इकलौते लड़के से शादी

जैसे ही किसी की बेटी की शादी इकलौते लड़के से तय होती है, त्योंही उसे सुखसमृद्धि की गारंटी मान लिया जाता है. एक दंपती ने जब अपनी बेटी की शादी के कार्ड बांटे तो हर किसी से अपनी बेटी के ससुराल में लड़के के इकलौते होने की चर्चा जरूर की. एक संबंधी ने कहा कि तब तो उन के यहां हमारे घर जैसी रौनक नहीं होगी. हमारे यहां तो मामूली अवसर पर भी इतने लोग इकट्ठा हो जाते हैं कि घर में उत्सव जैसा माहौल बन जाता है. फिर भी वे इकलौते लड़के के गुण गाते रहे तो उस रिश्तेदार ने आक्रोश में कहा कि अगर इतना ही इकलौतेपन का क्रेज है तो अपने बेटे को भी इकलौता रहने दिया होता. तब किसी और परिवार को भी आप के इस सुख जैसा सुख मिलता.

सब कुछ इस का है

अकसर शादी की बात चलते ही लड़की वाले इसी बात को अहमियत देते हैं और लड़के वाले भी पसंद की जगह बात बनाने के लिए इस बात का सहारा लेते हैं. भले ही यह बात सच है पर इस तरह की अपेक्षा पालना अकसर अनाधिकार चेष्टा को जन्म देता है. शैलेंद्र व सीता दंपती ने जब एक ट्रस्ट बनाया तो सब दंग थे. लेकिन उन्होंने बेटे को ट्रस्टी न बनाया तो उस ने रिश्तेदारों पर अपने मातापिता को समझाने का दबाव बनाया. तब मातापिता की बातों से स्पष्ट हुआ कि बेटाबहू तो सब कुछ उन का है यह मान कर बैठे हैं. इन की कमाई बहुत है फिर भी ये हारीबीमारी तक में नहीं पूछते. पता नहीं हमारे पालनपोषण में कहां कमी रह गई. हम अपना पूरा पैसा गरीबों की शिक्षा व संस्कार पर खर्चेंगे. खैर, समय रहते बेटाबहू सुधरे तो मांबाप ने अपनी वसीयत थोड़ी बदली. उन्होंने बेटाबहू के लिए गुंजाइश निकाली, लेकिन ट्रस्ट वाला मुद्दा नहीं बदला.

सब कुछ अपना मान लेने की मानसिकता फर्ज अदायगी में बाधक है. कुमार अच्छा कमाने के बावजूद जबतब मांबाप से मोटी रकम वसूलते रहते हैं. कुछ कहने पर कहते हैं कि आगे लूं या पीछे, इस से क्या फर्क पड़ता है. सब कुछ तो मेरा ही है. मांबाप को यह पसंद नहीं. उन्होंने अब दूसरी तरह सोचना शुरू कर दिया है.

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लड़की वाले हावी

ज्यादातर परिवारों में लड़के का छोटा परिवार होने के कारण लड़की के पीहर वाले हावी हो जाते हैं. इन के यहां है ही कौन हम ही तो हैं, यही सोचते हैं वे. ऐसी स्थितियां लड़की की ससुराल में उत्साह भंग करने वाली होती है. कुसुम को बारबार सुनना पड़ता है कि हमारे घर में उसी के घर वाले नजर आते हैं. कोई मौका हो तो पूरी फौज हाजिर हो जाती है. कुसुम ने पीहर वालों को जब ताकीद कराया कि बुलाने का मतलब यह नहीं कि उन के यहां अड्डा ही जमा लिया जाए तो कहीं बात बनी. बहुत से इकलौते लड़के के मांबाप बड़े परिवार में रिश्ता कर के खुश होते हैं. उन की इच्छा रहती है कि वकत पर वे लोग उन के पास आएंजाएं. क्योंकि छोटे परिवार की कमी वे  देख चुके होते हैं. फिर भी उन के यहां डेरा जमाना कुछ लड़की वालों को नहीं जंचता. उन्हें लगता है कि लड़के वालों की पहल तथा इच्छा से उन के यहां आनाजाना अच्छा व सम्मानजनक रहता है. साथ ही बेटी या बहन को ताने या चुहलबाजी का सामना नहीं करना पड़ता.

उस पर अगर इकलौता लड़का अपनी ससुराल से ज्यादा जुड़ जाता है तो उसे अपने करीबी लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं. विजय के चचेरे भाईबहन उसे इसीलिए खरीखोटी सुनाते हैं, ‘यार अब हम हैं ही क्या? अब तो तुम्हें सिर्फ ससुराल वाले ही दिखते हैं.’ विजय को पत्नी पर गुस्सा आता है. पत्नी को पीहर वालों पर.

इकलौते नहीं रहे

एक दंपती ने इकलौते बेटे की सगाई करते ही उस से कह दिया कि अब उन्हें एक बेटी भी मिल गई है. अब वह अपनेआप को इकलौता न समझे. ये दंपती कहते हैं कि ऐसा उन्होंने बेटे की मानसिकता को ध्यान में रख कर किया. वह किसी और बच्चे को हमारी गोद में बैठा देख कर उसे मारता, रुलाता था. उस की चीजें तोड़फोड़ देता था. हम ने इस का इलाज भी कराया, फिर भी उस में वह भावना कुछ बची हुई है. एक दंपती कहते हैं कि हमारा बेटा ऐसी मनोवृत्ति का शिकार है कि उसे हमारा उसी के बेटाबेटी से प्यार करना अच्छा नहीं लगता. हम उसे कैसे ठीक करें, यह समझ में नहीं आ रहा. उसे समझाना आसान नहीं. हमारे घर में बातबात पर कलह आम बात है.

केयरिंग शेयरिंग की आदत नहीं

अकेले लड़के से शादी करना मखमली या फूल जैसी नहीं, बल्कि चुनौतीपूर्ण है. एक तो ऐसे लड़के वैसे ही नाजों से पाले जाते हैं, उस पर इकलौते लड़कों की तो बात ही क्या है. चूंकि उन्हीं की केयर ज्यादा की जाती है, इसलिए वे दूसरों की केयर करने में उतने उत्सुक या जागरूक नहीं होते. चूंकि उन्हें सब कुछ बहुतायत में मिलता है, इसलिए शेयर करने की आदत उन में नहीं आती. इसीलिए पत्नी के रूप में ही सही, उन की ही इच्छा से कोई उन के जीवन में प्रवेश करता है, तो भी वे उतने मन से उस का स्वागत नहीं कर पाते. ऐसे व्यक्ति के जीवन में स्पेस बनाना पत्नी के लिए चुनौती होता है. एक इकलौते व्यक्ति की पत्नी बताती है कि इन्हें तो रात के अलावा मेरा कमरे में रहना तक पसंद नहीं. बस इन का मन या गरज हो तभी. भावनाओं की कद्र करना तो आता ही नहीं इन्हें. ये तो लोगों को वस्तु समझते हैं.

ऐसी ही एक और इकलौती बहू कहती है कि मैं भरेपूरे परिवार से आई और यहां एकदम अकेली पड़ गई. इन्हें ही क्या, इन के मातापिता तक को मेरा किसी से शेयर करना अच्छा नहीं लगता. किसी से बोलनाबतियाना उन्हें मुंह लगाना लगता है, लेनादेना आफत मोल लेना तथा रिश्तों की कद्र करना लिफ्ट देना. मैं ने साफ कहा कि हम अपनेअपने अंदाज से जीएं. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी कोई सोच है. इन्हें यह सब अच्छा तो नहीं लगता पर सहन करना सीख गए हैं.

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हर इकलौता एक सा नहीं

गुड्डू भरेपूरे ससुराल को पा कर खुश है. वह मानता है कि उस के ससुराल वालों ने उस के जीवन की कमी को पूरा किया है. अपनी सालियों और पत्नी के चचेरेममेरे भाइयों तक को अपने परिवार का हिस्सा मानता है. उन से मिलने के लिए पार्टी के बहाने ढूंढ़ता है. सब उसे जीजूभाई, जीजूदादा, जीजूचाचा, जीजूमामा आदि कह कर खूब लाड़ करते हैं. उस की पत्नी इसे बावलापन समझती है. उस के सासससुर कहते हैं कि गुड्डू शुरू से ही मिलनसार है. इस ने कभी अकेला होना नहीं चाहा. बचपन में जब भी अस्पताल के सामने से निकलता, हम पर जोर देता कि जाओ, मेरे लिए खूब सारे भाईबहन ले कर आओ. हम से बारबार अकेलेपन का दुख कहता. हम ने अन्य संतानों की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली. हमें तो पछतावा है. हम ने किसी अनाथ लड़की को गोद ले लिया होता. गुड्डू की जिंदगी में इकलौतापन मजबूरीवश आया. वह मन से इकलौता नहीं है.

इकलौतेपन को लौटरी न मान कर सहज भाव से लिया जाए. सब कुछ अपना मान कर चलना दुख बढ़ाता है. अधिकार के साथसाथ कर्तव्य भाव जिम्मेदार बनाता है. इकलौते लड़केलड़की की शादी देखने में भले अच्छी लगे पर कांटों भरे ताज जैसी होती है. क्योंकि उन्हें सहज रिश्तों में भी एकदूसरे तथा एकदूसरे के परिवारों की उपेक्षा का भाव अनुभव होता है. लड़की को इकलौते लड़के से शादी कर के केवल पत्नी बन कर ही नहीं रहना पड़ता, बल्कि उस की मां, बहन, रिश्तेदार, दोस्त व सहेली सब कुछ बन कर रहने का दायित्व भी वहन करना पड़ता है. इकलौते लड़के के नखरे भी उठाने पड़ सकते हैं. उस के मूड के अनुसार चलना पड़ सकता है. उस की इच्छाओं के आगे झुकना पड़ सकता है. पत्नी बन कर हम उस पर कब्जा नहीं जमा सकते. उस के स्वेच्छाचारी मन को जीतने के लिए कुछ खास जतन करने के लिए भी अपनेआप को तैयार करना पड़ सकता है. तभी इकलौते लड़के से शादी अच्छी तरह चल व निभ सकती है.

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अहंकार से टूटते परिवार

पुरानी मान्यताओं के हिसाब से बेटी की शादी करने के बाद मातापिता उस की जिम्मेदारियों से पल्ला झड़ लेते थे. लड़की की मां चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती थी. लड़के की मां को ही पतिपत्नी के बीच तनाव का कारण माना जाता था. मगर आधुनिक युग में बेटी के प्रति मातापिता की सोच बहुत बदली है. ज्यादातर घरों में पति से ज्यादा पत्नी का वर्चस्व नजर आने लगा है. इसलिए बेटी की ससुराल में होने वाली हर छोटीबड़ी बात में उस की मां का हस्तक्षेप बढ़ने लगा है.

आजकल की बेटियों का तो कुछ पूछो ही नहीं. अपने घर की हर बात अपनी मां को फोन से बताती रहती हैं. छोटेछोटे झगड़े या मनमुटाव जो कुछ देर बाद अपनेआप ही सुलझ जाता है उसे भी वे मां को बताती हैं. मांपिता को पता लग जाने मात्र से बखेड़ा शुरू हो जाता है.

बहू के घर वाले खासकर उस की मां उसे समझने के बदले उस की ससुरालवालों से जवाब तलब करने लगती है, जिसे लड़के के घर वाले अपने सम्मान का प्रश्न बना लेते हैं और अपने लड़के को सारी बातें बता कर उसे बीच में बोलने के लिए दबाव बढ़ाने लगते हैं.

पति को अपने मातापिता से जब अपनी ससुराल वालों के दखलंदाजी की बातें मालूम होती हैं, तो वह इसे अपने मातापिता का अपमान समझ कर गुस्से में आ कर पत्नी से झगड़ पड़ता है. उधर पत्नी भी अपने मातापिता के कहने पर उन के सम्मान के लिए भिड़ जाती है. मातापिता के विवादों की राजनीति में पतिपत्नी के बीच बिना बात झगड़ा और तनाव बढ़ता है.

छोटीछोटी बातों का बतंगड़

हर मातापिता जब अपने बच्चों की शादी करते हैं तो उन की खुशहाली ही चाहते हैं. फिर भी अपनी अदूरदर्शिता के कारण अपने ही बच्चों की जिंदगी बरबाद कर देते हैं. आजकल बेटी की मां को लगता है कि वह बराबर कमा रही है तो किसी की कोई बात क्यों सुने? यह बात भी सही है, गलत बात का विरोध करना चाहिए, अत्याचार नहीं सहना चाहिए, पर अत्याचार या कोई गलत व्यवहार हो तब न.

अकसर छोटीछोटी बातों का ही बतंगड़ खड़ा होता है. जरूरी नहीं है कि हर बात के लिए उद्दंडता से ही बात की जाए. अगर कोई बात पसंद नहीं आती हो तो बड़ों का अपमान करने के बदले शांति से समझ कर भी बातें की जा सकती हैं. बातबात पर उलझ कर यह बताना कि हम बराबर कमाते हैं, इसलिए हम किसी से कम नहीं, मेरी ही सारी बातें सही हैं जैसी बातें करना गलत है.

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लड़कियों में इस तरह की बढ़ती स्वेच्छाचारिता उन की स्वत्रतंता को नहीं दर्शाती है, बल्कि उन की उद्दंडता को ही दर्शाती है. किसी भी चीज का विरोध शांतिपूर्ण ढंग से भी समझ कर किया जा सकता है. लड़की को भी समझना चाहिए कि यह उस का घर है और घर की भी अपनी एक मर्यादा होती है.

बेवजह की बातें

मेरे पड़ोस में रिटायर बैंक कर्मचारी रहते हैं. उन का बेटा एक सरकारी औफिस में ऊंचे पद पर कार्यरत है. उन की बहू भी बेटे के औफिस में नौकरी करती है. हाल ही में उन्हें पोता हुआ, तो उन्होंने कोरोना को देखते हुए कुछ अती करीबी लोगों को ही बुलाया.

लड़के की बूआ बहू को बच्चे की बधाइयां देते हुए बोली, ‘‘समय से पहले ही बच्चे का बर्थ हो जाने से बच्चा बहुत कमजोर है. लगता है बहू कोल्डड्रिंक और फास्टफूड ज्यादा खाती थी तभी बच्चे का जन्म समय से पहले हो गया.’’

तुरंत लड़के की मां ने विरोध किया, ‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है दीदी… बस हो जाता है कभीकभी.’’

पास में बैठी बहू की बहन ने सुन लिया. तुरंत रिएक्ट करते हुए बोली, ‘‘अच्छी बात है जिस के मन में जो आता है वही बोल जाता है. दीदी तुम ने विरोध क्यों नहीं किया, यों ही कब तक घुटघुट कर जीती रहोगी.’’

संयोग से तब तक बूआजी बगल वाले कमरे में चली गई थीं.

तुरंत बहू की मां ने रिएक्ट किया, ‘‘जिसे पूछना है मुझ से पूछे, दामादजी से पूछे, यों मेरी बेटी को जलील करने का उन्हें कोई हक नहीं है. वह कोई गंवार लड़की नहीं है, दामादजी के बराबर कमाती है.’’

लड़के की मां दौड़ी आईं, ‘‘कुछ मत बोलिए, वह घर की सब से बड़ी है. जो भी कहना हो बाद में मुझ से कह लीजिएगा.’’

तुरंत बहू बोली, ‘‘मेरी मां ने ऐसा क्या गलत कह दिया जो आप लोग उसे चुप कराने लगे?’’

फिर से बहन बीच में पड़ी, ‘‘इस सब में सब से ज्यादा गलती तो जीजाजी की है. वे अपनी बूआ से क्यों नहीं पूछते हैं कि वह इस तरह का ऊटपटांग बातें क्यों करती है.’’

तुरंत लड़़के की मां बोली, ‘‘मेरे बेटे के बाप की तो हिम्मत ही नहीं है कि अपनी बहन से सवाल पूछे. फिर मेरा बेटा क्या पूछेगा? अपने घर में हम अपने से बड़ों से उद्दंडता से बातें नहीं करते.’’

छोटी सी बात थी मगर

एक 80 साल के बुजुर्ग की बातों को ले कर दोनों परिवारों में कितने दिनों तक ठनी रही. लड़की के मातापिता अपनी बेटी को कहते कि उस की ससुराल में उन का अपमान हुआ है. वे लड़के वाले हैं तो क्या हुआ, मेरी बेटी उन के घर में इस तरह की उलटासीधी बात क्यों सुनेगी. लड़के की बूआ माफी मांगे वरना हम लोग लीगल ऐक्शन भी ले सकते हैं.’’

जब बहू ने ये सब बातें अपनी ससुराल में बोलीं तो लड़के के मातापिता बिगड़ गए, लड़के की मां बोली, ‘‘अच्छी जबरदस्ती है. मेरे घर की हर बात में टांग अड़ाते हैं, उलटे हमें धमकियां भी देते हैं. जो करना है करें, इतनी सी बात के लिए कोई माफी नहीं मांगेगा. इतना गुमान है तो रखें अपनी बेटी को अपने घर.’’

यह छोटी सी बात इतनी बढ़ी कि लड़की की मां अपनी बेटी को अपने घर ले गईं. न चाहते हुए भी पतिपत्नी, एकदूसरे से अलग हो गए. अपनेअपने मातापिता की प्रतिष्ठा बचातेबचाते बात तलाक तक पहुंच गई. बड़ी मुश्किल से लड़के के दोस्तों ने बीच में पड़ कर बात को संभाला.

गलत सलाह कभी नहीं

वंदना श्रीवास्तव एक काउंसलर है के अनुसार मातापिता के बेटी की ससुराल में छोटीछोटी बातों में दखल देने और लड़के के मातापिता के अविवेकी गुस्से और नासमझ भरी जिद्द से आज परिवार तेजी से टूट रहे हैं. वंदनाजी के अनुसार, उन के पास ज्यादातर ऐसे ही मामले आते हैं, जिन में मां की गलत सलाह के कारण बेटियों के घर टूटने के कगार पर होते हैं.

मेरे पड़ोस में एक सिन्हा साहब रहते हैं. उन्होंने अपनी इकलौती संतान अपने बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से की. बहू को बेटी का मान देते थे. बहू भी बहुत खुश रहती थी और आशाअनुरूप सब से काफी अच्छा व्यवहार करती थी.

1 महीने बाद बेटा बहू के साथ दिल्ली लौट गया. वह वहीं जौब करता था. बहू भी वहीं जौब करती थी. जब बहू गर्भवती हुई बेटा मां को अपने पास बुला लाया, पर यह बात बहू की मां को पसंद नहीं आई. पहले वह समधन को यह कर घर लौटने की सलाह देती रही कि अभी से रह कर क्या कीजिएगा, समय आने पर देखा जाएगा. जब वह नहीं लौटी तो वह बेटी को समझने लगी कि जरूर तुम्हारी सास के मन में कुछ है, उन के हाथों का कुछ भी मत खानापीना.

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जैसे ही लड़के की मां की समझ में यह बात आई, वह वहां से जाने को तैयार हो गई, लेकिन बेटे के काफी अनुरोध करने पर उस की मां को वहां रुकना ही पड़ा. जब बच्चे का जन्म हुआ बहू की मां भी आ गई. फिर तो वह बच्चे को दादीदादा को छूने ही नहीं देती थी. बहू का व्यवहार अपनी मां को देख बदलने लगा. सीधीसादी सास उसे कमअक्ल नजर आने लगी. अपनी मां का साथ देते हुए सास से बुरा व्यवहार करने लगी. फिर अपनी मां के साथ अचानक मायके चली गई.

सासूमां और ससुरजी पटना लौट आए. तब से वे लोग बेटे के घर नहीं जाते हैं. बेटा खुद अपने मातापिता से मिलने आता है. रोज फोन भी करता है. बहू को ये सब पसंद नहीं है इसलिए घर में हमेशा तनाव बना रहता है. बहू के मां के कारण एक खुशहाल परिवार तनाव में जीता है.

अगर अपनी बेटी को सुखी रखना है तो खासकर लड़की की मां को बेटी का रिश्ता ससुराल में मजबूत बनाने में मदद करने के लिए उसे अच्छी सलाह देनी चहिए ताकि अपने अच्छे आचारविचार से वह सब का दिल जीत कर सब का प्यार और सम्मान पा सके. मां की जीत तभी है जब बेटी की ससुराल वाले उस पर नाज करें. तभी उस की बेटी खुद भी शांति से रहेगी और दूसरे को भी शांति से रहने देगी.

वहीं लड़के के मातापिता को बहू के मायके वालों की बातों को अपने सम्मान का विषय न बना कर इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों का घर छोटीछोटी बातों से न टूटे वरना मातापिता के अहं की लड़ाई में बिना कारण बच्चों के घर टूटते रहेंगे.

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अपने तरीके से जीने दें बेटे की पत्नी को

भारत के विक्रांत सिंह चंदेल ने रूस की ओल्गा एफिमेनाकोवा से शादी की. शादी के बाद वे गोवा में रहने लगे. कारोबार में नुकसान होने के बाद ओल्गा पति के साथ उस के घर आगरा रहने आ गई. लेकिन विक्रांत की मां ने ओल्गा को घर में आने देने से साफ मना कर दिया. कारण एक तो यह शादी उस की मरजी के खिलाफ हुई थी, दूसरा सास को विदेशी बहू का रहनसहन पसंद नहीं था.

सुलह का कोई रास्ता न निकलता देख ओल्गा को अपने पति के साथ घर के बाहर भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा. ओल्गा का कहना था कि उस की सास दहेज न लाने और उस के विदेशी होने के कारण उसे सदा ताने देती रही है.

जब मामला तूल पकड़ने लगा तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को हस्तक्षेप करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री से विदेशी बहू की मदद करने के लिए कहना पड़ा. उस के बाद सास और ननद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए. तब जा कर सास ने बहू को घर में रहने की इजाजत दी और कहा कि अब वह उसे कभी तंग नहीं करेगी.

नहीं देती प्राइवेसी

सास-बहू के रिश्ते को ले कर न जाने कितने ही किस्से हमें देखने और सुनने को मिलते हैं. सास को बहू एक खतरे या प्रतिद्वंद्वी के रूप में ही ज्यादा देखती है. इस की सब से बड़ी वजह है सास का अपने बेटे को ले कर पजैसिव होना और बहू को अपनी मनमरजी से जीने न देना. सास का हस्तक्षेप ऐसा मुद्दा है जिस का सामना बेटाबहू दोनों ही नहीं कर पाते हैं. वे नहीं समझ पाते कि पजैसिव मां को अपनी प्राइवेसी में दखल देने से कैसे रोकें कि संबंधों में कटुता किसी ओर से भी न आए.

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अधिकांश बहुओं की यही शिकायत होती है कि सास प्राइवेसी और बहू को आजादी देने की बात को समझती ही नहीं हैं. उन्हें अगर इस बात को समझाना चाहो तो वे फौरन कह देती हैं कि तुम जबान चला रही हो या हमारी सास ने भी हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार किया था, पर हम ने उन्हें कभी पलट कर जवाब नहीं दिया.

आन्या की जब शादी हुई तो उसे इस बात की खुशी थी कि उस के पति की नौकरी दूसरे शहर में है और इसलिए उसे अपनी सास के साथ नहीं रहना पड़ेगा. वह नहीं चाहती थी कि नईनई शादी में किसी तरह का व्यवधान पड़े. वह बहुत सारे ऐसे किस्से सुन चुकी थी और देख भी चुकी थी जहां सास की वजह से बेटेबहू के रिश्तों में दरार आ गई थी.

शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए वक्त चाहिए होता है और उस समय अगर सास की दखलंदाजी बनी रहे तो मतभेदों का सिलसिला न सिर्फ नवयुगल के बीच शुरू हो जाता है बल्कि सासबहू में भी तनातनी होने लगती है.

आन्या अपने तरीके से रोहन के साथ गृहस्थी बसाना, उसे सजानासंवारना चाहती थी. उस की सास बेशक दूसरे शहर में रहती थी पर वह हर 2 महीने बाद एक महीने के लिए उन के पास रहने चली आती थी क्योंकि उसे हमेशा यह डर लगा रहता था कि उस की नौकरीपेशा बहू उस के बेटे का खयाल रख भी पा रही होगी या नहीं.

आन्या व्यंग्य कसते हुए कहती है कि आखिर अपने नाजों से पाले बेटे की चिंता मां न करे तो कौन करेगा. लेकिन समस्या तो यह है मेरी सास को हददरजे तक हस्तक्षेप करने की आदत है, वे सुबह जल्दी जाग जातीं और किचन में घुसी रहतीं. कभी कोई काम तो कभी कोई काम करती ही रहतीं.

मुझे अपने और रोहन के लिए नाश्ता व लंच पैक करना होता था पर मैं कर ही नहीं पाती थी क्योंकि पूरे किचन में वे एक तरह से अपना नियंत्रण  रखती थीं. यही नहीं, वे लगातार मुझे निर्देश देती रहतीं कि मुझे क्या बनाना चाहिए, कैसे बनाना चाहिए और उन के बेटे को क्या पसंद है व क्या नापसंद है.

सुबहसुबह उन का लगातार टोकना मुझे इतना परेशान कर देता कि मेरा सारा दिन बरबाद हो जाता. यहां तक कि गुस्से में मैं रोहन से भी नाराज हो जाती और बात करना बंद कर देती. मुझे लगता कि रोहन अपनी मां को ऐसा करने से रोकते क्यों नहीं हैं?

सब से ज्यादा उलझन मुझे इस बात से होती थी कि जब भी मौका मिलता वे यह सवाल करने लगतीं कि हम उन्हें उन के पोते का मुंह कब दिखाएंगे? हमें जल्दी ही अपना परिवार शुरू कर लेना चाहिए. जो भी उन से मिलता, यही कहतीं, ‘मेरी बहू को समझाओ कि मुझे जल्दी से पोते का मुंह दिखा दे.’ रोहन को भी वे अकसर सलाह देती रहतीं. प्राइवेसी नाम की कोई चीज ही नहीं बची थी.

रोहन का कहना था कि  हर रोज आन्या को मेरी मां से कोई न कोई शिकायत रहती थी. तब मुझे लगता कि मां हमारे पास न आएं तो ज्यादा बेहतर होगा. मैं उस की परेशानी समझ रहा था पर मां को क्या कहता. वे तो तूफान ही खड़ा कर देतीं कि बेटा, शादी के बाद बदल गया और अब बहू की ही बात सुनता है.

मैं खुद उन दोनों के बीच पिस रहा था और हार कर मैं ने अपना ट्रांसफर बहुत दूर नए शहर में करा लिया ताकि मां जल्दीजल्दी न आ सकें. मुझे बुरा लगा था अपनी सोच पर, पर आन्या के साथ वक्त गुजारने और उसे एक आरामदायक जिंदगी देने के लिए ऐसा करना आवश्यक था.

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परिपक्व हैं आज की बहुएं

मनोवैज्ञानिक विजयालक्ष्मी राय मानती हैं कि ज्यादातर विवाह इसलिए बिखर जाते हैं क्योंकि पति अपनी मां को समझा नहीं पाता कि उस की बहू को नए घर में ऐडजस्ट होने के लिए समय चाहिए और वह उन के अनुसार नहीं बल्कि अपने तरीके से जीना चाहती है ताकि उसे लगे कि वह भी खुल कर नए परिवेश में सांस ले रही है, उस के निर्णय भी मान्य हैं तभी तो उस की बात को सुना व सराहा जाता है.

बहू के आते ही अगर सास उस पर अपने विचार थोपने लगे या रोकटोक करने लगे तो कभी भी वह अपनेपन की महक से सराबोर नहीं हो सकती.

बेटेबहू की जिंदगी की डोर अगर सास के हाथ में रहती है तो वे कभी भी खुश नहीं रह पाते हैं. सास को समझना चाहिए कि बहू एक परिपक्व इंसान है, शिक्षित है, नौकरी भी करती है और वह जानती है कि अपनी गृहस्थी कैसे संभालनी है. वह अगर उसे गाइड करे तो अलग बात है पर यह उम्मीद रखे कि बहू उस के हिसाब से जागेसोए या खाना बनाए या फिर हर उस नियम का पालन करे जो उस ने तय कर रखे हैं तो तकरार स्वाभाविक ही है.

आज की बहू कोई 14 साल की बच्ची नहीं होती, वह हर तरह से परिपक्व और बड़ी उम्र की होती है. कैरियर को ले कर सजग आज की लड़की जानती है कि उसे शादी के बाद अपने जीवन को कैसे चलाना है.

फैमिली ब्रेकर बहू

आर्थिक तौर पर संपन्न होने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए एक टारगेट सैट करने वाली बहू पर अगर सास हावी होना चाहेगी तो या तो उन के बीच दरार आ जाएगी या फिर पतिपत्नी के बीच भी स्वस्थ वैवाहिक संबंध नहीं बन पाएंगे.

एक टीवी धारावाहिक में यही दिखाया जा रहा है कि मां अपने बेटे को ले कर इतनी पजैसिव है कि वह उसे उस की पत्नी के साथ बांटना ही नहीं चाहती थी. बेटे का खयाल वह आज तक रखती आई है और बहू के आने के बाद भी रखना चाहती है, जिस की वजह से पतिपत्नी के बीच अकसर गलतफहमी पैदा हो जाती है.

फिर ऐसी स्थिति में जब बहू परिवार से अलग होने का फैसला लेती है तो उसे फैमिली यानी घर तोड़ने वाली ब्रेकर कहा जाता है. सास अकसर यह भूल जाती है कि बहू को भी खुश रहने का अधिकार है.

विडंबना तो यह है कि बेटा इन दोनों के बीच पिसता है. वह जिस का भी पक्ष लेता है, दोषी ही पाया जाता है. मां की न सुने तो वह कहती है कि जिस बेटे को इतने अरमानों से पाला, वह आज की नई लड़की की वजह से बदल गया है और पत्नी कहती है कि जब मुझ से शादी की है तो मुझे भी अधिकार मिलने चाहिए. मेरा भी तो तुम पर हक है. बेटे और पति पर हक की इस लड़ाई में बेटा ही परेशान रहता है और वह अपने मातापिता से अलग ही अपनी दुनिया बसा लेता है.

शादी किसी लड़की के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व नया अध्याय होता है. पति के साथ वह आसानी से सामंजस्य स्थापित कर लेती है, पर सास को बहू में पहले ही दिन से कमियां नजर आने लगती हैं. उसे लगता है कि बेटे को किसी तरह की दिक्कत न हो, इस के लिए बहू को सुघड़ बनाना जरूरी है. और वह इस काम में लग जाती है बिना इस बात को समझे कि वह बेटे की गृहस्थी और उस की खुशियों में ही सेंध लगा रही हैं.

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इस का एक और पहलू यह है कि बेटे के मन में मां इतना जहर भर देती है कि  उसे यकीन हो जाता है कि उस की पत्नी ही सारी परेशानियों की वजह है और वह नहीं चाहती कि वह अपने परिवार वालों का खयाल रखे या उन के साथ रहे.

जरूरी है कि सास बेटे की पत्नी को खुल कर जीने का मौका दें और उसे खुद

ही निर्णय लेने दें कि वह कैसे अपनी जिंदगी संवारना व अपने पति के साथ जीना चाहती है. सास अगर हिदायतें व रोकटोक करने के बजाय बहू का मार्गदर्शन करती है तो यह रिश्ता तो मधुर होगा ही साथ ही, पतिपत्नी के संबंधों में भी मधुरता बनी रहेगी.

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