family story in hindi

family story in hindi
विनोद दिल्ली से लौटा तो इस बार सुवीरा उसे देख कर खुश नहीं, उदास ही हुई. अब महेश से मिलने में बाधा रहेगी. खैर, देखा जाएगा. विनोद ने रात को पत्नी का अनमना रवैया भी महसूस नहीं किया. सुवीरा आहत हुई. वह इतना आत्मकेंद्रित है कि उसे पत्नी की बांहों का ढीलापन भी महसूस नहीं हो रहा है. पत्नी की बेदिली पर भी उस का ध्यान नहीं जा रहा है. वह मन ही मन महेश और विनोद की तुलना करती रही. अब वह पूरी तरह बदल गई थी. उस का एक हिस्सा विनोद के पास था, दूसरा महेश के पास. विनोद जैसे एक जरूरी काम खत्म कर करवट बदल कर सो गया. वह सोचती रही, वह हमेशा कैसे रहेगी विनोद के साथ. उसे सुखसुविधाएं, पैसा, गाड़ी बड़ा घर कुछ नहीं चाहिए, उसे बस प्यार चाहिए. ऐसा साथी चाहिए जो उसे समझे, उस की भावनाओं की कद्र करे. रातभर महेश का चेहरा उस की आंखों के आगे आता रहा.
सुबह नाश्ते के समय विनोद ने पूछा, ‘‘महेश कैसा है? बच्चों को पढ़ाता है न?’’
‘‘हां.’’
‘‘नाश्ता भिजवा दिया उसे?’’
‘‘नहीं, नीचे ही बुला लिया है.’’
‘‘अच्छा? वाह,’’ थोड़ा चौंका विनोद. महेश आया विनोद से हायहैलो हुई. सुवीरा महेश को देखते ही खिल उठी. विनोद ने पूछा, ‘‘और तुम्हारा औफिस, कोचिंग कैसी चल रही है?’’
‘‘अच्छी चल रही है.’’
‘‘भई, टीचर के तो मजे होते हैं, पढ़ाया और घर आ गए, यहां देखो, रातदिन फुरसत नहीं है.’’
‘‘तो क्यों इतनी भागदौड़ करते हो? कभी तो चैन से बैठो?’’
‘‘अरे यार, चैन से बैठ कर थोड़े ही यह सब मिलता है,’’ गर्व से कह कर विनोद नाश्ता करता रहा. महेश ने बिना किसी झिझक के सुवीरा से पूछा, ‘‘आप का नाश्ता कहां है?’’
विनोद थोड़ा चौंक कर बोला, ‘‘अरे, सुवीरा तुम भी तो करो.’’ सुवीरा बैठ गई, अपना भी चाय का कप लिया. विनोद नाश्ता खत्म कर जल्दी उठ गया. सिद्धि, समृद्धि भी जाने के लिए तैयार थीं. सुवीरा महेश एकदूसरे के प्यार में डूबे नाश्ता करते रहे. महेश ने कहा, ‘‘मैं भी चलता हूं.’’ बच्चे भी निकल गए तो सुवीरा ने कहा, ‘‘रुकोगे नहीं?’’
‘‘बहुत जरूरी क्लास है. फ्री होते ही आ जाऊंगा. औफिस में भी एक जरूरी क्लाइंट आने वाला है, जल्दी आ जाऊंगा, सब निबटा कर.’’
‘‘लेकिन तब तक तो बच्चे भी आ जाएंगे.’’
‘‘इतनी बेताबी?’’
सुवीरा हंस पड़ी. सुवीरा को अपने सीने से लगा कर प्यार कर महेश चला गया. सुवीरा उस के पास से आती खुशबू में बहुत देर खोई रही. अब उसे किसी बात की न चिंता थी न डर. वह अपनी ही हिम्मत पर हैरान थी, क्या प्यार ऐसा होता है, क्या प्रेमीपुरुष का साथ एक औरत को इतनी हिम्मत से भर देता है. तो वह जो 15 साल से विनोद के साथ रह रही है, वह क्या है. विनोद के लिए उस का दिल वह सब क्यों महसूस नहीं करता जो महेश के लिए करता है. विनोद का स्पर्श उस के अंदर वह उमंग, वह उत्साह क्यों नहीं भरता जो महेश का स्पर्श भरता है. अब रातदिन एक बार भी विनोद का ध्यान क्यों नहीं आता. महेश ही उस के दिलोदिमाग पर क्यों छाया रहता है. एक उत्साह उमंग सी भरी रहने लगी थी उस के रोमरोम में. वह कई बार सोचती, घर में सक्षम, संपन्न पति के रहने के बावजूद वह पराए पुरुष के स्पर्श के लिए कैसे उत्सुक रहने लगी है. कहां गए वो सालों पुराने संस्कार जिन्हें खून में संचारित करते हुए इतने सालों में किसी पुरुष के प्रति कोई आकर्षण तक न जागा था. आंखें बंद कर वह महसूस करती कि यह कोई अपरिचित पुरुष नहीं है बल्कि उस का स्वप्नपुरुष है, स्त्रियों के चरित्र और चरित्रहीनता का मामला सिर्फ शारीरिक घटनाओं से क्यों तय किया जाता है. कितना विचित्र नियम है यह.
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फिर कई दिन बीत गए. दोनों के संबंध दिन पर दिन पक्के होते जा रहे थे. मौका मिलते ही दोनों काफी समय साथ बिताते. सुवीरा अपनी सब सहेलियों को जैसे भूल गई थी. सब उस से न मिलने की शिकायत करतीं पर वह बच्चों की पढ़ाई की व्यस्तता का बहाना बना सब को बहला देती. सुवीरा विनोद की अनुपस्थिति में अकसर महेश की बाइक पर बैठ कर बाहर घूमतीफिरती. दोनों शौपिंग करते, मूवी देखते, और घर आ कर एकदूसरे की बांहों में खो जाते. सीमा ने दोनों को बाइक पर आतेजाते कई बार देखा था. कुछ था जो उसे खटक रहा था लेकिन किस से कहती और क्या कहती. कितनी भी अच्छी सहेली थी लेकिन यह बात छेड़ना भी उसे उचित नहीं लग रहा था. सुवीरा को अब यह चिंता लगी थी कि इस संबंध का भविष्य क्या होगा. वह तो अब महेश के बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. एक दिन अकेले में सुवीरा को उदास देख कर महेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? उदास क्यों हो?’’
‘‘महेश, क्या होगा हमारा? मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगी.’’
‘‘तो मैं भी कहां रह पाऊंगा अब. मैं ने तो कभी यह सोचा ही नहीं था कि तुम भी मुझ से इतना प्यार करोगी क्योंकि समाज के इस ढांचे को तोड़ना आसान नहीं होता. इतना तो जानता हूं मैं.’’
‘‘लेकिन एक न एक दिन विनोद को पता चल ही जाएगा.’’
‘‘तब देख लेंगे, क्या करना है.’’
‘‘नहीं महेश, कोई भी अप्रिय स्थिति आने से पहले सोचना होगा.’’
‘‘तो बताओ फिर, क्या चाहती हो? मुझे तुम्हारा हर फैसला मंजूर है.’’
‘‘तो हम दोनों कहीं और जा कर रहें?’’
‘‘क्या?’’ करंट सा लगा महेश को, बोला,‘‘विनोद? बच्चे?’’
‘‘विनोद को तो पत्नी का मतलब ही नहीं पता, बेटियों को वह वैसे भी बहुत जल्दी एक मशहूर होस्टल में डालने वाला है. और वैसे भी, मेरी बेटियां शायद पिता के ही पदचिह्नों पर चलने वाली हैं. वही पैसे का घमंड, वही अकड़, जब घर में किसी को मेरी जरूरत ही नहीं है तो क्या मैं अपने बारे में नहीं सोच सकती,’’ कहते हुए सुवीरा का स्वर भर्रा गया. महेश ने उसे सीने से लगा लिया. उस के बाद सहलाते हुए बोला, ‘‘लेकिन मैं शायद तुम्हें इतनी सुखसुविधाएं न दे पाऊं, सुवीरा.’’
‘‘जो तुम ने मुझे दिया है उस के आगे ये सब बहुत फीका है. महेश, हम जल्दी से जल्दी यहां से चले जाएंगे. अपने मन को मारतेमारते मैं थक चुकी हूं.’’
‘‘ठीक है, मैं रहने का इंतजाम करता हूं.’’
‘‘और तुम पैसे की चिंता मत करना. मुझे कोई ऐशोआराम नहीं चाहिए, सादा सा जीवन और तुम्हारा साथ, बस.’’
‘‘पर तुम देख लो, रह पाओगी अपने परिवार के बिना?’’
‘‘हां, मैं ने सबकुछ सोच लिया है. तुम से मिले एक साल हो रहा है और मैं ने इतने समय में बहुत कुछ सोचा है.’’ महेश उस के दृढ़ स्वर की गंभीरता को महसूस करता रहा. सुवीरा ने कहा, ‘‘मैं विनोद को बहुत जल्दी बता दूंगी कि मैं अब उस के साथ नहीं रह सकती.’’ दोनों आगे की योजना बनाते रहे. सिद्धि, समृद्धि आ गईं तो महेश ऊपर चला गया. सुवीरा ने पूछा, ‘‘बड़ी देर लगा दी पार्टी में?’’
‘‘हां मम्मी, फ्रैंड्स के साथ टाइम का पता ही नहीं चलता.’’ सुवीरा अपनी बेटियों का मुंह देखती रही, छोड़ पाएगी इन्हें. वह मां है, क्या करने जा रही है. इतने में समृद्धि ने कहा,
‘‘मम्मी, रिंकी की मम्मी को देखा है आप ने?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘अरे, आप देखो उन्हें. क्या लगती हैं. क्या इंजौय करती हैं लाइफ. और आप कितनी चुपचुप सी रहती हैं.’’
‘‘तो क्या करूं, तुम दोनों तो अपने स्कूल फ्रैंड्स में बिजी रहती हो, मैं अकेली क्या खुश होती घूमूं?’’
सिद्धि शुरू हो गई, ‘‘ओह मम्मी, क्या नहीं है हमारे पास. डैड को देखो, कितने सक्सैसफुल हैं.’’ सुवीरा ने मन में कहा, जैसा बाप वैसी बेटियां. कुछ बोली नहीं, सब को छोड़ कर जाने का इरादा और पक्का हो गया उस का. आगे के तय प्रोग्राम के हिसाब से महेश विनोद के घर से यह कह कर चला गया कि उसे कहीं अच्छा जौब मिल गया है, जहां का आनाजाना यहां से दूर पड़ेगा. विनोद ने बस ‘एज यू विश’ कह कर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी. अब सुवीरा और महेश मोबाइल पर ही बात कर रहे थे. 3 दिनों बाद सुवीरा का 37वां बर्थडे था. विनोद ने औफिस से आते ही कहा, ‘‘सुवीरा, मैं परसों जरमनी जा रहा हूं, एक मीटिंग है.’’
वहीं बैठी सिद्धि ने कहा, ‘‘मम्मी का बर्थडे?’’
‘‘हां, तो वहां से महंगा गिफ्ट ले कर आऊंगा तुम्हारी मम्मी के लिए और क्या चाहिए बर्थडे पर.’’ सिद्धि अपने कमरे में चली गई. डिनर के बाद विनोद बैडरूम में अपनी अलमारी में कुछ पेपर्स देख रहा था. वह काफी व्यस्त दिख रहा था. सुवीरा ने बहुत गंभीर स्वर में कहा, ‘‘विनोद, कुछ जरूरी बात करनी है.’’
‘‘अभी नहीं, बहुत बिजी हूं.’’
‘‘नहीं, अभी करनी है.’’
‘‘जल्दी क्या है, लौट कर करता हूं.’’
‘‘तब नहीं हो पाएगी.’’
‘‘क्यों डिस्टर्ब कर रही हो इतना?’’
‘‘विनोद, मैं जा रही हूं.’’
पेपर्स से नजरें हटाए बिना ही विनोद ने पूछा, ‘‘कहां?’’
‘‘महेश के साथ, हमेशा के लिए.’’
पेपर पटक कर विनोद दहाड़ा, ‘‘यह क्या बकवास है,’’ कहतेकहते सुवीरा को मारने के लिए हाथ उठाया तो सुवीरा ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘यह हिम्मत मत करना, विनोद, बहुत पछताओगे.’’
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‘‘क्या बकवास कर रही हो यह?’’
‘‘मैं अब तुम्हारे साथ एक दिन भी नहीं रह सकती.’’
‘‘क्यों , क्या परेशानी है तुम्हें, सबकुछ तो है घर में, कितना पैसा देता हूं तुम्हें.’’
‘‘पैसा अगर खुशी खरीद सकता तो मैं भी खुश होती. मेरे अंदर कुछ टूटने की यह प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है विनोद. मुझे जो चाहिए वह नहीं है घर में.’’
‘‘वह धोखेबाज है, उसे मैं हरगिज नहीं छोड़ूंगा.’’
‘‘तुम्हारे पास किसी को पकड़नेछोड़ने के लिए समय है कहां,’’ व्यंग्यपूर्वक कहा सुवीरा ने, ‘‘जिस के पास पत्नी का मन समझने के लिए थोड़ी भी कोई भावना न हो, वह क्या किसी को दोष देगा?’’ विनोद उस का मुंह देखता रह गया, सुवीरा एक बैग में अपने कपड़े रखने लगी. रात हो रही थी. बच्चे सो चुके थे. विनोद पैर पटकते हुए बैडरूम से निकला. कुछ समझ नहीं आया तो सीमा को फोन पर पूरी बता बता
कर उसे फौरन आने के लिए कहा. सुवीरा ने चारों ओर एक उदास सी नजर डाली. ये सब छोड़ कर एक अनजान रास्ते पर निकल रही है. वह गलत तो नहीं कर रही है. अगर गलत होगा भी तो क्या, देखा जाएगा. महेश का साथ अगर रहेगा तो ठीक है वरना पिता के पास चली जाएगी या कहीं अकेली रह लेगी. अब भी तो वह अकेली ही जी रही है. सीमा रंजन के साथ फौरन आ गई. सुवीरा अपना बैग ले कर निकल ही रही थी, वह समझ गई विनोद ने सीमा को बुलाया है. सीमा ने उसे झ्ंिझोड़ा, ‘‘यह क्या कर रही हो, सुवीरा ऐसी क्या मजबूरी हो गई जो इतना बड़ा कदम उठाने के लिए तैयार हो गई?’’
‘‘बस, सीमा, दिमाग को तो सालों से समझा रही हूं, बस, दिल को नहीं समझा पाई. दिल से मजबूर हो गई. अब नहीं रुक पाऊंगी,’’ कह कर सुवीरा गेट के बाहर निकल गई. विनोद जड़वत खड़ा रह गया. सीमा और रंजन देखते रह गए. सुवीरा चली जा रही थी, नहीं जानती थी कि उस ने गलत किया या सही. बस, वह उस रास्ते पर बढ़ गई जहां महेश उस का इंतजार कर रहा था.
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‘‘अरे, मेरा हिसाब कभी गलत नहीं होता. जीएम की पोस्ट तक ऐसे ही नहीं पहुंचा मैं.’’
‘‘तुम्हारी लाइफ में हिसाबकिताब लगाने या अपनी पोस्ट के रोब में रहने के अलावा भी कुछ बचा है क्या?’’
‘‘हां, बचा है न,’’ यह कहते हुए विनोद सुवीरा के चेहरे की ओर झुकता चला गया. एक हफ्ते बाद विनोद 15 दिन के लिए आस्ट्रेलिया चला गया. महेश सुबह 10 बजे जा कर शाम 6 बजे आता. सुवीरा उसे चाय, फिर डिनर ऊपर भिजवा देती. सिद्धि, समृद्धि को जब भी कुछ पूछना होता, वे उसे नीचे से ही आवाज देतीं, ‘‘अंकल, कुछ पूछना है, नीचे आइए न.’’ महेश मुसकराता हुआ आता और वहीं ड्राइंगरूम में उन्हें पढ़ाने लगता. सुवीरा को महेश का सरल स्वभाव अच्छा लगता. न बड़ीबड़ी बातें, न दूसरों को छोटा समझने वाली सोच. एक सरल, सहज, आकर्षक पुरुष. बराबर वाला घर सीमा का ही था. सीमा, उस का पति रंजन और उन का 14 वर्षीय बेटा विपुल भी महेश से मिल चुके थे. विपुल भी अकसर शाम को महेश से मैथ्स पढ़ने चला आता था. इतवार को भी महेश कोचिंग इंस्टिट्यूट जाता था. उस दिन उस की क्लास ज्यादा लंबी चलती थी. एक इतवार को सिद्धि, समृद्धि किसी बर्थडे पार्टी में गई हुई थीं. सुवीरा डिनर करने बैठी ही थी, इतने में बाइक रुकने की आवाज आई. महेश आया, पूछा, ‘‘सिद्धि,समृद्धि कहां है? बड़ा सन्नाटा है.’’
‘‘बर्थडे पार्टी में गई हैं.’’
‘‘आप अच्छे समय पर आए, मैं बस खाना खाने बैठी ही थी, आप का खाना भी लगा देती हूं.’’
‘‘महेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप अकेली हैं, आप को डिनर में कंपनी दूं?’’
‘‘अरे, आइए न, बैठिए.’’
‘‘अभी फ्रैश हो कर आता हूं.’’
दोनों ने खाना शुरू किया. कहां तो पलभर पहले सुवीरा सोच रही थी कि महेश से वह क्या बात करेगी और कहां अब बातें थीं कि खत्म ही नहीं हो रही थीं. एक नए अनोखे एहसास से भर उठी वह. ध्यान से महेश को देखा, पुरुषोचित सौंदर्य, आकर्षक मुसकराहट, बेहद सरल स्वभाव. महेश ने खंखारा, ‘‘बोर हो गईं क्या?’’
हंस पड़ी सुवीरा, बोली, ‘‘नहींनहीं, ’’ ऐसी बात नहीं. सुवीरा हंसी तो महेश उसे देखता ही रह गया. 2 बेटियों की मां, इतनी खूबसूरत हंसी, इतना आकर्षक चेहरा, बोला, ‘‘इस तरह हंसते हुए आप को आज देखा है मैं ने, आप इतनी सीरियस क्यों रहती हैं?’’ सुवीरा ने दिल में कहा, किस से हंसे, किस से बातें करे, उस की बात सुनने वाला इस घर में है कौन, बेटियां स्कूल, फोन, नैट, दोस्तों में व्यस्त हैं, विनोद की बात करना ही बेकार है. महेश ने उसे विचारों में खोया देख टोका, ‘‘सौरी, मैं ने आप को सीरियस कर दिया?’’
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‘‘नो, इट्स ओके,’’ कह कर सुवीरा ने मुसकराने की कोशिश की लेकिन आंखों की उदासी महेश से छिपी न रही.
महेश ने कहा, ‘‘आप बहुत सुंदर हैं तन से और मन से भी.’’ उस की आंखों में प्रशंसा थी और वह प्रशंसा उस के शरीर को जितना पिघलाने लगी उस का मन उतना ही घबराने लगा. सुवीरा हैरान थी, कोई उस के बारे में भी इतनी देर बात कर सकता है. महेश ने अपनी प्लेट उठा कर रसोई में रखी. सुवीरा के मना करने पर भी टेबल साफ करवाने में उस का हाथ बंटाया. फिर गुडनाइट कह कर ऊपर चला गया. इस मुलाकात के बाद औपचारिकताएं खत्म सी हो गई थीं. धीरेधीरे सुवीरा के दिल में एक खाली कोने को महेश के साथ ने भर दिया. अब उसे महेश का इंतजार सा रहने लगा. वह लाख दिल को समझाती कि अब किसी और का खयाल गुनाह है मगर दिल क्या बातें समझ लेता है? उस में जो समा जाए वह जरा मुश्किल से ही निकलता है. विनोद आ गया, घर की हवा में उसे कुछ बदलाव सा लगा. लेकिन बदले माहौल पर ध्यान देने का कुछ खास समय भी नहीं था उस के पास. विनोद के औफिस जाने का रुटीन शुरू हो गया. वह कार से 8 बजे दादर के लिए निकल जाता था. आने का कोई टाइम नहीं था. सुवीरा ने अब कुछ कहना छोड़ दिया था.
एक दिन विनोद ने हंसीमुसकराती सुवीरा से कहा, ‘‘अब तुम समझदार हो गई हो. अब तुम ने मेरी व्यस्तता के हिसाब से खुद को समझा ही लिया.’’ सुवीरा बस उसे देखती रही थी. बोली कुछ नहीं. क्या कहती, एक पराए पुरुष ने उसे बदल दिया है, एक पराए पुरुष की ओर उस का मन खिंचता चला जा रहा है. महेश के शालीन व्यवहार और अपनेपन के आगे वह दीवानी होती जा रही थी. 15 दिन रह कर विनोद एक हफ्ते के लिए दिल्ली चला गया. अब तक सुवीरा और महेश दोनों ही एकदूसरे के प्रति अपना लगाव महसूस कर चुके थे. एक दिन सिद्धि, सम़ृद्धि स्कूल जा चुकी थीं. सुवीरा को अपनी तबीयत कुछ ढीली सी लगी, वह अपने बैडरूम में जा कर आराम करने लगी. महेश को देखने का उस का मन था लेकिन उस से उठा नहीं गया.
महेश को भी जब वह दिखाई नहीं दी तो वह उसे ढूंढ़ता हुआ दरवाजे पर दस्तक दे कर अंदर आ गया. वह संकोच से भर उठी. कोई परपुरुष पहली बार उस के बैडरूम में आया था. उस ने उठने की कोशिश की लेकिन महेश ने उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे लिटा दिया. महेश के स्पर्श ने उसे एक अजीब सी अनुभूति से भर दिया. उस के गाल लाल हो गए. महेश ने पूछा,‘‘क्या हुआ?’’
‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही.’’
महेश ने उस के माथे को छू कर कहा, ‘‘बुखार तो नहीं है, सिरदर्द है?’’ सुवीरा ने ‘हां’ में गरदन हिलाई तो महेश वहीं बैड पर बैठ कर अपने हाथ से उस का सिर दबाने लगा. सुवीरा ने मना करने के लिए मुंह खोला तो महेश ने दूसरा हाथ उस के होंठों पर रख कर उसे कुछ बोलने से रोक दिया. सुवीरा तो जैसे किसी और दुनिया में खोने लगी. कोई उसे ऐसे प्यार से सहेजे, संभाले कि छूते ही तनमन की तकलीफ कम होती लगे. उसे तो याद ही नहीं आया कि विनोद के स्पर्श से ऐसा कभी हुआ हो. इस स्पर्श में कितना रस कितना सुख, कितना रोमांच कितनी मादकता थी. उस के हलके गरम माथे पर महेश के हाथ की ठंडक देती छुअन. सुवीरा की आंखें बंद हो गईं. महेश का हाथ अब माथे से सरक कर उस के गाल सहला रहा था, सुवीरा ने अपनी आंखें नहीं खोलीं. महेश उसे अपलक देखता रहा. फिर खुद को रोक नहीं पाया और उस के माथे पर पहला चुंबन अंकित कर दिया. सुवीरा यह सब रोक देना चाहती थी. लेकिन वह आंख बंद किए लेटी रही. महेश धीरेधीरे उस के करीब आता गया. जब महेश उस की तरफ झुका तो सुवीरा ने अचानक अपनी आंखें खोलीं तो दोनों की नजरें मिलते ही बिना बोले बहुतकुछ कहासुना गया. वह कसमसा उठी. शरीर का अपना संगीत, अपना राग होता है.
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महेश ने जब उस के शरीर को छुआ तो उस के अंदर एक झंकार सी पैदा हुई और वह उस की बांहों में खोती चली गई. महेश ने उस के होंठों को चूमा तो मिश्री की तरह कुछ मीठामीठा, उस के होंठों तक आया. उस स्पर्श में कुछ तो था. वह ‘नहीं’ कर ही नहीं पाई. दोनों एकदूसरे में खोते चले गए. कुछ देर बाद अपने अस्तव्यस्त कपड़े संभाल कर महेश ने प्यार से पूछा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो?’’ सुवीरा ने शरमा कर ‘न’ में गरदन हिला दी. महेश ने कहा, ‘‘मैं अभी जाऊं? मेरी क्लास है.’’ सुवीरा के गाल पर किस कर के महेश चला गया. सुवीरा फिर लेट गई. पूरा शरीर एक अलग ही एहसास से भरा था. कहां विनोद के मशीनी तौरतरीके, कहां महेश का इतना प्यार व भावनाओं से भरा स्पर्श, हर स्पर्श में चाहत ही चाहत. वह हैरान थी, उसे अपराधबोध क्यों नहीं हो रहा है. क्या वह इतने सालों से विनोद के अतिव्यावहारिक स्वभाव, अतिव्यस्त दिनचर्या से सचमुच थक चुकी है, क्या विनोद कभी उस के दिल तक पहुंचा ही नहीं था. वह, बस, अब अपने लिए सोचेगी. वह एक पत्नी है, मां है तो क्या हुआ, वह एक औरत भी तो है.
अगले दिन सिद्धि, समृद्धि स्कूल चली गईं. महेश तैयार हो कर नीचे आया. सुवीरा ने उसे प्यार से देखा, कहा कुछ नहीं. महेश ने उस का हाथ खींच कर उसे अपने सीने से लगा लिया. दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप खड़े रहे. फिर महेश ने उसे होंठों पर किस कर के उसे बांहों में उठा लिया और बैडरूम की तरफ चल दिया. सुवीरा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया. सुवीरा को लगा, उस का मन सूखे पड़े जीवन के लिए मांग रहा था थोड़ा पानी और अचानक बिना मांगे ही सुख की मूसलाधार बारिश मिल गई. महेश के साथ बने संबंधों ने जैसे सुवीरा को नया जीवन दे दिया. उस का रोमरोम पुलकित हो उठा. फोन पर तो विनोद दिन में एक बार सुवीरा और बच्चों के हालचाल लेता था. वह भी ऐसे नपेतुले सवालजवाब होते, कैसी हो? ठीक, तुम कैसे हो? ठीक, बच्चे कैसे हैं? ठीक, चलो, फिर बात करता हूं ठीक है, बाय. इतनी ही बातचीत अकसर होती थी. सुवीरा को लगता कि उन के पास बात करने के लिए क्या कुछ नहीं बचा? लेकिन महेश, वह कैसे बातें करता है, उस की सुनता है. विनोद को तो जब भी वह किसी के बारे में बताने लगती है, वह कह देता है, अरे छोड़ो, किसी की बात क्या सुनूं. उसे तो किसी की बात न कहनी होती है न सुननी होती है. वह बस अपने में जीता है. पैसा हाथ पर रख देने से ही तो पति का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता.
आगे पढ़ें- विनोद थोड़ा चौंक कर बोल….
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विनोद औफिस से चहकता हुआ आया तो सुवीरा ने पूछा, ‘‘कुछ खास बात है क्या?’’
‘‘हां, कितने दिनों से इच्छा थी आस्ट्रेलिया जाने की, कंपनी अब भेज रही है.’’
सुवीरा मुसकराई, ‘‘अच्छा, वाह, कब तक जाना है?’’
‘‘पेपर्स तो मेरे तैयार ही हैं, बस, जल्दी ही समझ लो.’’
‘‘लेकिन मेरा तो पासपोर्ट भी नहीं बना है, इतनी जल्दी बन जाएगा?’’
‘‘अभी मैं अकेला ही जा रहा हूं.’’
‘‘और मैं?’’ सुवीरा को धक्का लगा.
‘‘अभी फैमिली नहीं ले जा सकते, तुम्हारा बाद में देखेंगे.’’
‘‘मैं कैसे रहूंगी अकेले? फिर तुम्हें क्यों इतनी खुशी हो रही है?’’
‘‘यह मौका बड़ी मुश्किल से मिला है, मैं इसे नहीं छोड़ूंगा.’’
‘‘तो ठीक है, पर मुझे भी तो ले जाओ.’’
‘‘नहीं, अभी तो यह असंभव है.’’
‘‘शादी के 6 महीने बाद ही मुझे अकेला छोड़ कर जाओगे और वह भी तब जब मुझे तुम्हारी सब से ज्यादा जरूरत है.’’
‘‘सुवीरा अभी तुम प्रैग्नैंट हो, 5 महीने बाद डिलीवरी है, मैं तब तक आ ही जाऊंगा और आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’
‘‘डिलीवरी के बाद ले कर जाओगे?’’
‘‘हां, अभी बहुत टाइम है, अभी तो तुम मेरे साथ खुशी मनाओ.’’ सुवीरा आंखों में आए आंसू छिपाते हुए विनोद की फैली बांहों में समा गई. विनोद भविष्य के प्रति बहुत उत्साहित था. लेकिन सुवीरा का मूड ठीक होने को नहीं आ रहा था. सुवीरा ने कई बार अपने आंसू पोंछते हुए डिनर तैयार किया और विनोद के साथ बैठ कर बहुत बेमन से खाया. विनोद तो आराम से सो गया लेकिन सुवीरा को चैन नहीं आ रहा था. पूरी रात करवटें ही बदलती रही वह.
और देखते ही देखते तेजी से दिन बीतते गए. विनोद डिलीवरी के समय वापस आने का वादा कर आस्ट्रेलिया चला गया. सुवीरा की मम्मी बीना आ चुकी थीं. हमेशा लखनऊ में ही रही बीना का मन मुंबई में नहीं लग रहा था. वे कहतीं, ‘‘यहां तो न आसपड़ोस है न कोई जानपहचान, कैसे कटेगा टाइम. मांबेटी दोनों की तबीयत ढीली रहने लगी थी. विनोद से वैबकैम के माध्यम से बात तो हो जाती लेकिन सुवीरा की बेचैनी और बढ़ जाती. 2-2 मेड होने से सुवीरा को आराम तो था लेकिन एक तो गर्भावस्था, उस पर इतना अकेलापन. एक दिन मां ने कहा, ‘‘सुवीरा, मैं यहां नहीं रह पाऊंगी ज्यादा दिन, मन बिलकुल नहीं लगता यहां, कोई कितना टीवी देखे, कितना आराम करे. ऐसा कर, तू ही लखनऊ चल.’’
‘‘नहीं मां, विनोद चाहते हैं कि मैं यहीं रहूं. डिलीवरी के बाद आप चली जाना.’’ डिलीवरी की डेट से एक हफ्ता पहले आ गया विनोद. सुवीरा खिल उठी. सुवीरा के ऐडमिट होने की सारी तैयारी शुरू हो गई. सुवीरा ने एक सुंदर, स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया. विनोद ने बेटी का नाम सिद्धि रखा. सब खुश थे. एक महीना हो चुका था. विनोद ने कोई बात नहीं छेड़ी तो एक दिन सुवीरा ने ही कहा, ‘‘अब तो ले चलोगे न हमें?’’
‘‘सिद्धि अभी छोटी है. वहां नई जगह इसे संभालने में तुम्हें दिक्कत होगी. बाद में देखते हैं.’’ मां ने पतिपत्नी की बात में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा. बस, इतना ही कहा, ‘‘मैं तो अब जाने की सोच रही हूं.’’
‘‘हां मां, आप अब चली जाओ,’’ सुवीरा ने अपने दिल पर पत्थर रखते हुए कहा. मां ने कहा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी? मेरे साथ ही चलो.’’
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‘‘नहीं मां, मैं रह लूंगी, मेड और मेरी सहेली सीमा है. वह आतीजाती रहती है. मैं मैनेज कर लूंगी.’’ बीना बेटी को बहुत सारी हिदायतें दे कर चिंतित मन से चली गईं. कुछ दिनों बाद जल्दी आने का वादा कर विनोद भी चला गया. सुवीरा ने अपनेआप को सिद्धि में रमा दिया. सीमा ने एक बहुत शरीफ और मेहनती महिला नैना को सुवीरा और सिद्धि की देखरेख के लिए ढूंढ़ लिया. नैना के दोनों बच्चे गांव में उस की मां के पास रहते थे. वह तलाकशुदा थी. उस ने बहुत उत्साह से नन्ही सिद्धि की देखभाल में सुवीरा का साथ दिया. सुवीरा विनोद के साथ रहने की आस में दिन गिनती रही. 1 साल बाद विनोद आया. आते ही उस ने सुवीरा और सिद्धि पर महंगे उपहारों की बरसात कर दी. विनोद को देख खुशी के मारे सुवीरा अकेले बिताया पूरा साल भूल सी गई. एक दिन विनोद ने कहा, ‘‘मैं वापस आने की कोशिश कर रहा हूं. बौस से बात की है. वे भी कुछ तैयार से लग रहे हैं. रहूंगा यहीं लेकिन विदेश के दौरे चलते रहेंगे. पोस्ट बढ़ी है तो काम भी बढ़ेगा ही और इस बार तो 6 महीने में ही आ जाऊंगा.’’
‘‘ठीक है विनोद, इस बार आ ही जाओ तो ठीक है. अकेले रहा नहीं जाता.’’ विनोद 6 महीने में आने के लिए कह कर फिर से चला गया. उस के चैक लगातार समय पर आते रहे. नैना ने सुवीरा को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. नैना, सिद्धि, सीमा, अंजना और बाकी सहेलियों के साथ सुवीरा अपना दिन तो बिता देती लेकिन रात को जब बिस्तर पर लेटती तो विनोद की अनुपस्थिति उस का कलेजा होम कर देती. दिन में सब के सामने वह एक हिम्मती लड़की थी लेकिन उस का दिल किस अकेलेपन से भरा था, यह वही जानती थी. विनोद 6 महीने बाद सचमुच आ गया है. सुवीरा की खुशी का ठिकाना नहीं था. अब सब ठीक हो गया था. बस, बीचबीच में विनोद को टूर पर जाना था. सिद्धि 4 साल की हुई तो सुवीरा ने एक और बेटी को जन्म दिया जिस का नाम विनोद ने समृद्धि रखा. दोनों बेटियों को सुवीरा ने कलेजे से लगा लिया. उसे इस समय अपनी मां की बहुत याद आई जिन की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी. उस के पिता लखनऊ में अकेले ही रह रहे थे.
अब वह रातदिन बेटियों की परवरिश में व्यस्त थी. विनोद को अपने काम की जिम्मेदारियों से फुरसत नहीं थी. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा. सिद्धि, समृद्धि बड़ी हो रही थीं पर कहीं कुछ ऐसा था जो सुवीरा को उदास कर देता था. वह जो चाहती थी, उसे मिल नहीं पा रहा था. वह चाहती थी विनोद उसे और समय दे, बैठ कर बातें करे, कुछ अपनी कहे व कुछ उस की सुने. लेकिन विनोद के पास किसी भी भावना में बहने का समय नहीं था अब. वह हर समय व्यस्त दिखता. सुवीरा उस का मुंह देखती रह जाती. वह बिलकुल प्रैक्टिकल, मशीनी इंसान हो गया था. सुवीरा दिन पर दिन अकेली होती जा रही थी. सुवीरा ने एक दिन कहा भी, ‘‘विनोद, थोड़ा तो टाइम निकालो कभी मेरे लिए.’’
‘‘सुवीरा, यही टाइम है बढि़या लाइफस्टाइल के लिए खूब भागदौड़ करने का. कितनों के पास है मुंबई में ऐसा शानदार घर. सब सुखसुविधाएं तो हैं घर में. तुम, बस आराम से ऐश करो. फोन, इंटरनैट, कार, क्या नहीं है तुम्हारे पास.’’ सुवीरा क्या कहती, मन मार कर रह गई. वह विनोद के मशीनी जीवन से उकता चुकी थी. या तो बाहर, या घर पर फोन, लैपटौप पर व्यस्त रहना. रात को अंतरंग पलों में भी उस का रोबोटिक ढंग सुवीरा को आहत कर जाता.
एक दिन विनोद बाहर से आया तो उस के साथ में उस की हमउम्र का एक पुरुष था. विनोद ने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘सुवीरा, यह महेश है. एक साथ ही पढ़े हैं. यह सीए है.’’ महेश और सुवीरा ने एकदूसरे का अभिवादन किया. महेश बहुत सादा सा इंसान लगा सुवीरा को. महेश ने विनोद के घर की खुलेदिल से तारीफ की. सुवीरा महेश के लिए कुछ लाने रसोई में गई तो विनोद भी वहीं पहुंच गया, बोला, ‘‘मेरे अच्छे दोस्तों में से एक रहा है यह. बहुत अच्छा स्वभाव है लेकिन कमाई में मुझ से बहुत पीछे रह गया. आज अचानक एक होटल के बाहर मिल गया. इस का अपना औफिस है मुलुंड में. एक कोचिंग सैंटर में अकाउंटैंसी की क्लासेज लेता है. बहुत इंटैलिजैंट है. मैं ने सोचा है, इसे यहीं ऊपर के रूम में रहने के लिए कह दूं. बच्चों की पढ़ाई भी देख लेगा, इस पर एहसान भी हो जाएगा और बच्चों को ट्यूशन के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा.’’
‘‘इस का परिवार?’’
‘‘शादी नहीं की इस ने, किसी लड़की को चाहता तो था लेकिन घरपरिवार की जिम्मेदारी, अपनी 2 बहनों की शादी निबटातेनिबटाते खुद को भूल गया. उस लड़की ने कहीं और शादी कर ली थी किसी अमीर लड़के से. बस, दूसरों के बारे में ही सोच कर जीता रहा बेवकूफ.’’ सुवीरा को दिल ही दिल में विनोद की आखिरी कही गई बात पर तेज गुस्सा आया, लेकिन इतना ही बोली, ‘‘जैसे तुम ठीक समझो.’’ विनोद ने दिल ही दिल में पूरा हिसाबकिताब लगा कर महेश से कहा, ‘‘देख, घर होते हुए तू कहीं और नहीं रहेगा.’’
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‘‘नहीं यार, मैं आराम से एक लड़के के साथ शेयर कर के एक फ्लैट में रह रहा हूं. कोई प्रौब्लम नहीं है. सुबह अपनी क्लास ले कर औफिस चला जाता हूं. औफिस पास ही है.’’
‘‘नहीं, मैं तेरी एक नहीं सुनूंगा. अभी ड्राइवर के साथ जा और अपना सामान ले कर आ,’’ विनोद ने उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया और ड्राइवर को बुला कर आदेश भी दे दिया दोनों की बातचीत में सुवीरा ने कोई हिस्सा नहीं लिया था. महेश के जाने के बाद विनोद ने सिद्धि, समृद्धि से कहा, ‘‘लो भई, तुम्हारे लिए टीचर का इंतजाम घर में ही कर दिया, अब जितना चाहो, जब चाहो इस से पढ़ लेना.’’ दोनों ‘‘थैंक्यू पापा,’’ कह कर हंसते हुए पिता से लिपट गईं. सुवीरा को चुप देख कर विनोद ने पूछा, ‘‘तुम क्यों सीरियस हो? तुम पर इस का कोई काम नहीं बढ़ेगा. अरे, इसे रखना नुकसानदायक नहीं होगा.’’ सुवीरा मन ही मन विनोद के हिसाबकिताब पर झुंझला गई. कैसा है विनोद, हर बात में हिसाबकिताब, दिल में किसी के लिए कोई कोमल भावनाएं नहीं, दोस्ती में भी स्वार्थ, क्या सोच है.
महेश अपना सामान ले कर आ गया. सामान क्या, एक बौक्स में किताबें ही किताबें थीं. कपड़े कम, किताबें ज्यादा थीं. सुवीरा से झिझकते हुए कहने लगा, ‘‘मेरे आने से आप को प्रौब्लम तो होगी?’’
‘‘नहीं, प्रौब्लम कैसी. आप आराम से रहें. किसी चीज की भी जरूरत हो तो जरूर कह दें.’’ डिनर के समय विनोद ने सुवीरा से कहा, ‘‘ऐसा करते हैं, आज पहला दिन है, इसे नीचे बुला लेते हैं. कल से महेश का नाश्ता और डिनर ऊपर ही भिजवा देना. लंच टाइम में तो यह रहेगा नहीं.’’ सुवीरा ने हां में सिर हिला दिया. महेश नीचे आ गया. उस की बातों ने, आकर्षक हंसी ने सब को प्रभावित किया. सिद्धि, समृद्धि तो खाना खत्म होने तक उस से फ्री हो चुकी थीं. विनोद अपनी कंपनी टूर के बारे में बताता रहा. डिनर के बाद महेश सब को ‘गुडनाइट’ और ‘थैंक्स’ बोल कर ऊपर चला गया. थोड़ी देर बाद विनोद और सुवीरा अपने बैडरूम में आए. सुवीरा कपड़े बदल कर लेट गई. विनोद ने पूछा, ‘‘इसे रख कर ठीक किया न?’’
‘‘अभी क्या कह सकते हैं? अभी तो एक दिन भी नहीं हुआ.’’
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