Heart Touching Story : कोरा सपना

राइटर- डा. हेमराज निर्मम

Heart Touching Story : निशा ने बिस्तर पर लेटते ही पास लगे बिजली के बटन को दबा दिया. गहन अंधकार ने चारों ओर अपने पांव पसार लिए. निशा ने रजाई को कुछ अपनी ओर खींचा तो उसे लगा कि मुकेश सो रहा है.

निशा सोचने लगी, ‘मुकेश आज 3 दिन के बाद दौरे से लौटा है. उस ने आते ही खाना खाया और बिस्तर में दुबक गया. भला यह भी कोई बात हुई. उस ने न मेरा हालचाल पूछा और न अपना बताया. अभी लेटे 5-10 मिनट से अधिक नहीं हुए. गहरी नींद तो देर से ही आएगी. उठा दूं या नींद का सुख लेने दूं? कल बात कर लूंगी…नहीं, ऐसी बात कल तक मन में छिपाए नहीं रखी जा सकती. मेरे जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटने को है और उस में मुकेश का भी हिस्सा है. इसलिए उसे उस की जानकारी अवश्य होनी चाहिए.’

आखिर उस ने मुकेश को जगाने का निश्चय किया, ‘‘अजी, सो गए क्या… मुकेश साहब?’’ उस ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘हूं, क्या है?’’

‘‘कोई बुला रहा है.’’

मुकेश ने हाथ से रजाई परे हटाई और उठने की कोशिश करने लगा. तभी निशा को अपनी शरारत पर हंसी आ गई. मुकेश के कंधे को दबा कर बोली, ‘‘आराम से लेटे रहो.’’

‘‘क्या, कोई बुला रहा था?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘हां, मेरा मन बुला रहा था,’’ निशा ने मुसकरा कर कहा.

‘‘तुम्हारा…’’

‘‘हां, मेरा, क्या विश्वास नहीं होता कि मेरा मन तुम्हेें बुला सकता है? आज मुझे नींद नहीं आ रही और कुछ बातें करने का मन हो रहा है. सारे घर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं है, इसलिए बात किस से करूं? फिर ऐसी बात सिर्फ तुम से की जा सकती है,’’ निशा ने प्यार भरे स्वर में कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘मैं उम्मीद से हो गई हूं.’’

‘‘क्या… क्या… तुम उम्मीद से हो गई हो? तुम इस का मतलब समझती हो?’’

‘‘हर औरत इस का मतलब समझती है.’’

‘‘पर कैसे?… मेरा मतलब है कि तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’

‘‘शरीर मेरा, मन मेरा, अनुभूति मेरी. इसलिए जो अनुभव हुआ, उसे कह दिया. 4 दिन ऊपर हो गए हैं सम?ो? कितना अच्छा हुआ. मेरे जीवन में शुभ परिवर्तन आ रहा है. इस दिन की प्रतीक्षा पूरे 2 साल से कर रही थी. पर तुम खुश होने के बजाय कुछ चिंतित हो गए हो, क्या हुआ?’’

‘‘जो 2 साल में नहीं हुआ, अब अचानक कैसे हो सकता है?’’

‘‘ हो क्यों नहीं सकता?’’

मुकेश सोचने लगा कि निशा तो लड़कियों के कालेज से पढ़ती रही है. वहां कोई मर्द काम नहीं करता. इस का कोई दोस्त भी नहीं है. आज तक न कोई मिलने आया है और न कभी किसी का कोई मैसेज आया. उस ने कई बार उस का मोबाइल चैक किया. मैसेज या तो बहनों, भाइयों या फिर प्रमोशन के होते थे. विवाह से पहले इस के बारे में सारी छानबीन कर ली थी फिर यह कैसे संभव हुआ?’’

‘‘तुम चुप क्यों हो गए? कुछ सोच रहे हो क्या?’’

‘‘सोच रहा हूं कि विवाह से पहले किनकिन लोगों ने तुम्हारी तारीफ की थी.’’

‘‘बताओ, किसकिस ने क्याक्या कहा था?’’

‘‘तुम्हारे स्कूल की प्रिंसिपल ने कहा था कि निशा बड़ी शरीफ, मेहनती और सूझबूझ वाली अध्यापिका है. तुम्हारी सोसायटी के एक वृद्ध ने कहा था कि लड़की है तो बड़ी भली, पर पता नहीं 32-33 साल की होने पर भी शादी क्यों नहीं करवाती.’’

यह सुन कर निशा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब मैं तुम्हारे बारे में बताती हूं. भैया को बताया गया था कि मुकेश बड़े शरीफ हैं. अच्छे अफसर हैं. इन की पत्नी पिछले कोविड में चल बसी. दोनों लड़के सनावर स्कूल में पढ़ने भेज दिए हैं. न सिगरेट का शौक है और न पीने का. तुम्हारे दफ्तर वालों ने बताया था कि अफसर जवान हो, पैसा खूब हो, फिर भी उस में कोई बुरी आदत न हो, तुम्हारे सिवा ऐसा कोई और अफसर नहीं देखा.’’

‘‘मेरी सारी आदतें अब भी वैसी हैं. खुद को संभाल कर रखता हूं और तुम?’’

‘‘क्या तुम्हें मेरे गुणों पर शक हो गया है?’’

‘‘नहीं, यों ही पूछ लिया. उस समय तक तुम ने शादी क्यों नहीं की थी?’’

‘‘यह सवाल पहले भी सुन चुकी हूं और जवाब भी दे चुकी हूं,’’ निशा ने कुछ उत्तेजित हो कर कहा, ‘‘फिर सुनना चाहते हो तो सुनो. पिता गुजर गए थे. बड़े भाई की छोटी सी नौकरी और पूरा परिवार था. बाकी भाईबहन छोटे थे. घर को चलाने के लिए पैसे की जरूरत थी, इसलिए नौकरी करती रही.’’

‘‘विवाह से पहले मैं सोचता था कि शायद तुम्हारा किसी से प्रेम हो और किसी खास लड़के से ही शादी करने के लिए रुकी हो.’’

‘‘किसी और से प्यार न पहले था, न अब होगा. गर्ल्स स्कूल और गर्ल्स कालेज में पढ़ी हूं. घूमनेफिरने तक के पैसे नहीं थे. ऐसी लड़कियां का पीछा लड़के भी नहीं करते थे. पर मुकेश तुम आज गड़े मुरदे क्यों उखाड़ने लगे हो? आज खुशी का दिन है. आनंद मनाओ? कोई गाना सुनाओ… मेरा मन गाने को करता है, नाचने को करता है. मीठीमीठी लोरियां सुनने को करता है, कोमलकोमल फूलों पर हाथ फेरने को करता है.’’

‘‘ओ हो, तभी तुम थोड़ी देर पहले अधलिखे गुलाब को हाथ में लिए घूम रही थीं. अब तुम फूलदान में सजे फूलों को उठा लो और अपनी इच्छा पूरी करो, पर मुझ सोने दो,’’ मुकेश ने अनमने ढंग से कहा.

‘‘यह नहीं हो सकता, तुम्हें खुशी में मेरे साथसाथ नाचना होगा, गाना होगा, मस्त होना होगा, झूमना होगा. इस बच्चे के जन्म में तुम्हारा भी उतना ही हाथ है जितना…’’

‘‘अब छोड़ो भी इस बात को. अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता. 4 दिन ऊपर होना कोई बड़ी बात नहीं है.’’

‘‘मेरे जीवन में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ, इसलिए मुझे यकीन है. उठो, मेरे कहने पर उठो. सुस्ती दूर करो. गरमगरम चाय पिलाऊं क्या?’’

‘‘नहीं, जरूरत नहीं.’’

निशा एकाएक उठी. उस ने जीरो बल्ब का बटन दबा दिया. म्यूजिक सिस्टम लगा दिया. वीणा की मधुर स्वरलहरी कमरे में तैरने लगी. फिर वह मुकेश का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘अब उठो, नाचो.’’

‘‘मन में न उमंग हो, न तरंग हो तो नाचना कैसे संभव है और फिर वीणा के स्वरों के साथ कैसा नाचना? दूसरा सौंग लगाओ, वैस्टर्न या रैंप, तुम नाचो, मैं देखूंगा.’’

‘‘पागल नहीं हूं जो अकेली नाचूं, तुम्हें साथ ले कर नाचूंगी.’’

‘‘बिना कारण नाचने की उमंग मुझ में नहीं है.’’

‘‘कारण कितनी बार बता चुकी हूं, फिर भी अनजान बनते हो.’’

‘‘कल लेडी डाक्टर को दिखा दूंगा. अब कुछ देर चुप रहो,’’ मुकेश ने खीज कर कहा.

निशा एकदम उस से परे हट गई. मुकेश सोच में डूब गया, ‘शायद डाक्टर अपने काम में असफल रहा? किसी भी डाक्टर को इतना लापरवा नहीं होना चाहिए. गलती डाक्टर की है, मेरी है या निशा की, यह सब कैसे जानूं? निशा तिल का ताड़ बनाए जा रही है. अब नहीं रुका जाता. बता दूं? पर सुन कर यह ऐसी हो जाएगी कि काटो तो खून नहीं.’

आखिर उस ने निशा से कहा, ‘‘सो गई क्या? निशा, मेरी निशा, क्या नाराज हो गई?’’

‘‘मैं नहीं बोलती,’’ निशा ने मान भरे स्वर में कहा.

‘‘नहींनहीं, अपनी बात पूरी करो. कल लेडी डाक्टर को दिखा दूंगा. तब दोनों में से किसी एक का भ्रम दूर हो जाएगा.’’

‘‘भ्रम नहीं हो सकता. तुम्हारे 2 बच्चे हैं न, इसलिए तुम्हें तनिक भी खुशी नहीं हो रही, मन में सौतों जैसी ईर्ष्या पाल रहे हो.’’

‘‘नसबंदी के बाद यह कैसे हो गया?’’ एकाएक मुकेश के मुंह से निकला.

‘‘नसबंदी…’’

मुकेश ने मद्धिम प्रकाश में देखा कि निशा की आंखों की पुतलियां एक क्षण के लिए घूमीं और वह धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ी. वह बिजली की सी गति से उठा और निशा को दोनों बांहों से उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया.

वह जल्दी से तौलिया और पानी लाया. उस ने तौलिए को उस के चेहरे के चारों ओर लपेटने के बाद उस की आंखों पर पानी के छींटे मारे.

थोड़ी देर में निशा ने आंखें खोल दीं. धीमी आवाज में बोली, ‘‘नसबंदी?’’

मुकेश ने झुक कर उस के चेहरे से पानी की बूंदों को साफ किया और बोला, ‘‘तीसरा बच्चा होने से कुछ दिन पहले ही नसबंदी करवा चुका था.’’

‘‘फिर विवाह क्यों किया?’’ निशा के स्वर में आवेश था.

‘‘कल बात कर लेंगे. अभी तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है…फोन कर डाक्टर शाह को बुला लेता हूं.’’

‘‘जरूरत नहीं है. अब मैं ठीक हूं. पर तुम्हें बताना होगा नसबंदी के बाद तुम ने शादी क्यों की? किसी का जीवन बरबाद कर के तुम्हें क्या मिला? ओह, मैं तो भूल ही गई. तुम्हें तो सबकुछ मिल गया, हंसताखेलता साथी, अच्छा रसोइया और भूख मिटाने के लिए जानदार शरीर… मुझे धोखा देते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?’’

‘‘धोखा देने का इरादा नहीं था, न अब है. रिश्ता करवाने वाला जानता था. फिर भी मैं अपराधी हूं, माफ कर दो निशा.’’

मुकेश ने देखा कि निशा चुप है. वह सोचने लगा कि शायद निशा को नींद आ रही है. उसे याद आया, डाक्टर ने कहा था कि औपरेशन सफल रहा है. यदि वह औपरेशन सफल था तो निशा को यह सब कैसे हो गया? निशा जिस ढंग से चक्कर खा कर गिरी थी, उस से लगता था कि उस ने गर्भ धारण कर लिया है. क्या यह चरित्रहीन है? कल उठते ही, सब से पहले इसे डाक्टर के पास ले जाऊंगा. यदि निशा की बात ठीक निकली तब अपना चैकअप करवाऊंगा. तभी किसी नतीजे पर पहुंच सकता हूं.

दूसरे ही क्षण उस का विचार बदल गया. उस ने सोचा कि इस छोटे नगर के किसी डाक्टर के पास निशा को ले जाना ठीक नहीं है. शायद किसी को याद हो कि 5 साल पहले मैं ने नसबंदी करवाई थी. निशा की बात एक बार घर से बाहर निकलते ही ऐसी फैलेगी जैसे जंगल की आग और वह आग मेरा जीना दूभर कर देगी.

निशा की आंखों में नींद नहीं थी. गिरने से उस के दाएं कान के पास जो चोट लगी थी, उस में अभी तक हलकाहलका दर्द हो रहा था. वह  सोचने लगी कि मुकेश को दूसरा विवाह नहीं करना चाहिए था. यदि मुझे पहले पता लग जाता तो मैं मुकेश से विवाह करने से साफ इनकार कर देती. इस ने मुझे धोखा दिया है. यह इंनसान के रूप में शैतान है. मैं इस का बदला लूंगी. इस आधार पर मुझे तलाक मिल सकता है. एह बार इस की ऐसी बेइज्जती होगी कि नानी याद आ जाएगी.

उस के मन के किसी कोने से एक विचार उठा, ‘अब मैं लैक्चरर हूं. मुझे इस पद पर पहुंचाने का सेहरा मुकेश को है. उसी ने मुझे पीएचडी करवाई. थीसिस लिखने में मुझ से ज्यादा उस ने मेहनत की. उस के बाद भागदौड़ और मिलनेमिलाने आदि का भी सारा काम उसी ने किया. जिस दिन पीएचडी की डिगरी मिली थी, खुशी के मारे मेरे पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. फिर बधाइयों के फोनों का सिलसिला कितने ही दिन चलता रहा. मुझे बधाई देते हुए पुरानी सहेलियों के मन में कितनी ईर्ष्या हुई होगी.

‘इस के बाद नौकरी दिलाने में तो मुकेश ने कमाल ही कर दिया. इंटरव्यू लेने वालों में से कोई ऐसा नहीं था, जिस से मुकेश मिला न हो, जिसे उस ने खुश न कर दिया हो. इसीलिए मेरे मुकाबले में जाने वाली लड़कियां मेरे बराबर पढ़ीलिखी और अधिक अनुभवी होने पर भी हाथ मलती रह गईं. मानना पड़ेगा कि मुकेश ने मेरे लिए बहुत किया है. प्यार भी कितना करता है.

‘अब 37 साल की हो गई हूं. इस समय तलाक लेने का मतलब होगा जीवनभर एकाकी बने रहना फिर न घर होगा, न घरवाला और न कोई बच्चा. इसलिए मुझे इस स्थिति से समझौता करना पड़ेगा. अब तो लगता है कि किसी कोमल फूल पर हाथ फेरने का अवसर नहीं मिलेगा. पर ये 4 दिन ऊपर कैसे हो गए? पिछले कई सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ. मेरे शरीर को किसी ने छूने तक की हिम्मत नहीं की. फिर…’

थोड़ी देर बाद कमरे में बत्ती जली तो मुकेश की आंख खुल गई. उस ने देखा कि निशा पलंग से उतरी है. मुकेश ने सामने घड़ी की ओर दृष्टि चौड़ाई, 4 बजे थे.

अचानक मुकेश बोला, ‘‘निशा, मैं मुंबई जा कर उलटा औपरेशन करवा आऊंगा.’’

निशा कुछ नहीं बोली. वह तेजी से अलमारीकी ओर बढ़ गई. मुकेश ने देखा कि निशा ने अलमारी में से पीरियड्स के दौरान प्रयोग होने वाले पैड का डब्बा निकाला है और उसे ले कर गुसलखाने की ओर चली गई है.

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