Mother’s Day 2025 : रिश्तों की कसौटी

Mother’s Day 2025 : ‘‘अंकल, मम्मी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई क्या?’’ मां के कमरे से डाक्टर को निकलते देख सुरभी ने पूछा. ‘‘पापा से जल्दी ही लौट आने को कहो. मालतीजी को इस समय तुम सभी का साथ चाहिए,’’ डा. आशुतोष ने सुरभी की बातों को अनसुना करते हुए कहा.

डा. आशुतोष के जाने के बाद सुरभी थकीहारी सी लौन में पड़ी कुरसी पर बैठ गई. 2 साल पहले ही पता चला था कि मां को कैंसर है. डाक्टर ने एक तरह से उन के जीने की अवधि तय कर दी थी. पापा ने भी उन की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मां को ले कर 3-4 बार अमेरिका भी हो आए थे और अब वहीं के डाक्टर के निर्देशानुसार मुंबई के जानेमाने कैंसर विशेषज्ञ डा. आशुतोष की देखरेख में उन का इलाज चल रहा था. अब तो मां ने कालेज जाना भी बंद कर दिया था.

‘‘दीदी, चाय,’’ कम्मो की आवाज से सुरभी अपने खयालों से वापस लौटी. ‘‘मम्मी के कमरे में चाय ले चलो. मैं वहीं आ रही हूं,’’ उस ने जवाब दिया और फिर आंखें मूंद लीं.

सुरभी इस समय एक अजीब सी परेशानी में फंस कर गहरे दुख में घिरी हुई थी. वह अपने पति शिवम को जरमनी के लिए विदा कर अपने सासससुर की आज्ञा ले कर मां के पास कुछ दिनों के लिए रहने आई थी. 2 दिन पहले स्टोर रूम की सफाई करवाते समय मां की एक पुरानी डायरी सुरभी के हाथ लगी थी, जिस के पन्नों ने उसे मां के दर्द से परिचित कराया.

‘‘ऊपर आ जाओ, दीदी,’’ कम्मो की आवाज ने उसे ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया. सुरभी ने मां के साथ चाय पी और हर बार की तरह उन के साथ ढेरों बातें कीं. इस बार सुरभी के अंदर की उथलपुथल को मालती नहीं जान पाई थीं.

सुरभी चाय पीतेपीते मां के चेहरे को ध्यान से देख रही थी. उस निश्छल हंसी के पीछे वह दुख, जिसे सुरभी ने हमेशा ही मां की बीमारी का हिस्सा समझा था, उस का राज तो उसे 2 दिन पहले ही पता चला था. थोड़ी देर बाद नर्स ने आ कर मां को इंजेक्शन लगाया और आराम करने को कहा तो सुरभी भी नीचे अपने कमरे में आ गई.

रहरह कर सुरभी का मन उसे कोस रहा था. कितना गर्व था उसे अपने व मातापिता के रिश्तों पर, जहां कुछ भी गोपनीय न था. सुरभी के बचपन से ले कर आज तक उस की सभी परेशानियों का हल उस की मां ने ही किया था. चाहे वह परीक्षाओं में पेपर की तैयारी करने की हो या किसी लड़के की दोस्ती की, सभी विषयों पर मालती ने एक अच्छे मित्र की तरह उस का मार्गदर्शन किया और जीवन को अपनी तरह से जीने की पूरी आजादी दी. उस की मित्रमंडली को उन मांबेटी के इस मैत्रिक रिश्ते से ईर्ष्या होती थी.

अपनी बीमारी का पता चलते ही मालती को सुरभी की शादी की जल्दी पड़ गई. परंतु उन्हें इस बात के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. परेश के व्यापारिक मित्र व जानेमाने उद्योगपति ईश्वरनाथ के बेटे शिवम का रिश्ता जब सुरभी के लिए आया तो मालती ने चट मंगनी पट ब्याह कर दिया. सुरभी ने शादी के बाद अपना जर्नलिज्म का कोर्स पूरा किया. ‘‘दीदी, मांजी खाने पर आप का इंतजार कर रही हैं,’’ कम्मो ने कमरे के अंदर झांकते हुए कहा.

खाना खाते समय भी सुरभी का मन मां से बारबार खुल कर बातें करने को कर रहा था, मगर वह चुप ही रही. मां को दवा दे कर सुरभी अपने कमरे में चली आई. ‘कितनी गलत थी मैं. कितना नाज था मुझे अपनी और मां की दोस्ती पर मगर दोस्ती तो हमेशा मां ने ही निभाई, मैं ने आज तक उन के लिए क्या किया? लेकिन इस में शायद थोड़ाबहुत कुसूर हमारी संस्कृति का भी है, जिस ने नवीनता की चादर ओढ़ते हुए समाज को इतनी आजादी तो दे दी थी कि मां चाहे तो अपने बच्चों की राजदार बन सकती है. मगर संतान हमेशा संतान ही रहेगी. उन्हें मातापिता के अतीत में झांकने का कोई हक नहीं है,’ आज सुरभी अपनेआप से ही सबकुछ कहसुन रही थी.

हमारी संस्कृति क्या किसी विवाहिता को यह इजाजत देती है कि वह अपनी पुरानी गोपनीय बातें या प्रेमप्रसंग की चर्चा अपने पति या बच्चों से करे. यदि ऐसा हुआ तो तुरंत ही उसे चरित्रहीन करार दे दिया जाएगा. हां, यह बात अलग है कि वह अपने पति के अतीत को जान कर भी चुप रह सकती है और बच्चों के बिगड़ते चालचलन को भी सब से छिपा कर रख सकती है. सुरभी का हृदय आज तर्क पर तर्क दे रहा था और उस का दिमाग खामोशी से सुन रहा था. सुरभी सोचसोच कर जब बहुत परेशान हो गई तो उस ने कमरे की लाइट बंद कर दी.

मां की वह डायरी पढ़ कर सुरभी तड़प कर रह गई थी. यह सोच कर कि जिन्होंने अपनी सारी उम्र इस घर को, उस के जीवन को सजानेसंवारने में लगा दी, जो हमेशा एक अच्छी पत्नी, मां और उस से भी ऊपर एक मित्र बन कर उस के साथ रहीं, उस स्त्री के मन का एक कोना आज भी गहरे दुख और अपमान की आग में झुलस रहा था. उस डायरी से ही सुरभी को पता चला कि उस की मां यानी मालती की एम.एससी. करते ही सगाई हो गई थी. मालती के पिता ने एक उद्योगपति घराने में बेटी का रिश्ता पक्का किया था. लड़के का नाम अमित साहनी था. ऊंची कद- काठी, गोरा रंग, रोबदार व्यक्तित्व का मालिक था अमित. मालती पहली ही नजर में अमित को दिल दे बैठी थीं. शादी अगले साल होनी थी. इसलिए मालती ने पीएच.डी. करने की सोची तो अमित ने भी हामी भर दी.

अमित का परिवार दिल्ली में था. फिर भी वह हर सप्ताह मालती से मिलने आगरा चला आता. मगर ठहरता गेस्ट हाउस में ही था. उन की इन मुलाकातों में परिवार की रजामंदी भी शामिल थी, इसलिए उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. पर मालती ने इस प्यार को एक सीमा रेखा में बांधे रखा, जिसे अमित ने भी कभी तोड़ने की कोशिश नहीं की. मालती की परवरिश उन के पिता, बूआ व दादाजी ने की थी. उन की मां तो 2 साल की उम्र में ही उन्हें छोड़ कर मुंबई चली गई थीं. उस के बाद किसी ने मां की खोजखबर नहीं ली. मालती को भी मां के बारे में कुछ भी पूछने की इजाजत नहीं थी. बूआजी के प्यार ने उन्हें कभी मां की याद नहीं आने दी.

बड़ी होने पर मालती ने स्वयं से जीवनभर एक अच्छी और आदर्श पत्नी व मां बन कर रहने का वादा किया था, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया था. उन की शादी से पहले की दीवाली आई. मालती के ससुराल वालों की ओर से ढेरों उपहार खुद अमित ले कर आया था. अमित ने अपनी तरफ से मालती को रत्नजडि़त सोने की अंगूठी दी थी. कितना इतरा रही थीं मालती अपनेआप पर. बदले में पिताजी ने भी अमित को अपने स्नेह और शगुन से सिर से पांव तक तौल दिया.

दोपहर के खाने के बाद बूआजी के साथ घर के सामने वाले बगीचे में अमित और मालती बैठे गपशप कर रहे थे. इतने में उन के चौकीदार ने एक बड़ा सा पैकेट और रसीद ला कर बूआजी को थमा दी.

रसीद पर नजर पड़ते ही बूआ खीजती हुई बोलीं, ‘2 महीने पहले कुछ पुराने अलबम दिए थे, अब जा कर स्टूडियो वालों को इन्हें चमका कर भेजने की याद आई है,’ और पैसे लेने वे घर के अंदर चली गईं. ‘लो अमित, तब तक हमारे घर की कुछ पुरानी यादों में तुम भी शामिल हो जाओ,’ कह कर मालती ने एक अलबम अमित की ओर बढ़ा दिया और एक खुद देखने लगीं.

संयोग से मालती के बचपन की फोटो वाला अलबम अमित के हाथ लगा था, जिस में हर एक तसवीर को देख कर वह मालती को चिढ़ाचिढ़ा कर मजे ले रहा था. अचानक एक तसवीर पर जा कर उस की नजर ठहर गई. ‘यह कौन है, मालती, जिस की गोद में तुम बैठी हो?’ अमित जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा था.

‘यह मेरी मां हैं. तुम्हें तो पता ही है कि ये हमारे साथ नहीं रहतीं. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो? क्या तुम इन्हें जानते हो?’ मालती ने उत्सुकता से पूछा. ‘नहीं, बस ऐसे ही पूछ लिया,’ अमित ने कहा.

‘ये हम सब को छोड़ कर वर्षों पहले ही मुंबई चली गई थीं,’ यह स्वर बूआजी का था. बात वहीं खत्म हो गई थी. शाम को अमित सब से विदा ले कर दिल्ली चला गया.

इतना पढ़ने के बाद सुरभी ने देखा कि डायरी के कई पन्ने खाली थे. जैसे उदास हों. फिर अचानक एक दिन अमित साहनी के पिता का माफी भरा फोन आया कि यह शादी नहीं हो सकती. सभी को जैसे सांप सूंघ गया. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. अमित 2 सप्ताह के लिए बिजनेस का बहाना कर जापान चला गया. इधरउधर की खूब बातें हुईं पर बात वहीं की वहीं रही. एक तरफ अमित के घर वाले जहां शर्मिंदा थे वहीं दूसरी तरफ मालती के घर वाले क्रोधित व अपमानित. लाख चाह कर भी मालती अमित से संपर्क न बना पाईं और न ही इस धोखे का कारण जान पाईं.

जगहंसाई ने पिता को तोड़ डाला. 5 महीने तक बिस्तर पर पड़े रहे, फिर चल बसे. मालती के लिए यह दूसरा बड़ा आघात था. उन की पढ़ाई बीच में छूट गई. बूआजी ने फिर से मालती को अपने आंचल में समेट लिया. समय बीतता रहा. इस सदमे से उबरने में उसे 2 साल लग गए तो उन्होंने अपनी पीएच.डी. पूरी की. बूआजी ने उन्हें अपना वास्ता दे कर अमित साहनी जैसे ही मुंबई के जानेमाने उद्योगपति के बेटे परेश से उस का विवाह कर दिया.

अब मालती अपना अतीत अपने दिल के एक कोने में दबा कर वर्तमान में जीने लगीं. उन्होंने कालेज में पढ़ाना भी शुरू कर दिया. परेश ने उन्हें सबकुछ दिया. प्यार, सम्मान, धन और सुरभी. सभी सुखों के साथ जीते हुए भी जबतब मालती अपनी उस पुरानी टीस को बूंदबूंद कर डायरी के पन्नों पर लिखती थीं. उन पन्नों में जहां अमित के लिए उस की नफरत साफ झलकती थी, वहीं परेश के लिए अपार स्नेह भी दिखता था. उन्हीं पन्नों में सुरभी ने अपना बचपन पढ़ा.

रात के 3 बजे अचानक सुरभी की आंखें खुल गईं. लेटेलेटे वे मां के बारे में सोच रही थीं. वे उन के उस दुख को बांटना चाहती थीं, पर हिचक रही थीं.

अचानक उस की नजर उस बड़ी सी पोस्टरनुमा तसवीर पर पड़ी जिस में वह अपने मम्मीपापा के साथ खड़ी थी. वह पलंग से उठ कर तसवीर के करीब आ गई. काफी देर तक मां का चेहरा यों ही निहारती रही. फिर थोड़ी देर बाद इत्मीनान से वह पलंग पर आ बैठी. उस ने एक फैसला कर लिया था. सुबह 6 बजे ही उस ने पापा को फोन लगाया. सुन कर सुरभी आश्वस्त हो गई कि पापा के लौटने में सप्ताह भर बाकी है. वह पापा की गैरमौजूदगी में ही अपनी योजना को अंजाम देना चाहती थी.

उस दिन वह दिल्ली में रह रहे दूसरे पत्रकार मित्रों से फोन पर बातें करती रही. दोपहर तक उसे यह सूचना मिल गई कि अमित साहनी इस समय दिल्ली में अपने पुश्तैनी मकान में हैं. शाम को मां को बताया कि दिल्ली में उस की एक पुरानी सहेली एक डाक्युमेंटरी फिल्म तैयार कर रही है और इस फिल्म निर्माण का अनुभव वह भी लेना चाहती है. मां ने हमेशा की तरह हामी भर दी. सुरभी नर्स और कम्मो को कुछ हिदायतें दे कर दिल्ली चली गई.

अब समस्या थी अमित साहनी जैसी बड़ी हस्ती से मुलाकात की. दोस्तों की मदद से उन तक पहुचंने का समय उस के पास नहीं था, इसलिए उस ने योजना के अनुसार अपने ससुर ईश्वरनाथ से अपनी ही एक दोस्त का नाम ले कर अमित साहनी से मुलाकात का समय फिक्स कराया. ईश्वरनाथ के लिए यह कोई बड़ी बात न थी. अगले दिन सुबह 10 बजे का वक्त सुरभी को दिया गया. आज ऐसे वक्त में पत्रकारिता का कोर्स उस के काम आ रहा था.

खैर, मां की नफरत से मिलने के लिए उस ने खुद को पूरी तरह से तैयार कर लिया. अगले दिन पूरी जांचपड़ताल के बाद सुरभी ठीक 10 बजे अमित साहनी के सामने थी. वे इस उम्र में भी बहुत तंदुरुस्त और आकर्षक थे. पोतापोती व पत्नी भी उन के साथ थे.

परिवार सहित उन की कुछ तसवीरें लेने के बाद सुरभी ने उन से कुछ औपचारिक प्रश्न पूछे पर असल मुद्दे पर न आ सकी, क्योंकि उन की पत्नी भी कुछ दूरी पर बैठी थीं. सुरभी इस के लिए भी तैयार हो कर आई थी. उस ने अपनी आटोग्राफ बुक अमित साहनी की ओर बढ़ा दी. अमित साहनी ने जैसे ही चश्मा लगा कर पेन पकड़ा, उन की नजर मालती की पुरानी तसवीर पर पड़ी. उस के नीचे लिखा था, ‘‘मैं मालतीजी की बेटी हूं और मेरा आप से मिलना बहुत जरूरी है.’’

पढ़ते ही अमित का हाथ रुक गया. उन्होंने प्यार भरी एक भरपूर नजर सुरभी पर डाली और बुक में कुछ लिख कर बुक सुरभी की ओर बढ़ा दी. फिर चश्मा उतार कर पत्नी से आंख बचा कर अपनी नम आंखों को पोंछा.

सुरभी ने पढ़ा, लिखा था : ‘जीती रहो, अपना नंबर दे जाओ.’ पढ़ते ही सुरभी ने पर्स में से अपना कार्ड उन्हें थमा दिया और चली गई.

फोन से उस का पता मालूम कर तड़के साढ़े 5 बजे ही अमित साहनी सिर पर मफलर डाले सुरभी के सामने थे. ‘‘सुबह की सैर का यही 1 घंटा है जब मैं नितांत अकेला रहता हूं,’’ उन्होंने अंदर आते हुए कहा.

सुरभी उन्हें इस तरह देख आश्चर्य में तो जरूर थी, पर जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘सर, समय बहुत कम है. इसलिए सीधी बात करना चाहती हूं.’’ ‘‘मुझे भी तुम से यही कहना है,’’ अमित भी उसी लहजे में बोले.

तब तक वेटर चाय रख गया. ‘‘मेरी मम्मी आप की ही जबान से कुछ जानना चाहती हैं,’’ गंभीरता से सुरभी ने कहा.

सुन कर अमित साहनी की नजरें झुक गईं. ‘‘आप मेरे साथ कब चल रहे हैं मां से मिलने?’’ बिना कुछ सोचे सुरभी ने अगला प्रश्न किया.

‘‘अगर मैं तुम्हारे साथ चलने से मना कर दूं तो?’’ अमित साहनी ने सख्ती से पूछा. ‘‘मैं इस से ज्यादा आप से उम्मीद भी नहीं करती, मगर इनसानियत के नाते ही सही, अगर आप उन का जरा सा भी सम्मान करते हैं तो उन से जरूर मिलिएगा. वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं,’’ कहतेकहते नफरत और दुख से सुरभी की आंखें भर आईं.

‘‘क्या हुआ मालती को?’’ चाय का कप मेज पर रख कर चौंकते हुए अमित ने पूछा. ‘‘उन्हें कैंसर है और पता नहीं अब कितने दिन की हैं…’’ सुरभी भरे गले से बोल गई.

‘‘ओह, सौरी बेटा, तुम जाओ, मैं जल्दी ही मुंबई आऊंगा,’’ अमित साहनी धीरे से बोले और सुरभी से उस के घर का पता ले कर चले गए. दोपहर को सुरभी मां के पास पहुंच गई.

‘‘कैसी रही तेरी फिल्म?’’ मां ने पूछा. ‘‘अभी पूरी नहीं हुई मम्मी, पर वहां अच्छा लगा,’’ कह कर सुरभी मां के गले लग गई.

‘‘दीदी, कल रात मांजी खुद उठ कर अपने स्टोर रूम में गई थीं. लग रहा था जैसे कुछ ढूंढ़ रही हों. काफी परेशान लग रही थीं,’’ कम्मो ने सीढि़यां उतरते हुए कहा. थोड़ी देर बाद मां से आंख बचा कर उस ने उन की डायरी स्टोर रूम में ही रख दी.

उसी रात सुरभी को अमित साहनी का फोन आया कि वह कल साढ़े 11 बजे की फ्लाइट से मुंबई आ रहे हैं. सुरभी को मां की डायरी का हर वह पन्ना याद आ रहा था जिस में लिखा था कि काश, मृत्यु से पहले एक बार अमित उस के सवालों के जवाब दे जाता. कल का दिन मां की जिंदगी का अहम दिन बनने जा रहा था. यही सोचते हुए सुरभी की आंख लग गई. अगले दिन उस ने नर्स से दवा आदि के बारे में समझ कर उसे भी रात को आने को बोल दिया.

करीब 1 बजे अमित साहनी उन के घर पहुंचे. सुरभी ने हाथ जोड़ कर उन का अभिवादन किया तो उन्होंने ढेरोें आशीर्वाद दे डाले. ‘‘आप यहीं बैठिए, मैं मां को बता कर आती हूं. एक विनती है, हमारी मुलाकात का मां को पता न चले. शायद बेटी के आगे वे कमजोर पड़ जाएं,’’ सुरभी ने कहा और ऊपर चली गई.

‘‘मम्मी, आप से कोई मिलने आया है,’’ उस ने अनजान बनते हुए कहा. ‘‘कौन है?’’ मां ने सूप का बाउल कम्मो को पकड़ाते हुए पूछा.

‘‘कोई मिस्टर अमित साहनी नाम के सज्जन हैं. कह रहे हैं, दिल्ली से आए हैं,’’ सुरभी वैसे ही अनजान बनी रही. ‘‘क…क…कौन आया है?’’ मां के शब्दों में एक शक्ति सी आ गई थी.

‘‘ऐसा करती हूं आप यहीं रहिए. उन्हें ही ऊपर बुला लेते हैं,’’ मां के चेहरे पर आए भाव सुरभी से देखे नहीं जा रहे थे. वह जल्दी से कह कर बाहर आ गई.

मालती कुछ भी सोचने की हालत में नहीं थीं. यह वह मुलाकात थी जिस के बारे में उन्होंने हर दिन सोचा था. थोड़ी देर में सुरभी के पीछेपीछे अमित साहनी कमरे में दाखिल हुए, मालती के पसंदीदा पीले गुलाबों के बुके के साथ. मालती का पूरा अस्तित्व कांप रहा था. फिर भी उन्होंने अमित का अभिवादन किया.

सुरभी इस समय की मां की मानसिक अवस्था को अच्छी तरह समझ रही थी. वह आज मां को खुल कर बात करने का मौका देना चाहती थी, इसलिए डा. आशुतोष के पास उन की कुछ रिपोर्ट्स लेने के बहाने वह घर से बाहर चली गई. ‘‘कितने बेशर्म हो तुम जो इस तरह से मेरे सामने आ गए?’’ न चाहते हुए भी मालती क्रोध से चीख उठीं.

‘‘कैसी हो, मालती?’’ उस की बातों पर ध्यान न देते हुए अमित ने पूछा और पास के सोफे पर बैठ गए. ‘‘अभी तक जिंदा हूं,’’ मालती का क्रोध उफान पर था. उन का मन तो कर रहा था कि जा कर अमित का मुंह नोच लें.

इस के विपरीत अमित शांत बैठे थे. शायद वे भी चाहते थे कि मालती के अंदर का भरा क्रोध आज पूरी तरह से निकल जाए. ‘‘होटल ताज में ईश्वरनाथजी से मुलाकात हुई थी. उन्हीं से तुम्हारे बारे में पता चला. तभी से मन बारबार तुम से मिलने को कर रहा था,’’ अमित ने सुरभी के सिखाए शब्द दोहरा दिए. परंतु यह स्वयं उस के दिल की बात भी थी.

‘‘मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया, अमित?’’ अपलक अमित को देख रही मालती ने उन की बातों को अनसुना कर अपनी बात रखी. इतने में कम्मो चाय और नाश्ता रख गई.

‘‘तुम्हें याद है वह दोपहरी जब मैं ने एक तसवीर के विषय में तुम से पूछा था और तुम ने उन्हें अपनी मां बताया था?’’ अमित ने मालती को पुरानी बातें याद दिलाईं.

मालती यों ही खामोश बैठी रहीं तो अमित ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘उस तसवीर को मैं तुम सब से छिपा कर एक शक दूर करने के लिए अपने साथ दिल्ली ले गया था. मेरा शक सही निकला था. यह वृंदा यानी तुम्हारी मां वही औरत थी जो दिल्ली में अपने पार्टनर के साथ एक मशहूर ब्यूटीपार्लर और मसाज सेंटर चलाती थी. इस से पहले वह यहीं मुंबई में मौडलिंग करती थी. उस का नया नाम वैंडी था.’’ इस के बाद अमित ने अपनी चाय बनाई और मालती की भी.

उस ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘उस मसाज सेंटर की आड़ में ड्रग्स की बिक्री, वेश्यावृत्ति जैसे धंधे होते थे और समाज के उच्च तबके के लोग वहां के ग्राहक थे.’’ ‘‘ओह, तो यह बात थी. पर इस में मेरी क्या गलती थी?’’ रोते हुए मालती ने पूछा.

‘‘जब मैं ने एम.बी.ए. में नयानया दाखिला लिया था तब मेरे दोस्तों में से कुछ लड़के भी वहां के ग्राहक थे. एक बार हम दोस्तों ने दक्षिण भारत घूमने का 7 दिन का कार्यक्रम बनाया और हम सभी इस बात से बहुत रोमांचित थे कि उस मसाज सेंटर से हम लोगों ने जो 2 टौप की काल गर्ल्स बुक कराई थीं उन में से एक वैंडी भी थी जिसे हाई प्रोफाइल ग्राहकों के बीच ‘पुरानी शराब’ कह कर बुलाया जाता था. उस की उम्र उस के व्यापार के आड़े नहीं आई थी,’’ अमित ने अपनी बात जारी रखी. उसे अब मालती के सवाल भी सुनाई नहीं दे रहे थे. चाय का कप मेज पर रखते हुए अमित ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘मेरी परवरिश ने मेरे कदम जरूर बहका दिए थे मालती, पर मैं इतना भी नीचे नहीं गिरा था कि जिस स्त्री के साथ 7 दिन बिताए थे, उसी की मासूम और अनजान बेटी को पत्नी बना कर उस के साथ जिंदगी बिताता? मेरा विश्वास करो मालती, यह घटना तुम्हारे मिलने से पहले की है. मैं तुम से बहुत प्यार करता था. मुझे अपने परिवार की बदनामी का भी डर था, इसलिए तुम से बिना कुछ कहेसुने दूर हो गया,’’ कह कर अमित ने अपना सिर सोफे पर टिका दिया.

आज बरसों का बोझ उन के मन से हट गया था. मालती भी अब लेट गई थीं. वे अभी भी खामोश थीं. थोड़ी देर बाद अमित चले गए. उन के जाने के बाद मालती बहुत देर तक रोती रहीं.

रात के खाने पर जब सुरभी ने अमित के बारे में पूछा तो उन्होंने उसे पुराना पारिवारिक मित्र बताया. लगभग 3 महीने बाद मालती चल बसीं. परंतु इतने समय उन के अंदर की खुशी को सभी ने महसूस किया था. उन के मृत चेहरे पर भी सुरभी ने गहरी संतुष्टि भरी मुसकान देखी थी. मां की तेरहवीं वाले दिन अचानक सुरभी को उस डायरी की याद आई. उस में लिखा था : मुझे क्षमा कर देना अमित, तुम ने अपने साथसाथ मेरे परिवार की इज्जत भी रख ली थी. मैं पूर्ण रूप से तृप्त हूं. मेरी सारी प्यास बुझ गई.

पढ़ते ही सुरभी ने डायरी सीने से लगा ली. उस में उसे मां की गरमाहट महसूस हुई थी. आज उसे स्वयं पर गर्व था क्योंकि उस ने सही माने में मां के प्रति अपनी दोस्ती का फर्ज जो अदा किया था.

Mother’s Day 2025 : फैसला – बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

Mother’s Day 2025 : मेरे सामने आज ऐसी समस्या आ खड़ी हुई है, जिस का हल मुझे अभी  निकालना है. मम्मी मेरे कमरे में कई बार झांक कर जा चुकी हैं, लेकिन मैं अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई हूं. अगर मैं ने जल्दी अपना फैसला न सुनाया तो मम्मी आ कर कहेंगी, ‘नेहा, बेटे तुम ने क्या सोचा. देखो, वे लोग अमेरिका से आ कर हमारे फैसले के इंतजार में बैठे हुए हैं. वे चाहते हैं तुम समीर से शादी के लिए हां कर दो.’

हम एक बार रिश्ता खत्म कर चुके हैं, फिर दोबारा उसे जोड़ने की जिद क्यों. मम्मी सोचती हैं कि समीर अच्छा लड़का है, अमेरिका में जमाजमाया बिजनैस है. वे यह क्यों भूल जाती हैं कि समीर की मम्मी ने हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर उन्हें कैसी खरीखोटी सुनाई थी. क्या हम यह भी भूल गए हैं कि समीर के पापा होटल का बिल चुकाए बिना अमेरिका लौट गए थे और बिल पापा को चुकाना पड़ा था. इस तरह की  गलती को कोई कैसे अनदेखा कर सकता है. फिर इस बात की क्या गारंटी है कि आगे ऐसा कुछ नहीं दोहराया जाएगा. अगर कभी ऐसा हुआ तो उस का अंजाम क्या होगा? मैं कहीं की नहीं रहूंगी.

अपनी बेटी को अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मांबाप समीर को बेटी दे देंगे. वरना तब तक मैं राहुल को खो चुकी होउंगी. मैं राहुल को खोना नहीं चाहती, मां.

पिछले साल इन्हीं दिनों समीर से मेरी सगाई हुई थी. मेरी एक आंटी अमेरिका से आईर् हुई थीं, उन्होंने यह रिश्ता बताया था. जब भी मेरी शादी की बात चलती, मम्मीपापा आह भर कर कहते, ‘काश, हमारी बेटी की शादी भी इंगलैंड या अमेरिका में हो जाती.’ पड़ोस में किसी के बेटे की शादी इंगलैंड से हुई है तो किसी की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है. मेरे मम्मीपापा भी चाहते थे कि उन की बेटी भी विदेश में सैटल हो जाए, तब वे भी गर्व से कह सकेंगे कि उन की बेटी अमेरिका में रहती है, बहुत बड़ा बंगला है, बड़ीबड़ी गाडि़यां हैं और तो और घर में स्विमिंग पूल भी है.

बस, इसी लालच के चलते जैसे ही अमेरिका में रहने वाले लड़के का औफर आंटी ने दिया, मम्मी इस रिश्ते के लिए आंटी पर जोर डालने लगीं. आंटी ने कहा कि जब वे अमेरिका लौटेंगी, तब बात कर लेंगी. लेकिन मम्मी को सब्र कहां. आंटी से जिद कर के अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग इंडिया आने वाले थे, लेकिन अभी उन का कार्यक्रम रीशैड्यूल हो रहा है. 2 दिन में आने की डेट बता देंगे.

मम्मी ने 2 दिन बाद ही फिर आंटी से अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग 21 तारीख को आ रहे हैं. इंडिया में 2 हफ्ते तक रुकेंगे. मम्मी ने गिनती कर ली, आज 7 तारीख है, 2 हफ्ते बाद इंडिया आ जाएंगे. मम्मी ने आंटी से कह दिया कि यहां बात पक्की हो जाए तो नेहा अमेरिका शिफ्ट हो जाएगी. हम भी सालछह महीने में चक्कर लगा लिया करेंगे.

तनवी आंटी ने बताया कि समीर अच्छा लड़का है. उन का वहां सालों से जमा हुआ बिजनैस है. शहर में 4 बड़े स्टोर हैं. आंटी ने बढ़चढ़ कर उन की तारीफ कर दी. मम्मी को यह सुन कर अच्छा लगा.

‘यहीं बात पक्की हो जाए तो नेहा की तरफ से हम निश्चिंत हो जाएंगे,’ मम्मी ने आंटी से कह दिया, ‘जैसे ही वे लोग इंडिया आएं, अगले दिन हमारे यहां चाय पर बुला लेना. नेहा को देख कर कोई कैसे मना कर सकता है. रंगरूप में कोईर् कमी नहीं, गोरीचिट्टी, स्लिम और स्मार्ट. हम शादी में कोई कसर छोड़ने वाले नहीं. फाइव स्टार होटल में शादी करेंगे. लेनदेन में भी कोई कमी नहीं रखेंगे.’

जिस दिन वे लोग इंडिया पहुंचे, आंटी ने अगले ही दिन उन्हें चाय पर बुला लिया. मम्मी ने मुझे अच्छी तरह तैयार होने के लिए पहले से ही कह दिया था. आंटी के कहने पर समीर और उस के मम्मीपापा हमारे घर पहुंचे. आंटी ने उन का परिचय करवाया, ‘मीट मिसेज शिखा, मिस्टर हरीश और इन का बेटा समीर.’

समीर की मम्मी ने आंटी को झट टोक दिया, ‘समीर नहीं तनवी, सैमी, इसे हिंदुस्तानी नाम बिलकुल पसंद नहीं.’

‘सैमी… औल राइट,’ शिखा ने जिस सख्ती से विरोध किया, तनवी आंटी ने उतनी ही सहजता से उन की बात मान ली.

‘सौरी मिसेज शिखा, मैं खास व्यक्ति से तो इंट्रोड्यूस करवाना भूल ही गई,‘ आंटी मुझे आते देख उठ खड़ी हुईं. ‘मीट द मोस्ट चार्मिंग गर्ल, नेहा.’ आंटी ने मेरी कमर में हाथ डाल कर बड़े दुलार से उन के आगे मुझे पेश कर दिया, जैसे मैं कोई बड़ी नायाब चीज हूं.

‘नेहा बड़ी होनहार लड़की है, वैरी स्मार्ट, ब्यूटीफुल ऐंड औफकौर्स वैरी वैल ऐजुकेटेड’, आंटी ने मेरे गुणों का बखान कर दिया.

आंटी हमारे बारे में अच्छी बातें बता कर उन्हें प्रभावित कर रही थीं. ‘मिसेज शिखा, नेहा अच्छे संस्कारों वाली लड़की है, इसे अपनी बहू बना लोगी तो हमेशा मेरी आभारी रहोगी.’

आंटी ने उन्हें आश्वस्त कर दिया. शादी में किसी प्रकार की कमी नहीं रहेगी. फाइव स्टार होटल में शादी होगी… वगैरा…वगैरा…

समीर की मम्मी स्वभाव से घमंडी लग रही थीं, अमेरिका में रहती हैं न, शायद इसीलिए. समीर के पापा ज्यादा नहीं बोले, बस पत्नी की ओर देखते रहे, जैसे कहना चाहते हों, ‘श्रीमतीजी, अब बोलिए.’

समीर की मम्मी ने जब सारे घर का अच्छी तरह मुआयना कर लिया, तब मेरी मम्मी से कहा, ‘देखिए, मिसेज रजनी, हमारा इंडिया आने का मकसद समीर के लिए लड़की देखने का नहीं था. तनवी ने जब यह प्रपोजल दिया तो हम ने सोचा, देख लेते हैं. उस के कहने पर हम आप के घर आ गए. नेहा हमें पसंद है, लेकिन हम आप को जल्दी में कोई जवाब नहीं दे सकेंगे. हमें एक हफ्ते का समय चाहिए, वी विल टेक सम टाइम टु डिसाइड, आई होप यू कैन अंडरस्टैंड,’ कहते हुए वे खड़ी हो गईं और साथ ही समीर और उस के पापा भी खड़े हो गए.

‘ओके, मिसेज रजनी, नाइस टु मीट यू औल. तनवी तुम अमेरिका कब लौट रही हो?

‘अभी कुछ दिन यहीं इंडिया में हूं. मेरे भतीजे की शादी है. यहां बहुत से रिश्तेदार हैं. सब से मिलना है. आप अचानक उठ क्यों गए, बैठिए न. चाय तो लीजिए प्लीज,’ आंटी ने कहा.

‘नहीं तनवी, अब चलेंगे. तुम्हारे कहने पर आ गए… ओके…‘ बायबाय कर के वे तीनों बाहर निकल गए.

‘तनवी, लगता है उन्हें बात जमी नहीं. ठीक से चाय भी नहीं पी. मैं ने इतनी अच्छी तैयारी की थी,‘ मेरी मम्मी ने अपनी चिंता जताई.

‘भाभी, आप चिंता न करें,’ शिखा का व्यवहार ही ऐसा है. मैं उन से बात कर के पता लगाऊंगी.

5 दिन गुजर गए, उन की तरफ से कोई खबर नहीं आई. मम्मी आंटी को फोन करने की सोच रही थीं कि तभी आंटी आ पहुंचीं. ‘2 दिन के लिए कानपुर चली गई थी, छोटी बहन के पास. भाभी, मैं अभी मिसेज शिखा से बात कर के आई हूं. कह रही हैं शाम तक बताएंगे.’

शाम तक कोई खबर नहीं आई. रात 9 बजे आंटी का फोन आया. मेरी मम्मी खुशी से उछल पड़ीं. जरूर अच्छी खबर होगी.

‘मिसेज शिखा ने कहा है कि हम सोच रहे हैं.’ आंटी ने बताया, ‘पौजिटिव हैं.’ अगले दिन मैसेज आ गया कि उन्हें रिश्ता मंजूर है.

आंटी ने कहा, ‘जल्दी किसी बड़े होटल में सगाई समारोह करना होगा. आज… या ज्यादा से ज्यादा कल तक.’

अगले ही दिन एक शानदार होटल में बड़ी धूमधाम से समीर के साथ मेरी सगाई हो गई. समीर के परिवार में सभी को बहुत महंगे तोहफे दिए गए. डायमंड की अंगूठियां व महंगी घडि़यों से ले कर डिजाइनर साडि़यां व सूट आदि सभी तोहफे बहुत महंगे थे.

मेरी मम्मी बहुत खुश थीं. पापा को भी सब ठीक लग रहा था. मम्मी की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी. आखिरकार उन की बेटी अब अमेरिका चली जाएगी. वे भी सालछह महीने में एक बार वहां हो आएंगे.

अमेरिका में सैटल्ड लड़के के साथ मेरी सगाई की बधाइयां अभी भी आ ही रही थीं कि अमेरिका लौटने के अगले ही दिन समीर की मम्मी का फोन आ गया, ‘मिसेज रजनी, आप ने जो तोहफे दिए हैं, वे हमारे किस काम के. यहां अमेरिका में कौन पहनेगा इतनी हैवी साडि़यां और डै्रसेज. डायमंड ऐंड गोल्ड ज्वैलरी इज ओके बट वट टु डू विद दीज हैवी सारीज ऐंड सिल्ली ड्रैसेज. ये सब हमारे लिए बेकार हैं. यही पैसे आप ने समझदारी से खर्च किए होते… इट वुड हैव गिवन सम वैल्यू टु अस.’

समीर की मम्मी का ऐसा रूखा व्यवहार देख कर मम्मी ने अपनी गलती मान ली, ‘शिखाजी, हम से गलती हो गई. आप बुरा न मानें. आगे हम ध्यान रखेंगे.’

मम्मी ने स्वीकार कर लिया ताकि वे नाराज न हो जाएं और आगे सावधानी बरतने का विश्वास भी उन्हें दिला दिया. मुझे समीर की मम्मी का व्यवहार और अपनी मम्मी का गलती मान लेना अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं चुप रही.

‘मिसेज रजनी, हम डायमंड ज्वैलरी और वे गिफ्ट जो हमें ठीक लगे, साथ ले आए हैं, बाकी सब वहीं तनवी के पास छोड़ आए हैं. आप मंगवा लेना, शायद आप के किसी काम आ जाएं.’ मिसेज शिखा ने मम्मी को खूब खरीखोटी सुनाई. मम्मी जीजी करती उन की बेतुकी डांट चुपचाप सुनती रहीं.

सगाई के बाद अमेरिका लौट कर समीर की मम्मी का यह पहला फोन था. मम्मी उम्मीद कर रही थीं कि सगाई की रस्म कम वक्त में इतने बढि़या तरीके से करने पर वे उन का थैंक्स कहेंगी और हमारे दिए तोहफों के लिए आभार जताएंगी, लेकिन इतने करीबी और नएनए जुड़े रिश्ते का भी खयाल न रखते हुए उन्होंने जिस तरह मम्मी के साथ व्यवहार किया, उन्हें उस की जरा भी उम्मीद नहीं थी.

कुछ दिन तक मम्मी बहुत परेशान रहीं. पापा को सारी बात न बता कर इतना बताया कि हमारे तोहफे उन्हें पसंद नहीं आए, इसलिए शादी के वक्त हमें ध्यान रखना होगा. रिश्तों की गरिमा को ताक पर रख कर समीर की मम्मी के कड़वे बोलों ने उन्हें चिंता में डाल दिया था.

अपनी चिंता आंटी से शेयर करने के लिए मम्मी ने उन के भाई के घर फोन किया. वहां से पता चला कि वे अमेरिका लौट गई हैं. उन्होंने उसी वक्त आंटी को अमेरिका फोन कर दिया. आंटी ने मम्मी को विश्वास दिलाया, ‘चिंता की कोई बात नहीं. वे उन लोगों से बात कर के हमें वापस फोन करेंगी.‘

सगाई के बाद जब भी समीर से मेरी बात हुई, वह बेहद फीकी रही. न रोमांचक, न रोचक. जब भी मैं ने कुछ पूछा, उस ने हमेशा सधा सा जवाब दे दिया, ‘जब मैं वहां पहुंचूंगी, सब जान लूंगी.’ कई बार तो बात बस हां और ना पर ही खत्म हो जाती. समीर का इस तरह अनमना व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं ने मम्मीपापा को समीर के रूखे व्यवहार के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा. मैं चुप रही. मम्मी के लिए एक और चिंता खड़ी करने से अच्छा है, चुप रहना.

मैं मम्मी को किसी नई चिंता में उलझने से कहां तक बचा पाती, क्योंकि अगले दिन तनवी आंटी का फोन आ गया. उन्होंने जो बताया, उस से हमारा सारा उत्साह फीका पड़ गया.

‘भाभी, यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा. आप जानती हैं अमेरिका में मंदी आने से बिजनैस पर असर पड़ा है और बिजनैस मंदी की वजह से बुरे दौर से गुजर रहा है. वे लोग भी परेशान हैं. मुझे यह भी पता चला है कि वे लोग इंडिया वापस आने की भी सोच रहे हैं.

पिछली बार इंडिया आने का उन का मकसद यहां सही अवसर देखने के साथ समीर के लिए लड़की देखना भी था. उन्होंने नेहा के अलावा और भी 3-4 लड़कियां देखी थीं. मिसेज शिखा ने तब झूठ बोला

था कि वे मेरे कहने पर नेहा को देखने आ गए थे. यहां आ कर जो कुछ मुझे पता चला है, मैं ने आप को बता दिया. अब आप जैसा ठीक समझें.’

तनवी आंटी ने जो बताया, वह मम्मीपापा के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन गया. वे लोग वापस इंडिया लौटने की सोच रहे हैं. नेहा के अलावा उन्होंने और लड़कियां भी देखीं. मिसेज शिखा कह रही थीं, तनवी ने प्रपोजल दिया, इसलिए हम आ गए.

मम्मी अपना गुस्सा समीर की मम्मी पर निकालने लगीं, ‘वाह शिखाजी, डायमंड ज्वैलरी और महंगे तोहफे तो साथ ले गईं. बाकी यहां छोड़ गईं. ऐसा सामान देते जिस की हमें वैल्यू मिलती. वैल्यू की बड़ी पहचान है आप को.’

मेरे पापा पहले ही उन से नाराज बैठे थे. कुछ दिन पहले समीर के पापा ने अमेरिका से फोन कर अपने लिए होटल बुक करवाने के लिए कहा था और होटल का बिल हमारे नाम करवा कर चले गए. अमेरिका लौट कर फोन पर सौरी कह कर अपनेआप को बचा लिया.

कुछ दिन घर में उदासी छाई रही. मम्मीपापा दोनों परेशान थे. मैं भी असमंजस की स्थिति में थी. इसी उधेड़बुन में 3 महीने से ज्यादा निकल गए. इस बीच न उधर से कोई फोन आया, न ही हम ने उन से बातचीत करने की पहल की. जो भी हुआ हम उसे भुलाने की कोशिश में थे कि अचानक तनवी आंटी का अमेरिका से फोन आ गया. आंटी समीर की मम्मी के पास बैठ कर वहीं से फोन कर रही थीं. उन्होंने मम्मी को बताया कि शिखा ने फोन पर उन्हें जो बुराभला कहा था, उस के लिए वे मेरी मम्मी को सौरी कहना चाहती हैं.

आंटी ने फोन समीर की मम्मी को दे दिया, ‘मिसेज रजनी, मैं शिखा, समीर की मम्मी. दैट डे आई वाज इन ए वैरी बैड मूड. मेरा मकसद आप का दिल दुखाने का नहीं था. आई एम रियली सौरी. नेहा हमें बड़ी अच्छी लगी. शी इज ए लवली गर्ल और हम उसे अपनी बहू बनाना चाहते हैं. आई होप यू विल नौट डिसअपौइंट अस. आप मेरी बात मान लीजिए. मैं आप को फिर एक बार सौरी बोल रही हूं’.

‘शिखाजी, आप ऐसा न कहिए, आप को सौरी बोलने की जरूरत नहीं. आप लोग हमें बड़े अच्छे लगे. आप जैसे लोगों से रिश्ता जोड़ने में हमें कोई प्रौब्लम नहीं है. मैं नेहा के पापा से बात कर के आप को…’

समीर की मम्मी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘मिसेज रजनी आप को अपनी बेटी के बारे में फैसला लेने का पूरा हक है. नेहा के पापा आप से क्यों असहमत होने लगे. नाऊ ऐवरीथिंग इज क्लीयर बिटवीन अस. आप जब कहेंगे, हम इंडिया आ जाएंगे. लीजिए, आप तनवी से बात कीजिए,‘ और उन्होंने फोन आंटी को दे दिया.

आंटी फिर उन की वकालत करने लगीं, ‘उन का बिजनैस अब अच्छा चल रहा है. वे लोग 2 और स्टोर खोल रहे हैं. समीर के लिए अलग से घर खरीद लिया है. भाभी, आप जानती हैं अमेरिका में बच्चे बड़े होने पर मांबाप के साथ नहीं रहते. वे अलग रहना पसंद करते हैं, इसलिए समीर शादी के बाद अपने अलग घर में शिफ्ट हो जाएगा.‘

ये सब सुन कर मेरी मम्मी का मन फिर डोलने लगा. अमेरिका सैटल्ड लड़के के साथ मेरे रिश्ते का लालच फिर उन के मन में प्रबल हो उठा.

आंटी ने जैसे ही फोन रखा, मम्मी मेरे पास आ कर बैठ गईं. वे देखना चाहती थीं कि आंटी की बातें सुन कर मुझे कितना अच्छा लगा है. मम्मी चाहती थीं कि मैं समीर से शादी कर के अमेरिका सैटल हो जाऊं. मम्मी की यह चाह कैसे पूरी होगी, मैं नहीं जानती, लेकिन मैं हैरान हूं कि मम्मी हमेशा यह क्यों भूल जाती हैं कि हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर समीर की मम्मी ने उन्हें कैसे फटकारा था और कैसे झूठ बोल कर हम पर रोब जमाने की कोशिश करती रही थीं. तब मेरी मम्मी से कह रही थीं कि तनवी ने प्रपोजल दिया तो हम नेहा को देखने आ गए, जबकि उन्होंने समीर के लिए और भी लड़कियां देखी थीं.

आंटी के फोन के 2 दिन बाद समीर का फोन आया. फोन मैं ने ही उठाया, मम्मी के पूछने पर मैं ने बताया कि समीर का फोन है. समीर का नाम सुनते ही उन की आंखों में चमक आ गई. वे पहले मेरे नजदीक खड़ी रहीं, फिर दूर जा कर हमारी बातें सुनने की कोशिश करती रहीं.

‘समीर का फोन आने की मुझे उम्मीद नहीं थी, लेकिन मैं जानती थी कि मैं उसे कोई भाव देने वाली नहीं थी. मेरे हैलो करने पर जैसे ही उस ने ‘हैलो, मैं समीर… अमेरिका से,’ बोला, मैं ने अपने अंदर भरे आक्रोश को उगलना शुरू कर दिया, ‘ओह समीर… नहीं…नहीं… सैमी… हिंदुस्तानी नाम तो आप को पसंद नहीं. आप सैमी कहते, तब भी मैं पहचान लेती. क्योंकि मेरी आप से सगाई हो चुकी है.

कब से शादी के सपने देख रही हूं, क्यों न देखूं आखिर सगाई के बाद अगला कदम शादी ही है न. मिस्टर सैमी आप रहते अमेरिका में हैं, लेकिन पत्नी हिंदुस्तानी चाहिए क्योंकि वह तेजतर्रार नहीं होती, बड़ों का मानसम्मान करना जानती है, मुश्किलों में साथ निभाती है जबकि अमेरिकी लड़कियां जराजरा सी बात पर तलाक के कागज भेजने की धमकी दे देती हैं.’

‘प्लीज डोंट मिसअंडरस्टैंड मी. वैन वी टौक, आई वाज टैरिबली अपसैट… इनफैक्ट आई वाज इन ए वैरी बैड मूड…’

‘क्या आप अपनी मम्मी की तरह हमेशा बैड मूड में ही रहते हैं. कुछ दिन पहले आप की मम्मी ने इसी बैड मूड के लिए मेरी मम्मी से सौरी कहने के लिए फोन किया था और आज उन के बेटे ने…’

‘आप इतनी नाराज क्यों हो रही हैं…’

‘शायद आज मैं बैड मूड में हूं… इसलिए.’

‘आई एम रियली सौरी. आप जो चाहे मुझे सजा दें. बट…बट प्लीज डोंट स्पौयल…’

‘मिस्टर सैमी, आप और आप की मम्मी दोनों इस रिश्ते को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं. मेरी मम्मी तो आज भी आप की मम्मी के बेहद रूखे और डांटडपट वाले व्यवहार को भूल कर इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार बैठी हैं, लेकिन मिस्टर सैमी अब ऐसा कभी नहीं हो पाएगा.’

‘प्लीज डोंट से दैट. आई विल बी डिसअपौइंटेड…’

‘आप डिसअपौइंट क्यों हो रहे हैं. आप को हिंदुस्तानी लड़की से ही शादी करनी

है, बड़े शौक से करिए. यहां आप कुछ और लड़कियां देख गए थे. चुन लीजिए, उन में से कोई. मेरी मम्मी की तरह अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मातापिता आप को अपनी बेटी देने के लिए तैयार हो जाएंगे.’

‘आई कैन अंडरस्टैंड योर ऐंगर. आई स्वीयर इन फ्यूचर नथिंग लाइक दिस विल हैपन.’

‘आप के स्वीयर करने या सौरी कहने से क्या हमारी तकलीफें कम हो जाएंगी? हाऊ मच वी हैव सफर्ड, यू कांट इमैजिन. मैं दुआ करती हूं कि आप को जल्दी एक हिंदुस्तानी लड़की मिल जाए और आप की मम्मी को उन के दिए गए तोहफों की पूरी वैल्यू न मिलने पर खरीखोटी सुनाने का मौका एक बार फिर मिल जाए,’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

जैसे ही मैं ने फोन रखा, मम्मी गुस्से से घूरती हुई मुझे डांटने लगीं, ‘नेहा

बेटे, यह कैसा तरीका है समीर से बात करने का.’

‘क्यों मम्मा, क्या मैं कहती कि समीरजी कब से हम आप का इंतजार कर रहे थे. आप कब सेहरा बांध कर हमारे घर आओगे. जिन राहों से आप आने वाले थे, उन पर हम ने अब भी फूल बिछा रखे हैं वगैरा…वगैरा… ‘

मम्मी का गुस्सा अब भी बरकरार था, ‘बसबस बेटा, जो तुम ने किया वह ठीक नहीं था. उसे बहुत बुरा लगा होगा.’

‘बुरा लगा हो… जरूर लगे. हमें कोई परवा नहीं. अब हम क्या चाहते हैं, यह समीर की समझ में आ गया होगा. मम्मी आप की बेटी अब अमेरिका जाने वाली नहीं. वह यहीं रहेगी आप के आसपास. अब आप समीर का नाम हमेशा के लिए भूल जाएं. मम्मी, मैं आप को विश्वास दिलाती हूं, राहुल के साथ मेरी जिंदगी बड़े मजे में कटेगी. मैं खुश रहूंगी और आप भी निश्चिंत रहेंगे. आप राहुल को जानती हैं, कालेज के दिनों में वह 2 बार हमारे घर आ चुका है. जब आप उसे देखेंगी, एकदम पहचान लेंगी. कालेज के दिनों से हमारी आपस में खूब जमती थी.’

लगभग 5 साल बाद राहुल से मेरी मुलाकात बड़े अजीब तरीके से हुई. समीर के साथ रिश्ता खत्म होने के बाद मैं ने पापा से जौब करने की अनुमति ले ली थी. जिस कंपनी में मुझे जौब मिली थी, राहुल वहां सीनियर पोस्ट पर था. जौब जौइन करने के पहले दिन जब मैं औफिस में ऐंटर कर रही थी तो उसी वक्त राहुल भी औफिस पहुंच रहा था. गार्ड ने जैसे ही दरवाजा खोला, राहुल ने मुझे पहले अंदर जाने के लिए इशारा किया. मैं ने उस की ओर देखा. मुझे उस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. राहुल ने दोबारा मेरी ओर देखा और हैरानी से बोला, ‘नेहा… मैं राहुल…’

‘ओ, राहुल…, कैसे हो, कहां हो.’

‘ठीक हूं, यहीं तुम्हारे शहर में हूं. इसी कंपनी में जौब कर रहा हूं. तुम ने सोचा, राहुल दुनिया से गया… अभी इतनी जल्दी नहीं है… अभी बहुत कुछ करना है. शादी करनी है, बच्चे होंगे… पापापापा बुलाएंगे… फिर उन के बच्चे…’

इतने सालों बाद मिलने पर भी राहुल सबकुछ इतना सहज कह गया, मुझे हैरानी हुई, लेकिन मैं ने सावधानी बरतते हुए तपाक से कह दिया, ‘तुम नहीं बदलोगे राहुल, उसी तरह मस्तमौला, शरारती.’

‘और बताओ नेहा जौब क्यों, तुम्हें तो वर्किंग वूमन नहीं बनना था, वाए चेंज औफ माइंड?’ राहुल ने पूछा.

इसी तरह बातें करतेकरते हम औफिस में ऐंटर कर गए.

कालेज के दिनों की लाइफ में कितनी बेफिक्री और मौजमस्ती थी. हम एकदूसरे को चाहते थे, ऐसा कुछ नहीं था. राहुल कभी मेरा हाथ थाम लेता, कभी अजीब नहीं लगता. अब 5 साल बाद मिलने पर उस तरह की सहजता इतनी जल्दी नहीं आ पाई, लेकिन धीरेधीरे हम पहले की तरह घुलनेमिलने लगे. कईर् बार वह मुझे अपनी बाइक पर घर ड्रौप कर देता.

पिछले 3-4 महीने में राहुल कई बार हमारे घर चायकौफी पर आया था. हम दोनों कितनी बार रैस्टोरैंट में बैठे गपशप कर चुके थे. एक दिन लंच टाइम में राहुल ने पूछा, ‘क्या आज शाम हम कौफी पीने जा सकते हैं?’

‘हां… क्यों नहीं,’ मैं सोच में पड़ गई. कई बार पहले भी हम जा चुके हैं. आखिर आज क्या कुछ नया है. हम उसी रैस्टोरैंट में जा बैठे जहां आमतौर पर जाया करते थे. वेटर कौफी और सैंडविच टेबल पर रख गया. अभी हम ने कौफी पीनी शुरू नहीं की थी कि राहुल ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया. मुझे हलका कंपन हुआ. पहले कितनी बार राहुल ने मेरा हाथ थामा होगा,  लेकिन कभी ऐसा नहीं लगा, जैसा आज… मुझे लगा हमारे बीच आज कुछ नया घटता जा रहा है, जो पहले से बहुत अलग है.

राहुल कुछ कहना चाहता था, लेकिन नहीं कह सका. कौफी पीने के बाद राहुल ने मुझे घर ड्रौप कर दिया. वह बिना कुछ बोले बाय कर हाथ हिला कर चला गया. अगले दिन औफिस आते समय राहुल की बाइक तेज गति से आती कार से टकरा गई. उसे गंभीर चोटें आईं. उस की सर्जरी हुई और टांग में रौड डाली गई.

एक हफ्ते बाद राहुल को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. जब राहुल औफिस आया  तो उसे देख कर मुझे अच्छा लगा लेकिन उस के हंसमुख चेहरे पर हलकी उदासी देख कर मुझे चिंता भी हुई, ‘राहुल, तुम्हें इतना बुझाबुझा पहले कभी नहीं देखा.’

राहुल की उदासी दूर करने के लिए मैं उस जैसे शरारती अंदाज में उसे ‘बकअप’ करने लगी, ‘राहुल भूल गए, तुम ने कहा था शादी करनी है, बच्चे होंगे, पापापापा बुलाएंगे. फिर उन के बच्चे…’

राहुल का शरारती चेहरा अपने असली रंग में आ गया. चंचल, मौजमस्ती वाला. मुझे लगा राहुल का असली रूप कितना लुभावना है.

राहुल ने चुटकी बजा कर मुझे सचेत किया. वह मेरी ओर देख रहा था… लगातार… उस की आंखों में एक प्रश्न था, जिस का उत्तर वह मुझ से मांग रहा था.

मैं ने ‘हां’ में सिर हिला कर उस के प्रश्न का उत्तर दे दिया. मुझे लगा हमारे बीच नए रिश्ते की नन्ही सी, प्यारी सी कोंपल फूट आई है.

मेरी मम्मी कमरे के आसपास थीं. उन्हें बुला कर मैं ने कह दिया, ‘मैं ने फैसला कर लिया है मम्मी, समीर से कह दो वह यहां किसी उम्मीद से न आए. मैं ने राहुल को अपना बनाने का फैसला कर लिया है, लेकिन अफसोस मम्मी, अब आप यह नहीं कह सकेंगी कि आप की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है और न ही आप सालछह महीने में अपनी बेटी के पास अमेरिका जा पाएंगी.

मेरी शरारत भरी चुटकी मम्मी को पसंद आई कि नहीं, नहीं जानती, लेकिन मेरा फैसला उन्हें अच्छा नहीं लगा.

Hindi Stories Online : ममता का आंगन

Hindi Stories Online :  विदाई की बेला… हर विवाह समारोह का सबसे भावुक कर देने वाला पल. सुंदर से लहंगे में आभूषणों से लदी  निशा धीरे-धीरे आगे कदम बढ़ा रही थी. आंसुओं से चेहरा भीगा जा रहा था. सहेलियां और भाभियां उलाहना दे रहीं थीं. “अरे इतना रोओगी तो मेकअप धुल जाएगा.” इसी तरह की चुहलबाज़ी हो रही थी.

मगर वह चाह कर भी अपने आंसू नहीं रोक पा रही थी. खुद को दोराहे पर खड़ा महसूस कर रही थी आज वह. सजी-धजी सुंदर सी कार उसे पिया के घर ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी. अजय कार में बैठ चुका था. निशा ने कनखियों से देखा तो लगा कि अजय बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था मानो कह रहा हो, “अब बस भी करो निशा! नए घर में भी लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं.”  वह एक कदम आगे बढ़ती तो दो कदम पीछे वाली स्थिति थी. पापा भैया पास में ही खड़े थे. निशा पलट कर पापा के गले लग कर रोने लगी. भाई उसे प्यार से सहला रहा था. मानो पापा से छुड़ाना चाह रहा हो और कह रहा हो,” दीदी, एक नई सुंदर सी दुनिया तुम्हारी प्रतीक्षा में है. उसका स्वागत करो.”

तभी उसने देखा कि मां किसी अपराधिनी दूर खड़ी अपने ढुलकते आंसुओं को छिपाने का असफल प्रयास कर रही थी. दोनों तरफ से स्थिति कमोबेश एक सी ही थी. मां आगे बढ़कर उसे गले लगाने का साहस नहीं कर पा रही थी क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं निशा नाराज़ ना हो जाए. ये अधिकार निशा ने उन्हें आज तक दिया ही नहीं था. इधर निशा भी चाहते हुए ममत्व की  प्यास को सहलाने में नाकाम साबित हो रही थी.  बड़ी ही मुश्किल से मां  धीरे-धीरे आगे आकर खड़ी हो गई. मौसी, बुआ सभी से निशा प्रेम से गले मिल रही थी. तभी अचानक मां के दिल में ठहरा दर्द का सैलाब उमड़ पड़ा और उसे ज़ोर की रुलाई आ गई.

देखकर निशा से रहा नहीं गया. वह मां की तरफ बढ़ी. दोनों मां बेटी इस तरह गले मिलीं जैसे दोनों को एक दूसरे से कोई शिकवा शिकायत ही ना हो. शब्द साथ नहीं दे रहे थे. बस कुछ देर एक दूसरे से लिपट कर दोनों पूर्ण हो गई थी. अब निशा को जाना ही था क्योंकि कार काफी देर से स्टार्ट होकर खड़ी थी.

नए घर में पहुंचकर निशा को बहुत प्यार सम्मान मिला. शुरू के कुछ दिनों में उसे किसी भी काम में हाथ नहीं लगाने दिया. उसकी छोटी प्यारी सी ननद अपनी मां के हर काम में हाथ बंटाती. धीरे धीरे हाथों की मेहंदी का रंग छूटने के साथ-साथ नेहा भी घर परिवार की ज़िम्मेदारियों में शामिल हो गई. जबकि मां के घर में वह कोई भी काम नहीं करती थी मगर ससुराल तो ससुराल ही होता है. शुरुआत में कुछ कठिनाई भी आई.
कई बार वह रो पड़ती थी कि अपनी समस्या किसे बताएं.. क्योंकि अपनी मां को तो उसने पूर्ण रूप से तिरस्कृत किया हुआ था.

मां ने कई बार प्रयास किया था कि निशा घर के थोड़े बहुत काम सीख ले परंतु ढाक के वही तीन पात. जब कुछ छोटी थी तो पापा के लाड प्यार की वजह से और फिर बड़ी होने पर मां से एक अनकही रंजिश होने के नाते. यूं निशा को काम करने में कोई परेशानी नहीं थी परंतु वह मां से कुछ नहीं सीखना चाहती थी. न जाने क्यों उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी थी वह.

विवाह को लगभग  बीस दिन बीत चुके थे. निशा की सास उसे एक बड़ा सा डिब्बा देते हुए बोली,”बेटा, यह बाॅक्स तुम्हारी मां ने तुम्हें सरप्राइस के तौर पर दिया है. तुम्हीं इसे खोलना और देखना इसमें क्या है. अपने सारे जेवर डिब्बे में रख देना. लॉकर में रखवा देंगे. घर में  रखना सुरक्षित नहीं होगा.”शाम को जब निशा अपने जेवर डिब्बे में करीने से संभाल रही थी तो उसने वह बाॅक्स  भी खोला. वह देखकर अवाक रह गयी. डिब्बे में सुंदर से सोने और हीरे के जेवरात थे और साथ में एक संक्षिप्त पत्र भी.

यह पत्र उसकी मां रीता ने लिखा था. “प्यारी निशा, तुम्हारे पापा का मुझसे शादी करने का मकसद सिर्फ इतना था कि उनकी अनुपस्थिति में मैं तुम्हारी देखभाल कर सकूं. अब तुम्हारा विवाह हो चुका है. समय के साथ धीरे धीरे समझ जाओगी कि एक पिता के लिए अकेले संतान को पालना कितना मुश्किल होता है. मां तो सिर्फ मां होती है. यह सौतेला शब्द तो हमारे समाज ने ही गढ़ा है. पूर्वाग्रह से ग्रसित यह भावना किसी स्त्री को जाने समझे बगैर ही खलनायिका बना देती है. तुम्हारा विदाई के समय मुझसे लिपटना मुझे उम्र भर की खुशी दे गया. मेरा बचपन भी कुछ तुम्हारी ही तरह बीता है.  सदा सुखी रहना. अपनी मां से मिलने कब आ रही हो.”

वह सोच में पड़ गई. उसकी आंखों से आंसू बहने लगे. उसे  इन गहनों में से ममत्व की सुगंध आने लगी. वह काफी देर तक उन्हें देखती रही. इनमें से कुछ गहने उसकी अपनी मां के थे और अधिकतर नई मां के, जिसे उसने मां तो कभी माना ही नहीं.

दरअसल, निशा के जीवन में दुखद मोड़ तब आया जब बारह वर्ष की उम्र में उसकी मां की मृत्यु हो गई थी. लाड प्यार से पली इकलौती संतान कुदरत के इस अन्याय को सहने की समझ भी नहीं रखती थी. पिता राजेश भी परेशान. एक तो पत्नी की असमय मृत्यु का ग़म, दूसरा बारह साल की बिटिया को पालने की ज़िम्मेदारी. ऐसी कच्ची उम्र जब बच्चे कई तरह के शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों से गुजरते हैं, एक पिता के लिए बहुत ही मुश्किल हो जाता है ऐसे में खासकर बिटिया का लालन पालन करना.

कुछ लोगों ने सलाह दी कि वह निशा की मौसी से विवाह कर ले.
क्योंकि अपनी बहन की संतान को जितने प्यार से वह पालेगी,  ऐसा कोई दूसरी महिला नहीं कर सकती. परंतु निशा की मौसी उसके पिता से उम्र में बहुत छोटी थी इसलिए राजेश जी को यह मंजूर नहीं था. खैर, समय की मांग को देखते हुए रीता के साथ निशा के पिता राजेश का पुनर्विवाह सादे समारोह में हो गया.
मां को गए अभी सिर्फ एक ही साल हुआ था. निशा की यादों में मां की हर बात जिंदा थी. इकलौती संतान होने की वजह से माता पिता का संपूर्ण प्यार उसी पर निछावर था.

राजेश ने रीता के साथ विवाह तो किया परंतु निशा को किसी भी मनोवैज्ञानिक संकट में वह नहीं डालना चाहते थे. रीता भी ख़ुद  बहुत समझदार थी. इधर निशा भावनात्मक मानसिक और शारीरिक तौर पर आने वाले बदलावों से गुजर रही थी. मां उसे भावनात्मक सहारा देने का भरसक प्रयास करती  परंतु निशा हर बार मां को ठुकरा देती है. अकेली अकेली उदास सी रहती थी वह. नई मां कभी पिता से हंसकर,खिलाकर बात करती तो निशा परेशान हो उठती. उसे लगता कि इस महिला ने आकर उसकी मां की जगह ले ली है.

निशा की मां की साड़ियां राजेश के कहने पर अगर रीता ने पहन लीं तो निशा आग बबूला हो उठती. यह सब देख कर रीता ने अपने आप को बहुत  संयमित कर लिया था. वह नहीं चाहती थी कि किशोरावस्था में किसी बच्चे के दिमाग पर कोई गलत असर पड़े. समय के साथ साथ निशा का अकेलापन दूर करने के लिए एक छोटा भाई आ चुका था. आश्चर्य कि छोटे भाई से निशा को कोई शिकायत नहीं थी. वह उसके साथ खेलती और अब थोड़ा खुश रहने लगी थी. लेकिन मां के प्रति अपने व्यवहार को वह नहीं बदल पाई थी.

बाईस वर्ष की उम्र पूरी होने पर घरवालों से विचार विमर्श के बाद निशा का विवाह तय कर दिया गया. निशा ने भी कोई अरुचि नहीं दिखाई. वह तो मानो नई मां से छुटकारा पाना चाहती थी.
आज इन गहनों को संभालते वक्त वह सोचने लगी कि अपनी मां की साड़ी तक वह  नई  मां को नहीं पहने देती थी और इस अनचाही मां ने तो उसे खूब लाड प्यार से पाला. कभी अपने बेटे और उसमें कोई फर्क नहीं किया. विवाह के समय अपनी सुंदर कीमती साड़ियां और भारी गहने सब उसी को सौंप दिए, जैसा कोई असली मां करती है.

तभी सासु मां ने उसे आवाज देकर दरवाज़े पर अपनी उपस्थिति का एहसास कराया. निशा का उदासीन चेहरा देखकर वह बोली,”अरे बेटा, क्या बात है…? मैंने लॉकर वाली बात कहकर तुम्हारा दिल तो नहीं दुखाया.. दरअसल घर में इतना कीमती सामान रखना असुरक्षित है इसीलिए मैंने ऐसा कह दिया.”
“अरे नहीं मम्मी, ऐसी बात नहीं है.” कहकर वह अटक गई.
आगे और कहती भी क्या..? कैसे कह देती कि जिस मां ने अपना सर्वस्व उसके लालन-पालन में लुटा दिया उससे वह इतनी नफ़रत करती थी कि पश्चात करने की भी कोई राह ही नहीं सूझ रही है .

खैर, सासू मां समझदार थी. सब जानते हुए भी वे अनजान ही बनी रहीं. इधर निशा के अंदर उधेड़बुन चलती रही. शाम को अजय आकर बोला,”अगले दो-तीन दिन में हम तुम्हारे घर मम्मी पापा से मिलने चल रहे हैं.” दरअसल अजय की मां ने ही उसे निशा को मां के घर ले जाने की सलाह दी थी. वह धीरे से बोली, “ठीक है.” मगर मन ही मन बड़ी शर्मिंदा हो रही थी कि कैसे सामना करूंगी मां का.

अगले दिन सुबह मौसी का फोन आया. निशा आत्मग्लानि से भरी हुई थी. उसने मौसी से मां का जिक्र किया. तब मौसी ने ही उसे बताया कि अजय के साथ उसका विवाह उसकी मां रीता ने ही तय किया था. दरअसल अजय की मां रीता की बचपन की सहेली थी. अजय की मां का विवाह तो समय से हो गया परंतु यह रीता का दुर्भाग्य था कि बहुत ही छोटी उम्र में उसकी मां की मृत्यु हो गई. पिता ने दूसरा विवाह नहीं किया. पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलकर खुद ही अपनी बेटी को पालने की ज़िम्मेदारी ली. परिवार के बीच में रीता की परवरिश तो ठीक-ठाक हो गई परंतु उसके विवाह में देरी होती रही. क्योंकि दादा दादी की मृत्यु हो चुकी थी . ताऊ ताई अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए थे .अब रह गए थे रीता और उसके पिता. वह पिता को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहती थी.

अधिक उम्र हो जाने पर भी लड़की के लिए लड़का मिलना कभी-कभी मुश्किल काम साबित हो जाता है. इसीलिए जब राजेश की पहली पत्नी की मृत्यु हुई, तब रीता का विवाह उनके साथ इस शर्त पर हुआ कि उनकी बेटी निशा को अपनी बेटी की मान कर पालेगी. और रीता ने यह ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई. कुछ वर्ष बाद अपना बेटा होने के बावजूद भी उसने दोनों बच्चों में कभी कोई फर्क नहीं किया. और आज भी यह रीता ही थी जिसने निशा का रिश्ता अपनी सहेली के बेटे अजय से करवाया था ताकि वह स्वयं अपनी बेटी के भविष्य को लेकर आशान्वित रहे. परंतु यह बात परिवार के किसी भी सदस्य ने निशा को नहीं बताई थी क्योंकि उसे तो नई मां से अत्यधिक बैर था. फिर वह ये बात कैसे बर्दाश्त करती…?
यह जानकार निशा अत्यधिक दुखी और शर्मिंदा थी. उसने साहस करके मां को फोन मिलाया. उधर से मां की प्यारी सी आवाज़ आई,” बेटा, रिश्तो को सहेजने की कोई उम्र नहीं होती. जब भी अवसर मिले, इन्हें संवार लो.”
शायद मां इससे आगे कुछ नहीं बोल पाई और इधर निशा मायके जाने की तैयारी में जुट गई. क्योंकि उधर ममता का आंगन बांह  पसारे उसके इंतज़ार में था.

Famous Hindi Stories : रोशनी – मां के फैसले से अक्षिता हैरान क्यों रह गई?

Famous Hindi Stories :  खिड़कीसे आती रोशनी में बादामी परदे सुनहरे हुए जा रहे थे. मेरी नजर उन से होते हुए ड्राइंगरूम में सजे हलकेनीले रंग के सोफे, कांच की चमकती टेबल, शैल्फ पर सजे खूबसूरत शो पीसेज से वापस सामने बैठी अपनी बेटी अक्षिता के चेहरे पर टिक गई. मेरी पूरी कोशिश थी कि मैं टेबल पर रखे फोटोफ्रेम में उस की बगल में लगे लड़के के फोटो को न देखूं. बगल में बैठे आनंद के बमुश्किल दबाए गुस्से की भभक भी महसूस न करूं. पर ये सब मेरी कनपटी पर धमक पैदा कर रहे थे. सामने बैठी अक्षिता अपने दोस्त आयुष के साथ अपने लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बारे में जाने क्याक्या बताए जा रही थी.

पर मैं उस की बात समझने में लगातार नाकामयाब हुई जा रही थी. दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. और धड़कनें बेलगाम भाग रही थीं. मेरे चश्मे का कांच बारबार धुंधला रहा था, पर उसे उतार कर पोंछने की ताकत नहीं थी मुझ में. मन मान ही नहीं पा रहा था कि मेरी यह नन्ही सी बच्ची जो कुछ वक्त पहले तक मेरी उंगली पकड़ कर चलती थी, मम्मामम्मा करती आगेपीछे घूमती थी, अपने पापा से फरमाइशें करती नहीं थकती थी, बातबात पर रो देती थी. क्या बाहर रह कर नौकरी करते ही अचानक इतनी बड़ी हो गई कि इतना बड़ा कदम उठा बैठी… एक अनजान लड़के के साथ… वह भी बिना शादी किए?

मेरे गले में कुछ अटकने लगा. डबडबाती आंखें बरसने को आतुर होने लगीं. बगल में बैठे आनंद की लगातार बढ़ती कसमसाहट बता रही थी कि अब उन का गुस्सा अपनी हद तोड़ने ही वाला है. ‘‘मम्मा,’’ अक्षिता का हाथ अपनी हथेलियों पर महसूस हुआ, तो मैं चौंक पड़ी.

मेज को हलके से खिसका कर वह मेरे सामने जमीन पर बैठते हुए मुझ से कह रही थी, ‘‘मैं नहीं चाहती थी कि आप को किसी और से यह बात पता चले. तभी आप को बुलाया. मैं आप दोनों को बहुत प्यार करती हूं… पर आप भी तो मेरी बात समझिए. मैं और आयुष… पसंदगी की वजह से साथ रहते हैं पर अपनेअपने बरतन और कपड़े खुद धोते हैं, सारे खर्चे शेयर करते हैं. न मैं उस का देर रात तक इंतजार करती हूं और न वह आप का नाम ले कर मुझे ताने दे सकता है… न मैं उस के लिए बेमन से व्रतउपवास रखने को बाध्य हूं, न ही वह मेरे लिए अपने तौरतरीके बदलने को. अपने कैरियर, अपनी फैमिली के बारे में खुद फैसले लेते हैं, एकदूसरे पर थोपते नहीं. हमारी इन्वैस्टमैंट्स… सेविंग्स सब अलग हैं. पतिपत्नी होने से बेहतर हम दोस्त बनना चाहते हैं पापा. क्या यह इतना गलत है?’’ आनंद के लाल चेहरे पर अब हैरानी थी.

अक्षिता ने आगे कहा, ‘‘शादी के बंधन में बंधने से पहले एकदूसरे को जाननेबूझने में कोई बुराई तो नहीं न? बाद में मजबूरी में शादीशुदा रिश्ता ढोते चले जाने या तलाक की नौटंकी करने से बेहतर है यह देखना कि हम एकदूसरे की इज्जत करते भी हैं या नहीं. अगर हम ऐसा कर पाए, तो शायद हम शादी कर भी लें और अगर नहीं, तो बिना दिल टूटने के खतरे के अलग हो जाएंगे.’’ ‘‘लेकिन…’’

मैं अपनी बात पूरी कर पाती उस से पहले ही अक्षिता ने मेरी गोद में सिर टिका लिया, ‘‘आप दोनों ने मुझे बहुत समझदार बनाया है. अपनी जिंदगी के किसी मुकाम पर पहुंचने से पहले मैं किसी और जिंदगी को इस दुनिया में नहीं लाऊंगी. इतना भरोसा तो मुझ पर है न?’’ मेरा हाथ उस का सिर सहलाने को उठा ही था कि आनंद को उठता देख गिर गया.

वे बोले, ‘‘चलो वंदना…’’ अक्षिता के बुझे चेहरे को देख पहली बार मैं उन से कड़ाई से कुछ बोलने को हुई, तभी उस की पूरी बात ने हमें चौंका दिया. बोले, ‘‘अरे भई, अंदर आराम करते हैं. अब इस आयुष से मिल कर ही वापस जाएंगे.’’

अक्षिता एक झटके में उठ कर हमारे गले लग गई, ‘‘हांहां, मैं उसे फोन कर देती हूं. थैंक्यू पापा… थैंक्यू मम्मी.’’ अक्षिका का माथा चूमते हुए मैं सोच रही थी कि अपनी जिंदगी में सब को कभी न कभी खुद फैसले लेने शुरू कर देने ही चाहिए. मैं ने नहीं किए पर मेरी बेटी ले रही है. अब वह सही निकलेगा या गलत, यह वक्त बताएगा. हालांकि मेरी कामना अभी भी उसे लाल जोड़े में लिपटे इस आयूष के साथ विदा होते देखने की हो रही थी. लेकिन तब जब उस का यह रिश्ता प्यार और भरोसे पर टिका हुआ हो और अगर ऐसा न भी हुआ, तो भी हम हमेशा अपनी बेटी के साथ खड़े रहेंगे. यह फैसला अंदर जाते हुए मैं ले चुकी थी.

नई रोशनी ने हमारे मन में घुमड़ती शंका के बादलों को पूरी तरह भेद डाला था.

Emotional Story : मां की खुशबू

Emotional Story : ट्रिन…ट्रिन…ट्रिन…

प्रिया ने फोन उठाया, उधर सुशीला बूआ थीं.

‘‘हैलो बूआ, इतनी रात में फोन किया, कुछ खास बात है क्या?’’

‘‘खास ही है प्रिया, तुम से तो बताने में भी डर लग रहा है.’’

‘‘बूआ, पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ बताओ क्या हुआ?’’

वह घबरा कर बोली.

‘‘प्रिया, अभीअभी बनारस से उमा जीजी का फोन आया था, कह रही थीं कि बड़े भैया ने ब्याह कर लिया है.’’

‘‘क्या…’’

‘‘जीजी ने ही किसी तलाकशुदा से रिश्ता करवाया है.’’

सुनते ही प्रिया के हाथ से रिसीवर छूट गया. वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई. उसे शर्म भी आ रही थी. सास, जेठानी और ननदें सभी उस का मजाक बनाएंगी. वह किसी को अपना मुंह कैसे दिखाएगी. प्रपुंज से कैसे कहेगी कि पापा ने शादी कर ली है. वह अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रही थी.

अपनी शादी के समय भी बड़ी बूआ पर वह कितनी जोर से नाराज हो उठी थी जब उन्होंने कहा था, ‘अब रघुनाथ के लिए बड़ी मुश्किल आ जाएगी, उस का तो जीना भी दूभर हो जाएगा. उसे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए.’

उसे याद आने लगा जब वह आगरा जाती थी तो कितने हक से मां के सारे सामान को सहेजती थी. पापा कहते भी थे, ‘अब इन्हें सहेजने का क्या फायदा? कौन सा जानकी अब दोबारा लौट कर आने वाली है? बिटिया, तुम्हें जो भी चाहिए वह तुम ले जाओ.’

‘नहीं पापा, प्रपुंज मेरा खयाल रखते हैं. मुझे ससुराल में बहुत आराम है. किसी चीज की कोई कमी नहीं है,’ वह कहती फिर भी आते समय पापा रुपयों की गड्डी उस की मुट्ठी में बंद कर देते थे. उस की शादी में भी पापा ने दिल खोल कर खर्च किया था. सिर से पैर तक जेवर दिए थे. उसे सबकुछ दिलवाया था.

अपनी शादी में प्रिया रोतेरोते विदा के समय बेहोश हो गई थी. ससुराल वाले भी परेशान हो गए थे कि कैसी लड़की उन के घर आ रही है? वह ससुराल जरूर आ गई थी परंतु मन उस का वहीं रहता था. वह सोचती थी कि उस के 2 नेत्रहीन विकलांग जवान भाई पापा के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी हैं. अभी तक तो उस के कारण पापा, घर और भाइयों की तरफ से बिलकुल निश्ंिचत थे. अब तो घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी उन्हीं की होगी.

आमतौर पर दिन में 2-3 बार पापा से बात करे बिना वह नहीं रह पाती थी. पापा ने तो हवा भी नहीं लगने दी. कल ही तो बात हुई थी, यह तो बताया था कि उमा बूआ के यहां जरूरी काम से जा रहे हैं पर इतनी बड़ी बात छिपा गए. यह सोच कर वह खीज उठी और उस के आंसू निकल आए. रोतेरोते उसे अपनी मां की बातें याद आने लगीं.

छुटपन में प्यार से कहानी सुनाती हुई वे एकएक कौर उसे मुंह में खिलाती थीं. कितने प्यार भरे अच्छे दिन थे वे.

प्रपुंज के आने की आहट से वह चौंक गई. उस की ओर देखते हुए वे बोले, ‘‘क्या हुआ? बड़ी उदास लग रही हो, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ प्रिया अपने को रोक न सकी. वह प्रपुंज से लिपट कर फफक पड़ी. प्रपुंज उसे चुप कराने का प्रयास कर रहे थे परंतु प्रिया की सिसकी रुक ही नहीं रही थी. काफी देर के बाद वह बोली, ‘‘प्रपुंज, पापा ने शादी कर ली है.’’

प्रपुंज आश्चर्य से बोले, ‘‘क्या? पापा को इस बुढ़ापे में क्या सूझी… प्रिया? पापा ने दूल्हा बनते समय बालों में डाई लगा ली होगी न, सफेद बालों में पापा दूल्हा बन कर कैसे लग रहे होंगे.’’

प्रिया फिर से सिसकने लगी.

‘‘छोड़ो यार, आओ हम दोनों भी पापा की शादी की खुशी मनाएं,’’ प्रपुंज ने माहौल थोड़ा हलका करने का प्रयास किया.

क्रोधित हो कर प्रिया पैर पटकती हुई कमरे से बाहर चली गई. काफी वादविवाद के बाद दोनों में तय हुआ कि वे पापा से सारे संबंध तोड़ लेंगे.

रात को सोते समय भी प्रिया सोचने लगी. महीने भर पहले ही तो वह चचेरी बहन रोली की शादी में गई थी, तो तभी बड़ी बूआ कह रही थीं, ‘भैया की जिंदगी में तो मुसीबत ही मुसीबत है. घरवाली के बिना घर सूना है. कोई थाली परोसने वाला तो चाहिए ही.’

सुनते ही प्रिया नाराज हो उठी थी, ‘आप कहना क्या चाह रही हैं? पापा क्या इस उम्र में शादी करेंगे?’

बूआ बोलीं, ‘तो क्या हुआ? आगे की जिंदगी आसान हो जाएगी, लड़कों को भी तो कोई देखभाल करने वाला चाहिए.’

उन का इशारा उस के नेत्रहीन विकलांग जवान भाइयों की ओर था. वह क्रोध से तिलमिलाती हुई पापा के पास पहुंची थी. सारी बात जान कर पापा ने उसे अपने पास बिठाया, प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा, परंतु उस की बात का कोई उत्तर नहीं दिया. उन की चुप्पी उसे चुभ गई थी. वह पापा से नाराज हो गई थी. प्रपुंज ने उस से रास्ते में कई बार पूछा भी कि वह क्यों नाराज है? लेकिन वह क्या बताती? वह गुमसुम हो गई थी. फिर भी उसे विश्वास था कि पापा ऐसा नहीं कर सकते.

लेकिन प्रश्न तो यह है कि अब यह बात वह सब को कैसे बताएगी, इसी उधेड़बुन में सुबह हो गई.

प्रिया संयुक्त परिवार में रहती थी. सास से उसे मां का प्यार मिला था. जेठानी रीता भाभी से भी उस की पटती थी. हां, बच्चों के कारण कभी- कभी आपस में खींचतान हो जाती थी. पापा जो सामान उसे देते थे उस को देख कर भाभी को ईर्ष्या अवश्य होती थी परंतु वे उस को चेहरे या व्यवहार पर नहीं आने देती, यह बात प्रिया जानती थी. रीता भाभी का मायका संपन्न नहीं था, जबकि प्रिया अपने पापा के पैसे पर थोड़ा घमंड भी करती थी. सब से ज्यादा चिंता उसे यह थी कि अब रीता भाभी उस के पापा का मजाक उड़ाएंगी.

वह उठी, नहाधो कर किचन में गई. वहां उस की सास शकुंतलाजी प्रिया के उतरे हुए चेहरे को देखते ही समझ गईं, कहीं कुछ गड़बड़ है. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या बात है, बहू? क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है? तुम कमरे में जा कर आराम करो, मैं चाय बना कर तुम्हारे कमरे में भेज देती हूं.’’

‘‘नहीं, मां, मैं एकदम ठीक हूं,’’ उस ने कहा. जेठानी रीता भाभी ने भी कई बार जानने का प्रयास किया पर वह कुछ न बोली.

पलपल में ठहाके लगाने वाली प्रिया का रोना सा चेहरा घर में सभी को परेशान कर रहा था.

शकुंतलाजी ने प्रपुंज से भी पूछा, ‘‘प्रिया क्यों परेशान है? क्या तुम से झगड़ा हुआ है?’’

‘‘नहीं, मां,’’ प्रपुंज ने सकुचाते हुए बताया, ‘‘मां, आप किसी से मत कहना, उस के पापा ने दूसरी शादी कर ली है इसलिए प्रिया का मूड बहुत खराब है. वह अपने पापा से बहुत नाराज है.

‘‘मां, देखिए जरा, 60 साल की उम्र में सारे बाल सफेद हो चुके हैं, अब उन्हें शादी करने की सूझी?’’ प्रपुंज बोला.

शकुंतलाजी सुलझी हुई समझदार प्रौढ़ा थीं. वे सोचने लगीं तो उन्हें रघुनाथजी का निर्णय सही लगा, साथ ही प्रिया का क्रोध एवं अवसाद स्वाभाविक लगा. प्रपुंज के जाने के बाद उन्होंने स्वयं अपने हाथों से चाय बनाई. प्लेट में गरमागरम आलू के परांठे रखे. यह प्रिया का पसंदीदा नाश्ता था. वे स्वयं नाश्ता ले कर प्रिया के कमरे में पहुंचीं. प्रिया उदास लेटी थी. उन्हें देखते ही हड़बड़ा कर उठ बैठी.

उस की सूजी हुई लाल आंखें उस के मन का हाल बता रही थीं.

शकुंतलाजी बोलीं, ‘‘लो, पहले नाश्ता करो. फिर बात करेंगे.’’

प्रिया उन के आग्रह को ठुकरा न सकी. उस ने चुपचाप सिर झुका कर नाश्ता कर लिया. वह जब से ससुराल आई थी, सास से उस को मां का प्यार मिला था. निश्छल प्रिया अपने दिल की हर बात शकुंतलाजी से कह देती थी. जब वह नाश्ता कर चुकी तो उन्होंने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

प्रिया अपने को संभाल न पाई. वह फूटफूट कर रोने लगी. सिसकती हुई वह बोली, ‘‘मां, पापा ने शादी कर ली है.’’

शकुंतलाजी ने उसे गले से लगा लिया और प्यार से उस का सिर सहलाया. फिर बोलीं, ‘‘बेटी, धीरज रखो, यदि पापा ने शादी कर ली है तो तुम दुखी क्यों हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए. अपने पापा की स्थिति को समझने की कोशिश करो.

‘‘तुम्हारे पापा की ढलती उम्र है. उन के ऊपर तुम्हारे 2 नेत्रहीन विकलांग जवान भाइयों की जिम्मेदारी है, जो स्वयं कुछ भी करने लायक नहीं हैं. तुम स्वयं सोचो उन को वे किस तरह संभालेंगे. तुम ने मुझे कई बार बताया है कि आया सामान चुरा कर ले जाती है, अकसर छुट्टी भी कर लेती है इसलिए पापा को ब्रैड खा कर गुजारा करना पड़ता है. कभीकभी तो भूखे भी सो जाते हैं, कभी कच्चापक्का पका कर भाइयों को खिला देते हैं, कभी दूध पी कर ही सो जाते हैं. इन सब से छुटकारा पाने का इस से अच्छा उपाय हो ही नहीं सकता.

‘‘तुम्हारा क्रोध उचित है, यदि मैं तुम्हारी जगह होती तो शायद मेरी भी यही प्रतिक्रिया होती. परंतु बेटी, बचपना छोड़ो. अपने मन पर नियंत्रण रखो. क्रोध एवं पश्चात्ताप की कोई आवश्यकता ही नहीं है. तुम्हारे पिता ने तुम्हारे प्रति सारे कर्तव्य पूरे किए हैं. उन्हें अपनी तरह से जीने दो. शांत मन से विचार करो,’’ वे उसे तरहतरह से समझाती रहीं.

प्रिया के मन की क्रोध रूपी धूल थोड़ी साफ होने लगी थी. थकी हुई प्रिया को झपकी लग गई थी. उस ने स्वप्न में देखा कि मम्मी उस के सिर पर प्यार से हाथ फेर रही हैं, उस के आंसू पोंछ रही हैं.

वह चौंक कर उठ बैठी. अपने मन के बोझ को वह थोड़ा हलका महसूस कर रही थी. वह नीचे जा कर गृहस्थी के कामों में लग गई. पर अब वह उदास और गंभीर रहने लगी थी. बातबात में खिलखिलाने वाली प्रिया घरवालों से खिंचीखिंची रहती थी. बच्चों से भी ज्यादा बात नहीं करती थी. रीता भाभी ने उसे बड़े प्यार से समझाया, ‘‘प्रिया, तुम्हारी बूआ ने तो तुम्हारा बोझ हलका किया है. अब तुम्हें हर समय परेशान रहने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे पापा और भाइयों की देखभाल करने वाला वहां कोई है. इस के लिए तुम्हें स्वयं पहल एवं प्रयास करना चाहिए था. खैर, अब अपने पापा से सामान्य रूप से बात करो. अपनी नई मां से मिलने जाओ. जो हो रहा है या हो चुका है उसे स्वीकार करो, इस के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है.’’

रीता भाभी की बातें उसे अच्छी तो लगीं परंतु वह पापा से बात करने का मन न बना सकी.

एक हफ्ते के बाद सुशीला बूआ उस से मिलने आईं. वह उन को देखते ही लिपट कर गले मिली. उस की आंखें भर आई थीं.

सुशीला बूआ से उस की बचपन से पटती थी. मां के देहांत के बाद उन्होंने ही उसे संभाला था. 2-3 महीने अपना घरद्वार छोड़ कर उस के साथ रही थीं. उस को प्यार से समझाती रहती थीं. उन की गोद में सिर रख कर वह घंटों आंसू बहाती रहती थी. बूआ ने ही उस की हिम्मत बंधाई थी, उसे जीना सिखाया था. सब से अधिक तो बूआ की इसलिए भी एहसानमंद है क्योंकि उन्होंने ही उस का रिश्ता प्रपुंज से करवाया था. उन से वह घंटों फोन पर बात करती थी, दिल की सारी बातें कह देती थी. घर भी पास में ही था इसलिए जबतब वह उन के घर भी जाती रहती थी.

‘‘अरे, पगली, क्या हुआ? तुम्हें तो खुश होना चाहिए. कल बड़े भैया का फोन आया था, कह रहे थे कि प्रिया से कैसे बात करूं, वह मुझ से बहुत नाराज है. बचपन से ही वह जिद्दी है.’’

‘‘और क्या कह रहे थे पापा?’’

‘‘बस, तुम सब के बारे में पूछ रहे थे, मुझ से बोले कि तुम प्रिया से मिल आओ. सब के हालचाल ले आओ. प्रिया को समझाने की कोशिश करो, वह अपना गुस्सा छोड़ दे,’’ बूआ ने बताया.

कुछ देर बैठ कर बूआ अपने घर लौट गईं. धीरेधीरे प्रिया ने अपने मन को समझा लिया. पापा की शादी की बात मन से निकाल अपनी गृहस्थी में रम गई थी.

लगभग 3 महीने हो चुके थे. न तो पापा का फोन उस के पास आया था न उस ने खुद किया था. वह उन्हें याद तो हर पल करती थी परंतु उस की जिद बापबेटी के बीच में बाधा बनी हुई थी.

एक दिन अचानक बड़ी बूआ उस के घर उस से मिलने आईं. मन ही मन वह बूआ से नाराज थी. उन्हें देख कर सोचा, सारा कियाधरा तो इन्हीं का है, अब आई हैं प्यार जताने को. बूआ उस के लिए बहुत सारा सामान लाई थीं.

प्रिया ने देखा, गोलू के लिए सुंदर सी ड्रैस थी. प्रपुंज के लिए भी शर्ट थी. उस के लिए साड़ी थी. एक पेटी आम की थी. घर के बने मेवे के लड्डू और मठरी. वह हैरानी से सब सामान देख रही थी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह सब बूआ लाई हैं.

आज बूआ इतना लाड़ क्यों दिखा रही हैं? वह बूआ से पूछना चाह रही थी. अचानक ही उस की निगाह उस थैले पर पड़ गई जिस में से बूआ ने लड्डूमठरी का डब्बा निकाला था. क्षण भर में ही वह सब समझ गई. यह थैला वही है जिसे ले कर पापा हमेशा बाजार जाते थे. इस थैले में तो पापा की महक बसी थी, भला वह कैसे भूल सकती थी. उस के मुंह से अनायास निकल पड़ा, ‘‘बूआ, क्या पापा आए हैं?’’

‘‘हां, बिटिया, तुम्हारे सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. ये सब चीजें तो तुम्हारी नई मां ने ही तुम्हारे लिए भेजी हैं. तुम्हारे पापा तो तुम से मिलने के लिए तड़प रहे हैं.’’

मांपापा बाहर गाड़ी में ही थे. वह दौड़ कर नीचे गई. उसे देख पापा बोले, ‘‘बेटी, मुझे माफ कर दो, मैं ने तुम्हारी मां की जगह किसी और को दे दी है.’’

यह सुन प्रिया का क्रोध आंसुओं की धारा बन कर बहने लगा. वह भरे हुए गले से बोली, ‘‘नई मां कहां हैं? इस लड्डूमठरी से तो मेरी मां की खुशबू आ रही है.’’

सबकुछ भूल कर वह मां के गले से लिपट गई.

ममा आई हेट यू : क्या आद्या की मां से नफरत खत्म हो पाई?

‘‘आद्या,तुम्हारी मम्मी का फोन है,’’ अपनी बेटी संगीता का फोन आने पर शोभा ने अपनी 10 साल की नातिन को आवाज देते हुए कहा. वह दूसरे कमरे में टैलीविजन देख रही थी. जब कोई उत्तर नहीं मिला तो वे उठ कर उस के पास गईं और अपनी बात दोहराई.

‘‘उफ, नानी मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे उन से कोई बात नहीं करनी. फिर आप क्यों मुझे बारबार कहती हो बात करने को?’’ आद्या ने लापरवाही से कहा.

शोभा उस के उत्तर को जानती थीं, लेकिन वे अपनी बेटी संगीता को खुद उत्तर न दे कर आद्या की आवाज स्पीकर पर सुनवा कर उस से ही दिलवाना चाहती थीं वरना संगीता उन पर इलजाम लगाती कि वही उस की बेटी से बात नहीं करवाना चाहती.

फोन बंद करने के बाद शोभा ने आद्या की मनोस्थिति पता करने के लिए उस से कहा, ‘‘बेटा, वह तुम्हारी मां है. तुम्हें उन से बात करनी चाहिए…’’

अभी उन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि आद्या चिल्ला कर बोली, ‘‘यदि उन्हें मेरी जरा भी चिंता होती तो इस तरह मुझे छोड़ कर दूसरे आदमी के साथ नहीं चली जातीं… मेरी फ्रैंड वान्या को देखो, उस की मां उस के साथ रहती हैं और उसे कितना प्यार करती हैं. जब से मैं ने मां को फेसबुक पर किसी दूसरे आदमी के साथ देखा है, मुझे उन से नफरत हो गई है, अमेरिका में ममा और पापा के साथ रहना मुझे कितना अच्छा लगता था, लेकिन ममा को पापा से झगड़ा कर के इंडिया आते समय एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया कि मेरा क्या होगा…मैं पापा के बिना रहना चाहती हूं या नहीं… पापा ने भी तो मुझे एक बार भी नहीं रोका… और फिर यहां आ कर उन्हें भी मुझ से अलग ही रहना था तो फिर मुझे पैदा करने की जरूरत ही क्या थी… मैं जब अपनी फ्रैड्स को अपने मम्मीपापा के साथ देखती हूं, तो कितना ऐंब्रैस फील करती हूं… आप को पता है? और वे सब मुझे इतनी सिंपैथी से देखती हैं. जैसे मैं ने ही कोई गलती की है… ऐसा क्यों नानी? मैं जानती हूं, ममा मुझ से फोन पर क्या कहना चाहती हैं… वे चाहती हैं कि मैं अपने अमेरिका में रहने वाले पापा से कौंटैक्ट करूं, ताकि वे मुझे अपने पास बुला लें और उन का मुझ से  हमेशा के लिए पीछा छूट जाए. उस के बाद वे मुझ से मिलने के बहाने अमेरिका आती रहें, क्योंकि आप को पता है न कि अमेरिका में रहने के लिए ही उन्होंने एनआरआई से लवमैरिज की थी. हमेशा तो फोन पर मुझ से यही पूछती हैं कि मैं ने उन से बात की या नहीं, लेकिन नानी मैं उन के पास नहीं जाना चाहती. मैं तो आप के पास ही रहना चाहती हूं. मैं ममा से कभी बात नहीं करूंगी, ममा आई हेट यू… आई हेट हर… नानी.

आद्या ने एक ही सांस में सारा आक्रोश उगल दिया और किसी अपने बिस्तर पर औंधी हो कर रोने लगी.

शोभा अवाक उस की बातें सुनती रह गईं कि इतनी छोटी उम्र में आद्या को हालात ने कितना परिपक्व बना दिया था.

आद्या के तर्क को सुनने के बाद शोभा गहरे सोच में डूब गईं. इतना समझाने के बाद भी कि अमेरिका में इतनी दूर रहने वाले लड़के के चरित्र के बारे में क्या गारंटी है, विवाह का निर्णय लेने के लिए सिर्फ फेसबुक की जानपहचान ही काफी नहीं है. लेकिन उन की बेटी संगीता ने एक नहीं सुनी और जिद कर के उस से विवाह किया था

विवाह के सालभर बाद ही आद्या पैदा हो गई. उस के पैदा होने के समय शोभा अमेरिका गई थी, लेकिन सुखसुविधा की कोई कमी न होते हुए भी घर में हर समय कलह का वातवरण ही रहता था, क्योंकि राहुल की आदतें बहुत बिगड़ी हुई थीं. उस के विवाह करने का एकमात्र उद्देश्य तो पत्नी के रूप में अनपेड मेड लाना था.

एक दिन ऐसा आया जब संगीता 4 साल की आद्या को ले कर भारत उन के पास लौट आई, लेकिन संगीता को अमेरिका के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीने की इतनी आदत पड़ गई थी कि उस का अपनी आईटी कंपनी की नौकरी से गुजारा ही नहीं होता था.

4 साल बीततेबीतते उस ने अपने मातापिता को बताए बिना किसी बड़े बिजनैसमैन से दूसरी शादी कर ली. वह उस से विवाह करने के लिए इसी शर्त पर राजी हुआ कि वह अपनी बेटी को साथ नहीं रखेगी.

धीरेधीरे उम्र के साथ आद्या को सारे हालात समझ में आने लगे और उस का अपनी मां के लिए आक्रोश भी बढ़ने लगा, जिस की प्रतिक्रिया औरौं पर भी दिखने लगी. वह कुंठित हो कर अपनी स्थिति का अनुचित लाभ उठाने लगी. अपनी नानी से भी हर बात में तर्क करने लगी थी. स्कूल से आने के बाद वह घर में टिकती ही नहीं थी. उस की अपनी कालोनी में ही 2-3 लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. उन के साथ ही सारा दिन रहती थी.

वहां रहने वाले परिवारों के लोग भी उस की बदसलूकी की उस की नानी से शिकायत करने लगे तो शोभा को बहुत चिंता हुई, लेकिन वह समझाने से भी कुछ समझना नहीं चाहती थी उस का व्यवहार जब सीमा पार करने लगा तो शोभा उसे एक काउंसलर के पास ले गईं. उस ने आद्या से बहुत सारे प्रश्न पूछे. उस का जीवन के प्रति नकारात्मक सोच देख कर उन्होंने शोभा को समझाया कि जोरजबरदस्ती उस से कोई कार्य न करवाया जाए और डांटने से स्थिति और बिगड़ जाएगी. जहां तक हो उसे प्यार से समझाने की कोशिश की जाए.

काउंसलर के कथन का भी आद्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. उस के बाद से वह शोभा को इमोशनली ब्लैकमेल करने लगी. जब भी शोभा उसे कुछ समझातीं तो वह तुरंत कहती, ‘‘आप को डाक्टर साहब ने क्या कहा था. कि मेरे मामलों में ज्यादा दखलंदाजी न करें. मेरी तबीयत ठीक नहीं है… आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ कि ममापापा ने मुझे अपने से अलग कर दिया है. आखिर मेरा कुसूर क्या है? इतना कह कर वह रोने लगती और फिर खाना छोड़ कर खुद को कमरे में बंद कर लेती.

अपरिपक्व उम्र की होने के कारण

उसे इस बात की समझ ही नहीं थी कि उस के इस तरह के व्यवहार से उस की नानी कितनी आहत होती हैं, वे कितनी असहाय हैं, उस की इस स्थिति की दोषी वे तो बिलकुल नहीं है.

शोभा ने उसे बहुत समझाया कि उस के तो नानानानी हैं उसे बहुत समझाया कि उस के तो नानानानी हैं उसे संभालने के लिए, बहुत सारे बच्चों को तो कोईर् देखने वाला भी नहीं होता और अनाथाश्रम में पलते हैं. इस के जवाब में आद्या बोलती कि अच्छा होता वह भी अनाथाश्रम में पलती, कम से कम उसे अपने मातापिता के बारे में तो पता नहीं होता कि वे स्वयं तो मौज की जिंदगी काट रहे हैं और उसे दूसरों के सहारे छोड़ दिया है.

शोभा आद्या का व्यवहार देख कर बहुत चिंतित रहती थीं, उन्हें अपनी बेटी संगीता पर बहुत गुस्सा आता कि विवाह करने से पहले एक बार तो उस ने अपनी बेटी के बारे में सोचा होता कि वह क्या चाहती है? आखिर वह उसे दुनिया में लाई है, तो उस के प्रति भी तो उस की कोई जिम्मेदारी बनती है. कोई मां इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है. उस के गलत कदम उठाने की सजा उन्हें और आद्या को भुगतनी पड़ रही है. जवाब में वह कहती कि वह आद्या के लिए कुछ भी करेगी. बस अपने साथ ही तो नहीं रख सकती.

ज्यादा समस्या है तो उसे होस्टल में डाल देगी.

शोभा को उस की बातें इतनी हास्यास्पद लगतीं कि उस की बेटी की इतनी भी समझ नहीं है कि पहले के जमाने की उपेक्षा नए जमाने के बच्चे को पालना कितना जटिल है और वह भी ऐसे बच्चे को, जो सामान्य वातावरण में नहीं पल रहा.

किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे की सही परवरिश उस के मातापिता ही कर सकते हैं और मांबाप में अलगाव की स्थिति में किसी एक के द्वारा उसे प्यार और उस की देखभाल के लिए उसे समय देना जरूरी है वरना बच्चा दिशाहीन हो कर भटक सकता है. केवल भौतिक सुख ही उस के सही पालनपोषण के लिए पर्याप्त नहीं होते.

जिन बच्चों के मातापिता उन्हें बचपन में ही किसी न किसी कारण अपने से अलग कर देते हैं, वे अधिकतर बड़े होने पर सामान्य व्यक्तित्व के न हो कर दब्बू, आत्मविश्वासहीन और अपराधिक प्रवृत्ति के बन जाते हैं, क्योंकि बच्चे जितना अपने मातापिता की परवरिश में अनुशासित बन सकते हैं उतना किसी के भी साथ रह कर नहीं बल्कि स्थितियों का लाभ उठा कर इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं और दया का पात्र बन कर ही आत्मसंतुष्टि महसूस करते हैं. मातापिता की जिम्मेदारी है कि विशेष स्थितियों को छोड़ कर अपने किसी स्वार्थवश बच्चों को किसी के सहारे न छोड़े, नानीदादी के सहारे भी नहीं. बच्चा पैदा होने के बाद उन का प्राथमिक कर्तव्य बच्चों का पालनपोषण ही होना चाहिए, क्योंकि वे ही उन्हें प्यार दे सकते हैं.

बहूबेटी : क्यों बदल गए सपना की मां के तेवर

जब से वे सपना की शादी कर के मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं. उन के चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था. महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाड़ पोंछे वाली देर से आए, सब माफ था. अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं. जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफसर है, देखने में राजकुमार जैसा. फिर भी एक पैसा दहेज का नहीं लिया. ससुर तो कहते थे कि आप की बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें. आप की दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं. बस, सुंदर, सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई, हमारे सारे अरमान पूरे हो गए. शादी के बाद पहली बार जब बेटी ससुराल से आई तो कैसे हवा में उड़ी जा रही थी. वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उस की सास ने इतने दिनों पलंग से नीचे पांव ही नहीं धरने दिया. वह तो रानियों सी रही वहां. घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती, ‘‘बेचारी सुबह से पांव लगतेलगते थक गई, नातेरिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं. जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर.’’

और उस की ननद अपनी भाभी को सहारा दे कर पलंग पर बैठा आती. यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं. कलेजा गज भर का हो गया. दिन भर चाव से रस लेले कर वे बेटी की ससुराल की बातें पड़ोसिनों को सुनाने से भी नहीं चूकतीं. उन की बातें सुन कर पड़ोसिन को ईर्ष्या होती. वे सपना की ससुराल वालों को लक्ष्य कर कहतीं, ‘‘कैसे लोग फंस गए इन के चक्कर में. एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया. ऊपर से ससुराल में इतना लाड़प्यार.’’

उस दिन अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं, ‘‘लो, जी, सपना को तो एम.ए. बीच में छोड़ने तक का अफसोस नहीं रहा. बहुत पढ़ालिखा खानदान है. कहते हैं, एम.ए. क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. भी करवा देंगे. पढ़नेलिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है. अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया.’’ ‘‘फिर क्या, सपना नौकरी करेगी, जो इतना पढ़ा रहे हैं?’’ अरुणा ने उन के उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे. घर की कोठी है. हजारों रुपए कमाते हैं हमारे दामादजी,’’ उन्होंने सफाई दी. ‘‘तो सपना इतना पढ़लिख कर क्या करेगी?’’

‘‘बस, शौक. वे लोग आधुनिक विचारों के हैं न, इसलिए पता है आप को, सपना बताती है कि सासससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं. रसोई में खटने के लिए तो नौकरचाकर हैं. और खानेपहनाने के ऐसे शौकीन हैं कि परदा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में.’’ ‘‘अच्छा,’’ अरुणा ने आश्चर्य से कहा.

मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके, यह बात उन के गले नहीं उतरी. ‘‘शादी के समय सपना तो कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरहतरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन, सब धरे रह जाएंगे. शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा. पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं. उस के सासससुर को तो यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे…’’

‘‘लेकिन बहनजी, ये बातें क्या सासससुर कहेंगे. यह तो पढ़ीलिखी लड़की खुद सोचे कि आखिर कुंआरी और विवाहिता में कुछ तो फर्क है ही,’’ श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया. उन्होंने सोचा कि शायद श्रीमती अरुणा को उन की पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसीलिए उन्होंने और रस ले कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं तो डरती थी. मेरी सपना को शुरू से ही सुबह देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी. पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय ले कर आराम से उठती है. फिर उठे भी किस लिए. स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता.’’

‘‘अब चलूंगी, बहनजी,’’ श्रीमती अरुणा उठतेउठते बोलीं, ‘‘अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए. डाक्टर हो ही गया है. फिर आप ने बेटी विदा कर दी. अब आप की सेवाटहल के लिए बहू आनी चाहिए. इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी ही चाहिए,’’ कहतेकहते श्रीमती अरुणा के होंठों की मुसकान कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई.

कुछ दिनों बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखोजी, कैसी है यह लड़की अपने अनुराग के लिए? एम.ए. पास है, रंग भी साफ है.’’ ‘‘घरबार कैसा है?’’ उन्होंने लपक कर फोटो हाथ में लेते हुए पूछा.

‘‘घरबार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं. और दहेज वगैरा हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैं ने लिख दिया है उन्हें.’’ ‘‘यह क्या बात हुई जी. आप ने अपनी तरफ से क्यों लिख दिया? हम ने क्या उसे डाक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वे जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम आएगा.’’

अनुराग भी आ कर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे ले कर सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधरउधर जा सके. ससुराल की दौलत का क्या करना है?’’

‘‘बेशर्म, मांबाप के सामने ऐसी बातें करते तुझे शर्म नहीं आती. तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उस से? हमें भी तो बहू चाहिए.’’ ‘‘ठीक है, तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें. लड़की दिल्ली में भैयाभाभी ने देख ही ली है और सब को बहुत पसंद आई है. फिर शक्लसूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है. वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है.’’

उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई. इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं. सामान की लिस्टें बनने लगीं. अनुराग जो सपना के ससुराल की तारीफ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता, ‘‘देखो, मां, बेकार में इतनी सारी साडि़यां लाने की कोई जरूरत नहीं है, आखिर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वे बेकार में पड़े बक्सों में सड़ते रहें तो इस से क्या फायदा.’’

‘‘तो तू क्या अपनी बहू को कुंआरी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा?’’ वह चिल्ला सी पड़ीं. ‘‘क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो मैं नहीं पहना सकता?’’

वे मन मसोस कर रह गईं. इतने चाव से साडि़यां खरीद कर लाई थीं. सोचा था, सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ गया तो वे बाद में अपनेआप थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मानसम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे. मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया. रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटीं तो कुछ उदास थीं. उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले, ‘‘सुनोजी, अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो.’’

‘‘क्यों?’’ वह एकाएक चौंकीं. ‘‘हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह 8 बजे बिस्तर पर चाय पी कर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?’’

वे सकपका गईं. सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं. पति से बोलीं, ‘‘तुम ने अच्छी तरह लिख दिया है न, जी, जैसी उन की बेटी वैसी ही हमारी. दानदहेज में एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी.’’ ‘‘पर मां, जरा यह तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एम.ए. पास है, क्या पता आगे शोधकार्य आदि करना चाहे. फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वह आगे पढ़ कैसे सकेगी?’’ यह अनुराग का स्वर था.

उन की समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें. कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बातबात पर टोक देतीं, ‘‘क्यों री, तू ससुराल में भी ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर बहुओं की तरह और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना. शादीशुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते.’’

सपना ने जब बताया कि वह यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वे बरस ही पड़ीं, ‘‘अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सासससुर की सेवा कर. कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास.’’ आश्चर्यचकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है?

सुबह 10 बजे : मेघा की मां क्यों थी शादी के खिलाफ

मेघा आज फिर जाम में फंस गई थी. औफिस से आते समय उस के कई घंटे ऐसे ही बरबाद हो जाते हैं, प्राइवेट नौकरी में ऐसे ही इतनी थकान हो जाती है, उस पर इतनी दूर स्कूटी से आनाजाना.

मेघा लोअर व टौप ले कर बाथरूम में घुस गई, कुछ देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आई. उस के कानों में अभी भी सड़क की गाडि़यों के हौर्न गूंज रहे थे. तभी उस ने लौबी में अपनी मां को कुछ पैकेट फैलाए देखा, वे बड़ी खुश दिख रही थीं. मेघा भी उन के पास बैठ गई. मम्मी उत्साह से पैकेट से साड़ी निकाल कर उसे

दिखाने लगीं, ‘‘यह देखो अब की अच्छी साड़ी लाई हूं.’’ पर मम्मी अभी कुछ दिन पहले ही तो 6 साडि़यों का कौंबो मैं ने और 6 का रिया ने तुम्हें औनलाइन मंगा कर दिया था.’’

‘‘वे तो डेली यूज की हैं. कहीं आनेजाने पर उन्हें पहनूंगी क्या? लोग कहेंगे कि 2-2 बेटियां कमा रही हैं और कैसी साडि़यां पहनती हैं,’’ कह कर उन्होंने प्यार से मेघा के गाल पर धीरे से एक चपत लगा दी. मेघा मुसकरा दी.

तभी वे फिर बोलीं, ‘‘और देख यह बिछिया… ये मैचिंग चूडि़यां और पायलें… अच्छी हैं न?’’

‘‘हां मां बहुत अच्छी हैं. आप खुश रहें बस यही सब से अच्छा है, अब मैं बहुत थक गई हूं. चलो खाना खा लेते हैं. मुझे कल जल्दी औफिस जाना है,’’ मेघा बोली.

‘‘ठीक है तुम चलो मैं आई,’’ कह कर मम्मी अपना सामान समेटने लगीं.

उन के चेहरे पर खिसियाहट साफ दिखाई दे रही थी. सभी ने हंसीमजाक करते हुए खाना खाया. फिर अपनेअपने बरतन धो कर रैक में रख दिए. उन के घर में शुरू से ही यह नियम है कि खाना खाने के बाद हर कोई अपने जूठे बरतन खुद धोता है.

खाना खा कर मेघा लेटने चली गई, पर आंखों से नींद कोसों दूर थी, वह सोचने लगी कि हर नारी अपने को किसी के लिए समर्पित करने में ही सब से बड़ी खुशी महसूस करती है. कल की ही बात है. मेघा की दोस्त सोनल उस से कह रही थी कि यार तू भी 30 पार कर रही है. क्या शादी करने का इरादा नहीं है? मगर मेघा उसे कैसे बताती कि जब से उस ने नौकरी शुरू की है घर थोड़ा अच्छे से चलने लगा है.

अब कोई उस की शादी की बात उठाता ही नहीं, क्योंकि उन्हें उस से ज्यादा घर खर्च की चिंता रहती है… छोटी बहनों की पढ़ाई कैसे होगी… वे 4 बहनें हैं. पापा का काम कुछ खास चलता नहीं है. इसलिए उन्होंने बचपन अभाव में काटा है. जब से मेघा से छोटी रिया भी सर्विस करने लगी है, मम्मी अपनी कुछ इच्छाएं पूरी कर पा रही हैं वरना तो घर खर्च की खींचतान में ही लगी रहती थीं.

मेघा की दोस्त सोनल की 2 साल पहले ही शादी हुई है. औफिस में वह मेघा की कुलीग है. उसे खुश देख कर मेघा को बड़ा अच्छा लगता है. कभीकभी उस का मन कहता है, मेघा क्या तू भी कभी यह जीवन जी सकेगी?

आज सोनल ने फिर बात उठाई थी, ‘‘मेघा पिछले साल हम लोग औफिस टूर पर बाहर गए थे तो मयंक तुझ से कितना मिक्स हो गया था… यार तेरी ही कास्ट का है. तुझ से फोन पर तो अकसर बात होती रहती है. अच्छा लड़का है… क्यों नहीं मम्मी से कह कर उस से बात चलवाती हो? अगर बात बन गई तो दहेज का भी चक्कर नहीं रहेगा. फिर मयंक की तुझ से अंडरस्टैंडिंग भी अच्छी है. अच्छा ऐसा कर तू पहले मयंक से पूछ. अगर वह तैयार हो जाता है, तो अपने घर वालों को उस के घर भेज देना.’’ मेघा को सोनल की बात में दम लगा.

1-2 दिन पहले ही उस की मयंक से बात हुई थी, तो वह बता रहा था कि घर वाले उस की शादी के मूड में हैं. हर दूसरे दिन कोई न कोई रिश्ता ले कर आ रहा है.

मेघा सोचने लगी, ‘कल मयंक से बात करती हूं. यह तो मुझे भी महसूस होता है कि शादी करना जीवन में जरूरी होता है, पर कोई अच्छा लड़का मिले. मुझे जीवन में खुशियां देने के साथसाथ मेरे घर वालों को भी सपोर्ट करे, तो इस से अच्छी और क्या बात होगी,’ सोचतेसोचते उसे नींद आ गई.

सुबह नींद खुली तो 7 बज रहे थे. उसे 8 बजे औफिस पहुंचना था. वह जल्दी से फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर भागी. जब तक वह तैयार हुई तब तक मम्मी ने मेज पर नाश्ता लगा दिया. टिफिन भी वहीं रख दिया. मेघा ने दौड़तेभागते 2 ब्रैड पीस खा कर चाय पी और फिर स्कूटी निकाल औफिस के लिए निकल गई. काम के चक्कर में उसे कुछ याद ही नहीं रहा.

लंच के समय सोनल ने फिर वही बात छेड़ी तो उसे कल रात की बात याद आई. लंच खत्म कर के उस ने मयंक को फोन लगाया.

सोनल सामने ही बैठी थी. वह इशारे से कह रही थी कि शादी के लिए पूछ. मेघा ने हिम्मत कर के पूछा तो मयंक हंस दिया, ‘‘अरे यार तुझे पा कर कौन खुश नहीं होगा भला… तुम ने मुझे अपने लायक समझा तो संडे को अपने मम्मीपापा को मेरे घर भेजो, बाकी सब मैं देख लूंगा.’’

‘‘ठीक है कह कर मेघा ने फोन काट दिया और फिर सोनल को सब बताया तो वह भी बहुत खुश हुई.

‘‘पर सोनल मैं अपनी शादी के बारे में अपने मम्मीपापा से कैसे बात कर पाऊंगी?’’

मेघा को परेशान देख कर सोनल बोली, ‘‘तू घर पहुंच उन से मेरी बात करा देना.’’

मेघा शाम 4 बजे ही औफिस से चल दी. घर पहुंच चाय पी कर बैठी ही थी कि सोनल का फोन आ गया. उसे दिन की सारी बातें याद आ गई. उस ने फोन मम्मी की ओर बढ़ा दिया. सोनल ने मम्मी को सब बता उन्हें संडे को मयंक के घर जाने के लिए कहा.

मम्मी के चेहरे पर मेघा को कुछ खास खुशी की झलक नहीं दिख रही थी. वे केवल हांहां करती जा रही थीं.

फोन कटने पर वे मेघा की तरफ घूम कर बोलीं, ‘‘हम लोगों के पास तो दहेज के लिए पैसे नहीं हैं. फिर हम रिश्ता ले कर कैसे जाएं? तुम्हें पहले मुझ से बात करनी चाहिए थी.’’

यह सुन कर मेघा हड़बड़ा गई. बोली, ‘‘मैं ने कुछ नहीं कहा. सोनल ने ही मयंक से बात की थी… आप और पापा उस के घर हो आओ… देखो घर में और लोग कैसे हैं… मयंक तो बहुत सुलझा हुआ है.’’

तभी पापा भी आ गए. जब उन्हें सारी बात पता लगी तो उन के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए, ‘‘ठीक है हम लोग संडे को ही मयंक के घर जाएंगे,’’ कह उन्होंने खुशी से मेघा की पीठ थपथपाई.

फिर सब बहनों ने मिल कर आगे की प्लानिंग की. यह तय हुआ कि सोनल के हसबैंड, मम्मीपापा और छोटी बहन मयंक के घर चले जाएंगे. छोटी बहन के मयंक के घर जाने से वहां क्या बात हुई, कैसा व्यवहार रहा, सब पता लग जाएगा. मम्मी से तो पूछते नहीं बनेगा. पापा से भी पूछने में संकोच होगा.

मेघा की छोटी तीनों बहनें मन से उस की शादी के लिए सोचती रहती थीं, पर आज की महंगाई और दहेज के बारे में सोच कर चुप हो जाती थीं. मयंक के बारे में सुन कर सब को जोश आ गया था.

‘‘मैं अब अपना पैसा बिलकुल खर्च नहीं करूंगी,’’ यह रिया की आवाज थी.

‘‘मुझे भी कुछ ट्यूशन बढ़ानी पड़ेंगी, तो बढ़ा लूंगी,’’ यह तीसरे नंबर की ज्योति बोली.

‘‘मैं भी अब कोई फरमाइश नहीं करूंगी,’’ छोटी कैसे पीछे रहती.

‘‘ठीक है ठीक है, सब लोगों को जो करना है करना पर पहले मयंक के घर तो हो आओ,’’ कह कर मेघा टीवी खोल कर बैठ गई.

संडे परसों था, पापा समय बरबाद नहीं करना चाहते थे. उन्होंने जाने की पूरी तैयारी कर ली. मम्मी ने भी कौन सी साड़ी पहननी है, छोटी क्या पहनेगी सब तय कर लिया.

दूसरे दिन शनिवार था. मेघा ने सोनल को बता दिया कि उस के हसबैंड को साथ जाना पड़ेगा.

वह तैयार हो गई. बोली, कोई इशू नहीं. एक अंकल का स्कूटर रहेगा एक इन की मोटरसाइकिल हो जाएगी… आराम से सब लोग मयंक के घर पहुंच जाएंगे.

मेघा ने फोन कर के मयंक से उस के पापा का फोन नंबर ले लिया. शाम को पापा ने मयंक के पापा को फोन कर के संडे को उन के घर पहुंचने का समय ले लिया. सुबह 10 बजे मिलना तय हुआ.

मेघा की मम्मी बड़ी उलझन में थी कि अगर वे लोग तैयार हो गए तो कैसे मैनेज करेंगे. कुछ नहीं पर अंगूठी तो चाहिए ही. मेरे सारे जेवर तो धीरेधीरे कर के बिक गए… बरात की खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी.

मेघा की मां को परेशान देख उस के पापा बोले, ‘‘अभी से क्यों परेशान हो? पहले वहां मिल तो आएं.’’

रविवार सुबह ही चुपके से मेघा ने मयंक को फोन मिला कर कहा, ‘‘मयंक, तुम घर में ही रहना… कोई बात बिगड़ने न पाए… सब संभाल लेना.’’

‘‘हांहां ठीक है. मेरे मम्मीपापा बहुत सुलझे हुए हैं… उन्हें अपने बेटे की खुशी के आगे कुछ नहीं चाहिए… जिस में मैं खुश उस में वे भी खुश.’’ मेघा बेफिक्र हो कर अंदर आ गई. देखा मम्मी तैयार हो गई थीं.

‘‘चलो, जल्दी लौट आएंगे वरना आज दुकान बंद रह जाएगी.’’ मेघा की मां बोली.

कुछ दिन पहले ही मेघा के पापा ने एक दुकान खोली थी. करीब 12 बजे सभी लौट आए. पापा बहुत खुश थे. सभी बातें कायदे से हुई थीं. बस मयंक के पापा कुंडली मिला कर बात आगे बढ़ाना चाहते थे. वे पापा से बोले कि आप बिटिया की कुंडली भिजवा देना.

जब सब लोग खाना खा कर लेट गए तो सब बहनों ने छोटी को बुला कर वहां का सारा हाल पूछा. छोटी ने वहां की बड़ी तारीफ की. बताया कि अगर कुंडली मिल गई तो शादी पक्की हो जाएगी.

मम्मी ने तो वहां साफसाफ कह दिया कि हम लोग पैसा नहीं दे सकते. किसी तरह जोड़ कर बरात की खातिरदारी कर देंगे. दहेज देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है.

सुन कर रिया गुस्सा गई. बोली, ‘‘ये सब कहने की पहले ही दिन क्या जरूरत थी? आगे बात चलती तो बता देतीं.’’

‘‘दूसरे दिन मेघा की तबीयत ठीक नहीं थी. औफिस से छुट्टी ले कर जल्दी घर आ गई. दवा खा कर चादर ओढ़ कर लेट गई. थोड़ी देर बाद रिया और मम्मी की आवाज उस के कानों में पड़ी. रिया बोली, ‘‘दीदी की शादी फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए. मयंक अच्छा लड़का है. एक बार मैं भी उस से मिली हूं.’’

मम्मी तुरंत बोली,‘‘अरे नहीं बहुत मौडर्न परिवार है. हम उन के स्तर का खर्च ही नहीं कर पाएंगे. तभी तो मैं उस दिन सब साफ कह आई थी. अगर मयंक मेघा से शादी का इच्छुक है, तो कुछ खर्च उसे भी तो करना चाहिए. सगाई, शादी सारे खर्च को आधाआधा बांट लें… जेवर भी… मैं ने कह दिया है हमारे पास नहीं हैं… जेवर तो आप को ही लाने पड़ेंगे… फिर मेरी तो 4 लड़कियां हैं. मुझे तो सब पर बराबर ध्यान देना पड़ेगा. आप के तो केवल एक लड़का है. आप को तो बस उसी के लिए सोचना है.’’

सुनते ही रिया गुस्सा हो गई, ‘‘मम्मी, आप को इस तरह नहीं बोलना चाहिए था. इस तरह तो शादी तय ही नहीं हो पाएगी.’’

‘‘तो न हो… कौन मेरी बेटी सड़क पर खड़ी भीग रही है. वह अपने घर में अपने मांबाप के साथ है. एक मयंक ही थोड़े हैं. हजार लड़के मिलेंगे. आखिर वह सर्विस कर रही है. हजार लड़के उस के आगेपीछे घूमेंगे.’’

‘‘मम्मी यह कहना आसान है, पर ऐसा संभव नहीं होता है,’’ रिया झल्ला कर बोली और फिर वहां से चली गई. मम्मी भी भुनभुनाती हुई किचन में चली गईं.

मेघा सारी बातें सुन कर सकपका गई कि आखिर मम्मी क्या चाहती हैं? क्या लड़की की शादी की बात करने जाने पर पहली बार ही इस तरह की बातें की जाती हैं… इस से तो इमेज खराब ही होगी. फिर मयंक भी कैसे बात संभाल पाएगा.

कल ही सोनल बता रही थी कि उस ने शादी के पहले 4 साल सर्विस की थी और उस की मम्मी ने उस की ही सैलरी से 2 अंगूठियां,

1 चेन और 1 जोड़ी पायल बनवा ली थीं. हर महीने कोई न कोई सामान उस के पीछे पड़ कर औनलाइन और्डर करा देती थी. साडि़यां, पैंटशर्ट, ऊनी सूट सब धीरेधीरे इकट्ठे कर लिए थे. बरतन, मिक्सी, बैडसीट्स कुछ भी शादी के समय नहीं खरीदना पड़ा था. सोनल के घर की हालत तो उन के घर से भी बदतर थी.

आज सोनल अपनी छोटी सी गृहस्थी में बहुत खुश है. एक प्यारा सा बेटा भी है. जीजाजी भी बहुत सुलझे हुए हैं. वे सोनल के मम्मीपापा का भी बहुत खयाल रखते हैं.

इसी बीच 8-10 दिन बीत गए. न यहां से किसी ने फोन किया, न मयंक के यहां से फोन आया. सोनल ने मेघा से पूछा तो वह बोली, ‘‘बारबार मेरा कहना अच्छा नहीं लगता.’’

तब सोनल ने ही मम्मी को फोन मिला कर पूछा तो वे बोलीं, ‘‘उन लोगों ने मेघा की कुंडली मांगी है… वह तो हम ने बनवाई नहीं… हमें कुंडली में विश्वास नहीं है.’’

तब सोनल बोली, ‘‘आंटी आप किसी से कुंडली चक्र बनवा कर भेज दीजिए. आप को तो वही करना पड़ेगा जो वे चाहते हैं. आखिर वे लड़के वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हमारी लड़की कमजोर है? वह भी कमाती है. हम उन के हिसाब से क्यों चलें? वे रिश्ता बराबरी का समझें तभी ठीक है.’’ सुन कर सोनल ने फोन काट दिया.

दूसरे दिन मयंक का फोन आया, ‘‘अरे यार अपनी कुंडली तो भिजवाओ. उस दिन तो मैं ने सब संभाल लिया था पर बिना कुंडली के बात कैसे आगे बढ़ाऊं?’’

मेघा ने पापा से कहा तो उन्होंने अगले दिन दे कर आने की बात कही. मेघा के मन में यह बात चुभ रही थी कि मम्मी के मन में क्या यह इच्छा नहीं होती कि उन की बेटियों की भी शादी हो… कल ही पड़ोस की आंटी आई थीं तो मम्मी उन से कह रही थीं, ‘‘मैं तो कहती हूं चारों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं… कमाएं और आराम से साथ रहें. क्या दुनिया में सभी की शादी होती है? अपनी कमाई से ऐश करें.’’

सुन कर मेघा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई कि केवल उस को ही नहीं ये तो चारों बेटियों की शादी न करने के पक्ष में है. क्या कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है? उधर पापा जन्मकुंडली बनवा कर मयंक के घर दे आए.

4-5 दिन बाद मयंक के पापा का मेघा के पापा के पास फोन आया. उन्होंने कुंडली मिलवा ली थी. मिल गई थी. आगे की बात करने के लिए पापा को अपने घर बुलाया था.

पापा ने खुशीखुशी रात के खाने पर सब को यह बात बताई तो सभी बहनें खुशी से तालियां बजाने लगीं.

‘‘तो आप लोग कब जा रहे हैं? रिया ने पूछा.’’

‘‘आप लोग नहीं अकेले मैं जाऊंगा,’’ कह कर पापा खाना खाने लगे.

मम्मी हैरानी से उन का मुंह देखने लगीं. फिर बोली, ‘‘अकेले क्यों?’’

‘‘अभी भीड़ बढ़ाने से कोई फायदा नहीं. पता नहीं बात बने या नहीं. फिर

दुकान तुम देख लेना… बंद नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘आप साफ बात कर भी पाएंगे?’’

मम्मी की आवाज सुन कर पापा खाना खातेखाते रुक गए. बोले, ‘‘हां, ऐसी साफसाफ भी नहीं करूंगा कि बात ही साफ हो जाए.’’

सुन कर हम बहनें हंस पड़ी. मम्मी गुस्सा कर किचन में चली गईं.

रात में फिर चारों बहनों की मीटिंग हुई. पापा अकेले मयंक के घर जाएंगे, इस बात से सभी बहुत खुश थीं.

Mother’s Day 2024: हसीं वादियों का तोहफा धर्मशाला

घूमने या सैरसपाटे की जब भी बात आती है तो शहरी आपाधापी से दूर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता सब को अपनी ओर आकर्षित करती है. इन छुट्टियों को अगर आप भी हिमालय की दिलकश, बर्फ से ढकी चोटियों, चारों ओर हरेभरे खेत, हरियाली और कुदरती सुंदरता के बीच गुजारना चाहते हैं तो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के उत्तरपूर्व में 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धर्मशाला पर्यटन की दृष्टि से परफैक्ट डैस्टिनेशन हो सकता है. धर्मशाला की पृष्ठभूमि में बर्फ से ढकी छोलाधार पर्वतशृंखला इस स्थान के नैसर्गिक सौंदर्य को बढ़ाने का काम करती है. हाल के दिनों में धर्मशाला अपने सब से ऊंचे और खूबसूरत क्रिकेट मैदान के लिए भी सुर्खियों में बना हुआ है. हिमाचल प्रदेश के दूसरे शहरों से अधिक ऊंचाई पर बसा धर्मशाला प्रकृति की गोद में शांति और सुकून से कुछ दिन बिताने के लिए बेहतरीन जगह है.

धर्मशाला शहर बहुत छोटा है और आप टहलतेघूमते इस की सैर दिन में कई बार करना चाहेंगे. इस के लिए आप धर्मशाला के ब्लोसम्स विलेज रिजौर्ट को अपने ठहरने का ठिकाना बना सकते हैं. पर्यटकों की पसंद में ऊपरी स्थान रखने वाला यह रिजौर्ट आधुनिक सुविधाओं से लैस है जहां सुसज्जित कमरे हैं जो पर्यटकों की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं. बजट के अनुसार सुपीरियर, प्रीमियम और कोटेजेस के औप्शन मौजूद हैं. यहां के सुविधाजनक कमरों की खिड़की से आप धौलाधार की पहाडि़यों के नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं. यहां की साजसजावट व सुविधाएं न केवल पर्यटकों को रिलैक्स करती हैं बल्कि आसपास के स्थानों को देखने का अवसर भी प्रदान करती हैं. इस रिजौर्ट से आप आसपास के म्यूजियम, फोर्ट्स, नदियों, झरनों, वाइल्ड लाइफ पर्यटन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद ले सकते हैं.

धर्मशाला चंडीगढ़ से 239 किलोमीटर, मनाली से 252 किलोमीटर, शिमला से 322 किलोमीटर और नई दिल्ली से 514 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस स्थान को कांगड़ा घाटी का प्रवेशद्वार माना जाता है. ओक और शंकुधारी वृक्षों से भरे जंगलों के बीच बसा यह शहर कांगड़ा घाटी का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त धर्मशाला को ‘भारत का छोटा ल्हासा’ उपनाम से भी जाना जाता है. हिमालय की दिलकश, बर्फ से ढकी चोटियां, देवदार के घने जंगल, सेब के बाग, झीलों व नदियों का यह शहर पर्यटकों को प्रकृति की गोद में होने का एहसास देता है.

कांगड़ा कला संग्रहालय: कला और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए यह संग्रहालय एक बेहतरीन स्थल हो सकता है. धर्मशाला के इस कला संग्रहालय में यहां के कलात्मक और सांस्कृतिक चिह्न मिलते हैं. 5वीं शताब्दी की बहुमूल्य कलाकृतियां और मूर्तियां, पेंटिंग, सिक्के, बरतन, आभूषण, मूर्तियां और शाही वस्त्रों को यहां देखा जा सकता है.

मैकलौडगंज : अगर आप तिब्बती कला व संस्कृति से रूबरू होना चाहते हैं तो मैकलौडगंज एक बेहतरीन जगह हो सकती है. अगर आप शौपिंग का शौक रखते हैं तो यहां से सुंदर तिब्बती हस्तशिल्प, कपड़े, थांगका (एक प्रकार की सिल्क पेंटिंग) और हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद सकते हैं. यहां से आप हिमाचली पशमीना शाल व कारपेट, जो अपनी विशिष्टता के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित हैं, की खरीदारी कर सकते हैं. समुद्रतल से 1,030 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मैकलौडगंज एक छोटा सा कसबा है. यहां दुकानें, रेस्तरां, होटल और सड़क किनारे लगने वाले बाजार सबकुछ हैं. गरमी के मौसम में भी यहां आप ठंडक का एहसास कर सकते हैं. यहां पर्यटकों की पसंद के ठंडे पानी के झरने व झील आदि सबकुछ हैं. दूरदूर तक फैली हरियाली और पहाडि़यों के बीच बने ऊंचेनीचे घुमावदार रास्ते पर्यटकों को ट्रैकिंग के लिए प्रेरित करते हैं.

कररी : यह एक खूबसूरत पिकनिक स्थल व रैस्टहाउस है. यह झील अल्पाइन घास के मैदानों और पाइन के जंगलों से घिरी हुई है. कररी 1983 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हनीमून कपल्स के लिए यह बेहतरीन सैरगाह है.

मछरियल और ततवानी : मछरियल में एक खूबसूरत जलप्रपात है जबकि ततवानी गरम पानी का प्राकृतिक सोता है. ये दोनों स्थान पर्यटकों को पिकनिक मनाने का अवसर देते हैं.

कैसे जाएं

धर्मशाला जाने के लिए सड़क मार्ग सब से बेहतर रहता है लेकिन अगर आप चाहें तो वायु या रेलमार्ग से भी जा सकते हैं.

वायुमार्ग : कांगड़ा का गगल हवाई अड्डा धर्मशाला का नजदीकी एअरपोर्ट है. यह धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूर है. यहां पहुंच कर बस या टैक्सी से धर्मशाला पहुंचा जा सकता है.

रेलमार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट यहां से 95 किलोमीटर दूर है. पठानकोट और जोगिंदर नगर के बीच गुजरने वाली नैरोगेज रेल लाइन पर स्थित कांगड़ा स्टेशन से धर्मशाला 17 किलोमीटर दूर है.

सड़क मार्ग : चंडीगढ़, दिल्ली, होशियारपुर, मंडी आदि से हिमाचल रोड परिवहन निगम की बसें धर्मशाला के लिए नियमित रूप से चलती हैं. उत्तर भारत के प्रमुख शहरों से यहां के लिए सीधी बससेवा है. दिल्ली के कश्मीरी गेट और कनाट प्लेस से आप धर्मशाला के लिए बस ले सकते हैं.

कब जाएं

धर्मशाला में गरमी का मौसम मार्च से जून के बीच रहता है. इस दौरान यहां का तापमान 22 डिगरी सैल्सियस से 38 डिगरी सैल्सियस के बीच रहता है. इस खुशनुमा मौसम में पर्यटक ट्रैकिंग का आनंद भी ले सकते हैं. मानसून के दौरान यहां भारी वर्षा होती है. सर्दी के मौसम में यहां अत्यधिक ठंड होती है और तापमान -4 डिगरी सैल्सियस के भी नीचे चला जाता है जिस के कारण रास्ते बंद हो जाते हैं और विजिबिलिटी कम हो जाती है. इसलिए धर्मशाला में घूमने के लिए जून से सितंबर के महीने उपयुक्त हैं.

Mother’s Day 2024: मुंबई का मसालेदार स्वाद ‘बेक्ड वड़ा पाव’

मदर्स डे के मौके पर अगर आप अपनी मां या बच्चों के लिए टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो मुंबई की फेमस डिश वड़ा पाव की रेसिपी ट्राय करें. ‘बेक्ड वड़ा पाव’ आसान और टेस्टी डिश है, जिसे आप अपनी फैमिली के लिए आसानी से बना सकती हैं.

सामग्री ब्रैड की

–  2 छोटे चम्मच सूखा खमीर

–  1 बड़ा चम्मच पिसी चीनी

–  1/4 कप कुनकुना पानी

–  2 कप मैदा

–  1 बड़ा चम्मच मिल्क पाउडर

–  1/2 कप कुनकुना दूध

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

–  2 चम्मच तेल

–  1 चुटकी हींग

–  1/2 छोटा चम्मच जीरा

–  1/2 छोटा चम्मच सरसों

–  1 छोटा चम्मच साबूत धनिया दरदरा कुटा हुआ

–  8-10 करीपत्ते

–  1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन बारीक कटा हुआ

–  1 हरीमिर्च बारीक कटी हुई

–  4 आलू उबले और मसले हुए

–  1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

–  1 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

–  2 बड़े चम्मच धनिया पत्ती कटी हुई

–  1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

एक कटोरी में सूखा खमीर, चीनी और कुनकुना पानी डाल कर मिलाएं. 20 मिनट एक तरफ रख दें. जब इस में झाग आ जाए तब इस में नमक, मैदा और मिल्क पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. थोड़ाथोड़ा कुनकुना दूध डालते हुए नर्म आटा गूंध लें. अब इसे ढक कर किसी गरम जगह पर तब तक रखें जब तक कि यह फूल कर डबल न हो जाए.

भरावन की विधि

कड़ाही में 2 चम्मच तेल गरम कर हींग, जीरा, सरसों और धनिया डाल कर चटकने दें. अब इस में अदरक व लहसुन डाल कर भून लें. फिर इस में नमक, लालमिर्च, धनिया पाउडर व हलदी पाडर डाल कर 1 मिनट भूनें. अब इस में आलू, हरीमिर्च डाल कर अच्छी तरह मिला लें. 5 मिनट बाद आंच बंद कर दें. नीबू का रस और धनियापत्ती डाल कर मिला लें और फिर ठंडा होने दें. आटे से लोईयां तोड़ें और थोड़ा मोटा और गोल बेल के बीच में

2-3 चम्मच भरावन (आलू का मिक्सर) रखें. इसे बंद कर गोल आकार दे दें. बेकिंग ट्रे पर रख कर किसी गरम जगह पर तब तक रखें जब तक कि यह फूल न जाए. फिर 180 डिग्री पर पहले से गरम ओवन में 10 मिनट बेक कर लें. बेक होने के बाद ऊपर मक्खन लगाएं और गरमगरम सर्व करें.

  • व्यंजन सहयोग: रीटा अरोड़ा
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