तब्बरः परिवार के अस्तित्व को बचाने के लिए आप किस हद तक जा सकते हैं…

रेटिंगः चार स्टार

निर्माताः जार पिक्चर्स

निर्देशकः अजीत पाल सिंह

कलाकारः पवन मल्होत्रा, सुप्रिया पाठक, गगन अरोड़ा, रणवीर शोरी,  साहिल मेहता, परमवीर सिंह चीमा,  अली मुगल, बाबला कोचर , कंवलजीत सिंह, नुपुर नागपाल,  आकाशदीप साहिर,  तरन बजाज,  निशांत सिंह, लवली सिंह,  मेहताब विर्क, रोहित खुराना, रचित बहल व अन्य

अवधिः पांच घंटे 15 मिनटः 30 से 47 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव

हर इंसान के लिए सबसे पहले अपना परिवार होता है. इंसान अपने परिवार के अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए किस हद तक जा सकता है, इसी को चित्रित करते हुए कई अंतरराष्ट्ीय पुरस्कार हासिल कर चुके फिल्मकार अजीत पाल सिंह क्राइम थ्रिलर वेब सीरीज ‘‘ टब्बर’’ लेकर आए हैं, जो कि 15 अक्टूबर से ओटीटी प्लेटफार्म सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही है. पंजाबी में परिवर को टब्बर कहते हैं. इसी के साथ अजीत पाल सिंह ने इस सीरीज में एक ऐसे द्वंद का चित्रण किया है, जो अक्सर घर व हर इंसान के अंदर चलता रहता है. इस सीरीज में पत्नी सरगुन भगवान यानी कि रब पर पूरा भरोसा करती है. मगर पति ओंकार भगवान यानी कि ईश्वर यानी कि रब से नाराज है. ओंकार तय करता है कि परिवार पर आयी आफत को वह ख्ुाद ही ठीक करेगा. वह तय करता है कि मैं खुद ही अपने परिवार को बचाउंगा. मैं खुद ही तय करुॅंगा कि मेरे व मेरे परिवार के साथ क्या हो. रब कुछ नही करने वाला है.

कहानीः

कहानी का केंद्र बिंदु जालंधर,  पंजाब में रह रहा ओंकार(पवन मल्होत्रा) और उसका परिवार है. ओंकार के परिवार में उसकी पत्नी सरगुन(सुप्रिया पाठक), बड़ा बेटा हरप्रीत सिंह उर्फ हैप्पी(गगन अरोड़ा) व छोटा बेटा तेगी(साहिल मेहता) है. 12 वर्ष तक पुलिस की नौकरी करने के बाद एक हादसे के चलते पुलिस की नौकरी छोड़कर ओंकार ने अपनी किराने की दुकान खोल ली थी. अपने दोनों बेटों को बेहतर इंसान बनाने व उच्च शिक्षा देने में वह अपना सब कुछ न्योछावर करते रहते हैं. मगर तकदीर अपना खेल ख्ेालती रहती है. ओंकार ने अपने बड़े बेटे हैपी को आई पीएस अफसर बनाने के लिए उसे कोचिंग में पढ़ने के लिए दिल्ली भेजता है. जहां घर का बड़ा बेटा होने की जिम्मेदारी का अहसास कर हैप्प्ी दो माह बादकोचिंग छेाड़कर एक इंसान से कुछ कर्ज लेकर अपना व्यापार श्ुारू करता है. पर घाटा होता है और कर्ज तले दब जाता है , तब वह जालंधर वापस आता है. रास्ते में कर्ज के बोझ से छुटकारा पाने के लिए वह महीप सोढ़ी(रचित बहल ) के बैग से अपना बैग बदल लेता है. क्योंकि उसे पता चल जाता है कि महीप के बैग में पीला ड्ग्स है. मगर हैप्पी के पीछे पीछे महीप अपना बैग लेेने हैप्पी के घर आ जाता है. हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि हैप्पी के हाथों महीप का कत्ल हो जाता है. महीप का भाई अजीत सोढ़ी (रणवीर शोरी ) बहुत बड़ा उद्योगपति है, जो कि चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. अब अपने बेटे हैप्पी व परिवार को सुरक्षित रखने का निर्णय लेते हुए ओंकार ऐसा निर्णय लेते हैं कि कहानी कई मोड़ों से होकर गुजरती है.

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लेखन व निर्देशनः

‘कर बहियां बल आपनी, छांड़ बिरानी आस. . . ’’ का संदेश देने वाली वेब सीरीज है- ‘‘टब्बर’’. जिसमें ‘‘रम्मत गम्मत’’ और ‘‘फायर  इन द माउंटेंस’’ के लिए कई अंतरराष्ट्ीय पुरस्कार हासिल कर चुके  निर्देशक अजीत पाल सिंह ने अपनी संवेदन शीलता को एक बार फिर उजागर किया है. फिल्मकारों के लिए अब तक पंजाब यानी कि ‘सरसों के खेत’’ही रहा है, मगर अजीत पाल सिंह ने इस वेब सीरीज में न सिर्फ   पंजाब के परिवार बल्कि पंजाब के सामाजिक व राजनीतिक परिदृश्य को भी यथार्थ परक तरीके से उकेरा है. इतना ही नही फिल्मकार ने बड़ी खूबसूरती से यह संदेश भी दे दिया है कि इंसान ‘रब’ की बजाय ख्ुाद पर भरोसा कर हर मुसीबत का मुकाबला ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकता है. निर्देशक ने सारे दृश्य इस तरह से गढ़े है कि वह कहानी व लेखक के लिखे शब्दों को बल देता है. अजीत पाल सिंह का उत्कृष्ट संवेदनशील निर्देशन इस सीरियल को उत्कृष्टता की उंचाई प्रदान करता है. यॅॅंू तो यह क्राइम थ्रिलर है, मगर फिल्मकार व लेखक ने इसमें पंजाब की जमीनी सच्चाई को पूरी इमानदारी के साथ पेश किया है. इसमें पारिवारिक रिश्ते, प्यार,  दोस्ती, तनाव,  ड्ग्स,  ड्ग्स के चलते बर्बाद होती होनहार युवा पीढ़ी, गलत समझे जाने वाला पॉप कल्चर, पूरे संसार को जीतने की ललक के साथ ही राजनीति की बिसातों का भी चित्रण है. वेब सीरीज का अंत यानी कि आठवंे एपीसोड का अंतिम अति मार्मिक दृश्य दर्शकांे की आॅंखांे से आंसू छलका देता है. इसके बावजूद लेखक व निर्देशक ने किसी भी किरदार को सही या गलत नही ठहराया है, बल्कि दिखाया है कि आप चाहे जितना मासूम हो, पर गलती हुई है, तो उसकी सजा मिलनी ही है.

लेखक हरमन वडाला ने इसमें परिवार के अंदर भावनात्मक संघर्ष, आथर््िाक हालात के साथ प्यार को साधने के संघर्ष,  का भी बाखूबी चित्रण किया है. सीमावर्ती प्रदेश पंजाब की भौगोलिक स्थिति को कहानी के एक किरदार के रूप में उकेरा है, तो वहीं कौवा और कौवे की आवाज का भी संुदर उपयोग किया गया है, जिससे कहानी समृद्ध हो जाती है.

लेकिन शुरूआत के दो एपीसोड काफी ढीले ढाले हैं. इसके अलावा कुछ दृश्य तार्किक नही लगते. इतना ही नही पलक व हैप्पी की प्रेम कहानी को अंत में लेखक व निर्देशक भूल गए.

अभिनयः

एक पिता, परिवार का मुखिया और अपने दो मासूम बेटो को हर तूफान से सुरक्षित रखने के लिए बिना ‘रब’@‘भगवान’ पर भरोसा किए अकेले ही सबसे लड़ने व नई पई योजना बनाने वाले ओंकार के अति जटिल किरदार को जीवंतता प्रदान कर अभिनेता पवन मल्होत्रा ने अपने कुशल व उत्कृष्ट अभिनय का एक बार फिर लोहा मनवाया है. पूरी वेब सीरीज को पवन मल्होत्रा अकेले अपने कंधे पर लेकर चलते हैं. पति का साथ देने व भावनात्मक स्वाद बढ़ाते हुए सरगुन के किरदार में एक बार फिर सुप्रिया पाठक ने खुद को एक बार फिर मंजी हुई अदाकारा  के रूप में पेश किया है. बड़े बटेे हैप्पी के संजीदा किरदार में अभिनेता गगन अरोड़ा अपने अभिनय के चलते न सिर्फ लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हैं, बल्कि साबित करते है कि उनके अंदर लंबी रेस का घोड़ा बनने की क्षमता है.

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खुद को साबित करने के जुनून में जल रहे पुलिस वाले मासूम लक्की के किरदार में अभिनेता परमवीर सिंह चीमा भी प्रशंसा बटोर लेते हैं. कंवलजीत की प्रतिभा को जाया किया गया है. कंवलजीत ने इसमें क्यों अभिनय किया, यह समझ से परे है. तेगी के किरदार में नवोदित अभिनेता साहिल मेहता ने काफी उम्मीदें जगाई हैं.

अजीत सोढ़ी के किरदार में   रणवीर शोरी ने भी अच्छा अभिनय किया है, वैसे उनके किरदार को उतनी अहमियत नही मिल पायी, जितनी मिलनी चाहिए थी. हैप्पी की प्रेमिका पलक के किरदार में नुपुर नागपाल ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है.

REVIEW: जानें कैसी है फरहान अख्तर की स्पोर्ट्स फिल्म ‘Toofan’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः रितेश सिद्धवानी, फरहान अख्तर, राकेश ओमप्रकाश मेहरा

निर्देशकः राकेश ओमप्रकाश मेहरा

कलाकारः फरहान अख्तर, मृणाल ठाकुर, परेश रावल, विजय राज,  मोहन अगाशे, हुसेन दलाल,  दर्शन कुमार, सुप्रिया पाठक, अभिषेक खंडेकर, गगन शर्मा, राकेश ओमप्रकाश मेहरा व अन्य.

अवधिः दो घंटे 42 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम वीडियो

मशहूर धावक स्व.  मिल्खा सिंह के जीवन पर फिल्म बना चुके फिल्मकार राकेश ओप्रकाश मेहरा इस बार एक दूसरे स्पोर्ट्स बाक्सिंग पर फिल्म‘‘तूफान’’लेकर आए हैं, जो कि अमेजॉन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है.

कहानीः

कहानी शुरू होती है जफर(विजय राज)  के इशारे पर एक रेस्टारेंट के मालिक व उसके गुर्गों की डोंगरी के युवा गैंगस्टर अजीज अली(फरहान अख्तर)  द्वारा पिटाई करने से. उसके बाद अपनी मरहम पट्टी कराने वह अस्पताल जाता है,  जहां डॉं. अनन्या प्रभु(मृणाल ठाकुर )  उसे गैंगस्टर कह कर बाहर बैठने के लिए कह देती है. डॉं.  अनन्या का मानना है कि हर इंसान अपनी पसंद से ही अच्छा या बुरा इंसान बनता है. जबकि नर्स मिसेस डिसूजा(सुप्रिया पाठक ) ऐसा नही मानती. नर्स मिसेस डिसूजा उसके घाव की सफाई करने के बाद डॉ.  अनन्या से उसकी मरहम पट्टी करने के लिए कहती है. डॉं. अनन्या की बातों का अजीज अली पर काफी गहरा असर होता है. वास्तव में अजीज अली अनाथ है और उसे माफिया नेता जफर ने पाला है. अजीज अली, जफर के लिए वसूली करने का काम करता है और जो धन उसे मिलता है, उसे वह एक अनाथालय के बच्चो में खर्च करता रहता है. दूसरी बार वह मशहूर बॉक्सिंग कोच नाना प्रभू(परेश रावल)  के पास बॉक्सिंग सीखने जाता है, तो अजीज अली के एटीट्यूड के चलते उनके बाक्सर से पिटकर पुनः डॉं. अनन्या के पास पहुॅचता है. इस बार डां.  अनन्या कहती है कि उसे तय करना है कि उसे बॉक्सर बनना है या गैंगस्टर.

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डॉ.  अनन्या के पिता तथा बॉक्सिंग कोच नाना प्रभू बम विस्फोट में अपनी पत्नी सुमिति को खो चुके हैं. इसलिए उनकी नजर में हर मुस्लिम अपराधी है. फिर भी वह अजीज अली में मौजूद ताकत को देखकर उसे एक गैंगस्टर और बाक्सर के अंतर को समझाते हुए उसे बॉक्ंिसग की कोचिंग देते हैं. अजीज अली राज्य स्तर पर बाक्सिंग में विजेता बनता है और नाना प्रभू उसे तूफान नाम देते हैं. इसी बीच नाना प्रभू को पता चलता है कि उनकी बेटी के साथ अजीज अली उर्फ तूफान शादी करने की सोच रहे हैं, यह बात उन्हे पसंद नहीं आती. वह इसे ‘लव जेहाद’ की संज्ञा देते हैं. मगर पिता के खिलाफ जाकर डां. अनन्या, अजीज अली से शादी करने के लिए घर छोड़ देती है. अनन्या हिंदू है और वह धर्म परिवर्तन नही करना चाहती,  इसलिए मुस्लिम बस्ती में भी किराए का मकान नही मिलता. एक किराए के घर के लिए आठ लाख डिपोजिट और अस्सी हजार मासिक किराया देना है. फिलहाल डॉ.  अनन्या औरतों के होस्टल में रहने लगती है. अजीज अली उर्फ तूफान दिल्ली राष्ट्रीय बौक्सिंग चैंपियन प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जाता है,  जहां बारह लाख की रकम लेकर बॉक्सिंग रिंग में हार जाता है, मगर उस पर मैच फिक्सिंग का आरोप सही साबित होने के चलते पांच वर्ष का बाक्सिंग खेलने पर प्रतिबंध लग जाता है. इस घटनाक्रम से नाना प्रभू की इज्जत पर भी धब्बा लगता है. डॉ.  अनन्या भी नाराज होकर उससे संबंध खत्म करने का निर्णय लेती है, पर अजीज अली का मैनेजर कहता है कि सारी गलती उसकी है. उसके बाद अजीज अली और डॉ.  अनन्या कोर्ट मैरिज कर लेते हैं. नर्स डिसूजा उन्हे अपना मकान किराए पर रहने के लिए देती है. डॉ. अनन्या एक बेटी को जन्म देती है. अब अजीज अली ने ट्यूरिस्ट का व्यापार शुरू कर दिया है. सब कुछ खुश हैं. नाना प्रभू ने जरुर संबंध खत्म कर दिए हैं. पांच वर्ष बाद अजीज अली पर से प्रतिबंध हट जाता हैलेकिन अजीज अली को अब बाक्सिंग में रूचि नही है. उधर डा. अनन्या उसका बौक्सिंग का लायसेंस लेकर आते समय सड़क  पर बम विस्फोट में मारी जाती हैं. अब पत्नी अनन्या के लिए वह पुनः बौक्सिंग में उतरता है. कहानी में कई मोड़ आते हैं.

लेखन व निर्देशनः

कहानी में कुछ भी नयापन नही है. फिल्म में जिस अंदाज में ‘लव जेहाद’और हिंदू मुस्लिम की बात पिरोयी गयी है, वह कम से कम फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा की शैली से मेल नही खाता. मगर राकेश मेहरा की निर्देशन में जबरदस्त वापसी जरुर कही जा सकती है. फिल्म के दृश्यों को जिस तरह से उन्होने गढ़ा है, वह कमाल के हैं. इतना ही नही राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने अपनी चिर परिचित शैली के अनुसार खेल संघों में व्याप्त भ्रष् टाचार पर भी कुठाराघात किया है तो वहीं खेल के प्रति युवाओं की बदलती सोच का भी सटीक चित्रण किया है. फिल्म की लंबाई अखरती है. फिल्म का दूसरा हिस्सा शानदार है. पर फिल्म की लंबाई अखरती है.

कहानी में कुछ नयापन नही है. इस तरह की कहानी कई बार बन चुकी हैं. जिन्होने ‘मैरी कॉम’, ‘दंगल’,  सुल्तान’, ‘साला खड़ूस’देखी है, उन्हे बार बार यही अहसास होगा कि वह एक पुरानी कहानी देख रहे हैं. प्रेमिका से प्रेरणा लेकर जिंदगी बदल लेने वाली कहानियां भी कई फिल्मों में दोहरायी जा चुकी हैं.  मगर दूसरी फिल्मो से इतर फिल्म‘‘तूफान’’एक मुक्केबाज की जिंदगी में सब कुछ खो देने के बाद पुनः वापसी की कहानी है. बहरहाल, राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘तूफान’से साबित कर दिखाया कि एक बेहतरीन पटकथा और बेहतरीन निर्देशन से चिरपरिचित सी लगने वाली कहानी पर भी कितनी बेहतरीन फिल्म बन सकती है.

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अभिनयः

अजीज अली के किरदार में फरहान अख्तर ने बेहतरीन अभिनय किया है. उन्होने मुंबई के डोंगरी इलाके में रहने वाले लड़की की बोलचाल की भाषा और बॉडी लैंगवेज को भी सटीक ढंग से पकड़ा है.  वहीं अनन्या के किरदार में मृणाल ठाकुर अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं. बाक्सिंग कोच नाना प्रभू के किरदार में परेश रावल ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. अजीज अली के दोस्त के किरदार में हुसेन दलाल भी अपने उत्कृष्ट अभिनय से लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाने में सफल रहे हैं. सुप्रिया पाठक, विजय राज और दर्शन कुमार की प्रतिभा को जाया किया गया है.

REVIEW: जानें कैसी है अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘द बिग बुल’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः अजय देवगन और आनंद पंडित

निर्देशकः कुकू गुलाटी

कलाकारः अभिषेक बच्चन, सोहम शाह,  निकिता दत्ता, इलियाना डिक्रूजा,  सुप्रिया पाठक, राम कपूर व अन्य.

अवधिः लगभग दो घंटा पैंतिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिजनी प्लस हॉट स्टार

1992 में भारतीय शेअर बाजार में एक बहुत बड़ा स्कैम हुआ था, जिसके कर्ताधर्ता शेअर दलाल हर्षद मेहता थे. उन्ही की कहानी पर कुछ दिन पहले दस एपीसोड लंबी हंसल मेहता निर्देशित वेब सीरीज ‘‘स्कैम 1992’’आयी थी, जिसे काफी पसंद किया गया था. अब उसी कहानी पर फिल्मकार कुकू गुलाटी अपराध कथा वाली फिल्म ‘‘द बिग बुल’’लेकर आए हैं, जो कि आठ अप्रैल की रात से ‘डिजनी प्लस हॉट स्टार’’पर स्ट्रीम हो रही है. बहरहाल, फिल्म‘‘द बिग बुल’’की कहानी में हर्षद मेहता, पत्रकार सुचेता दलाल सहित सभी किरदारों के नाम बदले हुए हैं और फिल्मकार ने इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित बताया है.

कहानीः

वर्तमान समय में पैंतिल वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अस्सी व नब्बे के दशक के बीच शेअर दलाल हर्षद मेहता की पूरी कहानी पता है. उस वक्त इसे हर्षद मेहता स्कैम कहा गया था. जो युवा पीढ़ी इस कहानी से परिचित नहीं थी, उसे वेब सीरीज‘‘स्कैम 1992’’से पता चल गया.

यह कहानी शुरू होती है 1987 से, जब निम्न मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार की. इस परिवार के दो बेटे हेमंत शाह(अभिषेक बच्चन) और वीरेंद्र शाह(सोहम शाह ) छोटी नौकरी व छोटी दलाली से कमाई कर जिंदगी गुजार रहे हैं. पर हेमंत शाह के सपने बहुत बड़े हैं. हेमंत शाह के सपने तो आसमान से भी परे हैं और वह अपनी जिंदगी में बहुत ही कम समय में देश का पहला बिलिनियर बनना चाहते हैं. एक दिन हेमंत शाह को बलदेव से शेअर बाजार में पैसा लगाकर कमाने की एक अंदरूनी जानकारी मिलती है. उसी दिन उन्हें पता चलता है कि उनका छोटा भाई वीरेंद्र शाह शेअर बाजार में पैसा लगाकर नुकसान उठा चुका है. पर वीरेंद्र अपने हिसाब से अंदरूनी जानकारी की जांचकर शेअर बाजार में पैसा लगा देता है और पहली बार में ही वह लंबा चैड़ा फायदा कमा लेते हैं. उसके बाद तो उनके सपने और बड़े हो जाते हैं. अब हेमंत शाह बैंक रसीद यानी कि बी आर का दुरूपयोग करते हुए शेअर बाजार में पैसा कमाने लगते हैं. देखते ही देखते वह‘शेअर बाजार के नामचीन  दलाल बन जाते हैं. इस बीच हेमंत शाह अपनी प्रेमिका प्रिया(निकिता दत्ता)संग शादी भी कर लेते हैं. वीरेंद्र शुरूआत में झिझकते हुए अपने भाई हेमंत शाह का साथ देता है, पर बाद में वह भी हेमंत के हर काम में भागीदार बन जाता है. लेकिन वीरेंद्र हमेशा चाहता है कि उसका भाई धीमी गति से उड़ान भरे. जिससे कहीं भी पकड़ा न जाए. मगर हेमंत शाह को धीमी गति से चलना पसंद नही है. इसी उंची उड़ान को भरते हुए हेमंत शाह सरकार का हिस्सा बने राजनेता के बेटे संजीव कोहली(समीर सोनी) के संपर्क में आते हैं. संजीव कोहली, हेमंत को आश्वासन देते हैं कि हर मुसीबत के समय उनके पिता उसे बचा लेंगे. यह वह दौर है,  जब देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत हुई है.

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हेमंत शाह ने बैंक रसीद बी आर के साथ ही बैंकिंग व सरकारी सिस्टम की कमियों का जमकर फायदा उठाते हुए अपनी तिजोरी भरी और कालबा देवी की चाल से निकलकर पेंटा हाउसनुमा आलीशान बंगले में रहने लगते हैं. हेमंत की चालों के चलते शेअर बाजार में बढ़ते शेअरों के दामों में खोजी पत्रकार मीरा(ईलियाना डिक्रूजा) को दाल में काला नजर आता है. वह अपने तरीके से हेमंत शाह के कारनामों की जांच कर अपने अखबार में लिखना शुरू कर देती है. उधर हेमंत शाह की दुश्मनी सेबी के चेअरमैन मनी मालपानी( सौरभ शुक्ला) से भी हो जाती है. एक दिन मनी मालपानी उसे सावधान भी करते है. पर हेमंत शाह अपने सपनों की उड़ान में मदमस्त कह देते है कि वह भले ही गलत काम कर रहा हो, पर कानून के हिसाब से वह गलत नही है. संजीव कोहली के साथ हाथ मिलाने के बाद हेमंत शाह कहने लगते हैं कि हुकुम का इक्का उनकी जेब में है. मगर एक दिन हेमंत शाह बुरी तरह से फंसते है, उस वक्त उनका ‘हुकुम का इक्का’फोन तक नही उठाता. अपने अति आत्मविश्वास या घमंड के चलते किसी तरह का समझौता करने की बजाय अपने वकील अशोक(राम कपूर)के साथ मिलकर‘हुकुम का इक्का’पर ही आरोप लगा देते हैं. हेमंत मानते हैं कि उन्होने कुछ भी गलत नही किया. उन्होने हर आम इंसान को पैसा कमाने का अवसर दिया. जो कुछ भी गलत हुआ है वह पोलीटिकल सिस्टम के चलते हुआ है. पर जांच में अंततः हेमंत शाह दोषी पाए जाते हैं, जिन्हे सजा हो जाती है और हार्ट अटैक से जेल में ही मौत हो जाती है.

लेखन व निर्देशनः

अफसोस की बात यह है कि अतीत में एक असफल फिल्म निर्देशित कर चुके कुकू गुलाटी ने भी फिल्म‘द बिग बुल’’से हेमंत शाह की ही तरह लंबे सपने देख रखे थे, लेकिन यह फिल्म एक अति सतही फिल्म बनी है. पटकथा व फिल्मांकन के स्तर पर काफी कमियां है. कई किरदारों के साथ न्याय नहीं कर पाए. लेखक ने फिल्म में बैंकिग सिस्टम व सरकारी सिस्टम पर भी उंगली उठायी है, मगर बहुत बचकर निकलने के प्रयास में कथानक गड़बड़ कर गए. फिल्म की शुरूआत में इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित कहा गया है, मगर फिल्मकार का सारा ध्यान हर्षद मेहता की बायोपिक बनाने में ही रहा, इसी वजह से वह उस युग की जटिलताओ को भी अनदेखा कर गए. फिल्म में जब हेमंत शाह को कोई बड़ी सफलता मिलती है, तो वह जिस तरह की हंसी हंसते हैं, उसे देखकर दर्शक को अस्सी व नब्बे के दशक की फिल्मों के खलनायक की हंसी का अहसास होता है. इंटरवल तक तो कुकू गुलाटी किसी तरह फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, मगर इंटरवल के बाद उनके हाथ से फिल्म फिसल गयी है. फिल्म के क्लायमेक्स में तो वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. कुछ किरदारो के लिए कलाकारों का चयन भी गलत किया है. संवाद भी काफी सतही है. फिल्म की एडीटिंग भी गड़बड़ है.

फिल्म में हेमंत शाह काएक संवाद है-‘‘कहानी किरदार से नही हालात से पैदा होती है. ’’मगर फिल्म‘‘द बिग बुल’’में हालात या किरदार से कुछ भी पैदा नही हुआ.

इमोशंस भावनाओं का घोर अभाव है. फिल्म के कुछ संवाद इस ओर भी इशारा करते है कि फिल्म को किसी खास अजेंडे के तहत बनाया गया है और जब जब फिल्में किसी अजेंडे के तहत बनायी गयी हैं, तब तब उनका हश्र अच्छा नही रहा.

अभिनयः

हेमंत शाह के किरदार में अभिषेक बच्चन प्रभावित नही कर पाते है. कई दृश्यों में वह अपनी पुरानी फिल्म ‘गुरू’की झलक जरुर पेश कर जाते हैं. कई जगह उसी फिल्म की तर्ज पर खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं. मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि यह हर्षद मेहता की कहानी है. कई ऐसे जटिल दृश्य हैं, जहां वह अपनी प्रतिभा का परिचय देने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. वास्तव में यहां अभिषेक बच्चन को अच्छी पटकथा नही मिली और न ही निर्देशक के तौर पर यहां मणि रत्नम हैं. हेमंत के भाई वीरेंद्र शाह के किरदार में सोहम शाह ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. हेमंत शाह की पत्नी प्रिया के किरदार में निकिता दत्ता है, मगर उनके हिस्से करने को कुछ आया ही नही. पत्रकार मीरा के किरदार में ईलियाना डिक्रूजा हैं. अफसोस उनके हिस्से भी कुछ करने को नहीं रहा. जबकि इस कहानी में पत्रकार सुचेता दलाल का किरदार काफी अहम है. सेबी के चेअरमैन मालपानी के किरदार में सौरभ शुक्ला और मजदूर नेता राणा सावंत के किरदार में महेश मांजरेकर का चयन गलत सिद्ध होता है. सुप्रिया पाठक, राम कपूर, लेखा प्रजापति, कानन अरूणाचलम की प्रतिभा को जाया किया गया है. लेखक व निर्देशक ने इनके किरदारों को सही ढंग से चित्रित ही नहीं किया गया.

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