Love Story In Hindi : साकेत में स्थित सलैक्ट सिटी वाक मौल के पीछे स्थित बिल्डिंग की 5वीं मंजिल पर बने आलीशान औफिस में प्रज्ञा अपनी सीट पर बैठी कौस्मैटिक की बिक्री पर रिपोर्ट बना रही थी.
एमबीए पास 24 वर्षीय सुंदर 5 फुट 8 इंच लंबी आकर्षक सुंदर शरीर की स्वामिनी प्रज्ञा किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखती थी.
प्रज्ञा कौरपोरेट के एक छोटे कौस्मैटिक्स विभाग में कार्यरत थी. कौस्मैटिक्स विभाग को कौरपोरेट की मालकिन देखती थी.
प्रज्ञा अपनी बौस कंपनी की मालकिन के साथ बैठी बिक्री के टारगेट पर चर्चा कर रही थी. तभी मालकिन का 20 वर्षीय बेटा पराग आया. उस की मां ने उसे बैठने को कहा. पराग पढ़ रहा था. कभीकभी औफिस आ जाता था.
पराग प्रज्ञा को देखता ही रह गया. उस की निगाह प्रज्ञा के आकर्षक शरीर और उभार पर टिक गई. उस की रुचि किसी काम में नहीं थी. वह सिर्फ प्रज्ञा के शरीर के उभार को देख रहा था. प्रज्ञा का पूरा ध्यान अपने कार्य पर केंद्रित था. पराग की मंशा से अनजान वह पराग की मां जो उस की मालकिन थी, रिपोर्ट पर चर्चा कर के अपनी सीट पर चली गई.
पराग भी प्रज्ञा के पीछे उस के वर्क स्टेशन पर पहुंच गया.
‘‘मैं तुम्हारे काम करने के तरीके से बहुत प्रभावित हूं. मैं आज सारा दिन औफिस में हूं. लंच के बाद मेरे औफिस में आना. मैं कुछ सोच रहा हूं. तुम्हारे साथ बिक्री संबंधित बातें करनी हैं. प्रज्ञा ने हां में गरदन हिला कर स्वीकृति दे दी.
पराग के दिल और दिमाग में प्रज्ञा सैट हो गई थी. अभी वह कालेज में पढ़ रहा था और बहुत लड़कियों के साथ उस की मित्रता थी. प्रज्ञा की सादगी में उसे एक कशिश दिखी जो उसे प्राकृतिक लगी. बिना किसी बनावट के साधारण वस्त्रों में एक नजर में पराग के दिल में उतर गई.
लंच के बाद प्रज्ञा ने पराग के औफिस का दरवाजा हलके से नौक किया.
‘‘आओ प्रज्ञा. मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था,’’ पराग ने उसे सामने कुरसी पर बैठने का इशारा किया.
‘‘मैं तुम्हारी मम्मी के साथ बातचीत सुन रहा था. तुम्हारी कार्यशैली मुझे पसंद आई. मैं सेल्स की रिपोर्ट देख रहा हूं. सेल्स बढ़ानी होगी.’’
‘‘सर अभी कौस्मैटिक्स डिवीजन नया है. अभी 4 महीने पहले ही सेल्स शुरू की है. मुझे पूरा विश्वास है, 1 वर्ष बाद हमारी सेल्स और प्रौफिट में जबरदस्त उछाल आएगा.’’
‘‘तुम्हारा आत्मविश्वास देख कर मु झे ऐसी ही आशा है. चलो कुछ प्रैक्टिकल किया जाए. पीछे मौल है, वहां डिपार्टमैंटल स्टोर भी हैं और कुछ कौस्मैटिक्स के स्टोर भी हैं. वहां का वर्किंग स्टाइल देखते हैं फिर अपनी सेल्स बढ़ाने के लिए रणनीति बनाते हैं.’’
‘‘जी सर, आप का सुझाव व्यावहारिक है.’’
पराग प्रज्ञा के साथ सलैक्ट सिटी वौक मौल गया है. उसे कौस्मैटिक्स डिवीजन और उस की सेल्स में कोई रुचि नहीं थी.
अपने उद्योगपति मातापिता के दबाव के कारण कालेज की छुट्टी वाले दिन औफिस आना पड़ता था और एक औफिस भी उस के लिए आरक्षित था. वह कभी अपने पापा के औफिस में बैठ जाता और कभी मम्मी के औफिस में. वह चुपचाप उन के औफिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ वार्त्तालाप सुनता रहता और एक डायरी में नोट्स बना लेता. उस के लिए यह ट्रेनिंग टाइम था, हालांकि वह इसे गंभीरता से नहीं लेता था फिर भी उस के मातापिता खुश थे, कुछ तो शुरुआत हुई.
पराग प्रज्ञा का सिर्फ सान्निध्य चाहता था. 2-3 कौस्मैटिक्स स्टोर घूमने के बाद वह प्रज्ञा के साथ स्टारबक्स में बैठ गया.
‘‘कौफी तो चलेगी न?’’
‘‘जी सर.’’
‘‘अरे प्रज्ञा तुम मु झे सर कहना छोड़ो. तुम्हारे से उम्र में छोटा ही हूं. नाम से पुकारो, पराग कहो.’’
‘‘जी परागजी.’’
पराग मुसकरा दिया, ‘‘सिर्फ पराग कहो. जी कहना भी बंद करो.’’
कौस्मैटिक्स की दुकानों पर तो मुश्किल से आधा घंटा ही रहे लेकिन स्टारबक्स में लगभग 2 घंटे बिता दिए. पराग ने प्रज्ञा की पूरी जन्मकुंडली खंगाल ली. उस की पसंद से ले कर पारिवारिक पृष्ठभूमि भी मालूम कर ली.
प्रज्ञा एक मध्यवर्गीय परिवार की 24 वर्षीय आत्मविश्वास से भरपूर आकर्षक शरीर की मालकिन थी. पराग प्रज्ञा के शरीर के उतारचढ़ाव पर लट्टू पहली नजर में हो गया था.
लगभग ढाई घंटे तक मौल में पराग प्रज्ञा के साथ रहा. मम्मी के फोन आने के बाद ही वापस औफिस लौटे. तब मां ने पराग से कहा कि वह घर जा रही है और आज कार एक है. एकसाथ घर चलना है.
कार में पराग ने मम्मी से कौस्मैटिक्स डिवीजन के बारे में विस्तृत बातचीत की. प्रज्ञा अच्छा काम कर रही है. उन को भी किसी मौल में कौस्मैटिक्स शौप खोलनी चाहिए.
पराग की रुचि देख कर मम्मी ने बताया, उस की योजना कौस्मैटिक्स की शौप दिल्ली के हर मौल और बाजार में खोलने की है. तुम्हारी रुचि है तब कालेज की क्लासेज अटैंड कर के औफिस आया करो. प्रज्ञा है ही और स्टाफ भी भरती करते हैं.
पराग इसी मौके की तलाश में था. उस की मुंह मांगी ख्वाहिश झट से पूरी हो गई.
अब पराग नियमित रूप से औफिस जाने लगा. औफिस में कुछ देर रिपोर्ट देखने के बाद पराग प्रज्ञा के साथ औफिस के पीछे मौल चला जाता.
धीरेधीरे पराग प्रज्ञा के नजदीक आता गया. पराग महंगे उपहार प्रज्ञा को देने लगा. पहले तो प्रज्ञा को ि झ झक होती, फिर उसे भी पराग का सान्निध्य अच्छा लगने लगा. स्टारबक्स की कौफी से हुई शुरुआत अब रेस्तरां और फाइवस्टार होटल्स के डिनर तक पहुंच गई.
एक दिन प्रज्ञा की मम्मी ने टोक दिया, ‘‘हर रोज देर से आती हो. टाइम से आया करो. जमाना खराब है.’’
‘‘मम्मी, तुम क्यों खामखां चिंता करती हो. आजकल कौरपोरेट की नौकरी में देर रात तक औफिस में काम करना पड़ता है. पार्टियां अटैंड करनी पड़ती हैं.’’
‘‘मुझे चिंता लगी रहती है. तुम रात को अधिक देर मत किया करो. रास्ते में तरहतरह के लोग होते हैं.’’
‘‘मम्मी मुझे कंपनी की कार घर छोड़ने आती है. तुम चिंता मत करो.’’
औफिस के बाद पराग और प्रज्ञा स्वतंत्र पंछी की तरह विचरण करने लगे. धीरेधीरे उन की मुलाकातें घनिष्ठ हो गईं और एक दिन शारीरिक भी हो गए.
प्रज्ञा पराग से शारीरिक होने पर पूर्णतया प्रेम में गिरफ्त हो गई. उस के दिल और दिमाग में पराग रम गया. पराग महंगे उपहार प्रज्ञा पर लुटाता रहा.
यही प्रज्ञा की भूल थी. जिसे प्रज्ञा प्रेम सम झ रही थी, पराग के लिए मात्र हवस का साधन थी.
एक दिन प्रेम के हिचकोले के बाद पराग के गले में अपनी बांहों की माला डाल कर प्रज्ञा ने पराग से अपनी खुशी का इजहार किया.
‘‘पराग, आई एम प्रैगनैंट. वी मस्ट मैरी नाऊ,’’ प्रज्ञा खुश थी कि पराग भी खुश होगा और उस से शादी को तैयार हो जाएगा लेकिन पराग के लिए प्रज्ञा मात्र एक खिलौना थी, जिस से वह खेल चुका था. उस के लिए यह दूसरी किस्म की खुशखबरी थी. अब प्रज्ञा का स्थान कोई दूसरी लड़की होगी.
‘‘व्हाट दा नौनसैंस. तुम्हें प्रिकौशन लेना चाहिए था… अबौर्शन करा लो.’’
अबौर्शन का नाम सुनते ही प्रज्ञा आसमान से जमीन पर गिरी, ‘‘तुम क्या कह रहे हो पराग?’’
‘‘देखो, पैसे की चिंता मत करो. जितने चाहें मिल जाएंगे. अब तुम नौकरी भी छोड़ दो. कल से औफिस आने की कोई जरूरत नहीं है. अपना त्यागपत्र ईमेल कर देना.’’
‘‘तुम क्या कह रहे हो?’’ प्रज्ञा हतप्रभ थी. उसे यह उम्मीद कतई नहीं थी. जिस प्रकार पराग उस पर धन लुटा रहा था, प्रज्ञा को ऐसा प्रतीत हुआ, पराग उस के साथ विवाह अवश्य करेगा परंतु यह क्या? प्रैगनैंसी की खबर सुनते ही पराग तुरंत होटल छोड़ कर चला गया. प्रज्ञा एक कटे वृक्ष की भांति होटल के बिस्तर पर तकिए में चेहरा छिपा कर आंसू बहाती रही.
प्रज्ञा को पराग से बेवफाई की उम्मीद नहीं थी. एक पल में उस ने अपने जीवन से भी निकाल दिया और नौकरी से हटने का फरमान भी सुना दिया.
होटल का कमरा पूरी रात के लिए बुक था. प्रज्ञा ने घर पर 2 दिन के औफिस टूर का बोल रखा था. प्रज्ञा पूरी रात सोचती रही कि क्या करे, क्या नहीं. इस ज्वलंत समस्या का तुरंत समाधान नहीं था. उस ने लड़ने की सोची.
सुबह सीमा औफिस पहुंची. औफिस में सिक्युरिटी ने उसे रोक लिया, ‘‘मैम, आप औफिस के अंदर नहीं जा सकती हैं,’’ लेडी सिक्युरिटी औफिसर ने प्रज्ञा को रोक लिया.
‘‘क्यों?’’
‘‘हमें आदेश है.’’
‘‘किस का?’’
‘‘आप गैस्टरूम में बैठिए. एचआर हैड प्रियंका आने वाली हैं. आप उन से बात कीजिए. हम कुछ अधिक नहीं बता सकते हैं.’’
आधे घंटे बाद प्रियंका प्रज्ञा से मिली.
‘‘प्रज्ञा तुम ने अपना त्यागपत्र ईमेल करना था.’’
‘‘तुम क्या कह रही हो?’’
‘‘तुम से जो बोला गया है, वही करो. मु झे एमडी को रिपोर्ट भेजनी है… और भी बहुत पैंडिंग काम है.’’
‘‘मैं रिजाइन नहीं करूंगी.’’
‘‘सोच लो प्रज्ञा. यह प्राइवेट नौकरी है. जो मालिक कहे, वही करते जाओ नहीं तो तुम खुद सम झ लो.’’
‘‘मैं ने सोच लिया है. मैं ने त्यागपत्र नहीं देना. मैं ने कोई गलती नहीं की है. कम से कम मु झे मेरा कुसूर तो मालूम हो.’’
प्रियंका के होंठों पर मुसकान छा गई, ‘‘कुछ बातें सिर्फ सम झने की होती हैं, सुनने की नहीं होती हैं.’’
‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’
‘‘मैं कहना तो नहीं चाहती थी. सोचती थी कि तुम सम झदार हो. तुम ने बहुत ऊंची उड़ान भरी थी. पक्षी भी उतना ऊंचा उड़ता है जितनी उस की क्षमता होती है. तुम एक मिडल क्लास लड़की हो. पराग एक कौरपोरेट का लड़का यानी कल का मालिक. तुम कौरपोरेट की मालकिन बनने के सपने छोड़ दो और जो बोला जा रहा है वही करो. शुक्र है तुम एक जवान लड़के से जिस्मानी हुई हो. कहीं तुम…’’ प्रियंका इस के आगे कुछ नहीं बोली.
प्रज्ञा ने पराग से मिलने के लिए फोन मिलाया लेकिन उस का फोन बंद जा रहा था.
प्रज्ञा प्रतीक्षा करती रही. गैस्टरूम में प्रतीक्षा करते दोपहर हो गई. लंच टाइम में लेडी सिक्युरिटी औफिसर ने प्रज्ञा से औफिस से जाने की विनती की, ‘‘मैम, हमें मैनेजमैंट से आदेश है कि आप को औफिस से बाहर किया जाए.’’
‘‘मैं अपनी बौस यानी मालकिन से मिल कर ही जाऊंगी.’’
‘‘हमें जबरदस्ती करनी होगी जो हम नहीं चाहते हैं.’’
तभी एक बाउंसर लेडी गैस्टरूम में आई. घूर कर प्रज्ञा को देखा. गुर्रा कर कहा, ‘‘फटाफट फूट ले वरना.’’
‘‘वरना क्या?’’ प्रज्ञा ने भी जैसे का तैसा जवाब दिया.
लेडी बाउंसर ने एक झटके में प्रज्ञा का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया. दर्द से प्रज्ञा कराह उठी.
‘‘चल यहां से वरना यह मत बोलना,
2-4 हड्डियां चटक गईं.’’
प्रज्ञा नहीं हिली.
लेडी बाउंसर उसे घसीटते हुए लिफ्ट लौबी में ले गई. लिफ्ट बिल्डिंग के बेसमैंट में रुकी. वहां पार्किंग में खड़ी कार का दरवाजा खुला और प्रज्ञा को पिछली सीट पर धकेल दिया.
‘‘मैम आप… मैं आप से मिलना चाहती थी मगर मुझे मिलने नहीं दिया जा रहा है.’’
कार में उस की मैम अर्थात पराग की मां बैठी थी. उस ने प्रज्ञा के गाल पुचकारते हुए कहा, ‘‘पराग ने जो कहा, ठीक कहा. तू हमारे घर का सपना छोड़ दे,’’ और मैम कार से उतर गई.
‘‘ड्राइवर इसे ले जाओ,’’ और मैम ने लिफ्ट का बटन दबाया.
कार बिल्डिंग से बाहर थी और मैम अपने औफिस में.
‘‘प्रियंका फौरन आओ.’’
अगले पल प्रियंका खड़ी आदेश सुन रही थी.
‘‘फौरन पोस्ट भरनी है. 1-2 दिन में इंटरव्यू कराओ.’’
‘‘यस मैम.’’
इधर इंटरव्यू के लिए नए कैंडिडेट्स का चुनाव हो रहा था, उधर कार एक नर्सिंगहोम के आगे रुकी. उस की इच्छा के विरुद्ध गर्भपात हो गया. प्रज्ञा की मैडिकल फाइल लिखा गया कि प्रज्ञा की जान बचाने के लिए प्रैगनैंसी टर्मिनेट की गई.