गौडफादर के बिना हिंदी फिल्मों में काम नहीं मिलता : स्कंद ठाकुर

हिंदी फिल्मों और टैलीविजन शो में काम करने वाले अभिनेता स्कंद ठाकुर बहुत ही विनम्र स्वभाव के और हंसमुख हैं. हिमाचल में जन्मे और मुंबई में पलेबड़े हुए हैंडसम स्कंद को बचपन से ही अभिनय का शौक था, लेकिन उन के पिता की शर्त थी कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करें, फिर अभिनय की तरफ ध्यान दें.

उन्होंने उन की बात मानी और अपनी ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी कर अभिनय की तरफ मुड़े. उन्होंने फिल्मों में आने के लिए काफी संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी. वे जानते हैं कि गौडफादर के बिना हिंदी फिल्मों में ऐंट्री पाना आसान नहीं होता, लेकिन प्रतिभा है तो उन्हें काम अवश्य मिलेगा.

मिला ब्रेक

वर्ष 2019 में उन्होंने नैटफ्लिक्स की ऐंथोलौजी सीरीज ‘फील्स लाइक इश्क’ से अभिनय की शुरुआत की है. उन की कुछ खास फिल्में ‘लाल सिंह चड्ढा’, ‘आरआरआर’, ‘गहराइयां’, ‘सूर्यवंशी’, ‘आर्टिकल 370’ आदि हैं. इस के अलावा उन्होंने टीवी सीरीज ‘फील्स लाइक इश्क’, ‘स्कैम 1992’ आदि में भी अभिनय किया है.

स्कंद को उन के अभिनय कौशल के लिए आलोचकों और दर्शकों दोनों ने सराहा है. उन्हें वर्ष 2022 में फिल्मफेयर अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ पुरुष पदार्पण के लिए नामांकित किया गया था. स्कंद का पूरा परिवार गृहशोभा पत्रिका पढ़ते हैं, जिस में उन की मां खासकर महिलाओं को प्रेरित करने वाले लेख पढ़ती हैं. जियो सिनेमा पर स्कंद की वैब सीरीज खलबली रिकौर्ड्स रिलीज पर है.

उन से बात हुई, आइए जानते हैं उन की कहानी उन की जबानी :

सीरीज करने की खास वजह

इस सीरीज को करने की खास वजह के बारे में पूछने पर स्कंद कहते हैं कि इस शो में मेरा किरदार राघव राय सिंह एक म्यूजिक लवर की है, जो एक फैमिली बिजनैस चलाता है. रियल लाइफ में भी मुझे संगीत से बहुत लगाव है, इसलिए यह भूमिका मेरे लिए खास रही. संगीत में भी हिपहौप म्यूजिक मुझे बहुत पसंद है। मैं काफी सालों से इसे फौलो करता आ रहा हूं. फिल्म को करते हुए मैं ने कई बड़ेबड़े कलाकारों से भी मिल चुका हूं, वही मेरे लिए बड़ी बात रही.

इस शो में एक पितापुत्र की विचारों में नए और पुराने जमाने के संगीत में अंतर को दिखाने की कोशिश की गई है, जो म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़ी है. पर्सनल लाइफ में मैं अपने पिता से काफी क्लोज हूं, समय के साथसाथ इस में अधिक निकटता आई है। बचपन में मुझे याद है जब मेरे पिता कहीं तो मैं कहीं दूसरी जगह पर बैठता था, लेकिन अब हम दोनों अच्छे दोस्त भी हैं.

मिली प्रेरणा

अपने बारे में स्कंद कहते हैं कि मैं ने वर्ष 2015 में पृथ्वी थिएटर के एक थिएटर ग्रुप के बैक स्टेज से काम शुरू किया है. ऐक्टिंग को चुनने की मेरी खास वजह यह थी कि मुझे पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगता था और इस काम में मुझे डर भी नहीं लगता था। मैं 100-200 लोगों के सामने ऐक्टिंग कर सकता था. लोगों का अटैंशन मुझे पसंद था, इसलिए मैं ने इसे ही अपना रास्ता चुना और 2-3 साल तक थिएटर में अभिनय किया.

शुरुआत के 4 से 5 साल तक क्या काम अच्छा है, क्या बुरा है, इस पर विचार किया और जाना कि इंडस्ट्री में ऐंट्री किस तरह लेनी पड़ती है, क्योंकि यहां मेरा कोई गौडफादर नहीं है.

औडिशन देने के बाद धीरेधीरे काम मिलता गया, लेकिन पिता का निर्देश था कि मैं ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी करूं और मैं ने किया.

पारिवारिक सहयोग

स्कंद कहते हैं कि जब मैं 9 महीने का था, तब मेरे पेरैंट्स मुझे मुंबई ले आए थे, इस के बाद मैं यहीं रहा. मेरे पिता संजीव ठाकुर पहले सपोर्ट में नहीं थे, क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मुंबई से शुरू की है. अभी उन का खुद का व्यवसाय है, लेकिन उन की शुरुआती दिन बहुत संघर्ष भरे थे. जब वे पहले मुंबई आए थे, तो 16 साल के थे। पैसे के लिए वेटर का काम किया, टैक्सियां धोए. धीरेधीरे उन्होंने खुद को मुंबई में स्थापित किया, इसलिए मुझे भी वे जीरो से कैरियर शुरू करने से मना कर रहे थे, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री में मेरा कोई गौडफादर नहीं है, जो मेरे लिए कुछ करें, लेकिन अच्छी बात यह रही कि उन्होंने मुझे 1 साल का समय इंडस्ट्री में काम करने के लिए दिया.

1 साल में ही मैं ने थोड़ा काम शुरू कर लिया था, इस से उन्हें खुशी मिली और अभी तक वे मेरे सपोर्ट में हैं. हर परिस्थिति में वे मेरे साथ हैं.

स्कंद आगे कहते हैं कि मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि मुझे ऐक्टिंग में जाने की पूरी प्रोसेस को जानना जरूरी था. मुझे करीब 6 से 7 साल का समय लगा था, लेकिन मेरे लिए वह लर्निंग पीरियड रही. कोई गाइड करने वाला नहीं था. औडिशन देते गए, जो भी भलाबुरा सुनने को मिलता, उसे फिल्टर कर आगे बढ़ते गए.

जब मुझे पहली नैटफ्लिक्स की शौर्ट फिल्म ‘ऐंथोलौजी’ मिली, उस में भी सबकुछ खुद ही फिगरआउट करना पड़ा। उस में काफी समय लगा. वह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी.

अभी इंडस्ट्री में मेरे 9 साल बीत चुके है और मैं जहां हूं, खुद को खुशनसीब मानता हूं. फिल्म ‘आर्टिकल 370’ में खुद को बड़े परदे पर दिखना भी मेरे लिए सपने जैसा ही था. उस फिल्म के दौरान मैं ने बहुत कुछ सीनियर आर्टिस्टों से सीखा है.

ओटीटी ने दिया काम

ओटीटी को स्कंद नए कलाकारों के लिए एक बड़ी प्लेटफौर्म मानते हैं, जिस का फायदा उन्हें मिला है। वे कहते हैं कि मेरे जीवन में बड़ा बदलाव ओटीटी की वजह से ही आया है. ऐसे प्लेटफौर्म न होने पर मैं कहां रहता पता नहीं. इस माध्यम ने फिल्म इंडस्ट्री में भाईभतीजावाद को कम कर दिया है.

मुझे इस मंच की वजह से ही एक से दूसरा काम मिला है. इसलिए मेरे लिए यह वरदान है. इतना ही नहीं पहले जो नए हो या पुराने कलाकार जिन पर किसी का ध्यान नहीं जाता था, आज उन सभी को काम मिल रहा है. इस मंच से प्रतिभावान लोग बड़ी फिल्मों में भी काम पा रहे हैं. मेरी ड्रीम है कि मैं एक यादगार रोमांटिक फिल्म करूं, जिस में मेरे को स्टार अभिनेत्री मृणाल ठाकुर, सानिया मल्होत्रा हो.

त्योहार होते हैं खास

त्योहारों को मैं अपने परिवार के साथ मनाना पसंद करता हूं. घर पर परिवार के साथ रहने की इच्छा हमेशा रहती है. कई बार काम की वजह से घर नहीं जा पाता हूं. नए कलाकारों से मेरा कहना है कि आप को जो भी काम मिले, उसे मेहनत और लगन से करते जाएं, हर काम को सीखने में समय लगता है। उस के लिए धीरज बनाए रखें, तभी आप आगे बढ़ सकते हैं.

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