वर्तमान को अच्छी तरह जीने का प्रयत्न करता हूं – फरहान अख्तर

17 वर्ष की उम्र से सहायक निर्देशक के रूप में काम कर चुके निर्देशक ने फिल्म ‘रौकवन’ से फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया. फ़िल्मी परिवार में पैदा होने के बावजूद उन्होंने परिवार के किसी का सहारा नहीं लिया और अपने बलबूते पर इंडस्ट्री में पहचान बनायी. वे आज एक निर्माता,निर्देशक के साथ-साथ अभिनेता, पटकथा लेखक और गायक भी है. उन्होंने जिंदगी जैसे आई, वैसे जीते गए. इस दौरान सफलता और असफलता का दौर भी उन्होंने देखा, पर अधिक ध्यान नहीं दिया. वे अभी दो बेटियों के पिता है और उनकी आगे आने वाली फिल्म ‘द स्काई इज पिंक’ में भी वे एक टीनएजर्स बेटी के पिता की भूमिका निभा रहे है. उनसे मिलकर बात करना रोचक था पेश है कुछ अंश.

सवाल- स्काई हमेशा ब्लू होता है, लेकिन इसमें पिंक कहा गया है, इसका अर्थ आपकी नजर में क्या है?

ये एक कहानी है, जिसमें एक माता-पिता को अपनी बेटी की लाइलाज बीमारी का पता चलने के बाद भी कैसे उस बेटी के साथ वे जिंदगी को गुजारते है, वह भी सकारात्मक रूप में, इसे दिखाने की कोशिश की गयी है.

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सवाल- इस फिल्म में एक भावनात्मक पहलू को दिखाया गया है, क्या आप कभी इस तरह के इमोशनल ट्रैक से गुजरे है? खुद बेटी के पिता होने के नाते इससे अपने आपको कितना जोड़ पाते है?

ये एक बहुत ही अलग तरीके की इमोशन है, जिसे सोचकर भी मुझे डर लगता है, किसी के बच्चे के साथ ऐसा कभी भी न हो ,ऐसा मैं सोचता हूं, क्योंकि इस फिल्म में ऐसी बीमारी को दिखाया गया है, जिसकी कोई इलाज नहीं है. ऐसी स्थिति कभी भी किसी के साथ हो सकता है कि उसका बच्चा उसे छोड़कर चला जाएँ. मैंने जब इस कहानी को सुना था, तो लगा था कि ये हैवी फिल्म होगी, लेकिन निर्देशक ने इसे बहुत ही संजीदगी से दिखाने की कोशिश की है, जो मुझे अच्छी लगी. जाहिर सी बात है कि इस तरह की फिल्में लोगों को प्रेरित करेगी. इस कहानी से कोई भी रिलेट नहीं करना चाहेगा और कर भी नहीं सकता. इस कहानी से ये प्रेरणा मिलती है कि जिंदगी कभी न कभी तो ख़त्म होगी ही. आज लोग सफलता और आगे निकलने की होड़ में भूल जाते है कि उनके पास जो है, वह कितना कीमती है, जो कुछ दिनों बाद ख़त्म हो जायेगा. उसे सेलिब्रेट करना कितना जरुरी है.

माता-पिता बच्चे की भलाई के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते है. 30 साल के होने पर भी वे हमेशा दुआ करते है कि उनके बच्चे को कुछ न हो और वे सुखी रहे. उससे मैं अपने आपको जोड़ सकता था, लेकिन कहानी कुछ और है, जिससे जुड़ने में मुझे समय लगा. मैं स्ट्रिक्ट पिता नहीं हूं.

सवाल-क्या आप हमेशा वर्तमान में रहने की कोशिश करते है?

मैं वर्तमान और भविष्य में सामंजस्य करता रहता हूं. समय के साथ-साथ मैंने जाना है कि वर्तमान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. मैंने देखा है कि सफलता और अच्छा काम करने की चाह में मैंने बहुत सारी चीजो को छोड़ दिया है. अब मैं पास्ट को अधिक नहीं देखता न ही भविष्य के बारें में अधिक सोचता हूं. वर्तमान को अच्छी तरह जीने का प्रयत्न करता हूं.

सवाल- क्या इस फिल्म ने आपकी सोच को बदल दिया है?

बहुत हद तक बदल दिया है. इस फिल्म को करते वक़्त मुझे पुरानी फिल्म ‘आनंद’ की याद आई, जिसमें कही गयी थी कि जिंदगी लम्बी नहीं बड़ी होनी चाहिए, उसे अनुभव किया.

सवाल- प्रियंका चोपड़ा के साथ आपकी दूसरी फिल्म है, जिसमें आप दोनों एक साथ अभिनय कर रहे है, कितनी सहजता रही है?

फिल्म ‘डौन’ से हमारी बौन्डिंग अच्छी रही है. हमने साथ-साथ कई बार घूमे है. वह पर्दे पर भी है. इसलिए काम करने में सहजता रही है.

सवाल-  परिवार के साथ आपकी बौन्डिंग कैसी है?

परिवार के साथ ही आप आगे बढ़ सकते है और हर रिश्ते को अहमियत और इज्जत देने की जरुरत होती है, तभी रिश्ता फलता-फूलता है. ये सब भी मैंने इस फिल्म के बाद से ही अधिक महसूस करने लगा हूं.

सवाल-सफलता और असफलता आपकी नजर में क्या है?

सफलता को सभी मिलकर मनाते है, जबकि असफल व्यक्ति के साथ कोई भी नहीं रहता. ऐसे में सही लोगों का आपके आस-पास रहना बहुत जरुरी है, जो आपको इस दौर से निकलने में मदद करें. हर किसी को असफल और सफलता के दौर से गुजरना पड़ता है.

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सवाल-आप काफी दिनों से निर्देशन नहीं कर रहे है, इसकी वजह क्या है?

मुझे क्रिएटिव काम पसंद है और मैंने बीच में निर्देशन बंद कर अभिनय किया, फिर अभिनय को रोक कर सिंगिंग शुरू किया. मेरे हिसाब से हर बात की एक समय होती है. जब आप वह करते है. मुझे जो नैचुरली आता है उसे करता जाता हूं.

सवाल- सामाजिक कार्य की दिशा में अभी क्या कर रहे है?

मेरी कोशिश हमेशा रही है कि जो भी काम करूं वह किसी न किसी रूप में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में हो. इसके अलावा संस्था ‘मर्द’ के साथ कुछ न कुछ एक्टिविटी करते रहते है. साथ ही फिल्मों के ज़रिये कुछ अच्छा करने की कोशिश हमेशा करता रहूंगा.

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हिंदी सिनेमा जगत और हौलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाने वाली प्रियंका चोपड़ा जोनास के नाम से कोई अछूता नहीं. एक्ट्रेस होने साथ-साथ वह मिस वर्ल्ड विनर 2000, फिल्म निर्माता और सिंगर भी है. उसने हर तरह की फिल्में की और नाम कमाया. वह आज भी जो बात गलत होती है, उसे कहने से नहीं हिचकिचाती. उसने अभिनय के बल पर यह सिद्ध कर दिया है कि कलाकार की कोई जाति, धर्म, रंग भेद, देश या समुदाय नहीं होती. उसका काम केवल अभिनय करना होता है, जिसे वह आज भी कर रही है.

वह भारत को अपना पहला घर मानती है और हर दो महीने में परिवार से मिलने आ जाती है. इसके अलावा वह ग्लोबल यूनिसेफ गुडविल अम्बेसेडर भी है, जो भारत, श्री लंका, बांग्लादेश आदि देशों में बच्चो के ग्रोथ के लिए काम करती है, ताकि ये बच्चे सही तरह से ग्रो कर पूरी दुनिया को प्रभावित करें. उसकी फिल्म ‘द स्काई इज पिंक’ में वह एक मां की भूमिका निभा रही है, जो अपनी लाइलाज बीमारी से ग्रसित लड़की को बहुत जतन से परवरिश करती है और इस दौरान वह कई भावनात्मक पहलूओं से गुजरती है. 3 साल की ब्रेक के बाद वह इस फिल्म को लेकर बहुत उत्साहित है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल- आपको ग्लोबल आइकौन कहा जाता है, क्या महसूस करती है?

बहुतअच्छा लगता है जब एक कलाकार को इतना बड़ा सम्मान मिलता है. मैंने एक कोशिश कला को फ़ैलाने की है और अगर लोग ऐसा मानते है, तो ख़ुशी होती है.

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सवाल- आप 3 साल बाद एक बार फिर बौलीवुड की तरफ रुख किया है, इसे कैसे देखती है?

बहुत अच्छा लगता है अपने देश में काम करना. जब मैं टीवी शो क्वांटिको कर रही थी, तो उसमें 11 महीने लगते है. ऐसे में समय की कमी थी. टीवी शो के ख़त्म होने के बाद मैंने हिंदी फिल्म करने को ठानी और ये स्क्रिप्ट मुझे पसंद आई, क्योंकि यह एक रियल कहानी है. पहले भी मैरीकॉम मेरी ऐसी ही रियल इंसान पर कहानी थी. इसमें एकमाता-पिता की जिंदगी में एक बच्ची के साथ क्या-क्या गुजरती है उसकी कहानी है. इस कहानी ने मेरे दिल को छू लिया है.

सवाल- क्या असल जिंदगी में कभी किसी भावनात्मक पहलू से आपको गुजरना पड़ा?

ऐसे बातें हर व्यक्ति के जीवन में आती है, हर व्यक्ति को इन भावनाओं से गुजरना पड़ता है. जिसके बारें में हम बात भी नहीं कर पाते. जन्म और मृत्यु को केवल हम जानते है. मैं भी अपनी ग्रैंड मदर और डैड के साथ इसे अनुभव किया है. मुझे उनके बाद, उससे निकलने में समय लगा है. ये कहानी उसी को बताती है कि हर व्यक्ति की जिंदगी ख़त्म होगी. फर्क इतना है कि आज हम किसी अपनों के गम में शरीक होते है और कभी कोई हमारे अंत पर दुखी होगा, ऐसे में जबतक आपके पास समय है, उसे अच्छी तरह से सेलिब्रेट करें और जी लें. माता-पिता को भी हमेशा याद करते रहना चाहिए जिनकी वजह से हमारी जिंदगी बनी है और हम उन्हें अधिकतर भूल जाते है. ये भी सही है कि परिवार हर परिस्थिति में आपके साथ रहती है और हर मुश्किल से लड़ने का साहस देती है. मैं अपने परिवार के नजदीक हमेशा से हूं.

सवाल- किसी भी नकारात्मक सोच से आप कैसे बाहर निकली है?

खराब फेज को फील करना बहुत जरुरी है. अनुभव न कर पाने की स्थिति में इससे निकलना मुश्किल होता है. कई बार ठोकरे हमें गिरकर उठना और आगे बढ़ना सिखाती है. इन ठोकरों का जीवन में होना जरुरी है.

सवाल- आप स्पष्ट भाषी है, ये आपमें कैसे आया?

मेरे माता-पिता दोनों ने मुझे सही बात को कहना सिखाया. ये उनकी परवरिश का ही नतीजा है. विश्व में हर जगह लड़की को एक सीमा में बांधकर रखने की कोशिश की जाती है. एक लड़की का सपना शादी के बाद कई बार खत्म हो जाती है. मेरे माता-पिता ने मेरी आवाज को न दबाने की हमेशा सलाह दी और मैंने इसे सीख लिया है.

सवाल- शादी के बाद आपके जीवन में क्या-क्या बदलाव कैरियर और निजी जीवन में आयें है?

मैं शादी के बाद बहुत अच्छी बन गयी हूं, क्योंकि मेरे पति बहुत ही शांत स्वभाव के है. मैं थोड़ी एग्रेसिव हूं, पर उनके साथ रहते हुए शांत हो गयी हूं. उन्हें भारतीय संस्कृति बहुत पसंद है. यहां का खाना और रहन-सहन सब उन्हें अच्छा लगता है. कई बार तो लगता है कि मैंने पंजाबी से शादी की है.

सवाल-आपने पढ़ाई अमेरिका में की थी और अब वहां की बहू बन गयी है, कितना भारत और यहां की बौलीवुड को मिस करती है?

मुझे कोई अन्तर महसूस नहीं होता. मेरा घर परिवार यहां पर भी है वहां भी. काम भी मैं यहां और वहां करती हूं. जब मैं अमेरिका में पढ़ती थी, तब शायद उस स्थान से डरती थी, क्योंकि वहां पर लड़कियों ने मुझे बहुत परेशान किया था और मैं वापस भारत आ गयी थी. अब वहां पर मेरे काम की सराहना मिलने के साथ-साथ मुझे बहुत सम्मान भी मिल रहा है. मुझे मेरे पति भी मिले है. मैं भारत को अधिक मिस नहीं करती ,क्योंकि हर दो महीने में  यहां परिवार से मिलने आ जाती हूं, लेकिन यहां के घर के फ्रेश खाने को मैं बहुत मिस करती हूं.

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सवाल- किसी कंट्रोवर्सी को आप कैसे लेती है?

अगर मुझे व्यक्तिगत रूप से कोई कुछ कहता है, तो मैं उसपर अधिक ध्यान नहीं देती. मेरे काम के बारें में कोई कुछ कहने पर मैं उसका उत्तर देती हूं. मैं कोई नेता नहीं, मैं एक कलाकार हूं और सबके मनोरंजन के लिए काम करती हूं.

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