#lockdown: कोरोना संकट और अकेली वर्किंग वूमन्स

कोरोना के खिलाफ यह जंग लंबी चलेगी ऐसा लग रहा है.  जो लोग परिवार के साथ घरों में हैं वे इस संकट का मुकाबला मिलकर कर रहे हैं. लेकिन वो कामकाजी महिलाएं जो इस मुश्किल समय में अकेली हैं. उनके लिए यह समय और परिस्थितियां किस तरह के अनुभव, दिक्कतें लेकर आई हैं? कोरोना महामारी के बीच वे अकेले अपने दम पर किस तरह हालात का सामना कर रही हैं? कहीं उनके हौंसले पस्त तो नहीं हुए? कोरोना से खुद को सुरक्षित रखने और इस डर पर अपनी जीत दर्ज कराने की उनकी क्या तैयारी है? आजकल दिनचर्या कैसी है? यही सब जानने के लिए हमने कुछ महिलाओं से बातचीत की. आइए जानें क्या कहा इन्होंने –

किश्वर जहां – जागरूक रहें, डरें नहीं

कस्बा गंगो, जिला साहनपुर, यूपी के सरकारी प्राथमिक स्कूल में प्रधानाचार्य किश्वर जहां के माता-पिता नहीं हैं. उन्होंने शादी नहीं की. अकेली रहती हैं और एकल जीवन जीने की आदि हैं. कोरोना की वजह से स्कूल में छुटि्टयां हैं इसलिए आजकल घर पर हैं.

जिस तेजी से कोरोना फैल रहा है किश्वर की सबसे बड़ी चिंता क्या है? “मैं कोरोना पीड़ितों की बढ़ती संख्या से चिंतित हूं. मैं पहले से समाचारों के माध्यम से दुनिया में फैली इस बीमारी के प्रकोप से परिचित थीं. यह कैसे फैलता है? इससे कैसे बचा जा सकता है. इन बातों की जानकारी मुझे थी. जब भारत में कोरोना मरीज सामने आए तो मैं सर्तक हो गईं. क्योंकि मैं जानती हूं कि यह तेजी से एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है. मैं आस-पड़ोस के लोगों को जागरूक करने लगी. कैसे सोशल डिस्टेंस मेनेटेन करना है. क्यों मास्क लगाना जरूरी है. घर से बाहर नहीं निकलना आदि. कोरोना से मैं सतर्क हूं भयभीत नहीं. क्योंकि इससे बचाने की मेरी पूरी तैयारी है. मैं सभी सावधानियों का पालन कर रही हूं.”

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किश्वर अपने आसपास के लोगों को ही अपना परिवार मानती हैं. वे बताती हैं, “जब 22 मार्च को जनता कर्फ्यू गया तभी से यह संभावना थी कि यह आगे बढ़ेगा. टीवी व अखबारों के माध्यम से मैंने बाकी देशों की स्थिति का जायजा लिया था कि किस प्रकार कोरोना रोकने के लिए कई शहरों को लॉक डाउन किया गया है. इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने लगभग महीने-डेढ़ महीने का राशन लाकर पहले ही रख लिया ताकि बार-बार बाजार न जाना पड़े. ”

किश्वर कहती हैं, ‘मुझे मौत का डर नहीं. मौत बरहक है वो आनी है. चिंता यह है कि अगर मुझे यह बीमारी होती है तो क्या चिकित्सीय सुविधाएं मिल पाएंगी या नहीं?”

इन दिनों किश्वर का रुटीन थोड़ा बदल गया है. अब वे शारीरिक व मानसिक मजबूती व शांति के लिए सुबह योग व ध्यान लगाती हैं. पौष्टिक हल्का सुपाच्य खाना खाती हैं. किताबें पढ़ती हैं. दिन के समय फोन पर दोस्तों व भाई-बहनों से बात करती हैं. अब ज्यादा टीवी नहीं देखती क्योंकि कई बार हर तरफ से महामारी के बढ़ते आंकड़े किश्वर को परेशान कर देते हैं. इसलिए बस मुख्य समाचार देखती हैं. पुराने गाने सुनती हैं. घर की साफ सफाई के साथ ही बागवानी करती हैं. यूट्ब्यू पर कुकरी शो देखती हैं और आशा करती हैं कि जब सब ठीक हो जाएगा तो वे यह सभी रेसिपी बनाकर अपने आसपास के लोगों को खिलाएंगी.

राखी रानी देब मन में डर है पर कोरोना को हराना है

जानिए कुछ  राखी रानी देब के बारे में. राखी असम की रहने वाली हैं. परिवार असम में रहता है. राखी दिल्ली में एक पीआर एजेंसी में काम करती हैं और काफी समय से अकेली रह रही हैं. राखी बताती हैं, “पहले और अब लॉकडाउन के बाद की जिंदगी में काफी अंतर आ चुका है. पहले मैं सुबह ऑफिस जाती थीं और वहां काम व ऑफिस के लोगों के बीच कब समय बीत जाता था पता नहीं चलता था. कभी दोस्तों के साथ बाहर डिनर करना. घर में रहने का मौका बहुत कम मिलता था. ऐसा लगता था जैसे रात को सोने के लिए घर आती हूं और सुबह फिर से ऑफिस और देर तक ऑफिस का काम. लेकिन अब चौबीसों घंटे घर पर हूं”

राखी बताती हैं कि ऐसे समय में लगातार खबरों को जानना भी जरूरी है दूसरी तरफ कोरोना जिस तेजी से बढ़ रहा है ऐसे में अकेले रहते हुए यह खबरें नकारात्मक विचारों को जन्म देती हैं. मैं परिवार से दूर हूं और इस समय मेरे पास खाली समय भी है कहते हैं खाली दिमाग शौतान का घर. ऐसे में कई बार नकारात्मक चीज़ें सोचने लगती हूं. कई बार यह भी सोचती हूं कि अगर मुझे कुछ हो गया तो क्या करूंगी? दिल्ली या उसके आसपास मेरा कोई रिश्तेदार भी नहीं जो मेरी मदद करे. मुझे नहीं पता उस समय मुझे खुद को कैसे मैनेज करना होगा. यही सब नेगेटिव बातें सोचकर कई बार बहुत डर जाती हूं. फिर यही डर मुझे यह भी सोचने के लिए बोलता है कि कैसे खुद को कोरोना से बचाया जाए.

जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो राखी ने क्या तैयारी की थी? “सच कहूं तो मैंने अपने लिए कुछ भी खानेपीने का सामान नहीं रखा था. वही जो थोड़ा बहुत राशन रहता है घर पर, वही मेरे पास था. जैसे ही 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा हुई. मैंने अपनी बालकनी से बाहर देखा, लोग अपनी गाड़ी और बाइक लेकर बाजार जा रहे थे. तब मुझे घबराहट हुई कि मेरे पास तो खानेपीने का सामान बहुत कम है. लेकिन उस दिन मैं बाजार नहीं गई. अगले दिन सब जगह बंद था. सबसे बड़ी मुश्किल तब आई जब लॉकडाउन के पहले ही दिन मेरी रसोई गैस खत्म हो गई. मैं सोच में पड़ गई, अब क्या करूं? आसपास गैस सप्लाई करने वाले जितने लोग थे सबको फोन किया सबका एक ही जवाब था कि दुकान बंद है. उस रात मैंने कुछ नहीं खाया. अगले दिन कई गुप्स में मैसेज किया तो एक व्यक्ति ने घर आकर गैस का सिलेंडर दिया और मैंने राहत की सांस ली. ऑनलाइन सामान की सप्लाई भी बंद हो चुकी थी. कुछ जो सामान मेरे पास था उसी से मैंने काम चलाना शुरु किया. फिर दो दिन बाद जब हमारे मार्किट की दो-तीन दुकाने खुली तो मैं राशन लेकर आई. ”

दो सप्ताह से ज्यादा समय लॉकडाउन को हो चुका है. कोरोना के केस रोज बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में राखी की मनस्थिति कैसी है? राखी बताती हैं, “अमेरिका, इटली, फ्रांस में जो हालात हैं उसे देखकर डर समा गया है कि कहीं भारत में भी स्थिति बिगड़ न जाए. मुझे कोरोना न हो जाए. कई बार बहुत नकारात्मक विचार आते हैं.”

नकारात्मक विचारों से खुद को दूर रखने के लिए क्या करती हैं? “कोरोना का डर व नकारात्मक विचार मुझसे दूर रहें इसके लिए मैं रोज अपने परिवार से फोन पर बात करती हूं. दोस्तों से बात करती हूं. चैटिंग करती हैं. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हूं ताकि ध्यान बंटा रहे और मैं पॉजिटिव सोचूं. घर के अंदर रहती हूं बाहर नहीं निकलती. यही एक मात्र उपाय है खुद को सेफ रखने का.”

राखी अपने परिवार को बहुत मिस करती हैं. वे मानती हैं अगर परिवार साथ होता तो इस समय को फेस करना आसान हो जाता. मम्मी चाहती हैं जैसे ही हवाई सेवा शुरु हो मैं तुरंत घर लौट आऊं.

राखी कोरोना से इतनी डरी हुई हैं तो उससे लड़ेगी कैसे? राखी कहती हैं, “मैं लड़ रही हूं. मैं घर से बाहर नहीं निकलती. बार-बार हाथ धोती हूं. सामान लेने जाती हूं तो मास्क पहनकर पूरी सावधानी के साथ. वापस लौटकर अपने हाथ धोना. मैं जानती हूं कि ऐसे कठिन समय में मुझे अपना ख्याल खुद रखना है.”

राखी का रुटीन पहले जैसा ही है. पहले वे छह बजे उठती थीं अब सात बजे. पहले की तरह सुबह उठकर योग करती हैं. फिर फ्रैश होकर अपने लिए नाश्ता बनाती हैं. उसके बाद ऑफिस का काम शुरु हो जाता है. इन दिनों वे वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं. एक नई चीज़ जो राखी के शेड्यूल में शामिल हुई है वो है किताबें. राखी रोज श्याम को किताबें पढ़ती हैं. परिवार व दोस्तों से फोन पर बातचीत. समाचार सुनना और 11 बजे तक सो जाना. इस उम्मीद के साथ कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.

निकिता वर्मा अपनी डाइट का ख्याल रखें

पेशे से इंजीनियर और फैशन, लाइफस्टाइल ब्लॉगर निकिता वर्मा  अपने काम के सिलसिले में परिवार से दूर नोएडा, यूपी में रहती हैं. निकिता मानती हैं, “कोरोना वायरस ने हम सभी को बहुत डरा दिया है. ऐसे समय में अकेले रहते हुए मुझे परिवार की बहुत याद आती है. एकता में शक्ति होती है जो आपको कठिन समय में भी हारने नहीं देती. अगर इस समय परिवार मेरे पास होता तो इस कठिन समय का सामना करना मेरे लिए आसान हो जाता. वैसे मैं रोज विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए परिवार के संपर्क में हूं. पहले भी अकेली रहती थी लेकिन जब से कोरोना फैला है और लॉकडाउन हुआ है इसने सभी की जिंदगी को हिलाकर रख दिया है.

“कोरोना को खत्म करने में हर नागरिक की अपनी भागीदारी है. इस समय हम नागरिक होने का फर्ज इसी तरह निभा सकते हैं कि हम घर पर रहें. बाहर न निकलें. ऐसा करके हम अपनी जान तो बचाएंगे ही साथ ही समाज के लिए भी खतरा नहीं बनेंगे. अब तो नोएड़ा के कई इलाके सील कर दिए गए हैं. इससे और घबराहट बढ़ गई है.”

निकिता ने काफी पहले ही अपनी मेड को आने से मना कर दिया था. अपने घरेलू काम वे खुद कर रही हैं. 22 तारीख के बाद से ही लंबे लॉकडाउन की आशंका थी इसलिए निकिता ने खानेपीने का जरूरी सामान पहले ही ऑनलाइन मंगा लिया था ताकि बाजार जाने की जरूरत न पड़े.

निकिता बताती हैं, “कोरोना से लड़ने के लिए मेरी तैयारी यह है कि मैं अपनी और घर की सफाई का ख्याल रखूं. बार-बार हाथ धोने के साथ ही हाइजीन का बहुत ख्याल रखती हूं. शारीरिक व मानसिक फिटनेट के लिए सुबह-श्याम योग करती हूं. एक्सरसाइज करती हूं. ऐसी डाइट ले रही हूं जो मेरे इम्यूनिटी सिस्टम को सही रखे. विटामिन सी, सूखे मेवे और हरी सब्जियां इन दिनों मेरी डाइट में ज्यादा हैं. रोज एक गिलास दूध पी रही हूं.”

लक्ष्मी सकारात्मकता व सावधानी से हारेगा कोरोना

बिहार की रहने वाली लक्ष्मी की जो  पत्रकार हैं, दिल्ली में अकेली रहती हैं. लक्ष्मी कहती हैं, भले ही इस समय देश व दुनिया में लॉकडाउन है लेकिन इस बुरे समय में भी मैं अच्छा देखने की कोशिश करती हूं. और महसूस करती हूं कि कोरोना की वजह से कई सकारात्मक परिवर्तन हम सबकी जिंदगी में आ गए हैं. कोरोना के भय ने हमारी जिंदगी को अनुसाशन में ला दिया है. अब हमें साफ सफाई की अहमियत ज्यादा समझ में आ गई है. कई अच्छी आदतें जीवन में शुमार हो चुकी हैं. अपनी फिटनेस और डाइट पर हमने गंभीरता से सोचना शुरु किया. सीमित साधनों में कैसे सब कुछ मैनेज करना है यह सीख लिया. अब हम उतना ही खाना बना रहे हैं जितने की जरूरत है. बस इन अच्छी आदतों को हमें आगे भी बनाए रखना है.

कोरोना से मुकाबला कैसे करेंगी? लक्ष्मी कहती हैं, मैं केवल सकारात्मक सोचती हैं. कोरोना से भयभीत नहीं हूं. कुछ लोग टीवी देखकर कोरोना की खबरों से भी डर रहे हैं. इसमें डर की कोई बात नहीं है. खबरों का मक्सद हमें जानकारी देना है. जानकारी ही नहीं होगी तो हम समस्या का सामना कैसे करेंगे? हेल्थ मिनिस्ट्री जो गाइड लाइन जारी कर रही है मैं उसका पालन करती हूं. लक्ष्मी सहारा अखबार में काम करती हैं. सामान्य दिनों की तरह ऑफिस जा रही हैं. इस दौरान पूरी सावधानी का ख्याल रखती हैं.

इस मुश्किल समय में लक्ष्मी सकारात्मक सोच विचार बनाए रखने को सबसे जरूरी मानती हैं. साथ ही अपने आसपास के माहौल को भी सकारात्मक बनाए रखने की अपील करती हैं. लक्ष्मी मजबूत लड़की हैं. उनके माता-पिता बिहार में रहते हैं. लक्ष्मी का कहना है कि हम जहां रहते हैं वहीं हमारा एक परिवार बन जाता है. माता-पिता ने हमें समाज में कैसे मिलजुल कर रहना है यह सिखाया है. यही वजह है कि इस संकट की घड़ी में सभी लोग अलग-अलग रूपों में एक दूसरे की मदद कर रहे हैं. पूरा देश एक परिवार बन गया है. इसलिए मैं बेशक अपने माता-पिता से दूर हूं लेकिन मैं उन्हें मिस नहीं कर रही. मेरे आसपास के लोग ही परिवार की तरह मेरे साथ हैं.

लॉकडाउन की घोषणा हुई तो लक्ष्मी की क्या तैयारी थी? वे कहती हैं, लोगों ने काफी राशन घरों में भर लिया था लेकिन मैंने नहीं भरा. न मैं यह सोचती हूं कि हमें आने वाले दिनों में खाना नहीं मिलेगा. इस समय तो हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए जो गरीब मजदूर हैं. उन्हें खाना खिलाने के बारे में सोचना चाहिए.

कोरोना से जंग जीतने की क्या तैयारी है? बस इतनी तैयारी है कि मैं स्वच्छता का ख्याल रखती हूं. मास्क लगाकर बाहर निकलती हूं. जो बिना मास्क लगाए दिखते हैं उन्हें टोकती हूं. ऑफिस से लौटते वक्त एक बारी में ही सारा जरूरी सामान ले आती हूं. विश्व स्वास्थ संगठन व भारत सरकार की ओर से जो निर्देश सामने आ रहे हैं उनका पालन करती हूं. इस मुश्किल समय में सकारात्मक सोचती हूं सतर्क रहती हूं इसलिए मन में कोरोना का भय नहीं है. कुछ लोगों के मन में कोरोना का डर इस कदर भर चुका है कि सामान्य खांसी होने पर भी सोच रहे हैं कहीं कोरोना तो नहीं हो गया. नकारात्मक बातें मुश्किल घड़ी में इंसान को परेशान कर देती हैं. इस समय हमारा एक ही मंत्र होना चाहिए नकारात्मकता आउट, सकारात्मकता इन.

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कोरोना की वजह से लक्ष्मी की दिनचर्या में कोई खास बदलाव नहीं आया. पहले की तरह सुबह योग करती हैं. फिर नहा कर नाश्ता और फिर ऑफिस के लिए रवाना. श्याम को घर आकर साफ सफाई और अपने लिए डिनर बनाती हैं.

पंखुड़ी परिवार पास होता तो अच्छा था 

अब बात करते हैं पंखुड़ी की. पंखुड़ी एक पीआर प्रोफेशनल हैं. भोपाल, मध्यप्रदेश की रहने वाली हैं. परिवार भोपाल में ही रहता है. पंखुड़ी दिल्ली के सुखदेव विहार में रहती हैं. पंखुड़ी के लिए सबसे बड़ा डर यही है कि इस समय वे परिवार से दूर हैं. जिस तेजी से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है और लॉकडाउन आगे बढ़ा दिया गया है. ऐसे में अगर चीज़ें समय रहते ठीक न हुईं और महामारी ज्यादा फैल जाए तो वे अकेली क्या करेंगी.

लॉकडाउन की घोषणा होने से कुछ समय पहले ही पंखुड़ी महीने डेढ़ महीने का राशन ला चुकी थी. लॉकडाउन के बाद मन में यह ख्याल जरूर आया कि अगर थोड़ा और राशन ले आती तो ठीक रहता.

पंखुड़ी कहती हैं लॉकडाउन से पहले भी मैं अकेले रहती थी लेकिन अब वर्क फ्रॉम होम कर रही हूं. कोशिश करती हूं कि किसी न किसी काम में खुद को व्यस्त रखूं. ऑफिस वर्क के अलावा घर की साफ-सफाई. कुछ शौक जो लंबे समय से पूरे नहीं हो पा रहे थे वो पूरे कर रही हूं जैसे – ड्रॉईंग, कुकिंग, रीडिंग. बाहर बहुत कम निकलती हूं बस दूध सब्जी फल लेने. वह भी ज्यादा ले आती हूं ताकि 2-3 दिन फिर बाहर न निकलूं.

पंखुड़ी को लगता है कि इस समय अगर वे परिवार के साथ होती तो उन्हें इतनी चिंता न होती. जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे पंखुड़ी को परिवार की याद आ रही है. पंखुड़ी बताती हैं कि लॉकडाउन के पहले सप्ताह तक तो फिर भी सब ठीक रहा लेकिन अब महसूस कर रही हूं कि मन बहुत उदास हो गया है. भीतर से बेवजह की खीज, चिड़चिड़ापन, अकेलापन महसूस हो रहा है.

कोरोना की अपडेट व देश दुनिया का हाल जानने के लिए पंखुड़ी समाचार सुनती हैं. कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या पंखुड़ी को डराती है. लेकिन यही डर पंखुड़ी को सीख भी दे रहा है कि कोरोना से बचना है तो घर पर रहो. यही एक मात्र उपाय है.

पंखुड़ी फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, ट्वीटर पर एक्टिव रहती हैं. फोन पर परिवार व दोस्तों से बातें करती हैं. पंखुड़ी बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद से मेरी दिनचर्या में बहुत बदलाव आ गया है. जैसे अब रोज दिन की शुरुआत योग से होती है. फिर नहाकर नाश्ता बनाती हूं. लंच और डिनर भी कर रही हूं जोकि पहले मेरा ज्यादातर छूट जाता था. अब खाने का एक निश्चित समय तय हो गया है जोकि सेहत के लिए बहुत जरूरी था. श्याम को मैं घर के अंदर, बालकोनी या छत पर टहलती हूं. अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए रोज हल्दी वाला दूध पीती हूं.

पूजा मेहरोत्रा मजबूत हूं जागरूक हूं सतर्क हूं

अब मिलाती हूं एक मजबूत, जागरुक लड़की पूजा मेहरोत्रा से. पूजा पत्रकार हैं द प्रिंट में काम करती हैं और फिलहाल एक महीने से घर से ही काम कर रही हैं. पूजा बिहार की रहने वाली हैं. लगभग बीस साल से दिल्ली में अकेली रह रही हैं. पूजा सिंगल हैं इसलिए अपना ख्याल खुद रखना जानती हैं.

कोरोना वायरस के भय के बीच पूजा की सबसे बड़ी चिंता अपने माता-पिता को लेकर है. दोनों बिहार में हैं और बुर्जुग हैं. बढ़ती उम्र की कई तकलीफें भी फेस कर रहे हैं. पूजा के लिए उसके माता-पिता का ठीक रहना बहुत जरूरी है. इसलिए वे उन्हें फोन पर बताती रहती हैं कि आजकल उन्हें कैसे रहना है. कैसा खानपान और साफ सफाई का ख्याल रखना है. किस प्रकार बार-बार हाथ धोना है. सेनेटाइज़र कैसे यूज़ करना है.

खुद पूजा की तैयारी कैसी है? मैं सारे प्रिकॉशन्स ले रही हूं. काफी पहले से ही मास्क लगाकर घर से निकलती थी. दुनिया में जब कोरोना फैल रहा था तभी से इस बात को लेकर अवेयर थी कि अगर भारत में यह संक्रमण फैलता है तो हमें क्या सावधानी बरतनी होंगी. मैंने अपनी कामवाली बाई को भी पहले ही कोरोना और उसके परिणामों के बारे में बता दिया था. मेरा घर पूरी तरह सैनेटाइज़ है.

बेशक पूजा कई सालों से अकेली रह रही हैं लेकिन क्या इस समय परिवार को मिस कर रही हैं? पूजा कहती हैं, परिवार का साथ होना हमेशा सपोर्ट देता है. अगर फैमली साथ होती तो एक दूसरे की केयर कर पाते. मुझे अपने माता-पिता की इतनी चिंता नहीं होती जितनी अब दूर रहकर हो रही है. जिंदगी थोड़ा आसान हो जाती.

लॉकडाउन की वजह से क्या पूजा ने भी अपना राशन घर पर रख दिया था? नहीं, बिल्कुल नहीं. बल्कि मैंने लोगों को समझाया कि बहुत ज्यादा राशन मत भरो. लॉकडाउन हो या कर्फ्यू जरूरी सामान की सप्लाई बंद नहीं होती. इसलिए मैंने उतना ही खरीदा जितने की जरूरत थी. दो सप्ताह से ज्यादा समय हो चुका है मुझे इस दौरान राशन फल सब्जी की कोई दिक्कत नहीं हुई. हां, क्योंकि मैं सिंगल हूं इसलिए कुछ जरूरी दवाएं डॉक्टर की सलाह पर मैंने रखी हैं ताकि जरूरत पड़ने पर दिक्कत न हो.

पूजा रोज योग व प्राणायाम करती हैं. काम के बीच में पांच-दस मिनट का ब्रेक लेती हैं. श्याम को थोड़ा टहलती हैं. पूजा बताती हैं कि जब बहुत ज्यादा कोरोना कोरोना हो जाता है तो मन दुखी होता है यह देखकर कि दुनिया में कितने लोग मर रहे हैं. समाज कहां जा रहा है? इतना होने के बाद भी कुछ लोग लॉकडाउन की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं तो बहुत गुस्सा भी आता है.

पूजा ने अपने घर की सफाई के साथ-साथ अपनी बिल्डिंग की सारी रेलिंग्स साफ कीं. स्विचबोर्ड साफ किए. रोज डिटॉल के पानी से दरवाजे के हैंडिल साफ करती हैं. पूजा बताती हैं कि इतना होने के बाद भी जब कुछ लोग डॉक्टर्स, नर्स, हेल्थ सेक्टर से जुड़ा स्टाफ, आशा वर्कर, आंगनवाणी, पुलिस स्टाफ को सहयोग नहीं करते तो बहुत दुख होता है.

शुचि सहाय सबसे पहले अपनी सुरक्षा

अब एक सिंगल मदर शुचि सहाय के बारे में बात करते हैं. शुचि जी की एक बेटी है जो अमरीका में पढ़ती हैं. यहां वे वैशाली गाजियाबाद में लंबे समय से अकेली रह रही हैं. शुचि मेडिकल ट्रांसक्रप्शन के क्षेत्र में क्वालिटी एनालिस्ट हैं. शुचि जी वर्क फ्रॉम होम ही करती रही हैं इसलिए लॉकडाउन का असर उनके काम पर नहीं पड़ा. लेकिन कोरोना की वजह से एक अनजान सा भय वे जरूर महसूस करती हैं. कोरोना का खतरा जैसे ही भारत पर मंडराया शुचि जी ने तय किया कि सबसे पहले उन्हें अपना ख्याल रखना है. खुद को सुरक्षित रखना है.

लॉकडाउन के दौरान के लिए उनकी तैयारी कैसी थी? इस पर वे बताती हैं कि बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ी बहुत तैयारी मैंने भी की. महीने डेढ़ महीने का सामान मैंने भी घर पर लाकर रखा.

वैसे तो शुचि जी लंबे समय से अकेली ही रहती हैं लेकिन मानती हैं कि इस संकट काल में अगर परिवार साथ होता तो समय कैसे कट जाता है पता नहीं चलता.

देश-दुनिया में कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या शुचि जी को भी डराती है. वे कहती हैं- जब अमेरिका की बिगड़ती स्थिति देखती हूं तो बहुत डर लगता है मेरी बेटी वहां पर है. रोज उससे फोन पर बात करती हूं. कभी विडियो कॉल करती हूं. हिदायतें भी देती हूं. जब वो बताती है कि वो घर पर सुरक्षित है. बाहर नहीं निकलती, उसने राशन रखा हुआ है. इम्यूनिटी का ख्याल रखते हुए डाइट ले रही है तो मन को तसल्ली होती है.

शुचि बताती हैं कि इस समय एक नागरिक होने के नाते मेरा यह फर्ज है कि जो भी सरकार की ओर से, मीडिया के माध्यम से. डॉक्टरों द्वारा दी जा रही सेहत संबंधी सलाह हैं उनको माना जाए. शुचि जी सफाई का खास ख्याल रखती हैं. वैसे तो घर पर रहती हैं. अगर दूध सब्जी खरीदने बाजार जाना पड़े तो सामाजिक दूरी का ख्याल रखती हैं, मास्क पहनती हैं. वे मानती हैं कि अगर हर इंसान इन बातों का ख्याल रखे तो हम कोरोना को फैलने से रोक सकते हैं.

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शुचि के लिए लॉकडाउन का शुरुआती सप्ताह बहुत ज्यादा परेशान करने वाला था. बड़े-बड़े देशों की कोरोना की वजह से क्या हालात हो गई है. यह सब देखकर बहुत घबराहट होती थी. फिर शुचि ने तय किया कि इस विषय पर ज्यादा नहीं सोचना. घर पर रहो. ऑफिस का काम करो. अपनी नींद पूरी लो. अपनी डाइट सही रखो बस.

शुचि की दिनचर्या पहले की तरह योग व प्राणायाम से शुरु होती है. योग से उन्हें शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है. पॉजिटिव एनर्जी मिलती है. फिर वे अपने रोज के काम करती हैं. श्याम को कुछ किताबें पढ़ती हैं. परिवार व दोस्तों से बातें करती हैं. सबसे महत्वपूर्ण वे सकारात्मक रहने की कोशिश करती हैं.

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