टेसू के फीके लाल अंगार: क्या था सिमरन के अतीत की यादों का सच

टेसू के फीके लाल अंगार- भाग 1 : क्या था सिमरन के अतीत की यादों का सच

लेखक- शोभा बंसल

सिमरन के पांव आज जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस के होमस्टे को 15 दिन के लिए बुक जो कर लिया गया था.

वैसे तो यह उत्साह उस में हमेशा से ही बना रहता है, क्योंकि पुडुचेरी में सिम्मी होमस्टे अपनेपन और पंजाबियत के लिए जो प्रसिद्ध है.

चंडीगढ़ से कोई डाक्टर राजीव यहां कौंफ्रेंस पर आ रहे थे और वह कुछ दिन यहां पर अपनी पत्नी के साथ रहने वाले थे, सो होमस्टे में स्पेशल तैयारियां चल रही थीं.

वैसे भी सिमरन का चंडीगढ़ से पुराना नाता रहा है, तो उस का उत्साह देखते ही बनता था. वजह, इस चंडीगढ़ से कितनी खट्टीमीठी यादें जुड़ी हैं. अतीत के पन्ने फड़फड़ा उठे.

पंजाब के नाभा की रहने वाली सिमरन कभी अपने दारजी और बेबे की आंखों का तारा थी. सिमरन, मतलब जिसे इज्जत से याद किया जाए. पर उस ने तो ऐसा कारनामा किया है कि शायद पीढ़ियों तक कोई भी उस के खानदान में सिमरन का नाम भूल कर भी नहीं लेगा. उस का तो जीतेजी उस की यादों के साथ और उस के नाम के साथ शायद पिंडदान कर दिया गया था. उस ने लंबी सांस खींचते सोचा, क्यों कट्टरपंथी होते हैं परिवार वाले?

सिमरन के स्कूल पास करने के बाद उस के मातापिता ने बड़े अरमानों और नसीहतों के साथ उसे आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ भेज दिया.

खुलेखुले माहौल ने भोलीभाली सिमरन को अलग ही दुनिया में ला पटका. यह तो पहला पड़ाव था. पता नहीं ऐसे कितने ही पड़ाव उसे अभी देखने थे.

अब कालेज उस के लिए पढ़ाई के साथ आजादी और मौजमस्ती का अड्डा भी था. तब लड़कियों का इज्जत व मान भी था. अगर रैगिंग और छेड़छाड़ होती भी थी तो हेल्दी तरीके से. आज की तरह अनहेल्दी एटमोस्फेयर न था.

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अकसर जब उस की खूबसूरती पर लड़के फब्ती कसते तो ऊपर से तो वह बेपरवाह रहती, पर अंदर ही अंदर उसे अपने रूप पर फख्र महसूस होता.

एक दिन जब वह अपने रूममेट स्नेहा के साथ लाल फुलकारी दुपट्टा पहन कालेज पहुंची, तो अचानक
‘लाल छड़ी मैदान में खड़ी…’
का कोरस बज उठा.

गुस्से में उस ने जो पलट कर देखा तो सब शरारती लड़के सीटियां मारने लगे. तभी एक सीनियर ने सब को हाथ के इशारे से रोका. उस हरी आंखों वाले नौजवान ने आगे बढ़ कर डायलौग मारा, “कुड़िए तेरी मंगनी हो गई, तो फिर चाय पार्टी दे.”

यह सुन सिमरन के गाल शर्म से लाल हो उठे और उस ने फुलकारी से अपना मुंह ढक लिया.

यह देख उस सीनियर ने बड़ी अदा से फिल्मी अंदाज में गाना शुरू कर दिया, “रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर, जलवा फिर एक बार दिखा दो मेरे हुजूर…”

सिमरन ने गुस्से में पैर पटक कर जो जाना चाहा, तो उस ने सिमरन के पैरों में झुक कर अदा से बैठते हुए नया तराना शुरू किया, “अभी ना जाओ छोड़ कर, के दिल अभी भरा नहीं…”

और कुछ सीनियर लड़केलड़कियां स्नेहा, सिमरन और उस हरी आंखों वाले सीनियर के चारों तरफ घेरा डाल इस छेड़छाड़ का मजा लेने लगे और मिल कर गाने लगे, “कहां चल दिए इधर तो आओ हमारे दिल को यूं ना तड़पाओ.”

तभी किसी ने कहा, “पैट्रिक, भागो. प्रिंसिपल सर इधर ही आ रहे हैं.”

ऐसा सुनते ही सारे सीनियर खिसक लिए.

उस हरी आंखों वाले पैट्रिक की शरारत अकसर सिमरन के जेहन में आ कर उसे गुदगुदा जाती.

फिर एक दिन वह रिकशे में बैठ कर सैक्टर 17 जा रही थी, तभी एक मोटरसाइकिल उस की बगल से गुजरी और हेलमेट पहने किसी नौजवान ने फब्ती कसी, “अगर चुन्नी लेने का इतना ही शौक है तो ढंग से लिया करो. नहीं तो किसी दिन गले में फांसी का फंदा बन जाएगी…”

जब तक वह कुछ रिएक्ट करती और अपनी चुन्नी संभालती, तब तक उस के गले से चुन्नी फिसल कर रिकशे के पहिए में फंस गई.

यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ कि उस की चीख निकल गई. लोग जब तक इकट्ठे होते, तब तक पैट्रिक ने अपना हेलमेट उतार उस की चुन्नी को पहिए से अलग किया और रिकशे वाले को पैसे दे रफादफा होने को कहा. फिर आंखें तरेर कर सिमरन को अपने साथ मोटरसाइकिल पर बैठा होस्टल वापस ले आया.

सिमरन को याद हो आया,
“बेबे सही कहती थी, चुन्नी जमीन को छूनी नहीं चाहिए. चुड़ैल चिमट जाती हैं.”

शायद उस की चुन्नी के सहारे इश्क चुड़ैल उस से चिपट चुकी थी.

वह तो बस पैट्रिक की हरी आंखों में डूबने को उतावली थी. जितना वह पैट्रिक को पाने की, छूने की कोशिश करती, उतना ही वह पता नहीं क्यों परेशान हो जाता और शादी से पहले ऐसे संबंधों को गलत बताता. वह उस के इस व्यवहार पर वारीवारी हो जाती.

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आज वह महसूस कर रही है कि सच में कुछ इनसान अंदर और बाहर से कितने अलग होते हैं. पता नहीं, कब गिरगिट की तरह रंग बदल ले. वक्त भी तो गिरगिट की तरह रंग बदलता है.

उन दिनों धीरेधीरे उन दोनों के बीच दोस्ती परवान चढ़ने लगी. अब पढ़ाई के साथ सिमरन और पैट्रिक कल्चर क्लब के एक्टिव मेंबर बन चुके थे.

उस की रूममेट स्नेहा ने उसे कई बार पैट्रिक के साथ ज्यादा नजदीकियां न बढ़ाने का इशारा भी किया. पर उसे उस की ईर्ष्या समझ सिमरन ने अनसुना कर दिया, क्योंकि सिमरन पर तो जैसे पैट्रिक की हरी आंखों का सम्मोहन छाया था. उस में आए बदलाव को उस की बेबे ने भी महसूस किया और उस की शादी के लिए दारजी पर दबाव डालना शुरू कर दिया.

इधर समय ने करवट ली. उन के कालेज के इंटर कालेज फेस्टिवल में उन दोनों का ‘हीररांझा’ नाटक देख एक प्रोड्यूसर ने उन्हें अपनी अगली पिक्चर में नायकनायिका बनाने का औफर दिया और अपना विजिटिंग कार्ड थमा दिया.

अब वे दोनों इस विजिटिंग कार्ड के पंखों पर सवार हो यथार्थ की दुनिया से सपनों की दुनिया में विचरने लगे.
इधर दोनों के फाइनल्स हुए, उधर सिमरन की शादी कपूरथला की जानीमानी अमीर पार्टी से पक्की हो गई.

पैट्रिक को भी केरल वापस आ कर चाय बागान संभालने का हुक्ममनामा मिला. दोनों के ही नायकनायिका बन दुनिया के दिलों पर राज करने के सपने चकनाचूर हो गए.
न तो सिमरन पक्की गृहस्थन बनना चाहती थी और न ही पैट्रिक चाय बागान का मालिक – एक ठेठ व्यापारी.

तभी जैसे उस की तंद्रा को तोड़ते नीचे रिसेप्शन से मैसेज मिला कि मिस्टर और मिसेज राजीव पहुंच गए हैं. अपने को एक बार शीशे में निहार सिमरन नीचे भागी.

होमस्टे का स्टाफ अतिथियों के लिए फ्रेश ड्रिंक्स और आरती का थाल ले कर स्वागत की पूरी तैयारी के साथ खड़ा था. पहला इंप्रेशन अगर अच्छा रहा तो खुदबखुद उस के होमस्टे की पब्लिसिटी हो जाएगी.

यह सोच कर सिमरन के होठों पर स्मित मुसकान आ गई. पर, जैसे ही उस ने राजीव दंपती को देखा तो लगा मानो पैरों तले जमीन निकल गई हो और उस के होठों पर आई मुसकान मानो वहीं जम गई. उस के सामने तो उस की कालेज के जमाने की रूममेट स्नेहा अपने पति डाक्टर राजीव के साथ खड़ी थी.

इधर स्नेहा भी सिमरन को यों यहां पुडुचेरी में होमस्टे की मालकिन देख ठगी सी रह गई. यह तो पैट्रिक के साथ मुंबई भाग गई थी. फिर यहां कैसे…?

इधर सिमरन ने भी वक्त की नब्ज देख गर्मजोशी से स्नेहा का हाथ पकड़ा और उस के गले लग गई.

डाक्टर राजीव ने स्नेहा की तरफ सवालिया निगाहों से देखा, तो उस ने इशारे से सब बाद में बताने को कहा. शायद वो यह नहीं देख पाए कि उस का इशारा करना सिमरन की निगाह से नहीं छुप पाया था.

एकबारगी तो सिमरन के चेहरे का रंग उड़ गया. कहीं उस का अतीत उस के सुखद और शांत वर्तमान और भविष्य पर हावी हो कर उथलपुथल न कर दे. फिर जब डाक्टर राजीव रिसेप्शन पर पेपर वर्क पूरा कर रहे थे, तो सिमरन ने स्नेहा का हाथ दबाते हुए उस के कान में कहा, “डा. राजीव को मेरे बारे में कुछ भी बताने से पहले मेरे से मिल लेना, प्लीज.”

उस दिन डा. राजीव की पुडुचेरी के एक आश्रम में कौंफ्रेंस थी, तो स्नेहा पुरानी सखी सिमरन से मिलबैठ बातें करने का बहाना बना वहीं होमस्टे में रुक गई. क्योंकि सिमरन का अतीत जानने की उस को भी उत्सुकता थी.

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उधर पुडुचेरी के सूर्यास्त की लालिमा सदैव ही सिमरन को उदास और एकाकी करती आई है. आज वह अपने कमरे में बैठ चाह कर भी अपनी इस अवसाद भरी सोच से बाहर नहीं निकल पा रही थी.

स्नेहा ने उसे अतीत के गहरे अंधेरे कुएं में जो धकेल दिया था. तभी स्नेहा ने हौले से दरवाजा थपथाया. अपने व्यथित मन को सहेज सिमरन ने प्रोफेशनल होस्ट और दोस्त की इमेज पहन ली.

स्नेहा ने कमरे में इधरउधर झांकते हुए पूछा, “पैट्रिक कहां है?”

सिमरन ने फीकी मुसकान के साथ कहा कि वह यहां अपनी बेटी के साथ अकेली ही रहती है और यह होमस्टे उस का ही है.

आगे पढ़ें- स्नेहा यह सुन हक्कीबक्की रह गई और..

टेसू के फीके लाल अंगार- भाग 3 : क्या था सिमरन के अतीत की यादों का सच

लेखक- शोभा बंसल

यह सब क्या हो रहा था? लगता है, मैं घंटाभर यों ही वहां बैठी रही. पैट्रिक की बहुत मिन्नत के बाद मैं ने दरवाजा खोला और हम दोनों अपनेअपने साथ हुए हादसे के लिए घंटेभर आंसू बहाते रहे.

पैट्रिक ने वादा करते हुए कहा कि वह मजदूरी कर लेगा, पर दोबारा ऐसा गंदा काम नहीं करेगा. किस्मत अच्छी थी कि मुझे फिर से ट्यूशन मिल गई और एक प्राइवेट स्कूल में कम तनख्वाह पर नौकरी भी. सोचा, अब मैं कमाऊंगी और पैट्रिक अपने फिल्मी कैरियर पर ध्यान देगा. जैसा कि उस ने मुझ से वादा किया था. पर शायद वह मेरी कमाई पर रहने को पचा नहीं पा रहा था. फिर एक दिन पैट्रिक बोला, “कहीं काम मिला है. ज्यादा बड़ा तो नहीं. पर रात को देर से आएगा, क्योंकि शूटिंग रात में ही होगी.”

मैं ने भी सहज ही मान लिया. पर शक का कीड़ा अब कुलबुलाने लगा था, क्योंकि यहां के परिवेश में रहते हुए मैं भी बहुत जल्दी बाहरी दुनिया की असलियत पहचानने लगी थी.

एक रात मैं विंडो के पास खड़ी पैट्रिक का इंतजार कर रही थी तो एक बड़ी सी गाड़ी रुकी और दरवाजा खुला. पैट्रिक के साथी ने गाड़ी से उतर कर बड़े ही वाहियात तरीके से पैट्रिक को चुंबन दिया.

यह देख सिमरन को सारा माजरा समझ आ गया. तो पैट्रिक रात को कौन सी शूटिंग करता था, “यही वाली ना…”

पैट्रिक के घर में पैर रखते ही मैं ने उस की लानतमलामत शुरू कर दी. पर शराब के नशे में धुत्त वो क्या सुनता? सुबह जब पूछा तो जनाब के रंगढंग निराले थे.

“शराब पी कर ही तो जिस्म बेचे जाते हैं. इस फिल्मी लाइन में आगे बढ़ने के लिए कहीं ना कहीं कम्प्रोमाइज तो करना ही पड़ता है. तुम ने तो उस बुढ़िया की नौकरी पर लात मार कर सब से बड़ी बेवकूफी की. पैसा भी गया और नौकरी भी गई. उसी के चलते तुम्हें कहीं ना कहीं तो किसी पिक्चर में काम मिल ही जाता. शायद वह बुढ़िया ही तुम्हारे प्यार में पड़ तुम्हारे साथ कोई पिक्चर बना लेती. कुछ पाने के लिए तुम्हें भी समझौता करना आना चाहिए. मेरे साथ रह रही हो तो दोनों ही तरह की जिंदगी का मजा लो. अपना काम निकलना चाहिए, चाहे सामने वाला मेल हो या फीमेल, इस से फर्क नहीं पड़ता. इस सच को जितनी जल्दी समझ लोगी उतना अच्छा रहेगा.”

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मैं तो यह सुन कर हक्कीबक्की रह गई. उसे समझाया, “आओ, अब अपनी दुनिया में लौट चलें. मांबाप का दिल बहुत बड़ा होता है. वे हमें माफ कर देंगे.”

पर, उस पर तो फिल्मों में काम करने का जिन्न सवार था. उस के फालतू के तर्कवर्क सुन कर मैं उस पर फट पड़ी, “कभी तो तुम बहुत गरूर करते थे, सिमरन के प्रति अपने पजेसिवनेस का. कहां गया वह दम? सब इस मायानगरी के दलदल में गहरा धंस गया है. शर्म नहीं आती तुम्हें अपने ऊपर… मुझे अपने बायसैक्सुअल ग्रुप ज्वाइन करने को कहते हो.

“कालेज में इसी सिमरन पर अगर कोई दूसरा निगाह भी डाल लेता था, तो तुम उस का खून करने को उतारू हो जाते थे. आज कहां गई तुम्हारी ऊष्माभरी पजेसिवनेस… मैनलीबिहेवियर और मैनरिज्म? शोहरत और पैसे के लिए तुम इतने नीचे गिर जाओगे, मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. अभी भी वक्त है, चेते जाओ. तुम तो सैक्स की भूख में अपना जमीर भी खो बैठे हो. पता है बायसैक्सुअल होने पर कितनी बीमारियां लगेंगी? क्या कहेंगे तुम्हारे घर वाले, जब उन को तुम्हारी सचाई का पता चलेगा. इन सेलिब्रिटीज की जिंदगी खुले पन्ने की तरह होती है. फिर भी इन पर कोई उंगली नहीं उठा सकता, क्योंकि इन की ताकत और पैसे के आगे सब बोने हैं. सारा दोष तुम पर ही आएगा. अभी भी सुधर जाओ.”

पर, वह कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था. मैं तो जैसे आसमान से जमीन पर गिरी. क्या करूं? किस से बात करूं? समझ ही नहीं आया. यहां तो कोई किसी की पर्सनल लाइफ में इंटरफेयर ही नहीं करता.
क्या से क्या बन गए थे हम? सपनों को भूल, जीवनयापन की इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मशीन. जीवन का सारा मजा ही लुप्त हो रहा था.

तभी मुझे लगा कि मेरे शरीर में नन्हा सा अंकुर फूट रहा है. जब मैं ने पैट्रिक को यह खबर दी, तो उस ने इस को अपना अंश स्वीकारने से ही मना कर दिया. वह दोषारोपण करने लगा, “क्या पता, मेरे पीछे तुम भी यही सब करती हो, जो मैं रात में करता हूं? यहां तो यह आम बात है.”

गुस्से में मैं ने एक थप्पड उस को लगा दिया और अपने स्कूल आ गई.

उसी वक्त मैं ने एक निर्णय लिया और चुपके से पैट्रिक के घर में फोन कर के बताया, “वह यहां मुंबई में आ कर गलत संगत में पड़ गया है. इसे कोई गंभीर बीमारी हो, उस से पहले ही उसे यहां से जबरदस्ती ले जाएं और उस का जीवन सुधारें.”

यह सुनते ही उस के मातापिता के पैरों तले जमीन निकल गई. उसी रात उन्होंने फ्लाइट से आने का वादा किया. मैं ने उन्हें पैट्रिक के घर का पता दे दिया और कहा कि चाबी वाचमैन से ले लें, यह कह कर मैं ने फोन रखा और अपने कपड़े और पैसे समेटे. भरपूर गीली निगाह अपने बिखरते आशियाने पर डाली और वूमेन होस्टल की डोरमेट्री में रहने आ गई.

2 दशक पहले तक यह लिव इन टैबू था लिव इन कपल को हिकारत या बदचलन के रूप में देखा जाता था और मैं तो कुंआरी मां थी. अब मेरा पेट दिखने लगा था. तो एक दिन हिम्मत कर नाभा के लिए ट्रेन पकड़ी और घर पहुंच गई. पर वहां अब कोई न था.

मेरे दारजी और बेबे घर बेच कर पता नहीं कहां चले गए थे. मुंबई वापस जाने का मन न था. हिम्मत कर के मैं ने पटियाला में अपने ननिहाल में पनाह लेने की सोची. वह तो सुखद संयोग था कि घर पर उस दिन अकेले नानी थी. बाकी सभी किसी की शादी में 2 दिन के लिए दिल्ली गए हुए थे. मेरी नानी ने बहुत हिम्मत से काम लिया. मुझे एक कमरे में छुपा कर रखा, खानेपीने का सामान दिया और फिर कुछ पैसे दिए और यहां से पुडुचेरी में अपने गुरुजी के आश्रम में भेज दिया. वे जब तक जिंदा रहीं, मेरे अकाउंट में कुछ ना कुछ रकम भेजती रहीं. मैं भी आश्रम में बच्चों को पढ़ाने लगी और हर वक्त किसी ना किसी काम में व्यस्त रहती. बस इन्हीं से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ.

मेरी नानी ने अपने गुरुजी को यह बोला था कि मैं विधवा हूं और पेट से हूं, तो किसी ने ज्यादा सवाल नहीं पूछे.

अब तक, मैं भी जिंदगी में इतने धक्के खा कर समझदार हो चुकी थी. एक दिन मेरे अकाउंट में नानी ने एक बहुत बड़ी रकम भेजी.
फिर मैं ने छोटी सी शुरुआत में ही भविष्य की संभावनाएं जोड़ी और अपनी थोड़ीबहुत जमापूंजी और नानी की रकम से यहां छोटा सा घर खरीद लिया. यहां पर शुरू में तो मैं ने पेइंग गेस्ट खोला. मेरे अच्छे व्यवहार और घर जैसे माहौल के चलते यह हमेशा भरा रहने लगा. धीरेधीरे मैं ने उस के आसपास की जगह खरीद होमस्टे का व्यवसाय शुरू किया.

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पिछले दोढाई दशकों में काफीकुछ बदल गया है. अब तो मैं भी सशक्त और आत्मनिर्भर बन गई हूं…

स्नेहा ने उस को रोक कर पूछा, “तुम फिर कभी पैट्रिक से मिली?”

सिमरन ने कहा, “नहीं. असल में हम दोनों एकदूसरे को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे थे और जिंदगी की वास्तविकता से रूबरू हो अपने ही सपनों को पूरा करना भूल गए.

“स्नेहा, मुझे कभीकभी लगता है कि हमारी सारी चाहतें और इच्छाएं केवल दैहिक वासना से जुड़ी थीं मां की नाल की तरह. दैहिक वासना से अलहदा हो कर शायद हमारा प्यार अब और अधिक मजबूत हो गया होगा.

“पैट्रिक को तो मैं ने उस दिन मुंबई छोड़ते ही अतीत के पन्नों में वहीं दफन कर दिया था. सुखद संयोग आज तुम से मिलना हो गया. आज तुम आई हो तो पूरी जिंदगी को पढ़ लिया. अब तो बस यही जीवन है.

“बस एक ही चाह है कि पैट्रिक मेरे चरित्र पर विश्वास करे. मैं ने उस के अलावा किसी और के साथ, न तब, न उस से रिलेशनशिप टूटने के बाद किसी और से कोई संबंध बनाए. वह एक बार अपनी बेटी को देख कर इस बात को मान ले कि यह उस का ही अंश है और यह सच भी है.

“वह सामने पानी में अपनी फ्रेंड्स के साथ अठखेलियां करती मेरी बेटी सिप्पी है.”

फिर सिमरन ने अपने कमरे की विंडो से आवाज लगाई, “सिप्पी यहां आओ. अपनी कालेज फ्रेंड से तुम्हें मिलवाना है.”

जैसे ही सिप्पी ने विंडो की तरफ देखा, तो स्नेहा हैरान रह गई, “हूबहू सिमरन… पर…?

“पर, आंखें…

“ओह… हरी.

“ये तो पैट्रिक जैसी हैं…”

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टेसू के फीके लाल अंगार- भाग 2 : क्या था सिमरन के अतीत की यादों का सच

लेखक- शोभा बंसल

फिर कौफी पीते हुए थोड़ा सहज होने पर, अपनी पुरानी सखी स्नेहा का यों अपनापन देख सिमरन ने खुदबखुद अपना अतीत उस के सामने उधेड़ना शुरू कर दिया.

“स्नेहा, मेरा जीवन तो लंबे संघर्षों के कहीं कोरे, कहीं फीके, कहीं टेसू के लाल तो कहीं पीले रंगों का पुलिंदा है. पर, पता नहीं कैसे हिम्मत आई और मैं ने अपने को चकाचौंध की दुनिया में चट्टान से अडिग पाया. इसी दृढ़ता ने मुझे मुश्किलों का सामना कर निरंतर आगे बढ़ने को प्रेरित किया और मैं ने बिना किसी गिलाशिकवा के सोचसमझ कर पैट्रिक से अलग होने का सही निर्णय लिया था.

“मैं तुम से क्या छुपाऊं? क्या बताऊं? बस इतना ही कहना चाहती हूं कि जब हम रिलेशनशिप में होते हैं, तो केवल उसी के बारे में सोचते हैं. एक फियर में रहते हैं कि कोई उस प्यार को छीन न ले. शायद सच.

“स्नेहा, इसीलिए तब तुम्हारा पैट्रिक के लिए क्रश देख मैं भी तो जीलस और इनसिक्योर हो गई थी.”

स्नेहा यह सुन हक्कीबक्की रह गई और एंबैरेस्ड हो कर बोली, “छोड़ो वह बात. तब तो उम्र ही ऐसी होती है…

“हां, तुम्हारे पैट्रिक के साथ भागने की खबर जब मेरे मम्मीपापा के पास पहुंची, तो उन्होंने मुझे होस्टल से वापस बुला लिया और मेरी आननफानन में डा. राजीव से शादी भी करवा दी.”

फिर क्रश वाली झेंप मिटाने के लिए और अपनी आज की साख बनाए रखने के लिए स्नेहा ने आगे जोड़ा, “डाक्टर साहब देखने में तो सख्तमिजाज लगते हैं, पर इन का दिल स्नेह और प्यार से लबालब भरा है. तभी तो मैं शादी के बाद अपने पीएचडी करने का सपना पूरा कर पाई.”

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अपनी आगे की पढ़ाई न कर पाने की एक चुभन भरी टीस सिमरन के दिल में उठी. उस का भी तो पीएचडी करने का और कुछ बनने का सपना था. क्या से क्या हो गया…? पर, फिर अपने चेहरे पर उस ने मुसकान कायम रख इस चुभन को तत्परता से छुपा लिया.

उधर स्नेहा को पैट्रिक और सिमरन के ब्रेकअप के बारे में सुन कर बहुत दुख पहुंचा. उस ने कहा, “तुम पर तो तकलीफों का पहाड़ टूट पड़ा होगा…? कैसे किया मैनेज अकेले तब…?”

यह सुन कर सिमरन फिंगर क्रास करते हुए बोली, “नहीं… नहीं, पैट्रिक को दोष मत दो. सब वक्त की बात है. ब्रेकअप हुआ है हमारा. फिर भी बद्दुआ नहीं करूंगी उस के लिए. इस ब्रेकअप ने मेरे बहकते कदमों को नई दिशा दी है. मेरे वजूद को एक नई पहचान दी है. इस में कुछ तो जरूर पैट्रिक का योगदान रहा होगा.”

सिमरन ने टौपिक बदलते हुए कहना शुरू किया. उन दिनों कालेज लाइफ में तब की मुंबई हमारे लिए हौलीवुड जैसी थी. पर यह दिखने में भी नहीं, सच में बड़ी ही मायावी है. हम दोनों को ही जिंदगी का बहुत बड़ा फलसफा सिखा गई यह मुंबई.

जिस प्रोड्यूसर, डायरैक्टर ने इंटर कालेज कल्चर फेस्टिवल में चीफ गेस्ट बन हमारी ऐक्टिंग पर खुश हो, अपना विजिटिंग कार्ड दिया, हमें अपनी अगली फिल्म में काम देने का वादा किया था, उसे ही सच्चा मान हम घरपरिवार की इज्जत को दरकिनार कर अपने सपनों की दुनिया को यथार्थ में अनुभव करने के लिए हाथ में जो थोड़ाबहुत पैसा, गहना था, उसे ले कर मुंबई भाग आए. पर चार दिनों में ही यहां की असलियत सामने आ गई.

उस प्रोड्यूसर, डायरैक्टर ने तो केवल उस दिन वाहवाही लूटने और मीडिया में अपना नाम कमाने के लिए हमें वह लालच दिया था. वह क्या हमारे फाइनल्स होने तक हम दोनों का इंतजार करता? उस के दरबान ने तो हम दोनों को गेट का रास्ता दिखा दिया. अच्छेभले खातेपीते घर के लोग सड़क पर आ गए और रोटी के लिए मोहताज हो गए.

जीवनयापन के लिए सिमरन ने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. उधर पैट्रिक फिल्मों में काम की तलाश में सुबह निकलता और देर रात तक भटकता रहता.

फिर एक दिन मेरी हेयर ड्रेसर पड़ोसन ने मुझे एक अधेड़ उम्र की बुढ़ाती नायिका की कंपेनियन के रूप में नौकरी दिलवा दी. मुझे तो द्रोपदी का सरेंधेरी रूप याद आ गया. इस नायिका के यहां पुरुषों का आना मना था. केवल लेडीज ही काम कर सकती थी. मुझे सुबह 11 बजे से ले कर शाम के 7 बजे तक उस के साथ साए की तरह रहना था. क्योंकि अब बढ़ती उम्र की वजह से न तो उस को फिल्मी दुनिया में काम मिल रहा था और न ही इज्जत. न ही उस का कोई नातेरिश्तेदार था और न ही कोई दोस्त. वह बेइंतिहा अकेली थी. पैसा भी उस के अकेलेपन को भर नहीं पा रहा था… सो, मुझे भी लगा कि कोई डर नहीं.

इस नौकरी को मैं ने और उस ने भी मुझे हाथोंहाथ लिया. मुझे देख उस के उदास चेहरे पर अजीब सी चमक आ गई और जब उस ने तीखी निगाहों से मेरे बदन पर एक गहरी निगाह डाली, तो एकबारगी मेरी रूह कांप उठी कि कहीं यह बुढ़िया कोई लुकाछिपी वाला धंधा तो नहीं चलाती. शायद वह मेरी पेशानी पर पड़े चिंता व तनाव के बादलों को पहचान गई और मुझे अपने पास बुला कर जोर से भींच लिया और प्यार से बोली, “लाडो रानी डरो नहीं… तुम तो मेरी बेटी समान हो. मेरा भी अगर परिवार होता तो तुम्हारी ही हमउम्र मेरी बेटी या बहू होती.”

फिर उस बुढ़िया ने मुझ से मेरे स्टेटस के बारे में पूछा. मैं भोलीभाली… मैं ने सीधा ही बोल दिया, “अभी शादी नहीं की, पर इकट्ठे रहते हैं. थोड़ा सेटल हो जाएंगे, तो शादी कर घर पर बसा लेंगे.”

यह सुनते ही उस ने मोहममता से सहानुभूति दिखाते हुए मुझे 3,500 रुपए एडवांस में दे दिए और उस रोज से ही अपने पास काम पर रख लिया. उस के साथ कुछ दिन बड़े मजे से कटे. ताश खेलो, गपशप करो, खाना खाओ, घूमोफिरो, उस की बातें सुनो. इसी बीच मैं उसे दवाई, खानापीना भी देती. कभीकभी वह बच्चों की तरह रूठ जाती, तो उसे अपने हाथों से खाना खिलाती.

एक दिन वह जिद करने लगी. बाजार चलो, कुछ वेस्टर्न ड्रेस लानी है, क्योंकि मैं सलवारकमीज में बड़ी उम्र की लगती थी. मैं यहां हीरोइन बनने आई थी, मां का रोल करने के लिए नहीं. घर पर ही उस ने ब्यूटीशियन को बुलवा कर अपनी निगरानी में मेरी बौडी पौलिशिंग करवाई.
सच में स्नेहा, मैं तो शर्म से मरी जा रही थी और वह बुढ़िया मेरी शर्म का मजा ले रही थी. फिर जब उस ने मुझे बालों को छोटा कटवाने को कहा, तो मैं ने सख्ती से मना कर दिया और उठ खड़ी हुई तो वह तुरंत राजी हो गई.

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अगले दिन उस ने मुझे उस की दिलवाई वेस्टर्न ड्रेस पहनने का आग्रह किया. उस दिन घर में हम दोनों ही थे और कोई नहीं. मैं तो शीशे में अपना ही रूप देख फिल्मी दुनिया में नायिका के रूप में विचरने के ख्वाब देखने लगी. उस ने मुझे अपने पास बिठा लिया और मेरी जांघों पर हाथ फेरते हुए मेरे रूपयौवन की तारीफ की. लेकिन मुझे उस का यों टच करना पसंद नहीं आया.

फिर एक दिन मेरी बैकलेस ड्रेस से पीठ पर हाथ फेरती हुई वह बोली, “यह तो पंख सी मुलायम है.”

जब तक उस के हाथ नीचे फिसलते, मैं बहाने से खड़ी हो गई. सोचा, शायद इस का बात करने का ऐसा ही ढंग होगा. फिर मेरी तरफ से कोई एतराज न देख अब उस की हिम्मत बढ़ने लगी.

एक दिन मैं कपड़े चेंज कर रही थी, तो अचानक मेरे चेंजिंग रूम का दरवाजा खुला और उस ने मुझे पीछे से जकड़ लिया. मेरे मुंह से चीख निकल पड़ी.

तो यह था इस बुढ़िया का असली रूप. लेस्बियन के बारे में केवल उड़तीउड़ती बातें सुनी थीं, पर आज तो देख भी लिया. सैक्स की भूखी वह बूढ़ी नायिका मेरा रौद्र रूप देख घबरा गई.

पहले तो उस ने भी पलटवार करते हुए मुझे लिवइन रहने के लिए लानतमलामत की. मेरे चरित्र पर लांछन मारे. मुझे टस से मस न होता देख वह समझ गई कि उस की दाल यहां नहीं गलेगी. मैं ने झटपट कपड़े पहने और कोठी का गेट खोल उस घर से भागी.

शुक्र है, उस भयानक हादसे से अपने को बचा सकी, पर शायद…

घर पहुंची तो दरवाजा अंदर से बंद था, पर कुंडी नहीं लगी थी. हां, जैसे ही दरवाजा खोल कर अंदर कदम रखा तो आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

“किस से उस बुढ़िया की बेजा हरकत की शिकायत करूं? उस पैट्रिक से, जो खुद एक प्रोड्यूसर को खुश करने के लिए हमबिस्तर था.”

मैं अपनी चीख को होंठों में ही दबा वाशरूम में भाग गई.

आगे पढ़ें- यह सब क्या हो रहा था? लगता है…

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