स्लीपिंग पार्टनर- आखिर ऐसा क्या था खत में?

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‘तेरी बात का क्या जवाब दूं, यही सोच रहा हूं. आज तक किसी ने उस के और मेरे मन की व्यथा को महसूस नहीं किया. धीरेधीरे उस व्यथा पर वक्त ने ऐसी चादर डाली कि अब कुछ महसूस ही नहीं होता. आज तू ने जो सवाल पूछा है, किसी दिन उस का उत्तर ढूंढ़ सका तो जरूर दूंगा, पर इतने सारे लोगों और घर के इतने सदस्यों के होते हुए भी वह अब सुरक्षित है, तू कुछ कर सके या नहीं पर उस की तकलीफ को समझेगी यही उस के लिए बहुत बड़ी बात होगी. बस, किसी तरह उसे यह बात समझा देनी होगी…’

बाहर भैया के नाम की आवाजें लगने लगी थीं, सो वह बात को बीच में ही छोड़ कर चले गए थे…

शादी ठीकठाक तरह से बीत गई थी.

प्रमिला दीदी विदा हो कर चली गईं. उस के बाद तो जैसे जाने वालों का तांता ही लग गया. धीरेधीरे कर के सभी लोग चले गए. किसी तरह की कृतज्ञता  की उम्मीद तो उन की ओर से किसी ने की भी नहीं थी पर जातेजाते भी बाबूजी पर सब आरोप लगा ही गए. कुछ दिन तो लग गए घर के ढांचे को ठीक करने में, फिर सबकुछ स्वाभाविक गति से चलने लगा.

फिर एक दिन एक बड़ा सा लिफाफा आया, वह भी मेरे नाम. आज के दौर की लड़कियां मेरी स्थिति का अनुभव नहीं लगा सकेंगी कि संयुक्त परिवार में किसी कुंआरी लड़की के नाम का लिफाफा आना कितने आश्चर्य की बात होती है. गनीमत यह रही कि वह लिफाफा मां के हाथ लगा. नीचे का पता देख कर मां खुश हो गईं, ‘अरे, यह तो अनुपम का पत्र है पर उस ने तुझे क्यों पत्र लिखा है?’

‘जब तक मैं खोल कर पढ़ूंगी नहीं तो कैसे बता सकती हूं कि उन्होंने मुझे पत्र क्यों लिखा है.’

मेरे हाथ में लिफाफा दे कर मां अपने घरेलू कामों में व्यस्त हो गईं.

मैं भी अपनी किताब बंद कर के लिफाफा खोल कर पढ़ने लगी.

‘मनु,

ताज्जुब होगा, मेरा पत्र देख कर, पर मेरी बहन, इतने दिनों बाद बहुत सोच कर तुझे लिखने की हिम्मत जुटा पाया हूं. तेरा सवाल मुझे वहां उस व्यस्तता  में भी मथता रहा और यहां आ कर भी. उसे मन से निकाल नहीं पाया हूं. अपने इस अपराधबोध से उबरना चाहता हूं पर तुझे भी विश्वास दिलाना होगा कि मेरे मन के गुबार को किसी और तक नहीं पहुंचने देगी क्योंकि कैसी भी है वह मेरी मां हैं और मौसी मेरी मां की बहन है, जो अपनी बहन के खिलाफ कुछ भी सहन नहीं कर पाएंगी. हां, तुझे मैं वह सब बताना चाहता हूं जो आजतक मैं किसी से भी नहीं कह पाया.

अपनी मां से तू ने मेरी मां के बारे में कितना कुछ सुना है, मैं नहीं जानता पर मैं और मेरे दूसरे सभी भाईबहन उन के अंधभक्त हैं. हम सभी मां के कहे हुए कटु वचनों को भी अमृत की तरह ग्रहण करते हैं. बहुत संघर्षों और कठिनाइयों के बीच मां ने अपने परिवार को संभाला है. बाबूजी ने आर्थिक रूप से कभी कोई सहायता नहीं की इसलिए उन पर मां के आक्रोश का अंत नहीं था. घर की गरीबी का जिम्मेदार मां बाबूजी को ही मानती थीं और उन्हें नकारा, बेगैरत जैसे शब्दों से हर दम चोट पहुंचातीं, जिसे गुजरते समय के साथ बाबूजी ने ओढ़ लिया था.

बचपन से मां को कठिनाइयां झेलते देख कर ही मैं बड़ा हुआ सो मन में एक उत्साह था कि किसी लायक हुआ तो मां के साथ ही इस आर्थिक भार को अपने कंधों पर ले लूंगा. बड़ा हूं, यही मेरा कर्तव्य है, पर मेरे उत्साह पर मां ने तब पानी फेर दिया जब 10वीं करते ही भागदौड़ कर के अपनी पहुंच का पूरा इस्तेमाल कर उन्होंने मुझे एक दफ्तर में क्लर्क की नौकरी दिलवा दी.

कच्ची उम्र में इतने बड़े बोझे को संभालना मेरे लिए तो खासा मुश्किल था पर मैं ने महसूस किया कि मां किसी को भी मेरी सहायता का काम करने को कोई खास महत्त्व नहीं देना चाहती थीं. कभी कोई पड़ोसिन कहती कि अरी, काहे की चिंता करती है, अब तो तेरा बेटा कमाऊ हो गया तो झल्ला कर मां कहतीं कि तो मुझे कौन से सोने के कौर खिलाएगा, अब तक हाड़ तोड़ कर इन सब का पेट पालती आई हूं, अब भी कर लूंगी.

मैं समझ गया था कि मां अब तक अपनी आत्मप्रशंसा की इतनी आदी हो गई थीं कि अपने बेटे की प्रशंसा से उन्हें ईर्ष्या होने लगी थी. इसीलिए उन्होंने मेरा विवाह ठेठ ग्रामीण लड़की से किया ताकि कभी भी वह सिर उठा कर उन के सामने बोल न सके. अपनी सत्ता के प्रति उन की सतर्कता देख सकने में समर्थ होते हुए भी मैं उन का विरोध नहीं कर सका.

शुरू से ही उस के फूहड़पन, बेवकूफी की बातों को ले कर मां के साथ छोटे भाईबहन भी व्यंग्यपूर्वक हंसते, मजाक उड़ाते और बेवजह उस को अपमानित कर के नीचा दिखाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते.

मनु, मुझे शायद शुरू से ही इतना दबा कर रखा गया था कि मैं दब्बू प्रवृत्ति का हो गया. स्वभाव में किसी प्रकार की तेजी या अपने अस्तित्व का आभास मुझे था ही नहीं, फिर भी मैं ने एकआध बार अपने छोटे भाईबहनों को समझाने की कोशिश की थी पर उस का नतीजा जान कर तू चकित रह जाएगी.

मां ने सभी के सामने मुझे अपने ही छोटे भाईबहनों से माफी मांगने को मजबूर किया था, वरना वह खाने को हाथ नहीं लगाएंगी. मां खाना नहीं खाएंगी, यह बात मुझे मंजूर नहीं थी, मुश्किल से तो कोशिश की थी अपनी केंचुल से बाहर निकलने की, पर जल्दी ही फिर उसी केंचुल में घुस गया.

जिंदगी फिर उसी ढर्र्रे पर चल निकली. रजनी भी इस अपमान की आदी हो गई. मेरी विवशता को वह शायद समझ गई थी. आज घर में मेरे सभी भाईबहन अच्छे पदों पर हैं और मां इस का सारा के्रडिट गर्व से खुद ले लेती हैं. वह भूल जाती हैं कि एक कम उम्र लड़के ने भी उन के कंधे का जुआ उठाने में उन की मदद की थी या उस लड़की को जिस के योगदान का एहसास किसी को नहीं है.

एक शब्द है मनु ‘स्लीपिंग पार्टनर’ यानी वह साझीदार जिस कोएहसास ही न हो कि इस तरक्की में उस का भी कोई योगदान है और न जानने वाले जान सके कि उन्होंने उस का कितना फायदा उठाया है. सो रानी बहन, ऐसी ही है तेरी भाभी, एक ‘स्लीपिंग पार्टनर.’

तेरा भाई, अनुपम.’

मनु ने कितनी बार वह पत्र पढ़ा पर अंत तक वह यह नहीं समझ पाई कि किसे दोषी माने, अपनी मौसी को, जो किसी रूप में भी मौसी जैसी स्नेहमयी नहीं लगती थीं. अपनी ही अनुशंसा से अभिभूत वह किसी को भी अपनी सत्ता के आसपास नहीं फटकने देती थीं, जिस से भी उन्हें यह भय हुआ उसी को अपनी कूटनीति द्वारा सब की निगाहों में नकारा साबित करने में एक पल भी देर नहीं लगाई, चाहे वह उन के पति रहे हों या उन्हीं की संतान या बहू. बच्चों की मातृभक्ति का भी दुरुपयोग किया उन्होंने.

दूसरे अभियोगी खुद अनुपमभैया हैं, जो पराए घर से लाई हुई लड़की को उस का उचित मानसम्मान नहीं दिला सके, मां की छत्रछाया में एक दब्बू, डरपोक मातृभक्त पुत्र बन सके, पर एक अच्छे पति नहीं बने.

तीसरी अभियोगी तो स्वयं भाभी ही थीं, जिन्होंने बारबार अपने पर लगने वाले आरोपों को सिरमाथे लगाया कि खुद को फूहड़, नकारा समझने लगीं. उन के मन में ये बातें इतने गहरे तक बैठ गईं कि उन्हें बारबार उन के अस्तित्व के प्रति सचेत कराना नामुमकिन ही था और यही सब सोचतेसोचते मैं ने पत्र रख दिया था.

इनसान चाहे कितना कुछ भूल जाए, पर वक्त अपनी चाल चलना नहीं भूलता. कितना पानी गुजर गया पुल के नीचे से. अब मैं खुद भी एक विवाहिता और बालबच्चों वाली औरत हूं. घर परिवार में हर पल व्यस्त रहते मैं रजनी भाभी के अस्तित्व को भी भूल गई थी.

आज इस पत्र ने कितनी बीती बातों को आंखों के सामने चलचित्र की भांति ला खड़ा किया और सचमुच ही उन रजनी भाभी के लिए मेरी आंखों में आंसू उमड़ पडे़.

विदा भाभी अलविदा, तुम्हें मेरी श्रद्धांजलि स्वीकार हो.

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