपमान कर दें.’’

‘‘इसी से तो शादी करनी पड़ी कि पत्नी आ जाएगी तो कम से कम रात में घर आएगा तो उसे संभाल तो लेगी. अब तो तुझे ही सबकुछ संभालना है.’’

अधरों की हंसी, मन की उमंग, रसातल में समाती चली जा रही थी. सब सुखसाधन थे. जेवर, कपड़े, रुपएपैसे, नौकरचाकर परंतु लगता था वह जंगल में भयभीत हिरनी सी भटक रही है. मायके की याद आती, जहां प्रेम था, उल्लास था, अभावों में भी दिन भर किल्लोल के स्वर गूंजते थे. तभी एक दिन देखा कि दोनों बहनें मां का वार्डरोव खोल कर कपड़े धूप में डाल रही हैं और लाकर से उन के जेवर निकाल कर बैग में ठूंस रही हैं. निधि का माथा ठनका. उस दिन छुट्टी थी. सब घर पर ही थे. वह चुपके से घर के आफिस में गई. उस समय वह अकेले ही थे. बोली, ‘‘क्या मैं आ सकती हूं?’’

‘‘अरे, निधि, आओ, आओ, बैठो,’’ यह कहते हुए उन्होंने फाइल से सिर उठाया.

‘‘ये मधुविधु कहीं जा रही हैं क्या?’’

‘‘क्यों, तुम्हें क्यों लगा ऐसा? पूछा नहीं उन से?’’

‘‘पूछ कैसे सकती हूं…कभी वे बोलती भी हैं क्या? असल में उन्होंने अपनी मां के कपड़े धूप में डाले हैं और जेवर बैग में रख रही हैं.’’

‘‘दरअसल, वह अपनी मां के जेवर बैंक लाकर में रखने को कह रही थीं तो मैं ने ही कहा कि निकाल लो, कल रख देंगे, घर पर रखना ठीक नहीं है. दोनों की शादी में दे देंगे.’’

‘‘क्षमा करें, अकसर दोनों कभी अकेले जा कर रात में देर से घर आती हैं. इस से आप से कहना पड़ा,’’ निधि जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

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‘‘ठहरो, निधि, तुम कभी शौपिंग को नहीं जाती हो? भई, रुपएपैसे मेरी अलमारी में पड़े रहते हैं. जेवर, कपड़े जो चाहिए खरीद लाया करो. कोई रोक नहीं है. आजकल तो महिलाएं नएनए डिजाइन के गहनेकपड़े पहन कर घूमती हैं. मैं चाहता हूं कि तुम भी वैसी ही घूमो, क्लब ज्वाइन कर लो, इस से परिचय बढ़ेगा. पढ़ीलिखी हो, सुंदर हो, थोड़ा स्मार्ट बनो.’’

दूसरे दिन दोनों बहनें बैंक जा कर सारे जेवर बैंक लाकर में रख आईं और चाबी अपने पास रख ली.

निधि कई बार मायके हो आई थी. कभी सोचा था कि दोनों छोटी बहनों को वह अपने पास रख कर पढ़ाएगी पर वह सब जैसे स्वप्न हो गया. हां, रुपए ले जा कर वह सब को कपड़े आदि अवश्य खरीद देती. हर बार जरूरत की कुछ न कुछ महंगी चीज खरीद कर रख जाती. रंगीन टेलीविजन, पंखे, छोटा सा फ्रिज आदि. इस से ज्यादा रुपए लेने की उस की हिम्मत नहीं थी. जब तक निधि मायके रहती कुछ दिन को अच्छा भोजन पूरे घर को मिल जाता, बाद में फिर वही पुराना क्रम चल पड़ता.

अभी मायके से आए निधि को केवल 15 दिन ही हुए थे कि अचानक जैसे परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. वह बीमार थी. कई दिनों से खांसी से पीडि़त थी. दोनों बहनें खापी कर अपने कमरे में बैठी टेलीविजन देख रही थीं.

तभी जोर से दरवाजे की घंटी बजी. उस ने आ कर दरवाजा खोला तो कुछ अनजाने चेहरों को देख कर चौंक गई.

‘‘आप लोग कौन हैं. साहब घर पर नहीं हैं,’’ उन्हें भीतर घुसते देख कर निधि घबरा गई, ‘‘अरे, अंदर कैसे घुस रहे हैं आप लोग?’’ वह चिल्ला कर बोली ताकि दोनों बहनें सुन लें लेकिन  टेलीविजन के तेज स्वर के कारण उस की आवाज वहां तक नहीं पहुंची. खिड़की से झांक कर दोबारा निधि चिल्ला कर बोली, ‘‘मधु, देखो ये लोग कौन हैं और घर में घुसे जा रहे हैं.’’

‘‘मैडम, हम विजिलेंस आफीसर हैं और आप के यहां छापा मारने आए हैं. यह देखिए मेरा आई कार्ड.’’

दोनों बहनें बाहर दौड़ कर आईं और चिल्ला कर बोलीं, ‘‘पापा घर पर नहीं हैं. जब वह आएं तब आप लोग आइए.’’

‘‘पापा आप के अभी नहीं आ पाएंगे, क्योंकि वह पुलिस हिरासत में हैं.’’

‘‘क्यों, क्या किया है उन्होंने?’’

‘‘शायद आप को पता नहीं कि आप के पापा रिश्वत लेते रंगेहाथों पकड़े गए हैं. अब तो बेल होने पर ही घर आ पाएंगे,’’ यह सुन कर निधि को चक्कर आ गया और वह अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘पापा से फोन कर के हम बात कर लें तब आप को अंदर घुसने देंगे,’’ यह कहते हुए मधु ने फोन लगाया तो पापा का भर्राया स्वर गूंजा, ‘‘कानून में बाधा मत डालो, मधु. लेने दो तलाशी.’’

शाम को जब वह हारेथके घर आए तो लग रहा था महीनों से बीमार हों. पैर लड़खड़ा रहे थे. उन्होंने पहले निधि को फिर मधु व विधु की ओर देखा. बरामदे में पूरी शक्ति लगा कर वह अपने भारी- भरकम शरीर को चढ़ा पाए पर संभल नहीं पाए और धड़ाम से गिर पड़े. होंठों से झाग बह चला. तीनों के मुंह से चीखें निकल गईं. डाक्टर आया तो उन्होंने तुरंत अस्पताल में भरती करने की सलाह दी. तीनों उन्हें एंबुलेंस में लाद कर अस्पताल ले गईं. डाक्टरों ने हृदयाघात बताया.

निधि सारी रात पति के सिरहाने बैठी रही. दोनों बहनें कुछ देर को घर लौटीं, क्योंकि चपरासी ने बताया था कि मांजी की हालत बहुत खराब हो गई है.

उन्हें होश आया तो वह बोले, ‘‘निधि, मुझे बहुत दुख है कि अभी अपने विवाह को केवल 10 माह ही हुए हैं और मैं इस प्रकार झूठे मामले में फंसा दिया गया. तुम यह मकान बेच कर मां को ले कर मायके चली जाना. मधु के मामा संपन्न हैं. वे उन्हें जरूर इलाहाबाद ले जाएंगे. यदि मां को ले जाना चाहें तो ले जाने देना. मैं ने कुछ रुपए कबाड़खाने के टूटे बाक्स में पुराने कागजों के नीचे दबा रखे हैं. वहां कोई न ढूंढ़ पाएगा. तुम अपने कब्जे में कर लेना. बचे रहे तो मुकदमा लड़ने के काम आएंगे.’’

निधि फूटफूट कर रो पड़ी फिर बोली, ‘‘पर वहां तो सील लग गई है. पुलिस का पहरा है,’’ निधि के मुंह से यह सुन कर उन की आंखों से ढेरों आंसू लुढ़क पड़े. फिर पता नहीं कब दवा के नशे में सोतेसोते ही उन्हें दूसरा दौरा पड़ा, 3 हिचकियां आईं और उन के प्राण निकल गए.

निधि की तो अब दुनिया ही उजड़ गई. जिस धन की इच्छा में उस ने अधेड़ विधुर को अपनाया था वह उसे मंझधार में ही छोड़ कर चला गया.

मातापिता सब आए. मधु के नाना, मामा आदि पूरा परिवार जुड़ आया. सब उस के अशुभ चरणों को कोस रहे थे. चारों ओर के व्यंग्य व लांछनों से वह घबरा गई. पुलिस ने उस के मायके तक को खंगाल डाला था.

मांजी तो जीवित लाश सी हो गई थीं. निधि की हालत देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और पूजागृह से अपनी संदूक खींच कर उसे यह कहते हुए सौंप दी, ‘‘बेटी, इस में जो कुछ है तेरा है. मैं तो अपनी बेटी के पास शेष जीवन काट लूंगी. यह लोग तुझे जीने नहीं देंगे. मकान बिकेगा तो तुझे भी हिस्सा मिलेगा. मेरे दामाद व बेटी तुझे अवश्य हिस्सा दिलवाएंगे. तू अपने नंगे गले में मेरा यह लाकेट डाल ले और ये चूडि़यां, शेष तो सब सरकारी हो गया. बेटी, 1 साल बाद जहां चाहे दूसरा विवाह कर लेना… अभी तेरी उम्र ही क्या है.’’

वह चुपचाप रोती रही. फिर उसे ध्यान आया और जहां पति ने बताया था वहां ढूंढ़ा तो 10 लाख की गड्डियां प्राप्त हुईं. तलाशी तो पहले ही हो चुकी थी इस से वह सब ले कर मांबाप के साथ मायके आ गई. बस, वह पेंशन की हकदार रह गई थी. वह भी तब तक जब तक कि वह पति की विधवा बन कर रहे.

निधि ने रुपए किसी बैंक में नहीं डाले बल्कि उन से कंप्यूटर खरीद कर बहनों के साथ अपनी कंप्यूटर क्लास खोल ली. उस ने बैंक से लोन भी लिया था, जिस से कभी पकड़ी न जाए. अच्छी पेंशन मिली वह भी केस निबटने के कई वर्ष बाद.

मैं निधि के घर तुरंत गई थी. उस का वैधव्य रूप, शिथिल काया, कांतिहीन चेहरा देख कर खूब रोई.

‘‘मीनू, देख, कैसा राजसुख भोग कर लौटी हूं. रही बात अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलने की तो वह 2 राज्यों के चलते कभी न मिल पाएगी. मैं उत्तर प्रदेश में रह नहीं सकती और मध्य प्रदेश में नौकरी मिल नहीं सकती. हर माह पेंशन के लिए मुझे लखनऊ जाना पड़ेगा. गनीमत है कि मैं बाप पर भार नहीं हूं. पति सुख नहीं केवल धन सुख भोग पाऊंगी. इसी रूप की तू सराहना करती थी पर वहां तो सब मनहूस की पदवी दे गए.

‘‘वे क्या जानें कि मैं ने आधी रात को नशे में चूर डगमगाए पति की भारीभरकम देह को कैसे संभाला है. मद में चूर, कामातुर असफल पुरुष की मर्दानगी को गरम रेत पर पड़ी मछली सी तड़प कर लोटलोट कर काटी हैं ये पूरे 10 माह की रातें. मेरा कुआंरा अनजाना तनमन जैसे लाज भरी उत्तेजना से उद्भासित हो उठता.’’

‘‘निधि, संभाल अपनेआप को. तू जानती है न कि मैं अभी इस अनुभव से सर्वथा अनजान हूं.’’

‘‘ओह, सच में मीना. मैं अपनी रौ में सब भूल गई कि तू यह सब क्या जाने. मुझे क्षमा करेगी न?’’

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‘‘कोई बात नहीं निधि, तेरी सखी हूं न, जो समझ पाई वह ठीक, नहीं समझी वह भी ठीक. तेरा मन हलका हुआ. शायद विवाह के बाद मैं तेरी ये बातें समझ पाऊंगी, तब तेरी यह व्यथा बांटूंगी.’’

‘‘तब तक ये ज्वाला भी शीतल पड़ जाएगी. मैं अपने पर अवश्य विजय पा लूंगी. अभी तो नया घाव है न जैसे आवां से तप कर बरतन निकलता है तो वह बहुत देर तक गरम रहता है.’’

‘‘अच्छा, अब चलूंगी. बहुत देर हो गई.

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