समाज की रूढि़यों को
जिस किसी को भी दिल्ली के आईटीओ इलाके का थोड़ा सा भी इतिहास पता हो, तो उसे यह भी जरूर याद होगा कि वहां की इमारतों के एक समूह में हिंदी, इंग्लिश, पंजाबी, उर्दू के कई नामचीन अखबार छपते थे. इस वजह से वहां पत्रकारों, संपादकों, फोटोग्राफरों सहित तमाम बुद्धिजीवियों का जमावड़ा लगा रहता था.
फिर समय का ऐसा फेर आया कि अखबार वाले वहां से दूसरी जगह शिफ्ट हो गए, पर उन्हीं इमारतों में से एक इमारत में उडुपी नाम का दक्षिण भारतीय व्यंजनों का एक कैफे आज भी मौजूद है.
हाल ही में उसी कैफे में अनीता वेदांत नाम की एक महिला से मुलाकात हुई जो दिखने में दूब जैसी नाजुक थीं, पर जब उन्होंने अपने ‘सिंगल मदर’ होने और 8 साल के बेटे वेदांत को अकेले पालने की दास्तान सुनाई तो उन में मुझे शमशीर की ऐसी धार दिखाई दी, जो समाज की रूढि़यों पर वार करने में जरा भी नहीं झिझकती है.
अनीता वेदांत का यह सफरनामा जानने से पहले इस ‘सिंगल मदर’ शब्द को जरा खंगाल लेते हैं, जो पिछले कुछ सालों में भारतीय शहरों में तेजी से गूंजने लगा है. ‘सिंगल मदर’ को आसान हिंदी में ‘एकल मां’ कहते हैं. इस का मतलब ऐसी मां से है जो अकेली अपने बच्चों का लालनपालन करती है, पर पति के जिंदा रहते हुए. वह तलाकशुदा हो सकती है या नहीं भी. कभीकभी तो शादीशुदा भी नहीं.
एक मिसाल हैं
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नीना गुप्ता ‘सिंगल मदर’ होने की शानदार मिसाल हैं. अपनी जवानी में वे वैस्टइंडीज के दिग्गज क्रिकेट खिलाड़ी विवियन रिचर्ड्स के प्यार में थीं, बिना शादी किए बेटी को पैदा किया और पालापोसा भी अकेले ही. आज उन की बेटी मसाबा गुप्ता देश की जानीमानी फैशन डिजाइनर हैं.
नीना गुप्ता देश की एक नामचीन कलाकार हैं, लेकिन हर ‘सिंगल मदर’ पैसे और रुतबे के लिहाज से मजबूत हो, ऐसा जरूरी नहीं है. संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 4.5 फीसदी घरों को ‘सिंगल मदर’ चला रही हैं, जिन की संख्या करीब 1.3 करोड़ है. रिपोर्ट के मुताबिक अनुमानित ऐसी ही 3.2 करोड़ महिलाएं संयुक्त परिवारों में भी रह रही हैं.
अब अनीता वेदांत पर फोकस करते हैं, जो नीना गुप्ता जितनी मशहूर तो नहीं हैं, पर हिम्मत में उन्हें पूरी टक्कर देंगी. चूंकि उडुपी कैफे में उस दिन अनीता वेदांत का 8 साल का बेटा वेदांत भी हमारे साथ था, तो उसे बिजी रखने के लिए उन्होंने फोन पर बच्चों के गाने लगा कर हैंड्स फ्री वेदांत के कान में लगा दिए थे. इस की एक वजह यह भी थी कि वे नहीं चाहती थीं कि वेदांत हमारी बातचीत को सुने, फिर कई तरह के सवाल करे.
शिक्षा बेहद जरूरी
अनीता वेदांत का नाम अनीता शर्मा है और वे दिल्ली में पैदा हुई थीं. अपनी शुरुआती पढ़ाईलिखाई उत्तर प्रदेश से करने के बाद वे दिल्ली आ गईं और आगे की पढ़ाई के लिए वहां दाखिला ले लिया. अपनी पोस्ट ग्रैजुएशन तक की पढ़ाईलिखाई उन्होंने दिल्ली से ही पूरी की थी. वे खेलों में भी काफी अच्छी थीं. उन्हें दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकीं दिवंगत शीला दीक्षित के हाथों अवार्ड भी मिल चुका है.
शिक्षा को ले कर अनीता शर्मा का मानना है, ‘‘शिक्षा को अपने जीवन में उतारना बहुत ही जरूरी है. मैं ने भी यही किया. मेरे पिता ट्रक मैकैनिक हैं और मां गृहिणी, जिन्होंने हम 6 भाईबहनों का लालनपालन किया. चूंकि मैं शिक्षा से गहरे से जुड़ी थी तो मुझे लगता था कि किताबें हमें कभी झठ बोलना नहीं सिखाती हैं, कभी गलत चीजों को सहना नहीं सिखाती हैं, तो उन्हीं किताबों की बातों को मैं ने जीवन में भी उतारा.
‘‘फिर मेरे जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जो हर चीज में अव्वल रहने वाली अनीता के लिए टर्निंग पौइंट बन गया. 2010 में मैं ने 10वीं कक्षा पास की थी. उन्हीं दिनों हमारे एक करीबी रिश्तेदार के बेटे ने मेरे साथ 3 बार जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब मैं ने अपने घर वालों को बताया तो वे उस रिश्तेदार की तरफ खड़े दिखाई दिए खासकर मेरी मां. समाज के नाम पर मुझे चुप रहने के लिए कहा गया. मैं ने काफी कोशिश की, पर मुझ से यह सब बरदाश्त नहीं हो पाया. तब मुझे बहुत ज्यादा अकेलापन महसूस हुआ और मैं ने अपना घर छोड़ दिया.
काम की तवज्जो
अनीता बताती हैं, ‘‘इस के बाद हालांकि मेरा कोई इरादा तो नहीं था, पर समाज के चुभते सवालों से छुटकारा पाने के लिए मैं ने लव मैरिज कर ली. उस समय मैं साढ़े 19 साल की थी और अपने एक दोस्त के घर जा कर उन्हें सब बताया तो उन्होंने मेरा संबल बनते हुए मुझ से शादी कर ली, पर शादी के दूसरे ही दिन मुझे उन के स्वभाव के बारे में पता चल गया.
‘‘दरअसल, हम दोनों घर का समान लेने के लिए बाजार गए थे और किसी आदमी के कमैंट पर मैं हंस दी, जो मुझ जैसी पढ़ीलिखी महिला के लिए एक सामान्य सी बात थी, पर मेरे पति को यह सब अच्छा नहीं लगा और फिर तो हमारे अगले 3 साल बड़े बुरे गुजरे. वे मेरी हर बात पर शक करते थे. शायद उन के दिमाग में यह बात थी कि जब इस के घर वालों ने इस का साथ नहीं दिया तो गलती इसी की रही होगी.
‘‘इस के बाद भी मैं ने रिश्ता निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. घर की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए मैं ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली. चूंकि मैं इंग्लिश में अच्छी थी, तो स्कूल वालों को मेरा पढ़ाने का तरीका पसंद आया. पहले साल में ही मुझे शिक्षक सम्मान मिला. धीरेधीरे मैं अपने काम में तो आगे निकल गई, पर पारिवारिक रिश्ते कहीं पीछे छूट गए.’’
तलाक ही एक रास्ता था
अनीता बताती हैं, ‘‘जब मैं दिल्ली के लक्ष्मी नगर के एक स्कूल में पढ़ाती थी, तो वहां की प्रिंसिपल से अपने टूटते रिश्ते के बारे में बताया. उन्होंने सलाह दी कि बेबी कर लो, उस के बाद रिश्ता पटरी पर आ जाएगा. मैं ने यह भी कर के देखा और 2013 में बेटा हो गया, पर उस के बाद दिक्कतें और ज्यादा बढ़ गईं. इसी तरह 2 साल और निकले, फिर मैं ने थकहार कर पति से तलाक मांग लिया.
‘‘मेरे पति ने मुझे तलाक देने से मना कर दिया. पर मुझे यह चिंता सता रही थी कि इस माहौल में हो सकता है कि अपने पिता को देख कर मेरा बेटा भी कल को मेरी इज्जत न करे.
क्या पता वह किसी भी महिला की इज्जत न
करे. लिहाजा, मार्च, 2017 में मैं ने अपने पति का घर भी छोड़ दिया और कानपुर गर्ल्स होस्टल चली गई.
‘‘कानपुर जाने की एक वजह यह भी थी कि मैं वहां से तलाक लेने की कार्यवाही कर सकती थी क्योंकि मेरे जेठ वहीं रहते हैं. लेकिन मेरे पति ने तलाक नहीं दिया और अब पिछले 5 सालों से मैं अकेली अपने बेटे को पाल रही हूं.’’
हम सब जानते हैं कि भारतीय समाज दकियानूसी रीतिरिवाजों से भरा है और अगर कोई महिला अकेली अपने बच्चे का लालनपालन कर रही होती है तो उसे ट्रोल करने वालों की तो जैसे लौटरी लग जाती है. गाहेबगाहे उस से जरूर पूछा जाता है कि बच्चे के पिता कहां हैं, वे क्या करते हैं, उन का नाम क्या है आदि.
अनीता शर्मा का बेटा अब 8 साल का हो गया है और स्कूल जाता है. जरा सोचिए, जब वह अपने आसपास के माहौल में तैरते सवालों को अपनी जबान देता होगा कि मम्मी हम पापा के साथ क्यों नहीं रहते हैं या दादादादी के घर क्यों नहीं जाते हैं, तो एक मां कैसे उन से जूझती होगी.
यह जो हमारे समाज की महिलाओं को जज करने की आदत है न, वह किसी को भी मन से तोड़ने में देर नहीं लगाती है. एकल मांएं तो ऐसे समाज के लिए सौफ्ट टारगेट होती हैं, जिन्हें ताने सुनाना लोग अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. वे खुद तो जैसेतैसे इस तरह के सवालों को झेल जाती हैं, पर जब उन के बच्चों को पोक किया जाता है, तो वह असहनीय हो जाता है.
गलत का साथ कभी नहीं
अनीता शर्मा के साथ भी यही हुआ. उन्होंने बताया, ‘‘जब से वेदांत थोड़ा समझदार हुआ है, वह अपने पापा का नाम मुझ से पूछता है. एक टीचर होने के नाते मैं बच्चों को किताबों की लिखी बातें समझती हूं कि हमारे लिए परिवार जरूरी होता है, पर अपने बेटे को इस बारे में जवाब नहीं दे पाती हूं तो बहुत परेशान हो जाती हूं. कभीकभी उसे डांट भी देती हूं, लेकिन साथ ही मुझे सुकून भी है कि मैं ने कभी गलत का साथ नहीं दिया. मेरे परिवार में किसी लड़की के साथ ऐसा होता है, उस के सामने मैं उदाहरण हूं. लेकिन मैं यह भी नहीं चाहूंगी कि कोई बेवजह अपना घर तोड़े.
‘‘सिंगल मदर पासपड़ोस के तानों से बचने के लिए घर के दरवाजे तो बंद कर सकती है, पर काम की जगह पर रह कर काम से तो मुंह नहीं मोड़ सकती है. ऐसा मेरे साथ भी हुआ है. स्कूल में जब मेरे काम की वजह से तरक्की हुई तो उसे भी शक की निगाह से देखा जाने लगा. अजीब तरह की राजनीति होने लगी, पर मैं ने अपने काम पर ही फोकस रखा.
‘‘आज मैं अपने स्कूल में टीचर होने के साथसाथ कोऔर्डिनेटर भी हूं. मैं बच्चों की कैरियर और इमोशनल काउंसलिंग करती हूं. अगर उन्हें कोई पर्सनल प्रौब्लम होती है तो वे कभी भी मुझ से साझ कर सकते हैं.’’