खुश रहें स्वस्थ रहें

आज के दौर में हर कोई किसी ना किसी परेशानी से जूझ रहा है. ये परेशानी तब और ज्यादा बढ़ गयी जब से कोरोना महामारी ने अपनी दस्तक दी. ऐसे में तनाव, चिंता और मूड को सही रखना भी जरूरी है. हमारे अंदर इमोशन ही तो हैं जो समय समय पर बदलते रहते हैं. तमाम विशेषज्ञों और उनकी शोध के मुताबिक हमारा व्यवहार, तनाव को नियंत्रित करने के लिए काफी मददगार होता है.

हम जब भी परेशानी में होते हैं तो उसमें ख़ुशी ढूंढना काफी मुश्किल काम है. परेशानी तनाव का सबसे बड़ा सबब बन सकती है. हमें ऐसे समय में खुश रहने की सबसे ज्यादा जरूरत है, जब चारों तरफ से नकारात्मकता हमारे ऊपर हावी हो रही हो. यकीन मानिये ये बिलकुल भी नामुमकिन नहीं है.
ये कैसे करना है, चलिए जानते हैं.

1. तनाव से रहें दूर-

तनाव हमारे लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है. अगर हम खुद को इससे जितना हो सके दूर रखेंगे उतना ही फायदा हमें ही मिलेगा. कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच स्थितियां भी कुछ यूं हो गयी हैं कि तनाव पास ही आ रहा है. ऐसे में ब्लडप्रेशर को समान्य रखना भी काफी जरूरी है. इसलिए अच्छी हेल्थ और ख़ुशी के लिए डॉक्टर भी आपको तनाव से दूरी बनाने की अच्छी सलाह देंगे.

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2. कितना काम का ध्यान?-

काफी लोग होते हैं जो अपनी परेशानी के दौर में ध्यान लगाना पसंद करते हैं. लेकिन हर कोई ध्यान नहीं लगा सकता. कुछ लोग शांति का अभ्यास तो करते हैं लेकिन उनको सफलता नहीं मिलती. ऐसे में जरूरी है कि अगर आप भी ध्यान लगाने में अपना मन एकाग्र नहीं कर पाते तो कोई और रास्ता ढूंढें जो आपको शांति और ख़ुशी दे. आप उन बातों के बारे में ना सोचें जो आपको तनाव देती हैं.

3. ना छोड़ें उम्मीद-

उम्मीद ही तो मात्र एक ऐसी चीज होती है जिस पर पूरी दुनिया टिकी हुई है. उम्मीद के जरिये आप बड़ी से बड़ी मुश्किल परिस्थियों में खुद को ख़ुशी महसूस करा सकते हैं. अगर आपने नकारात्मक परिस्थिति में सब कुछ सकारात्मक बनाए की ठान लें तो आपको जीत जरुर मिलेगी.

4. कहीं ज्यादा सकारात्मकता ना पड़ जाए भार-

जी हां आगे आप हर वक्त सकारात्मकता के बारे में ज्यादा ध्यान देते हैं या खुश रहने के बारे में ही सोचते रहते हैं तो ये आर्टिफिशियल या बनावटी लग सकता है. कभी कभी इसका प्रभाव उल्टा भी पड़ सकता है. क्योंकि हम जितना ध्यान अपनी ख़ुशी की ओर केन्द्रित करते हैं उतना ही मन उदास होता है. और आप कभी कभी खुद के बारे में बुरा भी महसूस कर सकते हैं.

5. छोटी-छोटी चीजों पर दें ध्यान-

ये विकल्प आपके लिए फायदे का सौदा हो सकता है. कभी कभी हमें छोटी से छोटी चीजें भी वो ख़ुशी देती हैं, जो बड़ी चीजें नहीं दे पाती. विशेषज्ञों की मानें तो सकारात्मकता मनोविज्ञान पर आधारित होती है. हमारा छोटी सी चीज भी मूड बेहतर बना सकती है तो फिर खुद सोचिये किसी बड़ी ख़ुशी के पीछे भागने से क्या फायदा?

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6. खुद को खोजिये-

परेशानी के बीच इंसान खुद के अस्तित्व को भुलाने लगता है. ऐसे में आपको खुद को खोजना चाहिए. आप अपना समय घर की साफ़ सफाई में लगाइए. इससे आपका मन केन्द्रित रहेगा. क्योंकि एक गंदा कमरा भी कहीं ना कहीं सकारात्मकता पर असर डालता है. साथ ही गंदा रसोई आपके स्वाश्थ्य को खराब करता है. इसलिए अगर आप घर में अपना समय बिताते हैं तो अपना समय साफ़ सफाई में लगाएं. इससे आप संक्रमण से भी बचे रहेंगे और आपकी हेल्थ भी सही रहेगी.

7. सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर हो कंट्रोल-

इस बात से ऐतराज नहीं किया जा सकता कि सोशल मीडिया बुरी खबरों से भरा हुआ है. हालांकि आप इसके जरिये खुद को अपडेट रखने के साथ अपने दूर दराज के दोस्तों और परिजनों के साथ जुड़े रहने का मौका भी मिलता है. आप सोते वक्त सोशल मीडिया का इस्तेमाल ना करें. आप अपने परिवार वालों के साथ या उन लोगों के साथ समय बिताएं जो आपके अपने हैं और आपके करीब हैं. इससे आपको ख़ुशी मिलेगी.

तो ये कुछ ऐसी टिप्स हैं, जिनकी मदद से आप बड़ी से बड़ी परेशानी को हराकर अपने लिए ख़ुशी के दो पलों को चुरा सकते हैं. इस वक्त पूरा विश्व ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां चारों ओर नकारात्मकता ही है. ऐसे में आपको अपना ख़ास ख्याल खुद ही रखना है. आप खुद को तनाव मुक्त तभी बना पाएंगे जब आप परेशानी से दूर रहेंगे. और आपको परेशानी से दूर कैसे रहना है उसके लिए आपकी मदद हमारा ये लेख करेगा.

स्ट्रैस भी दूर करती है बुनाई

आंकड़ों के अनुसार 2020 में 80% भारतीय काम, हैल्थ व अन्य आर्थिक कारणों से स्ट्रैस की गिरफ्त में आए हैं. यही नहीं, दिनप्रतिदिन किसी न किसी कारण से हम स्ट्रैस का शिकार होते हैं, जिस से उबरने के लिए हम ऐंटीस्ट्रैस चीजें करने के बारे में सोचने को विवश हैं ताकि हम खुश रह सकें, प्रोडक्टिव सोच सकें व स्ट्रैस से खुद को बाहर निकाल सकें.

ऐसे में हाल के समय में बुनाई स्ट्रैस से बाहर निकालने का बहुत ही बेहतरीन विकल्प है, जबकि बुनाई को ले कर कुछ लोगों का मानना है कि इस से इंसान सुस्त, आलसी बनता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बुनाई से आप ऐक्टिव रहते हैं, चीजों पर अच्छी तरह फोकस कर पाते हैं, रिलैक्स मूड में रहते हैं, नैगेटिव चीजों से दूर रहते हैं, यह कहना भी ज्यादा नहीं होगा कि यह हमारे ब्रेन के लिए स्ट्रैस बस्टर का काम करती है.

जानते हैं, बुनाई से हमें क्याक्या फायदे मिलते हैं:

मैडिटेशन का काम करे

जिस तरह मैडिटेशन से आप का मन शांत हो कर आप खुद पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं, उसी तरह बुनाई से आप एक जगह ध्यान लगा कर यानी अपने बुनाई के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर के खुद को तनाव से दूर रख पाते हैं.

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अनेक शोधों में यह साबित हुआ है कि बुनाई उन लोगों को तनाव से राहत देने का काम करती है, जो जल्दी उत्साहित हो जाते हैं, तनाव में आ जाते हैं या फिर छोटीछोटी बातों को ले कर टैंशन ले लेते हैं, यह उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में मदद करती है.

आप ने कई बार नोटिस किया होगा कि आप परेशान होने पर अपने हाथपैरों को हिलाते होंगे या फिर पेन से खेलते होंगे. आप में से कुछ लोगों ने इन संवेदनाओं को महसूस किया होगा या कुछ ने इस से मिलताजुलता किया होगा. जानेअनजाने में, हमारा ब्रेन इस तरह की गतिविधियों में शामिल हो कर हमारी परेशान होने वाली भावनाओं को कम करने में मदद करता है. उसी तरह जब हम बुनाई के जरीए एक ही चीज को बारबार दोहराते हैं तो उस से हमारे ब्रेन में हैप्पी हारमोंस सक्रिय हो कर हमें रिलैक्स करने के साथ ही हमें खुश करने का काम भी करते हैं.

बुनाई एक तरह से मैडिटेशन के समान है, क्योंकि जिस तरह आप मैडिटेशन के दौरान अपने पूरे ध्यान को सांस लेने पर केंद्रित करते हैं, उसी तरह बुनाई में भी ज्यादातर कार्य आप के हाथों पर केंद्रित होता है.

रखे प्रोडक्टिव

आलसी बने रहने व काम न करने के कारण भी हम धीरेधीरे स्ट्रैस की गिरफ्त में आने लगते हैं या यह कह सकते हैं कि यह स्ट्रैस का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है.

लेकिन जब हम बुनाई के जरीए एक ही चीज को बारबार दोहराते हैं तो हमें अच्छा महसूस होने के साथसाथ हमें यह भी लगता है कि हम ने आज कुछ बेहतर किया है, जिस की शायद हम ने उम्मीद भी न की हो. इस की खास बात यह भी है कि आप बुनाई करते हुए दूसरे काम भी कर सकते हैं. जैसे आप नैटफ्लिक्स या फिर टीवी पर अपना फैवरिट प्रोग्राम अथवा फिर सीरीज भी देख सकते हैं यानी एकसाथ दो काम.

बुरी आदतों से दूर रखे

हर समय स्ट्रैस में रहने से आप का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने के साथसाथ अन्य मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं, जैसे गंभीर अवसाद, ज्यादा खाने की आदत, ऐनोरेक्सिया आदि जो आप की मुश्किलों को और बढ़ा सकते हैं, जबकि बुनाई एक सामान्य सी गतिविधि है, फिर भी आप को अन्य गंभीर विकारों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करती है.

सेहत वाले लाभ

जो लोग दिल से संबंधित बीमारी या फिर अन्य समस्याएं जैसे पोस्ट ट्रोमैटिक स्ट्रैस डिसऔर्डर, तनाव, क्रोनिक पेन आदि समस्याओं से ग्रस्त होते हैं, उन के लिए अपने जीवन में स्ट्रैस को दूर करने के लिए कुछ स्ट्रैस से राहत देने वाली गतिविधियों को करना जरूरी होता है. ऐसे में बुनाई भी एक ऐसी गतिविधि है, जिसे इन स्थितियों में थेरैपिस्ट भी करने की सलाह देते हैं.

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इसलिए बिना किसी हिचकिचाहट आप बुनाई को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लें और अपनी जिंदगी को तनावरहित हो कर जीएं.

तनाव के कोरोना से जूझती कामकाजी महिलाएं

विश्व में जब भी कोई आपदा या महामारी आती है, तो लोग उससे जूझते हैं, लड़ते हैं और फिर उससे पार पाकर बाहर आते हैं.  पर उसका दुष्प्रभाव सदियों तक रहता है, खासकर मनुष्य के शरीर पर और उससे ज्यादा मन पर.

ठीक वैसे ही जैसे आज हम कोरोना से लड़ रहे हैं. कल को इस महामारी की वैक्सीन बनने और उचित स्वास्थ विज्ञान के होने से हम निश्चित ही इस पर विजय प्राप्त कर लेंगे, पर इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव से हम कब और कैसे उबरेंगे, यह कह पाना फिलहाल तो बहुत ही कठिन है.

जहां आज इस वैश्विक बीमारी ने लाखों लोगों को प्रभावित किया है, वहीं मौत का आंकड़ा भी कम नहीं है. एक और जहां इससे पुरुष, स्त्रियां, बच्चे सभी प्रभावित हो रहे हैं, पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव महिलाओं पर खासकर नौकरीपेशा महिलाओं पर अलग ही तरीके से पड़ रहा है. एकदम अदृश्य कोरोना वायरस की तरह.

यह डर बेवजह नहीं है. यूएन वीमेन एशिया पैसिफिक का मानना है कि आपदाएं हमेशा जेंडर इनइक्वालिटी को और भी खराब कर देती हैं. एक महिला के लिए तो यह एक दोहरी नहीं, बल्कि तिहरी जिम्मेदारी सी आई है. घर की जिम्मेदारियां, ऑफिस की जिम्मेदारीयां, और अब कोविड 19 संग आईं नई जिम्मेदारियों के संग तालमेल बिठाना अपने आप में जैसे एक सुपर स्पेशिएलिटी ही है.

स्कूलबंदी का तनाव

एक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में सिर्फ प्राथमिक कक्षाओं में जाने लायक 5.88 करोड़ लड़कियां और 6.37 करोड़ लड़के हैं. लगभग हर घर में स्कूल जाते बच्चों के अनुसार ही घर के कामों की रूटीन बैठाई जाती है.अचानक ही कोरोना के कारण हुए इस स्कूलबंदी ने सामंजस्य घटक का कार्य किया है.

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अब सोचिए कि उन महिलाओं का क्या जिन्होंने बच्चों के स्कूल के हिसाब से घर के कार्यो को सेट किआ था? अब वही बच्चे न तो स्कूल ही जा पा रहे हैं, न ही कोचिंग, खेल के मैदान और पार्क की तो बात ही छोड़ दो. यहां तक कि बच्चो की संख्या अगर 2 या 2 से अधिक है तो घर को अखाड़ा बनते भी देर नही लगती. यह सिरदर्दी उन घरों में और ज्यादा बढ़ गई है जहां महिलाएं नौकरीपेशा हैं. नौकरी के साथ साथ बच्चों का मेलोड्रामा, उनके अपने साइकोलॉजिकल ट्रॉमा, बड़े बच्चो में पढ़ाई का प्रेशर और छोटे बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज… कामकाजी महिलाओं में तनाव बढ़ाने का आसान रास्ता.

गौर करने की बात है कि एक 5 वर्षीय बच्चे की मम्मी को कितनी मशक्कत करनी पड़ती होगी उसकी एलकेजी क्लास के लिए… ऑनलाइन स्क्रीन के सामने बिठाना, पढ़ाई करवाना और साथ ही साथ अपने दूसरे जरूरी काम भी करना.

वर्क फ्रॉम होम- समस्या या समाधान

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 27 प्रतिशत महिलाओं नौकरी करती हैं. इस कम आंकड़े की एक महत्वपूर्ण वजह घर में इसके अनुकूल वातावरण का न होना भी है. आज कोविड 19 से कारण बहुत सारी कंपनियों ने सितंबर महीने तक वर्क फ्रॉम होम दे रखा. घर में माहौल का न होना, घरेलू कार्य और बच्चे सब मिलकर इस सुविधा को असहज करते हैं.

टीसीएस में कार्यरत एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर का कहना है कि बच्चों की धमाचौकड़ी की वजह से घर में ऑफिस के काम के प्रति एकाग्रता नहीं बन पा रही है जिस से काम में रुकावट पैदा हो रही है. कई बार तो उनके सोने के बाद काम करना पड़ता है जो बहुत ही थकाऊ प्रोसेस है.

आप जैसे ही काम करने के लिए बैठते हैं, बच्चो की फरमाइशों की लिस्ट आ जाती है. आप उन्हें पूरा करते हैं, तबतक वर्क फ्रंट से अलग ही प्रेशर बन चुका होता है.कई बार तो ऐसा होता है कि आपकी एक इम्पोर्टेन्ट क्लाइंट मीटिंग की वी सी चल रही होती और आपके बच्चे बीच में आकर अपनी शरारतें करने लगते हैं या कभी कभी आपस में ही इस कदर गुत्थमगुत्था हो जाते हैं कि आपको तब कैमरा ऑफ के साथ मीटिंग म्यूट करनी पड़ती है और उनके झगड़े सुलझाने होते हैं.वापस मीटिंग में आने के बाद आपके व्यवहार में चिड़चिड़ाहट आना भी स्वभाविक हो जाता है और एक अच्छी खासी मीटिंग का सत्यानाश हो जाता है.

घरेलू हिंसा की भयावता

कोरोना के कारण उपजे अवसाद और आर्थिक तंगी ने एक ऐसा कॉकटेल बना दिया है जो घरेलू हिंसा को बढ़ावा दे रहा है. यहां तक कि मुम्बई हाईकोर्ट भी इस बात को स्वीकारता है कि कोरोना काल के इस दौर में घरेलू हिंसा के मामले भी अपने आप मे एक रिकॉर्ड बना रहे हैं खासकर भारत जैसे विकासशील देश में जो कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार महिलाओं की सहभागिता (अर्थोपार्जन में) के अनुसार विश्व के 130 देशों के आगे 120वीं रैंक पर है.

कोविड 19 ने दुनिया का आयाम ही बदल दिया है. वर्क फ्रंट में काम की तंगी, व्यवसायों का ठप्प होना, करोड़ों अरबों रुपयों का नुकसान होना एक अवसाद तो उत्पन्न कर ही रहा है ऊपर से भविष्य की चिंता अलग ही विकराल रूप ले रही है और इन सबका एकमात्र शिकार होती हैं घर की महिलाएं जिन पर सारे तनाव घरेलू हिंसा के रूप में बेवजह रिलीज किए जाते हैं.

ऑफिस का तनाव

अब जबकि लोकडाउन तकरीबन खत्म हो चुका है, बहुत सारे कार्यलय खुल चुके हैं और लोगों को  ऑफिस बुलाया जाने लगा है, ऐसे वक्त में हॉउस हैल्पर का न होना (इसमें रिवर्स माइग्रेशन का भी एक अहम योगदान है), स्कूल और क्रेशेज का न खुलना जैसी समस्याएं और भी मुश्किलें पैदा कर रही हैं. ऐसे में महिलाओं का जॉब खोना और कई बार पूरी तल्लीनता से काम न कर पाने की वजह से वेतन कटौती का भी सामना करना पड़ रहा है.

ऐसी ही एक सिंगल मदर हैं जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोजिशन पर हैं. उनका 6 साल का बच्चा है. पहले जहां बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद वे ऑफिस आती थीं, स्कूल के बाद बच्चा वहीं क्रेश में उनके ऑफिस से लौटने तक रहता था. कोविड के कारण अब यह संभव नही है.घर पर फिर भी कुछ मुश्किलों से ही सही पर बच्चे की देखरेख के साथ ऑफिस का काम हो पाता था, पर चूंकि अब औफिस जाना ही है और स्कूल और क्रेश बंद हैं, तो यह एक अलग ही समस्या सामने खड़ी हो गई है.

फ्रंटलाइन वर्कर्स

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार स्वास्थ्य विभाग में 70 प्रतिशत सहभागिता महिलाओं की है. घर की दोहरी जिम्मेदारी तो उन्हें परेशान करती ही है, ऊपर से कार्यस्थल की परेशानियां अलग ही होती हैं. कितनी ही जगहों पर तो महिलाओं के साथ अभद्रता की भी रिपोर्ट आ रही हैं.वहीं पर महिलाओं को हाईजीन की भी परेशानी आ रही है, जो पीपीई किट के उपयोग के कारण 10-10 घंटे तक वाशरूम तक का भी प्रयोग नहीं करने के कारण हो रहा है.

कोविड 19 के रोगियों के साथ काम करने की वजह से खुद को परिवारों से आइसोलेट करके रखना भी एक समस्या है. परिवार से दूर रहना भी चिंता में एक इजाफा ही है. छोटे छोटे बच्चों को उनकी माँ से दूर बिलखते देख तो जैसे कलेजा ही फाड़ देता है. आंसुओं से भीगे अपने बच्चों के गालों को वीडियो कॉलिंग में देखना और पुचकार के साथ उन्हें पोंछ न पाने का मर्म सिर्फ एक मां ही समझ सकती है.

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इन सारी परेशानियों के साथ साथ कोविड 19 के भयावह वातावरण का अवसाद, परिवार की चिंता यहां तक कि छोटे छोटे बच्चों की बढ़ती स्क्रीन टाइमिंग भी महिलाओं को परेशान कर रही है, पर इन सब मुसीबतों के बीच लोगों खासकर महिलाओं का मैगजीनों के प्रति बढ़ता रुझान बताता है कि सोशल डिस्टेनसिंग और परिवार और हाउस हेल्पर की अनुपस्थिति में उन्हें एक सच्चा साथी मिल पा रहा है, जो उन्हें उनके लिए वक्त दे रहा है.

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