Raksha Bandhan:सोनाली की शादी- क्या बहन के लिए रिश्ता ढूंढ पाया प्रणय

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Raksha Bandhan: सोनाली की शादी- भाग 3- क्या बहन के लिए प्रणय ढूंढ पाया रिश्ता

कुछ सोच कर प्रणय ताड़देव जा पहुंचा. अचानक मनपसंद संस्था का द्वार खुला और बाबूभाई बाहर निकले, ‘‘सुनिए?’’

‘‘जी, आप ने मुझ से कुछ कहा?’’ प्रणय ने पूछा.

‘‘हां, मैं आप ही से बात करना चाहता हूं. मैं कई दिनों से नोट कर रहा हूं कि आप हमारे दफ्तर के आसपास मंडराते रहते हैं और जो भी ग्राहक आता है, उसे फुसला कर ले जाते हैं. क्या आप किसी प्रतिद्वंद्वी संस्था के लिए काम करते हैं?’’

‘‘जी नहीं, और न ही मुझे आप के ग्राहकों में कोई दिलचस्पी है.’’

‘‘मेरी आंखों में धूल झोंकने की कोशिश मत करो. मैं तुम्हारे हथकंडों से वाकिफ हूं. दरबान ने बताया है कि तुम कई बार हमारे ग्राहकों को बहका कर ले गए हो.’’

‘‘मैं आप के दफ्तर के बाहर किसी से भी मिलूं, बात करूं, इस से आप को क्या? यह इमारत तो आप की नहीं है. यह सड़क तो आप की नहीं है?’’ प्रणय ने बिगड़ कर कहा.

‘‘अरे, मुझे ऐसावैसा न समझना. मेरा नाम बाबूभाई है, क्या समझे? मैं इस इलाके का दादा हूं. बहुत होशियारी दिखाने की कोशिश की तो हाथपैर तोड़ कर रख दूंगा. अब यहां से चलते बनो, दोबारा मेरे दफ्तर के आसपास नजर आए तो तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा.’’

प्रणय ने वहां से खिसक जाने में ही भलाई समझी.

शाम को रणवीर सिंह के घर पहुंच कर उस ने घंटी बजाई तो एक स्थूलकाय, मूंछों वाले सज्जन ने द्वार खोला.

‘‘क्या रणवीर सिंह घर पर हैं?’’ प्रणय ने हौले से पूछा.

‘‘नहीं, वे व्यापार के सिलसिले में दिल्ली गए हुए हैं. आप कौन साहब हैं?’’

‘‘मैं उन का मित्र हूं.’’

‘‘उस के सारे मित्रों को तो मैं भलीभांति जानता हूं. आप को तो पहले कभी नहीं देखा.’’

‘‘मैं उन से कुछ रोज पहले मिला था…’’

‘‘आइए, अंदर आइए, कुछ ठंडावंडा पीजिए. मैं रणवीर का चाचा हूं, दिग्विजय सिंह.’’

वे उसे अंदर ले गए और खोदखोद कर प्रश्न करने लगे. जल्द ही उन्होंने प्रणय के मुंह से सब उगलवा लिया.

‘‘शादी?’’ वे भड़क गए. ‘‘अरे, जब घर में बड़ेबूढ़े मौजूद हैं तो इन छोकरों को अपने लिए लड़की तलाशने की क्या सूझी? हम लोग मर गए हैं क्या? और आप भी क्यों इस झमेले में अपना सिर खपा रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं… नहीं तो, मेरी तो रणवीरजी से अचानक मुलाकात हो गई मनपसंद संस्था के बाहर.’’

‘‘मनपसंद संस्था किस चिडि़या का नाम है,’’ दिग्विजय सिंह के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘यह एक वैवाहिक संस्था है. वहां पर जोडि़यां मिलाई जाती हैं, वहां के संचालक हैं, बाबूभाई.’’

‘‘बाबूभाई, कौन बाबूभाई?’’

‘‘बाबूभाई मनपसंद संस्था के संचालक हैं. वे अब तक पचासों शादियां करा चुके हैं.’’

‘‘अरे, बाबूभाई होता कौन है हमारे बेटे की शादी कराने वाला? उस की ऐसी जुर्रत कि हमारे घरेलू मामलों में दखल दे? उसे तो मैं देख लूंगा.’’

‘‘आप जरा उस से संभल कर रहें,’’ प्रणय ने डरतेडरते कहा, ‘‘वह बहुत खतरनाक आदमी है. ताड़देव इलाके का दादा है.’’

‘‘अरे, ऐसे बीसियों दादाओं को हम ने ठिकाने लगा दिया है. वह किस खेत की मूली है. अभी तुरंत जाते हैं, उस की सारी दादागीरी झाड़ देंगे. मेरा नाम भी दिग्विजय सिंह है. देखते हैं वह कितने पानी में है. अरे, कोई है?’’ वे दहाड़े, ‘‘हमारी कार निकालो.’’

प्रणय वहां से जान बचा कर भागा. नरीमन पौइंट पर वह हताश सा बैठा समुद्र की लहरों का उतारचढ़ाव देखता रहा.

‘‘हैलो, दोस्त,’’ सहसा उस के कानों में एक आवाज आई.

प्रणय ने चौंक कर देखा, सामने सतीश खड़ा था.

‘‘अरे यार, तुम?’’ प्रणय खुशी से चिल्लाया, ‘‘इतने दिन कहां गायब रहे? मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं तलाश किया. शहर के सारे गैस्टहाउस छान मारे. आखिर वादा कर के मुकरने की वजह?’’

‘‘अभी बताता हूं,’’ सतीश ने बताया कि उस रात जब वह प्रणय से मिल कर घर गया तो नर्गिस उस की राह में बैठी थी. बातोंबातों में जब सतीश ने कहा कि वह शादी करना चाहता है तो नर्गिस रोने लगी. उस ने रोतेरोते बताया कि वह उसे बेहद प्यार करती है. अगर उस ने उस के प्रेम को ठुकराया तो वह अपनी जान पर खेल जाएगी.

सतीश ने आगे कहा, ‘‘मेरा मन पसीज गया. मैं ने अपने मन को टटोला तो पाया कि मैं भी नर्गिस को बेहद पसंद करता हूं. सो, सोचा, शादी के लिए नर्गिस क्या बुरी है. अब मैं ने उस से शादी कर ली है और घरजमाई बन गया हूं.’’

‘ठीक है बेटा,’ प्रणय ने मन ही मन कहा, ‘छप्पनभोग से परसी थाली ठुकरा दी, अब खाते रहना जिंदगीभर आमलेट.’

प्रणय घर पहुंचा तो टैलीफोन की घंटी घनघना रही थी. उस ने रिसीवर उठाया तो उधर से दीपाली बोली, ‘‘प्रणय, आजकल कहां रहते हो? कई दिनों से तुम्हारी सूरत नहीं दिखी. खैर, एक खुशखबरी सुनो, दीदी की शादी तय हो गई है.’’

‘‘अरे, कब हुई? किस से हुई?’’ प्रणय ने प्रश्नों की बौछार लगा दी.

‘‘दीदी जिस कालेज में पढ़ाती हैं, वहीं के एक प्राध्यापक निरंजन से.’’

‘‘यह तो कमाल हो गया. क्या उन में वे सभी बातें हैं, जो सोनाली को चाहिए थीं?’’

‘‘क्या पता. अब तुम जल्दी से घर आ जाओ. निरंजनजी हमारे घर आ रहे हैं. जानते हो, दीदी का उन से कुछ चक्कर चल रहा था. शायद इसीलिए उन्होंने इतने लड़कों को नापसंद कर दिया. खैर, मैं ने सोचा कि यही मौका है कि हम भी अपने प्यार की बात जगजाहिर कर दें. तो आ रहे हो न?’’

‘‘आ रहा हूं जानेमन, तुरंत आ रहा हूं,’’ प्रणय ने चहकते हुए जवाब दिया.

सफर अनजाना मैंसिविल सर्विसेज की परीक्षा देने पटना गई थी. परीक्षा खत्म होने के बाद मेरे मातापिता हजारीबाग चले गए और मैं अपनी बहन के साथ वापस दिल्ली आ रही थी. हमारा टिकट तूफान मेल का था.

इस ट्रेन से दिल्ली तक का सफर 24 घंटे का है. दरअसल, हम ने जिसे टिकट लेने भेजा था, उस ने गलत टिकट ले लिया. स्लीपर क्लास की 2 टिकटें हमारे पास थीं. मैं अपनी बहन के साथ एसी कोच में बैठ गई और टीटीई का इंतजार करने लगी.

उस ट्रेन में मात्र एक ही एसी कोच था. ट्रेन चलने के डेढ़ घंटे बाद टीटीई के आने पर मैं ने उन्हें अपनी समस्या बता कर एसी कोच में 2 टिकट देने को कहा.

इत्तफाक से 4 सीटें खाली थीं, जिस के कारण हमें आसानी से टिकट मिल गए. टीटीई ने स्लीपर के टिकटों का पैसा काट कर मुझे 1,140 रुपए का टिकट दिया.

मैं ने पैसे देने के लिए जब पर्स ढूंढ़ा तो मुझे वह कहीं नहीं मिला. तभी मेरी मम्मी का फोन आ गया.

मम्मी ने कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारा पर्स मेरे पास ही रह गया.’’ हम दोनों बहनों के पास कुल मिला कर 1,400 रुपए ही थे, जिस में कि एक 500 रुपए का नोट फटा हुआ था, जिसे लेने से टीटीई ने मना कर दिया.

टीटीई ने कहा, ‘‘आप को स्लीपर कोच में जाना पड़ेगा.’’

तभी एक लड़का, जो हमारी बातें सुन रहा था, ने तुरंत आ कर टीटीई को 500 रुपए का नोट दे दिया और मुझ से वह फटा नोट ले लिया. मैं ने सोचा कि वह शायद कोई जानपहचान का है, जिसे मैं नहीं पहचान रही हूं, लेकिन बाद में बात करने पर पता चला कि हम दोनों एकदूसरे से अनजान थे. मैं ने उस लड़के का शुक्रिया अदा किया तब उस ने कहा, ‘‘इंसान ही इंसान के काम आता है. जरूरत पड़ने पर आप भी किसी की मदद कर दीजिएगा.’’

वह लड़का अगले स्टेशन पर ही उतर गया. आज भी मैं उस घटना को याद कर घबरा जाती हूं कि अगर उस दिन उस अनजान शख्स ने हमारी मदद नहीं की होती तो इतना लंबा सफर तय करना बहुत मुश्किल होता. अब मैं हर सफर पर जाने से पहले अपनी हर चीज संभाल कर रखती हूं ताकि उस दिन की तरह मुझे कोई परेशानी न उठानी पड़े.

Raksha Bandhan:सोनाली की शादी- भाग 1- क्या बहन के लिए प्रणय ढूंढ पाया रिश्ता

दीपाली सुंदर थी, युवा थी. प्रणय भी सजीला था, नौजवान था. दोनों पहलेपहल कालेज की कैंटीन में मिले, आंखें चार हुईं और फिर चोरीछिपे मुलाकातें होने लगीं. दोनों ने उम्रभर साथ निभाने के वादे किए.

प्रणय की पढ़ाई समाप्त हो चुकी थी. वह उच्चशिक्षा के लिए शीघ्र ही अमेरिका जाने वाला था. दीपाली से 2-3 साल दूर रहने की कल्पना से वह बेचैन हो गया. सो, उस ने प्रस्ताव रखा, ‘‘चलो, हम अभी शादी कर लेते हैं.’’

दोनों कालेज की कैंटीन में बैठे हुए थे.

‘‘शादी? उंह, अभी नहीं,’’ दीपाली बोली.

‘‘क्यों नहीं? हमारी शादी में क्या रुकावट है? तुम भी बालिग हो, मैं भी.’’

‘‘तुम समझते नहीं. मेरी बड़ी बहन सोनाली अभी तक कुंआरी बैठी हैं और वे मुझ से 5 साल बड़ी हैं. मेरे मातापिता कहते हैं कि जब तक उस की शादी न हो जाए, मेरी शादी का सवाल ही नहीं उठता.’’

प्रणय सोच में पड़ गया. कुछ क्षण रुक कर बोला, ‘‘अभी तक सोनाली की शादी क्यों नहीं हुई? क्या वे बदसूरत हैं या कोई नुक्स है उन में?’’

दीपाली खिलखिलाई, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, दीदी बहुत सुंदर हैं.’’

‘‘तुम से भी ज्यादा?’’ प्रणय ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘अरे, मैं तो उन के सामने कुछ भी नहीं हूं. दीदी बहुत रूपवती हैं, पढ़ीलिखी हैं, स्मार्ट हैं, कालेज में पढ़ाती हैं. उन के जोड़ का लड़का मिलना मुश्किल हो रहा है. दीदी लड़कों में बहुत मीनमेख निकालती हैं. अब तक बीसियों को मना कर चुकी हैं. मेरी मां तो कभीकभी चिढ़ कर कहती हैं कि पता नहीं, कौन से देश का राजकुमार इसे ब्याहने आएगा.’’

‘‘तब हमारा क्या होगा, प्रिये?’’ प्रणय ने हताश हो कर कहा, ‘‘3 महीने बाद मैं अमेरिका चला जाऊंगा. फिर पता नहीं कब लौटना हो. क्या तुम मेरी जुदाई सह पाओगी? मैं तो तुम्हारे बगैर वहां रहने की सोच भी नहीं सकता.’’

समस्या गंभीर थी, सो, दोनों कुछ क्षण गुमसुम बैठे रहे.

‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि तुम्हारी दीदी कैसा वर चाहती हैं? जरा उन की पसंद का तो पता चले.’’

‘‘ऊंचा, रोबीला, मेधावी, सुसंस्कृत, शिक्षित, सुदर्शन.’’

‘‘अरे बाप रे, इतनी सारी खूबियां एक आदमी में तो मिलने से रहीं. लगता है, तुम्हारी दीदी को द्रौपदी की तरह 5-5 शादियां करनी पड़ेंगी.’’

‘‘देखो जी,’’ दीपाली ने तनिक गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बहन का मजाक मत उड़ाओ, नहीं तो…’’

‘‘खैर, छोड़ो. पर यह तो बताओ कि हमारी समस्या कैसे हल होगी?’’

‘‘वह तुम जानो,’’ दीपाली उठ खड़ी हुई, ‘‘मेरी क्लास है, मैं चलती हूं. वैसे मैं ने मां के कानों में अपनी, तुम्हारी बात डाल दी है. उन्हें तो शायद मना भी लूंगी, पर पिताजी टेढ़ी खीर हैं. वे इस बात पर कभी राजी नहीं होंगे कि सोनाली के पहले मेरी शादी हो जाए.’’

उस के जाने के बाद प्रणय बुझा हुआ सा बैठा रहा. तभी उस के कुछ दोस्त  कैंटीन में आए.

‘‘अरे, देखो, अपना यार तो यहां बैठा है,’’ रसिक लाल ने कहा, ‘‘क्यों मियां मजनूं, आज अकेले कैसे, लैला कहां है? और सूरत पर फटकार क्यों बरस रही है?’’

प्रणय ने उन्हें अपनी समस्या बताई, ‘‘यार, दीपाली की बहन सोनाली को एक वर की तलाश है…और वर भी ऐसावैसा नहीं, किसी राजकुमार से कम नहीं होना चाहिए.’’

‘‘राजकुमार?’’ श्यामल चमक कर बोला, ‘‘गुरु, यदि राजकुमार की दरकार है तो अपन अर्जी दिए देते हैं.’’

‘‘हा…हा…हा…’’ दामोदरन ने हंसते हुए कहा, ‘‘कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है? ये रूखे बाल, ये सूखे गाल, फटेहाल…राजकुमार ऐसे हुआ करते हैं?’’

‘‘अरे, शक्ल का क्या है, अभी उस साबुन से नहा लूंगा. वही जिस का आएदिन टीवी पर विज्ञापन आता रहता है. तब तो एकदम तरोताजा लगने लगूंगा. शेष रहे कपड़े, तो एक भड़कीली पोशाक किराए पर ले लूंगा. अगर चाहो तो ताज और तलवार भी.’’

‘‘यार, बोर मत कर,’’ प्रणय ने कहा, ‘‘यहां मेरी जान पर बनी है और तुम लोगों को मजाक सूझ रहा है.’’

‘‘यार,’’ रसिक लाल ने कहा, ‘‘हमारे ताड़देव के इलाके में एक ‘मैरिज ब्यूरो’ खुला है, नाम है, ‘मनपसंद विवाह संस्था.’ ब्यूरो वालों ने अब तक सैकड़ों शादियां कराई हैं. वहां अर्जी दे दो, अपनी जरूरत बता दो, लड़का वे मुहैया करा देंगे.’’

‘‘यह हुई न बात,’’ प्रणय खुशी से उछल पड़ा, ‘‘झटपट वहां का पता बता. लेकिन क्या पता, सोनाली के मांबाप वहां पहले ही पहुंच कर नाउम्मीद हो चुके हों?’’

‘‘यह कोईर् जरूरी नहीं. कई लोग अखबार में शादी का विज्ञापन देने और ऐसी संस्थाओं में लड़का तलाशने से कतराते हैं.’’

ताड़देव में एक इमारत की तीसरी मंजिल पर मनपसंद विवाह संस्था का कार्यालय था. प्रणय ने जब अंदर प्रवेश किया तो एक छरहरे बदन के धोतीधारी सज्जन ने चश्मे से उसे घूरा, ‘‘कहिए?’’

‘‘मैं…मैं,’’ प्रणय हकलाने लगा.

‘‘हांहां, कहिए? क्या शादी के लिए वधू चाहिए?’’

‘‘जी नहीं, लड़का.’’

‘‘जी?’’

‘‘मेरा मतलब है, शादी मुझे नहीं करनी. अपनी पत्नी की भावी बहन… नहींनहीं, अपनी भावी पत्नी की बहन के लिए वर की जरूरत है.’’

‘‘ठीक है. यह फौर्म भर दीजिए. अपनी जरूरतें दर्ज कीजिए और लड़की का विवरण भी दीजिए. फोटो लाए हैं? अगर नहीं, तो बाद में दे जाइएगा. हां, फीस के एक हजार रुपए जमा कर दीजिए.’’

‘‘एक हजार?’’

‘‘यह लो, एक हजार तो कुछ भी नहीं हैं. लड़का मिलने पर आप शादी में लाखों खर्च कर डालेंगे कि नहीं? और फिर हम यहां खैरातखाना खोल कर तो नहीं बैठे हैं. हम भी चार पैसे कमाने की गरज से दफ्तर खोले बैठे हैं. यहां का भाड़ा, कर्मचारियों और दरबान का वेतन वगैरह कहां से निकलेगा, बताइए?’’

‘‘ठीक है. मैं कल फोटो और रुपए लेता आऊंगा.’’

‘‘अच्छी बात है. फौर्म भी कल ही भर देना, यह हमारा कार्ड रख लीजिए, मेरा नाम बाबूभाई है.’’

प्रणय जाने लगा तो बाबूभाई ने उसे हिकारत से देख कर मुंह फेर लिया. ‘हुंह,’ वह बुदबुदाया, ‘चले आते हैं खालीपीली टाइम खोटा करने के लिए.’

प्रणय दफ्तर से बाहर निकल कर सोचने लगा, ‘अगर एक हजार रुपए भरने पर भी काम न बना तो यह रकम पानी में गई, समझो. उंह, हटाओ, मुझे सोनाली की शादी से क्या लेनादेना है, भले शादी करे या जन्मभर कुंआरी रहे, मेरी बला से.’

अचानक लिफ्ट का द्वार खुला और उस में से एक नौजवान निकल कर सधे कदमों से चलता ‘मनपसंद’ के दफ्तर में दाखिल हुआ. प्रणय उसे घूरता रहा, अरे, यह कौन था, कोई हीरो या किसी रियासत का राजकुमार. वाह, क्या चेहरामोहरा था, क्या चालढाल थी, ऐसे ही वर की तो मुझे तलाश है.’

वह वहीं गलियारे में चहलकदमी करता रहा. कुछ देर बाद वह युवक दफ्तर से निकला तो प्रणय ने उसे टोका, ‘‘सुनिए.’’

युवक मुड़ा, ‘‘जी, कहिए?’’

प्रणय बोला, ‘‘बुरा न मानें, तो एक बात पूछूं? आप इस मनपसंद संस्था में वधू के लिए अरजी देने गए थे?’’

‘‘आप का अंदाजा सही है. मुझे शादी के लिए एक लड़की की खोज है.’’

‘‘यदि आप के पास थोड़ा समय हो तो चलिए, पास के होटल में चाय पी जाए. मेरी निगाह में एक अति उत्तम कन्या है.’’

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