#coronavirus: थाली का थप्पड़

ओफ़ ! कैसी विकट परिस्थति सामने आ गयी थी. लग रहा था जैसे प्रकृति स्वयं से छीने गये समय का जवाब मांगने आ गयी थी. स्कूल-कॉलेज सब बंद, सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था. सब अपने-अपने घरों में दुबके हुये थें. आदमी को हमेशा से ही आदमी से खतरा रहा है. स्वार्थ, लालच, घृणा, वासना, महत्वकांक्षा और क्रोध, यह आदमी के वो मित्र है जो उन्हें अपनी ही प्रजाति को नष्ट करने के लिये कारण देते हैं. अधिक पाने की मृगतृष्णा में प्रकृति का दोहन करते हुये, वे यह भूल जाते हैं कि वे खुद अपने लिये मौत तैयार कर रहे हैं. जब मौत सामने नजर आती है, तब भागने और दफ़न होने के लिये जमीन कम पड़ जाती है.

आजकल डॉ आरती के दिमाग में यह सब ही चलता रहता था. वे दिल्ली के एक बड़े सरकारी अस्पताल में कार्यरत थी. वे पिछली कई रातों से घर भी नहीं जा पायी थीं. घर वालों की चिंता तो थी ही, अस्पताल का माहौल भी मन को विचलित कर दे रहा था. उनकी नियुक्ति कोरोना पॉजिटिव मरीजों के मध्य थी. हर घंटे कोरोना के संदेह में लोगों को लाया जा रहा था. उनकी जांच करना, फिर क्वारंटाइन में भेजना. यदि रिपोर्ट पाज़िटिव आती तो फिर आगे की कार्यवाही करना.

मनुष्य सदा यह सोचता है कि, बुरा उसके साथ नहीं होगा. किसी और घर में, किसी और के साथ होगा. वह तो हर दुःख, हर पीड़ा से प्रतिरक्षित है, यदि उसके पास धन है. जब उसके साथ अनहोनी हो जाती है, वह रोता है, कष्ट झेलता है. लेकिन फिर देश के किसी और कोने में एक दूसरा मनुष्य उसकी खबर पढ़ रहा होता है और वही सब सोच रहा होता है कि, यह सब मेरे साथ थोड़े ही ना होगा ! हम स्थिति की गंभीरता को तब तक नहीं समझते जब तक पीड़ा हमारे घर का दरवाजा नहीं खटखटाती. धर्म, जाति, धन और रंग के झूठे घमंड में दूसरे लोगों के जीवन को पददलित करने से भी नहीं हिचकतें. किंतु जब मौत महामारी की चादर ओढ़कर आती है तो, वह कोई भेद नहीं करती. उसे कोई सीमा रोक नहीं पाती. वह न आदमी की जाति पूछती है और ना उसका धर्म, न उसका देश पूछती है और ना उसका लिंग. मौत निष्पक्ष होती है. जीवन एक कोने में खड़ा मात्र रोता रहता है. जब आदमी विषाणु बोने में व्यस्त था, वह जीवन के महत्व को भूलकर धन जोड़ता रहा. आज धन बैंकों में बंद उसकी मौत पर हंस रहा था.

ये भी पढ़ें- ज़िन्दगी-एक पहेली: भाग-6

जिन कोरोना पाज़िटिव लोगों को क्वारंटाइन में रखा गया था, उनके कमरों से भिन्न-भिन्न प्रकार की आवाजें आतीं. कोई रो रहा होता, कोई अचानक ही हंसने लगता. वहाँ के अन्य डॉक्टर, नर्स और सफाई कर्मचारी भी अवसाद का शिकार हो रहे थें. आरंभ में डॉ आरती ने वहाँ आ रहे लोगों की आँखों में देखना छोड़ दिया था. उनके पास रोगियों के आँखों में तैरते भय और प्रश्नों के लिये कोई उत्तर नहीं था. परंतु धीरे-धीरे आरती के भीतर कुछ पनपने लगा. अस्पताल को जो दीवार पीड़ा, कष्ट, भय और अनिश्चय के रंगों से रंग गयी थी, उसे उन्होंने कल्पना और आशा के रंगों से रंगना आरंभ कर दिया. यह सब आसान नहीं था. उन सभी को पता था कि वे एकजंग लड़ रहे हैं. आरती ने बस उनके भीतर जंग को जितने का हौसला भर दिया. आपस में मजाक करना, रोगियों को ठीक हो गये मरीजों को कहानियाँ सुनाना, कभी-कभी कुछ गा लेना और रोगियों के साथ एक दूसरे के हौसलें को भी बढ़ाते रहना.

पिछली दसदिनों में कोरोना के संदेह में लाये गये मरीजों की संख्या भी बढ़ गयी थी. इस कारण उसका घर बात कर पाना भी कम हो गया था. घर पर पति अमोल और उनकी दस साल की बेटी सारा थी. अमोल कमर्शियल पायलट थें. वैसे तो बेटी का ध्यान रखने के लिये हाउस-हेल्प आती थी.किंतु दिल्ली में लॉक डाउन की स्थिति होने के बाद, उसे भी उन्होंने आने से मना कर दिया था. इस वजह से अमोल को छुट्टी लेनी पड़ी थी. वे दिल्ली के एक रिहायशी इलाके में बने एक अपार्टमेंट में किराये पर रहते थें. उनका टू बी एच के बिल्डिंग के चौथे फ्लोर पर था. अथक परिश्रम से पैसे जोड़कर और लोन लेकर पिछले वर्ष ही उन्होंने एक डूप्लेक्स खरीद लिया था. इसका पज़ेशन उन्हें इसी वर्ष मार्च में मिलना था, लेकिन इस वैश्विक महामारी ने सभी के साथ उनकी योजनाओं को भी बेकार कर दिया था.

पिछली रात वीडियो कॉल में भी उनके बीच यह ही बात हो रही थी.

“थक गयी होगी ना !?” अमोल के स्वर में प्रेम भी था और चिंता भी.

“हाँ ! पर थकान से ज्यादा बेचैनी है. आस-पास जैसे दुःख ने डेरा डाल रखा है.”

अमोल की आँखों ने मास्क से छुपे आरती के चेहरे पर चिंता और पीड़ा की लकीरों को देख लिया था. आरती एक भावुक और संवेदनशील स्त्री थी. पहले भी अपने पेसेंटस के दर्द को घर लेकर आ जाया करती थी, और अब तो स्थिति भयावह थी. अपनी पत्नी की पीली पड़ गयी आँखों को देखकर अमोल का हृदय कट के रह गया.

“कल घर आने की कोशिश करो !” उसने झिझकते हुये कहा तो आरती हंस पड़ी.

“सब समझती हूँ, आजकल सभी काम अकेले करने पड़ रहे हैं तो बीवी याद आ रही है. मैं नहीं आने वाली.”

“और नहीं तो क्या ! अरे भाई, इकुवालटी का मतलब काम बांटना होता है. हम तो यहाँ अकेले ही लगे हुये हैं.” अमोल ने भी हँसते हुये जवाब दिया और बड़े लाड से अपनी पत्नी को देखने लगा था. परेशानी में भी मुस्कुराते रहना, कष्ट में रोकर फिर हंस देना और अपने आस-पास सकरात्मकता को जीवित रखना, ऐसी ही थी आरती. उसके इन्ही गुणों पर रीझकर तो अमोल उससे प्यार कर बैठा था.

“क्या देख रहे हो ?” अमोल को अपनी ओर अपलक देखते रहने पर आरती ने पूछा था.

“तुम्हें !”

“और क्या देखा !”

“एक निःस्वार्थ, निडर और जीवंत स्त्री !”

“अमोल, तुम भी ना !”

“तुम भी तो घर बैठ सकती थी, पर तुमने बाहर जाना चुना. तुम बाहर निकली ताकि, लोगों के अपने घर लौट सकें. तुम बाहर निकली ताकि, अन्य लोग घरों में सुरक्षित रह सकें. प्राउड ओफ़ यू !”

आरती ने अमोल को प्रेम से देखा और बोली, “तुम्हें याद है जब तुमने मुझे बताया था कि इटली से भारतीयों को लाने वाली फ्लाइट तुम उड़ाने वाले हो तो मैंने क्या कहा था !”

“हाँ, तुम डर गयी थी !”

“उस समय तुमने कहा था कि अगर सब डरकर घर बैठ गये तो जिंदगी मौत से हार जायेगी ! डरना स्वभाविक है, लेकिन उससे लड़ना ही जीत है ! मैं हर दिन डरती हूँ, पर फिर उसे हराकर जीत लेती हूँ !”

“आरती !”

“अमोल, मुझे भी तुम पर गर्व है. इस संकट के समय जो भी अपना-अपना कर्म पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं उन सभी पर गर्व है.”

अमोल और आरती की आँखें एक दूसरे में डूब गयी. हृदय में चिंता भी थी, प्रेम भी और गर्व भी.

“मम्मा !” पता नहीं कब सारा अपने पापा के कंधे से लगकर खड़ी हो गयी थी.

“मेरा बच्चा !” आरती की पीली आँखें थोड़ी पनीली हो गयी थीं.

“आप कब आओगी !” उस प्रश्न की मासूमियत ने आरती के आँखों पर लगे बांध को तोड़ दिया और वो बहने लगीं.

“बेटा, मैंने आपको कहा था ना कि मम्मा हेल्थ सोल्जर हैं और वो …”

“गंदे वायरस को हराने गयी हैं ! आई नो पापा ! पर आई मिस यू मम्मा !” सारा की आँखें भी बहने लगी थीं.

अमोल कभी सारा के आँसू पोंछता, कभी आरती को समझाता.

“मम्मा, सब कहते हैं कि पापा गंदे वायरस को लाये हैं और सब ये भी कहते हैं कि गंदे वायरस से लड़कर आप भी गंदी हो गयी हो ! ईशान कह रहा था कि गंदे मम्मा-पापा की बेटी भी गंदी !” इतना कहकर वो फिर रोने लगी थी.

आरती के दिल पर जैसे किसी ने तेज मुक्का मारा हो, दर्द का एक सागर उमड़ आया था. मनुष्य अन्य जीवों से श्रेष्ठ माना जाता है, जिसका कारण है, बुद्धि. जानवर हेय हैं, क्योंकि उनके पास सोचने के लिये बुद्धि नहीं होती, मात्र एक भावुक हृदय होता है. लेकिन यह बात क्या सत्य है ! क्या सभी मनुष्यों के पास बुद्धि है ! संवेदना की तो अपेक्षा मूर्खता ही है ! इंसान जब इंसानियत छोड़ दे तो उसे क्या कहना चाहिये ! दानव ! जब वो घर से दूर कोरोना जैसे दानव के संक्रमण को रोकने के प्रयास में लगी हुयी थी. घर के बाहर लोगों के दिमाग पर नफरत का संक्रमण फैल रहा था, जिसने उनसे उनकी मनुष्यता को छीन लिया था. वह यह सोचकर सिहर उठी कि उसका परिवार दानवों से घिर गया था.

ये भी पढ़ें- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-7)

अमोल आरती के मन की उथल-पुथल को समझ रहा था. वह उसे यह सब बताकर परेशान नहीं करना चाहता था. अपार्टमेंट के लोगों की छींटाकशी कुछ अधिक ही बढ़ गयी थी. कल जब अमोल और सारा सब्जियां लेकर आ रहे थें, लिफ्ट में ईशान अपने पापा के साथ मिल गया था. उन्हें देखकर वे दोनों लिफ्ट से निकाल गये. उस समय तो अमोल कुछ समझ नहीं पाया था. उसे लगा, शायद उन्हें कुछ काम याद आ गया होगा. फिर जब रात में ईशान की बॉल उनकी बालकोनी में आ गयी, तो सारा ने आदतन बॉल को उसकी तरफ उछाल दिया था. लेकिन ईशान ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया. जब सारा ने इसका कारण पूछा तो वो रुखाई से बोला, “गंदे मम्मी पापा की बेटी गंदी !” इतना सुनते ही सारा की आँखें बरसने लगी थीं. अमोल के लिये उसे चुप कराना मुश्किल हो गया था. अब तो किराने वाला समान देने में भी आनाकानी करने लगा था. डॉक्टर होना जैसे स्वयं एक संक्रमण हो गया था. लेकिन अभी वो आरती को इन परेशानियों से दूर रखना चाहता था. वैसे भी वो अत्यधिक तनाव में काम कर रही थी.

“सारा ! छोड़ो यह सब ! तुमने मम्मा को बताया कि पी एम ने क्या कहा है ?” अमोल ने सफाई से बात बदल दी थी.

यह सारा तो नहीं समझ पायी लेकिन आरती समझ गयी थी. वह गुस्से में थी और कुछ कहने ही वाली थी कि अमोल ने उसे इशारे से चुप रहने को कहा. सारा सब कुछ भूल कर अपनी मम्मा को प्रधानमंत्री के देश के नाम किये सम्बोधन के बारे में बताने लगी थी. उस समय आरती का मन उचाट हो गया था, लेकिन सारा की खुशी देखकर उसने अपना गुस्सा दबा लिया था.

वह बोल रही थी, “मम्मा, कल शाम पाँच बजे सभी लोग अपने घरों की बालकोनी में या खिड़की में आकर आपको थैंकस बोलने के लिये थाली, ड्रम या शंख बजायेंगे ! सब लोग बाहर नहीं आ सकतें ना इसलिये अपने-अपने घरों में रहकर ही करेंगे ! कितना कूल है ना !”

आरती और अमोल ने एक दूसरे को देखा. उन्होंने कहा कुछ नहीं, पर उनकी नजरों के मध्य संवाद हो गया था. जिन्हें थाली बजाने को कहा गया था, उनमें से कितने वास्तव में मानव रह गये थें और कितने मात्र

आरती अभी पिछली रात के बारे में सोच ही रही थी कि सिस्टर सुनंदा की आवाज उसे वर्तमान में ले आयी थी.

“मैम, मास्क खत्म हो गये हैं !”

“अरे ! कल ही तो फोन किया था !” आरती की आवाज में गुस्सा था.

“जी मैम, पर अभी तक कोई जवाब नहीं आया !”

“सो रहे हैं क्या वे लोग ! उन्हें पता नहीं कि इन्फेक्शन फैलने में समय नहीं लगता !” आरती का गुस्सा अब बढ़ गया था.

“जी मैम !” सुनंदा ने सर झुका लिया था. वह कर भी क्या सकती थी. आरती ने भी सोचा उस पर गुस्सा करके क्या होगा. वह उठी और मास्क भिजवाने के लिये फोन करने लगी. तभी उसकी नजर सामने लगे टी वी के स्क्रीन पर गयी. लोग अपने=अपने घरों में थालियाँ और शंख बजा रहे थें.

“ये सब क्या हो रहा है !” आरती के होंठों से फिसल गया.

“मैम, सब हमारा धन्यवाद कर रहे हैं ! आज इतना गर्व हो रहा है ! जंग में खड़े सिपाही जैसा लग रहा है !” उसका चेहरा हर्ष और गर्व से दमक रहा था. उसके चेहरे को देखकर आरती ने सोचा “यदि इस सब से  इन सभी का मनोबल बढ़ रहा है तो यह प्रयास भी बुरा नहीं है. इस कठिन समय में हम सभी को मानसिक ताकत की बहुत आवश्यकता है.”

“हैं ना मैम !” आरती को चुप देखकर सुनंदा ने पूछ लिया था.

“हम सब सैनिक ही हैं, जो एक अनदेखे अनजान दुश्मन से लड़ रहे हैं; वो भी बिना किसी हथियार के ! तुम्हें गर्व होना ही चाहिये !” आरती ने प्रत्यक्ष में कहा था. तभी आरती जिसे फोन कर रही थी, उसने फोन उठा लिया था. उसने सुनंदा को चुप रहने का इशारा किया और बात करने लगी थी.

“क्या सर सो रहे थें क्या !?”

“अरे नहीं ! नींद कहाँ !” उधर से उस आदमी ने कहा था.

“मैं तो सोच रही थी कि इस बार अगर आपने फोन नहीं उठाया तो थाली लेकर पहुँच जाऊँगी आपके पास.” इतना कहकर आरती ने सुनंदा की तरफ देखकर आँख मार दी. सुनंदा भी मुस्कुरा दी थी.

“अरे क्या डॉक्टर मैडम आप भी !” वह खिसियानी हंसी हँसते हुये बोल था.

“अब आप हमें मारने पर तुले हैं तो, थाली ही बजानी पड़ेगी !”

“क्या गलती हो गयी डॉक्टर साहब ?”

“हमने मास्क के लिये कल ही फोन कर दिया था और अभी तक कुछ नहीं पता” आरती का स्वर गंभीर हो गया था.

“एक घंटे पहले ही भेज दिया है, पहुँचने वाला ही होगा !”

“आभार आपका !” आरती के स्वर में व्यंग्य था.

“अरे-अरे कैसी बात कर रही हैं ! आप तो बस हुक्म करो !”

“बस आप स्थिति की गंभीरता को समझो और समय पर सब कुछ भेजते रहो. बस इतना करो !” इतना कहकर आरती ने फोन पटक दिया था. सामने खड़ी सुनंदा उसके जवाब का इंतजार कर रही थी.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: वर्क फ़्रौम होम का लड्डू

“आने वाला है !” आरती की बात सुनकर सुनंदा चली गयी थी.

आरती ने सोचा कि थोड़ी देर में वो व्यस्त हो जायेगी, इसलिये सारा को विडिओ कॉल कर लेना चाहिये. वो कल ड्रम बजाने को लेकर कितनी उत्साहित थी. घर से अपने कुछ कपड़े भी मंगाने थें. आरती ने कॉल लगा लिया. कुछ देर तक फोन बजता रहा. किसी ने फोन नहीं उठाया. दो-तीन बार फोन करने पर भी जब अमोल ने फोन नहीं उठाया, वह परेशान हो गयी. थोड़ी देर बाद अमोल का फोन आ गया था.

“अमोल ! कहाँ थें तुम ! फोन क्यों नहीं उठा रहे थें !” आरती लगातार बोलती जा रही थी.

“आरती, आरती, आरती शांत हो जाओ !” अमोल ने उसे शांत कराया.

“यहाँ एक समस्या हो गयी थी.” अमोल को आवाज के कंपन को आरती ने सुन लिया था.

“कैसी समस्या? क्या हुआ अमोल !” आरती काँप रही थी.

“अपार्टमेंट के कुछ लोग ..” अमोल की आवाज की झिझक ने आरती को और परेशान कर दिया.

“कुछ लोगों ने क्या ?” वो लगभग चीख उठी थी.

“वे हमें घर खाली करने को कह रहे थें !”

“व्हाट ! क्यों ! हाउ डेयर दें !” आरती का क्रोध बढ़ गया था.

“इडियट्स का कहना था कि तुम कोरोना के रोगियों का इलाज कर रही हो तो पूरी बिल्डिंग को संक्रमण का खतरा है. मैं और सारा भी कोरोना को अपने कपड़ों में लिये घूम रहें हैं.”

“मैं आ रही हूँ ! मैं अभी आ रही हूँ ! देखती हूँ कैसे ..”

“अरे यार ! तुम चिंता मत करो. अभी सभी ठीक है. मैंने पुलिस को फोन कर दिया था. उन्होंने इन सभी की खबर ली है. डॉक्टर कह देने भर से, पुलिस वाले काफी मान दे रहे हैं. बिल्डिंग के सभी लोग ऐसे नहीं हैं. तुम चिंता मत करो. बहुत बड़ा काम कर रही हो. इन कीड़ों की वजह से अपने काम पर से ध्यान मत हटाओ.”

“अमोल ! मेरा मन नहीं लगेगा !” आरती की आवाज में डर सुनकर अमोल ने उसे विडिओ कॉल किया.

अमोल के पास बिल्डिंग के कुछ लोग बैठे थें. सारा विमला आंटी की गोद में बैठी दूध पी रही थी. आरती को देखते ही सब एक साथ चिल्लाकर बोलें, “थैंक यू”.

सारा और अमोल से कुछ देर बात करने के बाद, निश्चिंत होकर आरती ने फोन रख दिया था. किसी ने सही कहा था कि इस दुनिया का अंत अनपढ़ लोगों के कारण नहीं बल्कि पढ़े-लिखे मूर्ख अनपढ़ों के कारण होगा.

सामने लगे टी वी स्क्रीन पर सभी चैनलों में लोगों का धन्यवाद करना दिखाया जा रहा था. आरती सोच रही थी कि इन थाली पीटने में लगें लोगों में से कई तो वो भी होंगे जो अपने आस-पास रह रहें डॉक्टरों और अन्य जो इस महामारी से बचाव के काम में लगें हैं, उन्हें घृणा की दृष्टि से देखते होंगे. आरती का मन वितृष्णा से भर गया.

यह थाली की आवाज थप्पड़ बन कर कान पर लग रही थी. आरती ने आगे बढ़ कर टीवी ऑफ कर दिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें