4 दिन पहले तक अभिषेक की जिंदगी में सब कुछ बहुत खूबसूरत था. एक प्यारी सी बीवी थी जो हर वक्त उस का ख्याल रखती थी. दो प्यारेप्यारे बच्चे थे जिन की खिलखिलाहट से सारा घर गुंजायमान रहता था. पर 4 दिन के अंदर जिंदगी ने ऐसा खेल खेला कि उस के घर में सब तरफ सूनापन और उदासी पसर गई. उस की पत्नी को अचानक कोविड हुआ और दोतीन दिनों के अंदर ही वह सब को छोड़ कर चली गई.
वह खुद भी कोरोना पॉजिटिव था. कोरोना से पत्नी की मौत की खबर पा कर ज्यादा लोग तो आ ही नहीं सके. वैसे भी कोरोना की वजह से हालात बहुत खराब थे. केवल उस की मां, सासससुर और बहन समेत कुछ करीबी रिश्तेदार मातम मनाने के लिए आए. बाकी सब तो शाम में ही लौट गए मगर उस की मां और बहन रुक गए. अभिषेक ने खुद को आइसोलेट कर लिया. मां बच्चों को संभालने लगी. बहन को भी 4 -5 दिनों में अपने घर जाना पड़ा.
इधर एकडेढ़ महीने रुक कर मां को भी पिताजी के पास लौटना पड़ा. अभिषेक के पिताजी गांव में व्यवसाय करते थे और ज्यादा दिन अकेले नहीं रह सकते थे. मां के जाने के बाद बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह अभिषेक पर आ गई. वैसे
गनीमत थी कि फिलहाल उस का वर्क फ्रॉम होम चल रहा था. इसलिए उसे बच्चों को अकेले घर में छोड़ कर ऑफिस जाने की टेंशन नहीं थी. मगर ऑफिस का काम तो पूरा करना ही होता था. उस पर छोटे बच्चों को पूरे दिन संभालना भी आसान नहीं होता. कोरोना की वजह से उस ने मेड को भी छुट्टी दी हुई थी.
जाते वक्त मां ने समझाया था कि वह दूसरी शादी कर ले. मगर अभिषेक दूसरी शादी के पक्ष में नहीं था. वह अपने बच्चों की जिंदगी में सौतेली मां को ले कर आना नहीं चाहता था. अभिषेक ने तय किया कि वह बच्चों को अपने बल पर पालेगा.
इस के लिए उस ने कुछ तैयारियां शुरू की. सब से पहले एक टाइम टेबल बनाया. किन चीजों की कब जरूरत पड़ेगी या बाजार से क्या ला कर रखना है जैसी चीजों की लिस्ट बनाई. बच्चों से अपनी मजबूरी डिस्कस की और समझाया कि उन्हें भी पापा के साथ कॉर्पोरेट करना पड़ेगा. यूट्यूब देख कर खाना बनाना सीखा. फिर क्या था कुछ समय में ही अभिषेक की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ गई. वह अब अपने बच्चों का पिता होने के साथ साथ प्यारदुलार करने वाली मां भी था, बैठा कर पढ़ाने वाली टीचर भी था, घर का कमाऊ सदस्य भी था और पूरा घर संभालने वाली हाउसवाइफ की भूमिका भी निभा रहा था.
हाल ही में की गई एक स्टडी के मुताबिक़ सिंगल पिता की मदद हर कोई करना चाहता है. यहां तक कि दफ्तर में ऐसे पुरुषों को दूसरों के मुकाबले 21% ज्यादा बोनस मिलता है. अकेले पिताओं के साथ शानदार व्यवहार को फादरहुड बोनस कहा गया. ऐसा भी माना जाता है कि सिंगल पिताओं के पास नौकरी के मौके ज्यादा आते हैं. मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि अकेले घरपरिवार और बच्चों के साथ ऑफिस की जिम्मेदारियां उठाना एक पुरुष के लिए बिलकुल भी सहज नहीं.
यह सच है कि आज के समय में पुरुष महिलाओं वाले काम करने में पहले की तरह हिचकिचाते नहीं. जरुरत पड़ने पर बच्चों की नैप्पी बदलने से ले कर उन के लिए टिफ़िन तैयार करने का काम भी बखूबी कर लेते हैं. ऐसा वे पत्नी की
तबियत खराब होने या किसी तरह की परेशानी आने पर उस की मदद के लिए करते हैं. पत्नी के निर्देशों के साथ कभीकभार बच्चे को संभाल लेना आसान है. मगर जब बात आती है एक सिंगल फादर के रूप में बच्चों की पूरी परवरिश करने की तो यह डगर आसान नहीं होती.
दरअसल माताओं को हमेशा से ही बच्चों के ज्यादा करीब समझा जाता है. पत्नी की मौत या तलाक लिए जाने के बाद पुरुष को मॉम्स वाले सारे काम करने होते हैं. बहुत सारे ऐसे काम जो महिलाएं सालों से करती आ रही हैं उन्हें जब
पुरुष करते हैं तो दिक्कत आती ही है. ऊपर से पुरुषों वाले काम करने होते हैं वह अलग. ऐसे में वे इस जिम्मेदारी को कठिनाई से संभालते हैं. बच्चों को मां और पिता दोनों का प्यार देने का प्रयास करते हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी इच्छा से शादी नहीं करते और सिंगल फादर बनते हैं. वैसे देखा जाए तो शादी न करने वालों के देखे पत्नी के मर जाने या कहीं चले जाने के बाद बच्चों को संभालना पड़े तो यह ज्यादा कठिन होता है क्यों कि बच्चों को मां की आदत लग चुकी होती है.
सिंगल फादर कैसे बनें परफेक्ट पापा
सब से जरुरी है अनुशासन
पुरुषों को कठोर ह्रदय का माना जाता है. किसी भी परिवार में पिता सख्ती के लिए और मां प्यार और ममता लुटाने के लिए जानी जाती है. लेकिन जब घर में पुरुष को ही महिला का भी काम करना पड़े तो पुरुष यानी सिंगल फादर को
अपने स्वभाव में भी बदलाव लाना पड़ता है. वह बच्चों को शांति और प्यार से संभालना चाहता है.
सख्ती दिखाने पर बच्चे कहीं दूर न हो जाएं यह सोच कर अक्सर वह बच्चों को कई मामलों में छूट दे देता है और अनुशासन की बात भूल जाता है. इस का नतीजा कई दफा सही नहीं निकलता और बच्चे हाथ से निकलने लगते हैं. इसलिए जरुरी है बैलेंस बना कर रखना. बच्चों को कुछ नियम सिखाएं और उन का पालन भी करवाएं. नियम थोड़े फ्लैक्सिबल हों मगर बच्चों में यह डर बिठाना भी जरुरी है कि अनुशासन तोड़ने पर उन्हें सजा मिल सकती है. जैसे आप बच्चों को टिफिन खत्म कर के आने का नियम बनाइए लेकिन रोज पौष्टिक खाने के बजाए कभीकभी उन की पसंद का चटपटा या जंकफूड भी बना दें ताकि ऐसा न हो कि घर के खाने से बोर हो कर बच्चा बाहर की चीज़ें खाना शुरू कर दे और आप के डर से टिफिन का खाना डस्टबिन में फेंकना शुरू कर दे.
मल्टीटास्कर बनें
आप को भी महिलाओं की तरह मल्टीटास्कर बनना होगा. घर और ऑफिस के कामों में बैलेंस बना कर रखना होगा. भले ही आप बिलकुल परफैक्टली हर काम न निबटा सकें मगर इतना तो कर ही सकते हैं कि सब सामान्य रूप से चलता जाए. आप चाहें तो अपने बॉस से भी इस सन्दर्भ में बात कर सकते हैं. उन्हें दिक्कत बताइए और बात कर के अपने लिए टाइम फ्लेक्सिबल करा सकते हैं.
घर के काम जो रात में निबटाए जा सकते हैं उन्हें कर के रखिए. कामकाजी महिलाएं भी ऐसा ही करती हैं. आप सुबह के टिफिन की तैयारी रात में ही कर के रखिए. इसी तरह बच्चों की स्कूल ड्रेस रात में ही एक जगह पूरी तरह से
तैयार कर के और प्रेस कर के रखिए. यानी आप को प्रीप्लानिंग पर ध्यान देना होगा.
टाइम मैनेजमेंट
सिंगल फादर को टाइम मैनेजमेंट का ख्याल रखना पड़ता है. आप के पास समय की कमी काफी कमी होगी क्योंकि एक साथ बहुत सी भूमिकाएं अदा करनी है. जरुरी है कि हर काम का समय निश्चित कीजिए. ऐसा न हो कि केवल काम ही करते रह जाएं, बीच बीच में रिलैक्स के लिए ब्रेक भी लीजिए. सुबह जल्दी उठा जाए तो हर काम करीने से निबट जाता है. ध्यान रखें औरतें घर में सब से पहले इसी वजह से उठती हैं ताकि बाद में हड़बड़ी न करनी पड़े.
कम्युनिकेशन गैप न आने दें
ज्यादातर घरों में बच्चे पिता से डरते हैं और कम बातें करते हैं. अपनी छोटी बड़ी हर बात वे मां से ही शेयर करते हैं. मगर सिंगल फादर के केस में पिता को ही मां की भूमिका भी निभानी होती है. ध्यान रखें कि अब आप पहले
की तरह सिर्फ जरूरत की बात करने की स्थिति में बिल्कुल नहीं हैं. आप को बच्चों के साथ लगातार संवाद बना कर रखना होगा. ऐसे में जरूरी है कि आप भी उन की मां की तरह गुड लिसनर बनें. प्यार और धैर्य के साथ उन की बातें
सुनें और फिर जवाब भी उतने ही खूबसूरत और कंविंसिंग अंदाज में दें ताकि बच्चे हर बात आप से शेयर करना शुरू कर दें. आप को पिता की जगह उन का दोस्त बनना होगा. फिर देखिएगा कैसे आप का बच्चों के साथ रिश्ता परफेक्ट
हो जाएगा.
मदद लेने से हिचकिचाएं नहीं
किसी से मदद लेना शर्म की बात नहीं. आप को तो गर्व होना चाहिए कि आप 2 लोगों की भूमिका अदा कर रहे हैं. ऐसे में यदि कहीं कोई समस्या आती है तो फोन कर के किसी रिश्तेदार से, आस पड़ोस वालों या दोस्तों से भी सही
जानकारी ले सकते हैं.
बच्चों को प्यार से समझाएं
एक पुरुष के लिए अकेले छोटे बच्चों को संभालना आसान नहीं होता. मगर यदि वह धैर्य रखें और बच्चों को अपने छोटेछोटे काम खुद करने की ट्रेनिंग दे तो धीरेधीरे सब मैनेज हो सकता है. बच्चों के साथ बहुत सब्र रखने की जरूरत
पड़ती है. उन्हें जोर जबरदस्ती या डांट फटकार कर कुछ नहीं सिखाया जा सकता. इस के विपरीत यदि उन्हें प्यार से, खेलखेल में चीज़ें सिखाई जाएं तो वे जल्दी अडॉप्ट कर लेते हैं.
कभी आपा न खोएं
आप यदि अकेले बच्चों और घर के साथ ऑफिस का काम नहीं संभाल पा रहे तो हेल्प के लिए मेड रख लें. यदि आप बच्चों की शरारतों से परेशान है या इस बात से दुखी हैं कि वे आप की कोई हेल्प नहीं करते तो भी आपा खो कर
चीखनेचिल्लाने के बजाय प्यार से उन्हें परिस्थितियों से वाकिफ कराएं और समझाएं कि आप उन का सहयोग क्यों और किस तरह चाहते हैं.
बच्चों से भी घर के कामों में मदद लें
बच्चों को पढ़ाई के साथ छोटेमोटे काम करते रहने की आदत डालें. आप उन्हें सब्जी काटने, घर की डस्टिंग करने, पौधों में पानी डालने, कपड़े तह कर के रखने, अपने कपड़े प्रैस करने, अपने जूते या स्कूल बैग साफ़ करने, चाय कॉफी
बनाने जैसे काम करने को कह सकते हैं. इन्हें वे चाव से करेंगे. अगर कोई काम उन्हें नहीं आता तो आप उन को सिखा भी सकते हैं.
बच्चों का टाइम टेबल बनाएं
बच्चों में कम उम्र से ही एक अनुशासन के साथ चलने की आदत डालें. उन के लिए टाइम टेबल बनाएं और उसी अनुसार उन की दिनचर्या फिक्स करें. निचित समय पर उन्हें पढ़ाने बैठाएं. उन की कॉपियां चेक करें. जो
असाइनमेंट्स मिले हैं उन पर चर्चा करें. अगर उन्हें कहीं दिक्कत आ रही है तो वह हिस्सा समझाएं ताकि पढ़ाई में उन की रूचि बनी रहे. बीचबीच में उन्हें खेलने या रिलैक्स होने का मौका भी दें. कभीकभी खुद भी बच्चों के साथ खेलें ताकि आप का बांड अच्छा बन सके.
अपना भी रखिए ख्याल
कहीं ऐसा न हो कि बच्चों का ख्याल रखतेरखते आप अपने प्रति लापरवाह हो जाएं और अपनी सेहत बिगाड़ लें. यह बिलकुल भी मत भूलिए कि आप का ख्याल रखा जाना भी उतना ही जरूरी है.
याद रखिए सब कुछ मैनेज करते हुए अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत का ख्याल आप को खुद ही रखना होगा. अगर आप ही ठीक नहीं होंगे तो उन का ख्याल कौन रखेगा? अच्छे पिता बने रहने के लिए आप को खुद को फिट भी रखना होगा. अपने पूरे दिन में काम की भागदौड़ के बीच आप को एक्सरसाइज और फिटनेस के लिए भी एक समय निश्चित करना होगा. अपने खाने में पौष्टिकता और फिटनेस के लिए आवश्यक चीजें शामिल करनी होंगी.
बॉलीवुड के सिंगल फादर्स
बॉलीवुड में भी कुछ ऐसे पिता भी है जो बच्चों को मां के न होते हुए बखूबी पाल रहे है और कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी इच्छा से शादी नहीं की और सिंगल फादर बने.
राहुल देव
फिल्म एक्टर राहुल देव की पत्नी रीना ने कैंसर के कारण 2009 में दम तोड़ दिया. इस के बाद राहुल की जिंदगी में अकेलापन घर करने लगा. राहुल ने अपने बेटे के लिए दूसरी शादी नहीं की. राहुल का सिद्धांत नाम का एक बेटा है. राहुल ने सिंगल रहने का फैसला लिया और बच्चे के साथ जीवन जीने लगे. उस वक्त सिद्धांत 10 साल का था और अब 21 साल का हो चुका है.
राहुल बोस
राहुल बोस काफी चर्चित एक्टर रहे हैं और कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं. समाज सेवा करने के लिए भी राहुल को लोगों के बीच जाना जाता है. राहुल बोस ने भी शादी नहीं की है बल्कि 6 बच्चों को गोद लिया है. राहुल
ने अंडमान और निकोबार से 6 बच्चों को गोद लिया और उन्हें अकेले पाल रहे हैं. इस के साथ ही वे प्रोफेशनल लाइफ को भी हैंडल कर रहे हैं.
तुषार कपूर
जानेमाने अभिनेता जितेंद्र के बेटे तुषार कपूर भी बगैर शादी के पिता बने हैं. इन की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. तुषार कपूर सरोगेसी के जरिए बेटे के पिता बने है. उन के बेटे का नाम लक्ष्य है जिसे वे बहुत प्यार से अकेले पाल रहे हैं.
करण जौहर
सिंगल फादर की लिस्ट में करण जौहर का नाम भी चर्चित है. करण जौहर बॉलीवुड का काफी जाना माना नाम है. एक सफल फिल्म मेकर होने के साथ ही वह एक बेहतर पिता भी हैं. करण जौहर अपनी ख़ुशी से बिना शादी के दो जुड़वां बच्चों के पिता बने हैं. बेटे का नाम यश है और बेटी का नाम रूही है. अपने दोनों बच्चों के साथ ये जम कर मस्ती करते दिखते हैं. तुषार कपूर की तरह ये भी सरोगेसी के जरिए पिता बने हैं.
कमल हासन
कमल हासन का पत्नी सारिका से पहले ही तलाक हो गया था और श्रुति हासन और अक्षरा हासन अपने पापा के साथ बड़ी हुईं.
संजय दत्त
संजय दत्त की पहली पत्नी ऋचा शर्मा की कैंसर से मृत्यु हो गई थी और वो अपनी बेटी त्रिशाला के सिंगल पैरेंट बने. हालांकि कुछ सालों बाद त्रिशाला की कस्टडी उनकी मौसी को मिल गई लेकिन संजय दत्त अपनी तमाम परेशानियों के बाद भी अपनी जिम्मेदारियों को नहीं भूले.