बंधन सिंदूर का- आखिर क्यों?

 क्या शादी की वैधता का आधार मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र हाथों में चूड़ा है ? विवाह के बाद अपने परिवार और पति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का वहन करना क्या काफी नहीं ? अब से कुछ साल पहले मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर ब्रांच शाखा ने एक केस में फैसला सुनाया था कि शादी की वैधता के लिए सिंदूर और मंगलसूत्र जरूरी नहीं. यह किसी शादी की वैधता का आधार नहीं हो सकता.

 फिल्मों का असर

सुनने में कितना अजीब सा लगता है. अक्सर फिल्मी  पर्दे और टीवी सीरियल में देखे जा सकते हैं यह हिंदी रीति-रिवाज .जो सिर्फ इन बातों के पीछे भ्रांति फैलाते हैं.

कितनी वाहियात बात है कि ये फिल्मी पर्दे पर दिखा कर बाकायदा हिन्दू विवाह रीति के बारे में भ्रांति फैलाई जा रही है कि, ‘ऐसा नहीं किया तो यह हो जाएगा; वैसा नहीं किया तो वह हो जाएगा’. विवाह संस्कार बेहद क्लिष्ट है. जहां वर और वधु पक्ष को कुछ अनिवार्य संस्कार करने होते हैं और हिन्दूओ में यह प्रदेश तथा समाज अनुसार अलग होते हैं . कहीं मांग में सिंदूर भरने का तो ,कहीं मंगलसूत्र को ज्यादा मान्यता दी जाती है.

 रस्म रिवाज

सबसे जरूरी बात यह है कि रिवाज अपनी जगह है जो सिर्फ धर्म के महज प्रतीक हैं. इन रिवाजो को मानने ना मानने से यह कैसे तय कर लिया जाए कि आप पति -पत्नी है या नहीं.

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 मेरी सोच

मेरा मानना है कि आप भले ही कितनी लंबी मांग भरे ,कितना ही भारी मंगलसूत्र पहनें , लेकिन अगर आप मन से राजी नहीं तो यह रिवाज रस्मों के बाद भी आपकी जिंदगी नरक बनना तय है.

ये तो वही बात हुई न कि सफर के दौरान अक्सर आपने देखा होगा कि  सीट रोकने के चक्कर में वहां पर कोई तौलिया, रुमाल या वस्तु रख दी जाती है. और पूछने पर बड़े आराम से कह दिया जाता है ,”यह सीट हमारी है .निशानी के तौर पर हमारा सामान रखा है”! उसी प्रकार मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र भी तो अधिकार जमाने का एक तरीका ही हुआ.

 हाल की घटना

अभी हाल की ही एक घटना है जी हां मेरे लिए तो यह  एक घटना ही है , कि उस महिला के साथ घटित हुई है. क्योंकि गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान  पति की तलाक की अर्जी मंजूर कर ली. और अपने फैसले में कहा  (जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया की पीठ) ,” चूड़ी और सिंदूर हिंदू दुल्हन का शृंगार माना जाता है. अगर वह इसे धारण करने से मना करती है तो इसका मतलब यह है कि उसे शादी स्वीकार नहीं है और उसकी अनिच्छा से विवाह कर दिया गया.यह उस महिला का इनकार करने का संकेत माना जाएगा. ऐसी परिस्थितियों में पति को पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन में बने रहने के लिए मजबूर करना उत्पीड़न माना जा सकता है”.

 पति का कसूर नहीं

जबकि दूसरी ओर यही मुकदमा पहले फैमिली कोर्ट में गया था जहां फैमिली कोर्ट ने पति की अर्जी को ठुकरा दिया था . लेकिन हाईकोर्ट ने पत्नी के खिलाफ दायर की गई याचिका का हवाला देते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को पलट दिया. साथ ही 2 सदस्य पीठ ने यह भी कहा कि ,”महिला के खिलाफ कोई सा भी उत्पीड़न नज़र नहीं आता.

 न मानूं कोई रिवाज़

मैं नहीं मानती ऐसे किसी रिवाज़ को एक शादीशुदा औरत की पहचान सिंदूर और मंगलसूत्र होता है तो पुरुषों के लिए पहचान क्या है कि वह शादीशुदा है?

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पुरुष प्रधान समाज में पुरुष से कभी कोई निशानी /सबूत मांगने के लिए कोई सवाल नहीं किया जाता.  सिर्फ एक औरत से अपेक्षा की जाती है कि वह सिंदूर लगाए और मंगलसूत्र पहने. ताकि पता चले कि वह शादीशुदा है. यह उसकी अपनी इच्छा भी तो हो सकती है .  वह इन सबको खुशी खुशी पहनना चाहती है तो पहने नहीं पहनना चाहती तो ना पहने.

आपबीती

शादी के बाद कुछ समय तक मैं बालों में ना के बराबर झांकता हुआ एक्लाल रंग का नन्हा सा चंदा लगा लेती थी.वह भी सिर्फ इसलिए कि कोई धोखे से सवाल कर बैठे कि, मैंने सिंदूर नहीं लगाया तो मैं उसको दिखा दूं. लेकिन मेरे लिए उस सिंदूर का कोई मोल नहीं था .मैं यह भावना मन से मानती हूं .धीरे-धीरे मैंने यह चोरी वाला रास्ता भी छोड़ दिया .मैं नहीं मानती किसी सिंदूर ,मंगलसूत्र या चूड़े के बंधन को. यह मात्र एक हथियार है, इस पुरुष प्रधान समाज का ,औरत पर अपना अधिकार जताने का.

मेरी मर्जी

यह मेरी इच्छा है चाहे मैं मंगलसूत्र पहनूं या ना पहनूं . इसके लिए मुझे किसी अदालत किसी व्यक्ति विशेष की आज्ञा की जरूरत नहीं. यदि सच में महिला वर्ग अपने वजूद की तलाश चाहता है तो,  ऐसे किसी भी बंधन को मानने से परहेज करना होगा तभी आप सही मायनों में अपने वजूद को तलाश कर सकती हैं.

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