परिवर्तन की अलख जगाती रूमा देवी

(राजस्थान, बाड़मेर में 22,000 से ज्यादा गरीब, ग्रामीण महिलाओं को रोजगार से जोड़ा)

राजस्थान के बाड़मेर के अति पिछड़े गांव की रूमा देवी भले ही सिर्फ आठवीं पास हों, लेकिन उनके जुझारूपन ने इस क्षेत्र की बाइस हजार से ज्यादा गरीब, ग्रामीण महिलाओं को रोजगार से जोड़कर उनको आर्थिक सशक्ता देकर उनके जीवन में खुशहाली बिखेर दी है. बचपन से ही अत्यधिक आर्थिक तंगी से जूझने वाली रूमा देवी ने अपनी दादी से सीखी राजस्थानी हस्तशिल्प कसीदाकारी को अपनी जीविका का आधार बनाया. उन्होंने एक स्वयं सेवक समूह बना कर न सिर्फ अपने परिवार को गरीबी के चंगुल से मुक्ति दिलायी, बल्कि आसपास के पचहत्तर गांवों की बाइस हजार से ज्यादा महिलाओं को इस कला का प्रशिक्षण दिया और राजस्थानी हस्तशिल्प को गांव से निकाल कर अन्तरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचा दिया. उनके उत्कृष्ठ कार्यों के लिए वर्ष 2019 में उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों देश का सबसे सम्मानित ‘नारीशक्ति अवॉर्ड’ प्राप्त हुआ.

रूमा देवी राजस्थान में बाड़मेर क्षेत्र के उस दूरदराज के गांव से आती हैं जहां औरत के लिए चेहरे से घूंघट हटाना और घर की दहलीज लांघना नामुमकिन सी बात थी, लेकिन रूमा देवी ने इन बंधनों को तोड़ा और अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने समाज की अन्य महिलाओं के लिए भी सबल और सक्षम होने की राह प्रशस्त की. गरीबी और पुरुष प्रधान समाज की रूढ़ीवादी परम्पराओं से संघर्ष की उनकी कहानी को उन्होंने ‘गृहशोभा’ के साथ साझा किया. प्रस्तुत है उनसे बातचीत के संपादित अंश –

ruma-devi-interview

–  वह क्या वजहें थीं जिन्होंने आपको घर की दहलीज लांघ कर काम करने के लिए मजबूर किया?

मैं पांच साल की थी जब मेरी मां गुजर गयी. पिता ने दूसरी शादी कर ली और मुझे मेरे मामा के पास भेज दिया. मेरे मामा ने ही मुझे पाला-पोसा. उनकी आर्थिक स्थिति भी दयनीय थी. वहां मैंने आठवीं तक पढ़ाई की, लेकिन गरीबी के कारण मुझे स्कूल छोड़ कर घर के कामकाज में लगना पड़ा. रसोई बनाना, पशुओं की देखभाल के अलावा पूरे घर के लिए पीने के पानी का इंतजाम करना सब मैंने छोटी सी उम्र से किया. हमारे गांव में पानी की बहुत किल्लत थी. मैं परिवार की पानी की जरूरत पूरी करने के लिए आठ से दस किलोमीटर दूर से बैलगाड़ी पर पानी भरकर लाती थी. यह मेरा रोज का काम था. 17 साल की हुई तो मेरी शादी हो गयी. मेरी जिन्दगी शादी के बाद भी आसान नहीं थी. मेरे ससुरालवाले भी बहुत गरीब थे. घर की दहलीज लांघ कर बाहर काम करने के लिए मैं तब मजबूर हुई जब मेरे डेढ़ महीने के बीमार बेटे को पैसे की तंगी के कारण इलाज नहीं मिल पाया और उसने तड़प-तड़प कर मेरे सामने दम तोड़ दिया. उस घटना ने मुझे हिला दिया और मैंने तय कर लिया कि कुछ ऐसा करना है जिससे घर में पैसा आयें और हमारी मजबूरी खत्म हो. बचपन में मां के मरने के बाद मैंने कढ़ाई का कौशल अपनी दादी से सीखा था. मुझे वह हुनर आता था तो मैंने वह काम करने की इच्छा अपने ससुरालवालों के आगे रखी. मैंने उनसे कहा कि घर की हालत सुधारने के लिए मैं काम करना चाहती हूं. वे समाज के रीति-रिवाज से डरे. लोग क्या कहेंगे, बदनामी होगी, ऐसी बातें सोचीं. हमारे गांव में औरतें आज भी लम्बे घूंघट में रहती हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि तू बिना घूंघट के काम करेगी? मैंने कहा – नहीं, सिर पर पल्लू नहीं हटेगा. तब परिवारवाले मान गये. मैंने घूंघट में रहते हुए घर से बाहर कदम निकाला और यह काम शुरू किया.

pm

–  यात्रा कैसे शुरू हुई? क्या दिक्कतें आयीं और क्या उपलब्धियों हासिल हुर्इं?

2006 में मैंने कढ़ाई का काम शुरू किया. शुरुआत में मैंने लेडीज बैग और कुशन कवर आदि बनाने की सोची, मगर उस वक्त कपड़े-धागे तक के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे. फिर मैंने अपने आसपास के परिवार की औरतों से बात की. मेरे गांव की दस औरतें मेरे साथ काम करने को तैयार हो गयीं. फिर मैंने एक स्वयं सहायता समूह बनाया और सबसे सौ-सौ रुपये इकट्ठा करके कढ़ाई के लिए जरूरी सारी चीजें जैसे कपड़े, रंगीन धागे, सुईयां, कैंचियां, सामान पैक करने के लिए प्लास्टिक के थैले इत्यादि खरीदे. मैंने उन औरतों को वह कढ़ाई सिखायी जो मैंने अपनी दादी से सीखी थी. हम सबने साथ मिल कर सुन्दर-सुन्दर बैग और कुशन कवर बनाये. भाग्य से हमें खरीदार भी अपने ही गांव में मिल गये, जो हमारा सामान शहरों में ले जाकर बेचने लगे. इस तरह हमें कुछ पैसे मिलने लगे. उसके बाद तो हमारे इस ग्रुप से लगातार महिलाएं जुड़ने लगीं.

–  दस औरतों का छोटा सा समूह बाईस हजार से ज्यादा औरतों का समूह कैसे बना?

मैंने कभी यह बात स्वीकार नहीं की कि हमारे सामने सीमित संसाधन हैं या सीमित अवसर हैं. काम करने की इच्छा और हुनर होना चाहिए, रास्ते अपने आप खुल जाते हैं. जिन्दगी कभी भी आसान नहीं होती, लेकिन जूझते हैं तो जीतते हैं. मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपने जैसी बहुत सारी गरीब औरतों के लिए काम करना चाहती थी. उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी ताकि जो मेरी ममता के साथ हुआ, वह किसी और औरत के साथ न हो. मैंने अपने गांव की औरतों को ही यह कला नहीं सिखायी, बल्कि आसपास के गांव की औरतों को भी सिखाने लगी. क्षेत्र के काफी गांव हमारे काम से जुड़ गये. हमारे उत्पाद जब मार्केट में आये तो बाड़मेर के ‘ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान’ ने उन्हें काफी सराहा और मुझे अपना सदस्य बनने का प्रस्ताव दिया. 2008 में मैं इस संस्था की सदस्य बन गयी. फिर दो साल में ही मैं संस्था की अध्यक्ष भी चुन ली गयी. यह संस्था महिलाओं को ट्रेनिंग के साथ-साथ मार्केटिंग के गुण भी सिखाती है. इस संस्था से जुड़ने के बाद मुझे बहुत हिम्मत मिली, रास्ते खुले. मैंने कई शहरों में जाकर अपने उत्पाद मंचों पर प्रदर्शित किये और हम अन्तरराष्ट्रीय मंच तक भी पहुंचे. आज हमारे गु्रप की हर सदस्य अपने कौशल से तीन से दस हजार रुपये महीना कमा लेती है. हमारे साथ बाड़मेर की ही नहीं, बीकानेर और जैसलमेर तक की महिलाएं जुड़ी हैं. यह संख्या बढ़ती ही जा रही है.

ruma

– आप आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रौशन कर रही हैं. फैशन वर्ल्ड में आपके नाम और काम का डंका बज रहा है. यह उपलब्धि कैसे हासिल की?

भारत के नीति आयोग द्वारा हमारा बाड़मेर जिला सबसे पिछड़ा क्षेत्र घोषित है. यह एक पुरुष प्रधान समाज है जहां पर्दा प्रथा का पालन करने और अपने घर की दहलीज के भीतर रहने के लिए स्त्रियां मजबूर हैं. लेकिन इतनी ज्यादा गरीबी देखने के बाद और पैसे की तंगी के कारण अपने बच्चे को खोने के बाद काम करने का मेरा संकल्प इतना मजबूत था कि मैं घर-समाज के बंधन तोड़ कर बाहर आयी ताकि अपने परिवार के कल को अच्छा बना सकूं. ‘ग्रामीण विकास चेतना संस्थान’ से जुड़ने के बाद मुझे मार्केटिंग की बातें समझ में आयीं. यहां मैंने ‘फेयर ट्रेड फोरम’ के लिए उत्पाद तैयार किये. धीरे-धीरे हमें हस्तशिल्प समूह के रूप में पहचान मिलने लगी. यहीं मुझे डिजाइनर कपड़ों और फैशन वर्ल्ड के बारे में भी जानकारी मिली, लेकिन मेरे पास डिजाइनिंग की कोई ट्रेनिंग नहीं थी. मैं जिस क्षेत्र में रहती हूं, वहां कोई फैशन इंस्टीट्यूट या कॉलेज भी नहीं है. बड़े शहर हमारे गांव से दूर हैं. लेकिन आगे बढ़ने का मेरा निश्चय दृढ़ था. मैंने साहस करके खुद ही कुछ प्रसिद्ध डिजाइनरों से सम्पर्क किया और उनको अपने उत्पाद दिखाये. उनमें से कुछ डिजाइनर हमारी संस्था के साथ काम करने के लिए तैयार हो गये. वर्ष 2016 में यानी अपना काम शुरू करने के दस साल बाद मैंने पहली बार ‘राजस्थान हेरिटेज वीक कार्यक्रम’ में रैम्प पर मॉडल्स के साथ अपने संग्रह को पेश किया और उनके साथ रैम्प पर भी चली. उस वक्त मैं सचमुच अपने सपने को जी रही थी. उस कार्यक्रम में मेरे द्वारा बनाये कपड़ों को बहुत सराहना मिली. धीरे-धीरे कुछ प्रसिद्ध डिजाइनरों और संस्थाओं ने हस्तनिर्मित कपड़ों और राजस्थानी कढ़ाई के लिए हमसे सम्पर्क करना शुरू कर दिया. हमने जल्दी ही विभिन्न श्रेणियों के अपने उत्पादों की बड़ी श्रृंखला बाजार में उतारी और बहुत बड़े पैमाने पर काम किया. हमारे काम ने इंटरनेशनल फैशन डिजाइनर्स को हमारे गांव तक ला दिया. आज हमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सराहा जा रहा है. हमारे राजस्थानी हस्तशिल्प को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है. लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो के फैशन वीक्स में मैं शामिल हो चुकी हूं जहां हमारे उत्पादों का बहुत सुन्दर प्रदर्शन हुआ.

–  इस क्षेत्र में अवार्ड्स की लम्बी सूची आपके नाम है. कुछ विशेष का जिक्र करें.

हां, इस काम के लिए मुझे बहुत सारे अवार्ड्स और सम्मान मिले हैं. सबसे विशेष मार्च 2019 को राष्ट्रपति कोविंद के हाथों नारीशक्ति के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘नारीशक्ति अवार्ड’ था. दूसरा मैं 6 सितम्बर 2019 का दिन नहीं भूल सकती जब मुझे टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के कर्मवीर एपिसोड में अमिताभ बच्चन जी के सामने हॉट सीट पर बैठने का अवसर मिला था. इस कार्यक्रम को पूरे देश ने देखा और मेरी कहानी जानी. इंडिया टुडे पत्रिका ने 2018 में अपने एनिवर्सरी एडिशन में मुझे कवर पर स्थान दिया. फिर मुझे ट्राइब इंडिया का ‘गुड विल एम्बेसडर एंड चीफ डिजाइनर’ का अवॉर्ड मिला. 15  फरवरी 2020 को मुझे अमेरिका में कैम्ब्रिज की हावर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से 17वें एनुअल इंडिया कॉन्फ्रेंस के लिए पैनल मेम्बर के तौर पर आमंत्रित किया गया है. अभी 7 जनवरी को मुझे ‘जानकी देवी बजाज अवॉर्ड’ दिया गया है, जो महिला उद्यमियों को महिला सशक्तिकरण की दिशा में अच्छा काम करने के लिए दिया जाता है. इनके अलावा भी दस-बारह अवॉर्ड हैं जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर मुझे प्राप्त हुए हैं.

fashion

–  आगे की क्या योजनाएं हैं?

गरीबी ने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, पुरुष प्रधान समाज से सवाल करने की हिम्मत दी कि हम औरतें क्यों नही अपने घर-परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए बाहर निकल कर काम कर सकती हैं? आज मैं औरतों को ही नहीं, पुरुषों को भी हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दे रही हूं. हम अलग-अलग कौशल उन्नयन कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं. आत्महत्या और कन्या भ्रूण को मां के पेट में ही मारने जैसे समाज के बुरे कार्यों के खिलाफ हम सेमिनार आयोजित करते हैं ताकि अपने क्षेत्र की महिलाओं को जागृत कर सकें, उनमें उत्साह पैदा कर सकें और उन्हें आत्मनिर्भर बना सकें. छोटे पैमाने पर अपने उद्यम कैसे स्थापित करने हैं, स्व सहायता समूहों के माध्यम से पैसा कैसे पैदा करना है, सरकार की किन योजनाओं के तहत उन्हें वित्तीय सहायता मिल सकती है, यह सारी जानकारियां हम इन कार्यक्रमों के जरिए राजस्थान के दूर-दराज के गांवों तक पहुंचाते हैं और महिलाओं को रोजगार से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं. मैं ग्रामीण महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं के लिए भी कुछ करना चाहती हूं. उनके बच्चों के बेहतर कल का सपना जो उनकी आंखों में है, उसे मैं पूरा करना चाहती हूं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें