फिजूल है शादी में दिखावा

लेखक  -शाहनवाज

आप ने कभी सोचा है कि 2 लोगों को रिश्ते में बंधने का मार्केट में कितना खर्चा आता है? जाहिर सी बात है जब बात खर्च की होती है तो कौन इस से मना कर सकता है.

मुझे 2 साल पहले मेरे दोस्त ने अपने चाचा की बेटी की शादी में इनवाइट किया. यह शादी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में होनी थी. मैं शादी से 1 दिन पहले वहां पहुंच गया. घर को देख कर महसूस हो गया था कि उन की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर उस के चाचा खेती करते थे और औफ सीजन में शहर में जा कर मजदूरी करते थे.

मेरे दोस्त ने मु झे बताया कि लड़के वालों की तरफ से किसी तरह की कोई दहेज की डिमांड नहीं है. सिर्फ उन्होंने कहा है कि  बरातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए.

जब वर और वधू को 7 फेरों के लिए खड़ा किया जा रहा था तब मेरी नजर पंडाल के बाहर एक ट्रक पर पड़ी जिस में घर का सामान, जैसे कि टीवी, फ्रिज, पलंग, अलमारी इत्यादि लोड किए जा रहे थे. अचानक मु झे मेरे दोस्त की बात याद आई पर उस समय मैं ने उस से इस विषय पर कुछ भी पूछना जरूरी नहीं सम झा.

जब शादीब्याह निबट गया और हम वापस दिल्ली के लिए रवाना हो लिए तो बस में सफर करते समय मैं ने उस से पूछ ही लिया कि वह सामान क्यों लोड किया जा रहा था जब कि तुम ने बताया कि लड़के वालों की तरफ से दहेज की कोई डिमांड ही नहीं थी?

उस ने जवाब दिया कि वह सारा सामान उस के चाचा ने अपनी तरफ से तोहफे के तौर पर दिया, ताकि कल को अगर कुछ भी होता है तो कोई उन की बेटी को ताना न मार सके. सिर्फ लड़के वालों के घर का डर ही नहीं, बल्कि उन के खुद के ही परिवार के लोग उन को ताना न मारें.

अंत में उस ने बताया कि परिवार में बाकी शादियों में भी इसी तरह से घर का सामान देना पड़ा था और उस के चाचा यह नहीं चाहते थे कि उन के खुद के परिवार के लोग उन की बेटी की शादी के लिए कानाफूसी करें, बातें बनाएं और उन्हें ताने मारें. आखिर वे खुद भी तो अपने परिवार में अपना रुतबा बनाए रखने के लिए ये सब खुल कर खर्चा कर रहे थे.

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कुछ ऐसा ही हम ने हिंदी सिनेमा की कई फिल्मों में भी होते हुए देखा है जिस में लड़की के पिता पूरी जिंदगी पाईपाई जोड़ कर बेटी की शादी के समय उन पैसों को खर्च करता है. यह हो सकता है कि कई लोगों का ऐसी ही शादी करने का उन का सपना हो, परंतु जो व्यक्ति इस समारोह के लिए खर्च करता है, उसे ही पता होता है कि किस प्रकार से उस ने अपने बच्चों की शादी करवाई है.

कुछ ऐसा होता है सामाजिक दबाव

ऐसा आप ने भी अपने जीवन में कभी न कभी किसी शादी में देखा होगा. यह तो मात्र एक तरह का दबाव था, जो कि पिता पर पड़ता है. इस लिस्ट में और भी कई प्रकार के सामाजिक दबाव आते हैं, हम हमेशा देखते तो हैं, लेकिन देख कर भी इग्नोर करते हैं.

मैं जहां रहता हूं वहीं पड़ोस में ही हाल में हमारे पड़ोसी रामदासजी ने अपने बेटे रवि की शादी करवाई. कोरोना के कारण एक तो वैसे ही सभी की जेबें खाली पड़ी थीं और ऐसे समय में शादी पर होने वाला खर्चा भी मामूली नहीं बल्कि मोटा होता है.

यों तो रामदासजी का दिल्ली में अपना मकान है, जिस कारण उन्हें लौकडाउन के इन कठिन दिनों में किसी किराएदार की तरह कमरे का भाड़ा नहीं देना पड़ा. लेकिन जब से कोरोना शुरू हुआ और लौकडाउन लगाया गया तो ज्यादातर लोगों की तरह उन का काम भी छूट गया.

कहीं इज्जत न खराब हो

इन्हीं दिनों रवि को पड़ोस में कुछ महल्ले छोड़ कर एक युवती से प्रेम हो गया और रवि अपने पिता से उस युवती से शादी करने की जिद्द करने लगा. रामदासजी ने अपने बेटे को बहुत सम झाया कि घर की माली हालत अभी सही नहीं हैं जब सबकुछ नौर्मल हो जाएगा तो उस की शादी करवा देंगे. लेकिन रवि नहीं माना और अंत में रामदासजी को अपने बेटे की शादी के लिए मानना पड़ा. उन्होंने भी सोचा कि कोरोना के समय ज्यादा लोगों को इन्विटेशन नहीं देंगे और लड़की वालों से भी किसी तरह की कोई डिमांड नहीं करेंगे.

मगर युवा तो युवा होते हैं, थोड़ाबहुत करतेकरते रवि के दोस्त, रिश्तेदार और कुछ जानपहचान वालों को मिला कर 50 लोगों के आसपास बरातियों का कैलकुलेशन किया गया. शादी हो जाने के बाद पता चला कि रवि की उस के ससुराल वालों की तरफ से एक बाइक और घर का थोड़ाबहुत सामान मिला है.

शादी के 3 दिन बाद रवि अपने पिता से लड़की वालों को और अपने दोस्तों को अपने घर छोटामोटा रिसैप्शन देने की मांग करने लगा. कहा कि अगर हम ऐसा नहीं करते तो लड़की वालों के परिवार के बीच क्या इज्जत रह जाएगी. अत: रामदासजी को उस की बात माननी पड़ी.

रामदासजी और रवि के इस किस्से से साफ है कि किस प्रकार सिर्फ सामाजिक दबाव ही नहीं बल्कि एक पिता पर अपने बेटे का या फिर कई जगह अपनी बेटी का दबाव भी रहता है. अब इस छोटी सी शादी में होने वाले खर्चे के बारे में आप खुद सोच सकते हैं. एक तो जेब में पैसे नहीं उस के बावजूद लोगों को ऐसे समारोह में सिर्फ सामाजिक दबाव के कारण खर्चा करना पड़ता है ताकि उन के सम्मान का मजाक न बनाया जा सके.

लोग क्या कहेंगे

अब कोई यह कह सकता है कि क्या लोग शादी करना छोड़ दें या फिर अपने रिश्तेदारों को न बुलाए? यहां पर लोगों के सामूहिक मेलमिलाप पर रोक लगाने की बात नहीं हो रही और न ही किसी को शादी न करने की सलाह दी जा रही है, बल्कि इस विषय का सारसंग्रह बेहद सिंपल है. वह बस इतना है कि लोग शादियों में खर्चा करने से पहले समाज के बाकी लोगों के बारे में सोचते हैं.

लोगों के दिमाग में उन की आर्थिक स्थिति, अपने बच्चों की खुशी से ज्यादा बढ़ कर यह सोच हावी होती है कि अगर ऐसा नहीं किया तो लोग क्या कहेंगे.

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आजकल शादियों में होने वाला खर्चा समाज की चलती इकौनोमी के लिए बेहद जरूरी है. इस से कई तरह के व्यापार जुडे़ हैं, उदाहरण के लिए कैटरर (हलवाई) से खाना बनवाना, बैंक्वेट हौल बुक करवाना या फिर सामुदायी भवन बुक करना, वेटर का काम, शादी पढ़ाने के लिए पंडित, मौलवी या पादरी की जरूरत इत्यादि. इसीलिए शादीब्याह होते रहें यह इन लोगों के लिए बेहद आवश्यक है.

प्रवीण के पिता ने उस की शादी किसी बड़े बैंक्वेट हौल में या किसी बड़े पार्क को बुक कर के नहीं की, बल्कि इलाके के एसडीएम औफिस में जा कर मैरिज रजिस्ट्रेशन पर कानूनी तरीके से करवाई. रजिस्ट्रेशन हो जाने के 2 या 3 दिनों बाद रिसैप्शन के लिए उन्होंने सरकारी समुदाय भवन बुक किया जिस में सब को मिला कर 150 लोगों को इनवाइट किया. अगर वे परंपरागत तरीके से अपने बेटे की शादी करवाते तो शायद मौजूदा खर्चे का 3 गुना अधिक खर्च होता. उन्होंने बाकी बचे हुए पैसों की प्रवीण के नाम एफडी करवा दी, जोकि उस के बुरे वक्त पर काम आ सकेगी. सिर्फ यही नहीं लड़की वालों ने भी वधू के नाम पर बैंक में एफडी करवा दी जिस से जरूरत के वक्त उसे तुड़वाया जा सके.

कितनी सम झदारी से प्रवीण के पिताजी ने उस की शादी करवाई आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं. आज समाज की जरूरत भी यही है कि इस बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखें. समाज की इस बो झ वाली मानसिकता को तोड़ने के लिए जरूरी है कि हम सब एक कदम बढ़ा कर परंपरागत तरीके से नहीं बल्कि कानूनी तरीके से मैरिज रजिस्टे्रशन करवाएं. रिश्तेदारों से मेलमिलाप खत्म करने के लिए नहीं, बल्कि उसे एक नया स्वरूप देने की जरूरत है. परंपरागत तरीकों से शादियों से सिर्फ दिखावा और अवैज्ञानिक सोच को ही बढ़ावा मिलता है. उस पर बाद में रिश्तेदारों द्वारा और कई कमियां निकाली जाती हैं.

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